मृत्यु
*मृत्यु~एक उत्सव*✍
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💀1⃣ इस अवसर्पिणी काल में सर्वप्रथम अकाल मृत्यु किस की हुई थी ?
☠🅰 सुनंदा जी के भाई।(युगलिक)
☠2⃣ मृत्यु के रुदन के निमित्त वैराग्य हुआ??
☠🅰 थावच्चा पुत्र।
💀3⃣ हिन्दू धर्म के अनुसार मृत्यु के देवता कौन है और उनका वाहन कौनसा है??
☠🅰 यमराज/भैंसा।
💀4⃣ भाई की मृत्यु के छह महीने बाद कौन संयम लेते हैं??
☠🅰 बलदेव जी।
💀5⃣ भाई के मृत्यु पश्चात् , मैं समाधान के लिए महाविदेह क्षेत्र गई ?
☠🅰 यक्षा जी।
💀6⃣ *क्या गर्भस्थ जीव मृत्यु पाकर नरक जा सकता है*??
☠🅰 *हां,जा सकता है। गर्भ में जीव अन्तमुहूर्त में सारी प्रर्याप्तिया पूर्ण कर लेता है।भाव से हिंसा करके,उसवक्त काल करके वह प्रथम नरक तक जा सकता है*।
💀7⃣ निगोद के जीव एक समय में कितने जन्म मरण करते है?
☠🅰 साढ़े सत्रह बार(१७.५)।।१८ बार जन्म और १७ बार मृत्यु।
💀8⃣ पिता के मृत्यु का समाचार सुनकर किसने संयम लिया??
☠🅰 स्थुलीभद्र जी।
💀9⃣ अपने पुत्रों के मृत्यु के समाचार सुनकर,किस पिता ने संयम ग्रहण किया??
☠🅰 सगर चक्रवर्तीजी।
💀1⃣0⃣ बेेटे की मृत्यु से किस माता ने दीक्षा ली ??
☠🅰 काली आदि 10 रानीयों ने।
💀1⃣1⃣ जन्म और मृत्यु के बीच का समय ?
☠🅰 जीवन।
💀1⃣2⃣ चक्रवर्ती का स्त्री रत्न मृत्यु प्राप्त कर कहां जाती है ??
☠🅰 छठी नरक में ।
💀1⃣3⃣ श्री कृष्ण की मृत्यु किसके हाथों हुई ??
☠🅰 जरा कुमार।
💀1⃣4⃣ मैं भोग सारा चिंतव्या,ते रोग सम चिंत्या नहीं, आगमन इच्छुयुं धनतणुं, _____________!!
☠🅰 पण मृत्यु ने प्रीछयुं नहीं।
💀1⃣5⃣ जन्म और मृत्यु
कराने वाला कर्म कौन सा है ?
☠🅰 आयुष्य कर्म।
💀1⃣6⃣ रेवतीजी की मृत्यु कौनसे रोग से हुई थी??
☠🅰 अलसक रोग।
💀1⃣7⃣ हम दोनों की मृत्यु अपने ही भाई के हाथों से हुई थी??
☠🅰 १)युगबाहूजी की मणीरथ के हाथों!
२)मरुभूतिजी की कमठ के हाथों मृत्यु हुई!
💀1⃣8⃣ "अरे मुग्धा...! तुमने यह क्या किया❓ वास्तव में तुमने यह बिना सोचे कार्य किया है। अब तुम्हें बत्तीस पुत्र होंगे एवं वे समान आयु वाले होंगे।एक का *मृत्यु* होने पर भी सभी एक साथ *मरण* के शरण हो जायेंगे!!!!"किसने किससे कहा??
☠🅰 हरिणगमेशी देव ने सुलसा श्राविका से कहा।
💀1⃣9⃣ मृत्यु के बाद भी Facebook_Whatsapp मेसेज पढ़ना हो तो क्या करना चाहिए??
☠🅰 नेत्रदान करना चाहिए😊☝
💀2⃣0⃣ चंडप्रद्योत राजा की मृत्यु कौन सी तिथि को हुई थी ?
☠🅰 कार्तिक वदी अमावस्या।
💀2⃣1⃣ " मैं कहां हूं ? देवलोक में या मृत्यु लोक में"? किसने कहां??
☠🅰 रोहणियो चोर।
💀2⃣2⃣ मृत्यु की शैय्या पर पड़े पति का, परलोक सुधारने वाली?
☠🅰 मदनरेखा जी।
💀2⃣3⃣ माणिक चंद शेठ मृत्यु प्राप्त कर कौन से अधिष्ठायक देव बने ?
☠🅰 मणिभद्र देव।।
💀2⃣4⃣ वीरजी का गर्भ परिवर्तन करने वाले हरिणगमेषी देव मृत्यु पाकर कौन हुए?
☠🅰 देवर्धिगणि क्षमाश्रवण।।
उत्तराध्ययन में मृत्यु के कितने प्रकार बताये है
A 2 1अकाम 2 सकाम ।
अष्टपाहुड के 5 भाव पाहुड मे मृत्यु के कितने प्रकार बताये है
A17 सत्रह
अज्ञानी व्यक्ति कोन सी मौत मरते है।
A अकाम मत्यु
ज्ञानी व्यक्ति कोन सी मौत मरते है।
A सकाम मृत्यु
केवलज्ञान के पश्चात मृत्यु को कहते है
A केवली मरण।
सम्यक ज्ञान दर्शन चरित्र सहितसमाधि पूर्ण मृत्यु को
A पंडित मरण।
स्वल्प काल के लिए सोकर उठने तक लिए
संथारे को कहते हैं।
A सागारी संथारा
अंत निश्चित देख कर धर्म रक्षा हेतु स्वेच्छा से शरीर
का त्याग करना
A संलेखना मृत्यु है (तप)
संलेखना कितने प्रकार की होती है।
A दो प्रकार की
💀2⃣5⃣ शत्रुंजय पर लाखो रुपये खर्च करके नूतन मन्दिर का निर्माण कराने वाले सेठ का क्या नाम था जिनका प्रतिष्ठा से पहले ही स्वर्गवास हो गया था ?
☠2⃣6⃣ मोतीसा सेठ।
💀2⃣7⃣ किसकी मृत्यु पश्चात, हल्ल-विहल्ल ने संयम ग्रहण किया??
☠🅰 सेचनक हाथी।
💀2⃣8⃣ सेचनक हाथी की मृत्यु कैसे हुईं??
☠🅰 जलती हुई खाई में गिरने से।
💀2⃣9⃣ नीलांजना की मृत्यु प्रसंग से किसे वैराग्य हुआ??
☠🅰 भगवान ऋषभदेव जी।
💀3⃣0⃣ कौनसे जैनाचार्य के पारणे में विष मिश्रित लड्डू खाने से मृत्यु (कालधर्म ) हुई ?
☠🅰 लवजी ॠषिजी।
💀3⃣1⃣ "लोगों के मुख सॆ तूने सुना है ना कि छह महीनों में मॆरी मृत्यु हो जायेगी ।"किसने किससे कहा??
☠🅰 महावीर स्वामी ने सिंह अणगारजी से कहा।
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🐚 राजेमतीजी , रथनेमीजी , प्रद्युम्नजी , कृष्णजी के 8 पटरानियां कहा से मोक्ष प्राप्त किया ?
A रेवतगिरी
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. *।। श्रीमहावीराय नमः।।*
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*🔸🔸श्री उत्तराध्ययन सूत्र🔸🔸*
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*अकाममरणीय*
*(पांचवांअध्ययन)*
अकालमरण किन-किन जीवों का हो सकता है ?
उत्तर -कर्मभूमि के मनुष्य और तिर्यंचों का विष भक्षण आदि निमित्तों से अकालमरण संभव है ।
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*🙏जीवन यात्रा के दो विश्राम है--*
★★★ *जन्म और मृत्यु* ★★★
*☝️जीवन जीना एक कला है तो मृत्यु भी उससे कम कला नहीं है।जो जीने की कला जानते हैं और मृत्यु की कला नहीं जानते, वे सदा के लिए अपने पीछे दूषित वातावरण छोड़ जाते हैं।व्यक्ति को कैसा मरण नहीं मरना चाहिए,इसका विवेक आवश्यक है। प्रस्तुत अध्ययन में मरण के दो प्रकार बतलाए गए हैं...*
*1. अकाममरण : - -* जो व्यक्ति विषय में आसक्त होने के कारण मरना नहीं चाहता किंतु आयु पूर्ण होने पर मरना पड़ता है, उसका मरण विवशता की स्थिति में होता है इसलिए उसे अकाममरण कहा जाता है।इसे बालमरण या अविरति का मरण भी कहा जा सकता है।
*2. सकाममरण : - -* जो व्यक्ति विषयों के प्रति अनासक्त होने के कारण मरण-काल में भयभीत नहीं होता किन्तु उसे जीवन की भांति उत्सव रूप मानता है, उस व्यक्ति के मरण को सकाममरण कहा जाता है।इसे पंडितमरण या विरति का मरण भु कहा जा सकता है।
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*अज्ञानियों का अकाममरण*
जो व्यक्ति कामभोगों में आसक्त होता है, उसकी गति मिथ्याभाषण की हो जाती है।वह कहता है--परलोक तो मैंने देखा नहीं, वर्तमान में प्राप्त आनंद तो आंखों के सामने है।वह समझने लगता है कि जो गति सबकी होगी वो ही गति मेरी भी हो जाएगी।और वह धृष्ट बन जाता है।वह काम-भोग के अनुराग से संक्लिष्ट परिणांम को प्राप्त करता है।वह प्रयोजनवश अथवा बिना प्रयोजन ही प्राणी-समूह की हिंसा करता है।
● हिंसा करने वाला,
●झूठ बोलने वाला,
●छल-कपट करने वाला,
●चुगली खाने वाला, वेश-परिवर्तन कर अपने आप को दूसरे रूप में प्रस्तुत करने वाला...
*👉 अज्ञानी मनुष्य शराब और मांस का भोग करता है और "यह श्रेय है" ऐसा मानता है।*
●वह शरीर और वाणी से मत्त होता है,
●धन और स्त्रियों से गृद्ध होता है,
●वह आचरण और चिंतन से उसी प्रकार कर्म-मल का संचय करता है जैसे शिशुनाग(अलसीया/केंचुआ) मुख और शरीर दोनों से मिट्टी का।
👉वह अपना आयुष्य क्षीण होने पर अपने कृत कर्मों का चिन्तन कर परलोक से भयभीत होता है।वहाँ जाता हुआ अनुताप करता है।
*☝️जैसे कोई गाड़ीवान समतल राजमार्ग को जानता हुआ भी उसे छोड़कर विषम मार्ग से चल पड़ता है और गाड़ी की धुरी टूट जाने पर शोक करता है...*
*🙏उसी प्रकार धर्म का उल्लंघन कर, अधर्म को स्वीकार कर, मृत्यु के मुख में पड़ा हुआ अज्ञानी धुरी टूटे हुए गाड़ीवान की तरह शोक करता है।*
*☝️फिर मरणांत के समय वह अज्ञानी परलोक के भय से संत्रस्त होते हुए अकाम-मरण से मरता है।*
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*पण्डितों का सकाममरण*
जैसा कि सुना है--पुण्यशाली, संयमी और जितेन्द्रिय व्यक्तियों का मरण प्रसन्न और आघातरहित होता है।सकाम मरण होता है।
*☝️यह सकाममरण न सब साधुओं को प्राप्त होता है और न सभी गृहस्थों को।क्योंकि गृहस्थ विविध प्रकार के शील वाले होते हैं और भीक्षु (साधु) भी विषम-शील वाले होते हैं।*
*🙏कुछ साधुओं से गृहस्थों का संयम प्रधान होता है किंतु साधूओं का संयम सब गृहस्थों से प्रधान होता है।*
"भिक्खाए वा गिहस्थे वा सुव्वए कम्मई दिवं"
*👉भीक्षु हो या गृहस्थ यदि वह सुव्रती है तो स्वर्ग ( देवलोक ) में जाता है।*
*🙏🙏 देव लोक 🙏🙏*
(सौधर्म देवलोक से अनुत्तरविमान तक)
*🙏देवताओं के आवास उत्तरोत्तर उत्तम, मोहरहित और देवों से आकीर्ण होते हैं उनमें रहने वाले देव यशस्वी---*
(दीर्घायु, ऋद्धिमान, दीप्तिमान, इच्छानुसार रूप धारण करने वाले, अभी उत्पन्न हुए हो ऐसी कान्ति वाले और सूर्य के समान अति-तेजस्वी) *होते हैं।*
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*👉👉 मरण का भय 👈👈*
सभी प्रकार के भयों में मरण का भय अत्यंत कष्टप्रद होता है समझें एक कथानक से...
( आज के परिप्रेक्ष्य में कोरोना)
*☝️महामारी घोड़े पर चढ़कर जा रही थी।*
*👉एक व्यक्ति सामने मिला।उसने पूछा कौन हो तुम ?*
*☝️मैं महामारी हूँ।*
*👉कहाँ जा रही हो ? क्यों जा रही हो ?*
*☝️मैं अमुक नगर में हजार व्यक्तियों को मारने जा रही हूँ।*
कुछ दिनों बाद वह महामारी उसी रास्ते से लौटी।संयोगवश वही व्यक्ति पुनः मिल जाता है पूछता है...
*👉देवी महामारी तुम तो गई थी हजार व्यक्तियों को मारने और वहाँ मरे हैं पांच हजार।तुमने झूठ क्यों कहा ?*
*☝️भैया ! मैंने झूठ नहीं कहा। मैंने तो हजार व्यक्तियों को ही मारा था।शेष चार हजार तो मेरे नाम के भय से,मोत के भय से मर गये।उसका मैं क्या करूं ?*
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इस अध्ययन में सोलहवें श्लोक में कहा गया है...
"तओ से मरणंतमि,वाले संतस्सई भया"
*इसका तात्पर्य है बाल--अज्ञानी व्यक्ति अपने जीवनकाल में धर्म को छोड़कर अधर्म से जीवन-यापन करता है।वह मरणकाल में परलोक-गमन....नरकगमन के भय से संत्रस्त हो जाता है।वह सोचता है मैंने नरक-प्रायोग्य कर्म किये हैं औल मुझे उनको भोगना है।*
इसी श्लोक में आगे कहा गया है...
"न संतसन्ति मरणन्ते"
*जिसका तात्पर्य है कि शीलवान् और संयमी मुनि मरणकाल में भी संत्रस्त नहीं होता।वह जानता है कि उहकी सुगति होगी,क्योंकि उसने धर्म के प्रशस्त मार्ग का अनुसरण किया है।वह संलेखना कर,अनशनपूर्वक मृत्यु का स्वेच्छा से वरण करता है।*
🙏
*मनुष्य जैसे जीने के लिए स्वतंत्र है वैसे ही मरने के लिए भी स्वतंत्र है।मरण भी वांछनीय है।उसकी शर्त यह है कि वह आवेशकृत न हो।जब यह स्पष्ट प्रतीत होने लगे कि योग क्षीण हो रहे हैं, उस समय समाधिपूर्वक मरण वांछनीय है। समाधिमरण तीन प्रकार का बताया गया है...*
*(1) भक्त-प्रत्याख्यान-मरण - -* यावज्जीवन के लिए त्रिविध या चतुर्विध आहार के त्यागपूर्ण मरण जो मरण होता है,उसे *भक्त-प्रत्याख्यान-मरण* कहा जाता है।
*(2) इंगिनी-मरण - -* प्रतिनियत स्थान पर अनशनपूर्वक मरण को *इंगिनी-मरण* कहा जाता है।अर्थात् जिस मरण में मुनि अपने अभिप्राय से अपनी शुश्रूषा करे,दूसरे मुनियों से सेवा न ले उसे इंगिनी-मरण कहा जाता है।
*☝️यह मरण चतूर्विध आहार का प्रत्याख्यान करनेवाले के ही होता है।*
*(3) पादोपगमन-मरण - -* अपनी परिचर्या न स्वयं करे और न दूसरों से कराए , ऐसे मरण को *पादोपगमन-मरण* कहते हैं।
( इस अनशनपूर्वक मरण में साधक अपने पांवों से संघ से निकल कर और योग्य प्रदेश में जाकर वृक्ष के निचे स्थिर अवस्था में चतूर्विध आहार के त्यागपूर्वक प्रत्याख्यान करता है)
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