25 बोल
🏆*
हँसते खेलते 25 बोल को जाने
उदाहरण- 😷मेरे महाव्रत कौनसे बोल में आते हैं❓
🅰 साधु के 5 महाव्रत
🅿1⃣ 🍎🌽🔦का त्याग याने कौनसा अभिगम होगा❓
सचित्त त्याग
🅿2⃣ 😷लेना श्रावक का कौनसा व्रत कहलायेगा❓
सामायिक
🅿3⃣ 🥇🥈की मर्यादा करना कौनसा व्रत कहलाए❓
5 वां परिग्रह
🅿4⃣ 🍱🥛की वस्तुओ की मर्यादा करना कौनसा व्रत कहलायेगा ❓
7 वां उपभोग परिभोग
🅿5⃣ 🚙🏫⏰🔐कौनसे राशि मे आएंगे❓
अजीव
🅿6⃣ 👩🏻🏫🤴🏻🦁🐝कौनसे राशि में आएंगे❓
जीव
🅿7⃣ 🤵🏻के कुल कितने भेद है❓
303
🅿8⃣ 🏹⚱ये कौनसे जाती के देव है❓
भवनपति
🅿9⃣ 🌝🌞⭐ये कौनसे देव है❓
ज्योतिष
🅿🔟 🐬और 🌊का दृष्टान्त किस द्रव्य के लिए दिया जाता है❓
धर्मास्तिकाय
🅿1⃣1⃣ 👔को✂का दृष्टान्त किस द्रव्य के लिए दिया जाता है❓
काल द्रव्य
🅿1⃣2⃣ 🌕🌖🌗🌘🌑🌒🌓🌔का दृष्टान्त किस द्रव्य के लिए दिया जाता है❓
जीवस्तिकाय
🅰🅿1⃣3⃣ 🚲🛏🚗कौनसा द्रव्य कहलायेंगे❓
पुद्गलस्तिकाय
🅿1⃣4⃣ 🕰दीवार पर किसके सहयोग से टिकी है❓
अधर्मस्तिकाय
🅿1⃣5⃣ 😭😭कौनसा ध्यान कहलायेगा ❓
आर्त्त ध्यान
🅿1⃣6⃣ 🌳के उदाहरण से हम कौनसा बोल समझते हैं❓
लेश्या का
🅿1⃣7⃣ 🕊के पर्यायवाची एक अशुभ लेश्या कौनसी❓
कापोत
🅿1⃣8⃣ 🐘🐃का दंडक कौनसा❓
20 वां
🅿1⃣9⃣ जरूरतमंदों को 👕👖👗बाँटना कौनसा पूण्य होगा ❓
वस्त्र पूण्य
🅿2⃣0⃣ 🚲को जीव कहना कौनसा मिथ्यात्व होगा ❓
अजीव को जीव श्रद्धे
🅿2⃣1⃣ 🖤💙❤💛💟 यह पांच विषय किसके है❓
वर्ण
🅿2⃣2⃣ 👹👺को कौनसा शरीर होता है ❓
वैक्रिय
🅿2⃣3⃣ 🌳🌪में कितने प्राण पाए जाते हैं❓
4
🅿2⃣4⃣ 👂🏻कौनसी इन्द्रिय है❓
श्रोतेन्द्रीय
🅿2⃣5⃣ 🐃🐘🕊में कौनसी काय होती है❓
त्रस
🅿2⃣6⃣ 🌷🌹में कौनसी काय होती हैं❓
वनस्पति
🅿2⃣7⃣ 🚿🌊💦कौनसी काय होती हैं❓
अपकाय
🅿2⃣8⃣ 🌳🌹में जाति कौनसी ❓
एकेन्द्रिय
🅿2⃣9⃣ 👹👺गति कौनसी❓
नरक
🅿3⃣0⃣ 🌷🐘🐃🌳🌹गति कौनसी ❓
तिर्यंच
1 गति तो दूसरी क्या
जाति5
2 काय6तो प्राण
10
3 योग15तो छोटी नवत्त्व के भेद कितने
115
4 चक्षुइन्द्रीय के60विकार तो स्पर्शीन्द्रीय के विकार कितने
96
5 साधु जी के5महाव्रत तो श्रावक जी के व्रत कितने
12
6 कर्म और प्राण में सर्वोपरि कौंन
आयुष्य कर्म
आयुष्य बल प्राण
7 जाति पंचेन्द्रिय सर्वोपरि तो गति कौनसी सर्वोपरि
मनुष्य गति
8 मनुष्य का भांगा23तो साधु के व्रत की तरह भांगा कोंनसा
33
3*3=9
9 काय6तो षट द्रव्य के भेद कितने
30
10 आश्रव के भेद20तो घ्राणे इन्द्रिय के विकार कितने
12
11 पतित का गुणस्थान11वा तो श्रावक का गुणस्थान कोंनसा
5
12 कौनसी पर्याप्ति पर सब पर्याप्ति मिलती है
आहार पर्याप्ति
13 हमारा औदारिक शरीर तो शंखा समाधान हेतु निकलने वाला शरीर कोंनसा
आहारक शरीर
14 पूर्व भव में किया श्रुत दान तो पा रहेहै
सम्यक ज्ञान
15 संसारी जीवो की दृष्टि कौनसी
मिश्र दृष्टि
16 किया ऐसा ध्यान तो पाये इस गति का अहान
धर्म ध्यान
मनुष्य गति
18 आंनद श्रावक को हुआ अवधि
ज्ञान तो सर्वगुण सम्पन्न चरित्र पाते ही पाते है ज्ञान
मन पर्वय:ज्ञान
19 प्राण10है तो किस मिथ्यात्व का करे आचरण
किसी का नहीं
मिथ्यात्व तो प्रिभृमन का कारण है
20 भांगा के है दो भाई एक योग बिछुड़ गया है एक भाई मिलाकर करो भलाई
योग -करण
21 पंचम गति के पंचम पद को पाने के लिए करे सर्वप्रथम चरित्र
सामायिक चारित्र
22 एक विषयभव है तो दूसरा भृमण है नाम बता करो अंत
विषय विकार
23 एक मोह है तो एक द्वेष है युगल नाम बताकरबनो
मुक्त
रति अरति
24 मैं ही कराता हु 84 का चक्कर त्याग कर जानो सुजान
मिथ्यादर्शन शल्य
25 पाप करते अति भारी बचा न कोई बलिहारी
*कर्म रूपी बलिहारी*
📚🖌📘
〰〰〰〰〰〰〰〰
श्रृंखला -- 1
*पचीस बोल*
*भाग -- 2*
*पहला बोल -- गति चार*
1 नरक गति 2 तिर्यंच गति
3 मनुष्य गति 4 देव गति
*तिर्यंच गति*
जिन जीवों में तिर्यंच गति नाम कर्म का उदय होता है, वे तिर्यंच है। तिर्यंच आयु कर्म के उदय से ये तिर्यंच गति का आयुष्य भोगते हैं। एक इंद्रिय से लेकर चतुरिन्द्रिय सभी जीव तथा पंचेन्द्रिय में मनुष्य, देवता, नारकी को छोड़ सभी जीव तिर्यंच कहलाते हैं।
तिर्यंच गति में चारों ही गतियों के जीव आकर उत्पन्न हो सकते हैं और तिर्यंच गति के जीव मरकर चारों गतियों में जा सकते हैं। जीव संख्या की दृष्टि से चारों ही गति में सबसे बड़ी गति तिर्यंच गति है। तिर्यंच गति के सूक्ष्म जीव समूचे लोक में व्याप्त है। तिर्यंच भी सम्यक्त्वी श्रावक हो सकते हैं।( जैसे नंदन मणियारा का जीव मेंढक हुआ )। चार गति में सर्वाधिक दुःख तिर्यंच गति ( नि-गोद ) में है।
*तिर्यंच गति के भेद --* नौ भेद है -- पांच स्थावर, तीन विकलेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय।
*तिर्यंच आयु बंध के कारण*
*मुख्य रूप से चार कारण है* -- माया, गूढ़ माया ( माया को ढकने के लिए दूसरी माया करना) , असत्य वचन और कूट-माप-तोल।
*तिर्यंच गति के जीवों का आयुष्य --* कम-से-कम अंतर्मुर्हूत्त और ज्यादा-से-ज्यादा एक करोड़ पूर्व ।
*तिर्यंच गति के जीवों की अवगाहना ( लम्बाई )* -- कम-से-कम आंगुल का असंख्यात भाग और ज्यादा-से-ज्यादा हजार योजन।
*मनुष्य गति*
मनुष्य गति नाम कर्म के उदय से प्राप्त होती है।मनुष्य गति में चारों गति से आये हुए जीव उत्पन्न हो सकते हैं और मनुष्य गति से जीव चारों गतियों में जा सकते हैं।
मोक्ष की प्राप्ति मनुष्य शरीर द्वारा ही संभव है क्योंकि कर्म मुक्ति की साधना मनुष्य जीवन से ही संभव है। इसलिए मनुष्य गति को श्रेष्ठ और प्रशस्त बताया गया है।
मनुष्य दो प्रकार के होते हैं -- संज्ञी और असंज्ञी ।
*संज्ञी मनुष्य --* जिन मनुष्यों के मन होता है, वे संज्ञी मनुष्य कहलाते हैं। संज्ञी मनुष्य गर्भ से उत्पन्न होते हैं अतः उन्हें गर्भज मनुष्य भी कहते हैं। उनके दो प्रकार हैं -- कर्मभूमिज और अकर्मभूमिज (यौगलिक)।
*असंज्ञी मनुष्य* -- जिन मनुष्य के मन नहीं होता उन्हें असंज्ञी मनुष्य कहते हैं। इन्हें *चौदह स्थानकिया* जीव भी कहते हैं। कहने को तो यह मनुष्य है लेकिन उनमें मनुष्यता जैसा कुछ नहीं होता। यह अपर्याप्त ही होते हैं क्योंकि इनकी तीन पर्याप्तियां तो पूर्ण हो जाती हैं लेकिन चौथी पर्याप्ति के पूर्ण होने से पहले ही यह मर जाते हैं। ये मनुष्य के मल, मूत्र आदि 14 स्थानों से उत्पन्न होते हैं। वे बहुत सूक्ष्म होते हैं, इसलिए हमें दिखाई नहीं देते हैं।
*मनुष्य गति बंधने के कारण*
मनुष्य गति बंधने के चार कारण बताए गए हैं --
(1) प्रकृति-भद्रता
(2) प्रकृति-विनम्रता
(3) अनुकम्पा भाव
(4) अमात्सर्य भाव ( मात्सर्य व ईष्या का अभाव )
*मनुष्य की अवगाहना ( लम्बाई ) --* कम-से-कम आंगुल का असंख्यात भाग और ज्यादा-से-ज्यादा 500 धनुष।
*मनुष्य का आयुष्य --* कम-से-कम अन्तर्मुहूर्त्त और ज्यादा-से-ज्यादा एक करोड़ पूर्व।
*देव गति*
जो अपने शरीर से दीप्तिमान हैं *देव्यंति स्वरूप इति देवा* और देव नामकरण के उदय से उत्पन्न होते हैं उन्हें देव कहते हैं।
देवगति नाम कर्म के उदय से प्राप्त अवस्था को देव गति कहते हैं। जो निरूपम क्रीड़ा का अनुभव करते हैं, वे देव हैं।
देव चार प्रकार के होते हैं -- भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक।
देवों का शरीर वैक्रिय होता है। वह उत्तम परमाणुओं द्वारा निर्मित होता है। उसमें हाड़, मास, रक्त आदि नहीं होते हैं। मरने के बाद यह शरीर कपूर की भांति उड़ जाता है। देवों के उत्पन्न होने का एक नियत स्थान देवशय्या होता है। देव और नारक का जन्म उपपात कहलाता है। देवता में पांच पर्याप्तियां पाई जाती है। उनकी भाषा और मन एक ही होता है।
*देव आयुष्य बंध के कारण --* सराग संयम, संयमासंयम ( श्रावक ), बाल तपस्या, अकाम निर्जरा।
*देवता की पहचान* --
धरती से चार अंगुल ऊपर पैर
परछाई नहीं पड़ना
माला का नहीं कुम्हलाना
पलक का नहीं झपकना।
*99 प्रकार के देवता --* 10 भवनपति, 15 परमाधार्मिक, 16 वाणव्यन्तर, 10 त्रिजृम्भक, 10 ज्योतिष्क, 12 वैमानिक, 3 किल्विषिक, 9 लोकान्तिक, 9 ग्रैवेयक और 5 अनुत्तर विमान।
देवों के 64 इन्द्र होते हैं।
भवन पति के 20,व्यंतर के 32, सूर्य और चंद्र के 2 वैमानिक के 10 इस प्रकार कुल 64 इंद्र होते हैं।
देवताओं का जघन्य आयुष्य 10000 वर्ष और उत्कृष्ट 33 सागर होता है।
देवों के चार प्रकार में पहला प्रकार है -- *भवनपति*
इन देवों के आवास नीचे लोक में है तथा भवन में रहने की अपेक्षा से वे भवनपति देव कहलाते हैं। उनके भवन रत्नप्रभा पृथ्वी में 1000 योजन नीचे जाने के बाद आते हैं। भवनपति देव अंतरों में रहते हैं। एक-एक अंतर में क्रमशः एक-एक जाति के भवनपति देव रहते हैं।
सदा कौमार्यावस्था ( कुमार अवस्था ) की भांति चंचल, अलमस्त और अलंकृत होने के कारण उन्हें कुमार कहा जाता है। वे दस प्रकार के होते हैं असुर कुमार , नाग कुमार,सुपर्ण कुमार, विद्युत कुमार,अग्नि कुमार,द्वीप कुमार, उदधि कुमार, द्विक कुमार,वायु कुमार और स्तनित कुमार ।वे प्रारंभ से अंत तक कुमार सदृश ही रहते हैं। भवनपति में देवियाँ ज्यादा है। प्रत्येक देव के अग्रमहिषी कम से कम चार देवियाँ होती हैं।
*आयुष्य --* भवनपति देवों का जघन्य आयुष्य दस हजार वर्ष उत्कृष्ट किंचित अधिक एक सागरोपम है।
*आयुष्य बंध के कारण --* असुरदेव आयुष्य बंध के चार कारण है। अज्ञानता तप में प्रतिबद्धता, प्रबल क्रोध करना, तप का अहं करना और वैर में प्रतिबद्धता।
परमाधामी देवता असुर कुमार की जाति के देव हैं। ये पंद्रह प्रकार के हैं -- अंब, अंबरीस, शाम, सबल, रूद्र, वैरूद्र, काल, महाकाल, असिपत्र, धनुष्य, कुंभ, वेतरणी, खरस्वर और महाघोष। असुरकुमार भवनपति देवों में सबसे ज्यादा ऋद्धिमान और बलवान हैं।
परमाधामी देवता नरक के जीवो को दुःख देते हैं। लेकिन यह तीन नरक भूमियों तक ही जा सकते हैं। जिस प्रकार कुछ लोग शिकार करने में, लड़ने-लड़ाने में आनंद की अनुभूति करते हैं वैसे ही परमाधामी देवों को भी नरक जीवों को सताने में आनंद की अनुभूति होती है । यह बहुत क्रूर, निर्दयी होते हैं और नारकीय जीवों को अनेक प्रकार के यातनाएं देते हैं,इसलिए इनका नाम परम अधार्मिक देवता है।
देवों के चार प्रकार में दूसरा प्रकार है -- *वाणव्यंतर देव*
वाणव्यंतर देवों का निवास स्थान तिरछे लोक में है। मेरु पर्वत की समतल भूमि के नीचे एक हजार नीचे मोटा पिण्ड है, उसके ऊपर का 100 योजन और नीचे का 100 योजन छोड़कर, आठ सौ योजन के अंतर में तिरछे लोक में प्रथम कोटि के वाण व्यन्तर देव रहते हैं। दूसरी कोटि के देव इस रत्नप्रभा पृथ्वी के प्रारंभ के सौ योजन में प्रथम व अंतिम दस-दस योजन छोड़कर अस्सी योजन में रहते हैं। वहां उनके भवन बने हुए हैं।
पृथ्वी के विविध अंतरों में जन्म लेने के कारण इन्हें व्यंतर कहा गया है। ये पर्वतों, गुफाओं,वृक्षों, जलाशयों शून्य गृहों में रहना पसंद करते हैं।
वाणव्यन्तर देव अत्यधिक कुतूहल प्रिय होते हैं। इससे उनके पुण्य अधिक क्षीण होते हैं। भगवती में उल्लेखित है कि सर्वार्थ सिद्ध के देव लाख वर्षों में जितने पुण्य भोगते हैं उतने पुण्य वाणव्यंतर देव मात्र 100 वर्षों में भोग लेते हैं।
*प्रथम कोटि के देवोंं के आठ प्रकार है* -- पिशाच, भूत, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किंपुरूष, महोरग और गन्धर्व।
*दूसरी कोटि के देवों के भी 8 प्रकार हैं-* आनपन्नी, पानपन्नी, ईसीवाई, भूईवाई,कंदिय, महाकंदिय, कोहंड, पयंग देव।
*वाणव्यंतर देव बनने के कारण*
(1) फांसी पर लटक कर आत्महत्या करना।
(2) विष-भक्षण
(3) अग्नि में जलकर मरना।
(4) जल में डूब कर मरना।
(5) भूख और प्यास से क्लांत होकर मरना।
*वाणव्यंतर देवों का आयुष्य --* जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट एक पल्योपम।
वाणव्यंतर देवों के अन्तर्गत जृम्भक देवों की एक जाति आती है। ये देव वैश्रमण देव की प्रेरणा से तीर्थंकरों के जन्म-महोत्सव आदि अवसरों पर स्वर्ण, रत्न आदि उपह्रत करते हैं। ये अन्नजृंभक आदि दस प्रकार के होते हैं।
*देवों के चार प्रकार में तीसरा प्रकार है -- ज्योतिष्क देव*
जिनके आश्रय ज्योतिर्मय विमान हैं, वे ज्योतिष्क देव हैं। हमें जो सूर्य चंद्र दिखते हैं वह वास्तव में ज्योतिष्क देवों के विमान हैं। ज्योतिष्क देवों के पांच प्रकार है -- सूर्य, चंद्र ग्रह,नक्षत्र और तारा।
मेरु पर्वत की समतल भूमि से ऊपर की 790 योजन से 900 योजन के बीच 110 योजन में ज्योतिष्क देवों के विमान है। सूर्य चंद्र आदि जो दृष्टिगोचर हो रहे हैं, वे देवों के विमान हैं। वास्तव में यह है पृथ्वियां है अंतरिक्ष में भ्रमणशील होने के कारण इन्हें विमान कह दिया जाता है। इनमें महल बने होते हैं।देव' यदा-कदा वहां आते हैं।
*ज्योतिष्क विमान चर या अचर*
जो मनुष्य लोक के मेरू पर्वत के चारों ओर चक्कर लगाते हैं, वे तो चर हैं और जो मनुष्य लोक से बाहर हैं, वे अचर हैं।
*ज्योतिष्क देवों का आयुष्य --* जघन्य पल्योपम का आठवां भाग और उत्कृष्ट एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम।
*देवों के चार प्रकार में चौथा प्रकार है -- वैमानिक देव।*
पुण्यशाली जिनका उपभोग करते हैं, वे विमान है। जिनकी उत्पत्ति विमान में हो, वे वैमानिक देव हैं। ( विमानों में रहने वाले वैमानिक कहलाते हैं। ) वैमानिक देवों के दो प्रकार हैं -- कल्पोपन्न और कल्पातीत।
*कल्पोपन्न --* जहाँ स्वामी, सेवक आदि का भेद है। जहां कल्पमर्यादा है, उसे कल्पोपन्न कहते हैं । कल्पोपन्न देवताओं के सौधर्म आदि बारह प्रकार हैं।
*कल्पातीत --* जहाँ स्वामी, सेवक का भेद नहीं है, जहां कल्प मर्यादा नहीं है, जहाँ सब अहमिन्द्र ( समान ) हैं, उसे कल्पातीत कहते हैं ।
*वैमानिक देवों का आयुष्य --* जघन्य एक पल्योपम और उत्कृष्ट तैंतीस सागरोपम।
संयमी मुनि का आयुष्य बंध वैमानिक का ही होता है।
*गति और आगति*
जीव का वर्तमान भव से आगामी भव में जाना गति है और जीव का पूर्व भव से वर्तमान में आना आगति है।
*अन्तराल-गति*
जीव एक जन्म से दूसरे जन्म में जाने के लिए जो गति करता है, उसका नाम अंतराल-गति है। वह दो प्रकार की होती है -- ऋजु और वक्र। अंतराल-गति के समय स्थूल शरीर नहीं होता। वह मृत्यु के समय छूट जाता है। कार्मण और तैजस -- ये दो सूक्ष्म शरीर जीव के साथ रहते हैं। उस समय गति का साधन कार्मण शरीर होता है।
पूर्व शरीर को छोड़कर दूसरे स्थान में जाने वाले जीव दो प्रकार के होते हैं-सिद्ध और संसारी। सिद्ध वे,जो स्थूल एवं सूक्ष्म दोनों प्रकार के शरीरों को सदा के लिए छोड़कर स्वस्थान पर अवस्थित हो जाते हैंऔर दूसरे वे, जो पहले के स्थूल-शरीर को छोड़कर नये स्थूल-शरीर को प्राप्त करते हैं। पहले प्रकार के जीव मुक्त होते हैं और दूसरे प्रकार के जीव संसारी कहलाते हैं। मोक्षगति में जानेवाले ऋजुगति से ही जाते हैं, वक्रगति से नहीं। पुनर्जन्म के लिए स्थानान्तर पर में जाने वाले जीवों की ऋजु और वक्र -- दोनों गतियाँ होती हैं। ऋजुगति और वक्रगति का आधार उत्पत्ति क्षेत्र है। जब उत्पत्ति-क्षेत्र मृत्यु-क्षेत्र की सम-क्षेणी में होता है तो जीव एक समय में वहां पहुँच जाता है। यदि उत्पत्ति-क्षेत्र विषम-श्रेणी में होता है तो वहां पहुंचने में जीव को एक, दो या तीन घुमाव करने पड़ते हैं।
ऋजु गति से स्थानान्तर करते समय जीव को नया प्रयत्न नहीं करना पड़ता। वह पूर्व-शरीर को छोड़ता है तब उसे उस ( पूर्व-शरीर ) से उत्पन्न वेग मिलता है और वह धनुष से छूटे हुए बाण की तरह सीधा नए स्थान पर पहुंच जाता है।
वक्रगति घुमाववाली होती है। इसमें घूमने का स्थान आते ही पूर्व-देह-जनित वेग मंद पड़ जाता है और सूक्ष्म-शरीर ( कार्मण-शरीर ) द्वारा जीव नया प्रयत्न करता है। यह कार्मण योग कहलाता है। घुमाव के स्थान में जीव कार्मण-योग के द्वारा नया प्रयत्न करके अपने गन्तव्य में पहुँच जाता है। अंतराल गति का कालमान जघन्य एक समय और उत्कृष्ट चार समय होता है।
*अंतराल गति*
अंतराल गति का कालमान जघन्य एक समय और उत्कृष्ट चार समय का है। जब ऋजुगति हो तब एक समय और जब वक्रगति हो तब दो, तीन या चार समय लगते हैं। जिस वक्रगति में एक घुमाव हों, उसका कालमान दो समय, जिसमें दो घुमाव हों, उसका कालमान तीन समय और जिसमें तीन घुमाव हों, उसका कालमान चार समय का होता है।
मोक्षगति में जाने वाले जीव अंतरालगति के समय सूक्ष्म और स्थूल सब शरीरों से मुक्त होते हैं। अतः उन्हें आहार लेने की जरूरत नहीं होती। संसारी जीव सूक्ष्म-शरीर सहित होते हैं। अतः उन्हें आहार की आवश्यकता होती है।
ऋजुगति करने वाले जीव जिस समय में पहला शरीर छोड़ते हैं उसी समय में दूसरे जन्म में उत्पन्न हो आहार लेते हैं। किंतु दो समय की एक घुमाववाली, तीन समय की दो घुमाव वाली और चार समय की तीन घुमाववाली वक्रगति में अनाहरक स्थिति पाई जाती है। क्रमशः पहली का पहला दूसरी का पहला और दूसरा तथा तीसरी का दूसरा और तीसरा समय अनाहरक अर्थात् आहार-शून्य होता है। जीव दो समय से ज्यादा अनाहरक नहीं रह सकता।
*जीव की अन्तराल गति*
*गति -- ऋजुगति*
घुमाव -- नहीं
समय -- एक
आहारक-अनाहारक -- आहारक
*गति -- वक्रगति*
घुमाव -- एक
समय -- दो
आहारक-अनाहारक -- पहला समय अनाहारक और दूसरा समय आहारक।
*गति -- वक्रगति*
घुमाव -- दो
समय -- तीन
आहारक-अनाहारक -- पहला - दूसरा समय अनाहारक और तीसरा समय आहारक।
*गति -- वक्रगति*
घुमाव -- तीन
समय -- चार
आहारक-अनाहारक -- दूसरा-तीसरा समय अनाहारक और पहला-चौथा समय आहारक।
*लिखने में कुछ गलती हुई तो मिच्छामि दुक्कडं।*
1⃣ 25/35 बोल कहां से आए हैं ❓
🅰 विभिन्न शास्त्रों के संग्रह से 📚
2⃣ 25/35 बोल पहले क्यों सिखाते हैं ❓
🅰 जैन धर्म की प्रारंभिक शिक्षा ' ए.बी.सी.डी.' है और ज्ञान की पहली सीढ़ी है 📚
3⃣ जीव मरकर जहाँ जाता है उसे क्या कहते हैं ❓
🅰 "गति" कहते हैं 📚
4⃣ गति किस कर्म के उदय से होती हैं ❓
🅰 नाम कर्म के उदय से होती हैं 📚
5⃣ नरक किसे कहते हैं ❓
🅰 जहाँ पर सूर्य का प्रकाश न हो, जीव अपने बुरे कर्मों को भोगता हो 📚
6⃣ तिर्यन्च किसे कहते हैं ❓
🅰 धर्म के बताये हुए मार्ग से जो तिरछा चले उसे तिर्यन्च कहते हैं ,जिसका शरीर तिरछा बढे, (तिर+अच्)।📚
7⃣ मनुष्य किसे कहते हैं ❓
🅰 मनुष्य में हेय , ज्ञेय , उपादेय के बारे में चिंतन मनन करने की शक्ति हो तथा आत्मा पर लगे सभी कर्मों को तप, संयम आदि के द्वारा क्षय कर मोक्ष प्राप्त करने की शक्ति हो 📚
8⃣ देव गति किसे कहते हैं ❓
🅰 जहाँ पर जीव अपने किये हुए कर्मों का साता रूप फल अधिक भोगते है तथा अनेक प्रकार की दिव्य भौतिक ॠध्दियों को प्राप्त करते हैं उसे देव गति कहते हैं 📚
9⃣ मनुष्य कितनी गति में जाता है ❓
🅰 पांच 📚
1⃣0⃣ समान इन्द्रियों के समूह को क्या कहते हैं ❓
🅰 जाति 📚
1⃣1⃣ जिस शरीर में जीव जन्म लेता उसे क्या कहते हैं ❓
🅰 काया 📚
1⃣2⃣ टीवी में जो रुप दिखता है वह किसका विषय हैं ❓
🅰 चक्षु इन्द्रिय का 📚
1⃣3⃣ उत्पन्न होते समय आहारादि ग्रहण करने की शक्ति को क्या कहना❓
🅰 पर्याप्ति 📚
1⃣4⃣ बल - प्राण किसे कहते हैं ❓
🅰 प्राणों की विशेष शक्ति को बल- प्राण कहते हैं 📚
1⃣5⃣ सभी शरीरों का मूल शरीर कौन सा है ❓
🅰 कार्मण शरीर 📚
1⃣6⃣ १४ वें गुणस्थान व सिद्धों में योग कितने ❓
🅰 एक भी नहीं 📚
1⃣7⃣ सामान्य- विशेष रूप से वस्तु के स्वरूप को जानना क्या है ❓
🅰 उपयोग 📚
1⃣8⃣ कर्म सावद्य है या निरवद्य हैं ❓
🅰 दोनों नहीं। क्योंकि कर्म तो अजीव है 📚
1⃣9⃣ शास्त्रों में गुणस्थान का अपर नाम क्या है ❓
🅰 जीव- स्थान। ( समवायांग सूत्र) 📚
2⃣0⃣ विषयों पर राग - द्वेष ना करना किसकी आज्ञा हैं ❓
🅰 तीर्थंकरों की 📚
2⃣1⃣ अति भयंकर कोटि का पाप क्या है ❓
🅰 मिथ्यात्व 📚
2⃣2⃣ कोई लङकी गीत गा रही हैं, कौन सा विषय हैं ❓
🅰 जीव शब्द 📚
2⃣3⃣ मिथ्यात्व जीव है या अजीव ❓
🅰 जीव 📚
2⃣4⃣ पाप और पापी एक है या दो ❓
🅰 दो ! पाप अजीव है व पापी जीव 📚
2⃣5⃣ टीवी नहीं देखना क्या है ❓
🅰 १२ वां संवर (चक्षुः इन्द्रिय निग्रह संवर)📚
2⃣6⃣ फालतू बाते करना कौन सा प्रमाद हैं ❓
🅰 विकथा 📚
2⃣7⃣ कौन सी आत्मा वंदनीय है और कौन सो आत्मा निंदनीय है ❓
🅰 चारित्र आत्मा वंदनीय व कषाय आत्मा निंदनीय है 📚
2⃣8⃣ दण्डक कौन से कर्म का उदय है ❓
🅰 नाम कर्म का 📚
2⃣9⃣ लेश्या किस कर्म के उदय से मिलती हैं ❓
🅰 तीन अशुभ लेश्या मोहनीय कर्म के उदय से व तीन शुभ लेश्या नाम कर्म के उदय से 📚
3⃣0⃣ ध्यान का उत्कृष्ट रुप क्या है ❓
🅰 प्रवृत्ति का निरोध, विचार रहित दशा ध्यान का उत्कृष्ट रुप हैं 📚
हँसते खेलते 25 बोल को जाने
उदाहरण- 😷मेरे महाव्रत कौनसे बोल में आते हैं❓
🅰 साधु के 5 महाव्रत
🅿1⃣ 🍎🌽🔦का त्याग याने कौनसा अभिगम होगा❓
सचित्त त्याग
🅿2⃣ 😷लेना श्रावक का कौनसा व्रत कहलायेगा❓
सामायिक
🅿3⃣ 🥇🥈की मर्यादा करना कौनसा व्रत कहलाए❓
5 वां परिग्रह
🅿4⃣ 🍱🥛की वस्तुओ की मर्यादा करना कौनसा व्रत कहलायेगा ❓
7 वां उपभोग परिभोग
🅿5⃣ 🚙🏫⏰🔐कौनसे राशि मे आएंगे❓
अजीव
🅿6⃣ 👩🏻🏫🤴🏻🦁🐝कौनसे राशि में आएंगे❓
जीव
🅿7⃣ 🤵🏻के कुल कितने भेद है❓
303
🅿8⃣ 🏹⚱ये कौनसे जाती के देव है❓
भवनपति
🅿9⃣ 🌝🌞⭐ये कौनसे देव है❓
ज्योतिष
🅿🔟 🐬और 🌊का दृष्टान्त किस द्रव्य के लिए दिया जाता है❓
धर्मास्तिकाय
🅿1⃣1⃣ 👔को✂का दृष्टान्त किस द्रव्य के लिए दिया जाता है❓
काल द्रव्य
🅿1⃣2⃣ 🌕🌖🌗🌘🌑🌒🌓🌔का दृष्टान्त किस द्रव्य के लिए दिया जाता है❓
जीवस्तिकाय
🅰🅿1⃣3⃣ 🚲🛏🚗कौनसा द्रव्य कहलायेंगे❓
पुद्गलस्तिकाय
🅿1⃣4⃣ 🕰दीवार पर किसके सहयोग से टिकी है❓
अधर्मस्तिकाय
🅿1⃣5⃣ 😭😭कौनसा ध्यान कहलायेगा ❓
आर्त्त ध्यान
🅿1⃣6⃣ 🌳के उदाहरण से हम कौनसा बोल समझते हैं❓
लेश्या का
🅿1⃣7⃣ 🕊के पर्यायवाची एक अशुभ लेश्या कौनसी❓
कापोत
🅿1⃣8⃣ 🐘🐃का दंडक कौनसा❓
20 वां
🅿1⃣9⃣ जरूरतमंदों को 👕👖👗बाँटना कौनसा पूण्य होगा ❓
वस्त्र पूण्य
🅿2⃣0⃣ 🚲को जीव कहना कौनसा मिथ्यात्व होगा ❓
अजीव को जीव श्रद्धे
🅿2⃣1⃣ 🖤💙❤💛💟 यह पांच विषय किसके है❓
वर्ण
🅿2⃣2⃣ 👹👺को कौनसा शरीर होता है ❓
वैक्रिय
🅿2⃣3⃣ 🌳🌪में कितने प्राण पाए जाते हैं❓
4
🅿2⃣4⃣ 👂🏻कौनसी इन्द्रिय है❓
श्रोतेन्द्रीय
🅿2⃣5⃣ 🐃🐘🕊में कौनसी काय होती है❓
त्रस
🅿2⃣6⃣ 🌷🌹में कौनसी काय होती हैं❓
वनस्पति
🅿2⃣7⃣ 🚿🌊💦कौनसी काय होती हैं❓
अपकाय
🅿2⃣8⃣ 🌳🌹में जाति कौनसी ❓
एकेन्द्रिय
🅿2⃣9⃣ 👹👺गति कौनसी❓
नरक
🅿3⃣0⃣ 🌷🐘🐃🌳🌹गति कौनसी ❓
तिर्यंच
1 गति तो दूसरी क्या
जाति5
2 काय6तो प्राण
10
3 योग15तो छोटी नवत्त्व के भेद कितने
115
4 चक्षुइन्द्रीय के60विकार तो स्पर्शीन्द्रीय के विकार कितने
96
5 साधु जी के5महाव्रत तो श्रावक जी के व्रत कितने
12
6 कर्म और प्राण में सर्वोपरि कौंन
आयुष्य कर्म
आयुष्य बल प्राण
7 जाति पंचेन्द्रिय सर्वोपरि तो गति कौनसी सर्वोपरि
मनुष्य गति
8 मनुष्य का भांगा23तो साधु के व्रत की तरह भांगा कोंनसा
33
3*3=9
9 काय6तो षट द्रव्य के भेद कितने
30
10 आश्रव के भेद20तो घ्राणे इन्द्रिय के विकार कितने
12
11 पतित का गुणस्थान11वा तो श्रावक का गुणस्थान कोंनसा
5
12 कौनसी पर्याप्ति पर सब पर्याप्ति मिलती है
आहार पर्याप्ति
13 हमारा औदारिक शरीर तो शंखा समाधान हेतु निकलने वाला शरीर कोंनसा
आहारक शरीर
14 पूर्व भव में किया श्रुत दान तो पा रहेहै
सम्यक ज्ञान
15 संसारी जीवो की दृष्टि कौनसी
मिश्र दृष्टि
16 किया ऐसा ध्यान तो पाये इस गति का अहान
धर्म ध्यान
मनुष्य गति
18 आंनद श्रावक को हुआ अवधि
ज्ञान तो सर्वगुण सम्पन्न चरित्र पाते ही पाते है ज्ञान
मन पर्वय:ज्ञान
19 प्राण10है तो किस मिथ्यात्व का करे आचरण
किसी का नहीं
मिथ्यात्व तो प्रिभृमन का कारण है
20 भांगा के है दो भाई एक योग बिछुड़ गया है एक भाई मिलाकर करो भलाई
योग -करण
21 पंचम गति के पंचम पद को पाने के लिए करे सर्वप्रथम चरित्र
सामायिक चारित्र
22 एक विषयभव है तो दूसरा भृमण है नाम बता करो अंत
विषय विकार
23 एक मोह है तो एक द्वेष है युगल नाम बताकरबनो
मुक्त
रति अरति
24 मैं ही कराता हु 84 का चक्कर त्याग कर जानो सुजान
मिथ्यादर्शन शल्य
25 पाप करते अति भारी बचा न कोई बलिहारी
*कर्म रूपी बलिहारी*
📚🖌📘
〰〰〰〰〰〰〰〰
श्रृंखला -- 1
*पचीस बोल*
*भाग -- 2*
*पहला बोल -- गति चार*
1 नरक गति 2 तिर्यंच गति
3 मनुष्य गति 4 देव गति
*तिर्यंच गति*
जिन जीवों में तिर्यंच गति नाम कर्म का उदय होता है, वे तिर्यंच है। तिर्यंच आयु कर्म के उदय से ये तिर्यंच गति का आयुष्य भोगते हैं। एक इंद्रिय से लेकर चतुरिन्द्रिय सभी जीव तथा पंचेन्द्रिय में मनुष्य, देवता, नारकी को छोड़ सभी जीव तिर्यंच कहलाते हैं।
तिर्यंच गति में चारों ही गतियों के जीव आकर उत्पन्न हो सकते हैं और तिर्यंच गति के जीव मरकर चारों गतियों में जा सकते हैं। जीव संख्या की दृष्टि से चारों ही गति में सबसे बड़ी गति तिर्यंच गति है। तिर्यंच गति के सूक्ष्म जीव समूचे लोक में व्याप्त है। तिर्यंच भी सम्यक्त्वी श्रावक हो सकते हैं।( जैसे नंदन मणियारा का जीव मेंढक हुआ )। चार गति में सर्वाधिक दुःख तिर्यंच गति ( नि-गोद ) में है।
*तिर्यंच गति के भेद --* नौ भेद है -- पांच स्थावर, तीन विकलेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय।
*तिर्यंच आयु बंध के कारण*
*मुख्य रूप से चार कारण है* -- माया, गूढ़ माया ( माया को ढकने के लिए दूसरी माया करना) , असत्य वचन और कूट-माप-तोल।
*तिर्यंच गति के जीवों का आयुष्य --* कम-से-कम अंतर्मुर्हूत्त और ज्यादा-से-ज्यादा एक करोड़ पूर्व ।
*तिर्यंच गति के जीवों की अवगाहना ( लम्बाई )* -- कम-से-कम आंगुल का असंख्यात भाग और ज्यादा-से-ज्यादा हजार योजन।
*मनुष्य गति*
मनुष्य गति नाम कर्म के उदय से प्राप्त होती है।मनुष्य गति में चारों गति से आये हुए जीव उत्पन्न हो सकते हैं और मनुष्य गति से जीव चारों गतियों में जा सकते हैं।
मोक्ष की प्राप्ति मनुष्य शरीर द्वारा ही संभव है क्योंकि कर्म मुक्ति की साधना मनुष्य जीवन से ही संभव है। इसलिए मनुष्य गति को श्रेष्ठ और प्रशस्त बताया गया है।
मनुष्य दो प्रकार के होते हैं -- संज्ञी और असंज्ञी ।
*संज्ञी मनुष्य --* जिन मनुष्यों के मन होता है, वे संज्ञी मनुष्य कहलाते हैं। संज्ञी मनुष्य गर्भ से उत्पन्न होते हैं अतः उन्हें गर्भज मनुष्य भी कहते हैं। उनके दो प्रकार हैं -- कर्मभूमिज और अकर्मभूमिज (यौगलिक)।
*असंज्ञी मनुष्य* -- जिन मनुष्य के मन नहीं होता उन्हें असंज्ञी मनुष्य कहते हैं। इन्हें *चौदह स्थानकिया* जीव भी कहते हैं। कहने को तो यह मनुष्य है लेकिन उनमें मनुष्यता जैसा कुछ नहीं होता। यह अपर्याप्त ही होते हैं क्योंकि इनकी तीन पर्याप्तियां तो पूर्ण हो जाती हैं लेकिन चौथी पर्याप्ति के पूर्ण होने से पहले ही यह मर जाते हैं। ये मनुष्य के मल, मूत्र आदि 14 स्थानों से उत्पन्न होते हैं। वे बहुत सूक्ष्म होते हैं, इसलिए हमें दिखाई नहीं देते हैं।
*मनुष्य गति बंधने के कारण*
मनुष्य गति बंधने के चार कारण बताए गए हैं --
(1) प्रकृति-भद्रता
(2) प्रकृति-विनम्रता
(3) अनुकम्पा भाव
(4) अमात्सर्य भाव ( मात्सर्य व ईष्या का अभाव )
*मनुष्य की अवगाहना ( लम्बाई ) --* कम-से-कम आंगुल का असंख्यात भाग और ज्यादा-से-ज्यादा 500 धनुष।
*मनुष्य का आयुष्य --* कम-से-कम अन्तर्मुहूर्त्त और ज्यादा-से-ज्यादा एक करोड़ पूर्व।
*देव गति*
जो अपने शरीर से दीप्तिमान हैं *देव्यंति स्वरूप इति देवा* और देव नामकरण के उदय से उत्पन्न होते हैं उन्हें देव कहते हैं।
देवगति नाम कर्म के उदय से प्राप्त अवस्था को देव गति कहते हैं। जो निरूपम क्रीड़ा का अनुभव करते हैं, वे देव हैं।
देव चार प्रकार के होते हैं -- भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक।
देवों का शरीर वैक्रिय होता है। वह उत्तम परमाणुओं द्वारा निर्मित होता है। उसमें हाड़, मास, रक्त आदि नहीं होते हैं। मरने के बाद यह शरीर कपूर की भांति उड़ जाता है। देवों के उत्पन्न होने का एक नियत स्थान देवशय्या होता है। देव और नारक का जन्म उपपात कहलाता है। देवता में पांच पर्याप्तियां पाई जाती है। उनकी भाषा और मन एक ही होता है।
*देव आयुष्य बंध के कारण --* सराग संयम, संयमासंयम ( श्रावक ), बाल तपस्या, अकाम निर्जरा।
*देवता की पहचान* --
धरती से चार अंगुल ऊपर पैर
परछाई नहीं पड़ना
माला का नहीं कुम्हलाना
पलक का नहीं झपकना।
*99 प्रकार के देवता --* 10 भवनपति, 15 परमाधार्मिक, 16 वाणव्यन्तर, 10 त्रिजृम्भक, 10 ज्योतिष्क, 12 वैमानिक, 3 किल्विषिक, 9 लोकान्तिक, 9 ग्रैवेयक और 5 अनुत्तर विमान।
देवों के 64 इन्द्र होते हैं।
भवन पति के 20,व्यंतर के 32, सूर्य और चंद्र के 2 वैमानिक के 10 इस प्रकार कुल 64 इंद्र होते हैं।
देवताओं का जघन्य आयुष्य 10000 वर्ष और उत्कृष्ट 33 सागर होता है।
देवों के चार प्रकार में पहला प्रकार है -- *भवनपति*
इन देवों के आवास नीचे लोक में है तथा भवन में रहने की अपेक्षा से वे भवनपति देव कहलाते हैं। उनके भवन रत्नप्रभा पृथ्वी में 1000 योजन नीचे जाने के बाद आते हैं। भवनपति देव अंतरों में रहते हैं। एक-एक अंतर में क्रमशः एक-एक जाति के भवनपति देव रहते हैं।
सदा कौमार्यावस्था ( कुमार अवस्था ) की भांति चंचल, अलमस्त और अलंकृत होने के कारण उन्हें कुमार कहा जाता है। वे दस प्रकार के होते हैं असुर कुमार , नाग कुमार,सुपर्ण कुमार, विद्युत कुमार,अग्नि कुमार,द्वीप कुमार, उदधि कुमार, द्विक कुमार,वायु कुमार और स्तनित कुमार ।वे प्रारंभ से अंत तक कुमार सदृश ही रहते हैं। भवनपति में देवियाँ ज्यादा है। प्रत्येक देव के अग्रमहिषी कम से कम चार देवियाँ होती हैं।
*आयुष्य --* भवनपति देवों का जघन्य आयुष्य दस हजार वर्ष उत्कृष्ट किंचित अधिक एक सागरोपम है।
*आयुष्य बंध के कारण --* असुरदेव आयुष्य बंध के चार कारण है। अज्ञानता तप में प्रतिबद्धता, प्रबल क्रोध करना, तप का अहं करना और वैर में प्रतिबद्धता।
परमाधामी देवता असुर कुमार की जाति के देव हैं। ये पंद्रह प्रकार के हैं -- अंब, अंबरीस, शाम, सबल, रूद्र, वैरूद्र, काल, महाकाल, असिपत्र, धनुष्य, कुंभ, वेतरणी, खरस्वर और महाघोष। असुरकुमार भवनपति देवों में सबसे ज्यादा ऋद्धिमान और बलवान हैं।
परमाधामी देवता नरक के जीवो को दुःख देते हैं। लेकिन यह तीन नरक भूमियों तक ही जा सकते हैं। जिस प्रकार कुछ लोग शिकार करने में, लड़ने-लड़ाने में आनंद की अनुभूति करते हैं वैसे ही परमाधामी देवों को भी नरक जीवों को सताने में आनंद की अनुभूति होती है । यह बहुत क्रूर, निर्दयी होते हैं और नारकीय जीवों को अनेक प्रकार के यातनाएं देते हैं,इसलिए इनका नाम परम अधार्मिक देवता है।
देवों के चार प्रकार में दूसरा प्रकार है -- *वाणव्यंतर देव*
वाणव्यंतर देवों का निवास स्थान तिरछे लोक में है। मेरु पर्वत की समतल भूमि के नीचे एक हजार नीचे मोटा पिण्ड है, उसके ऊपर का 100 योजन और नीचे का 100 योजन छोड़कर, आठ सौ योजन के अंतर में तिरछे लोक में प्रथम कोटि के वाण व्यन्तर देव रहते हैं। दूसरी कोटि के देव इस रत्नप्रभा पृथ्वी के प्रारंभ के सौ योजन में प्रथम व अंतिम दस-दस योजन छोड़कर अस्सी योजन में रहते हैं। वहां उनके भवन बने हुए हैं।
पृथ्वी के विविध अंतरों में जन्म लेने के कारण इन्हें व्यंतर कहा गया है। ये पर्वतों, गुफाओं,वृक्षों, जलाशयों शून्य गृहों में रहना पसंद करते हैं।
वाणव्यन्तर देव अत्यधिक कुतूहल प्रिय होते हैं। इससे उनके पुण्य अधिक क्षीण होते हैं। भगवती में उल्लेखित है कि सर्वार्थ सिद्ध के देव लाख वर्षों में जितने पुण्य भोगते हैं उतने पुण्य वाणव्यंतर देव मात्र 100 वर्षों में भोग लेते हैं।
*प्रथम कोटि के देवोंं के आठ प्रकार है* -- पिशाच, भूत, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किंपुरूष, महोरग और गन्धर्व।
*दूसरी कोटि के देवों के भी 8 प्रकार हैं-* आनपन्नी, पानपन्नी, ईसीवाई, भूईवाई,कंदिय, महाकंदिय, कोहंड, पयंग देव।
*वाणव्यंतर देव बनने के कारण*
(1) फांसी पर लटक कर आत्महत्या करना।
(2) विष-भक्षण
(3) अग्नि में जलकर मरना।
(4) जल में डूब कर मरना।
(5) भूख और प्यास से क्लांत होकर मरना।
*वाणव्यंतर देवों का आयुष्य --* जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट एक पल्योपम।
वाणव्यंतर देवों के अन्तर्गत जृम्भक देवों की एक जाति आती है। ये देव वैश्रमण देव की प्रेरणा से तीर्थंकरों के जन्म-महोत्सव आदि अवसरों पर स्वर्ण, रत्न आदि उपह्रत करते हैं। ये अन्नजृंभक आदि दस प्रकार के होते हैं।
*देवों के चार प्रकार में तीसरा प्रकार है -- ज्योतिष्क देव*
जिनके आश्रय ज्योतिर्मय विमान हैं, वे ज्योतिष्क देव हैं। हमें जो सूर्य चंद्र दिखते हैं वह वास्तव में ज्योतिष्क देवों के विमान हैं। ज्योतिष्क देवों के पांच प्रकार है -- सूर्य, चंद्र ग्रह,नक्षत्र और तारा।
मेरु पर्वत की समतल भूमि से ऊपर की 790 योजन से 900 योजन के बीच 110 योजन में ज्योतिष्क देवों के विमान है। सूर्य चंद्र आदि जो दृष्टिगोचर हो रहे हैं, वे देवों के विमान हैं। वास्तव में यह है पृथ्वियां है अंतरिक्ष में भ्रमणशील होने के कारण इन्हें विमान कह दिया जाता है। इनमें महल बने होते हैं।देव' यदा-कदा वहां आते हैं।
*ज्योतिष्क विमान चर या अचर*
जो मनुष्य लोक के मेरू पर्वत के चारों ओर चक्कर लगाते हैं, वे तो चर हैं और जो मनुष्य लोक से बाहर हैं, वे अचर हैं।
*ज्योतिष्क देवों का आयुष्य --* जघन्य पल्योपम का आठवां भाग और उत्कृष्ट एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम।
*देवों के चार प्रकार में चौथा प्रकार है -- वैमानिक देव।*
पुण्यशाली जिनका उपभोग करते हैं, वे विमान है। जिनकी उत्पत्ति विमान में हो, वे वैमानिक देव हैं। ( विमानों में रहने वाले वैमानिक कहलाते हैं। ) वैमानिक देवों के दो प्रकार हैं -- कल्पोपन्न और कल्पातीत।
*कल्पोपन्न --* जहाँ स्वामी, सेवक आदि का भेद है। जहां कल्पमर्यादा है, उसे कल्पोपन्न कहते हैं । कल्पोपन्न देवताओं के सौधर्म आदि बारह प्रकार हैं।
*कल्पातीत --* जहाँ स्वामी, सेवक का भेद नहीं है, जहां कल्प मर्यादा नहीं है, जहाँ सब अहमिन्द्र ( समान ) हैं, उसे कल्पातीत कहते हैं ।
*वैमानिक देवों का आयुष्य --* जघन्य एक पल्योपम और उत्कृष्ट तैंतीस सागरोपम।
संयमी मुनि का आयुष्य बंध वैमानिक का ही होता है।
*गति और आगति*
जीव का वर्तमान भव से आगामी भव में जाना गति है और जीव का पूर्व भव से वर्तमान में आना आगति है।
*अन्तराल-गति*
जीव एक जन्म से दूसरे जन्म में जाने के लिए जो गति करता है, उसका नाम अंतराल-गति है। वह दो प्रकार की होती है -- ऋजु और वक्र। अंतराल-गति के समय स्थूल शरीर नहीं होता। वह मृत्यु के समय छूट जाता है। कार्मण और तैजस -- ये दो सूक्ष्म शरीर जीव के साथ रहते हैं। उस समय गति का साधन कार्मण शरीर होता है।
पूर्व शरीर को छोड़कर दूसरे स्थान में जाने वाले जीव दो प्रकार के होते हैं-सिद्ध और संसारी। सिद्ध वे,जो स्थूल एवं सूक्ष्म दोनों प्रकार के शरीरों को सदा के लिए छोड़कर स्वस्थान पर अवस्थित हो जाते हैंऔर दूसरे वे, जो पहले के स्थूल-शरीर को छोड़कर नये स्थूल-शरीर को प्राप्त करते हैं। पहले प्रकार के जीव मुक्त होते हैं और दूसरे प्रकार के जीव संसारी कहलाते हैं। मोक्षगति में जानेवाले ऋजुगति से ही जाते हैं, वक्रगति से नहीं। पुनर्जन्म के लिए स्थानान्तर पर में जाने वाले जीवों की ऋजु और वक्र -- दोनों गतियाँ होती हैं। ऋजुगति और वक्रगति का आधार उत्पत्ति क्षेत्र है। जब उत्पत्ति-क्षेत्र मृत्यु-क्षेत्र की सम-क्षेणी में होता है तो जीव एक समय में वहां पहुँच जाता है। यदि उत्पत्ति-क्षेत्र विषम-श्रेणी में होता है तो वहां पहुंचने में जीव को एक, दो या तीन घुमाव करने पड़ते हैं।
ऋजु गति से स्थानान्तर करते समय जीव को नया प्रयत्न नहीं करना पड़ता। वह पूर्व-शरीर को छोड़ता है तब उसे उस ( पूर्व-शरीर ) से उत्पन्न वेग मिलता है और वह धनुष से छूटे हुए बाण की तरह सीधा नए स्थान पर पहुंच जाता है।
वक्रगति घुमाववाली होती है। इसमें घूमने का स्थान आते ही पूर्व-देह-जनित वेग मंद पड़ जाता है और सूक्ष्म-शरीर ( कार्मण-शरीर ) द्वारा जीव नया प्रयत्न करता है। यह कार्मण योग कहलाता है। घुमाव के स्थान में जीव कार्मण-योग के द्वारा नया प्रयत्न करके अपने गन्तव्य में पहुँच जाता है। अंतराल गति का कालमान जघन्य एक समय और उत्कृष्ट चार समय होता है।
*अंतराल गति*
अंतराल गति का कालमान जघन्य एक समय और उत्कृष्ट चार समय का है। जब ऋजुगति हो तब एक समय और जब वक्रगति हो तब दो, तीन या चार समय लगते हैं। जिस वक्रगति में एक घुमाव हों, उसका कालमान दो समय, जिसमें दो घुमाव हों, उसका कालमान तीन समय और जिसमें तीन घुमाव हों, उसका कालमान चार समय का होता है।
मोक्षगति में जाने वाले जीव अंतरालगति के समय सूक्ष्म और स्थूल सब शरीरों से मुक्त होते हैं। अतः उन्हें आहार लेने की जरूरत नहीं होती। संसारी जीव सूक्ष्म-शरीर सहित होते हैं। अतः उन्हें आहार की आवश्यकता होती है।
ऋजुगति करने वाले जीव जिस समय में पहला शरीर छोड़ते हैं उसी समय में दूसरे जन्म में उत्पन्न हो आहार लेते हैं। किंतु दो समय की एक घुमाववाली, तीन समय की दो घुमाव वाली और चार समय की तीन घुमाववाली वक्रगति में अनाहरक स्थिति पाई जाती है। क्रमशः पहली का पहला दूसरी का पहला और दूसरा तथा तीसरी का दूसरा और तीसरा समय अनाहरक अर्थात् आहार-शून्य होता है। जीव दो समय से ज्यादा अनाहरक नहीं रह सकता।
*जीव की अन्तराल गति*
*गति -- ऋजुगति*
घुमाव -- नहीं
समय -- एक
आहारक-अनाहारक -- आहारक
*गति -- वक्रगति*
घुमाव -- एक
समय -- दो
आहारक-अनाहारक -- पहला समय अनाहारक और दूसरा समय आहारक।
*गति -- वक्रगति*
घुमाव -- दो
समय -- तीन
आहारक-अनाहारक -- पहला - दूसरा समय अनाहारक और तीसरा समय आहारक।
*गति -- वक्रगति*
घुमाव -- तीन
समय -- चार
आहारक-अनाहारक -- दूसरा-तीसरा समय अनाहारक और पहला-चौथा समय आहारक।
*लिखने में कुछ गलती हुई तो मिच्छामि दुक्कडं।*
1⃣ 25/35 बोल कहां से आए हैं ❓
🅰 विभिन्न शास्त्रों के संग्रह से 📚
2⃣ 25/35 बोल पहले क्यों सिखाते हैं ❓
🅰 जैन धर्म की प्रारंभिक शिक्षा ' ए.बी.सी.डी.' है और ज्ञान की पहली सीढ़ी है 📚
3⃣ जीव मरकर जहाँ जाता है उसे क्या कहते हैं ❓
🅰 "गति" कहते हैं 📚
4⃣ गति किस कर्म के उदय से होती हैं ❓
🅰 नाम कर्म के उदय से होती हैं 📚
5⃣ नरक किसे कहते हैं ❓
🅰 जहाँ पर सूर्य का प्रकाश न हो, जीव अपने बुरे कर्मों को भोगता हो 📚
6⃣ तिर्यन्च किसे कहते हैं ❓
🅰 धर्म के बताये हुए मार्ग से जो तिरछा चले उसे तिर्यन्च कहते हैं ,जिसका शरीर तिरछा बढे, (तिर+अच्)।📚
7⃣ मनुष्य किसे कहते हैं ❓
🅰 मनुष्य में हेय , ज्ञेय , उपादेय के बारे में चिंतन मनन करने की शक्ति हो तथा आत्मा पर लगे सभी कर्मों को तप, संयम आदि के द्वारा क्षय कर मोक्ष प्राप्त करने की शक्ति हो 📚
8⃣ देव गति किसे कहते हैं ❓
🅰 जहाँ पर जीव अपने किये हुए कर्मों का साता रूप फल अधिक भोगते है तथा अनेक प्रकार की दिव्य भौतिक ॠध्दियों को प्राप्त करते हैं उसे देव गति कहते हैं 📚
9⃣ मनुष्य कितनी गति में जाता है ❓
🅰 पांच 📚
1⃣0⃣ समान इन्द्रियों के समूह को क्या कहते हैं ❓
🅰 जाति 📚
1⃣1⃣ जिस शरीर में जीव जन्म लेता उसे क्या कहते हैं ❓
🅰 काया 📚
1⃣2⃣ टीवी में जो रुप दिखता है वह किसका विषय हैं ❓
🅰 चक्षु इन्द्रिय का 📚
1⃣3⃣ उत्पन्न होते समय आहारादि ग्रहण करने की शक्ति को क्या कहना❓
🅰 पर्याप्ति 📚
1⃣4⃣ बल - प्राण किसे कहते हैं ❓
🅰 प्राणों की विशेष शक्ति को बल- प्राण कहते हैं 📚
1⃣5⃣ सभी शरीरों का मूल शरीर कौन सा है ❓
🅰 कार्मण शरीर 📚
1⃣6⃣ १४ वें गुणस्थान व सिद्धों में योग कितने ❓
🅰 एक भी नहीं 📚
1⃣7⃣ सामान्य- विशेष रूप से वस्तु के स्वरूप को जानना क्या है ❓
🅰 उपयोग 📚
1⃣8⃣ कर्म सावद्य है या निरवद्य हैं ❓
🅰 दोनों नहीं। क्योंकि कर्म तो अजीव है 📚
1⃣9⃣ शास्त्रों में गुणस्थान का अपर नाम क्या है ❓
🅰 जीव- स्थान। ( समवायांग सूत्र) 📚
2⃣0⃣ विषयों पर राग - द्वेष ना करना किसकी आज्ञा हैं ❓
🅰 तीर्थंकरों की 📚
2⃣1⃣ अति भयंकर कोटि का पाप क्या है ❓
🅰 मिथ्यात्व 📚
2⃣2⃣ कोई लङकी गीत गा रही हैं, कौन सा विषय हैं ❓
🅰 जीव शब्द 📚
2⃣3⃣ मिथ्यात्व जीव है या अजीव ❓
🅰 जीव 📚
2⃣4⃣ पाप और पापी एक है या दो ❓
🅰 दो ! पाप अजीव है व पापी जीव 📚
2⃣5⃣ टीवी नहीं देखना क्या है ❓
🅰 १२ वां संवर (चक्षुः इन्द्रिय निग्रह संवर)📚
2⃣6⃣ फालतू बाते करना कौन सा प्रमाद हैं ❓
🅰 विकथा 📚
2⃣7⃣ कौन सी आत्मा वंदनीय है और कौन सो आत्मा निंदनीय है ❓
🅰 चारित्र आत्मा वंदनीय व कषाय आत्मा निंदनीय है 📚
2⃣8⃣ दण्डक कौन से कर्म का उदय है ❓
🅰 नाम कर्म का 📚
2⃣9⃣ लेश्या किस कर्म के उदय से मिलती हैं ❓
🅰 तीन अशुभ लेश्या मोहनीय कर्म के उदय से व तीन शुभ लेश्या नाम कर्म के उदय से 📚
3⃣0⃣ ध्यान का उत्कृष्ट रुप क्या है ❓
🅰 प्रवृत्ति का निरोध, विचार रहित दशा ध्यान का उत्कृष्ट रुप हैं 📚
https://www.facebook.com/groups/parasprashnamanch/
*📅 शुक्रवार*
*📅 शुक्रवार*
*DSTE ~ 24/04/2020*
*समय दोपहर 2.30 से 3.00*
टोपीक :- 25 बोल
1️⃣ आठवां पुण्य क्या है❓
सभी सुपर्ब
🅰️1️⃣ काय पुण्य⭕
सभी सुपर्ब
🅰️1️⃣ काय पुण्य⭕
2️⃣नरक गति में जाने का दूसरा कारण क्या❓
🅰️2️⃣ महापरिग्रह⭕
🅰️2️⃣ महापरिग्रह⭕
3️⃣शरीर मे चिकना(स्निग्ध) क्या है❓
🅰️3️⃣ आंख की कीकी⭕
4️⃣ तीसरा दण्डक किसका है❓
🅰️4️⃣नागकुमार का⭕
🅰️3️⃣ आंख की कीकी⭕
4️⃣ तीसरा दण्डक किसका है❓
🅰️4️⃣नागकुमार का⭕
5️⃣वस्तु के समूह को क्या कहते है❓
🅰️5️⃣राशि⭕
6️⃣आपका गुणस्थान कौनसा❓
🅰️6️⃣देश विरति श्रावक गुणस्थान⭕
🅰️5️⃣राशि⭕
6️⃣आपका गुणस्थान कौनसा❓
🅰️6️⃣देश विरति श्रावक गुणस्थान⭕
7️⃣आठ कर्मों के स्वभाव को कौनसा बन्ध कहते है❓
🅰️7️⃣ प्रकृति बन्ध⭕
🅰️7️⃣ प्रकृति बन्ध⭕
8️⃣ एकेन्द्रिय में कितने बलप्राण होते है❓
🅰️8️⃣ चार बलप्राण⭕
🅰️8️⃣ चार बलप्राण⭕
9️⃣मनुष्यों के 303 भेद मे गर्भज के कितने भेद❓
🅰️9️⃣ 202 भेद⭕
🅰️9️⃣ 202 भेद⭕
🔟थके हुए पथिक को छाया देना किस द्रव्य का उदाहरण हैं❓
🔟🅰️ अधर्मास्तिकाय⭕
🔟🅰️ अधर्मास्तिकाय⭕
1️⃣1️⃣देव व नारको का कौनसा शरीर होता है❓
🅰️1️⃣1️⃣औपपातिक शरीर⭕
🅰️1️⃣1️⃣औपपातिक शरीर⭕
1️⃣2️⃣पांचवे व्रत में श्रावक जी कितने प्रकार के परिग्रह की मर्यादा करते है ❓
🅰️1️⃣2️⃣ नो आंतरिकओर 14बाह्य प्रकार के⭕
🅰️1️⃣2️⃣ नो आंतरिकओर 14बाह्य प्रकार के⭕
1️⃣3️⃣पिछली तीन लेश्या किनमे मिलती है❓
🅰️1️⃣3️⃣ वैमानिक देव में⭕
🅰️1️⃣3️⃣ वैमानिक देव में⭕
1️⃣4️⃣चुगली करना कौनसा पाप है❓
🅰️1️⃣4️⃣ चौहदवा पाप पैशुन्य⭕
🅰️1️⃣4️⃣ चौहदवा पाप पैशुन्य⭕
1️⃣5️⃣ तत्व विचारणा की रुचि को क्या कहते है❓
🅰️1️⃣5️⃣ दृष्टि⭕
🅰️1️⃣5️⃣ दृष्टि⭕
1️⃣6️⃣वैमानिक देव कितने है❓
🅰️1️⃣6️⃣ अड़तीस
🅰️1️⃣6️⃣ अड़तीस
1️⃣7️⃣केवल फलों के गुच्छे को ही तोड़ना है किस लेश्या का उदाहरण है❓
1️⃣7️⃣🅰️ चौथी तेजो लेश्या⭕
1️⃣7️⃣🅰️ चौथी तेजो लेश्या⭕
1️⃣8️⃣शुद्ध आहार आदि की गवेषणा करना क्या ❓
🅰️1️⃣8️⃣ निर्जरा का भेद भिक्षाचर्या⭕
🅰️1️⃣8️⃣ निर्जरा का भेद भिक्षाचर्या⭕
1️⃣9️⃣ बन्ध कितने है तीसरा बन्ध कौनसा है❓
🅰️1️⃣9️⃣ चार,अनुभाग बन्ध⭕
🅰️1️⃣9️⃣ चार,अनुभाग बन्ध⭕
2️⃣0️⃣त्याग व्रत पच्चक्खाण सब कौनसे ध्यान है❓
2️⃣0️⃣ 🅰️ शुभ ध्यान ⭕
2️⃣0️⃣ 🅰️ शुभ ध्यान ⭕
2️⃣1️⃣हम सबका अंतिम लक्ष्य क्या है❓
🅰️2️⃣1️⃣ मोक्ष⭕
🅰️2️⃣1️⃣ मोक्ष⭕
जग को दे आलोक उसे सविता कहते हैं
प्रतिपल समझाते रहते जीवन का फलसफा उसे 25 बोल कहते हैं
इनको प्रश्नोत्तरी से सहज समझा
दे उन्हें सुनीता जी कहते है।
बहुत 2 अनुमोदना सा
*अंजु जी गोलेच्छा*
प्रतिपल समझाते रहते जीवन का फलसफा उसे 25 बोल कहते हैं
इनको प्रश्नोत्तरी से सहज समझा
दे उन्हें सुनीता जी कहते है।
बहुत 2 अनुमोदना सा
*अंजु जी गोलेच्छा*
पाठ्शाला गुरूजी
नए प्रश्न
नए प्रश्न
1⃣➡ पच्चीस बोल कहाँ से आए ?
1⃣➡ विविध आगमों से ।
1⃣➡ विविध आगमों से ।
2⃣➡असन्नी मनुष्य कौन होते है ?
2⃣➡ 14 प्रकार के अशुचि स्थानों मेउत्पन्न होने वाले मनुष्य ।
2⃣➡ 14 प्रकार के अशुचि स्थानों मेउत्पन्न होने वाले मनुष्य ।
3⃣➡ महापरिग्रह करके नरक में कौन गये ?
3⃣➡ सुभूम चक्रवती जी
3⃣➡ सुभूम चक्रवती जी
4⃣➡जीव मरकर जहाँ जाते है उसे क्या कहते है ?
4⃣➡ गति
4⃣➡ गति
➡5⃣भव्य और अभव्य किसे कहते है ?
5⃣➡ जिसमें मोक्ष जाने की योग्यता हो वह भव्य है , जो कभी भी मोक्ष नहीं जायेगा वह अभव्य है
5⃣➡ जिसमें मोक्ष जाने की योग्यता हो वह भव्य है , जो कभी भी मोक्ष नहीं जायेगा वह अभव्य है
6⃣➡ ठाणांग सूत्र के अनुसार कौनसी काया की दया पालना कठिन है ?
6⃣➡ पृथ्वीकाय एवं वायुकाय की
6⃣➡ पृथ्वीकाय एवं वायुकाय की
7⃣➡ नरक व देवगति में किस गति से जीव आते हैं ?
7⃣➡ मनुष्य व तिय॔च गति से
7⃣➡ मनुष्य व तिय॔च गति से
8⃣➡पक्षी कितने प्रकार और उनके नाम क्या ?
8⃣➡ चार प्रकार चम॔ पक्षी ,रोम पक्षी ,वितत पक्षी , समुग पक्षी
8⃣➡ चार प्रकार चम॔ पक्षी ,रोम पक्षी ,वितत पक्षी , समुग पक्षी
9⃣➡ चक्षुइन्द्रिय किसने वश में की ?
9⃣➡ स्थूलिभद्र जी ने
9⃣➡ स्थूलिभद्र जी ने
1⃣0⃣➡10 प्राण में से मूला प्राण कौनसा है ?
1⃣0⃣➡ आयुष्य बल प्राण
1⃣0⃣➡ आयुष्य बल प्राण
1⃣1⃣➡ क्या आहारक शरीर साध्वी को प्राप्त हो सकता है ?
1⃣1⃣➡ नहीं ।केवल साधु को ही
1⃣1⃣➡ नहीं ।केवल साधु को ही
1⃣2⃣➡ आसालिया कौन सा प्राणी है ?
1⃣2⃣➡ उरपरिसप॔ जाति का सप॔
1⃣2⃣➡ उरपरिसप॔ जाति का सप॔
1⃣3⃣➡ खेचर के कितने भेद हैं ?
1⃣3⃣➡ चार भेद
1⃣3⃣➡ चार भेद
1⃣4⃣➡ असन्नी पंचेन्द्रिय के जीव एक अन्तमुहूत॔ में कितनी बार जन्म -मरण कर सकते हैं ?
1⃣4⃣➡ 24 बार
1⃣4⃣➡ 24 बार
1⃣5⃣➡गति कितने प्रकार नाम बताई ?
1⃣5⃣➡ 2 , ऋजु गति, वक्र गति
1⃣5⃣➡ 2 , ऋजु गति, वक्र गति
1⃣6⃣➡अवधिदश॔न में कितने योग पाये जाते हैं ?
1⃣6⃣➡ 15 योग
1⃣6⃣➡ 15 योग
1⃣7⃣➡रसनेन्द्रिय किसने वश में की ?
1⃣7⃣➡ धन्ना मुनी , धम॔ रूचि अणगार
1⃣7⃣➡ धन्ना मुनी , धम॔ रूचि अणगार
1⃣8⃣➡तैजस शरीर किसे कहते हैं ?
1⃣8⃣➡ जो कच्चे - पक्के आहार को पचाता है
1⃣8⃣➡ जो कच्चे - पक्के आहार को पचाता है
1⃣9⃣➡नपुंसक वेद में कितने उपयोग पाए जाते हैं ?
1⃣9⃣➡ 10 उपयोग
1⃣9⃣➡ 10 उपयोग
2⃣0⃣➡प्रचला -प्रचला किसे कहते है ?
2⃣0⃣➡ चलते -फिरते आने वाली निद्रा को प्रचला -प्रचला कहते है
2⃣0⃣➡ चलते -फिरते आने वाली निद्रा को प्रचला -प्रचला कहते है
2⃣1⃣➡ स्पश॔नेन्द्रिय किसने वश में की ?
2⃣1⃣➡गजसुकुमाल मुनि ने,विजय सेठ विजया सेठानी
2⃣1⃣➡गजसुकुमाल मुनि ने,विजय सेठ विजया सेठानी
2⃣2⃣➡ कषाय आत्मा किसे कहते है ?
2⃣2⃣➡ क्रोध ,मान, माया,लोभ रुप कषाय युक्त आत्मा को कषाय आत्मा कहते है
2⃣2⃣➡ क्रोध ,मान, माया,लोभ रुप कषाय युक्त आत्मा को कषाय आत्मा कहते है
2⃣3⃣➡ अज्ञान के कितने भेद हैं ? कौनसे ?
2⃣3⃣➡ तीन भेद 1)मति अज्ञान ,2)श्रुत अज्ञान ,3) विभंग ज्ञान
2⃣3⃣➡ तीन भेद 1)मति अज्ञान ,2)श्रुत अज्ञान ,3) विभंग ज्ञान
2⃣4⃣➡ध्यान किसे कहते हैं ?
2⃣4⃣➡ चित्त की एकाग्रता को ध्यान कहते हैं
2⃣4⃣➡ चित्त की एकाग्रता को ध्यान कहते हैं
2⃣5⃣➡सास्वादन गुणस्थान वाले जीव कितने क्षेत्र का स्पश॔ करते हैं ?
2⃣5⃣➡ 12 राजू क्षेत्र को
2⃣5⃣➡ 12 राजू क्षेत्र को
2⃣6⃣➡ अभिग्रह के भेद कितने ? नाम बताई ?
2⃣6⃣➡ 4 भेद है द्रव्य से ,क्षेत्र से ,काल से, भाव से
2⃣6⃣➡ 4 भेद है द्रव्य से ,क्षेत्र से ,काल से, भाव से
2⃣7⃣➡ क्षमा धम॔ किसको जीतने के लिए कहा गया है ?
2⃣7⃣➡ क्रोध कषाय रूपी शत्रु को जीतने के लिये
2⃣7⃣➡ क्रोध कषाय रूपी शत्रु को जीतने के लिये
2⃣8⃣➡श्रोत्रेन्द्रिय किसने वश में की ?
2⃣8⃣➡ अजुन॔माली अणगार ने
2⃣8⃣➡ अजुन॔माली अणगार ने
2⃣9⃣➡ पंद्रहवां षरीषह कौनसा है ? उसके विजेता कौन बने ?
2⃣9⃣➡ अलाभ षरीषह ,ढंढण अणगार (कृष्ण वासुदेव के पुत्र
2⃣9⃣➡ अलाभ षरीषह ,ढंढण अणगार (कृष्ण वासुदेव के पुत्र
3⃣0⃣➡ सिध्द भगवान कैसे विराजमान हैं
3⃣0⃣➡ज्योति से ज्योति विराजमान है ।
3⃣0⃣➡ज्योति से ज्योति विराजमान है ।
तीन विकलेन्द्रिय में 25बोल में से कितने बोल होते हैं
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