पहलाआरा
आज हम पहले आरा के बारे में जानेगे।
१.अवसर्पिणी काल के पहले आरा का नाम क्या है?
१उत्तर:- सुषम-सुषमा
२. अवसर्पिणी काल का पहला आरा कैसा था?
२ उत्तर:- बड़ा ही रमणीय,सुरम्य था।
३. पहले आरे का भूमिभग कैसा था?
३उत्तर :- समतल,रमणीय एवं नाना प्रकार की काली सफ़ेद आदि पंचरंगी तृणो एव मणियो से उपशोभित था।
४. पहले आरे में वृक्ष कौनसे थे?
४ उत्तर:- उद्धाल ,कद्धाल , कृतमाल, नृतमाल, दन्तमाल नागमाल आदि अनेक उत्तम जाती के वृक्ष थे । जो फलों से लदे रहते थे और अतीव कांति से सुशोभित थे।
५.पहले आरे में जहाँ तहाँ कौनसे वृक्ष अधिक पाये जाते थे?
५.उत्तर:- दस प्रकार के कल्पवृक्ष जहाँ तहाँ समूह रूप में पाये जाते थे।
६. पहले प्रकार के कल्पवृक्ष कौनसे है?
६.उत्तर:- मत्तांग कल्पवृक्ष।
७. मत्तांग नामक कल्पवृक्ष क्या देता है?
७.उत्तर मादक रस प्रदान करता,जिसको प्राप्त कर प्राणी तृप्त हो जाते थे।
८. दूसरे प्रकार के कल्पवृक्ष कौनसे है?
८.उत्तर:- भृत्तांग कल्पवृक्ष।
९. भृत्तांग कल्पवृक्ष क्या देता है
९ उत्तर:- विविध प्रकार के भोजन-पात्र-बर्तन देने वाले होते है।
१०. तीसरे प्रकार के कल्पवृक्ष का क्या नाम है?
१० उत्तर:- त्रुटितांग।
११.त्रुटितांग कल्पवृक्ष क्या देता है?
११उत्तर:- नानाविध वाध देता है।
१२. चौथे प्रकार के कल्पवृक्ष का क्या नाम है?
१२.उत्तर:- दीपशिखा कल्पवृक्ष।
१३.दीपशिखा कल्पवृक्ष क्या देता है?
१३उत्तर :- दीपक जैसा प्रकाश करते है।
१४. पांचवे प्रकार के कल्पवृक्ष का क्या नाम है?
१४.उत्तर :-जोतिषिक कल्पवृक्ष।
१५. जोतिषिक कल्पवृक्ष कैसे होते है?
१५.उत्तर :- सूर्य, चंद्र जोतिषिक जैसा उधोत प्रकाश करने वाले होते है।
१६. छठे प्रकार के कल्पवृक्ष का क्या नाम है?
१६.उत्तर :- चित्रांग कल्पवृक्ष।
१७. चित्रांग कल्पवृक्ष क्या क्या देता है?
१७.उत्तर विविध प्रकार की मालाएं आदि देने वाले होते है।
१८. सातवें प्रकार के कल्पवृक्ष का क्या नाम है?
१८.उत्तर:- चित्र रास कल्पवृक्ष।
१९. चित्ररास कल्पवृक्ष क्या देते है?
१९ उत्तर:- विविध प्रकार के रास देने वाले षट् रास भोजन देने वाले होते है।
२०. आठवे प्रकार के कल्पवृक्ष का क्या नाम है?
२०.उत्तर :- मण्यंग कल्पवृक्ष।
२१.मण्यंग कल्पवृक्ष क्या देते है?
२१.उत्तर:- विविध आभूषण प्रदान करते है।
२२. नवमें प्रकार के कल्पवृक्ष कौनसे है?
२२.उत्तर:- गेहकर कल्पवृक्ष।
२३.गेहकर कल्पवृक्ष क्या देते है?
२३.उत्तर:- विविध प्रकार के गृह निवास स्थान प्रदाता जिसमें युगलिक आसानी से सुखपूर्वक रह सकते है।
२४. दसवें प्रकार के कल्पवृक्ष कौनसे है?
२४.उत्तर:- अनग्न कल्पवृक्ष।
२५ .अनग्न कल्पवृक्ष क्या देते है?
२५.उत्तर:- वस्त्रों की आवश्यकता पूर्ति करने वाले सुंदर सुखद महीन वस्त्र देने वाले होते है।
२६. पहले आरे के मनुष्यो का आकर स्वरुप कैसा था?
२६ उत्तर :- पहले आरे के मनुष्य बड़े सुन्दर दर्शनीय होते थे,सारे अंग
सुव्यवसिथत होते थे।
२७. पहले आरे की स्त्रियाँ कैसी होती थी?
२७ उत्तर :- श्रेष्ठ और सर्वाग सुंदरता युक्त्त तथा महिलोचित गुणों से युक्त्त होती थी।
२८. पहले आरे के मनुष्य कितने समय आहार लेते थे?
२८ उत्तर:- तीन दिन के बाद।
२९. पहले आरे के मनुष्य कितना आहार करते थे?
२९ उत्तर:- तुवर की दाल जितना सा आहार करते थे।
३०. पहले आरे के मनुष्यो की पाचन शक्त्ति कैसे थी?
३० उत्तर:- कबूतर की तरह प्रबल पाचन शक्त्ति वाले थे।
३१. पहले आरे के मनुष्यो को कितनी पसलियाँ थी?
३१ उत्तर:- २५६ पसलियाँ होती थी।
३२. पहले आरे के मनुष्यो की श्वास कैसे होती थी?
३२ उत्तर:- पदम उत्पल तथा गंध द्रव्यों जैसी सुग़धित थी।
३३. पहले आरे के मनुष्यो के मुख कैसे होते थे?
३३ उत्तर :- उनके मुख सदा सुवासित सुगंध् युक्त्त रहते थे।
३४. पहले आरे के मनुष्यो की प्रकृति कैसे होती थी?
३४ उत्तर :- उनके क्रोध,मान,माया,लोभ मंद एवं हल्के होते थे उनका स्वभाव सरल एवं मृदु होते थे।
३५. पहले आरे के मानवों के कितनी संताने होती थी?
३५.उत्तर :- दो संताने -एक पुत्र और एक पुत्री।
३६ . पहले आरे के समय पृथ्वी का स्वाद कैसा था?
३६ उत्तर:- मिश्री जैसा था।
३७. पहले आरे के मनुष्यो कहाँ रहते थे?
३७ उत्तर:- वृक्षों रूप घरों में रहते थे।
३८. पहले आरे में भारत क्षेत्र में सोना चांदी हीरें जवाहरात होते थे?
३८ उत्तर:- हाँ, होते थे पर उन मनुष्यों के उपयोग में नहीं आते थे।
३९ . पहले आरे के मनुष्यो की आयु कितनी होती थी?
३९ उत्तर:- लगते आरे तीन पल्योपम एवं उतरते आरे दो पल्योपम की आयु थी।
४०. क्या पहले आरे के मानवों को एक-दूसरे के प्रति शत्रु भाव होता था?
४० उत्तर:- नहीं, वे मनुष्य वैरानुबंध से रहित होते थे।
४१. क्या पहले आरे में माता-पिता,भाई-बहेन , पुत्र-पुत्री,पुत्र-पुत्रवधु आदि के रिश्ते होते थे?
४१ उत्तर:- हाँ, होते थे परन्तु उन मनुष्यों का तीव्र प्रेम बंध नहीं होता था।
४२. क्या पहले आरे में बुखार,हार्टअटैक ,शूल रोग होते थे?
४२.उत्तर:- नहीं,उस समय के मानवों को कोई भी रोग नहीं होता था।
४३. क्या पहले आरे के मानवों में विवाह होते थे?
४३ उत्तर:- नहीं, विवाह प्रणाली नहीं थी।
४४. पहले आरे में कितने प्रकार के मनुष्य रहते थे?
४४ उत्तर:- छह प्रकार के मनुष्य रहते थे।
४५ पहले आरे में पहले आरे के मनुष्यो का आकर स्वरुप कैसा था?
२६ उत्तर :- पहले आरे के मनुष्य बड़े सुन्दर दर्शनीय होते थे,सारे अंग
सुव्यवसिथत होते थे।
प्रकार के कौनसे मनुष्य रहते है?
४५ उत्तर:-
१. पदम् गंध-पदम् कमल के समान गंध वाले
२. मृग गंध - कस्तुरी सदृश गंध वाले
३. अभय- ममत्व रहित
४. तेजस्वी
५. सह - सहनशील
६. शनैशचरी - उत्सुकता नहीं होने से धीरे-धीरे चलने वाले।
४६. क्या पहले आरे में कार,बस,ट्रेन प्लेन आदि साधन थे?
४६.उत्तर:- नहीं,वे मनुष्य पाद विहारी -पैदल चलने वाले होते थे।
४७. क्या पहले आरे में गाय भैस,बकरी,भेड़ आदि थे?
४७.उत्तर :- यह पशु होते थे,पर उन मनुष्यों के उपयोग में नहीं आते ,वे मनुष्य उनसे दूध आदि प्राप्त नहीं करते थे।
४८. क्या पहले आरे में हाथी,घोड़े,ऊँट आदि थे?
४८.उत्तर:- हाँ,होते थे,पर उन मनुष्यों के सवारी के काम नहीं आते थे।
४९. क्या पहले आरे में गेंहु,चावल,मूंग,मटर,बाजरी,मक्की आदि होते थे?
४९. उत्तर :- आज जीयन धान्य उपलब्ध है वे सभी थे,पर उन मानवों के काम नहीं आते थे।
५०.पहले आरे के मानवों का संहनन कैसा था?
५०.उत्तर:-व्रजऋषभनाराच ।
५१. पहले आरे के मानवों का संस्थान कैसा था?
५१.उत्तर:- समचतुरस्स संस्थान होता था।
५२. पहले आरे के मानवों को कितनी संतान होती थी?
५२.उत्तर:- दो संतान (युगलिक) एक पुत्र-एक पुत्री।
५३. पहले आरे के मानवी संतान को जन्म कब देती थी?
५३.उत्तर:-आपनी आयु के ६ मास बाकी रहते थे उस समय युगलिनी एक युगल अर्थात एक बच्चा व् एक बच्ची को जन्म देती थी।
५४. कितने दिन रात्री संतान की सार संभाल करते थे?
५४.उत्तर:- ४९ दिन पालन पोषण करते थे।
५५. ४९ दिन परिपालना करने के बाद सन्तान का क्या होता था?
५५.उत्तर:- वे ४९ दिन में युवा हो जाते थे ,आपन भरण-पोषण करने में स्वयं समर्थ हो जाते थे।
५६. पहले आरे के स्त्री-पुरूषो की मृत्यु कैसे होती थी?
५६.उत्तर:- खांसी,छीक,जम्हाई-उबासी लेकर शारीरिक कष्ट,व्यथा परिताप का अनुभव नहीं करते हुये काल धर्म को प्राप्त हो जाते थे।
५७. पहले आरे के मनुष्य काल धर्म को प्राप्त कर कहाँ जाते है?
५७.उत्तर:- वे प्रकृति से भद्र,सरल होने के कारण एक मात्र देव गति को ही प्राप्त करते है।
५८. पहले आरे के मनुष्य अगले भाव का आयुष्य बंध कब करते है?
५८. उत्तर:- निरूपक्रमी आयु होने के कारण आयु के ६माह शेष रहते (जब युगल को जन्म देते है) तब आयु का बंध करते है।
५९. पहले आरे के मनुष्यों का दाह संस्कारहोता है?
५९.उत्तर:-पहले आरे के मनुष्यों का दाह संस्कार आदि क्रियाएं नहीं होती है।
६०. पहले आरे के मनुष्यों का मृत देह का दाह संस्कार आदि नहीं होता है तोह फिर मृत देह की क्या स्थिति होती है?
६०.उत्तर:- अपने-अपने क्षेत्रो के क्षेत्रपाल आदि देव उन मृत देहो को उठाकर क्षीर समुद्र में प्रक्षेप कर देते है।
६१. क्षीर समुद्र में उन मृत देहों का क्या होता है?
६१.उत्तर:- कच्छ,मच्छप ग्राह आदि जलचर जन्तु उनका भक्षण कर जाते है।
६२पहले आरे की स्तिथि कितनी है?
६२. उत्तर:- ४ कोडकोडी सगरोपाम की।
६३.पहला आरा लगते समय मनुष्यों की आयु कितनी होती थी?
६३.उत्तर:- तीन पल्योपम।
६४. पहला आरा उतरते समय मनुष्यों की आयु कितनी होती थी?
६४.उत्तर:- दो पल्योपम।
६५.पहला आरा लगते समय मनुष्यों का देहमान कितनी होता था?
६५.उत्तर:- तीन कोस (गाऊ)
६६.पहला आरा उतरते समय मनुष्यों का देहमान कितनी होता था?
६६. दो कोस (गाऊ)।
पहले आरे के मनुष्य कहाँ रहते थे⁉
🅰3⃣0⃣ वृक्षों रूप घरों में रहते थे।
तत्वार्थ सूत्र (मोक्षशास्त्र )अध्याय ३
सहधर्मी भाइयों बहिन
जैजिनेन्द्र देव की !
पंचपरमेष्ठी की जय !
विश्व धर्म जैन धर्म की जय !
संत श्रोमणि आचार्यश्री विद्यासागर जय !
मध्यलोक का वर्णन
आगे
मोक्षमार्गस्य नेतराम ,भेतारं कर्मभूभृतां!
ज्ञातारं विश्वतत्त्वानां,वन्दे तद्गुणलब्द्धये' !!
भरत ऐरावत क्षेत्रों में काल परिवर्तन -
भरत क्षेत्र में षट काल परिवर्तन व्यवस्था
१- अवसर्पिणी के छ काल क्रमश; प्रथम सुषमा सुषमा काल ४ कोड़ा कोडी सागर का उत्कृष्ट भोगभूमि का है -
जन्म लेने पर बच्चे सोते सोते ३ दिन तक अंगूठा चूसते है ,३ दिन में घुटने के बल चलते है,फिर ३ दिन में मधुर तुतलाती भाषा बोलते है,फिर ३ दिनों में पैरो पर चलने लगते है,फिर ३ दिनों में कला और रूप आदि गुणों से युक्त हो जाते है,फिर ३ दिनोमें में युवावस्था को प्राप्त करते है,फिर ३ दिनों में सम्यग्दर्शन धारण करने की योग्यता प्राप् कर लेते है !ये बेर के फल के समान चौथे दिन आहार लेते है!इनकी आयु ३ पल्य लम्बाई ३ कोस अर्थात ६००० धनुष होती है!इस काल में जीवों का वर्ण उगते हुए सूर्य समान होता है
प्रथम काल
सुषमा-सुषमा काल में भूमि रज, धूम, अग्नि, हिम, कण्टक आदि से रहित एवं शंख, बिच्छू, चींटी, मक्खी आदि विकलत्रय जीवों से रहित होती है। दिव्य बालू, मधुर गंध से युक्त मिट्टी और पंचवर्ण वाले चार अंगुल ऊँचे तृण होते हैं। वहाँ वृक्ष समूह, कमल आदि से युक्त निर्मल जल से परिपूर्ण वापियाँ, उन्नत पर्वत, उत्तम-उत्तम प्रासाद, इन्द्रनीलमणि आदि से सहित पृथ्वी एवं मणिमय बालू से शोभित उत्तम-उत्तम नदियाँ होती हैं। इस काल में असंज्ञी जीव, जात विरोधी जीव भी नहीं होते हैं। गर्मी, सर्दी, अंधकार और रात-दिन का भेद भी नहीं होता है एवं परस्त्रीरमण, परधनहरण आदि व्यसन भी नहीं होते हैं। इस काल में युगल रूप से उत्पन्न हुए मनुष्य उत्तम तिल, मशा आदि व्यंजन एवं शंख, चक्र आदि चिन्हों से सहित तथा स्वामी और भृत्य के भेदों से रहित होते हैं। इनके शरीर की ऊँचाई छह हजार धनुष अर्थात् तीन कोस तथा आयु तीन पल्य प्रमाण होती है, यहाँ के प्रत्येक स्त्री-पुरुषों के पृष्ठ भाग में दो सौ छप्पन हड्डियाँ होती हैं। इनके शरीर मलमूत्र-पसीने से रहित, सुगंध निश्वास से सहित, तपे हुए स्वर्ण सदृश वर्ण वाले, समचतुरस्र संस्थान और वङ्कावृषभनाराच संहनन से युक्त होते हैं, प्रत्येक मनुष्य का बल नौ हजार हाथियों सदृश रहता है। इस काल में नर-नारी से अतिरिक्त अन्य परिवार नहीं होता है। इस समय वहाँ पर ग्राम, नगर आदि नहीं होते हैं, दस प्रकार के कल्पवृक्ष होते हैं जो युगलों को अपने-अपने मन की कल्पित वस्तुओं को दिया करते हैं।
कल्पवृक्षों के नाम
पानांग, तूर्यांग, भूषणांग, वस्त्रांग, भोजनांग, आलयांग, दीपांग, भाजनांग, मालांग और ज्योतिरंग ये दस प्रकार के कल्पवृक्ष होते हैंं-पानांग जाति के कल्पवृक्ष भोगभूमिज मनुष्यों को मधुर, सुस्वादु, छह रसों से युक्त पुष्टिकारक बत्तीस प्रकार के पेय द्रव्य को देते हैं। तूर्यांग कल्पवृक्ष उत्तम वीणा, पटु, पटह, मृदंग आदि वादित्रों को देते हैं। भूषणांग कल्पवृक्ष वंâकण, कटिसूत्र, हार आदि आभूषणों को, वस्त्रांग कल्पवृक्ष चीनपट्ट, क्षौमादि वस्त्रों को, भोजनांग कल्पवृक्ष सोलह प्रकार के आहार, इतने ही प्रकार के व्यंजन, चौदह प्रकार की दाल, एक सौ आठ प्रकार के खाद्य पदार्थ, तीन सौ त्रेसठ प्रकार के स्वाद्य पदार्थ एवं त्रेसठ प्रकार के रसों को दिया करते हैं। आलयांग कल्पवृक्ष स्वस्तिक, नंद्यावर्त आदि सोलह प्रकार के दिव्य भवनों को, दीपांग कल्पवृक्ष शाखा, प्रवाल, फल, पूâल और अंकुरादि के द्वारा जलते हुए दीपकों के समान प्रकाश को देते हैंं, भाजनांग कल्पवृक्ष सुवर्ण आदि से निर्मित झारी, कलश, गागर, चामर और आसन आदि देते हैं, मालांग जाति के कल्पवृक्ष बेल, तरु, गुच्छ और लताआेंं से उत्पन्न हुए सोलह हजार भेदरूप पुष्पों की मालाओं को देते हैं और ज्योतिरंग जाति के कल्पवृक्ष मध्य दिन के करोड़ों सूर्यों की किरणों के समान होते हुए नक्षत्र, सूर्य और चन्द्र आदि की कान्ति का संहरण करते हैं ये सब कल्पवृक्ष न वनस्पतिकायिक हैं न कोई व्यन्तर देव हैं किन्तु विशेषता यह है कि ये सब पृथ्वीरूप होते हुए जीवों को उनके पुण्य कर्म का फल देते हैं।
भोगभूमिजों के भोग आदि
ये मनुष्य कल्पवृक्षों से दी गई वस्तुओं को ग्रहण करके और विक्रिया से बहुत प्रकार के शरीरों को बनाकर अनेक प्रकार के भोगों को भोगते हैं और चौथे दिन बेर के बराबर आहार ग्रहण करते हैं। ये युगल कदलीघात मरण से रहित होते हुए संपूर्ण आयुपर्यन्त चक्रवर्ती के भोगों की अपेक्षा अनन्तगुणे भोग को भोगते हैं। वहाँ के पुरुष इन्द्र से भी अधिक सुन्दर और स्त्रियाँ अप्सराओं के सदृश सुन्दर होती हैं।
भोगभूमि के आभूषण
भोगभूमि में कुण्डल, हार, मेखला, मुकुट, केयूर, भालपट्ट, कटक, प्रालम्ब, सूत्र (ब्रह्मसूत्र), नूपुर, दो मुद्रिकाएँ, अंगद, असि, छुरी, ग्रैवेयक और कर्णपूर ये सोलह आभरण पुरुषों के एवं छुरी और असि से रहित चौदह आभरण स्त्रियों के होते हैं।
भोगभूमि में उत्पत्ति के कारण
भोगभूमि में मनुष्य और तिर्यञ्च जीव उत्पन्न होते हैं, मिथ्यात्वभाव से युक्त होते हुए भी मन्दकषायी, मधुमांसादि के त्यागी, गुणियों के गुणों में अनुरक्त, उपवास से शरीर को कृश करने वाले, निग्र्रन्थ साधुओं को आहारदान देने वाले जीव या अनुमोदना आदि करने वाले पशु आदि भी यहाँ उत्पन्न होते हैं। जिनने पूर्वभव में मनुष्य आयु को बाँध लिया है और पश्चात् तीर्थंकर के पादमूल में क्षायिक सम्यग्दर्शन को प्राप्त किया है ऐसे कितने ही सम्यग्दृष्टि पुरुष भी भोगभूमि में उत्पन्न होते हैं।
कोई अज्ञानी जिनलिंग को ग्रहण करके छोड़ देते हैं, मायाचार में प्रवृत्त होकर कुलिंगियों को अनेक प्रकार के दान देते हैं, वे भी भोगभूमि में तिर्यञ्च होते हैं।
भोगभूमि के मनुष्य और तिर्यञ्चों की नव मास आयु शेष रहने पर स्त्रियों को गर्भ रहता है और दोनों-युगल के मृत्यु का समय निकट आने पर युगल/बालक-बालिका का जन्म होता है अर्थात् सन्तान के जन्म लेते ही माता-पिता मरण को प्राप्त हो जाते हैं। पुरुष को छींक और स्त्री को जंभाई आते ही वे मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं और उनके शरीर शरत्कालीन मेघ के सदृश तत्क्षण आमूल विलीन हो जाते हैं।
भोगभूमि के उत्पत्ति स्थान
मृत्यु के बाद भोगभूमिज मनुष्य या तिर्यञ्च यदि मिथ्यादृष्टि हैं तो भवनत्रिक-भवनवासी, व्यन्तर या ज्योतिष्क देवों में जन्म लेते हैं। यदि सम्यग्दृष्टि हैं तो सौधर्म युगल में जन्म लेते हैं।
भोगभूमिज युगल की वृद्धि
वहाँ के बाल युगल शय्या पर सोकर अंगूठा चूसते हुए तीन दिन निकाल देते हैं, पश्चात् बैठना, अस्थिर गमन, स्थिर गमन, कलागुणों की प्राप्ति, तारुण्य और सम्यग्दर्शन की योग्यता, इनमें से क्रमशः प्रत्येक अवस्था में उन बालकों के तीन-तीन दिन व्यतीत होते हैं अर्थात् इक्कीस दिन में ये युगल सात प्रकार की योग्यता को प्राप्त करके पूर्ण यौवन सहित सर्वकलाकुशल हो जाते हैं।
सम्यक्त्व के कारण
वहाँ पर कोई जीव जातिस्मरण से, कोई देवों के सम्बोधन करने से, कोई ऋद्धिधारी मुनि आदि के उपदेश सुनने से सम्यक्त्व को ग्रहण कर सकते हैं किन्तु इनके श्रावक के व्रत और संयम नहीं हो सकता है।
भोगभूमिज तिर्यञ्च
भोगभूमि में गाय, सिंह, हाथी, मकर, शूकर, हरिण, भैंस, बन्दर, तेन्दुआ, व्याघ्र, शृगाल, रीछ, मुर्गा, तोता, कबूतर, राजहंस आदि तिर्यञ्च युगल भी उत्पन्न होते हैं जो परस्पर के वैरभाव से रहित, व्रूâरता रहित, मन्दकषायी होते हैं। वहाँ के व्याघ्र आदि थलचर एवं कबूतर आदि नभचर तिर्यञ्च मांसाहार के बिना दिव्य तृणों का भक्षण करते हैं। चार कोड़ा-कोड़ी सागर प्रमाण इस प्रथम काल में शरीर की ऊँचाई, आयु, बल, ऋद्धि और तेज आदि हीन-हीन होते जाते हैं।
68 क्या पहले आरे में सिंह,बाघ,वृक,श्रृंगाल,भेड़िये होते थे ?
उत्तर- हा होते थे पर वह हिसंक नही होते थे
69 क्या पहले आरे में गेहूं,चावल,मूंग,मटर, बाजरी, मक्की आदि होते थे ?
उत्तर- आज जितने धान्य है उतने सभी धान्य होते थे पर मनुष्य के उपयोग में नहीं आते थे
70 क्या पहले आरे में आलू,अदरक,गाजर,मूली आदि जमींकन्द थे ?
उत्तर- हा आज जितने जमीकंद है उतने सभी जमीकंद उस समय में भी थे पर वह मनुष्य के उपयोग में नहीं आते थे
[8/27, 7:37 AM] Jyoti Daga: 🌾🍁🐂🌾🍁🐂🌾🍁🐂🌾🍁🐂🌾🍁🐂🌾🍁🐂🌾🍁
*महावीर के उपदेश ग्रुप*
💁♂💁 *भगवान रुषभदेवजी/आदिनाथजी जीवन चरित्र* 🙋🙋♂
📚श्रीआदिनाथ चरित्र📚
*85*
*दूसरे आरे* का स्वरूप➡
दूसरे आरे में *मनुष्य दो पल्योपम की आयुवाले,दो कोस ऊंचा शरीरवाले,और तीसरे दिन भोजन करने वाले। होते है❗ *उस समय कल्पवृक्ष* 🎄
🎄कुछ कम प्रभाव वाले, *पृथ्वी कम स्वादवाली और जल 🌊भी कम मधुर होता है❗इस आरे में पहले आरे की हर बात मे इसी इसी तरह से कमी होती है जिस *तरह से हाथी 🐘की सूंड में क्रमशः मोटाई कम होती जाती है*❗
*तीसरा आरे का स्वरूप➡ मनुष्य एक पल्योपम तक जीनेवाले,*एक कोस ऊंचा 💪🏿🤜🏿* *शरीर,आयु, जमीन,और कल्पवृक्ष 🎄की महिमा क्रमशः घटती जाती है*❗
चौथे आरे का स्वरुप➡पहले के प्रभाव से *कल्पवृक्ष , पृथ्वी का स्वाद और जल मधुरता -रहित होता है❗उसमे मनुष्य *एक कोटि की पूर्व आयुवाले और पांचसौ धनुष ऊंचे शरीर वाले होते है*❗
*पांचवे आरे* का स्वरुप➡ *मनुष्य की आयु सौ वर्ष,सात हाथ ऊंचा शरीरवाले होते है*❗
*छठे आरे* का स्वरूप➡मनुष्य की *आयु मात्र सोलह वर्षऔर साथ हाथ ऊंचा शरीर होता है*❗
कल आगे का भाग▶▶▶▶
✍ *बेहेन हिनाजी भूरा सिवनी*
*महावीर के उपदेश ग्रुप टीम*
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[8/27, 7:37 AM] Jyoti Daga: 🌾🍁🐂🌾🍁🐂🌾🍁🐂🌾🍁🐂🌾🍁🐂🌾🍁🐂🌾🍁
*महावीर के उपदेश ग्रुप*
💁♂💁 *भगवान रुषभदेवजी/आदिनाथजी जीवन चरित्र* 🙋🙋♂
📚श्रीआदिनाथ चरित्र📚
*83*
जब वे दोनों युगलिक पने उत्पन्न हुए तब *अवसर्पिणी के तीसरे आरे में पल्योपम का आठवा भाग शेष था*❗
*पांच भरत और पांच *ऐरावत क्षेत्रो में समय की व्यवस्था करने का🎆🌠 *कारणरूप बारा आरो का एक कालचक्र 🎡गिना जाता है*❗
अवसर्पिणी काल के छः आरे है❗ वे इस प्रकार है❗
1⃣ *एकांत सुषमा*------ यह *चारकोटकोटी⏳⌛ सागरोंपम* का होता है❗
2⃣* *सुषमा*-----यह *तीन कोटकोटी सागरोपम* का होता है❗
3⃣ *सुषमा दुखमा*-----यह *दो कोटकोटी सागरोपम का होता है*❗
4⃣दुखमा सुषमा----यह *बयालीस हज़ार काम एक कोटाकोटी सागरोपम* का होता है❗
5⃣ दुखमा यह *इक्कीस हज़ार वर्ष* का होता है❗
6⃣ *एकांतदुखमा*------यह भी *इक्कीस हज़ार वर्ष* का होता है❗
🍁जिस तरह अवसर्पिणी कहे उसी तरह उत्सर्पिणि के भी *प्रतिलोम क्रम* से समझने चाहिए❗🍁
🍃🍃 *अवसर्पिणी *और उत्सर्पिणी काल की कुल संख्या मिलाकर बीस *कोड़ाकोड़ी सागरोपम होती है*❗ उसे *कालचक्र कहते है*❗🍃
कल आगे का भाग▶▶▶▶
✍ *बेहेन हिनाजी भूरा सिवनी*
*महावीर के उपदेश ग्रुप टीम*
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[8/27, 7:37 AM] Jyoti Daga: 🌾🍁🐂🌾🍁🐂🌾🍁🐂🌾🍁🐂🌾🍁🐂🌾🍁🐂🌾🍁
*महावीर के उपदेश ग्रुप*
💁♂💁 *भगवान रुषभदेवजी/आदिनाथजी जीवन चरित्र* 🙋🙋♂
📚श्रीआदिनाथ चरित्र📚
*84*
🔴आरो का वर्णन
पहले आरे में *मनुष्य तीन पल्योपम तक जीनेवाले,
*तीन कोस ऊंचे शरीर वाले चौथे तीन भोजन करने वाले होते है❗वे *संचतुरस्त्र संस्थान, वज्रारुषभनाराच संहनन वाले ,क्रोध ,मान, माया,लोभ रहित ,अधर्म का त्याग करने वाले,सभी शुभ लक्षणों वाले होते है❗उत्तरकुरु की तरह उस समय रातदिन उनकी *इच्छाओं को पूरी करने वाले कल्पवृक्ष होते है*❗
1⃣ *मधांग -----ये मांग ने से तत्काल *मद्य* 🥂🥂देते है❗
2⃣* *भृतांग* ये *भंडारी की तरह 🥄🍶पात्र* देते है❗
3⃣ *तुर्यान्ग*----- ये 🎻🥁🎷 तीन तरह के *वाद्य* देते है❗
4⃣ *दीपशिखा5⃣ *ज्योतिष*
ये दोनों 🌟🌙⭐ *रोशनी* देते है❗
6⃣ *चित्रांग*-------- ये *फूलमालाएं* 🏵🏵🏵🎗🎗 देते है❗
7⃣ *चित्ररस* ------- यह रसोइये की तरह *अनेक प्रकार🍧🍱🍔 के भोजन देते है*❗
8⃣ *मन्यांग* -----यह अनेक प्रकार के *आभूषण💍👑👑 देते* है❗
9⃣ *गेहकार*------यह गंधर्व नगर की तरह क्षण भर में🏚🏭🏨 *सूंदर घर देते है*❗
🔟 *अनग्न -----यह *मनभावन कपड़े*👔👗👘 देते है❗
इस तरह ये *कल्पवृक्ष और भी अनेक तरह के मन चाहे वस्तू देते है*❗उस समय पृथ्वी *शक्कर से स्वादिष्ट,जल अमृत के समान होता है❗ धीरे धीरे *आयु, संहनन, कल्पवृक्ष। आदि घटते जाते है*❗
कल आगे का भाग▶▶▶▶
71 क्या पहले आरे में डांस,मच्छर,पिस्सु, जुएं, लीख, खटमल आदि थे ?
उत्तर- नहीं होते थे उस समय भूमि उपद्रव रहित होती थी
72 क्या पहले आरे में सांप,नेवला,अजगर आदि थे ?
उत्तर- हा होते थे परंतु प्रकृति से भद्र होते थे मनुष्य को बाधा पहुंचाने वाले नहीं होते थे कष्ट नहीं देते थे काटते नहीं थे रेग कर चले जाते थे
74 पहले आरे के मानव का सहनन कैसा था ?
उत्तर- वज्रऋषभभनिराच सहंनन
75 पहले आरे के मानव का संस्थान कैसा था ?
उत्तर- समचतुरस्र संस्थान
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