भक्तामर प्रश्न
२. अर्हंत भगवान को अमल क्यों कहा ?
उत्तर—द्रव्यमल, भावमल आदि से रहित होने के कारण ‘अमल’ कहा है।
🍁 *प्रथम काव्य भत्ताबर प्रश्न उत्तर*🍁
प्रश्न १. भक्त किसे कहते हैं ?
उत्तर—पंचपरमेष्ठी के गुणों में अनुराग करने वाला भक्त कहलाता है।
प्रश्न २. ‘प्रणत मौलि’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए ?
उत्तर—झुके हुये / नम्रीभूत मुकुट।
प्रश्न ३. ‘पाप तम: वितानम्’ को स्पष्ट कीजिए ?
उत्तर—पाप रूपी अंधकार का विस्तार।
प्रश्न ४. ‘जिन पाद युगं’ को बताइये ?
उत्तर—जिनेन्द्र भगवान के द्वय चरण।
प्रश्न ५. ‘जिन’ का तात्पर्य क्या है ?
उत्तर—अरिहंत भगवान को ‘जिन’ भी कहते हैं।
प्रश्न ६. अरिहंत भगवान कैसे हैं ?
उत्तर—चार घतिया कर्मों को नष्ट करने वाले एवं देवों के द्वारा पूज्य हैं वे अरिहंत हैं।
प्रश्न ७. परमेष्ठी किसे कहते हैं ?
उत्तर—जो परम/श्रेष्ठ पद में स्थित हैं उन्हें परमेष्ठी कहते हैं।
प्रश्न ८. परमेष्ठी कितने हैं ?
उत्तर—५ हैं। प्रश्न ९. कौन—कौन से है ? कृपया नाम बताइये।
उत्तर—१ अरिहंत, २. सिद्ध, ३. आचार्य, ४. उपाध्याय, ५. सर्वसाधु।
प्रश्न १०. सिद्ध परमेष्ठी किसे कहते हैं ?
उत्तर—जिन्होंने आठों कर्मों को नष्ट कर अशरीरदशा को प्राप्त कर लिया है। वे सिद्धभगवान/ परमेष्ठी हैं।
प्रश्न ११. प्रथम काव्य में कौन से भगवान की स्तुति की गई है ?
उत्तर—आदिनाथ भगवान की।
प्रश्न १२. स्तुति किसके द्वारा की गई हैं ?
उत्तर—देवों द्वारा।
प्रश्न १३. देवों को क्या कहा है ?
उत्तर—अमर।
प्रश्न १४. भगवान आदीश्वर के चरणों को किसकी उपमा दी है ?
उत्तर—कमलों की।
प्रश्न १५. चरण कमल कैसे हैं ?
उत्तर—पापनाशक व संसार समुद्र में डूबते प्राणियों के लिये आलम्बन स्वरूप है।
प्रश्न १६. आचार्य मानतुंग स्वामी ने भक्तामर की रचना कब की ?
उत्तर—लगभग १३०० वर्ष पूर्व सातवीं शताब्दी में।
प्रश्न १७. प्रथम काव्य में भक्त किसको कहा है ?
उत्तर—देवों को।
प्रश्न १८. ‘सम्यक्’ शब्द का आशय बताइये ?
उत्तर—समीचीन/भलीप्रकार/मन—वचन—काय से।
🍁 *भक्तामर स्तोत्र के दूसरे काव्य प्रश्न उत्तर*🍁
प्रश्न १. द्वितीय काव्य का प्रारम्भ कैसे किया है?
उत्तर—मानतुंग स्वामी ने काव्य का प्रारम्भ संकल्पपूर्वक किया।
प्रश्न २. स्तुति किसके द्वारा की गई ?
उत्तर—देवलोक के इन्द्र द्वारा।
प्रश्न ३. कैसे स्तोत्र के द्वारा स्तुति की गई ?
उत्तर—तीनों लोकों के जीव के चित्तहरण करने वाले उत्कृष्ट/प्रशंसनीय/श्रेष्ठ स्तोत्र के द्वारा प्रभु की स्तुति की गई।
प्रश्न ४. ‘सकल वांग्मय’ का अर्थ बताइये ?
उत्तर—सम्पूर्ण/समस्त/पूर्ण द्वादशांग।
प्रश्न ५. द्वादशांग किसे कहते हैं ?
उत्तर—अरिहंत देव द्वारा अर्थ रूप से प्रतिपादित, गणधर द्वारा सूत्र ग्रंथ रूप से रचित बारह (१२) अंग वाले अंग प्रविष्ट श्रुत को द्वादशांग कहते हैं।
प्रश्न ६. अंग प्रविष्ट के १२ अंग बताइये ?ई
उत्तर— १. आचारांग|
२. सूत्रकृतांग|
३. स्थानांग|
४. समवायांग|
५. व्याख्या प्रज्ञप्ति|
६. ज्ञातृ धर्मकथांग|
७. उपासकाध्यानांग|
८. अन्तकृत दशांग|
९. अनुत्तरौपपादिक दशांग।
१०. प्रश्नव्याकरणांग।
११. विपाक सूत्रांग।
१२. दृष्टिवादांग।
प्रश्न ७. क्या द्वादशांग के कोई भेद भी हैं ?
उत्तर—हाँ ! दो (२) भेद हैं। (१) ग्यारह अंग, (२) चौदह पूर्व।
प्रश्न ८. द्वादशांग के सम्पूर्ण पद की संख्या बताइये ?
उत्तर—‘‘एक सौ बारह करोड़ तिरासी लाख अट्ठावन हजार पाँच’’ है।
प्रश्न ९. क्या इसे संख्या में भी बता सकते हैं ?
उत्तर—हाँ ! हाँ ! क्यों नहीं, ११२ करोड़ ८३ लाख ५८ हजार ५।
प्रश्न १०. ‘त्रितय—चित्त—हरै’’ का आशय बताइये ?
उत्तर—तीनों लोक के जीवों के चित्त / मन को हरने वाले। प्रश्न ११. ‘बुद्धि पटुभि:’ का अर्थ बताइये ?
उत्तर—बुद्धि की चतुरता से।
प्रश्न १२. मुनिमानतुंग स्वामी कैसे प्रभु को नमस्कार कर रहे हैं ?
उत्तर—जिनके वीतरागता, हितोपदेशिता एवं सर्वज्ञता ये तीन लक्षण है, ऐसे अरिहंत देव/सच्चे देव को नमस्कार किया है।
प्रश्न १३. सच्चे देव कोन हैं कैसे हैं ?
उत्तर—जो १८ दोषों से रहित वीतरागता आदि लक्षण युक्त हैं।
प्रश्न १४. १८ दोषों को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर—१. भूख,
२. प्यास,
३. बुढ़ापा,
४. रोग,
५. जन्म,
६. मरण,
७. भय,
८. गर्व,
९. राग,
१०. द्वेष,
११. मोह,
१२. आश्चर्य,
१३. आरत/अरति,
१४. खेद,
१५. शोक,
१६. निद्रा,
१७. िंचता,
१८. स्वेद।
प्रश्न १५. प्रथम एवं द्वितीय काव्य की उपासना किसके द्वारा की गई ?
उत्तर—श्रेष्ठी हेमदत्त के द्वारा।
प्रश्न १६. उपासना के फलस्वरूप कौन सी देवी उपस्थित हुयीं ?
उत्तर—विजया देवी।
प्रश्न १७. चौर्य (चोरी) कला में सिद्धहस्त कौन था।
उत्तर—सुदत्त चोर।
प्रश्न १८. प्रथम, द्वितीय काव्य का ऋद्धिमंत्र बता दीजिए ?
उत्तर—‘‘ऊँ ह्रीं अर्हं णमो, जिणाणं’’। ‘‘णमो ओहि जिणाणं।।
🍁 *काव्य नं.३भत्ताबर प्रश्न उत्तर*🍁
प्रश्न १. मानतुंगाचार्य ने स्वयं को कैसा बताया ?
उत्तर—बुद्धिहीन/अल्पज्ञ एवं लघु बताया।
प्रश्न २. ‘पादपीठ’ का अर्थ बताइये ?
उत्तर—पैरों के रखने का आसन।
प्रश्न ३. ‘विगतत्रप:’ का आशय क्या हैं ?
उत्तर—लज्जा को छोड़कर/लज्जा रहित होकर।
प्रश्न ४. आचार्य मानतुंग स्वामी ने कैसे भक्ति की है ?
उत्तर—मान/अभिमान/अहंकार/घमण्ड/गर्व को छोड़कर भक्ति की है।
प्रश्न ५. अहंकार छोड़कर भक्ति करने को क्यों कहा है ?
उत्तर—सच्ची भक्ति निरहंकारी होने पर ही होती है।
प्रश्न ६. भगवान के चरणों में कैसे जाना चाहिए ?
उत्तर—प्रभु चरणों में िंककर/दास/सेवक/अनुचर बनकर जाना चाहिए।
प्रश्न ७. विनय गुण किसका प्रतीक है ?
उत्तर—विनय गुण महानता का प्रतीक है।
प्रश्न ८. काव्य नं. ३ का ऋद्धि मंत्र बता दीजिए ?
उत्तर—‘‘ऊँ ह्रीं अर्हं णमो परमोहि—जिणाणं’’।
🍁 *काव्य नं.४ भत्ताबर प्रश्न उत्तर*🍁
प्रश्न १. गुण समुद्र की व्याख्या कीजिए ?
उत्तर—जैसे समुद्र अपार, असीम, अपरिमित होता है उसी प्रकार भगवान भी अपार, असीम, अपरिमित, अनन्त गुण के धारी हैं।
प्रश्न २. गुण से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर—ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदि आत्मा के अनंत गुणों से है।
प्रश्न ३. कल्पान्तकाल का अर्थ बताइये ?
उत्तर—प्रलयकाल, जो काल के अन्त में होता है।
प्रश्न ४. काल के भी कोई भेद हैं क्या ?
उत्तर—हाँ ! काल के २ भेद किये हैं। (१) उत्र्सिपणी, (२) अवर्सिपणी।
प्रश्न ५. उत्सर्पिणी काल किसे कहते हैं ?
उत्तर—जिस काल में मनुष्य /तिर्यंचादि की आयु, बल, अवगाहना एवं विभूति आदि बढ़ती जाती है वह उत्र्सिपणी काल है।
प्रश्न ६. अवर्सिपणी काल भी बता दीजिए ?
उत्तर—जिसमें आयु आदि घटती रहे वह अवर्सिपणी काल है।
प्रश्न ७. एक काल कितने समय तक रहता है ?
उत्तर—१० कोड़ाकोड़ी सागर तक।
प्रश्न ८. एक कोड़ा—कोड़ी का प्रमाण बता दीजिए ?
उत्तर—एक करोड़ में एक करोड़ का गुणा करने पर जो गुणनफल आये वो एक कोड़ाकोड़ी जानना चाहिए।
प्रश्न ९. कल्पकाल किसे कहते हैं ?
उत्तर—उत्र्सिपणी—अवर्सिपणी दोनों के मिलने/पूर्णता पर कल्पकाल होता है।
प्रश्न १०. कल्पकाल कितने समय वाला होता है ?
उत्तर—एक कल्पकाल २० कोड़ाकोड़ी सागर का होता है।
प्रश्न ११. दोनों कालों के कोई भेद हैं क्या ?
उत्तर—प्रत्येक के ६—६ भेद होते हैं, इसे षटकाल परिवर्तन कहते हैं।
प्रश्न १२. षटकाल के नाम बता दीजिए ?
उत्तर—अवर्सिपणी काल के नाम—(१) सुखमा—सुखमा, (२) सुखम, (३) सुखमा—दुखमा, (४) दुखमा—सुखमा, (५) दुखमा, (६) दुखमा—दुखमा।
प्रश्न १३. इन कालों की समय स्थिति क्या है ?
उत्तर—प्रथमादि क्रमश: काल स्थिति—४ कोड़ाकोड़ी सागर, ३ कोड़ाकोडी सागर, २ कोड़ाकोड़ी सागर। ४२ हजार वर्ष कम १ कोड़ाकोड़ी सागर। २१ हजार वर्ष, २१ हजार वर्ष।
प्रश्न १४. काव्य ३ एवं ४ की आराधना किसने कहां की ?
उत्तर—वणिक पुत्र सुदत्त ने जहाज में की।
प्रश्न १५. आराधना के प्रभाव से कौन सी देवी प्रगट हुई ?
उत्तर—प्रभावती देवी।
प्रश्न १६. इस काव्य का ऋद्धि मंत्र कौन सा है ?
उत्तर—ऊँ ह्री अर्हं णमो सव्वेहि जिणाणं’’।
🍁 *काव्य नं.५ भत्ताबर प्रश्न उत्तर*🍁
प्रश्न १. स्तवन किसे कहते है ?
उत्तर—भक्ति के साथ भगवान के गुणों का र्कीितन करना स्तवन कहलाता है।
प्रश्न २. ‘‘विगत शक्ति: अपि’’ का अर्थ लिखिए ?
उत्तर—शक्तिहीन होते हुए भी।
प्रश्न ३. ‘मृगेन्द्रम्’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर—िंसह / शेर।
प्रश्न ४. काव्य नं. ५ की आराधना किसने कहाँ की ?
उत्तर—सुभद्रावती नगरी के देवल ने की थी।
प्रश्न ५. आराधना से कौन सी देवी प्रकट हुई ?
उत्तर—अजिता नाम की देवी।
प्रश्न ६. ‘स्तवं कत्र्तुं’ का आशय लिखिए ?
उत्तर—स्तुति करने के लिए।
प्रश्न ७. काव्य नं. ५ का ऋद्धि मंत्र बताइये ?
उत्तर—‘‘ऊँ ह्री अर्हं णमो अणंतोहि—जिणाणं’’।।
प्रश्न ८. किसकी रक्षा के लिए किसने किसका सामना किया ?
उत्तर—निज शिशु की रक्षार्थ हिरणी ने शेर का सामना किया।
प्रश्न ९. वह हिरणी कैसी थी ?
उत्तर—सद्य प्रसूता थी।
🍁 *काव्य नं.६ भत्ताबर प्रश्न उत्तर*🍁
प्रश्न १. आचार्य मानतुंग स्वामी का अल्पश्रुत से क्या आशय था?
उत्तर—अल्पज्ञान या अल्पज्ञानी से अर्थात् श्रुत (ग्रंथों) का अल्प अभ्यायी हूँ यद्यपि उनके ज्ञान का पता तो उनकी बहु आयामी स्तोत्र रचना से ही होता है, फिर भी अपनी लघुता का दिग्दर्शन ऐसा कहकर कराया है। विद्वानों की यही लघुता उनकी विद्वता की सूचक है।
प्रश्न २. श्रुत किसे कहते हैं ?
उत्तर—भगवान जिनेन्द्र की वाणी को श्रुत कहते हैं अथवा जिनेन्द्रदेव की वाणी जिनशास्त्रों में निहित है, निबद्ध है उन शास्त्रों को श्रुत कहते हैं।
प्रश्न ३. ‘श्रूतवतां परिहास धाम’ का क्या आशय हैं ?
उत्तर—विद्वानों / मनीषियों के द्वारा हँसी का पात्र हूँ।
प्रश्न ४. कोयल कब कूकती / बोलती हैं?
उत्तर—बसन्त ऋतु में।
प्रश्न ५. कोयल के बोलने में क्या कारण है ?
उत्तर—आम मंजरी का समूह।
प्रश्न ६. ज्ञान के कितने भेद हैं ?
उत्तर—८ भेद हैं।
प्रश्न ७. कौन—कौन से हैं ?
उत्तर—(१) मतिज्ञान, (२) श्रुतज्ञान, (३) अवधिज्ञान, (४) मन:पर्यायज्ञान, (५) केवलज्ञान।
प्रश्न ८. क्या ये ही ज्ञान सम्यग्ज्ञान कहलाते हैं ?
उत्तर—हाँ ! सम्यग्दृष्टि के ज्ञान को सम्यग्ज्ञान कहते हैं।
प्रश्न ९. मिथ्याज्ञान किसे कहते हैं ?
उत्तर—मिथ्यादृष्टि के ज्ञान को मिथ्याज्ञान कहते हैं।
प्रश्न १०. मिथ्याज्ञान के भी कोई भेद हैं ?
उत्तर—उपर्युक्त पांच ज्ञान में से आदि के तीन ज्ञान मिथ्या भी होते हैं।
प्रश्न ११. तो कृपया उन मिथ्याज्ञान के नाम बता दीजिए ?
उत्तर—१. कुमतिज्ञान, २. कुश्रुतज्ञान, ३. कुअवधिज्ञान।
प्रश्न १२. इस काव्य से सम्बन्धित कथा के कथानायक कौन हैं ?
उत्तर—सम्राट हेमवाहन के पुत्र भूपाल कथानायक है।
प्रश्न १३. हेमवाहन कहाँ के सम्राट थे ?
उत्तर—काशी नगरी के।
प्रश्न १४. हेमवाहन के कितने पुत्र थे ?
उत्तर—दो पुत्र थे।
प्रश्न १५. उनके नाम भी बता दीजिये ?
उत्तर—(१) भूपाल, (२) भुजपाल।
प्रश्न १६. राजपुत्रों का अध्ययन किसके द्वारा हुआ था ?
उत्तर—श्रुतधर पंडित के द्वारा।
प्रश्न १७. युगल पुत्र कितने वर्ष में विद्या पारंगत हुये ?
उत्तर—छोटा पुत्र भूपाल १२ वर्षों में समस्त शास्त्रों में पारंगत हो गया।
प्रश्न १८. बडा पुत्र भूपाल क्या शास्त्र निष्णात नहीं हुआ ?
उत्तर—भूपाल जाति मंदबुद्धि था।
प्रश्न १९. भूपाल ने कुशाग्र बुद्धि के लिए क्या किया ?
उत्तर—छठवें काव्य का ऋद्धि मंत्र सहित जाप्य किया।
प्रश्न २०. मंत्र जाप कितने दिन तक किया ?
उत्तर—२१ दिन तक।
प्रश्न २१. छठवें काव्य का ऋद्धि मंत्र कौन सा है ?
उत्तर—ऊँ ह्रीं अर्हं णमो कोट्ठबुद्धीणं’’।
प्रश्न २२. मंत्र की आराधना से कौन सी देवी प्रगट हुई ?
उत्तर—ब्राह्मी नाम की देवी।
प्रश्न २३. मंत्राराधना से भूपाल विद्वान बन गया क्या ?
उत्तर—हाँ ! मंत्राराधना से धुरन्धर विद्वान बन गया।
🍁 *काव्य नं.७ भत्ताबर प्रश्न उत्तर*🍁
प्रश्न १. ‘भव सन्तति’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर—जन्म, जरा और मृत्यु की सनातन परम्परा से है।
प्रश्न २. पाप किसे कहते हैं ?
उत्तर—बुरे कार्यों को पाप कहते हैं।
प्रश्न ३. पाप कितने व कौन—कौन से होते हैं ?
उत्तर—पाप पाँच होते हैं ? (१) िंहसा, (२) झूठ, (३) चोरी, (४) कुशील, (५) परिग्रह इनके अलावा जितने प्रकार के परिणामों की संक्लेशता है वह सब पाप कहलाते हैं।
प्रश्न ४. ‘‘सूर्यांर्शुिभन्न’’ का आशय बताइये ?
उत्तर—सूर्य की किरणों से छिन्न—भिन्न।
प्रश्न ५. ‘‘अलिनीलम्’’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए ?
उत्तर—भ्रमर के समान काले।
प्रश्न ६. काव्य नं. ८ का ऋद्धि मंत्र बताइये ?
उत्तर—‘‘ऊँ ह्रीं अर्हं णमो बीज बुद्धीणं।’’
प्रश्न ७. इस मंत्र की आराधना किसने की ?
उत्तर—सम्यक्त्वी रति शेखर ने की।
प्रश्न ८. मंत्राराधना से कौन सी देवी प्रगट हुयी ?
उत्तर—जिनशासन अधिष्ठात्री जृम्भादेवी।
🍁 *काव्य नं.८ भत्ताबर प्रश्न उत्तर*🍁
प्रश्न १. आचार्य श्री मानतुंग स्वामी क्या मानकर भगवान जिनेन्द्र का स्तवन प्रारम्भ कर रहे हैं ?
उत्तर—प्राणियों के अनेक जन्मों में उर्पािजत किए हुये पाप कर्म श्री जिनेन्द्र देव के सम्यक स्तवन करने से क्षणभर में नष्ट हो जाते हैं। ऐसा मानकर प्रभु का स्तवन प्रारम्भ कर रहे हैं।
प्रश्न २. भक्तामर स्तोत्र कैसा है ?
उत्तर—सज्जनों के चित्त को हरण करने वाला है।
प्रश्न ३. सज्जन और दुर्जन में अन्तर बताइये ?
उत्तर—जो मोक्षमार्गी संतों की चरण वंदना करते हैं, उनके आचरण की कामना करते हैं तथा सत्य के उपासक होते हैं। ऐसे सदाचारी जीवों को सज्जन कहते हैं। जो मोक्षमार्गी संत चरणों से दूर उनकी िंनदा के उपासक होते हैं, सत्य से कोसों दूर होते हैं ऐसे दुराचारी जीवों को दुर्जन कहते हैं।
प्रश्न ४. जल िंबदु किस पर कैसी कांति को प्राप्त होती हैं ?
उत्तर—कमलिनी के पत्तों पर मोती की कांति को प्राप्त होती हैं।
प्रश्न ५. काव्य नं. ८ का ऋद्धि मंत्र बताइये ?
उत्तर—‘‘ऊँ ह्रीं अर्हं णमो पदाणु सारीणं।’’
प्रश्न ६. इस मंत्र की आराधना किसने और क्यों की ?
उत्तर—धनपाल वैश्य ने, निर्धन एवं नि:संतान होने के कारण की।
प्रश्न ७. किनके द्वारा आराधना करने का मार्ग बताया गया ?
उत्तर—चन्द्रर्कीित एवं महीर्कीित दिगम्बर मुनिराज के द्वारा।
प्रश्न ८. आराधना के फलस्वरूप कौन सी देवी प्रकट हुयीं ?
उत्तर—मंत्र की अधिष्ठात्री महिमा देवी प्रकट हुई।
प्रश्न ९. धनपाल ने धन की प्राप्ति होने पर क्या संकल्प लिया ?
उत्तर—जिनेन्द्र देव के जिनालय निर्माण कराने का संकल्प लिया।
🍁 *काव्य नं.९ भत्ताबर प्रश्न उत्तर*🍁
प्रश्न १. भगवान का नामोच्चारण क्या दूर करता है ?
उत्तर—समस्त दोषों को दूर करता है।
प्रश्न २. आचार्य मानतुंग भगवन् ने पवित्र कथा का वर्णन किस प्रकार किया है ?
उत्तर—आचार्य श्री कहा है–कि हे जिनेन्द्र ! आपका निर्दोष स्तोत्र तो दूर रहे, आपके गुणों की चर्चा मात्र से ही पापों का समूल नाश हो जाता है।
प्रश्न ३. सूर्य किरणें दूर रहने पर भी क्या करती हैं ?
उत्तर—सरोवरों में कमलों को विकसित करती हैं।
प्रश्न ४. सूर्य किरणें कितनी होती है ?
उत्तर—सूर्य में १२,००० किरणें होती हैं।
प्रश्न ५. कथा किसे कहते है ?
उत्तर—महापुरुषों के जीवन चरित्र के ऐसे कथानक जो मोक्षमार्ग को प्रशस्त करने वाले हैं तथा मोक्ष पुरुषार्थ में कारणभूत सातिशय पुण्य का संचय कराने वाले धर्म, अर्थ, काम, पुरुषार्थ का सम्यक् निरूपण करते हैं वे कथा संज्ञा को प्राप्त होते हैं।
प्रश्न ६. तो क्या पुण्य भी मोक्ष का कारण है ?
उत्तर—हाँ ! भगवान जिनेन्द्र के स्तवन, गुणगान से संचित निदान रहित पुण्य परम्परा से मुक्ति का कारण है।
प्रश्न ७. निदान किसे कहते हैं ?
उत्तर—धर्म /पुण्य/ स्तवन आदि करते—करते सांसारिक सुखों की इच्छा करना ही निदान बंध कहलाता है?
प्रश्न ८. काव्य नं. ९ की आराधना से किसको क्या फल मिला ?
उत्तर—सम्राट हेमब्रह्म एवं रानी हेमश्री को पुत्र की प्राप्ति हुई।
प्रश्न ९. हेमब्रह्म कहां के सम्राट थे ?
उत्तर—कामरूप देश की भद्रावती नगरी में।
प्रश्न १०. बिना श्रद्धा की भक्ति किस प्रकार की है ?
उत्तर—मुर्दे का शृंगार के समान, रेत से तेल निकालने के समान, पानी को मथकर मक्खन निकालने की इच्छा करने के समान है।
🍁 *काव्य नं.१० भत्ताबर प्रश्न उत्तर*🍁
प्रश्न १. आचार्य मानतुंग स्वामी ने काव्य नं १० में जिनेन्द्र प्रभु को किन विशिष्ट विशेषणों से संबोधित किया है ?
उत्तर—जिनेन्द्र भगवान के लिए भुवन भूषण और भूतनाथ विशेषणों से संबोधित किया है।
प्रश्न २. भुवन भूषण का अर्थ बताइये ?
उत्तर—भुवन यानि लोक, भूषण यानि अलंकार / शृंगार/ आभूषण अर्थात् लोक के अलंकार यही भुवन भूषण का अर्थ है।
प्रश्न ३. ‘भुवि’ का अर्थ बताइये ?
उत्तर—पृथ्वी।
प्रश्न ४. भूतनाथ का अर्थ बताइये ?
उत्तर—भूतयानि प्राणी, नाथ यानि स्वामी अर्थात् प्राणियों के स्वामी।
प्रश्न ५. काव्य नं १० का ऋद्धि मंत्र बताइये ?
उत्तर—ऊँ ह्रीं अर्हं णमो सयं बुद्धाणं।’’
प्रश्न ६. इस मंत्र की अधिष्ठात्री देवी का नाम बताइये ?
उत्तर—रोहिणी देवी।
प्रश्न ७. इस मंत्र की आराधना किसने ? कहाँ ? कितने दिन की ?
उत्तर—श्री दत्त वैश्य ने अंध कूप में तीन दिन तक की।
प्रश्न ८. अंधकूप में क्यों गिरा?
उत्तर—लोभ के कारण।
🍁 *प्रथम काव्य भत्ताबर प्रश्न उत्तर*🍁
प्रश्न १. भक्त किसे कहते हैं ?
उत्तर—पंचपरमेष्ठी के गुणों में अनुराग करने वाला भक्त कहलाता है।
प्रश्न २. ‘प्रणत मौलि’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए ?
उत्तर—झुके हुये / नम्रीभूत मुकुट।
प्रश्न ३. ‘पाप तम: वितानम्’ को स्पष्ट कीजिए ?
उत्तर—पाप रूपी अंधकार का विस्तार।
प्रश्न ४. ‘जिन पाद युगं’ को बताइये ?
उत्तर—जिनेन्द्र भगवान के द्वय चरण।
प्रश्न ५. ‘जिन’ का तात्पर्य क्या है ?
उत्तर—अरिहंत भगवान को ‘जिन’ भी कहते हैं।
प्रश्न ६. अरिहंत भगवान कैसे हैं ?
उत्तर—चार घतिया कर्मों को नष्ट करने वाले एवं देवों के द्वारा पूज्य हैं वे अरिहंत हैं।
प्रश्न ७. परमेष्ठी किसे कहते हैं ?
उत्तर—जो परम/श्रेष्ठ पद में स्थित हैं उन्हें परमेष्ठी कहते हैं।
प्रश्न ८. परमेष्ठी कितने हैं ?
उत्तर—५ हैं। प्रश्न ९. कौन—कौन से है ? कृपया नाम बताइये।
उत्तर—१ अरिहंत, २. सिद्ध, ३. आचार्य, ४. उपाध्याय, ५. सर्वसाधु।
प्रश्न १०. सिद्ध परमेष्ठी किसे कहते हैं ?
उत्तर—जिन्होंने आठों कर्मों को नष्ट कर अशरीरदशा को प्राप्त कर लिया है। वे सिद्धभगवान/ परमेष्ठी हैं।
प्रश्न ११. प्रथम काव्य में कौन से भगवान की स्तुति की गई है ?
उत्तर—आदिनाथ भगवान की।
प्रश्न १२. स्तुति किसके द्वारा की गई हैं ?
उत्तर—देवों द्वारा।
प्रश्न १३. देवों को क्या कहा है ?
उत्तर—अमर।
प्रश्न १४. भगवान आदीश्वर के चरणों को किसकी उपमा दी है ?
उत्तर—कमलों की।
प्रश्न १५. चरण कमल कैसे हैं ?
उत्तर—पापनाशक व संसार समुद्र में डूबते प्राणियों के लिये आलम्बन स्वरूप है।
प्रश्न १६. आचार्य मानतुंग स्वामी ने भक्तामर की रचना कब की ?
उत्तर—लगभग १३०० वर्ष पूर्व सातवीं शताब्दी में।
प्रश्न १७. प्रथम काव्य में भक्त किसको कहा है ?
उत्तर—देवों को।
प्रश्न १८. ‘सम्यक्’ शब्द का आशय बताइये ?
उत्तर—समीचीन/भलीप्रकार/मन—वचन—काय से।
🍁 *भक्तामर स्तोत्र के दूसरे काव्य प्रश्न उत्तर*🍁
प्रश्न १. द्वितीय काव्य का प्रारम्भ कैसे किया है?
उत्तर—मानतुंग स्वामी ने काव्य का प्रारम्भ संकल्पपूर्वक किया।
प्रश्न २. स्तुति किसके द्वारा की गई ?
उत्तर—देवलोक के इन्द्र द्वारा।
प्रश्न ३. कैसे स्तोत्र के द्वारा स्तुति की गई ?
उत्तर—तीनों लोकों के जीव के चित्तहरण करने वाले उत्कृष्ट/प्रशंसनीय/श्रेष्ठ स्तोत्र के द्वारा प्रभु की स्तुति की गई।
प्रश्न ४. ‘सकल वांग्मय’ का अर्थ बताइये ?
उत्तर—सम्पूर्ण/समस्त/पूर्ण द्वादशांग।
प्रश्न ५. द्वादशांग किसे कहते हैं ?
उत्तर—अरिहंत देव द्वारा अर्थ रूप से प्रतिपादित, गणधर द्वारा सूत्र ग्रंथ रूप से रचित बारह (१२) अंग वाले अंग प्रविष्ट श्रुत को द्वादशांग कहते हैं।
प्रश्न ६. अंग प्रविष्ट के १२ अंग बताइये ?
उत्तर— १. आचारांग|
२. सूत्रकृतांग|
३. स्थानांग|
४. समवायांग|
५. व्याख्या प्रज्ञप्ति|
६. ज्ञातृ धर्मकथांग|
७. उपासकाध्यानांग|
८. अन्तकृत दशांग|
९. अनुत्तरौपपादिक दशांग।
१०. प्रश्नव्याकरणांग।
११. विपाक सूत्रांग।
१२. दृष्टिवादांग।
प्रश्न ७. क्या द्वादशांग के कोई भेद भी हैं ?
उत्तर—हाँ ! दो (२) भेद हैं। (१) ग्यारह अंग, (२) चौदह पूर्व।
प्रश्न ८. द्वादशांग के सम्पूर्ण पद की संख्या बताइये ?
उत्तर—‘‘एक सौ बारह करोड़ तिरासी लाख अट्ठावन हजार पाँच’’ है।
प्रश्न ९. क्या इसे संख्या में भी बता सकते हैं ?
उत्तर—हाँ ! हाँ ! क्यों नहीं, ११२ करोड़ ८३ लाख ५८ हजार ५।
प्रश्न १०. ‘त्रितय—चित्त—हरै’’ का आशय बताइये ?
उत्तर—तीनों लोक के जीवों के चित्त / मन को हरने वाले। प्रश्न ११. ‘बुद्धि पटुभि:’ का अर्थ बताइये ?
उत्तर—बुद्धि की चतुरता से।
प्रश्न १२. मुनिमानतुंग स्वामी कैसे प्रभु को नमस्कार कर रहे हैं ?
उत्तर—जिनके वीतरागता, हितोपदेशिता एवं सर्वज्ञता ये तीन लक्षण है, ऐसे अरिहंत देव/सच्चे देव को नमस्कार किया है।
प्रश्न १३. सच्चे देव कोन हैं कैसे हैं ?
उत्तर—जो १८ दोषों से रहित वीतरागता आदि लक्षण युक्त हैं।
प्रश्न १४. १८ दोषों को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर—१. भूख,
२. प्यास,
३. बुढ़ापा,
४. रोग,
५. जन्म,
६. मरण,
७. भय,
८. गर्व,
९. राग,
१०. द्वेष,
११. मोह,
१२. आश्चर्य,
१३. आरत/अरति,
१४. खेद,
१५. शोक,
१६. निद्रा,
१७. िंचता,
१८. स्वेद।
प्रश्न १५. प्रथम एवं द्वितीय काव्य की उपासना किसके द्वारा की गई ?
उत्तर—श्रेष्ठी हेमदत्त के द्वारा।
प्रश्न १६. उपासना के फलस्वरूप कौन सी देवी उपस्थित हुयीं ?
उत्तर—विजया देवी।
प्रश्न १७. चौर्य (चोरी) कला में सिद्धहस्त कौन था।
उत्तर—सुदत्त चोर।
प्रश्न १८. प्रथम, द्वितीय काव्य का ऋद्धिमंत्र बता दीजिए ?
उत्तर—‘‘ऊँ ह्रीं अर्हं णमो, जिणाणं’’। ‘‘णमो ओहि जिणाणं।।
🍁 *काव्य नं.३भत्ताबर प्रश्न उत्तर*🍁
प्रश्न १. मानतुंगाचार्य ने स्वयं को कैसा बताया ?
उत्तर—बुद्धिहीन/अल्पज्ञ एवं लघु बताया।
प्रश्न २. ‘पादपीठ’ का अर्थ बताइये ?
उत्तर—पैरों के रखने का आसन।
प्रश्न ३. ‘विगतत्रप:’ का आशय क्या हैं ?
उत्तर—लज्जा को छोड़कर/लज्जा रहित होकर।
प्रश्न ४. आचार्य मानतुंग स्वामी ने कैसे भक्ति की है ?
उत्तर—मान/अभिमान/अहंकार/घमण्ड/गर्व को छोड़कर भक्ति की है।
प्रश्न ५. अहंकार छोड़कर भक्ति करने को क्यों कहा है ?
उत्तर—सच्ची भक्ति निरहंकारी होने पर ही होती है।
प्रश्न ६. भगवान के चरणों में कैसे जाना चाहिए ?
उत्तर—प्रभु चरणों में िंककर/दास/सेवक/अनुचर बनकर जाना चाहिए।
प्रश्न ७. विनय गुण किसका प्रतीक है ?
उत्तर—विनय गुण महानता का प्रतीक है।
प्रश्न ८. काव्य नं. ३ का ऋद्धि मंत्र बता दीजिए ?
उत्तर—‘‘ऊँ ह्रीं अर्हं णमो परमोहि—जिणाणं’’।
🍁 *काव्य नं.४ भत्ताबर प्रश्न उत्तर*🍁
प्रश्न १. गुण समुद्र की व्याख्या कीजिए ?
उत्तर—जैसे समुद्र अपार, असीम, अपरिमित होता है उसी प्रकार भगवान भी अपार, असीम, अपरिमित, अनन्त गुण के धारी हैं।
प्रश्न २. गुण से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर—ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदि आत्मा के अनंत गुणों से है।
प्रश्न ३. कल्पान्तकाल का अर्थ बताइये ?
उत्तर—प्रलयकाल, जो काल के अन्त में होता है।
प्रश्न ४. काल के भी कोई भेद हैं क्या ?
उत्तर—हाँ ! काल के २ भेद किये हैं। (१) उत्र्सिपणी, (२) अवर्सिपणी।
प्रश्न ५. उत्सर्पिणी काल किसे कहते हैं ?
उत्तर—जिस काल में मनुष्य /तिर्यंचादि की आयु, बल, अवगाहना एवं विभूति आदि बढ़ती जाती है वह उत्र्सिपणी काल है।
प्रश्न ६. अवर्सिपणी काल भी बता दीजिए ?
उत्तर—जिसमें आयु आदि घटती रहे वह अवर्सिपणी काल है।
प्रश्न ७. एक काल कितने समय तक रहता है ?
उत्तर—१० कोड़ाकोड़ी सागर तक।
प्रश्न ८. एक कोड़ा—कोड़ी का प्रमाण बता दीजिए ?
उत्तर—एक करोड़ में एक करोड़ का गुणा करने पर जो गुणनफल आये वो एक कोड़ाकोड़ी जानना चाहिए।
प्रश्न ९. कल्पकाल किसे कहते हैं ?
उत्तर—उत्र्सिपणी—अवर्सिपणी दोनों के मिलने/पूर्णता पर कल्पकाल होता है।
प्रश्न १०. कल्पकाल कितने समय वाला होता है ?
उत्तर—एक कल्पकाल २० कोड़ाकोड़ी सागर का होता है।
प्रश्न ११. दोनों कालों के कोई भेद हैं क्या ?
उत्तर—प्रत्येक के ६—६ भेद होते हैं, इसे षटकाल परिवर्तन कहते हैं।
प्रश्न १२. षटकाल के नाम बता दीजिए ?
उत्तर—अवर्सिपणी काल के नाम—(१) सुखमा—सुखमा, (२) सुखम, (३) सुखमा—दुखमा, (४) दुखमा—सुखमा, (५) दुखमा, (६) दुखमा—दुखमा।
प्रश्न १३. इन कालों की समय स्थिति क्या है ?
उत्तर—प्रथमादि क्रमश: काल स्थिति—४ कोड़ाकोड़ी सागर, ३ कोड़ाकोडी सागर, २ कोड़ाकोड़ी सागर। ४२ हजार वर्ष कम १ कोड़ाकोड़ी सागर। २१ हजार वर्ष, २१ हजार वर्ष।
प्रश्न १४. काव्य ३ एवं ४ की आराधना किसने कहां की ?
उत्तर—वणिक पुत्र सुदत्त ने जहाज में की।
प्रश्न १५. आराधना के प्रभाव से कौन सी देवी प्रगट हुई ?
उत्तर—प्रभावती देवी।
प्रश्न १६. इस काव्य का ऋद्धि मंत्र कौन सा है ?
उत्तर—ऊँ ह्री अर्हं णमो सव्वेहि जिणाणं’’।
🍁 *काव्य नं.५ भत्ताबर प्रश्न उत्तर*🍁
प्रश्न १. स्तवन किसे कहते है ?
उत्तर—भक्ति के साथ भगवान के गुणों का र्कीितन करना स्तवन कहलाता है।
प्रश्न २. ‘‘विगत शक्ति: अपि’’ का अर्थ लिखिए ?
उत्तर—शक्तिहीन होते हुए भी।
प्रश्न ३. ‘मृगेन्द्रम्’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर—िंसह / शेर।
प्रश्न ४. काव्य नं. ५ की आराधना किसने कहाँ की ?
उत्तर—सुभद्रावती नगरी के देवल ने की थी।
प्रश्न ५. आराधना से कौन सी देवी प्रकट हुई ?
उत्तर—अजिता नाम की देवी।
प्रश्न ६. ‘स्तवं कत्र्तुं’ का आशय लिखिए ?
उत्तर—स्तुति करने के लिए।
प्रश्न ७. काव्य नं. ५ का ऋद्धि मंत्र बताइये ?
उत्तर—‘‘ऊँ ह्री अर्हं णमो अणंतोहि—जिणाणं’’।।
प्रश्न ८. किसकी रक्षा के लिए किसने किसका सामना किया ?
उत्तर—निज शिशु की रक्षार्थ हिरणी ने शेर का सामना किया।
प्रश्न ९. वह हिरणी कैसी थी ?
उत्तर—सद्य प्रसूता थी।
🍁 *काव्य नं.६ भत्ताबर प्रश्न उत्तर*🍁
प्रश्न १. आचार्य मानतुंग स्वामी का अल्पश्रुत से क्या आशय था?
उत्तर—अल्पज्ञान या अल्पज्ञानी से अर्थात् श्रुत (ग्रंथों) का अल्प अभ्यायी हूँ यद्यपि उनके ज्ञान का पता तो उनकी बहु आयामी स्तोत्र रचना से ही होता है, फिर भी अपनी लघुता का दिग्दर्शन ऐसा कहकर कराया है। विद्वानों की यही लघुता उनकी विद्वता की सूचक है।
प्रश्न २. श्रुत किसे कहते हैं ?
उत्तर—भगवान जिनेन्द्र की वाणी को श्रुत कहते हैं अथवा जिनेन्द्रदेव की वाणी जिनशास्त्रों में निहित है, निबद्ध है उन शास्त्रों को श्रुत कहते हैं।
प्रश्न ३. ‘श्रूतवतां परिहास धाम’ का क्या आशय हैं ?
उत्तर—विद्वानों / मनीषियों के द्वारा हँसी का पात्र हूँ।
प्रश्न ४. कोयल कब कूकती / बोलती हैं?
उत्तर—बसन्त ऋतु में।
प्रश्न ५. कोयल के बोलने में क्या कारण है ?
उत्तर—आम मंजरी का समूह।
प्रश्न ६. ज्ञान के कितने भेद हैं ?
उत्तर—८ भेद हैं।
प्रश्न ७. कौन—कौन से हैं ?
उत्तर—(१) मतिज्ञान, (२) श्रुतज्ञान, (३) अवधिज्ञान, (४) मन:पर्यायज्ञान, (५) केवलज्ञान।
प्रश्न ८. क्या ये ही ज्ञान सम्यग्ज्ञान कहलाते हैं ?
उत्तर—हाँ ! सम्यग्दृष्टि के ज्ञान को सम्यग्ज्ञान कहते हैं।
प्रश्न ९. मिथ्याज्ञान किसे कहते हैं ?
उत्तर—मिथ्यादृष्टि के ज्ञान को मिथ्याज्ञान कहते हैं।
प्रश्न १०. मिथ्याज्ञान के भी कोई भेद हैं ?
उत्तर—उपर्युक्त पांच ज्ञान में से आदि के तीन ज्ञान मिथ्या भी होते हैं।
प्रश्न ११. तो कृपया उन मिथ्याज्ञान के नाम बता दीजिए ?
उत्तर—१. कुमतिज्ञान, २. कुश्रुतज्ञान, ३. कुअवधिज्ञान।
प्रश्न १२. इस काव्य से सम्बन्धित कथा के कथानायक कौन हैं ?
उत्तर—सम्राट हेमवाहन के पुत्र भूपाल कथानायक है।
प्रश्न १३. हेमवाहन कहाँ के सम्राट थे ?
उत्तर—काशी नगरी के।
प्रश्न १४. हेमवाहन के कितने पुत्र थे ?
उत्तर—दो पुत्र थे।
प्रश्न १५. उनके नाम भी बता दीजिये ?
उत्तर—(१) भूपाल, (२) भुजपाल।
प्रश्न १६. राजपुत्रों का अध्ययन किसके द्वारा हुआ था ?
उत्तर—श्रुतधर पंडित के द्वारा।
प्रश्न १७. युगल पुत्र कितने वर्ष में विद्या पारंगत हुये ?
उत्तर—छोटा पुत्र भूपाल १२ वर्षों में समस्त शास्त्रों में पारंगत हो गया।
प्रश्न १८. बडा पुत्र भूपाल क्या शास्त्र निष्णात नहीं हुआ ?
उत्तर—भूपाल जाति मंदबुद्धि था।
प्रश्न १९. भूपाल ने कुशाग्र बुद्धि के लिए क्या किया ?
उत्तर—छठवें काव्य का ऋद्धि मंत्र सहित जाप्य किया।
प्रश्न २०. मंत्र जाप कितने दिन तक किया ?
उत्तर—२१ दिन तक।
प्रश्न २१. छठवें काव्य का ऋद्धि मंत्र कौन सा है ?
उत्तर—ऊँ ह्रीं अर्हं णमो कोट्ठबुद्धीणं’’।
प्रश्न २२. मंत्र की आराधना से कौन सी देवी प्रगट हुई ?
उत्तर—ब्राह्मी नाम की देवी।
प्रश्न २३. मंत्राराधना से भूपाल विद्वान बन गया क्या ?
उत्तर—हाँ ! मंत्राराधना से धुरन्धर विद्वान बन गया।
🍁 *काव्य नं.७ भत्ताबर प्रश्न उत्तर*🍁
प्रश्न १. ‘भव सन्तति’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर—जन्म, जरा और मृत्यु की सनातन परम्परा से है।
प्रश्न २. पाप किसे कहते हैं ?
उत्तर—बुरे कार्यों को पाप कहते हैं।
प्रश्न ३. पाप कितने व कौन—कौन से होते हैं ?
उत्तर—पाप पाँच होते हैं ? (१) िंहसा, (२) झूठ, (३) चोरी, (४) कुशील, (५) परिग्रह इनके अलावा जितने प्रकार के परिणामों की संक्लेशता है वह सब पाप कहलाते हैं।
प्रश्न ४. ‘‘सूर्यांर्शुिभन्न’’ का आशय बताइये ?
उत्तर—सूर्य की किरणों से छिन्न—भिन्न।
प्रश्न ५. ‘‘अलिनीलम्’’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए ?
उत्तर—भ्रमर के समान काले।
प्रश्न ६. काव्य नं. ८ का ऋद्धि मंत्र बताइये ?
उत्तर—‘‘ऊँ ह्रीं अर्हं णमो बीज बुद्धीणं।’’
प्रश्न ७. इस मंत्र की आराधना किसने की ?
उत्तर—सम्यक्त्वी रति शेखर ने की।
प्रश्न ८. मंत्राराधना से कौन सी देवी प्रगट हुयी ?
उत्तर—जिनशासन अधिष्ठात्री जृम्भादेवी।
🍁 *काव्य नं.८ भत्ताबर प्रश्न उत्तर*🍁
प्रश्न १. आचार्य श्री मानतुंग स्वामी क्या मानकर भगवान जिनेन्द्र का स्तवन प्रारम्भ कर रहे हैं ?
उत्तर—प्राणियों के अनेक जन्मों में उर्पािजत किए हुये पाप कर्म श्री जिनेन्द्र देव के सम्यक स्तवन करने से क्षणभर में नष्ट हो जाते हैं। ऐसा मानकर प्रभु का स्तवन प्रारम्भ कर रहे हैं।
प्रश्न २. भक्तामर स्तोत्र कैसा है ?
उत्तर—सज्जनों के चित्त को हरण करने वाला है।
प्रश्न ३. सज्जन और दुर्जन में अन्तर बताइये ?
उत्तर—जो मोक्षमार्गी संतों की चरण वंदना करते हैं, उनके आचरण की कामना करते हैं तथा सत्य के उपासक होते हैं। ऐसे सदाचारी जीवों को सज्जन कहते हैं। जो मोक्षमार्गी संत चरणों से दूर उनकी िंनदा के उपासक होते हैं, सत्य से कोसों दूर होते हैं ऐसे दुराचारी जीवों को दुर्जन कहते हैं।
प्रश्न ४. जल िंबदु किस पर कैसी कांति को प्राप्त होती हैं ?
उत्तर—कमलिनी के पत्तों पर मोती की कांति को प्राप्त होती हैं।
प्रश्न ५. काव्य नं. ८ का ऋद्धि मंत्र बताइये ?
उत्तर—‘‘ऊँ ह्रीं अर्हं णमो पदाणु सारीणं।’’
प्रश्न ६. इस मंत्र की आराधना किसने और क्यों की ?
उत्तर—धनपाल वैश्य ने, निर्धन एवं नि:संतान होने के कारण की।
प्रश्न ७. किनके द्वारा आराधना करने का मार्ग बताया गया ?
उत्तर—चन्द्रर्कीित एवं महीर्कीित दिगम्बर मुनिराज के द्वारा।
प्रश्न ८. आराधना के फलस्वरूप कौन सी देवी प्रकट हुयीं ?
उत्तर—मंत्र की अधिष्ठात्री महिमा देवी प्रकट हुई।
प्रश्न ९. धनपाल ने धन की प्राप्ति होने पर क्या संकल्प लिया ?
उत्तर—जिनेन्द्र देव के जिनालय निर्माण कराने का संकल्प लिया।
🍁 *काव्य नं.९ भत्ताबर प्रश्न उत्तर*🍁
प्रश्न १. भगवान का नामोच्चारण क्या दूर करता है ?
उत्तर—समस्त दोषों को दूर करता है।
प्रश्न २. आचार्य मानतुंग भगवन् ने पवित्र कथा का वर्णन किस प्रकार किया है ?
उत्तर—आचार्य श्री कहा है–कि हे जिनेन्द्र ! आपका निर्दोष स्तोत्र तो दूर रहे, आपके गुणों की चर्चा मात्र से ही पापों का समूल नाश हो जाता है।
प्रश्न ३. सूर्य किरणें दूर रहने पर भी क्या करती हैं ?
उत्तर—सरोवरों में कमलों को विकसित करती हैं।
प्रश्न ४. सूर्य किरणें कितनी होती है ?
उत्तर—सूर्य में १२,००० किरणें होती हैं।
प्रश्न ५. कथा किसे कहते है ?
उत्तर—महापुरुषों के जीवन चरित्र के ऐसे कथानक जो मोक्षमार्ग को प्रशस्त करने वाले हैं तथा मोक्ष पुरुषार्थ में कारणभूत सातिशय पुण्य का संचय कराने वाले धर्म, अर्थ, काम, पुरुषार्थ का सम्यक् निरूपण करते हैं वे कथा संज्ञा को प्राप्त होते हैं।
प्रश्न ६. तो क्या पुण्य भी मोक्ष का कारण है ?
उत्तर—हाँ ! भगवान जिनेन्द्र के स्तवन, गुणगान से संचित निदान रहित पुण्य परम्परा से मुक्ति का कारण है।
प्रश्न ७. निदान किसे कहते हैं ?
उत्तर—धर्म /पुण्य/ स्तवन आदि करते—करते सांसारिक सुखों की इच्छा करना ही निदान बंध कहलाता है?
प्रश्न ८. काव्य नं. ९ की आराधना से किसको क्या फल मिला ?
उत्तर—सम्राट हेमब्रह्म एवं रानी हेमश्री को पुत्र की प्राप्ति हुई।
प्रश्न ९. हेमब्रह्म कहां के सम्राट थे ?
उत्तर—कामरूप देश की भद्रावती नगरी में।
प्रश्न १०. बिना श्रद्धा की भक्ति किस प्रकार की है ?
उत्तर—मुर्दे का शृंगार के समान, रेत से तेल निकालने के समान, पानी को मथकर मक्खन निकालने की इच्छा करने के समान है।
🍁 *काव्य नं.१० भत्ताबर प्रश्न उत्तर*🍁
प्रश्न १. आचार्य मानतुंग स्वामी ने काव्य नं १० में जिनेन्द्र प्रभु को किन विशिष्ट विशेषणों से संबोधित किया है ?
उत्तर—जिनेन्द्र भगवान के लिए भुवन भूषण और भूतनाथ विशेषणों से संबोधित किया है।
प्रश्न २. भुवन भूषण का अर्थ बताइये ?
उत्तर—भुवन यानि लोक, भूषण यानि अलंकार / शृंगार/ आभूषण अर्थात् लोक के अलंकार यही भुवन भूषण का अर्थ है।
प्रश्न ३. ‘भुवि’ का अर्थ बताइये ?
उत्तर—पृथ्वी।
प्रश्न ४. भूतनाथ का अर्थ बताइये ?
उत्तर—भूतयानि प्राणी, नाथ यानि स्वामी अर्थात् प्राणियों के स्वामी।
प्रश्न ५. काव्य नं १० का ऋद्धि मंत्र बताइये ?
उत्तर—ऊँ ह्रीं अर्हं णमो सयं बुद्धाणं।’’
प्रश्न ६. इस मंत्र की अधिष्ठात्री देवी का नाम बताइये ?
उत्तर—रोहिणी देवी।
प्रश्न ७. इस मंत्र की आराधना किसने ? कहाँ ? कितने दिन की ?
उत्तर—श्री दत्त वैश्य ने अंध कूप में तीन दिन तक की।
प्रश्न ८. अंधकूप में क्यों गिरा?
उत्तर—लोभ के कारण
प्रश्न १. भक्तामर स्तोत्र का दूसरा नाम बताइये ?
उत्तर—आदिनाथ स्तोत्र है।
प्रश्न २. राजा भोज की सभा में कौन, किसके साथ गये ?
उत्तर—नगर सेठ अपने पुत्र के साथ गये।
प्रश्न ३. सेठ के पुत्र ने कौन से ग्रंथ के श्लोक सुनाये ?
उत्तर—नाममाला ग्रंथ के।
प्रश्न ४. इस नाममाल ग्रंथ के रचियता कौन थे ?
उत्तर—कवि धनंजय।
प्रश्न ५. राजा भोज के मंत्री का नाम क्या था ?
उत्तर—कवि कालिदास।
प्रश्न ६. कालिदास का धनंजय कवि एवं जैनधर्म के प्रति कैसा श्रद्धान था ?
उत्तर—धनंजय के प्रति विशेष द्वेष एवं जैनधर्म से प्राकृतिक/स्वभाव से द्वेष था।
प्रश्न ७. राजदरबार में कवि धनंजय को कहाँ स्थान दिया ?
उत्तर—राजा भोज के निकट।
प्रश्न ८. राजा भोज ने नाममाला ग्रंथ के बारे में कवि धनजंय से क्या कहा ?
उत्तर—ये छोटा ग्रंथ आपको शोभा नहीं देता, कोई बड़ा ग्रंथ लिखिये।
प्रश्न ९. कालिदास ने क्या कहा ? एवं उनको कैसा लगा ?
उत्तर—कवि धनंजय की प्रशंसा से ईर्ष्याग्नि धधकने लगी, खिसयाकर झूठ बोला कि ये पुस्तक ब्राह्मण विद्वान के द्वारा लिखी गयी है।
प्रश्न १०. ग्रंथ / पुस्तक का दूसरा नाम क्या बताया ?
उत्तर—नाममंजरी।
प्रश्न ११. कालिदास ने किससे शास्त्रार्थ करने को कहा ?
उत्तर—आचार्य मानतुंग स्वामी से।
प्रश्न १२. कवि धनंजय ने फिर क्या कहा ?
उत्तर—गुरूदेव मानतुंग के विषय में अनादर के वचन सहन नहीं हुये, अत्यन्त आवेश में बोले ऐसा कौन सा विद्वान है इस सभा में जो स्वामी मानतुंग के चरणों से विवाद कर सके। पहले मुझसे शास्त्रार्थ कर लो, पीछे गुरुवर का नाम लेना।
प्रश्न १३. शास्त्रार्थ में कौन जीता ?
उत्तर—धनंजय कवि जीते।
प्रश्न १४. तो क्या कालिदास ने हार स्वीकार कर ली ?
उत्तर—नहीं—नहीं जब हारने लगे तो कहने लगे मैं शास्त्रार्थ इससे नहीं, इसके गुरू से करूंगा।
प्रश्न १५. राजा भोज ने क्या मुनिराज को बुलवाया या स्वयं उनके पास गये ?
उत्तर—नहीं, वो उनके पास खुद नहीं गये वरन् उन्हें दरबार में बुलाने हेतु अपने दूत भेजे।
प्रश्न १६. क्या मुनिराज राजसभा में आ गये ?
उत्तर—नहीं, मुनियों को राजदरबार से क्या प्रयोजन, मैं वहां नहीं जाऊंगा, ये कह दिया।
प्रश्न १७. राजा के अनुचार मुनिराज के पास कितनी कर गये ?
उत्तर—तीन बार।
प्रश्न १८. फिर उनको दरबार में कैसे लाया गया ?
उत्तर—राजाज्ञा से सेवक घसीटते हुए ले गये।
प्रश्न १९. मुनिवर ने कोई विरोध नहीं किया ?
उत्तर—अरे भाई ! दिगम्बर संत इसको उपसर्ग समझ मौन धारण कर लेते हैं।
प्रश्न २०. राजदरबार में मुनिराज को देखकर कालिदास ने क्या कहा ?
उत्तर—मुनिराज के मौन को देखकर कालिदास व अन्य ब्राह्मणों ने कहा—यह महामूर्ख है, राजसभा को देखकर भयभीत हो रहा है।
प्रश्न २१. राजा ने क्या आदेश दिया ?
उत्तर—हाथ—पैर में हथकड़ी—बेड़ियां डालकर कारागृह में ४८ कोठरियों के भीतर ४८ तालों में डालने का आदेश दिया।
प्रश्न २२. मुनिश्री ने इस बंधन को कैसे स्वीकार किया ?
उत्तर—समता एवं मौनपूर्वक स्वीकार किया।
प्रश्न २३. उस कारगृह में मुनिश्री ने क्या किया ?
उत्तर—आदि ब्राह्म भगवान ऋषभदेव की भक्ति में डूब गये।
प्रश्न २४. ऋषभदेव की भक्ति किस माध्यम से की ?
उत्तर—४८ काव्यों वाले भक्तामर स्तोत्र से की।
प्रश्न २५. इस स्तोत्र के रचयिता कौन हैं ?
उत्तर—आचार्य मानतुंग स्वामी।
प्रश्न २६. कहाँ पर रचना की ?
उत्तर—उसी जेल के अन्दर।
प्रश्न २७. फिर राजा ने उन्हें जेल से बाहर कब निकाला।
उत्तर—जिन भक्ति के प्रभाव से स्वयं (अपने आप) बाहर आ गये।
प्रश्न २८. अपने आप ताले कैसे खुल गये ?
उत्तर—४८ काव्यों की रचना के दौरान अपने आप ताले टूटते गये।
प्रश्न २९. कालिदास ने कौन सा स्तोत्र पढ़ा ?
उत्तर—कालिका स्तोत्र।
प्रश्न ३०. कालिका स्तोत्र पढ़ने से क्या हुआ ?
उत्तर—कालिका देवी प्रगट हुई।
प्रश्न ३१. कालिका देवी ने क्या किया ?
उत्तर—मानतुंगाचार्य पर उपसर्ग करने की ठानी।
प्रश्न ३२. उपसर्ग कब किया ?
उत्तर—उपसर्ग नहीं किया वरन् सोचा ही था।
प्रश्न ३३. उपसर्ग क्यों नहीं किया ?
उत्तर—क्योंकि जिनशासन की चव्रेश्वरी देवी प्रगट हो गयी थी।
प्रश्न ३४. चव्रेश्वरी देवी ने क्या किया था ?
उत्तर—कालिका देवी को फटकारा।
प्रश्न ३५. कालिका देवी ने क्या किया ?
उत्तर—देवी एवं मुनिराज से क्षमायाचना की और अदृश्य हो गई।
प्रश्न ३६. क्या ये सब राजा एवं मंत्री ने देखा या नहीं ?
उत्तर—हाँ ! राजा भोज एवं मंत्री कालिदास वहीं उपस्थित थे।
प्रश्न ३७. फिर उन्होंने क्या कहा ?
उत्तर—दोनों ने क्षमा याचना की और श्रावक के व्रत अंगीकार किये।
प्रश्न ३८. क्षमा याचना किससे की ?
उत्तर—मुनि मानतुंग स्वामी से।
प्रश्न ३९. काव्य में कुल कितनी पंक्ति एवं प्रत्येक पंक्ति में कितने अक्षर है ?
उत्तर—४ पंक्ति, प्रत्येक पंक्ति में १४ अक्षर है।
प्रश्न ४०. एक काव्य में कितने अक्षर है ?
उत्तर—५६ अक्षर।
प्रश्न ४१. क्या ४८ काव्यों में अक्षर की संख्या बता सकते हो ?
उत्तर—२६८८ अक्षर।
प्रश्न ४२. प्रत्येक काव्य पंक्ति में १४ अक्षर कैसे हैं ?
उत्तर—७ गुरू और ७ लघु है।
100 इन्द्र -- देवों में -- भवनवासियों के 40 इन्द्र
व्यन्तरवासियों के 32 इन्द्र
कल्पवासियों के 24 इन्द्र
ज्यौतिषियों के 2 इन्द्र (सूर्य और चंद्र)
मनुष्यों का एक 1 चक्रवर्ती
तिर्यंचों का 1 अष्टापद
= 100
प्रश्न - 10युग्म किसे कहते हैं?
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