कथा साध्वी मलयसुंदरी

 [ 38 ] 🌹🌹🌹 साध्वी मलयसुंदरी 🌹🌹🌹

मलयसुंदरी और महाबलकुमार के बीच प्रथम दृष्टि से ही प्रेम हो गया , परंतु उसका स्नेहसंबंध इतना धर्मनिष्ठ रहा कि विवाह के पूर्व एवं विवाह के बाद कई आपत्तियाँ आने पर भी उनकी स्नेहगाँठ दृढ़ रही । वीरधवल राजा और रानी चंपकमाला की पुत्री मलयसुंदरी तथा पृथ्वीस्थानपुर के राजा सुरपाल के पुत्र महाबलकुमार के बीच प्रणय में मलयसुंदरी की सौतेली माता कनकवती ने अनर्थ करने का प्रयत्न किया । महाबल मलयसुंदरी से मिलने आया था , तब मुख्य द्वार पर ताला लगाकर कनकवती ने तूफान मचाया क्योंकि महाबल ने रानी कनकवती की कामेच्छा को ठुकराया था । महाबल अपने केश में रखी गुटिका बाहर निकाल कर नारी का रुप ले लेता है और इस प्रकार कनकवती के प्रपंच को असफल बनाता है ।


विमाता ने ऐसा षड्यंत्र रचा कि राजा ने क्रोधित होकर मलयसुंदरी को अँधेरे कुएँ में डाल देने की आज्ञा दी । अँधेरे कुएँ में रहते हुए अजगर के मुँह में मलयसुंदरी जा पड़ी और अजगर उसे आधी निगलकर बाहर आया । वह जंगल में वृक्ष की लपेट लेने जा रहा था । उस समय महाबल एक दानव या राक्षस का पीछा करते हुए योगानुयोग से जंगल में आया था । उसकी दृष्टि अजगर पर पड़ी । उसके मुँह में आधा निगला हुआ व्यक्ति था । महाबल ने सोचा कि यह अजगर तुरंत ही वृक्ष की लपेट लेकर अपने शिकार को खत्म कर डालेंगा । इसलिए परोपकार से प्रेरित होकर महाबल ने दोनों हाथों से अजगर के होंठ पकड़कर जीर्ण वस्त्र की तरह उसके दो भाग कर डालें । उसके मुख में से मंद चैतन्यवाली एक नारी निकली । अर्ध बेहोश उस नारी के से उस समय , " मुझे महाबलकुमार की शरण प्राप्त हो " ऐसा मंद उद्गार निकल पड़ा । महाबल ने मलयसुंदरी को पहचाना और दूर दृष्टि डाली तो कोई पुरुष आकर वेग से उसकी ओर चला आ रहा था । इस घने जंगल में चोर-डाकू भी हो सकता है । उससे बचने के लिए महाबल ने अपने केश में से गुटिका निकालकर मलयसुंदरी के भाल पर तिलक करके उसे पुरुष बना दिया और कहा , " यह तिलक मैं अपने हाथ से पोछूँगा , तब तुम्हारा मूल रुप प्रकट होगा ।"


दूसरी ओर राजा को ज्ञात हुआ कि विमाता कनकवती के षड़यंत्र के कारण मैंने अपनी निर्दोष पुत्री को गँवा दिया । राजा-रानी को गहरा सदमा पहुँचने से दोनों ने प्राणत्याग करना तय किया । इसी समय महाबल ने नैमेत्तिक के रुप में वहाँ आकर खबर दी कि मलयसुंदरी जीवित है । आप स्वयंवर का आयोजन कीजिए । उस मंडप में ही काष्ठस्तंभ से वह प्रकट होगी ।


राजा वीरधवल ने स्वयंवर का आयोजन किया । योजना के अनुसार महाबल वीणावादक के वेश में वहाँ पहुँच गया था । मलयसुंदरी ने उसे वरमाला पहनाई , तब हताश हुए राजकुमार तलवार लेकर उस पर टूट पड़े । इस समय महाबल ने प्रबल पराक्रम द्वारा राजकुमारों को पराजित किया । राजा ने जब सच्ची बात जानी , तब भागतें हुए राजकुमारों को वापस बुलायें और उन्हें मलय-महाबल के विवाह में बारातियों के रुप में सम्मिलित किया ।


विवाह के बाद दोनों भट्टारिका के मंदिर में गये। इस निर्जन स्थान में अकेले रहना उचित नहीं होने से महाबल ने मलयसुदरी को पुरुष-रुप दिया । एक स्त्री का विलाप सुनकर महाबल उसकी सहायता पर जाता है । दूसरी ओर सबेरा होने को हुआ , फिर भी महाबल वापस नहीं लौटा , तब पुरुषवेशधारी मलयसुंदरी पृथ्वीस्थानपुर में आती है । पृथ्वीस्थानपुर नगर में उसका राजकुमार महाबल लापता होने से राजा उसकी खोज करवा रहे थे । तब इस नगर में पुरुषवेश में आई हुई मलयसुंदरी के पास से महाबल के सुवर्णकुंडल तथा साफा प्राप्त होने से उसे पकड़ा गया । पुरुषवेश में रही मलयसुंदरी ने निर्दोष होने की बात कहीं , तब राजा ने वह निर्दोष है या नहीं इसकी जाँच-परीक्षा करना निश्चित किया । धनंजय यक्ष के मंदिर में एक घड़े में भयंकर सर्प रखा गया । युवक उसे बाहर निकाले और वह यदि निर्दोष होगा तो यक्ष के प्रताप से उसका बाल भी बाँका नही होगा । दोषित होगा तो वह मारा जायेगा । मंदिर में मलतसुंदरी ने पंच परमेष्ठी मंत्र का स्मरण करके घड़े में से तीन फुट लंबा काला सर्प बाहर निकाला । उस सर्प ने मुख में से दिव्य हार निकालकर मलयसुंदरी के गले में पहनाया तथा अपनी जीभ से तिलक पोंछ डालते ही मलयसुंदरी मूल नारीरुप में आ गई । राजा और प्रजा यह चमत्कार देखकर प्रसन्न हुए । तत्पश्चात् मलयसुंदरी के जीवन में अनेक घटनाएँ घटी । जैन मुनि की अवमानना -अपमान करने से उसे यह सब सहना पड़ा । कर्म की ऐसी गति देखकर दोनों ने संयम स्वीकारना तय किया । संयम के श्वेत वस्त्रों में महाबल मुनि और मलयसुंदरी शोभायमान हुए । साध्वी मलयसुंदरी कुछ ही समय में अग्रगामी महत्तरा बनीं ।


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साभार: जिनशासन की कीर्तिगाथा

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