कषाय

कषाय

https://www.facebook.com/groups/

🩸1️⃣ कषायकितने हैं?
1️⃣🅰️🩸१६
🩸2️⃣ नोकशाय कितने हैं ?
🩸🅰️2️⃣9
🩸3️⃣कषाय याने क़्या ?
🩸🅰️3️⃣संसार भ्रमण की वृद्धि
🩸4️⃣आत्मा के समयक्तव कोघात करने वाला क़ौन ?
🩸🅰️4️⃣क्रोध
🩸5️⃣क़ौन सा क्रोध आत्मा पर घात करता हैं ?
🩸🅰️5️⃣अनंतानुबंधी क्रोध
🩸6️⃣अनंतानुबंधी क्रोध की अवधि कितनी ?
🩸🅰️6️⃣जीवन पर्यंत ओर जन्म जन्मांतर
🩸7️⃣क़्रोधकौन सी गति का करम बांधती है
🩸🅰️7️⃣नरक गति 
🩸8️⃣आत्मा के देश विरति चरित्रगुण  का घात  क़ौन  सेक्रोध से होता हैं ?
🩸🅰️8️⃣अप्रत्याख्यानिय क्रोध
🩸9️⃣इस क्रोध के उदय से क्या प्राप्त नही होता ?
🩸🅰️9️⃣श्रावक धर्म की प्राप्ति नही होती
🩸1️⃣0️⃣इस क्रोध की अवधि कितनी ?
🩸🅰️1️⃣0️⃣एक वर्ष 
🩸1️⃣1️⃣इस क्रोध से कौन सी गति का बैंध होता हैं ?
🩸🅰️1️⃣1️⃣तिर्यंच गति
🩸1️⃣2️⃣इस क्रोध को क़ौन  सी उपमा दीगई ?
🩸🅰️1️⃣2️⃣सूखे तालाब में पड़ी दरार 
🩸1️⃣3️⃣प्रत्याख्यानिया क्रोध आत्मा के किस गुण को रोकता है ?
🩸🅰️1️⃣3️⃣सर्व विरति चरित्र
🩸1️⃣4️⃣इस क्रोध की काल अवधि कितनी ?
🩸🅰️1️⃣4️⃣चार मास
🩸1️⃣5️⃣इस क्रोध से क़ौन सी गति का बंध?
🩸🅰️1️⃣6️⃣मनुष्य गति
🩸1️⃣6️⃣इस क्रोध को किसकी उपमा सी गई ?
🩸🅰️1️⃣6️⃣धूल की लकीर 
🩸1️⃣7️⃣संज्वलन क्रोध से आत्मा को किसकी प्राप्ति नही होती ?
🩸🅰️1️⃣7️⃣यथाख्यात चरित्र 
🩸1️⃣8️⃣सज्वलन के अस्तित्व से आत्मा को किसकी प्राप्ति नही होती ?
🩸🅰️1️⃣8️⃣सर्व विरति चरित्र
🩸1️⃣9️⃣यह क्रोध किस में बाधा पहुँचाता है ?
🩸🅰️1️⃣9️⃣यथाख्यात चरित्र
🩸2️⃣0️⃣इस क्रोध से किस गति की प्राप्ति ?
🩸🅰️2️⃣0️⃣देव गति
🩸2️⃣1️⃣इस क्रोध को किसकी उपमा दो गईं ?
🩸🅰️2️⃣1️⃣जल में खींची गई लकीर 
🩸2️⃣2️⃣अनंतानुबंधी मान को किसकी तरह बताया गया ?
🩸🅰️2️⃣2️⃣पत्थर का स्तम्भ 
🩸2️⃣3️⃣अनंतानु बंधी माया को किसकी तरह बताया ?
🩸🅰️2️⃣3️⃣बांस की जड़ की तरह वक्रता
🩸2️⃣4️⃣अनंतानु बंधी लोभ का रंग कौनसा ?
🩸🅰️2️⃣4️⃣किरम ची रंग 
🩸2️⃣5️⃣अप्रत्याख्यानो मान माया लोभ की काल अवधि ?
🩸🅰️2️⃣5️⃣एक वर्ष 
 🩸2️⃣6️⃣यहकौन से चरित्र में रुकावट लाता है
🩸🅰️2️⃣6️⃣देश विरति
🩸2️⃣7️⃣अप्रत्याखनिया मान को किसकी उपमा दो गई ?
🩸🅰️2️⃣7️⃣हड्डी 
🩸2️⃣8️⃣अप्रथयाख्यानिय माया को किसकी उपमा   दीगई ?
🩸🅰️2️⃣8️⃣भेड के सिग़ो की वक्रता
🩸2️⃣9️⃣संज्वलन माया का रंग कैसा ?
🩸🅰️2️⃣9️⃣हल्दी
🩸3️⃣0️⃣प्रत्याख्यानिय लोभ का रंग कौनसा ?
काजल










  • जो आत्मा को संसार में परिभ्रमण कराती है, वह कषाय कहलाती है, ऐसी कषाय कितनी होती हैं, उनका स्वरूय क्या है, उनका फल क्या है आदि का वर्णन इस अध्याय में है।

    1. कषाय किसे कहते हैं ? 
    1. जो आत्मा के चारित्र गुण का घात करे, उसे कषाय कहते हैं। 
    2. कषाय शब्द दो शब्दों के मेल से बना है। ‘कष+आय'। कष का अर्थ संसार है क्योंकि इसमें प्राणी अनेक दु:खों के द्वारा कष्ट पाते हैं और आय का अर्थ है ‘लाभ'। इस प्रकार कषाय का अर्थ हुआ कि जिसके द्वारा संसार की प्राप्ति हो, वह कषाय है। 
    3. आत्मा के भीतरी कलुष परिणामों को कषाय कहते उहैं, इनके द्वारा जीव चारों गतियों में परिभ्रमण करता हुआ दु:ख प्राप्त करता है। कषाय चुम्बक के समान है, जिसके द्वारा कर्म चिपक जाते हैं। 

    2. कौन-सी गति में जीव के उत्पन्न होते समय कषाय कौन सी रहती है ? 
    नरकगति में उत्पन्न जीवों के प्रथम समय में क्रोध का उदय, मनुष्यगति में मान का उदय, तिर्यञ्चगति में माया का उदय और देवगति में लोभ का उदय नियम से रहता है (आ. श्री यतिवृषभ के अनुसार) तथा इन गतियों में इन्हीं कषायों की बहुलता रहती है, किन्तु स्त्रियों में माया कषाय की बहुलता रहती है।

    3. कषाय कितने प्रकार की होती हैं ? 
    कषाय सामान्य से चार प्रकार की होती हैं। क्रोध, मान, माया, लोभ। इनमें अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ। अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ । प्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ एवं संज्वलन क्रोध, मान, माया, लोभ।

    4. अनन्तानुबन्धी कषाय किसे कहते हैं ? 
    अनन्त भवों को बाँधना ही जिसका स्वभाव है, वह अनन्तानुबन्धी कषाय कहलाती है। यह कषाय सम्यक्त्व और चारित्र दोनों का ही घात करती है। (गोक, 45)

    5. अप्रत्याख्यानावरण कषाय किसे कहते हैं ? 
    जो देशसंयम का घात करती है, वह अप्रत्याख्यानावरण कषाय है। अप्रत्याख्यान अर्थात् देशसंयम को जो आवरण करे, देशसंयम को न होने दे, वह अप्रत्याख्यानावरण कषाय है। (गोक,45)

    6. प्रत्याख्यानावरण कषाय किसे कहते हैं ?
    जो सकल संयम का घात करती है, वह प्रत्याख्यानावरण कषाय है। प्रत्याख्यान अर्थात् संयम को जो आवरण करे, संयम को न होने दे, वह प्रत्याख्यानावरण कषाय है। (गोक,45)

    7. संज्वलन कषाय किसे कहते हैं ? 
    जिस कषाय के रहते सकल संयम तो रहता है किन्तु यथाख्यात संयम प्रकट नहीं हो पाता है, वह संज्वलन कषाय है।

    8. कषायों की शक्तियों के दृष्टान्त व फल कौन-कौन से हैं ?
    निम्न तालिका में देखें -
    कषाय
    दूष्टान्त
    अनन्तानुबन्धी क्रोध
    अप्रत्याख्यानावरण क्रोध
    प्रत्याख्यानावरण क्रोध
    संज्वलन क्रोध
    अनन्तानुबन्धी मान
    अप्रत्याख्यानावरण मान
    प्रत्याख्यानावरण मान
    संज्वलन मान
    अनन्तानुबन्धी माया
    अप्रत्याख्यानावरण माया
    प्रत्याख्यानावरण माया
    संज्वलन माया
    अनन्तानुबन्धी लोभ
    अप्रत्याख्यानावरण लोभ
    प्रत्याख्यानावरण लोभ
    संज्वलन लोभ
    पत्थर की रेखा के समान।
    भूमि की रेखा के समान। (पानी से मिट जाती है)
    बालू की रेखा। (हवा से मिट जाती है)
    जल की रेखा।
    पत्थर का स्तम्भ।
    अस्थि स्तम्भ। (पुरुषार्थ से मुड़ जाती है)
    काष्ठ का स्तम्भ। (पिच्छी की डंडी)
    लता स्तम्भ।
    बाँस की जड।
    मेढ़े के सींग समान। (बांस की जड़ से कम टेढ़ी )
    गोमूत्र के समान (गो के मूत्र की वक्र रेखा के समान)
    खुरपे के समान या लेखनी के समान।
    कृमिराग के रंग समान।
    गाडी का ऑगन। (केरोसिन से साफ हो जाता है)
    कीचड़ के समान। (जल से धुल जाता है)
    हल्दी का रंग।
    कषायों के भे द
    कषाय चार हैं- 1. क्रोध 2. मान 3. माया और 4. लोभ। हर एक के चार-चार भेद हैं।

    क्रोध के भेद :
    क्रोध के चार भेद निम्न हैं-
    1. अनन्तानुबंधी क्रोध- पर्वत में पड़ी दरार जैसे जुड़ती नहीं, वैसे ही ऐसा क्रोध जीवनभर शांत नहीं होता। (अत्यंत ज्यादा क्रोध)
    2. अप्रत्याख्यानी क्रोध- पृथ्वी में पड़ी दरार जैसे वर्षा आने पर पट जाती है, वैसे ही ऐसा क्रोध एक-आध साल में शांत हो जाता है। (ज्यादा क्रोध)
    3. प्रत्याख्यानी क्रोध- रेत में खींची रेखा जैसे वायु के झोंके से मिट जाती है, वैसे ही ऐसा क्रोध एक-आध मास में शांत हो जाता है। (सामान्य क्रोध)
    4. संज्वलन क्रोध- पानी में खींची रेखा जैसे शीघ्र नष्ट हो जाती है, वैसे ही ऐसा क्रोध जल्दी शांत हो जाता है। (हल्का क्रोध)

    मान के भेद :
    मान के चार भेद निम्न हैं-

    1. अनन्तानुबंधी मान- पत्थर के खंभे के समान, जो किसी प्रकार झुकता नहीं।
    2. अप्रत्याख्यानी मान- हड्डी के समान, जो बड़ी कठिनाई से झुकता है।
    3. प्रत्याख्यानी मान- काठ के समान, जो उपाय करने पर झुक सकता है।
    4. संज्वलन मान- बेंत की लकड़ी के समान, जो आसानी से झुक जाता है।

    माया के भेद :
    मान के चार भेद निम्न हैं-

    1. अनन्तानुबंधी माया- बाँस की कठोर जड़ जैसी, जो किसी तरह टेढ़ापन नहीं छोड़ती।
    2. अप्रत्याख्यानी माया- मेढ़े के सींग जैसी, जो बड़े प्रयत्न से अपना टेढ़ापन छोड़ती है।
    3. प्रत्याख्यानी माया- बैल के मूत्र की धार जैसी, जो वायु के झोंके से मिट जाती है।
    4. संज्वलन माया- बाँस की चीपट के समान।

    लोभ के भेद :
    लोभ के चार भेद निम्न हैं-

    1. अनन्तानुबंधी लोभ- किरमिच के रंग जैसा दाग, जो एक बार चढ़ने पर उतरता नहीं। (अत्यंत ज्यादा लालच)
    2. अप्रत्याख्यानी लोभ- गाड़ी के कीट जैसे दाग, जो एक बार कपड़े को गंदा कर देने पर बड़े प्रयत्न से मिटता है। (ज्यादा लालच)
    3. प्रत्याख्यानी लोभ- कीचड़ जैसा दाग, जो कपड़ों पर पड़ जाने पर साधारण प्रयत्न से छूट जाता है। (सामान्य लालच)
    4. संज्वलन लोभ- हल्दी के रंग जैसा दाग, जो सूर्य की धूप लगते ही दूर हो जाता है। (कम लालच)

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

भगवान पार्श्वनाथ प्रश्नोत्तरी

जैन प्रश्नोत्तरी

सतियाँ जी 16