आत्महत्या

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आत्महत्या करने वाले रुको! सोचो! फिर मरो, 

मरना ही है तो जरूर मरो,

 मैं रोकूंगी नहीं, टोकूंगी नहीं, क्योंकि

 मरने वाले मिलते ही कहां है, ?

धरती वैसे ही भीड़ के बोझ तले दबी है।

 तो तुम मरो ,जरूर मरो,।

 पर एक पल ,रुक जाओ, सोचो समझो,

 क्या फजीहत के डर से मर रहे हो,

 तो फजीहत करने वालों की फजीहत करके मरो,। बलात्कार किया, किसी ने शरीर का ,भावना का ,मानसिकता का तो,

 उस बलात्कारी को दंड देकर मरो।

 फेल हो गए हो परीक्षा में तो देश के लिए काम आओ, भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाओ,

 तुम्हें मारने का काम भ्रष्टाचारी कर देंगे,

 मरो तो देश के लिए मरो।

 काल समाज के लिए मरो, कायर की मौत मरने से अच्छा वीरता की मौत मरो,

 देश को तो मरने वालों की बहुत जरूरत है।

 किसी नक्सली आतंकवादी से लड़ते-लड़ते मरो।

 अत्याचार के विरुद्ध आवाज उठाकर मरो ।

जो आज तुम्हारी आत्महत्या से घरवाले शर्मसार हैं,

 दुखी हैं, आहत है,

 कल यही आत्महत्या बलिदान कहलाएगी ।

और घरवाले सर गर्व से उठाकर कहेंगे ,

वह मेरा बेटा, या बेटी थी ।

जो शहीद हो गए ।

आत्महत्या, कर के कायर की मौत मरने से ,

अच्छा देश के लिए वीरता की मौत मरो।

 पाखंडीओ के ढोंग के चोले उतार के मरो ।

नक़ाब पोश  समाज के ठेकेदारों के असली,

 चेहरे उतार के मरो।

 समाज के सफेदपोश नेताओं के काले कारनामे,

 दिखाकर मरो।

 पर्दे में ढकी  समाज की भद्दी तस्वीर दिखा कर मरो ।

डर के जीने वाले यह नहीं कर सकते,

 पर तुम जीने के डर से ऊपर उठ गए हो,

मरो तो ऐसे मरो ,

कि समाज तुम्हारा,

 ऋणी रहे बरसों ,

नहीं तो मेरे दोस्त,

 जो कमजोर क्षण तुम्हारी जिंदगी में आए हैं, जिसके कारण तुम जीना छोड़ रहे हो,

 ऐसे बहुत से  कमजोर क्षण बहुतेरे,  इंसान के जीवन में आए हैं।

 पर वे उन से उबर कर जीये है। और सार्थक जिंदगी जीयेहै। दुख जीवन की कथा है ,

हर जीवन ने जी ये व्यथा है ।तुम अकेले ही नहीं इस राह के राहगीर  ,

इसीलिए कहती हूं ,

जिओ तो आन से ,

मरो तो शान से।

 धन्यवाद

अंजू गोलछा

बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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