युवा आक्रोश

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*युवा आक्रोश*


आक्रोश छुपा है भय के अवचेतन में, 

 विश्वास के अधकचरे  पैमाने में,

 भविष्य की चिंता में,

 वर्तमान के भौतिक गलियारे में,

वैसे, स्थूलत मानव लज्जाशील विवेकशील औचित्य का ठेकेदार है,

 पर पाने के भरम ,में खुद को बना रहा दाग दार है,

  इंसान मन की किसी अंधेरी कोठरी में लगा बैठा है

 एक हाट,

जहां सत्य की रोशनी नहीं,

 झूठ की तंग गली में ,

 अपनी नंगी भद्दी चेतना के साथ ।

खरीद रहा है ,

नपुसंकता पौरुषता के भाव,

 बेच रहा है

 जमीर निष्प्राणित योजना के हाथ,

 वस्तु विनिमय हो रहा है, 

विवेक का सुख साधन के साथ,

औऱ

 बदले में पा रहा है पेशानी पर श्वेद कण,

 आंखों में भय के डोरे,

बिलबिलाते जा रहे रिश्ते  क्षण क्षण,

 बोली में बौखलाहट भरी 

गुर्राहट,

 जवानी मय के प्याले में गर्त,

 और मानस में अनित्य तनाव,

लड़खड़ाते मन के भाव,

जो सृजन करता है

आक्रोश , आक्रोश ही हैंइस 

तनाव का  

सँहारक 

जो

युवा शक्ति का कर रहा नाश 

जो  शक्ति कल बनने वाली

थी

व्यक्ति समाज और देश  का तारक


 धन्यवाद

अंजू गोलछा

बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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