मनपर्यव ज्ञान
Q 1, मनपर्यय ज्ञान किसे कहते है ?
Ans 1, इंद्रिय व मन की सहायता के बिना दूसरे जीव के मनोगत भावों को जानना। अतिंद्रिय ज्ञान।
Q 2, अवधि ज्ञान चारों गतियों के जीवों को होता है, मनपर्यय ज्ञान कौनसे गति के जीवों को होता है ?
Ans 2, मनपर्यय ज्ञान केवल संगी मनुष्य को होता है।
Q 3, संगी मनुष्य मे भी कोई विशेष प्रकार के मनुष्य के होता है ?
Ans 3, हाँ केवल संयमि आत्मा (साधु , साध्वी जी) के होता है।
Q 4, कौनसे संयमि आत्मा के मनपर्यय ज्ञान हो सकता है ?
Ans 4, रिद्धिधारी अप्रमत संयत साधु साध्वी जी के होता है।
मनपर्यय ज्ञान के लिये प्रभु वीर ने 9 योग्यता बताई जो नंदी सूत्र मे वर्णित है।
1, मनुष्य
2, गर्भविक्रांतिक(गर्भज) मनुष्य
3, कर्मभूमिज मनुष्य
4, संख्येय वर्षायुष्क मनुष्य
5, पर्याप्तक मनुष्य
6, सम्यक दृष्टि मनुष्य
7, संयत
8, अप्रमत
9, ऋद्धि प्राप्त।
Q 5, क्या वर्तमान समय मे मनपर्यय ज्ञान हो सकता है ?
Ans 5, जंबु स्वामि जी के सिद्ध होने के बाद दस बोलो का विच्छेद हो गया था उसमे मनपर्यय ज्ञान भी शामिल।
Q 6, मनपर्यय ज्ञान कौन से गुणस्थान मे होता है ?
Ans 6, मनपर्यय ज्ञान सातवे गुणस्थान वर्ती के होता है, तथा 6 ठे से 12 वे गुणस्थान तक रहसकता है।
Q 7,मनपर्यय ज्ञान के कितने भेद, कौनसे ?
Ans 7, दो भेद, ऋजुमति, विपुलमति मनपर्यय ज्ञान।
Q 8,मनपर्यय ज्ञान का विषय क्या है ?
Ans 8,संगी पंचेन्द्रीय चाहे मनुष्य हो या तिर्यंच उनके मनोगत भावों को जानना।असंगी जीवों के मन ही नही होता।
Q 9, मनपर्यय ज्ञान का क्षेत्र कितना ?
Ans 9, मनुष्य अढ़ाई द्वीप मे रहता है, उसका क्षेत्र भी अढ़ाई द्वीप है।
Q 10,ऋजुमति, विपुल मति मनपर्यय ज्ञान मे द्रव्य की दृष्टि से क्या अंतर है?
Ans 10, द्रव्य की दृष्टि से ऋजुमति मनपर्यय ज्ञानी मनो वर्गणा के अनंत अनंत प्रदेशी स्कंध को जानता, देखता है, विपुलमति ज्ञानी उन स्कंधो को विपुलतर, विशुद्धतर,और उज्ज्वलतर.रूप से जानता, देखता है।
Q 11,अवधिज्ञान भव प्रत्यय व गुण प्रत्यय दोनो होते है, क्या मन पर्यय ज्ञान भी दोनो होते है?
Ans 11, नही, मनपर्यय ज्ञान केवल गुण प्रत्यय होता है।
Q 12, क्या मन पर्यय ज्ञान से पूर्व अवधिज्ञान होना जरूरी है ?
Ans 12, मनपर्यय ज्ञान से पूर्व मति व श्रुत ज्ञान होना आवश्यक, अवधि ज्ञान होना जरूरी नही।
Q 13, क्या मनपर्यय ज्ञानी के मोक्ष जाने की नियमा है?
Ans 13,ऋजुमति मनपर्यय ज्ञानी की नही। विपुलमति मनपर्यय ज्ञानी की नियमा। मोक्ष जायेगा।
Q 14, क्या मनपर्यय ज्ञान अप्रतिपाति है ?
Ans 14, ऋजुमति मनपर्यय प्रतिपाति है, विपुलमति मनपर्यय ज्ञान अप्रतिपाति है।
Q 15, क्या मनपर्यय ज्ञान अगले भव मे भी जा सकता है ?
Ans 15,नही जा सकता। मनपर्यय ज्ञान संयमि आत्मा के ही होता। शरीर त्याग के साथ चारित्र समाप्त, मनपर्यय ज्ञान समाप्त।
Q 16, अवधिज्ञान, मनपर्यय ज्ञान मे कौन विशिष्ट.?
Ans 16, मनपर्यय ज्ञान,अवधिज्ञानी की तुलना एक General Physician की तरह व एक मनपर्यय ज्ञानी Specialist Doctor बताया गया है।
Q 17, अवधि दर्शन, केवल दर्शन है फिर मनपर्यय दर्शन क्यों नही?
Ans 17, दर्शन का अर्थ सामान्य देखना, मनपर्यय ज्ञान विशिष्ट होता है सो मनपर्यय दर्शन नही होता।
Q 18, अवधिज्ञानी उर्ध्व लोक, अधोलोक देख सकता है, क्या मनपर्यय ज्ञानी उर्ध्व लोक, अधोलोक कहाँ तक देख सकता है ?
Ans 18, मनपर्यय ज्ञानी केवल मध्य लोक के उपर नीचे 900 ,900 योजन तक देख सकता है।
Q 19, मनपर्यय ज्ञान क्षायीक ज्ञान या क्षयोपशमिक ज्ञान.?
Ans 19, मनपर्यय ज्ञान क्षयोपशमिक ज्ञान है। ज्ञान पर आवरण रहता है।
Q 20, अंतगढ़ सूत्र मे वर्णित आत्मा को किसे मनपर्यय ज्ञान हुआ था ?
Ans 20, अंतगढ़ सूत्र मे वर्णित 90 आत्माओं मे से किसी को मनपर्यय ज्ञान नही हुआ।
Q 21, हमे तो करेमि भंते का पाठ बोलते ही मनपर्यय ज्ञान हो जाता है। हम कौन?
Ans 21, तीर्थंकर प्रभु, नियमा है।
*संज्ञी पंचेंन्द्रिय जीव के मनोगत जाने, पदार्थ के सूक्ष्म रुप को जाने*
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
*चार गति में सिर्फ मनुष्य में साधुओं को होता*
💐💐💐💐💐💐💐💐💐
*ऋजुमति और विपुलमति हैं इसके दो भेद*
🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼
*
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें