प्रातिहार्य
प्रातिहार्य
१. काव्य नं २८ में किसका वर्णन है ?
उत्तर—‘‘अशोक वृक्ष’’ नाम के प्रथम प्रातिहार्य का वर्णन है।
प्रश्न २. प्रातिहार्य किसे कहते हैं ?
उत्तर—भगवान जिनेन्द्र की महिमा विशेष का बोध कराने वाले समवसरण में स्थित ८ चिन्हों को प्रातिहार्य कहते हैं।
प्रश्न ३. ८ प्रातिहार्य कौन—कौन से हैं ?
उत्तर—१. अशोक वृक्ष, २. सिंहासन, ३. चंवर, ४. त्रय छत्र, ५. देवदुन्दुभि, ६. पुष्पवृष्टि, ७. भामण्डल, ८. दिव्यध्वनि।
प्रश्न ४. इन प्रातिहार्यों की रचना कौन करता है ?
उत्तर—इन्द्र की आज्ञा से कुबेर द्वारा होती है।
प्रश्न ५. अशोक वृक्ष किसे कहते हैं ?
उत्तर—जिस वृक्ष के नीचे भगवान योग धारण कर वैâवल्य को प्राप्त होते हैं वह अशोक वृक्ष कहलाता है।
प्रश्न ६. इस वृक्ष की कोई विशेषता बताइये ?
उत्तर—यह वृक्ष शोक, संताप, रोग आदि दोषों का निवारक हो जाता है।
प्रश्न ७. यह वृक्ष कितना ऊँचा होता है ?
उत्तर—तीर्थंकरों की अवगाहना से १२ गुणा अवगाहना वाला होता है।
प्रश्न १. काव्य नं. २९ में किसका वर्णन है ?
उत्तर—सिंहासन प्रातिहार्य का वर्णन है।
प्रश्न २. सिंहासन किसे कहते हैं ?
उत्तर—उत्कृष्ट आसन ही िंसहासन कहलाता है।
प्रश्न ३. वह सिंहासन कैसा हैं ?
उत्तर—विविध प्रकार की मणि—मुक्ताओं की चमचमाती, जगमग किरणों से दैदीप्यमान है।
प्रश्न ४. अर्हंत भगवान का शरीर कैसा है ?
उत्तर—सुवर्ण के समान दैदीप्यमान है।
प्रश्न ५. किसकी शोभा किससे दैदीप्यमान है ?
उत्तर—अर्हंत भगवान के विराजमान होने से सिंहासन दैदीप्यमान है।
काव्य नं ३० के ७ प्रश्नोत्तर
प्रश्न १. काव्य नं ३० में किसका वर्णन है ?
उत्तर—चँवर नामक प्रातिहार्य का वर्णन है।
प्रश्न २. चँवर किसे कहते हैं ?
उत्तर—जो भगवान जिनेन्द्र के दोनों ओर व्यजन (पंखे) के समान आजू—बाजू से ढोरे जाते हैं, चँवर कहलाते हैं।
प्रश्न ३. भगवान जिनेन्द्र के आजू—बाजू में कितने चँवर ढुराये जाते हैं ?
उत्तर—चौंसठ चँवर ढुराये जाते हैं।
प्रश्न ४. चँवर किस वर्ण वाले होते हैं ?
उत्तर—कुंदपुष्प के समान अत्यन्त धवल, उज्जवल, शुभ्र होते हैं।
प्रश्न ५. चँवर ढोरने वाले क्या मनुष्य होते हैं ?
उत्तर—नहीं, नहीं ! चौंसठ देव चौंसठ चँवरों को ढोरते हैं।
प्रश्न ६. ढुरते हुए चँवरों से क्या शिक्षा मिलती हैं ?
उत्तर—चँवर की तरह मृदु, धवल एवं विनयी बनों, क्योंकि वो चँवर नीचे से ऊपर की ओर जाते हैं अर्थात् जो प्रभु चरणों में झुकता है, नतमस्तक होता है वहीं नियम से ऊपर अर्थात् मोक्ष में जाता है।
काव्य नं ३१ के ७ प्रश्नोत्तर
प्रश्न १. काव्य नं. ३१ में किसका वर्णन है ?
उत्तर—त्रय छत्र नामक प्रातिहार्य का वर्णन है ?
प्रश्न २. छत्र किसे कहते हैं ?
उत्तर—जो धूप, वर्षा आदि को रोकने के लिये सिर के ऊपर लगाया जाता हे, वह छत्र कहलाता है।
प्रश्न ३. भगवान के ऊपर छत्र क्या वर्षा, धूप की बाधा को रोकने के लिए ही लगाये जाते हैं ?
उत्तर—नहीं ! नहीं ! भगवान को एक भी बाधा बाधित नहीं करतीं, अपितु उनकी बाह्य विभूति/ऐश्वर्य को निरूपित करती हैं।
प्रश्न ४. भगवान् जिनेन्द्र के ऊपर लगे छत्र क्या दर्शाते हैं ?
उत्तर—सम्राटों के सम्राट, चक्रवर्ती तथा इन्द्रों के इंद्र अर्थात् इनके स्वामी पने को दर्शाते हैं।
प्रश्न ५. भगवान् जिनेन्द्र के ऊपर तीन छत्र किसके प्रतीक हैं ?
उत्तर—तीन छत्र त्रयलोकों के एक छत्र राज्य के द्योतक हैं अर्थात् तीनों जगत के परमेश्वर पने को प्रगट करते हैं।
प्रश्न ६. वह छत्र किस प्रकार की शोभा से युक्त हैं ?
उत्तर—वह छत्र चंद्रमा की कांति के समान, मोतियों के समूह वाली झालर से युक्त, अत्यन्त शोभा को बढ़ाने वाले हैं।
प्रश्न ७. भगवान तीनों लोकों के स्वामी हैं तो क्या समवसरण में नारकी नहीं होते ?
उत्तर—नहीं, समवसरण में नारकी नहीं होते हैं।
'काव्य नं ३२ के ८ प्रश्नोत्तर
प्रश्न १. काव्य नं. ३२ में किसका वर्णन है ?
उत्तर—दुंदुभि वाद्य नामक प्रातिहार्य का वर्णन है।
प्रश्न २. दुंदुभि किसे कहते हैं ?
उत्तर—मधुर, गूढ़ ऊँचे स्वर से निनादित होने वाले देवोपनीत दिव्य घोष को दुंदुभि कहते हैं।
प्रश्न ३. ये दुंदुभि वाद्य कौन बजाता है ?
उत्तर—देवगण।
प्रश्न ४. दुंदुभिवाद्य देवगण कहाँ पर बजाते हैं ?
उत्तर—भगवान् जिनेन्द्र देव समक्ष एवं विहार करते समय।
प्रश्न ५. समवसरण में कितने वाद्य बजाते हैं ?
उत्तर—साढ़े बारह करोड़।
प्रश्न ६. दुंदुभि वाद्य किसको क्या कहता है ?
उत्तर—तीनों लोकों के प्राणियों को शुभ समाचार देने वाला है।
प्रश्न ७. दुंदुभि वाद्य सुनकर कौन से प्राणी जागते हैं ?
उत्तर—विषय कषाय से र्मूिच्छत प्राणी जागकर शुभ समागम के इच्छुक हो जाते हैं।
प्रश्न ८. दुंदुभि वाद्य क्या करने वाला है ?
उत्तर—समीचीन धर्म और धर्मराज तीर्थंकर की जय—जयकार करने वाला तथा उनका यशोगान करने वाला है।
काव्य नं ३३ के ७ प्रश्नोत्तर
प्रश्न १. काव्य नं. ३३ में किस प्रातिहार्य का वर्णन है ?
उत्तर—पुष्पवृष्टि नामक प्रातिहार्य का वर्णन है।
प्रश्न २. पुष्पवृष्टि प्रातिहार्य क्या है ?
उत्तर—देवगणों के द्वारा आकाश से होने वाली सुगन्धित जल मिश्रित मंद—मंद वायु के साथ पुष्पों की वर्षा ही पुष्पवृष्टि प्रातिहार्य है।
प्रश्न ३. पुष्पवृष्टि देवगण कहाँ पर करते हैं ?
उत्तर—समवसरण में।
फुलों की कितनी वर्षा होती है?
घुटने प्रमाण तक
प्रश्न ४. कौन से पुष्पों की वृष्टि करते हैं ?
उत्तर—मंदार, सुन्दर, नमेरु, परिजात, और संतानक नाम के कल्पवृक्षों के सुन्दर—सुन्दर पुष्पों की वृष्टि करते हैं।
प्रश्न ५. वह पुष्पवृष्टि किस प्रकार की होती है ?
उत्तर—वह पुष्पवृष्टि ऊध्र्वमुखी अर्थात् पुष्पों के मुख ऊपर की ओर तथा डंठल भाग नीचे की ओर रहता है, इस प्रकार होती है।
प्रश्न ६. कल्पवृक्ष किसे कहते हैं ?
उत्तर—अपनी इच्छा के योग्य पदार्थों को देने वाले कल्पवृक्ष कहलाते हैं। जो भोगभूमि और देवों के नन्दनवन में पाये जाते हैं।
प्रश्न ७. क्या इस पुष्पवृष्टि से समवसरण में भव्यजनों को बाधा नहीं होती ?
उत्तर—नहीं, बाधा नहीं अपितु सुख की प्रतीति होती है।
काव्य नं ३४ के ७ प्रश्नोत्तर
प्रश्न १. आचार्य भगवान ने इस काव्य में किसका वर्णन किया है ?
उत्तर—भामण्डल नामक प्रातिहार्य का।
प्रश्न २. भामण्डल किसे कहते हैं ?
उत्तर—भगवान जिनेन्द्र की देह से नि:सृत रश्मियों से जो अत्यन्त शोभनीय प्रभामण्डल बनता है वही दैदीप्यमान कांति का गोलाकार मण्डल ‘‘भामण्डल’’ कहलाता है।
प्रश्न ३. यह भामण्डल कहाँ पर बनता है ?
उत्तर—समवसरण में विराजमान अर्हंत भगवान के मस्तक के पीछे बनी गोलाकार दर्पणवत् आकृति भामण्डल है।
प्रश्न ४. भामण्डल की विशेषता क्या है ?
उत्तर—भव्यजनों के ७—७ भवों को परिलक्षित करता है।
प्रश्न ५. वह सात भव कौन—कौन से हैं ?
उत्तर—३ अतीत यानि भूतकाल के, ३ भविष्यकाल के और १ वर्तमान का।
प्रश्न ६. ये भामण्डल किसे लज्जित करने वाला है ?
उत्तर—तीनों लोकों के कांतिवान पदार्थों की कांति को लज्जित करने वाला है।
प्रश्न ७. भामण्डल की कांति किसे जीत रही है ?
उत्तर—भामण्डल की कांति रात्रि को भी जीत रही हैं।
प्रश्न १. इस काव्य में किसका वर्णन है ?
उत्तर—दिव्य ध्वनि प्रातिहार्य का वर्णन हैं।
प्रश्न २. दिव्य ध्वनि किसे कहते हैं ?
उत्तर—भगवान के परमौदारिक शरीर से खिरने वाली ऊँकार रूप वाणी दिव्यध्वनि कहलाती है।
प्रश्न ३. दिव्य ध्वनि कब खिरती हैं ?
उत्तर—दिव्यध्वनि प्रात:, मध्यान्ह, सांय/ अपरान्हि और मध्यरात्रि में छ: छ: घड़ी के अन्तराल से ४ बार खिरती हैं।
प्रश्न ४. क्या असमय में भी खिरती हैं ?
उत्तर—हाँ ! भगवान की दिव्यध्वनि चक्रवर्ती आदि पुण्य पुरुषों के कारण असमय में भी खिरती है।
प्रश्न ५. भगवान की दिव्यदेशना किसके अभाव में नहीं खिरती ?
उत्तर—गणधर परमेष्ठी के अभाव में।
प्रश्न ६. भगवान की दिव्य ध्वनि कितनी दूर तक सुनाई पड़ती है ?
उत्तर—एक योजन अर्थात् ४ कोस तक।
प्रश्न ७. दिव्य ध्वनि शरीर के किस अंग से खिरती है ?
उत्तर—सर्वांग से या मुख से अनक्षरात्मक / अक्षरात्मक रूप खिरती हैं।
प्रश्न ८. भगवान की दिव्य ध्वनि किस भाषा में सुनाई पड़ती है ?
उत्तर—मागध जाति के देवों के माध्यम से सात सौ अठारह भाषाओं में परिणम हो सुनाई देती है।
प्रश्न १. आचार्य भगवान् ने इस काव्य में किसका वर्णन किया है ?
उत्तर—देवोंकृत स्वर्ण कमल की रचना जो प्रभु के चरण तले होती है ऐसा देवकृत अतिशय का वर्णन है।
प्रश्न २. देवगण स्वर्णकाल की रचना कब करते हैं ?
उत्तर—भगवान जिनेन्द्र के विहार के समय।
प्रश्न ३. विहार के समय कितने स्वर्ण कमलों की रचना होती है ?
उत्तर—२२५ कमलों की रचना होती है।
प्रश्न ४. तो जिनेन्द्र प्रभू कमलों पर चरण रखते हुए विहार करते हैं ?
उत्तर—नहीं ! नहीं ! कमलों पर नहीं वरन् कमल से चार अंगुल ऊपर अधर में ही विहार करते हैं।
प्रश्न ५. भगवान किस आसन से विहार करते हैं ?
उत्तर—खड़गासन मुद्रा में ही विहार करते हैं।
प्रश्न ६. क्या भगवान का विहार सम्पूर्ण भरत क्षेत्र में होता है ?
उत्तर—नहीं, सम्पूर्ण भरतक्षेत्र में नहीं, अपितु भरतक्षेत्र के छहखंडों (पांच मलेच्छ खण्ड और एक आर्यखण्ड) में से मात्र एक आर्यखण्ड में ही होता है।
प्रश्न ७. भगवान जिनेन्द्र धरती से कितने ऊपर आकाश में विहार करते हैं ?
उत्तर—धरती से ५००० धनुष ऊपर
प्रश्न 99 - देवकृत 14 अतिश्यों को पद् में बताइये।
उत्तर -
प्रश्न 100 - आठ प्रतिहार्यों के नाम बताइये?
उत्तर - 1 - अशोक वृक्ष
2 - रत्नमयी सिंहासन
3 - तीन छत्र
4 - भामण्डल
5 - दिव्य ध्वनि
6 - देवों द्वारा पुष्पवृष्टि
7 - चैसठ चंवर
8 - दुंदुभि बाजे बजना।
2 - रत्नमयी सिंहासन
3 - तीन छत्र
4 - भामण्डल
5 - दिव्य ध्वनि
6 - देवों द्वारा पुष्पवृष्टि
7 - चैसठ चंवर
8 - दुंदुभि बाजे बजना।
प्रश्न 101 - अशोक वृक्ष किसे कहते हैं?
उत्तर - भगवान को जिस वृक्ष के नीचे केवलज्ञान होता है उसे अशोकवृक्ष कहते हैं। यह वृक्ष प्राणियों के शोक हरने के कारण अपने नाम की सार्थकता को धारण करता है।
प्रश्न 102 - भामण्डल किसे कहते हैं?
उत्तर - भगवान के शरीर की प्रभा को भामण्डल कहते हैं।
प्रश्न 103 - भामण्डल की क्या विशेषता है?
उत्तर - इस भामण्डल में भव्य जीवों केा अपने सात भव दिखायी पड़ते हैं। तीन पहले के एक वर्तमान का तथा तीन आगे के।
प्रश्न 104 - अष्ट प्रतिहार्य को बताने वाला पद्य बताइये।
उत्तर - पद्य इस प्रकार है-
उत्तर - विशेष शोभा की वस्तुओं को प्रातिहार्य कहते हैं।प्रश्न 105 - प्रातिहार्य किसे कहते हैं?
प्रश्न 106 - अनंत चतुष्टय के नाम बताइये।
उत्तर - 1 अनंतदर्शन 2 अनंतज्ञान 3 अनंतसुख एव 4 अनंतवीर्य।
प्रश्न 107 - उपरोक्त को अनंत चतुष्टय क्यों कहते हैं?
उत्तर - अंत रहित होने से इन्हें अनंत कहते हैं तथा ये चार होने से चतुष्ट कहलाते हैं।
प्रश्न 108 - अनंत दर्शन का क्या महत्व है?
*ता:-. *15 : 05;2020*
*Topic: *प्रातिहार्यऔऱ 4 अतिशय*
1️⃣ भगवान विहार करते है तो कितने प्रातिहार्य होते है?
🅰️ 5,प्रातिहार्य होते है।
2️⃣. प्रातिहार्यों की रचना कौन करता है ?
🅰️—इन्द्र की आज्ञा से कुबेर द्वारा होती है।
3️⃣विविध प्रकार की मणि—मुक्ताओं की चमचमाती, जगमग किरणों से दैदीप्यमान होता हैं क्या?
🅰️ वह सिंहासन होता हैं।
4️⃣कुंदपुष्प के समान अत्यन्त धवल, उज्जवल, शुभ्र वर्ण वाले क्या होते है?
🅰️. चँवर होते हैं ?
5️⃣. ढुलते चामर का वर्णन भक्तामर के कौन से पद में है?
🅰️30 पद में
6️⃣जिससे शोक, संताप, रोग आदि दोषों का निवारण हो जाता है।
🅰️. अशोक वृक्ष।
7️⃣सम्राटों के सम्राट, चक्रवर्ती तथा इन्द्रों के इंद्र अर्थात् इनके स्वामी पने को कौन दर्शाता हैं?
🅰️छत्र
8️⃣. भगवान की दिव्य ध्वनि कितनी भाषा में सुनाई पड़ती है ?
🅰️मागध जाति के देवों के माध्यम से सात सौ अठारह भाषाओं में परिणम हो सुनाई देती है।
9️⃣. समवसरण में कितने वाद्य बजाते हैं ?
उत्तर—साढ़े बारह करोड़।
1️⃣0️⃣ 8 प्रातिहार्य,व 4 अतिशय किस में सुत्र में वर्णित है।
🅰️. समवायांग सूत्र एँव हरिभद्र
कृत संबोध सत्तरी में वर्णित है।
1️⃣1️⃣चँवर ढोरने वाले क्या मनुष्य होते हैं ?
🅰️नहीं, । चौंसठ देव चौंसठ चँवरों को ढोरते हैं।
1️⃣2️⃣भगवान् जिनेन्द्र के ऊपर तीन छत्र किसके प्रतीक हैं ?
उत्तर—तीन छत्र त्रयलोकों के एक छत्र राज्य के द्योतक हैं अर्थात् तीनों जगत के परमेश्वर पने को प्रगट करते हैं।
1️⃣3️⃣ पुष्पवृष्टि किस प्रकार की होती है ?
उत्तर—वह पुष्पवृष्टि ऊध्र्वमुखी
अर्थात् पुष्पों के मुख ऊपर की ओर तथा डंठल भाग नीचे की ओर रहता है, इस प्रकार होती है।
1️⃣4️⃣ भगवान की दिव्यदेशना किसके अभाव में नहीं खिरती ?
उत्तर—गणधर परमेष्ठी के अभाव में।
1️⃣5️⃣ प्रातिहार्य का अर्थ?
🅰️विशेष शोभा की वस्तुओं को प्रातिहार्य कहते हैं/इंद्रजाल भी
1️⃣6️⃣कौनभव्यजनों के ७—७ भवों को परिलक्षित करता है।
🅰️भामण्डल
३ अतीत यानि भूतकाल के, ३ भविष्यकाल के और १ वर्तमान का।
1️⃣7️⃣ क्या असमय में दिव्य ध्वनि भी खिरती हैं ?
उत्तर—हाँ ! भगवान की दिव्यध्वनि चक्रवर्ती आदि पुण्य पुरुषों के कारण असमय में भी खिरती है।
.1️⃣8️⃣ कौन से पुष्पों की वृष्टि करते हैं ?
🅰️उत्तर—मंदार, सुन्दर, नमेरु, परिजात, और संतानक नाम के कल्पवृक्षों के सुन्दर—सुन्दर पुष्पों की वृष्टि करते हैं।
1️⃣9️⃣भामण्डल की कांति किसे जीत रही है ?
उत्तर—भामण्डल की कांति रात्रि को भी जीत रही हैं।
2️⃣0️⃣विषय कषाय से र्मूिच्छत प्राणी भी इसे सुनकर जागकर शुभ समागम के इच्छुक हो जाते हैं।
🅰️देवदुन्दुभी
2️⃣1️⃣भगवान किस आसन से विहार करते हैं ?
उत्तर—खड़गासन मुद्रा में ही विहार करते हैं।
2️⃣2️⃣मध्यान्ह, सांय/ अपरान्हि और मध्यरात्रि में छ: छ: घड़ी के अन्तराल से ४ बार
इसका प्रयोग होता है?
🅰️. दिव्य ध्वनि खिरती हैं।
2️⃣3️⃣. विहार के समय कितने स्वर्ण कमलों की रचना होती है ?
🅰️225 कमलों की रचना होती है
2️⃣4️⃣ भगवान धरती से कितने ऊपर आकाश में विहार करते हैं ?
उत्तर—धरती से ५००० धनुष ऊपर
2️⃣5️⃣मधुर, गूढ़ ऊँचे स्वर से निनादित होने वाले देवोपनीत दिव्य घोष को
🅰️देवदुन्दुभी
2️⃣6️⃣प्रश्न ५. सिंहासन की शोभा किससे दैदीप्यमान है ?
उत्तर—अर्हंत भगवान के विराजमान होने से सिंहासन दैदीप्यमान है।
2️⃣7️⃣भगवान के ऊपर छत्र क्या वर्षा, धूप की बाधा
को रोकने के लिए ही लगाये जाते हैं ?
🅰️नहीं, विभूति/ऐश्वर्य को दर्शाने के लिए
2️⃣8️⃣ तीर्थंकर की जय—जयकार करने वाला तथा उनका यशोगान करने वाला कौन है?
🅰️देवदुन्दुभी
2️⃣9️⃣ मरकत मणि से बना होता तथा रत्नमय चित्र- फूलो सहित था।
🅰️अशोक वृक्ष
भगवान के समवशरण को विशिष्ट बनाने देव देते प्रातिहार्य
अशोक वृक्ष, सिंहासन, भामंडल
तीन छत्र, चमर, सुयरपुष्पवृष्टि
औऱ दुन्दुभि होते उनमें अनिवार्य
हम भी प्रातिहार्य की तरह मृदु, धवल एवं विनयी बन जाए,
औऱ प्रभु चरणों में झुक जाये ।
नतमस्तक होता है
वहीं मोक्ष पाता है।
बस आप सभी की धर्मानुरागता
यूँ ही बढ़ती जाए
सभी भवि हो भव्यता पाये।
कुछ भी जिनाज्ञा विपरीत कहा हो तो
🙏*मिच्छामि दुक्कडम*🙏
*अंजू गोलछा*
।
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