तीसरा आरा - सुषम- दु:षमा
.तीसरा आरा - सुषम- दु: शमा
१। तीसरा आरा का नाम क्या है?
१.उत्तर: - सुषम- दु: शमा नामक आरा।
2। तीसरे आरे को कितने भागों में विभक्त किया गया है?
२.उत्तर: -तीन भागों में
१ प्रथम त्रिभुज
२ मध्यम त्रिभाग
३ अन्तिम त्रिभुज।
3। पहला और मध्यम त्रिभाग का आकार -प्रकार कैसा था?
३.उत्तर: - उस समय का भूभाग बहुत ही समतल और रमणीय था।
4। तीसरे आरे में मिट्टी का स्वाद कैसा होता था?
४.उत्तर: - ग़ुड़ जैसा स्वाद था।
5। तीसरे आरे के मनुष्यों के शरीर की ऊँचाई कितनी थी?
५.उत्तर: -२००० धनुष प्रमाण।
6। तीसरे आरे के मनुष्यों में कितनी पंसलियाँ थी?
6। उत्तर: - ६४ पंसलियाँ
7। तीसरे आरे उतरते मनुष्यों के शरीर में पंसलियाँ कितनी थीं?
७उत्तर: -३२ पंसलियाँ थी।
8। तीसरे आरे उतरते मनुष्यों की आहारे शुभ दिन कितना होता था?
8। उत्तर: - एक दिन के अन्तराल से।
9। तीसरे आरे लेता मनुष्यों की आयु कितनी थी?
9.उत्तर: - एक पल्योपम की।
10। तीसरे आरे उतरते आरे मनुष्यों की आयु कितनी थी?
१०.उत्तर: - एक करोड़ पूर्व लगभग।
11। तीसरे आरे लगते मनुष्यों का देहमान क्यों था?
11। उत्तर: - एक गऊ का।
12। तीसरे आरे उतरते मनुष्यों का देहमान कैसे था?
१२.उत्तर: - ५०० धनुष प्रमाण।
13। तीसरे आरे के मनुष्य संतान पालन कितने दिन करते थे?
१३.उत्तर: - दिन ९ दिन तक। 18। तीसरे आरे के मनुष्यों के मैथुन संज्ञा होती थी? १.उत्तर: - हाँ, होता है।
14। तीसरे आरे के मनुष्य के कितने संताने थे?
१४.उत्तर: - एक दो रूप से पुत्र-पुत्री होते थे।
15। तीसरे आरे के मनुष्यों को संदेह क्यों कहा गया था?
15। उत्तर: - वे युग्म रूप से जीवन में एक ही बार एक ही दोहरी को जन्म देते थे, इस कारण से वे युगलक कहलाके थे।
१६.क्या तीसरे आरे के मनुष्यों को मरण के समय वेन्ना होता था?
16। उत्तर: - नहीं, केवल छीक, उबासी या खांसी के साथ खुशी से मरण को प्राप्त होते थे।
17। तीसरे आरे के आदमी मरकर कहां जाते थे?
17। उत्तर: - संभावना: मरकर देव गति में जाते थे। 1 9। तीसरे आरे के मनुष्यों के मैथुन कितने बार उत्पन्न हुए थे? 1 9। उत्तर: - सम्पूर्ण जीवन में एक ही बार। 20। इतने दीर्ध जीवन में वे युगलिक कैसे रहते थे?
20। उत्तर: - लगभग सम्पूर्ण जीवन भाई -बहिन के समान बिताते और जीवन के पिछले दिनों में एक बार मैथुन सेवन करते थे। जिससे एक शक का जीवन के अंत में जन्म होता है।
21। तीसरे आरे के अन्तिम त्रिभाग में मानवों की रचना कैसे होती थी?
21। उत्तर: - छहों संथान और छः संस्थान थे।
22। तीसरे आरे के अन्तिम त्रिभाग में मानवों का आयुष्य कितना था?
22। उत्तर: - जघन्य - संख्यात वर्षों का, उत्कृष्ट - असंख्यात विख्यात वर्षो का आयुष्य होता था। 24। कल्पवृक्ष कब से कम फल देना प्रारंभ करते है? 24। उत्तर: - तीसरे आरे के तीसरे विभाग के ६६ लाख करोड़ ६६ हजार करोड़ ६०० करोड़ ६६ करोड़, ६६ लाख, ६६ हजार, ६६ लाख सागरोपम (६६,६६,६६,६० करोड़ रुपए) फल कम देना स्टार्ट कर देना है। २५.तीसरे आरे के अंतिम त्रिभाग में होने वाले मानव अपना आयु पूर्ण पूर्ण कहाँ है?
23। दोहराव मनुष्यों में परस्पर झगड़े कब से शुरू होता है?
२३.उत्तर: - जब कल्पवृक्षो से पूरी वस्तुएं प्राप्त नहीं होती हैं तब।
25। उत्तर: - चारों गतियों में।
२६। क्या पाँचवी मोक्ष गति में भी जा सकते थे?
२६.उत्तर: - हाँ, जा सकते थे, समग्र दुःखों का अंतर द्वारा।
27। कुलकर ने क्या कहा है?
२.उत्तर: - कुल की व्यवस्था का संचालन करने वाला जो प्रट इष्टतमह प्रतिभा संपन्न व्यकति होता है।
उसे कुलकर कहते हैं। 2 9। १५ कुलकर कब उत्पन्न होते हैं? 2 9। उत्तर: - तीसरे आरे के अंतिम तीसरे त्रिभाग के समाप्त होने में जब एक पल्योपम का आठवां भाग शेष रहता है, तब पहले कुलकल का जन्म होता है। 30। कुलकर में क्या है? 30। उत्तर: - विशिष्ट बुद्धिशाली, प्रज्ञा संपन्न प्रभाष कुलकर कहलाते थे। 31। १५ कुलकर कब उत्पन्न होते हैं? ३१ उत्तर: - तीसरे आरे के अंतिम तीसरे त्रिभाग के समाप्त होने में जब एक पल्योपम का आठवां भाग शेष रहता है, तब पहले कुलकर का जन्म होता है।
28। कुलकर में कितना होता है?
२.उत्तर: - जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र के अनुसार १५ कुलकर होते हैं।
32। प्रथम के पाँच कुलकरो के समय कौनसी दण्डनीति थी?
३२.उत्तर: - हकार नामक दण्डनीति
थी।
33। हकार निति का क्या अर्थ है?
३३.उत्तर: - वे कुलकर उपराधी मनुष्य को हकार = हा! इसने कई कथन मात्र से ललित होकर विनायवान हो जाते थे फिर से अपराधी नहीं थे।
34। १५ कुलकरो में से प्रथम के ५ कुलकरो का नाम क्या है?
34। उत्तर: -१.सुमति
२। प्रतिश्रुति
३.समिमंकर
४Cmnhar
५.क्षेमंकर १५.ऋषदेव।
35। छठे से दसवें कुलकरो के क्या नाम थे?
35। उत्तर: - ive। क्षेमधर
७ विमलवाहन
क्षचक्षुष्मान
९.यशस्वान
१०। अभिचंद्र कुलकर।
३६.इन पांच कुलकरो के समय कौनसी दण्डनिति थी?
३६.उत्तर: - मकार नामक दण्डनीति थी।
३.मकर निति का क्या अर्थ है?
37। उत्तर: - वे मनुष्य मकार ~ - मा करू! ऐसा मत करो ~~ इस कथन रूप दंड से ललित होकर विनित हो जाते हैं और फिर से उसी तरह अपराध नहीं करते।
38। ओवनवे से पन्द्र्ह वें तक के कुलकर कौन थे? १४.नगरी
३.उत्तर: -११.चन्द्राभ
१२.प्रसेनजित
१३.मरुदेव ३ ९.इन पांच कुलकरो के समय कौनसी दण्डनिति थी? ३ ९.उत्तर: - धिक्कार नामक दण्डनीति थी? ४०.धिक्कार निति का क्या अर्थ है? ४०.उत्तर: - उस समय के मनुष्य धिक्कार ~ इस कार्य के लीये आपको धिक्कार।इतने कथन मात्र दण्ड से ललित होकर फिर पुनः वैसा अकार्य नहीं थे। 41। १५ कुलकरो का वर्णन कहाँ आया है? 41। उत्तर: -जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र के दूसरे वक्षवर्धन में वर्णन आया है?
३.तीसरा आरा - सुषम- दु:षमा
१. तीसरा आरा का नाम क्या है?
१.उत्तर :- सुषम- दु:षमा नामक आरा।
२. तीसरे आरे को कितने भागों में विभक्त किया गया है?
२.उत्तर:-तीन भागों में
१ प्रथम त्रिभाग
२ मध्यम त्रिभाग
३ अन्तिम त्रिभाग।
३. प्रथम तथा मध्यम त्रिभाग का आकार -प्रकार कैसा था?
३.उत्तर:- उस समय का भूमिभाग बहुत समतल और रमणीय था।
४. तीसरे आरे में मिट्टी का स्वाद कैसा होता था?
४.उत्तर :- ग़ुड़ जैसा स्वाद था।
५. तीसरे आरे के मनुष्यों के शरीर की ऊँचाई कितनी थी?
५.उत्तर:-2000 धनुष प्रमाण।
६. तीसरे आरे के मनुष्यों में कितनी पंसलियाँ थी?
६. उत्तर :- ६४ पंसलियाँ ।
७. तीसरे आरे उतरते मनुष्यों के शरीर में पंसालियाँ कितनी थी?
७.उत्तर :-३२ पंसलियाँ थी।
८. तीसरे आरे उतरते मनुष्यों की आहारेच्छा कितने दिन से होती थी?
८. उत्तर:- एक दिन के अन्तराल से।
९. तीसरे आरे लगते मनुष्यों की आयु कितनी थी?
९.उत्तर :- एक पल्योपम की।
१०. तीसरे आरे उतरते आरे मनुष्यों की आयु कितनी थी?
१०.उत्तर :- एक करोड़ पूर्व लगभग।
११. तीसरे आरे लगते मनुष्यों का देहमान कितना था?
११. उत्तर:- एक गऊ का।
१२. तीसरे आरे उतरते मनुष्यों का देहमान कितना था?
१२.उत्तर :- ५०० धनुष प्रमाण।
१३. तीसरे आरे के मनुष्य संतान पालन कितने दिन करते थे?
१३.उत्तर :- ७९ दिन तक।
१४. तीसरे आरे के मनुष्य के कितनी संताने होती थी?
१४.उत्तर :- एक युगल रूप से पुत्र-पुत्री होते थे।
१५. तीसरे आरे के मनुष्यों को युगलिक क्यों कहा जाता था?
१५. उत्तर :- वे युग्म रूप से जीवन में एक ही बार एक ही युगल को जन्म देते थे, इस कारण से वे युगलिक कहलाते थे।
१६.क्या तीसरे आरे के मनुष्यों को मरण के समय वेदना होती थी?
१६. उत्तर :- नहीं,केवल छीक,उबासी या खांसी के साथ सुखपूर्वक मरण को प्राप्त होते थे।
१७. तीसरे आरे के मनुष्य मरकर कहाँ जाते थे?
१७. उत्तर :- प्रायः मरकर देव गति में जाते थे।
१८. तीसरे आरे के मनुष्यों के मैथुन संज्ञा होती थी ?
१८.उत्तर :- हाँ,होती थी।
१९. तीसरे आरे के मनुष्यों के मैथुन कितनी बार उत्पन्न होती थी?
१९. उत्तर:- सम्पूर्ण जीवन में एक ही बार।
२०. इतने दीर्ध जीवन में वे युगलिक कैसे रहते थे?
२०. उत्तर:- लगभग सम्पूर्ण जीवन भाई -बहिन के समान बिताते और जीवन के पिछले दिनों में एक बार मैथुन सेवन करते थे। जिससे एक युगल का जीवन के अंत में जन्म होता था।
२१. तीसरे आरे के अन्तिम त्रिभाग में मानवों की कैसी रचना होती थी?
२१. उत्तर :- छहों संहनन और छहों संस्थान होते थे।
२२. तीसरे आरे के अन्तिम त्रिभाग में मानवों का आयुष्य कितना था?
२२. उत्तर :- जघन्य - संख्यात वर्षों का,उत्कृष्ट - असंख्यात वर्षो का आयुष्य होता था।
२३. युगलिक मनुष्यों में परस्पर झग़ड़ा कब शुरू होता है?
२३.उत्तर :- जब कल्पवृक्षो से पूरी वस्तुएं प्राप्त नहीं होती तब।
२४. कल्पवृक्ष कब से कम फल देना प्रारंभ करते है?
२४. उत्तर :- तीसरे आरे के तीसरे विभाग के ६६ लाख करोड़ ६६ हजार करोड़ ६०० करोड़ ६६ करोड़, ६६ लाख,६६ हजार,६६६ सागरोपम (६६,६६,६६,६६,६६,६६,६६ करोड़ सागरोपम) काल शेष रहने पर कल्पवृक्ष फल कम देना प्रारंभ कर देते है ।
२५.तीसरे आरे के अंतिम त्रिभाग में होने वाले मानव अपना आयुष्य पूर्ण कर कहाँ जाते है?
२५. उत्तर :- चारों गतियों में।
२६ . क्या पाँचवी मोक्ष गति में भी जा सकते थे?
२६.उत्तर :- हाँ,जा सकते थे, समग्र दुःखों का अन्त करके।
२७. कुलकर किसे कहते है?
२७.उत्तर:- कुल की व्यवस्था का संचालन करने वाला जो प्रत्कृष्ट् प्रतिभा संपन्न व्यकति होता है।
उसे कुलकर कहते है।
२८. कुलकर कितने होते है?
२८.उत्तर:- जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्रानुसार १५ कुलकर होते है।
२९. १५ कुलकर कब उत्पन्न होते है?
२९. उत्तर:- तीसरे आरे के अंतिम तीसरे त्रिभाग के समाप्त होने में जब एक पल्योपम का आठवां भाग शेष रहता है, तब पहले कुलकल का जन्म होता है ।
३०. कुलकर क्या होते है?
३०. उत्तर:- विशिष्ट बुद्धिशाली,प्रज्ञा संपन्न पुरष कुलकर कहलाते थे।
३१. १५ कुलकर कब उत्पन्न होते है?
३१ उत्तर :- तीसरे आरे के अंतिम तीसरे त्रिभाग के समाप्त होने में जब एक पल्योपम का आठवां भाग शेष रहता है,तब पहले कुलकर का जन्म होता है।
३२. प्रथम के पाँच कुलकरो के समय कौनसी दण्डनीति थी?
३२.उत्तर:- हकार नामक दण्डनीति
थी।
३३. हकार निति का क्या अर्थ है?
३३.उत्तर:- वे कुलकर उपराधी मनुष्य को हकार = हा! यह किया इतने कथन मात्र से लज्जित होकर विनायवान हो जाते थे फिर से अपराधी नहीं करते थे।
३४. १५ कुलकरो में से प्रथम के ५ कुलकरो का नाम क्या है?
३४. उत्तर :-१.सुमति
२. प्रतिश्रुति
३.सिमंकर
४.सीमन्धर
५.क्षेमंकर।
३५. छठे से दसवें कुलकरो के क्या नाम थे?
३५. उत्तर:- ६. क्षेमंधर
७. विमलवाहन्
८.चक्षुष्मान
९.यशस्वान
१०. अभिचन्द्र कुलकर।
३६.इन पाँच कुलकरो के समय कौनसी दण्डनिति थी?
३६.उत्तर:- मकार नामक दण्डनिति थी ।
३७.मकार निति का क्या अर्थ है?
३७. उत्तर :- वे मनुष्य मकार ~- मा करू!ऐसा मत करो ~~इस कथन रूप दंड से लज्जित होकर विनित हो जाते और फिर से वैसे अपराध नहीं करते।
३८. ग्यारहवे से पन्द्र्ह वें तक के कुलकर कौन थे?
३८.उत्तर :-११.चन्द्राभ
१२.प्रसेनजित
१३.मरुदेव
१४.नाभि
१५.ऋषभदेव।
३९.इन पाँच कुलकरो के समय कौनसी दण्डनिति थी?
३९.उत्तर :- धिक्कार नामक दण्डनिति थी?
४०.धिक्कार निति का क्या अर्थ है?
४०.उत्तर:- उस समय के मनुष्य धिक्कार ~इस कार्य के लीये तुम्हें धिक्कार है।इतने कथन मात्र दण्ड से लज्जित होकर फिर पुनः वैसा अकार्य नहीं करते थे।
४१. १५ कुलकरो का वर्णन कहाँ आया है?
४१. उत्तर :-जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र के दूसरे वक्षस्कार में वर्णन आया है?
४२. कुलकर युग कब तक चलता है?
४२.उत्तर:-जब तक तीर्थंकर भगवान का जन्म नहीं होता उनसे पहले-पहले तक चलता है।
४३. कुलकर युग समाप्त होने के पश्चात किसका काल प्रारंभ होता है?
४३.उत्तर:- कर्मभूमि का काल।
४४.प्रथम तीर्थंकर का जन्म कब होता है?
४४.उत्तर :-जब तीसरा आरा पूर्ण होने में ८४ लाख पूर्व ३ वर्ष ८मास १५ दिन शेष रहते है,तब प्रथम तीर्थंकर का जन्म होता है।
४५. प्रथम तीर्थंकर कौन हुये ?
४५.उत्तर :- भगवान ऋषभदेव।
४६. भगवान ऋषभदेव के माता-पिता बनने का सौभाग्य किसको मिला?
४६. उत्तर :- सातवें कुलकर नाभिराजा पिता व् मरुदेवी माता।
४७. जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति में भगवान ऋषभ को कौनसा कुलकर माना गया है?
४७. उत्तर:- पन्द्रहवां कुलकर।
४८. भगवान ऋषभदेव का राज्याभिषेक किसने किया?
४८.उत्तर :- शक्रेन्द्र ने।
४९. लोगोँ की अपराध प्रवृति बढ़ने पर कौनसी दण्ड निति का भगवान ऋषभदेव ने उपयोग किया?
४९. उत्तर :- परिभाष और मण्डल बंध नामक निति।
५०. परिभाष दण्ड निति क्या है?
५०. उत्तर :- अल्प काल केलिए नजर कैद रखने का आदेश देना।
५१. मंडल बंध दण्ड निति क्या है?
५१. उत्तर :- नियत क्षेत्र से बाहर न जाने का आदेश देना।
५२. भारत चक्रवाती ने कौनसी और दो दंडनीतियो का उपभोग किया?
५२. उत्तर:- चारक और छविच्छेद दंड नीति का।
५३. चारक दंड नीति क्या है?
५३. उत्तर:- जेलखाने में बंद रखने का आदेश देना।
५४. छविच्छेद दंड नीति क्या है?
५४. उत्तर:- हाथ-पैर आदि शरीर के अंग काटने का आदेश देना।
५५. भरत क्षेत्र में प्रथम राजा , प्रथम मुनि, प्रथम केवली, प्रथम तीर्थंकर, प्रथम जिन कौन बने?
५५. उत्तर:- भगवन ऋषभदेव।
५६. भरत क्षेत्र में अवसर्पिणी काल में सर्वप्रथम चार तीर्थो की स्थापना किसने की?
५६. उत्तर :- भगवन ऋषभदेव।
५७. भगवन ऋषभदेव कुमारावस्था में कितने समय तक रहे?
५७. उत्तर:- २० लाख पूर्व तक।
५८. भगवन ऋषभदेव महाराजावस्था में कितने समय तक रहे?
५८. उत्तर :- ६३ लाख पूर्व तक।
५९ भगवान ऋषभदेव ने पुरुषों की कितने कलाएं सिखाई ?
५९. उत्तर:- ७२ कलाएं।
६०. भगवान ऋषभदेव ने स्त्रियों की कितने कलाएं सिखाई ?
६०. उत्तर:- ६४ कलाएं
६१. भगवान ऋषभदेव ने ब्राम्ही को किसका ज्ञान सिखाया?
६१.उत्तर:- १८ प्रकार की लिपिकला का ज्ञान।
६२. भगवान ऋषभदेव ने सुंदरी को कौनसा ज्ञान सिखाया?
६२.उत्तर:- गणित कला का ज्ञान।
६३. भगवान ऋषभदेव के लिए नगरी किसने बनाई ?
६३.उत्तर:- धनपति कुबेर
ने (वैश्रमण देव ने ) ।
६४. इस अवसर्पिणी काल में सर्वप्रथम किस नगरी का निर्माण हुआ?
६४.उत्तर:- विनीता नगरी(आयोध्या नगरी)का।
६५. कुबेर ने किसके आदेश से नगरी का निर्माण किया?
६५. पहले देवलोक इंद्र शकेंद्रा की आज्ञासे।
६६. कुबेर ने विनिता नगरी का निर्माण किससे किया?
६६. उत्तर :- सोने से।
६७. विनिता नगरी कितनी लम्बी चौडी थी?
६७. उत्तर:- १२योजन लम्बी एवं ९ योजन चौड़ी थी।
६८. विनिता नगरी का परकोटा किसका बना हुआ था?
६८.उत्तर:- सोने का बना हुआ था।
६९. विनीता नगरी के स्मरणमय परकोटे के ऊपर कंगूरे किसके बने हुए थे?
६९. विनीता नगरी के स्मरणमय परकोटे के ऊपर कंगूरे किसके बने हुए थे?
७०. पाँच प्रकार के मणिरत्नों के कंगूरे थे।
७१. विनीता नगरी कैसी लगती थी?
७१. उत्तर:- अल्कापूरी सदृश्य (देवताओं की नगरी जैसी) मानो वह स्वर्ग का ही रूप हो,ऐसी मनभावन लगती थी,दर्शनीय,अभिरूप और प्रतिरूप,प्रासादीय मन को प्रस्सन करने वाली थी।
७२. विनीता नगरी की जनता कैसी थी?
७२. उत्तर:- वहाँ की जनता वैभव,सुरक्षा,समृद्धि से युक्त्त, आमोद प्रमोद के प्रचुर साधन होने से बड़ी प्रमुदित रहती थी.पारस्परिक प्रेम-सौहाद्र का वातावरण था।
७३. इस अवसर्पिणी काल में भरत क्षेत्र में सबसे पहले शादी किसकी रचाई गई?
७३. उत्तर:- भगवान ऋषभदेव की।
७४. भगवान ऋषभदेव के विवाह में पुरोहित का कार्य किसने किया ?
७४.उत्तर:- शक्रेंन्द्र ने।
७५. शक्रेंन्द्र ने भगवान ऋषभदेव का कितनी रानियों के साथ विवाह करवाया?
७५ उत्तर:- दो १.सुमंगला २.सुनन्दा।
७६. सुमंगला जी के कितनी संताने थी?
७६.उत्तर:- १००अर्थात् भरत आदि ९९पुत्र एवं एक पुत्री ब्राह्मी जी।
७७. सुनन्दा जी को कितनी संताने थी?
७७. उत्तर:- दो संताने। एक पुत्र बाहुबली जी एवं एक पुत्री सुन्दरी जी।
७८. भगवान ऋषभदेव के सभी पुत्र पुत्री क्या थे ?
७८. उत्तर:- चरम शरीरी।
७९. भरत जी के गर्भ में आने पर सुमंगला जी ने कितने महास्वप्न देखे?
७९. उत्तर:- १४ महास्वप्न
८०. भगवान ऋषभदेव व् सुमंगला का प्रथम रिश्ता क्या था?
८०. उत्तर :- भाई-बहिन का
८१. भगवान ऋषभदेव व् सुमंगला का उस युग के अनुसार दूसरा रिश्ता क्या था?
८१. उत्तर:- पति-पत्नी ।
८२. भगवान ऋषभदेव के गर्भ में अवतरण होने पर माता मरुदेवी ने कितने महा स्वप्न देखे?
८२. उत्तर:- १४ महास्वप्न
८३. भगवान ऋषभदेव के जन्म समय माता मरुदेवी की उम्र कितनी थी?
८३. उत्तर:- १७ लाख पूर्व की थी।
८४. १४ महास्वप्न किन-किन माताओं को आते है?
८४. उत्तर:- तीर्थंकर व् चक्रवर्ती की माताओं को।
८५. भगवान ऋषभदेव जी के पास लोकान्तिक देव कब आए?
८५. उत्तर:- जब भगवान ऋषभदेव ८३ लाख पूर्व में एक वर्ष कम के थे तब आए।
८६. भगवान ऋषभदेव जी को लोकान्तिक देवों ने क्या कहा?
८६.उत्तर:- हे प्रभु!आप तीर्थ प्रवर्तन करो
८७. लोकान्तिक देवों के जाने के बाद भगवान ऋषभदेव ने क्या किया?
८७.उत्तर:- एक वर्ष तक दान दिया।
८८. भगवान ऋषभदेव का अभिनीष्क्रमण किस ऋतु में हुआ?
८८.उत्तर:- ग्रीष्म ऋतु में।
८९. भगवान ऋषभ ने गृह त्याग
किस माह की किस तिथि को किया?
८९.चैत्र कुष्णा अष्टमी को।
९०. भगवान ऋषभ ने गृह त्याग किस प्रहर में किया?
९०.उत्तर:- मध्यानोत्तर काल में।
९१. भगवान ऋषभदेव की अभिनिष्क्रमण यात्रा में कितने प्रकार के देव आये?
९१. उत्तर:- ६४ इन्द्र एवं चारो जाती के असंख्य देवी देवता।
९२. भगवान ऋषभदेव जी संयम ग्रहण करने किस वन में आये?
९२.उत्तर:- सिद्धार्थ वन मे।
९३. भगवान ऋषभदेव जी किस शिविका में बैठकर सिद्धार्थ वन में पधारे?
९३.उत्तर:- सुदर्शना नामक शिविका।
९४. भगवान ऋषभदेव ने किस वृक्ष के निचे केश लोचन किया?
९४.उत्तर:- अशोक वृक्ष के निचे।
९५. भगवान ऋषभदेव ने कितने मुष्ठी लोच किया?
९५. उत्तर:- चार मुष्ठी लोच किया।
९६. भगवान ऋषभदेव के दीक्षा के समय कितना तप था?
१६.उत्तर:- छट्टम तप- बेले की तपस्या (दो उपवास)।
९७. भगवान ऋषभदेव के दीक्षा ग्रहण करते समय कौनसा नक्षत्र था?
९७. उत्तर:- उत्तराषाढ़ा नक्षत्र था ।
९८. भगवान ऋषभदेव के लोच के समय केश राशि को किसने ग्रहण करी?
९८.उत्तर:- देवेन्द्र शक्र ने।
९९. भगवान ऋषभदेव को दीक्षा से पहले शक्रेंद्र ने क्या दिया?
९९.उत्तर:- एक देव दूष्य-दिव्य वस्त्र दिया।
१००. भगवान ऋषभदेव को दीक्षा लेने के बाद प्रथम पारणा कितने दिन से हुआ?
१००.उत्तर:- लगभग एक वर्ष से ज्यादा।
१०१. भगवान ऋषभदेव को कौनसे नगर में केवलज्ञान हुआ?
१०१. उत्तर:-पुरिमतल नगर में।
१०२. भगवान ऋषभदेव केवलज्ञान प्राप्ति के समय पुरिमतल नगर के किस उधान में विराज रहे थे?
१०२.उत्तर:-शकट मुख उद्यान में।
१०३. भगवान ऋषभदेव को किस वृक्ष के नीचे केवल्य ज्ञान प्राप्त हुआ?
१०३.उत्तर:- बरगद के वृक्ष के निचे(वटवृक्ष)।
१०४. भगवान ऋषभदेव के केवलज्ञान प्राप्ति के समय कितनी तपस्या थी?
१०४. उत्तर:- निर्जल तेले की तपस्या थी।
१०५. भगवान ऋषभदेव के दर्शन करते ही केवली कौन बने?
१०५.उत्तर:- माता मरुदेवी।
१०६. भगवान ऋषभदेव के शाशन में प्रथम कौनसे सिद्ध बने?
१०६.उत्तर:- अतीर्थ सिद्धा ।
१०७. भगवान ऋषभदेव के शाशन में अतीर्थ सिद्धा कौन कहलाये?
१०७. उत्तर:- माता मरुदेवी (तीर्थ स्थापना से पूर्व ही मोक्ष गमन हो जाने से)।
१०८. भगवान ऋषभदेव की दो प्रकार की भूमि कौनसी थी?
१०८.उत्तर:- १. युगान्तर भूमि,
२. पर्यायान्तकर भूमि।
१०९. भगवान ऋषभदेव की युगान्तर भूमि क्या थी?
१०९.उत्तर:- युगान्तर भूमि -शिष्य क्रमानुबद्ध यावत असंख्यात पुरुष परंपरा परिमित थी।
११०. भगवान ऋषभदेव की पर्यायान्तकर भूमि कितनी थी?
११०.उत्तर:- अन्तमुहुर्त प्रमाण थी(क्योकी भगवान के केवलज्ञान प्राप्त होने के अन्तर्मुहूर्त पश्चात माता मरुदेवी को मुक्त्ति प्राप्त हो गई थी।
१११. भगवान ऋषभदेव के कितने गण थे?
१११. उत्तर:- ८४ गण थे।
११२. भगवान ऋषभदेव के कितने गणधर थे?
११२.उत्तर:- ८४ गणधर थे।
११३. भगवान ऋषभदेव के कितने शिष्य थे?
११३. उत्तर:- ८४ हजार शिष्य थे।
११४. भगवान ऋषभदेव के कितनी शिष्याएं थी?
११४.उत्तर:- ३ लाख शिष्याएँ थी।
११५. भगवान ऋषभदेव प्रथम शिष्य कौन थे?
११५.उत्तर:- ऋषभसेन जी आदि।
११६. भगवान ऋषभदेव के प्रथम शिष्या कौन थी?
११६.उत्तर:- ब्राह्मी जी।
११७. भगवान ऋषभदेव के कितने श्रावक थे?
११७.उत्तर:-श्रेयांस आदि ३लाख ५० हजार शर्माणोपसक थे।
११८. भगवान ऋषभदेव के कितनी श्राविकाएं थी?
११८. उत्तर:- सुभद्र आदि ५ लाख ५४हजार श्रमणोपासिकाए थी।
११९. भगवान ऋषभदेव के कितने १४पूर्वधर थे?
११९. उत्तर:-४,७५० मुनि पूर्वधर थे।
१२० भगवान ऋषभदेव के कितने आवधिज्ञानी थे?
१२०.उत्तर:- ९,०००
१२१. भगवान ऋषभदेव के कितने केवली जिन थे?
१२१.उत्तर:-२०,०००
१२२. भगवान ऋषभदेव के कितने वैक्रिय लब्धिधारी थे?
१२२. उत्तर:-२०,६००
१२३. भगवान ऋषभदेव के कितने मनःपर्यवज्ञानी थे?
१२३.उत्तर:- १२,६५०
41। १५ कुलकरो का वर्णन कहाँ आया है?
41। उत्तर: -जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र के दूसरे वक्षवर्धन में वर्णन आया है?
42। कुलकर युग कब तक चलता है?
४२.उत्तर: -जब तक तीर्थंकर भगवान का जन्म नहीं होता उन्हें पहले-पहले तक चलता है।
43। कुलकर युग समाप्त होने के पश्चात किसका काल प्रारंभ होता है?
४३.उत्तर: - कर्मभूमि का काल।
४४.प्रथम तीर्थंकर का जन्म कब होता है?
४४.उत्तर :-जब तीसरा आरा पूर्ण होने में ८४ लाख पूर्व ३ वर्ष ८मास १५ दिन शेष रहते है,तब प्रथम तीर्थंकर का जन्म होता है।
४५. प्रथम तीर्थंकर कौन हुये ?
४५.उत्तर :- भगवान ऋषभदेव।
46। भगवान ऋषभदेव के माता-पिता बनने का सौभाग्य किसको मिला?
46। उत्तर: - सातवें कुलकर नाभिराजा पिता व् मरुदेवी माता।
47। जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति में भगवान ऋष को कौनसा कुलकर माना गया है?
47। उत्तर: - पन्द्रहवां कुलकर।
51। उत्तर: - नियत क्षेत्र से बाहर न जाने का आदेश देना।
52। भारत चक्रवाती ने कौनसी और दो दंडनीतियो का उपभोग किया था?
52। उत्तर: - चारक और छवि दंड दंड नीति का। 56। उत्तर: - भगवान ऋषभदेव 57। भगवन ऋषभदेव कुमारावस्था में कितने समय तक रहे? 57। उत्तर: - २० लाख पूर्व तक।
5 9। उत्तर: - :२ कलाएँ।
60। भगवान ऋषभदेव ने स्त्रियों की कलाएँ सिखाईं?
६१.उत्तर: - १८ प्रकार की लिपिकला का ज्ञान।
62। भगवान ऋषभदेव ने सुंदरी को कौनसा ज्ञान सिखाया?
६२.उत्तर: - गणित कला का ज्ञान।
63। भगवान ऋषभदेव के लिए नगरी किसने बनाई?
६३.उत्तर: - धनपति कुबेर ने
(वैश्रमण देव ने)।
64। इस छत्रपति काल में सर्वप्रथम किस नगरी का निर्माण हुआ?
६४.उत्तर: - विनीता नगरी (आयोध्या नगरी) का।
65। कुबेर ने किसके आदेश से नगरी का निर्माण किया?
65। पहले देवलोक इंद्र शकेंद्रा की आज्ञा।
66। कुबेर ने अमीता नगरी का निर्माण किससे किया?
66। उत्तर: - सोने से।
67। प्रेमता नगरी कितनी लम्बी चौडी थी?
67। उत्तर: - १२ योजन लम्बी एवं ९ योजन चौर्य थी।
68। प्रेमता नगरी का परकोटा किसका बना हुआ था?
६ .उत्तर: - सोने का बना हुआ था।
6 से 9। विनीता नगरी के स्मरणमय परकोटे के ऊपर कंगूरे किसके बने थे?
6 से 9। विनीता नगरी के स्मरणमय परकोटे के ऊपर कंगूरे किसके बने थे?
70। पांच प्रकार के मणिरत्नों के कंगूरे थे।
71। विनीता नगरी कैसी लगती है?
71। उत्तर: - अल्कापुरी सदभाव (भगवान की नगरी जैसी) मानो वह स्वर्ग का ही रूप हो, ऐसी मनभावन लगती थी, वास्तव में, अभिरूप और प्रतिरूप, प्रसादादि मन को प्रस्सन करने वाली थी।
72। विनीता नगरी की जनता कैसी थी?
72। उत्तर: - वहाँ की जनता वैभव, सुरक्षा, समृद्धि से युक्त्त, आमोद प्रमोद के प्रचुर साधन होने से बड़ी प्रमुदित रहती थी। पप्स प्रेम-सौहाद्र का वातावरण था।
73। इस सत्र में श्रीपर्णी काल में भरत क्षेत्र में सबसे पहले विवाह किसकी रचाई गई?
73। उत्तर: - भगवान ऋषभदेव की।
74। भगवान ऋषभदेव के विवाह में पुरोहित का कार्य किसने किया?
७4.उत्तर: - शक्रेंद्र ने कहा।
75। शक्रेंद्र ने भगवान ऋषभदेव का कितने रिल्डों के साथ विवाह करवाया?
७५ उत्तर: - दो १.सुमंगला २. ज्ञानन्दा।
76। सुमंगला जी के कितने संताने थे?
६६.उत्तर: - १०० अर्थात् भरत आदि ९ ९पुरात्र और एक पुत्री ब्राह्मी जी।
77। सुनन्दा जी को कितना संताने था?
77। उत्तर: - दो संताने। एक बेटा बाहुबली जी और एक पुत्री सुन्दरी जी।
78। भगवान ऋषभदेव के सभी पुत्र पुत्री क्या थे?
78। उत्तर: - चरम शरीरी।
7 से 9। भरत जी के गर्भ में आने पर सुमंगला जी ने कैसे महास्वप्न देखा?
7 से 9। उत्तर: - १४ महास्वप्न --0
। भगवान ऋषभदेव व् सुमंगला का पहला रिश्ता क्या था?
80। उत्तर: - भाई-बहिन का
। भगवान ऋषभदेव व् सुमंगला का उस युग के अनुसार दूसरा संबंध क्या था?
81। उत्तर: - पति-पत्नी
82। भगवान ऋषभदेव के गर्भ में अवतरण होने पर माता मरुदेवी ने कितनी महा स्वप्न देखा?
82। उत्तर: - १४ महास्वप्न --3
। भगवान ऋषभदेव के जन्म समय माता मरुदेवी की उम्र कितनी थी?
83। उत्तर: - १७ लाख पूर्व की थी।
84। १४ महास्वप्न किन-किन माताओं को आता है?
84। उत्तर: - तीर्थंकर व् चक्रवर्ती की माताओं को।
85। भगवान ऋषभदेव जी के पास लोकनाथिक देव कब आए?
85। उत्तर: - जब भगवान ऋषभदेव लाख3 लाख पूर्व में एक वर्ष कम के थे तब आए थे।
86। भगवान ऋषभदेव जी को लोकनाथिक देवों ने क्या कहा?
८६.उत्तर: - हे प्रभु! आप तीर्थ प्रवर्तन
८७। लोकनाथिक देवों के जाने के बाद भगवान ऋषभदेव ने क्या किया?
।उत्तर: - एक वर्ष तक दान दिया।
88। भगवान ऋषभदेव का अभिनीष्क्रमण किस ऋतु में हुआ?
उ.उत्तरगया ग्रीषमऋतु में।
8 से 9। भगवान ऋत ने गृह त्याग किया
किस महीने की किस तिथि को किया था?
८ ९.चैत्र कुष्ठ अष्टमी को।
9 0। भगवान ऋषभ ने गृह त्याग किस प्रहर में किया था?
९०.उत्तर: - मध्यानंद काल में।
9 1। भगवान ऋषभदेव की अभिनिष्क्रमण यात्रा में कितने प्रकार के देव आये?
9 1। उत्तर: - ६४ इन्द्र & चारो जाता के अवतार देवी देवता।
9 2। भगवान ऋषभदेव जी संयम ग्रहण करते हुए कौन से आये?
९२.उत्तर: - सिद्धार्थ वन मे।
9 3। भगवान ऋषभदेव जी किस शिविका में बैठकर सिद्धार्थ वन में पधारे?
93.उत्तर: - सुदर्शना नामक शिविका।
9 4। भगवान ऋषभदेव ने किस वृक्ष के निचे केश लोचन किया था?
९४.उत्तर: - अशोक वृक्ष के निचे।
9 5। भगवान ऋषभदेव ने कैसे मुर्ती लोच किया था?
9 5। उत्तर: - चार मूर्तिजी लोचदार किया।
9 6। भगवान ऋषभदेव के दीक्षा के समय कितने तप थे?
१६.उत्तर: - छट्टम तप- बेले की तपस्या (दो उपवास)।
9 7। भगवान ऋषभदेव के दीक्षा ग्रहण करते समय कौनसा नक्षत्र था?
9 7। उत्तर: - हर्षाडन नक्षत्र था।
9 7। उत्तर: - हर्षाडन नक्षत्र था।
9 8। भगवान ऋषभदेव के लोचदार के समय केश राशि को किसने ग्रहण किया?
९.उत्तर: - देवेन्द्र शक्र ने कहा है।
99। भगवान ऋषभदेव को दीक्षा से पहले शक्रेंद्र ने क्या दिया था?
100। भगवान ऋषभदेव को दीक्षा लेने के बाद प्रथम पारणा कितने दिन से हुआ?
१००.उत्तर: - लगभग एक वर्ष से अधिक।
101। भगवान ऋषभदेव को कौनसे नगर में ही ज्ञान हुआ?
101। उत्तर: -पुरिमतल नगर में।
102। भगवान ऋषभदेव केवलज्ञान प्राप्ति के समय पुरिमतल नगर के किस उधान में विराज रहे थे?
१०२.उत्तर: -शकट मुख्य उद्यान में।
103। भगवान ऋषभदेव को किस वृक्ष के नीचे केवल ज्ञान प्राप्त हुआ?
१०३.उत्तर: - बरगद के वृक्ष के निचे (वटवृक्ष)।
104। भगवान ऋषभदेव के ही ज्ञान प्राप्ति के समय कितनी तपस्या थी?
104। उत्तर: - निर्जल तेले की तपस्या थी।
105। भगवान ऋषभदेव के दर्शन करते ही केवली कौन बने?
१०५.उत्तर: - माता मरुदेवी। 107। भगवान ऋषभदेव के शाशन में अतीर्थ सिद्धा कौन कहलाये?
106। भगवान ऋषभदेव के शाशन में प्रथम कौनसे अनुक्रम बने?
१०६.उत्तर: - अतीर्थ सिद्ध।
107। उत्तर: - माता मरुदेवी (तीर्थ स्थापना से पूर्व ही मोक्ष गमन हो जाना)।
108। भगवान ऋषभदेव की दो प्रकार की भूमि कौनसी थी?
१० १.उत्तर: - १। युगान्तर भूमि,
२। पर्यायान्तकर भूमि।
10 9। भगवान ऋषभदेव की युगान्तर भूमि क्या थी?
१० ९.उत्तर: - युगान्तर भूमि-ऋषि क्रमानुगत या पिछड़े असंख्यात विख्यात पुरुष परंपरा परिमित था।
110। भगवान ऋषभदेव की पर्याय्नतकर भूमि कितनी थी?
११०.उत्तर: - अन्तमुहुर्त प्रमाण था (क्योकी भगवान के ही ज्ञान प्राप्त होने के अन्तर्मुहूर्त पश्चात माता मरुदेवी को मुक्त्ति प्राप्त हुई थी।
१११. भगवान ऋषभदेव की कितनी गण थे? ११११-
उत्तर: - ८४ गण थे?
११२. भगवान ऋषभदेव) कितने गणधर थे?
११२84 थे।
११३. भगवान ऋषभदेव) कितने शिष्य
थे? 113. उत्तर: - 84 हजार शिष्य
थे। 114. भगवान ऋषभदेव के कितनी शिष्याएं
3 लाख शिष्याएँ थी।
थी? 114.उत्तर: -
115। भगवान ऋषभदेव प्रथम शिष्य कौन थे?
११५.उत्तर: - ऋषसेन जी आदि।
116। भगवान ऋषभदेव के प्रथम शिष्या कौन थे?
११६.उत्तर: - ब्राह्मी जी।
117। भगवान ऋषभदेव के कितनश्रावक थे?
११ १.उत्तर: -श्रेयांस आदि ३३ लाख ५० हजार शर्मानोपसक थे।
118। भगवान ऋषभदेव के कितने श्राविकाएं थे?
118। उत्तर: - सुभद्र आदि ५ लाख ५४ हजार श्रमणोपासिका था।
11 9। भगवान ऋषभदेव के कितने १४ पूर्वधर थे?
11 9। उत्तर: -४, 750मुनि पूर्वधर थे।
१२० भगवान ऋषभदेव के कितने आवधिज्ञानी थे?
१२०.उत्तर: - ९, ००० १२२१
। भगवान ऋषभदेव के कितने केवली जिन थे?
१२१.उत्तर: -२०,०००
१२२। भगवान ऋषभदेव के कितने वैश्य और लब्धिधारी थे?
122। उत्तर: -२०,६०० १२२३
। भगवान ऋषभदेव के कितने मनःपर्यवज्ञानी थे?
१२३.उत्तर: - १२,६५०
१२४। भगवा à
४२. कुलकर युग कब तक चलता है?
४२.उत्तर:-जब तक तीर्थंकर भगवान का जन्म नहीं होता उनसे पहले-पहले तक चलता है।
४३. कुलकर युग समाप्त होने के पश्चात किसका काल प्रारंभ होता है?
४३.उत्तर:- कर्मभूमि का काल।
४४.प्रथम तीर्थंकर का जन्म कब होता है?
४४.उत्तर :-जब तीसरा आरा पूर्ण होने में ८४ लाख पूर्व ३ वर्ष ८मास १५ दिन शेष रहते है,तब प्रथम तीर्थंकर का जन्म होता है।
४५. प्रथम तीर्थंकर कौन हुये ?
४५.उत्तर :- भगवान ऋषभदेव।
४६. भगवान ऋषभदेव के माता-पिता बनने का सौभाग्य किसको मिला?
४६. उत्तर :- सातवें कुलकर नाभिराजा पिता व् मरुदेवी माता।
४७. जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति में भगवान ऋषभ को कौनसा कुलकर माना गया है?
४७. उत्तर:- पन्द्रहवां कुलकर।
४८. भगवान ऋषभदेव का राज्याभिषेक किसने किया?
४८.उत्तर :- शक्रेन्द्र ने।
४९. लोगोँ की अपराध प्रवृति बढ़ने पर कौनसी दण्ड निति का भगवान ऋषभदेव ने उपयोग किया?
४९. उत्तर :- परिभाष और मण्डल बंध नामक निति।
५०. परिभाष दण्ड निति क्या है?
५०. उत्तर :- अल्प काल केलिए नजर कैद रखने का आदेश देना।
५१. मंडल बंध दण्ड निति क्या है?
५१. उत्तर :- नियत क्षेत्र से बाहर न जाने का आदेश देना।
५२. भारत चक्रवाती ने कौनसी और दो दंडनीतियो का उपभोग किया?
५२. उत्तर:- चारक और छविच्छेद दंड नीति का।
५३. चारक दंड नीति क्या है?
५३. उत्तर:- जेलखाने में बंद रखने का आदेश देना।
५४. छविच्छेद दंड नीति क्या है?
५४. उत्तर:- हाथ-पैर आदि शरीर के अंग काटने का आदेश देना।
५५. भरत क्षेत्र में प्रथम राजा , प्रथम मुनि, प्रथम केवली, प्रथम तीर्थंकर, प्रथम जिन कौन बने?
५५. उत्तर:- भगवन ऋषभदेव।
५६. भरत क्षेत्र में अवसर्पिणी काल में सर्वप्रथम चार तीर्थो की स्थापना किसने की?
५६. उत्तर :- भगवन ऋषभदेव।
५७. भगवन ऋषभदेव कुमारावस्था में कितने समय तक रहे?
५७. उत्तर:- २० लाख पूर्व तक।
५८. भगवन ऋषभदेव महाराजावस्था में कितने समय तक रहे?
५८. उत्तर :- ६३ लाख पूर्व तक।
५९ भगवान ऋषभदेव ने पुरुषों की कितने कलाएं सिखाई ?
५९. उत्तर:- ७२ कलाएं।
६०. भगवान ऋषभदेव ने स्त्रियों की कितने कलाएं सिखाई ?
६०. उत्तर:- ६४ कलाएं
६१. भगवान ऋषभदेव ने ब्राम्ही को किसका ज्ञान सिखाया?
६१.उत्तर:- १८ प्रकार की लिपिकला का ज्ञान।
६२. भगवान ऋषभदेव ने सुंदरी को कौनसा ज्ञान सिखाया?
६२.उत्तर:- गणित कला का ज्ञान।
६३. भगवान ऋषभदेव के लिए नगरी किसने बनाई ?
६३.उत्तर:- धनपति कुबेर
ने (वैश्रमण देव ने ) ।
७३. इस अवसर्पिणी काल में भरत क्षेत्र में सबसे पहले शादी किसकी रचाई गई?
७३. उत्तर:- भगवान ऋषभदेव की।
७४. भगवान ऋषभदेव के विवाह में पुरोहित का कार्य किसने किया ?
७४.उत्तर:- शक्रेंन्द्र ने।
७५. शक्रेंन्द्र ने भगवान ऋषभदेव का कितनी रानियों के साथ विवाह करवाया?
७५ उत्तर:- दो १.सुमंगला २.सुनन्दा।
७६. सुमंगला जी के कितनी संताने थी?
७६.उत्तर:- १००अर्थात् भरत आदि ९९पुत्र एवं एक पुत्री ब्राह्मी जी।
७७. सुनन्दा जी को कितनी संताने थी?
७७. उत्तर:- दो संताने। एक पुत्र बाहुबली जी एवं एक पुत्री सुन्दरी जी।
७८. भगवान ऋषभदेव के सभी पुत्र पुत्री क्या थे ?
७८. उत्तर:- चरम शरीरी।
७९. भरत जी के गर्भ में आने पर सुमंगला जी ने कितने महास्वप्न देखे?
७९. उत्तर:- १४ महास्वप्न
८०. भगवान ऋषभदेव व् सुमंगला का प्रथम रिश्ता क्या था?
८०. उत्तर :- भाई-बहिन का
८१. भगवान ऋषभदेव व् सुमंगला का उस युग के अनुसार दूसरा रिश्ता क्या था?
८१. उत्तर:- पति-पत्नी ।
८२. भगवान ऋषभदेव के गर्भ में अवतरण होने पर माता मरुदेवी ने कितने महा स्वप्न देखे?
८२. उत्तर:- १४ महास्वप्न
८३. भगवान ऋषभदेव के जन्म समय माता मरुदेवी की उम्र कितनी थी?
८३. उत्तर:- १७ लाख पूर्व की थी।
८४. १४ महास्वप्न किन-किन माताओं को आते है?
८४. उत्तर:- तीर्थंकर व् चक्रवर्ती की माताओं को।
८५. भगवान ऋषभदेव जी के पास लोकान्तिक देव कब आए?
८५. उत्तर:- जब भगवान ऋषभदेव ८३ लाख पूर्व में एक वर्ष कम के थे तब आए।
८६. भगवान ऋषभदेव जी को लोकान्तिक देवों ने क्या कहा?
८६.उत्तर:- हे प्रभु!आप तीर्थ प्रवर्तन करो
८७. लोकान्तिक देवों के जाने के बाद भगवान ऋषभदेव ने क्या किया?
८७.उत्तर:- एक वर्ष तक दान दिया।
८८. भगवान ऋषभदेव का अभिनीष्क्रमण किस ऋतु में हुआ?
८८.उत्तर:- ग्रीष्म ऋतु में।
८९. भगवान ऋषभ ने गृह त्याग
किस माह की किस तिथि को किया?
८९.चैत्र कुष्णा अष्टमी को।
९०. भगवान ऋषभ ने गृह त्याग किस प्रहर में किया?
९०.उत्तर:- मध्यानोत्तर काल में।
९१. भगवान ऋषभदेव की अभिनिष्क्रमण यात्रा में कितने प्रकार के देव आये?
९१. उत्तर:- ६४ इन्द्र एवं चारो जाती के असंख्य देवी देवता।
९२. भगवान ऋषभदेव जी संयम ग्रहण करने किस वन में आये?
९२.उत्तर:- सिद्धार्थ वन मे।
९३. भगवान ऋषभदेव जी किस शिविका में बैठकर सिद्धार्थ वन में पधारे?
९३.उत्तर:- सुदर्शना नामक शिविका।
९४. भगवान ऋषभदेव ने किस वृक्ष के निचे केश लोचन किया?
९४.उत्तर:- अशोक वृक्ष के निचे।
९५. भगवान ऋषभदेव ने कितने मुष्ठी लोच किया?
९५. उत्तर:- चार मुष्ठी लोच किया।
९६. भगवान ऋषभदेव के दीक्षा के समय कितना तप था?
१६.उत्तर:- छट्टम तप- बेले की तपस्या (दो उपवास)।
९७. भगवान ऋषभदेव के दीक्षा ग्रहण करते समय कौनसा नक्षत्र था?
९७. उत्तर:- उत्तराषाढ़ा नक्षत्र था ।
९८. भगवान ऋषभदेव के लोच के समय केश राशि को किसने ग्रहण करी?
९८.उत्तर:- देवेन्द्र शक्र ने।
९९. भगवान ऋषभदेव को दीक्षा से पहले शक्रेंद्र ने क्या दिया?
९९.उत्तर:- एक देव दूष्य-दिव्य वस्त्र दिया।
१००. भगवान ऋषभदेव को दीक्षा लेने के बाद प्रथम पारणा कितने दिन से हुआ?
१००.उत्तर:- लगभग एक वर्ष से ज्यादा।
१०१. भगवान ऋषभदेव को कौनसे नगर में केवलज्ञान हुआ?
१०१. उत्तर:-पुरिमतल नगर में।
१०२. भगवान ऋषभदेव केवलज्ञान प्राप्ति के समय पुरिमतल नगर के किस उधान में विराज रहे थे?
१०२.उत्तर:-शकट मुख उद्यान में।
१०३. भगवान ऋषभदेव को किस वृक्ष के नीचे केवल्य ज्ञान प्राप्त हुआ?
१०३.उत्तर:- बरगद के वृक्ष के निचे(वटवृक्ष)।
१०४. भगवान ऋषभदेव के केवलज्ञान प्राप्ति के समय कितनी तपस्या थी?
१०४. उत्तर:- निर्जल तेले की तपस्या थी।
१०५. भगवान ऋषभदेव के दर्शन करते ही केवली कौन बने?
१०५.उत्तर:- माता मरुदेवी।
१०६. भगवान ऋषभदेव के शाशन में प्रथम कौनसे सिद्ध बने?
१०६.उत्तर:- अतीर्थ सिद्धा ।
१०७. भगवान ऋषभदेव के शाशन में अतीर्थ सिद्धा कौन कहलाये?
१०७. उत्तर:- माता मरुदेवी (तीर्थ स्थापना से पूर्व ही मोक्ष गमन हो जाने से)।
१०८. भगवान ऋषभदेव की दो प्रकार की भूमि कौनसी थी?
१०८.उत्तर:- १. युगान्तर भूमि,
२. पर्यायान्तकर भूमि।
१०९. भगवान ऋषभदेव की युगान्तर भूमि क्या थी?
१०९.उत्तर:- युगान्तर भूमि -शिष्य क्रमानुबद्ध यावत असंख्यात पुरुष परंपरा परिमित थी।
११०. भगवान ऋषभदेव की पर्यायान्तकर भूमि कितनी थी?
११०.उत्तर:- अन्तमुहुर्त प्रमाण थी(क्योकी भगवान के केवलज्ञान प्राप्त होने के अन्तर्मुहूर्त पश्चात माता मरुदेवी को मुक्त्ति प्राप्त हो गई थी।
१११. भगवान ऋषभदेव के कितने गण थे?
१११. उत्तर:- ८४ गण थे।
११२. भगवान ऋषभदेव के कितने गणधर थे?
११२.उत्तर:- ८४ गणधर थे।
११३. भगवान ऋषभदेव के कितने शिष्य थे?
११३. उत्तर:- ८४ हजार शिष्य थे।
११४. भगवान ऋषभदेव के कितनी शिष्याएं थी?
११४.उत्तर:- ३ लाख शिष्याएँ थी।
११५. भगवान ऋषभदेव प्रथम शिष्य कौन थे?
११५.उत्तर:- ऋषभसेन जी आदि।
११६. भगवान ऋषभदेव के प्रथम शिष्या कौन थी?
११६.उत्तर:- ब्राह्मी जी।
११७. भगवान ऋषभदेव के कितने श्रावक थे?
११७.उत्तर:-श्रेयांस आदि ३लाख ५० हजार शर्माणोपसक थे।
११८. भगवान ऋषभदेव के कितनी श्राविकाएं थी?
११८. उत्तर:- सुभद्र आदि ५ लाख ५४हजार श्रमणोपासिकाए थी।
११९. भगवान ऋषभदेव के कितने १४पूर्वधर थे?
११९. उत्तर:-४,७५० मुनि पूर्वधर थे।
१२० भगवान ऋषभदेव के कितने आवधिज्ञानी थे?
१२०.उत्तर:- ९,०००
१२१. भगवान ऋषभदेव के कितने केवली जिन थे?
१२१.उत्तर:-२०,०००
१२२. भगवान ऋषभदेव के कितने वैक्रिय लब्धिधारी थे?
१२२. उत्तर:-२०,६००
१२३. भगवान ऋषभदेव के कितने मनःपर्यवज्ञानी थे?
१२३.उत्तर:- १२,६५०
१। तीसरा आरा का नाम क्या है?
१.उत्तर: - सुषम- दु: शमा नामक आरा।
तीसरा आरा कैसा होगा
🅰2⃣3🅰 महासुखरूप होगा।
2। तीसरे आरे को कितने भागों में विभक्त किया गया है?
२.उत्तर: -तीन भागों में
१ प्रथम त्रिभुज
२ मध्यम त्रिभाग
३ अन्तिम त्रिभुज।
3। पहला और मध्यम त्रिभाग का आकार -प्रकार कैसा था?
३.उत्तर: - उस समय का भूभाग बहुत ही समतल और रमणीय था।
4। तीसरे आरे में मिट्टी का स्वाद कैसा होता था?
४.उत्तर: - ग़ुड़ जैसा स्वाद था।
8तीसरे आरे की मिट्टी का स्पर्श कैसा थारे
🅰8⃣ आक की रुई जैसा स्पर्श था।
तीसरी आरे में एक बारिश बरसने पर पृथ्वी कितने समय तक सरसब्ज रहती थी एक
🅰1⃣3🅰 100 वर्ष तक। आज हम पहले आरा के बारे में जानेगे। १.अवसर्पिणी काल के पहले आरा का नाम क्या है? १ उत्तर: - सुषम-सुषमा २। छत्रपति काल का पहला आरा कैसा था? २ उत्तर: - बड़ा ही रमणीय, सुरमय था। 3। पहले आरे का भूमिबंध कैसा था? ३ उत्तर: - समतल, रमणीय और नाना प्रकार की काली सफ़ेद आदि पंचरंगी तृणो एव मणियो से उपशोभित था। 4। पहले आरे में वृक्ष कौनसे थे? ४ उत्तर: - कोटाल, कद्धल, उपहारमाल, नृतमाल, दन्मल नागमाल आदि अनेक उत्तम जाते हैं। जो पैरों से लदे रहते थे और अतीव कांति से सुशोभित थे। ५.पहले आरे में जहाँ तहाँ कौनसे वृक्ष अधिक पाए जाते थे? ५.उत्तर: - दस प्रकार के कल्पवृक्ष जहाँ तहाँ समूह रूप में पाए जाते थे। 6। पहले प्रकार के कल्पवृक्ष कौनसे है? ६.उत्तर: - मटंग कल्पवृक
7। मट्टंग नामक कल्पवृक्ष क्या देता है?
को.उत्तर मादक रस प्रदान करता है, जिसको प्राप्त कर जीव तृप्त हो जाते थे। 8। दूसरे प्रकार के कल्पवृक्ष कौनसे है? :उत्तर: - भृतांग कल्पवृक्ष। 9। भृतांग कल्पवृक्ष क्या देता है ९ उत्तर: - विविध प्रकार के भोजन-पात्र-बर्तन देने वाले होते हैं। 10। तीसरे प्रकार के कल्पवृक्ष का क्या नाम है? १० उत्तर: - गीतांग। ११.त्रुटितांग कल्पवृक्ष क्या देता है? ११ उत्तर: - नानाविध वाध देता है। 12। चौथे प्रकार के कल्पवृक्ष का क्या नाम है? १२.उत्तर: - दीपशिखा कल्पवृक्ष। १३.दीपशिखा कल्पवृक्ष क्या देता है? १३ उत्तर: - दीपक जैसा प्रकाश करना है। 14। पांचवे प्रकार के कल्पवृक्ष का क्या नाम है? 15। जोतिचार्य पंचवृक्ष कैसे होते हैं?
१४.उत्तर: -जोतिचार कल्पवृक्ष।
१५.उत्तर: - सूर्य, चंद्र जोतिसिक जैसा उधोत प्रकाश करने वाले होते है। 16। छठे प्रकार के कल्पवृक्ष का क्या नाम है? १६.उत्तर: - चित्रांग कल्पवृक्ष। २३.उत्तर: - विविध प्रकार के गृह निवास स्थान प्रदाता जिसमें युगल आसानी से सुखपूर्वक रह सकते हैं। 24। दसवें प्रकार के कल्पवृक्ष कौनसे है? 30। पहले आरे के मनुष्यों की पाचन शक्त्ति कैसी थी? ३० उत्तर: - कबूतर की तरह प्रबल शक शक्त्ति वाले थे।
17। चित्रांग कल्पवृक्ष क्या देता है?
१.उत्तर विविध प्रकार की मालाओं आदि देने वाले होते हैं। 18। सातवें प्रकार के कल्पवृक्ष का क्या नाम है? १.उत्तर: - चित्र रास कल्पवृक्ष। 1 9। चित्ररास कल्पवृक्ष क्या देते हैं? १ ९ उत्तर: - विविध प्रकार के रास देने वाले शट् रास भोजन देने वाले होते हैं। 20। आठवे प्रकार के कल्पवृक्ष का क्या नाम है? २०.उत्तर: - मन्यांग कल्पवृक्ष। २१.मण्यंग कल्पवृक्ष क्या देता है? २१.उत्तर: - विविध गहने प्रदान करते हैं। 22। नवमें प्रकार के कल्पवृक्ष कौनसे है?
२२.उत्तर: - गेहकर कल्पवृक्ष। २३.गेहकर कल्पवृक्ष क्या देता है?
२४.उत्तर: - अनग्न कल्पवृक्ष। २५ .अननग्न कल्पवृक्ष क्या देता है? २५.उत्तर: - वस्त्रों की आवश्यकता पूर्ति करने वाले सुंदर सुखद महीन वस्त्र देने वाले होते हैं। 26। पहले आरे के मनुष्यों का आकर स्वरुप कैसा था? २६ उत्तर: - पहले आरे के मनुष्य बड़े सुन्दर शरीर होते थे, समस्त अंग सुव्यवसिथत होते थे। 27। पहले आरे की स्त्रियाँ कैसी होती थीं? २ उत्तर: - श्रेष्ठ और सर्वांग सौंदर्य युक्त्त और महिलोचित गुणों से युक्त्त होता था। 28। पहले आरे के आदमी कितने समय आहार लेते थे? २ उत्तर: - तीन दिन के बाद।
2 9। पहले आरे के मनुष्य कितने आहार करते थे?
२ ९ उत्तर: - तुवर की दाल के सा आहार करते थे।
31। पहले आरे के मनुष्यों को कितनी पसलियाँ थी?
३१ उत्तर: - २५६ पसलियाँ होती थी। 32। पहले आरे के मनुष्यों की श्वास कैसी थी? ३२ उत्तर: - पदम उत्पल और गंध द्रव्यों की तरह सुहागयुक्त था। 33। पहले आरे के मनुष्यों के मुख कैसे थे? ३३ उत्तर: - उनके प्रमुख सदाचार सुस्वितर्ण् युक्त्त रहते थे। 34। पहले आरे के मनुष्यों की प्रकृति कैसी थी? ३४ उत्तर: - उनके स्वभाव, मान, माया, लोभ मंद और हल्के होते थे उनका स्वभाव सरल और मृदु होते थे। 35। पहले आरे के मानवों के कितने संताने होते थे?
३५.उत्तर: - दो संताने-एक पुत्र और एक पुत्री। ३३६। पहले आरे के समय पृथ्वी का स्वाद कैसा था? ३६ उत्तर: - मिश्री जैसा था। 37। पहले आरे के मनुष्यो कहाँ रहते थे? ३ उत्तर: - वृक्षों के घरों में रहते थे। 38। पहले आरे में भारत क्षेत्र में सोने चांदी हीरेंदन होते थे? ३ उत्तर: - हाँ, होते थे पर उन मनुष्यों के उपयोग में नहीं आते थे। ३३ ९ पहले आरे के मनुष्यों की आयु कितनी होती थी? ३ ९ उत्तर: - लेता आरे तीन पल्योपम और उतरते आरे दो पल्योपम की आयु थी। 40। क्या पहले आरे के मानवों को एक-दूसरे के प्रति शत्रु भाव होता था? ४० उत्तर: - नहीं, वे मनुष्य वैरुमेंट से रहित होते थे। 41। क्या पहले आरे में माता-पिता, भाई-बहेन, पुत्र-पुत्री, पुत्र-पुत्रवधु आदि के संबंध थे?
४१ उत्तर: - हाँ, होते थे लेकिन उन मनुष्यों का तीव्र प्रेम बंधन नहीं होता था। 42। क्या पहले आरे में लिन, हार्टअटैक, शूल रोग होते थे? ४२.उत्तर: - नहीं, उस समय के मानवों को कोई भी रोग नहीं होता था। 43। क्या पहले आरे के मानवों में विवाह होते थे? ४३ उत्तर: - नहीं, विवाह प्रणाली नहीं थी।
44। पहले आरे में कितने प्रकार के आदमी रहते थे?
४४ उत्तर: - छह प्रकार के मनुष्य रहते थे। ४५ पहले आरे में छह प्रकार के कौनसे मनुष्य रहते हैं? ४५ उत्तर: - १। पदम् गंध-पदम् कमल के समान गंध वाले २। मृग गंध - कस्तरी सदृश गंध वाले ३। अभय- ममत्व रहित ४। तेजस्वी ५। सह - प्रयोज्य ६। शनशेचरी - उत्सुकता नहीं होने से धीरे-धीरे चलने वाले। 46। क्या पहले आरे में कार, बस, ट्रेन प्लेन आदि साधन थे?
५७.उत्तर:- वे प्रकृति से भद्र,सरल होने के कारण एक मात्र देव गति को ही प्राप्त करते है।
५८. पहले आरे के मनुष्य अगले भाव का आयुष्य बंध कब करते है?
५८. उत्तर:- निरूपक्रमी आयु होने के कारण आयु के ६माह शेष रहते (जब युगल को जन्म देते है) तब आयु का बंध करते है।
५९. पहले आरे के मनुष्यों का दाह संस्कारहोता है?
५९.उत्तर:-पहले आरे के मनुष्यों का दाह संस्कार आदि क्रियाएं नहीं होती है।
६०. पहले आरे के मनुष्यों का मृत देह का दाह संस्कार आदि नहीं होता है तोह फिर मृत देह की क्या स्थिति होती है?
६०.उत्तर: - अपने-अपने क्षेत्रो के क्षेत्रपाल आदि देव उन मृत देहो को उठाकर क्षीर समुद्र में चिन्हों को देते है। 61। क्षीर समुद्र में उन मृत देनों का क्या होता है?
६१.उत्तर:- कच्छ,मच्छप ग्राह आदि जलचर जन्तु उनका भक्षण कर जाते है।
६२ पहले आरे की स्तिथि कितनी है?
62। उत्तर: - ४ कोडकोडी सगारोपम की। ६३.पहला आरा में समय इंसानों की उम्र ऐसा होता था? ६३.उत्तर: - तीन पल्योपम।
7। मट्टंग नामक कल्पवृक्ष क्या देता है?
को.उत्तर मादक रस प्रदान करता है, जिसको प्राप्त कर जीव तृप्त हो जाते थे। 8। दूसरे प्रकार के कल्पवृक्ष कौनसे है? :उत्तर: - भृतांग कल्पवृक्ष। 9। भृतांग कल्पवृक्ष क्या देता है ९ उत्तर: - विविध प्रकार के भोजन-पात्र-बर्तन देने वाले होते हैं। 10। तीसरे प्रकार के कल्पवृक्ष का क्या नाम है? १० उत्तर: - गीतांग। ११.त्रुटितांग कल्पवृक्ष क्या देता है? ११ उत्तर: - नानाविध वाध देता है। 12। चौथे प्रकार के कल्पवृक्ष का क्या नाम है? १२.उत्तर: - दीपशिखा कल्पवृक्ष। १३.दीपशिखा कल्पवृक्ष क्या देता है? १३ उत्तर: - दीपक जैसा प्रकाश करना है। 14। पांचवे प्रकार के कल्पवृक्ष का क्या नाम है? 15। जोतिचार्य पंचवृक्ष कैसे होते हैं?
१४.उत्तर: -जोतिचार कल्पवृक्ष।
१५.उत्तर: - सूर्य, चंद्र जोतिसिक जैसा उधोत प्रकाश करने वाले होते है। 16। छठे प्रकार के कल्पवृक्ष का क्या नाम है? १६.उत्तर: - चित्रांग कल्पवृक्ष। २३.उत्तर: - विविध प्रकार के गृह निवास स्थान प्रदाता जिसमें युगल आसानी से सुखपूर्वक रह सकते हैं। 24। दसवें प्रकार के कल्पवृक्ष कौनसे है? 30। पहले आरे के मनुष्यों की पाचन शक्त्ति कैसी थी? ३० उत्तर: - कबूतर की तरह प्रबल शक शक्त्ति वाले थे।
17। चित्रांग कल्पवृक्ष क्या देता है?
१.उत्तर विविध प्रकार की मालाओं आदि देने वाले होते हैं। 18। सातवें प्रकार के कल्पवृक्ष का क्या नाम है? १.उत्तर: - चित्र रास कल्पवृक्ष। 1 9। चित्ररास कल्पवृक्ष क्या देते हैं? १ ९ उत्तर: - विविध प्रकार के रास देने वाले शट् रास भोजन देने वाले होते हैं। 20। आठवे प्रकार के कल्पवृक्ष का क्या नाम है? २०.उत्तर: - मन्यांग कल्पवृक्ष। २१.मण्यंग कल्पवृक्ष क्या देता है? २१.उत्तर: - विविध गहने प्रदान करते हैं। 22। नवमें प्रकार के कल्पवृक्ष कौनसे है?
२२.उत्तर: - गेहकर कल्पवृक्ष। २३.गेहकर कल्पवृक्ष क्या देता है?
२४.उत्तर: - अनग्न कल्पवृक्ष। २५ .अननग्न कल्पवृक्ष क्या देता है? २५.उत्तर: - वस्त्रों की आवश्यकता पूर्ति करने वाले सुंदर सुखद महीन वस्त्र देने वाले होते हैं। 26। पहले आरे के मनुष्यों का आकर स्वरुप कैसा था? २६ उत्तर: - पहले आरे के मनुष्य बड़े सुन्दर शरीर होते थे, समस्त अंग सुव्यवसिथत होते थे। 27। पहले आरे की स्त्रियाँ कैसी होती थीं? २ उत्तर: - श्रेष्ठ और सर्वांग सौंदर्य युक्त्त और महिलोचित गुणों से युक्त्त होता था। 28। पहले आरे के आदमी कितने समय आहार लेते थे? २ उत्तर: - तीन दिन के बाद।
2 9। पहले आरे के मनुष्य कितने आहार करते थे?
२ ९ उत्तर: - तुवर की दाल के सा आहार करते थे।
31। पहले आरे के मनुष्यों को कितनी पसलियाँ थी?
३१ उत्तर: - २५६ पसलियाँ होती थी। 32। पहले आरे के मनुष्यों की श्वास कैसी थी? ३२ उत्तर: - पदम उत्पल और गंध द्रव्यों की तरह सुहागयुक्त था। 33। पहले आरे के मनुष्यों के मुख कैसे थे? ३३ उत्तर: - उनके प्रमुख सदाचार सुस्वितर्ण् युक्त्त रहते थे। 34। पहले आरे के मनुष्यों की प्रकृति कैसी थी? ३४ उत्तर: - उनके स्वभाव, मान, माया, लोभ मंद और हल्के होते थे उनका स्वभाव सरल और मृदु होते थे। 35। पहले आरे के मानवों के कितने संताने होते थे?
३५.उत्तर: - दो संताने-एक पुत्र और एक पुत्री। ३३६। पहले आरे के समय पृथ्वी का स्वाद कैसा था? ३६ उत्तर: - मिश्री जैसा था। 37। पहले आरे के मनुष्यो कहाँ रहते थे? ३ उत्तर: - वृक्षों के घरों में रहते थे। 38। पहले आरे में भारत क्षेत्र में सोने चांदी हीरेंदन होते थे? ३ उत्तर: - हाँ, होते थे पर उन मनुष्यों के उपयोग में नहीं आते थे। ३३ ९ पहले आरे के मनुष्यों की आयु कितनी होती थी? ३ ९ उत्तर: - लेता आरे तीन पल्योपम और उतरते आरे दो पल्योपम की आयु थी। 40। क्या पहले आरे के मानवों को एक-दूसरे के प्रति शत्रु भाव होता था? ४० उत्तर: - नहीं, वे मनुष्य वैरुमेंट से रहित होते थे। 41। क्या पहले आरे में माता-पिता, भाई-बहेन, पुत्र-पुत्री, पुत्र-पुत्रवधु आदि के संबंध थे?
४१ उत्तर: - हाँ, होते थे लेकिन उन मनुष्यों का तीव्र प्रेम बंधन नहीं होता था। 42। क्या पहले आरे में लिन, हार्टअटैक, शूल रोग होते थे? ४२.उत्तर: - नहीं, उस समय के मानवों को कोई भी रोग नहीं होता था। 43। क्या पहले आरे के मानवों में विवाह होते थे? ४३ उत्तर: - नहीं, विवाह प्रणाली नहीं थी।
44। पहले आरे में कितने प्रकार के आदमी रहते थे?
४४ उत्तर: - छह प्रकार के मनुष्य रहते थे। ४५ पहले आरे में छह प्रकार के कौनसे मनुष्य रहते हैं? ४५ उत्तर: - १। पदम् गंध-पदम् कमल के समान गंध वाले २। मृग गंध - कस्तरी सदृश गंध वाले ३। अभय- ममत्व रहित ४। तेजस्वी ५। सह - प्रयोज्य ६। शनशेचरी - उत्सुकता नहीं होने से धीरे-धीरे चलने वाले। 46। क्या पहले आरे में कार, बस, ट्रेन प्लेन आदि साधन थे?
५७.उत्तर:- वे प्रकृति से भद्र,सरल होने के कारण एक मात्र देव गति को ही प्राप्त करते है।
५८. पहले आरे के मनुष्य अगले भाव का आयुष्य बंध कब करते है?
५८. उत्तर:- निरूपक्रमी आयु होने के कारण आयु के ६माह शेष रहते (जब युगल को जन्म देते है) तब आयु का बंध करते है।
५९. पहले आरे के मनुष्यों का दाह संस्कारहोता है?
५९.उत्तर:-पहले आरे के मनुष्यों का दाह संस्कार आदि क्रियाएं नहीं होती है।
६०. पहले आरे के मनुष्यों का मृत देह का दाह संस्कार आदि नहीं होता है तोह फिर मृत देह की क्या स्थिति होती है?
६०.उत्तर: - अपने-अपने क्षेत्रो के क्षेत्रपाल आदि देव उन मृत देहो को उठाकर क्षीर समुद्र में चिन्हों को देते है। 61। क्षीर समुद्र में उन मृत देनों का क्या होता है?
६१.उत्तर:- कच्छ,मच्छप ग्राह आदि जलचर जन्तु उनका भक्षण कर जाते है।
६२ पहले आरे की स्तिथि कितनी है?
62। उत्तर: - ४ कोडकोडी सगारोपम की। ६३.पहला आरा में समय इंसानों की उम्र ऐसा होता था? ६३.उत्तर: - तीन पल्योपम।
64। पहला आरा उतरते समय मनुष्यों की आयु
5। तीसरे आरे के मनुष्यों के शरीर की ऊँचाई कितनी थी?
५.उत्तर: -२००० धनुष प्रमाण।
6। तीसरे आरे के मनुष्यों में कितनी पंसलियाँ थी?
6। उत्तर: - ६४ पंसलियाँ
7। तीसरे आरे उतरते मनुष्यों के शरीर में पंसलियाँ कितनी थीं?
७उत्तर: -३२ पंसलियाँ थी।
8। तीसरे आरे उतरते मनुष्यों की आहारे शुभ दिन कितना होता था?
8। उत्तर: - एक दिन के अन्तराल से।
9। तीसरे आरे लेता मनुष्यों की आयु कितनी थी?
9.उत्तर: - एक पल्योपम की।
10। तीसरे आरे उतरते आरे मनुष्यों की आयु कितनी थी?
१०.उत्तर: - एक करोड़ पूर्व लगभग।
11। तीसरे आरे लगते मनुष्यों का देहमान क्यों था?
11। उत्तर: - एक गऊ का।
12। तीसरे आरे उतरते मनुष्यों का देहमान कैसे था?
१२.उत्तर: - ५०० धनुष प्रमाण।
13। तीसरे आरे के मनुष्य संतान पालन कितने दिन करते थे?
१३.उत्तर: - दिन ९ दिन तक। 18। तीसरे आरे के मनुष्यों के मैथुन संज्ञा होती थी? १.उत्तर: - हाँ, होता है।
14। तीसरे आरे के मनुष्य के कितने संताने थे?
१४.उत्तर: - एक दो रूप से पुत्र-पुत्री होते थे।
15। तीसरे आरे के मनुष्यों को संदेह क्यों कहा गया था?
15। उत्तर: - वे युग्म रूप से जीवन में एक ही बार एक ही दोहरी को जन्म देते थे, इस कारण से वे युगलक कहलाके थे।
१६.क्या तीसरे आरे के मनुष्यों को मरण के समय वेन्ना होता था?
16। उत्तर: - नहीं, केवल छीक, उबासी या खांसी के साथ खुशी से मरण को प्राप्त होते थे।
17। तीसरे आरे के आदमी मरकर कहां जाते थे?
17। उत्तर: - संभावना: मरकर देव गति में जाते थे। 1 9। तीसरे आरे के मनुष्यों के मैथुन कितने बार उत्पन्न हुए थे? 1 9। उत्तर: - सम्पूर्ण जीवन में एक ही बार। 20। इतने दीर्ध जीवन में वे युगलिक कैसे रहते थे?
20। उत्तर: - लगभग सम्पूर्ण जीवन भाई -बहिन के समान बिताते और जीवन के पिछले दिनों में एक बार मैथुन सेवन करते थे। जिससे एक शक का जीवन के अंत में जन्म होता है।
21। तीसरे आरे के अन्तिम त्रिभाग में मानवों की रचना कैसे होती थी?
21। उत्तर: - छहों संथान और छः संस्थान थे।
22। तीसरे आरे के अन्तिम त्रिभाग में मानवों का आयुष्य कितना था?
22। उत्तर: - जघन्य - संख्यात वर्षों का, उत्कृष्ट - असंख्यात विख्यात वर्षो का आयुष्य होता था। 24। कल्पवृक्ष कब से कम फल देना प्रारंभ करते है? 24। उत्तर: - तीसरे आरे के तीसरे विभाग के ६६ लाख करोड़ ६६ हजार करोड़ ६०० करोड़ ६६ करोड़, ६६ लाख, ६६ हजार, ६६ लाख सागरोपम (६६,६६,६६,६० करोड़ रुपए) फल कम देना स्टार्ट कर देना है। २५.तीसरे आरे के अंतिम त्रिभाग में होने वाले मानव अपना आयु पूर्ण पूर्ण कहाँ है?
23। दोहराव मनुष्यों में परस्पर झगड़े कब से शुरू होता है?
२३.उत्तर: - जब कल्पवृक्षो से पूरी वस्तुएं प्राप्त नहीं होती हैं तब।
25। उत्तर: - चारों गतियों में।
२६। क्या पाँचवी मोक्ष गति में भी जा सकते थे?
२६.उत्तर: - हाँ, जा सकते थे, समग्र दुःखों का अंतर द्वारा।
27। कुलकर ने क्या कहा है?
२.उत्तर: - कुल की व्यवस्था का संचालन करने वाला जो प्रट इष्टतमह प्रतिभा संपन्न व्यकति होता है।
उसे कुलकर कहते हैं। 2 9। १५ कुलकर कब उत्पन्न होते हैं? 2 9। उत्तर: - तीसरे आरे के अंतिम तीसरे त्रिभाग के समाप्त होने में जब एक पल्योपम का आठवां भाग शेष रहता है, तब पहले कुलकल का जन्म होता है। 30। कुलकर में क्या है? 30। उत्तर: - विशिष्ट बुद्धिशाली, प्रज्ञा संपन्न प्रभाष कुलकर कहलाते थे। 31। १५ कुलकर कब उत्पन्न होते हैं? ३१ उत्तर: - तीसरे आरे के अंतिम तीसरे त्रिभाग के समाप्त होने में जब एक पल्योपम का आठवां भाग शेष रहता है, तब पहले कुलकर का जन्म होता है।
28। कुलकर में कितना होता है?
२.उत्तर: - जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र के अनुसार १५ कुलकर होते हैं।
32। प्रथम के पाँच कुलकरो के समय कौनसी दण्डनीति थी?
३२.उत्तर: - हकार नामक दण्डनीति
थी।
33। हकार निति का क्या अर्थ है?
३३.उत्तर: - वे कुलकर उपराधी मनुष्य को हकार = हा! इसने कई कथन मात्र से ललित होकर विनायवान हो जाते थे फिर से अपराधी नहीं थे।
34। १५ कुलकरो में से प्रथम के ५ कुलकरो का नाम क्या है?
34। उत्तर: -१.सुमति
२। प्रतिश्रुति
३.समिमंकर
४Cmnhar
५.क्षेमंकर १५.ऋषदेव।
35। छठे से दसवें कुलकरो के क्या नाम थे?
35। उत्तर: - ive। क्षेमधर
७ विमलवाहन
क्षचक्षुष्मान
९.यशस्वान
१०। अभिचंद्र कुलकर।
३६.इन पांच कुलकरो के समय कौनसी दण्डनिति थी?
३६.उत्तर: - मकार नामक दण्डनीति थी।
३.मकर निति का क्या अर्थ है?
37। उत्तर: - वे मनुष्य मकार ~ - मा करू! ऐसा मत करो ~~ इस कथन रूप दंड से ललित होकर विनित हो जाते हैं और फिर से उसी तरह अपराध नहीं करते।
38। ओवनवे से पन्द्र्ह वें तक के कुलकर कौन थे? १४.नगरी
३.उत्तर: -११.चन्द्राभ
१२.प्रसेनजित
१३.मरुदेव ३ ९.इन पांच कुलकरो के समय कौनसी दण्डनिति थी? ३ ९.उत्तर: - धिक्कार नामक दण्डनीति थी? ४०.धिक्कार निति का क्या अर्थ है? ४०.उत्तर: - उस समय के मनुष्य धिक्कार ~ इस कार्य के लीये आपको धिक्कार।इतने कथन मात्र दण्ड से ललित होकर फिर पुनः वैसा अकार्य नहीं थे। 41। १५ कुलकरो का वर्णन कहाँ आया है? 41। उत्तर: -जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र के दूसरे वक्षवर्धन में वर्णन आया है?
३.तीसरा आरा - सुषम- दु:षमा
१. तीसरा आरा का नाम क्या है?
१.उत्तर :- सुषम- दु:षमा नामक आरा।
२. तीसरे आरे को कितने भागों में विभक्त किया गया है?
२.उत्तर:-तीन भागों में
१ प्रथम त्रिभाग
२ मध्यम त्रिभाग
३ अन्तिम त्रिभाग।
३. प्रथम तथा मध्यम त्रिभाग का आकार -प्रकार कैसा था?
३.उत्तर:- उस समय का भूमिभाग बहुत समतल और रमणीय था।
४. तीसरे आरे में मिट्टी का स्वाद कैसा होता था?
४.उत्तर :- ग़ुड़ जैसा स्वाद था।
५. तीसरे आरे के मनुष्यों के शरीर की ऊँचाई कितनी थी?
५.उत्तर:-2000 धनुष प्रमाण।
६. तीसरे आरे के मनुष्यों में कितनी पंसलियाँ थी?
६. उत्तर :- ६४ पंसलियाँ ।
७. तीसरे आरे उतरते मनुष्यों के शरीर में पंसालियाँ कितनी थी?
७.उत्तर :-३२ पंसलियाँ थी।
८. तीसरे आरे उतरते मनुष्यों की आहारेच्छा कितने दिन से होती थी?
८. उत्तर:- एक दिन के अन्तराल से।
९. तीसरे आरे लगते मनुष्यों की आयु कितनी थी?
९.उत्तर :- एक पल्योपम की।
१०. तीसरे आरे उतरते आरे मनुष्यों की आयु कितनी थी?
१०.उत्तर :- एक करोड़ पूर्व लगभग।
११. तीसरे आरे लगते मनुष्यों का देहमान कितना था?
११. उत्तर:- एक गऊ का।
१२. तीसरे आरे उतरते मनुष्यों का देहमान कितना था?
१२.उत्तर :- ५०० धनुष प्रमाण।
१३. तीसरे आरे के मनुष्य संतान पालन कितने दिन करते थे?
१३.उत्तर :- ७९ दिन तक।
१४. तीसरे आरे के मनुष्य के कितनी संताने होती थी?
१४.उत्तर :- एक युगल रूप से पुत्र-पुत्री होते थे।
१५. तीसरे आरे के मनुष्यों को युगलिक क्यों कहा जाता था?
१५. उत्तर :- वे युग्म रूप से जीवन में एक ही बार एक ही युगल को जन्म देते थे, इस कारण से वे युगलिक कहलाते थे।
१६.क्या तीसरे आरे के मनुष्यों को मरण के समय वेदना होती थी?
१६. उत्तर :- नहीं,केवल छीक,उबासी या खांसी के साथ सुखपूर्वक मरण को प्राप्त होते थे।
१७. तीसरे आरे के मनुष्य मरकर कहाँ जाते थे?
१७. उत्तर :- प्रायः मरकर देव गति में जाते थे।
१८. तीसरे आरे के मनुष्यों के मैथुन संज्ञा होती थी ?
१८.उत्तर :- हाँ,होती थी।
१९. तीसरे आरे के मनुष्यों के मैथुन कितनी बार उत्पन्न होती थी?
१९. उत्तर:- सम्पूर्ण जीवन में एक ही बार।
२०. इतने दीर्ध जीवन में वे युगलिक कैसे रहते थे?
२०. उत्तर:- लगभग सम्पूर्ण जीवन भाई -बहिन के समान बिताते और जीवन के पिछले दिनों में एक बार मैथुन सेवन करते थे। जिससे एक युगल का जीवन के अंत में जन्म होता था।
२१. तीसरे आरे के अन्तिम त्रिभाग में मानवों की कैसी रचना होती थी?
२१. उत्तर :- छहों संहनन और छहों संस्थान होते थे।
२२. तीसरे आरे के अन्तिम त्रिभाग में मानवों का आयुष्य कितना था?
२२. उत्तर :- जघन्य - संख्यात वर्षों का,उत्कृष्ट - असंख्यात वर्षो का आयुष्य होता था।
२३. युगलिक मनुष्यों में परस्पर झग़ड़ा कब शुरू होता है?
२३.उत्तर :- जब कल्पवृक्षो से पूरी वस्तुएं प्राप्त नहीं होती तब।
२४. कल्पवृक्ष कब से कम फल देना प्रारंभ करते है?
२४. उत्तर :- तीसरे आरे के तीसरे विभाग के ६६ लाख करोड़ ६६ हजार करोड़ ६०० करोड़ ६६ करोड़, ६६ लाख,६६ हजार,६६६ सागरोपम (६६,६६,६६,६६,६६,६६,६६ करोड़ सागरोपम) काल शेष रहने पर कल्पवृक्ष फल कम देना प्रारंभ कर देते है ।
२५.तीसरे आरे के अंतिम त्रिभाग में होने वाले मानव अपना आयुष्य पूर्ण कर कहाँ जाते है?
२५. उत्तर :- चारों गतियों में।
२६ . क्या पाँचवी मोक्ष गति में भी जा सकते थे?
२६.उत्तर :- हाँ,जा सकते थे, समग्र दुःखों का अन्त करके।
२७. कुलकर किसे कहते है?
२७.उत्तर:- कुल की व्यवस्था का संचालन करने वाला जो प्रत्कृष्ट् प्रतिभा संपन्न व्यकति होता है।
उसे कुलकर कहते है।
२८. कुलकर कितने होते है?
२८.उत्तर:- जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्रानुसार १५ कुलकर होते है।
२९. १५ कुलकर कब उत्पन्न होते है?
२९. उत्तर:- तीसरे आरे के अंतिम तीसरे त्रिभाग के समाप्त होने में जब एक पल्योपम का आठवां भाग शेष रहता है, तब पहले कुलकल का जन्म होता है ।
३०. कुलकर क्या होते है?
३०. उत्तर:- विशिष्ट बुद्धिशाली,प्रज्ञा संपन्न पुरष कुलकर कहलाते थे।
३१. १५ कुलकर कब उत्पन्न होते है?
३१ उत्तर :- तीसरे आरे के अंतिम तीसरे त्रिभाग के समाप्त होने में जब एक पल्योपम का आठवां भाग शेष रहता है,तब पहले कुलकर का जन्म होता है।
३२. प्रथम के पाँच कुलकरो के समय कौनसी दण्डनीति थी?
३२.उत्तर:- हकार नामक दण्डनीति
थी।
३३. हकार निति का क्या अर्थ है?
३३.उत्तर:- वे कुलकर उपराधी मनुष्य को हकार = हा! यह किया इतने कथन मात्र से लज्जित होकर विनायवान हो जाते थे फिर से अपराधी नहीं करते थे।
३४. १५ कुलकरो में से प्रथम के ५ कुलकरो का नाम क्या है?
३४. उत्तर :-१.सुमति
२. प्रतिश्रुति
३.सिमंकर
४.सीमन्धर
५.क्षेमंकर।
३५. छठे से दसवें कुलकरो के क्या नाम थे?
३५. उत्तर:- ६. क्षेमंधर
७. विमलवाहन्
८.चक्षुष्मान
९.यशस्वान
१०. अभिचन्द्र कुलकर।
३६.इन पाँच कुलकरो के समय कौनसी दण्डनिति थी?
३६.उत्तर:- मकार नामक दण्डनिति थी ।
३७.मकार निति का क्या अर्थ है?
३७. उत्तर :- वे मनुष्य मकार ~- मा करू!ऐसा मत करो ~~इस कथन रूप दंड से लज्जित होकर विनित हो जाते और फिर से वैसे अपराध नहीं करते।
३८. ग्यारहवे से पन्द्र्ह वें तक के कुलकर कौन थे?
३८.उत्तर :-११.चन्द्राभ
१२.प्रसेनजित
१३.मरुदेव
१४.नाभि
१५.ऋषभदेव।
३९.इन पाँच कुलकरो के समय कौनसी दण्डनिति थी?
३९.उत्तर :- धिक्कार नामक दण्डनिति थी?
४०.धिक्कार निति का क्या अर्थ है?
४०.उत्तर:- उस समय के मनुष्य धिक्कार ~इस कार्य के लीये तुम्हें धिक्कार है।इतने कथन मात्र दण्ड से लज्जित होकर फिर पुनः वैसा अकार्य नहीं करते थे।
४१. १५ कुलकरो का वर्णन कहाँ आया है?
४१. उत्तर :-जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र के दूसरे वक्षस्कार में वर्णन आया है?
४२. कुलकर युग कब तक चलता है?
४२.उत्तर:-जब तक तीर्थंकर भगवान का जन्म नहीं होता उनसे पहले-पहले तक चलता है।
४३. कुलकर युग समाप्त होने के पश्चात किसका काल प्रारंभ होता है?
४३.उत्तर:- कर्मभूमि का काल।
४४.प्रथम तीर्थंकर का जन्म कब होता है?
४४.उत्तर :-जब तीसरा आरा पूर्ण होने में ८४ लाख पूर्व ३ वर्ष ८मास १५ दिन शेष रहते है,तब प्रथम तीर्थंकर का जन्म होता है।
४५. प्रथम तीर्थंकर कौन हुये ?
४५.उत्तर :- भगवान ऋषभदेव।
४६. भगवान ऋषभदेव के माता-पिता बनने का सौभाग्य किसको मिला?
४६. उत्तर :- सातवें कुलकर नाभिराजा पिता व् मरुदेवी माता।
४७. जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति में भगवान ऋषभ को कौनसा कुलकर माना गया है?
४७. उत्तर:- पन्द्रहवां कुलकर।
४८. भगवान ऋषभदेव का राज्याभिषेक किसने किया?
४८.उत्तर :- शक्रेन्द्र ने।
४९. लोगोँ की अपराध प्रवृति बढ़ने पर कौनसी दण्ड निति का भगवान ऋषभदेव ने उपयोग किया?
४९. उत्तर :- परिभाष और मण्डल बंध नामक निति।
५०. परिभाष दण्ड निति क्या है?
५०. उत्तर :- अल्प काल केलिए नजर कैद रखने का आदेश देना।
५१. मंडल बंध दण्ड निति क्या है?
५१. उत्तर :- नियत क्षेत्र से बाहर न जाने का आदेश देना।
५२. भारत चक्रवाती ने कौनसी और दो दंडनीतियो का उपभोग किया?
५२. उत्तर:- चारक और छविच्छेद दंड नीति का।
५३. चारक दंड नीति क्या है?
५३. उत्तर:- जेलखाने में बंद रखने का आदेश देना।
५४. छविच्छेद दंड नीति क्या है?
५४. उत्तर:- हाथ-पैर आदि शरीर के अंग काटने का आदेश देना।
५५. भरत क्षेत्र में प्रथम राजा , प्रथम मुनि, प्रथम केवली, प्रथम तीर्थंकर, प्रथम जिन कौन बने?
५५. उत्तर:- भगवन ऋषभदेव।
५६. भरत क्षेत्र में अवसर्पिणी काल में सर्वप्रथम चार तीर्थो की स्थापना किसने की?
५६. उत्तर :- भगवन ऋषभदेव।
५७. भगवन ऋषभदेव कुमारावस्था में कितने समय तक रहे?
५७. उत्तर:- २० लाख पूर्व तक।
५८. भगवन ऋषभदेव महाराजावस्था में कितने समय तक रहे?
५८. उत्तर :- ६३ लाख पूर्व तक।
५९ भगवान ऋषभदेव ने पुरुषों की कितने कलाएं सिखाई ?
५९. उत्तर:- ७२ कलाएं।
६०. भगवान ऋषभदेव ने स्त्रियों की कितने कलाएं सिखाई ?
६०. उत्तर:- ६४ कलाएं
६१. भगवान ऋषभदेव ने ब्राम्ही को किसका ज्ञान सिखाया?
६१.उत्तर:- १८ प्रकार की लिपिकला का ज्ञान।
६२. भगवान ऋषभदेव ने सुंदरी को कौनसा ज्ञान सिखाया?
६२.उत्तर:- गणित कला का ज्ञान।
६३. भगवान ऋषभदेव के लिए नगरी किसने बनाई ?
६३.उत्तर:- धनपति कुबेर
ने (वैश्रमण देव ने ) ।
६४. इस अवसर्पिणी काल में सर्वप्रथम किस नगरी का निर्माण हुआ?
६४.उत्तर:- विनीता नगरी(आयोध्या नगरी)का।
६५. कुबेर ने किसके आदेश से नगरी का निर्माण किया?
६५. पहले देवलोक इंद्र शकेंद्रा की आज्ञासे।
६६. कुबेर ने विनिता नगरी का निर्माण किससे किया?
६६. उत्तर :- सोने से।
६७. विनिता नगरी कितनी लम्बी चौडी थी?
६७. उत्तर:- १२योजन लम्बी एवं ९ योजन चौड़ी थी।
६८. विनिता नगरी का परकोटा किसका बना हुआ था?
६८.उत्तर:- सोने का बना हुआ था।
६९. विनीता नगरी के स्मरणमय परकोटे के ऊपर कंगूरे किसके बने हुए थे?
६९. विनीता नगरी के स्मरणमय परकोटे के ऊपर कंगूरे किसके बने हुए थे?
७०. पाँच प्रकार के मणिरत्नों के कंगूरे थे।
७१. विनीता नगरी कैसी लगती थी?
७१. उत्तर:- अल्कापूरी सदृश्य (देवताओं की नगरी जैसी) मानो वह स्वर्ग का ही रूप हो,ऐसी मनभावन लगती थी,दर्शनीय,अभिरूप और प्रतिरूप,प्रासादीय मन को प्रस्सन करने वाली थी।
७२. विनीता नगरी की जनता कैसी थी?
७२. उत्तर:- वहाँ की जनता वैभव,सुरक्षा,समृद्धि से युक्त्त, आमोद प्रमोद के प्रचुर साधन होने से बड़ी प्रमुदित रहती थी.पारस्परिक प्रेम-सौहाद्र का वातावरण था।
७३. इस अवसर्पिणी काल में भरत क्षेत्र में सबसे पहले शादी किसकी रचाई गई?
७३. उत्तर:- भगवान ऋषभदेव की।
७४. भगवान ऋषभदेव के विवाह में पुरोहित का कार्य किसने किया ?
७४.उत्तर:- शक्रेंन्द्र ने।
७५. शक्रेंन्द्र ने भगवान ऋषभदेव का कितनी रानियों के साथ विवाह करवाया?
७५ उत्तर:- दो १.सुमंगला २.सुनन्दा।
७६. सुमंगला जी के कितनी संताने थी?
७६.उत्तर:- १००अर्थात् भरत आदि ९९पुत्र एवं एक पुत्री ब्राह्मी जी।
७७. सुनन्दा जी को कितनी संताने थी?
७७. उत्तर:- दो संताने। एक पुत्र बाहुबली जी एवं एक पुत्री सुन्दरी जी।
७८. भगवान ऋषभदेव के सभी पुत्र पुत्री क्या थे ?
७८. उत्तर:- चरम शरीरी।
७९. भरत जी के गर्भ में आने पर सुमंगला जी ने कितने महास्वप्न देखे?
७९. उत्तर:- १४ महास्वप्न
८०. भगवान ऋषभदेव व् सुमंगला का प्रथम रिश्ता क्या था?
८०. उत्तर :- भाई-बहिन का
८१. भगवान ऋषभदेव व् सुमंगला का उस युग के अनुसार दूसरा रिश्ता क्या था?
८१. उत्तर:- पति-पत्नी ।
८२. भगवान ऋषभदेव के गर्भ में अवतरण होने पर माता मरुदेवी ने कितने महा स्वप्न देखे?
८२. उत्तर:- १४ महास्वप्न
८३. भगवान ऋषभदेव के जन्म समय माता मरुदेवी की उम्र कितनी थी?
८३. उत्तर:- १७ लाख पूर्व की थी।
८४. १४ महास्वप्न किन-किन माताओं को आते है?
८४. उत्तर:- तीर्थंकर व् चक्रवर्ती की माताओं को।
८५. भगवान ऋषभदेव जी के पास लोकान्तिक देव कब आए?
८५. उत्तर:- जब भगवान ऋषभदेव ८३ लाख पूर्व में एक वर्ष कम के थे तब आए।
८६. भगवान ऋषभदेव जी को लोकान्तिक देवों ने क्या कहा?
८६.उत्तर:- हे प्रभु!आप तीर्थ प्रवर्तन करो
८७. लोकान्तिक देवों के जाने के बाद भगवान ऋषभदेव ने क्या किया?
८७.उत्तर:- एक वर्ष तक दान दिया।
८८. भगवान ऋषभदेव का अभिनीष्क्रमण किस ऋतु में हुआ?
८८.उत्तर:- ग्रीष्म ऋतु में।
८९. भगवान ऋषभ ने गृह त्याग
किस माह की किस तिथि को किया?
८९.चैत्र कुष्णा अष्टमी को।
९०. भगवान ऋषभ ने गृह त्याग किस प्रहर में किया?
९०.उत्तर:- मध्यानोत्तर काल में।
९१. भगवान ऋषभदेव की अभिनिष्क्रमण यात्रा में कितने प्रकार के देव आये?
९१. उत्तर:- ६४ इन्द्र एवं चारो जाती के असंख्य देवी देवता।
९२. भगवान ऋषभदेव जी संयम ग्रहण करने किस वन में आये?
९२.उत्तर:- सिद्धार्थ वन मे।
९३. भगवान ऋषभदेव जी किस शिविका में बैठकर सिद्धार्थ वन में पधारे?
९३.उत्तर:- सुदर्शना नामक शिविका।
९४. भगवान ऋषभदेव ने किस वृक्ष के निचे केश लोचन किया?
९४.उत्तर:- अशोक वृक्ष के निचे।
९५. भगवान ऋषभदेव ने कितने मुष्ठी लोच किया?
९५. उत्तर:- चार मुष्ठी लोच किया।
९६. भगवान ऋषभदेव के दीक्षा के समय कितना तप था?
१६.उत्तर:- छट्टम तप- बेले की तपस्या (दो उपवास)।
९७. भगवान ऋषभदेव के दीक्षा ग्रहण करते समय कौनसा नक्षत्र था?
९७. उत्तर:- उत्तराषाढ़ा नक्षत्र था ।
९८. भगवान ऋषभदेव के लोच के समय केश राशि को किसने ग्रहण करी?
९८.उत्तर:- देवेन्द्र शक्र ने।
९९. भगवान ऋषभदेव को दीक्षा से पहले शक्रेंद्र ने क्या दिया?
९९.उत्तर:- एक देव दूष्य-दिव्य वस्त्र दिया।
१००. भगवान ऋषभदेव को दीक्षा लेने के बाद प्रथम पारणा कितने दिन से हुआ?
१००.उत्तर:- लगभग एक वर्ष से ज्यादा।
१०१. भगवान ऋषभदेव को कौनसे नगर में केवलज्ञान हुआ?
१०१. उत्तर:-पुरिमतल नगर में।
१०२. भगवान ऋषभदेव केवलज्ञान प्राप्ति के समय पुरिमतल नगर के किस उधान में विराज रहे थे?
१०२.उत्तर:-शकट मुख उद्यान में।
१०३. भगवान ऋषभदेव को किस वृक्ष के नीचे केवल्य ज्ञान प्राप्त हुआ?
१०३.उत्तर:- बरगद के वृक्ष के निचे(वटवृक्ष)।
१०४. भगवान ऋषभदेव के केवलज्ञान प्राप्ति के समय कितनी तपस्या थी?
१०४. उत्तर:- निर्जल तेले की तपस्या थी।
१०५. भगवान ऋषभदेव के दर्शन करते ही केवली कौन बने?
१०५.उत्तर:- माता मरुदेवी।
१०६. भगवान ऋषभदेव के शाशन में प्रथम कौनसे सिद्ध बने?
१०६.उत्तर:- अतीर्थ सिद्धा ।
१०७. भगवान ऋषभदेव के शाशन में अतीर्थ सिद्धा कौन कहलाये?
१०७. उत्तर:- माता मरुदेवी (तीर्थ स्थापना से पूर्व ही मोक्ष गमन हो जाने से)।
१०८. भगवान ऋषभदेव की दो प्रकार की भूमि कौनसी थी?
१०८.उत्तर:- १. युगान्तर भूमि,
२. पर्यायान्तकर भूमि।
१०९. भगवान ऋषभदेव की युगान्तर भूमि क्या थी?
१०९.उत्तर:- युगान्तर भूमि -शिष्य क्रमानुबद्ध यावत असंख्यात पुरुष परंपरा परिमित थी।
११०. भगवान ऋषभदेव की पर्यायान्तकर भूमि कितनी थी?
११०.उत्तर:- अन्तमुहुर्त प्रमाण थी(क्योकी भगवान के केवलज्ञान प्राप्त होने के अन्तर्मुहूर्त पश्चात माता मरुदेवी को मुक्त्ति प्राप्त हो गई थी।
१११. भगवान ऋषभदेव के कितने गण थे?
१११. उत्तर:- ८४ गण थे।
११२. भगवान ऋषभदेव के कितने गणधर थे?
११२.उत्तर:- ८४ गणधर थे।
११३. भगवान ऋषभदेव के कितने शिष्य थे?
११३. उत्तर:- ८४ हजार शिष्य थे।
११४. भगवान ऋषभदेव के कितनी शिष्याएं थी?
११४.उत्तर:- ३ लाख शिष्याएँ थी।
११५. भगवान ऋषभदेव प्रथम शिष्य कौन थे?
११५.उत्तर:- ऋषभसेन जी आदि।
११६. भगवान ऋषभदेव के प्रथम शिष्या कौन थी?
११६.उत्तर:- ब्राह्मी जी।
११७. भगवान ऋषभदेव के कितने श्रावक थे?
११७.उत्तर:-श्रेयांस आदि ३लाख ५० हजार शर्माणोपसक थे।
११८. भगवान ऋषभदेव के कितनी श्राविकाएं थी?
११८. उत्तर:- सुभद्र आदि ५ लाख ५४हजार श्रमणोपासिकाए थी।
११९. भगवान ऋषभदेव के कितने १४पूर्वधर थे?
११९. उत्तर:-४,७५० मुनि पूर्वधर थे।
१२० भगवान ऋषभदेव के कितने आवधिज्ञानी थे?
१२०.उत्तर:- ९,०००
१२१. भगवान ऋषभदेव के कितने केवली जिन थे?
१२१.उत्तर:-२०,०००
१२२. भगवान ऋषभदेव के कितने वैक्रिय लब्धिधारी थे?
१२२. उत्तर:-२०,६००
१२३. भगवान ऋषभदेव के कितने मनःपर्यवज्ञानी थे?
१२३.उत्तर:- १२,६५०
41। १५ कुलकरो का वर्णन कहाँ आया है?
41। उत्तर: -जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र के दूसरे वक्षवर्धन में वर्णन आया है?
42। कुलकर युग कब तक चलता है?
४२.उत्तर: -जब तक तीर्थंकर भगवान का जन्म नहीं होता उन्हें पहले-पहले तक चलता है।
43। कुलकर युग समाप्त होने के पश्चात किसका काल प्रारंभ होता है?
४३.उत्तर: - कर्मभूमि का काल।
४४.प्रथम तीर्थंकर का जन्म कब होता है?
४४.उत्तर :-जब तीसरा आरा पूर्ण होने में ८४ लाख पूर्व ३ वर्ष ८मास १५ दिन शेष रहते है,तब प्रथम तीर्थंकर का जन्म होता है।
४५. प्रथम तीर्थंकर कौन हुये ?
४५.उत्तर :- भगवान ऋषभदेव।
46। भगवान ऋषभदेव के माता-पिता बनने का सौभाग्य किसको मिला?
46। उत्तर: - सातवें कुलकर नाभिराजा पिता व् मरुदेवी माता।
47। जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति में भगवान ऋष को कौनसा कुलकर माना गया है?
47। उत्तर: - पन्द्रहवां कुलकर।
51। उत्तर: - नियत क्षेत्र से बाहर न जाने का आदेश देना।
52। भारत चक्रवाती ने कौनसी और दो दंडनीतियो का उपभोग किया था?
52। उत्तर: - चारक और छवि दंड दंड नीति का। 56। उत्तर: - भगवान ऋषभदेव 57। भगवन ऋषभदेव कुमारावस्था में कितने समय तक रहे? 57। उत्तर: - २० लाख पूर्व तक।
5 9। उत्तर: - :२ कलाएँ।
60। भगवान ऋषभदेव ने स्त्रियों की कलाएँ सिखाईं?
६१.उत्तर: - १८ प्रकार की लिपिकला का ज्ञान।
62। भगवान ऋषभदेव ने सुंदरी को कौनसा ज्ञान सिखाया?
६२.उत्तर: - गणित कला का ज्ञान।
63। भगवान ऋषभदेव के लिए नगरी किसने बनाई?
६३.उत्तर: - धनपति कुबेर ने
(वैश्रमण देव ने)।
64। इस छत्रपति काल में सर्वप्रथम किस नगरी का निर्माण हुआ?
६४.उत्तर: - विनीता नगरी (आयोध्या नगरी) का।
65। कुबेर ने किसके आदेश से नगरी का निर्माण किया?
65। पहले देवलोक इंद्र शकेंद्रा की आज्ञा।
66। कुबेर ने अमीता नगरी का निर्माण किससे किया?
66। उत्तर: - सोने से।
67। प्रेमता नगरी कितनी लम्बी चौडी थी?
67। उत्तर: - १२ योजन लम्बी एवं ९ योजन चौर्य थी।
68। प्रेमता नगरी का परकोटा किसका बना हुआ था?
६ .उत्तर: - सोने का बना हुआ था।
6 से 9। विनीता नगरी के स्मरणमय परकोटे के ऊपर कंगूरे किसके बने थे?
6 से 9। विनीता नगरी के स्मरणमय परकोटे के ऊपर कंगूरे किसके बने थे?
70। पांच प्रकार के मणिरत्नों के कंगूरे थे।
71। विनीता नगरी कैसी लगती है?
71। उत्तर: - अल्कापुरी सदभाव (भगवान की नगरी जैसी) मानो वह स्वर्ग का ही रूप हो, ऐसी मनभावन लगती थी, वास्तव में, अभिरूप और प्रतिरूप, प्रसादादि मन को प्रस्सन करने वाली थी।
72। विनीता नगरी की जनता कैसी थी?
72। उत्तर: - वहाँ की जनता वैभव, सुरक्षा, समृद्धि से युक्त्त, आमोद प्रमोद के प्रचुर साधन होने से बड़ी प्रमुदित रहती थी। पप्स प्रेम-सौहाद्र का वातावरण था।
73। इस सत्र में श्रीपर्णी काल में भरत क्षेत्र में सबसे पहले विवाह किसकी रचाई गई?
73। उत्तर: - भगवान ऋषभदेव की।
74। भगवान ऋषभदेव के विवाह में पुरोहित का कार्य किसने किया?
७4.उत्तर: - शक्रेंद्र ने कहा।
75। शक्रेंद्र ने भगवान ऋषभदेव का कितने रिल्डों के साथ विवाह करवाया?
७५ उत्तर: - दो १.सुमंगला २. ज्ञानन्दा।
76। सुमंगला जी के कितने संताने थे?
६६.उत्तर: - १०० अर्थात् भरत आदि ९ ९पुरात्र और एक पुत्री ब्राह्मी जी।
77। सुनन्दा जी को कितना संताने था?
77। उत्तर: - दो संताने। एक बेटा बाहुबली जी और एक पुत्री सुन्दरी जी।
78। भगवान ऋषभदेव के सभी पुत्र पुत्री क्या थे?
78। उत्तर: - चरम शरीरी।
7 से 9। भरत जी के गर्भ में आने पर सुमंगला जी ने कैसे महास्वप्न देखा?
7 से 9। उत्तर: - १४ महास्वप्न --0
। भगवान ऋषभदेव व् सुमंगला का पहला रिश्ता क्या था?
80। उत्तर: - भाई-बहिन का
। भगवान ऋषभदेव व् सुमंगला का उस युग के अनुसार दूसरा संबंध क्या था?
81। उत्तर: - पति-पत्नी
82। भगवान ऋषभदेव के गर्भ में अवतरण होने पर माता मरुदेवी ने कितनी महा स्वप्न देखा?
82। उत्तर: - १४ महास्वप्न --3
। भगवान ऋषभदेव के जन्म समय माता मरुदेवी की उम्र कितनी थी?
83। उत्तर: - १७ लाख पूर्व की थी।
84। १४ महास्वप्न किन-किन माताओं को आता है?
84। उत्तर: - तीर्थंकर व् चक्रवर्ती की माताओं को।
85। भगवान ऋषभदेव जी के पास लोकनाथिक देव कब आए?
85। उत्तर: - जब भगवान ऋषभदेव लाख3 लाख पूर्व में एक वर्ष कम के थे तब आए थे।
86। भगवान ऋषभदेव जी को लोकनाथिक देवों ने क्या कहा?
८६.उत्तर: - हे प्रभु! आप तीर्थ प्रवर्तन
८७। लोकनाथिक देवों के जाने के बाद भगवान ऋषभदेव ने क्या किया?
।उत्तर: - एक वर्ष तक दान दिया।
88। भगवान ऋषभदेव का अभिनीष्क्रमण किस ऋतु में हुआ?
उ.उत्तरगया ग्रीषमऋतु में।
8 से 9। भगवान ऋत ने गृह त्याग किया
किस महीने की किस तिथि को किया था?
८ ९.चैत्र कुष्ठ अष्टमी को।
9 0। भगवान ऋषभ ने गृह त्याग किस प्रहर में किया था?
९०.उत्तर: - मध्यानंद काल में।
9 1। भगवान ऋषभदेव की अभिनिष्क्रमण यात्रा में कितने प्रकार के देव आये?
9 1। उत्तर: - ६४ इन्द्र & चारो जाता के अवतार देवी देवता।
9 2। भगवान ऋषभदेव जी संयम ग्रहण करते हुए कौन से आये?
९२.उत्तर: - सिद्धार्थ वन मे।
9 3। भगवान ऋषभदेव जी किस शिविका में बैठकर सिद्धार्थ वन में पधारे?
93.उत्तर: - सुदर्शना नामक शिविका।
9 4। भगवान ऋषभदेव ने किस वृक्ष के निचे केश लोचन किया था?
९४.उत्तर: - अशोक वृक्ष के निचे।
9 5। भगवान ऋषभदेव ने कैसे मुर्ती लोच किया था?
9 5। उत्तर: - चार मूर्तिजी लोचदार किया।
9 6। भगवान ऋषभदेव के दीक्षा के समय कितने तप थे?
१६.उत्तर: - छट्टम तप- बेले की तपस्या (दो उपवास)।
9 7। भगवान ऋषभदेव के दीक्षा ग्रहण करते समय कौनसा नक्षत्र था?
9 7। उत्तर: - हर्षाडन नक्षत्र था।
9 7। उत्तर: - हर्षाडन नक्षत्र था।
9 8। भगवान ऋषभदेव के लोचदार के समय केश राशि को किसने ग्रहण किया?
९.उत्तर: - देवेन्द्र शक्र ने कहा है।
99। भगवान ऋषभदेव को दीक्षा से पहले शक्रेंद्र ने क्या दिया था?
99.उत्तर: - एक देव दूती-दिव्य वस्त्र दिया।
100। भगवान ऋषभदेव को दीक्षा लेने के बाद प्रथम पारणा कितने दिन से हुआ?
१००.उत्तर: - लगभग एक वर्ष से अधिक।
101। भगवान ऋषभदेव को कौनसे नगर में ही ज्ञान हुआ?
101। उत्तर: -पुरिमतल नगर में।
102। भगवान ऋषभदेव केवलज्ञान प्राप्ति के समय पुरिमतल नगर के किस उधान में विराज रहे थे?
१०२.उत्तर: -शकट मुख्य उद्यान में।
103। भगवान ऋषभदेव को किस वृक्ष के नीचे केवल ज्ञान प्राप्त हुआ?
१०३.उत्तर: - बरगद के वृक्ष के निचे (वटवृक्ष)।
104। भगवान ऋषभदेव के ही ज्ञान प्राप्ति के समय कितनी तपस्या थी?
104। उत्तर: - निर्जल तेले की तपस्या थी।
105। भगवान ऋषभदेव के दर्शन करते ही केवली कौन बने?
१०५.उत्तर: - माता मरुदेवी। 107। भगवान ऋषभदेव के शाशन में अतीर्थ सिद्धा कौन कहलाये?
106। भगवान ऋषभदेव के शाशन में प्रथम कौनसे अनुक्रम बने?
१०६.उत्तर: - अतीर्थ सिद्ध।
107। उत्तर: - माता मरुदेवी (तीर्थ स्थापना से पूर्व ही मोक्ष गमन हो जाना)।
108। भगवान ऋषभदेव की दो प्रकार की भूमि कौनसी थी?
१० १.उत्तर: - १। युगान्तर भूमि,
२। पर्यायान्तकर भूमि।
10 9। भगवान ऋषभदेव की युगान्तर भूमि क्या थी?
१० ९.उत्तर: - युगान्तर भूमि-ऋषि क्रमानुगत या पिछड़े असंख्यात विख्यात पुरुष परंपरा परिमित था।
110। भगवान ऋषभदेव की पर्याय्नतकर भूमि कितनी थी?
११०.उत्तर: - अन्तमुहुर्त प्रमाण था (क्योकी भगवान के ही ज्ञान प्राप्त होने के अन्तर्मुहूर्त पश्चात माता मरुदेवी को मुक्त्ति प्राप्त हुई थी।
१११. भगवान ऋषभदेव की कितनी गण थे? ११११-
उत्तर: - ८४ गण थे?
११२. भगवान ऋषभदेव) कितने गणधर थे?
११२84 थे।
११३. भगवान ऋषभदेव) कितने शिष्य
थे? 113. उत्तर: - 84 हजार शिष्य
थे। 114. भगवान ऋषभदेव के कितनी शिष्याएं
3 लाख शिष्याएँ थी।
थी? 114.उत्तर: -
115। भगवान ऋषभदेव प्रथम शिष्य कौन थे?
११५.उत्तर: - ऋषसेन जी आदि।
116। भगवान ऋषभदेव के प्रथम शिष्या कौन थे?
११६.उत्तर: - ब्राह्मी जी।
117। भगवान ऋषभदेव के कितनश्रावक थे?
११ १.उत्तर: -श्रेयांस आदि ३३ लाख ५० हजार शर्मानोपसक थे।
118। भगवान ऋषभदेव के कितने श्राविकाएं थे?
118। उत्तर: - सुभद्र आदि ५ लाख ५४ हजार श्रमणोपासिका था।
11 9। भगवान ऋषभदेव के कितने १४ पूर्वधर थे?
11 9। उत्तर: -४, 750मुनि पूर्वधर थे।
१२० भगवान ऋषभदेव के कितने आवधिज्ञानी थे?
१२०.उत्तर: - ९, ००० १२२१
। भगवान ऋषभदेव के कितने केवली जिन थे?
१२१.उत्तर: -२०,०००
१२२। भगवान ऋषभदेव के कितने वैश्य और लब्धिधारी थे?
122। उत्तर: -२०,६०० १२२३
। भगवान ऋषभदेव के कितने मनःपर्यवज्ञानी थे?
१२३.उत्तर: - १२,६५०
१२४। भगवा à
*
221 भगवान ऋषभदेव के समय माता मरुदेवी की उम्र कितनी थी ?
उत्तर- 17लाख पूर्व की थी
~
148 पंद्रह कुलकरो का वर्णन कहाँ आया है ?
उत्तर- जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र के दूसरे वक्षस्कार मे
149 स्थानांग और संवायांग सूत्र में कुलकर कितने बताये गए है ?
उत्तर- सात कुलकर
150 पहले कुलकर का क्या नाम है ?
उत्तर- विमलवाहन कुलकर
~~
प्रश्न : कुलकरों की उत्पत्ति कब होती है?
उत्तर : प्रत्येक अवसर्पिणी काल के तृतीय काल ( सुखमा - दुखमा ) में पल्योपम के आठवें भाग मात्र काल शेष रह जाने पर कुलकरों की उत्पत्ति शुरू होती है। इसी प्रकार उत्सर्पिणी काल के दूसरे काल के अन्त में ये उत्पन्न होते हैं।
प्रश्न : इन्हें कौन सा ज्ञान होता है?
उत्तर : इनमें से किसी को जाति स्मरण या किसी को अवधिज्ञान होता है।
प्रश्न : तीसरे काल में क्या परिवर्तन होने लगते हैं?
उत्तर : सुखमा - दुखमा नाम के तीसरे काल में प्राकृतिक संपदाओं का अभाव होने लगता है। कल्पवृक्षों के फल मंद या समाप्त होने लगते हैं, जिसके फलस्वरूप सुखोपभोग की सामग्री में कमी आने लगती है।
प्रश्न : कुलकर किसे कहते हैं?
उत्तर : तीसरे काल के समय होने वाले प्राकृतिक परिवर्तन से चकित और चिन्तित मानव समाज को सही परामर्श दे समस्याओं का समाधान बताते हैं, उन्हें कुलकर कहते हैं।
प्रश्न : कुलकर हमें क्या सिखाते हैं?
उत्तर : कुलकर मानव और प्रकृति के संबंधों को उद्घाटित कर मनुष्य को जीने की कला सिखाते हैं। ये कुलकर मनुष्यों को लकड़ी, पत्थर आदि का संघर्षण कर अग्नि उत्पन्न करने की, अन्न पकाने की शिक्षा देते हैं तथा विवाह करके इच्छानुसार सुखोपभोग की प्रेरणा देते हैं।
प्रश्न : इस अवसर्पिणी के कुलकर के नाम बताइए?
उत्तर : इस अवसर्पिणी काल के तीसरे सुषमा - दुषमा नामक तीसरे काल में क्रमशः चौदह कुलकर हुए। उनके नाम निम्न प्रकार है:
1.प्रतिश्रुति, 2.सन्मति, 3.क्षेमकंर, 4.क्षेमन्धर, 5.सीमंकर, 6.सीमन्धर, 7.विमलवाहन, 8.चक्षुष्मान, 9.यशस्वी, 10.अभिचन्द्र, 11.चन्द्राभ, 12.मरुदेव, 13.प्रसेनजित, 14.नाभिराज या नाभिराय।
1) स्वयंप्रभा (2) यशस्वी (3) सुनंदा (4) विमला (5) मनोहरी (6) यशोधरा (7) सुमति (8) धारिणी (9) कांतमाला (10) श्री मती (11) प्रभावती (12) सत्या (13) अभितमति (14) मरूदेवी
1) स्वयंप्रभा (2) यशस्वी (3) सुनंदा (4) विमला (5) मनोहरी (6) यशोधरा (7) सुमति (8) धारिणी (9) कांतमाला (10) श्री मती (11) प्रभावती (12) सत्या (13) अभितमति (14) मरूदेवी
प्रश्न : उत्सर्पिणी काल में कितने कुलकर होते हैं?
उत्तर : जिस प्रकार अवसर्पिणी काल में चौदह कुलकर होते हैं, उसी प्रकार उत्सर्पिणी काल में भी चौदह कुलकर होते हैं।
प्रश्न : उत्सर्पिणी काल में कुलकरों की उत्पत्ति कब होती है?
उत्तर : उत्सर्पिणी काल में कुलकरों की उत्पत्ति_*" दुषमा "*_ नामक द्वितीय काल के बीस हजार वर्ष व्यतीत हो जाने पर एक हजार वर्ष की शेष अवधि में होती है।
प्रश्न : उत्सर्पिणी काल के अन्तिम कुलकर के बाद कौन जन्म लेते हैं?
उत्तर : उत्सर्पिणी काल के अन्तिम कुलकर के बाद तीर्थंकर जन्म लेते हैं।
प्रश्न : आगामी उत्सर्पिणी काल के चौदह कुलकरों के नाम बताइए?
उत्तर : _*आगामी उत्सर्पिणी काल के चौदह कुलकरों के नाम निम्नलिखित हैं*_
1.कनक, 2.कनकप्रभ, 3.कनकराज, 4.कनकध्वज, 5.कनकपुंगव, 6.नलिन, 7.नलिनप्रभ, 8.नलिनराज, 9.नलिनध्वज, 10.नलिन पुंगव, 11.पद्मप्रभ, 12.पद्मराज, 13.पद्मध्वज, 14.पद्मपुंगव।
*आज का प्रसंग*
जैन कालचक्र- तीसरे भाग, सुखमा-दुखमा में १४ कुलकर हुए थे।
इस भरतक्षेत्र के मध्यवर्ती आर्यखण्ड में अवसर्पिणी का तृतीय काल चल रहा था। इनमें आयु, अवगाहना, ऋद्धि, बल और तेज घटते-घटते जब इस तृतीय काल में पल्योपम के आठवें भाग मात्र काल शेष रह जाता है तब कुलकरों की उत्पत्ति प्रारंभ होती है।
जैन धर्म में कुलकर उन बुद्धिमान पुरुषों को कहते हैं जिन्होंने लोगों को जीवन निर्वाह के श्रमसाध्य गतिविधियों को करना सिखाया।[1] जैन ग्रन्थों में इन्हें मनु भी कहा गया है। जैन काल चक्र के अनुसार जब अवसर्पिणी काल के तीसरे भाग का अंत होने वाला था तब दस प्रकार के कल्पवृक्ष (ऐसे वृक्ष जो इच्छाएँ पूर्ण करते है) कम होने शुरू हो गए थे,[2] तब १४ महापुरुषों का क्रम क्रम से अंतराल के बाद जन्म हुआ। इनमें अंतिम कुलकर नाभिराज थे, जो प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के पिता थे।
*चौदह कुलकर कहाँ से आये थे*
प्रतिश्रुति आदि को लेकर नाभिराजपर्यंत ये सब चौदह कुलकर अपने पूर्व भव में विदेह क्षेत्र में महाकुल में राजकुमार थे, उन्होंने उस भव में पुण्य बढ़ाने वाले पात्रदान तथा यथायोग्य व्रताचरणरूपी अनुष्ठानों के द्वारा सम्यग्दर्शन प्राप्त होने से पहले ही भोगभूमि की मनुष्य आयु बाँध ली थी, बाद में श्री जिनेन्द्र देव के समीप रहने से क्षायिक सम्यग्दर्शन तथा श्रुतज्ञान की प्राप्ति हुई थी जिसके फलस्वरूप आयु के अंत में मरकर वे इस भरतक्षेत्र में उत्पन्न हुए थे। इन चौदह कुलकरों में से कितने ही कुलकरों को जातिस्मरण था और कितने ही अवधिज्ञानरूपी नेत्र के धारक थे इसलिए उन्होंने विचार कर प्रजा के लिए ऊपर कहे हुए कार्यों का उपदेश दिया था। ये प्रजा के जीवन को जानने से ‘मनु’ तथा आर्य पुरुषों को कुल की तरह इकट्ठे रहने का उपदेश देने से ‘कुलकर’, अनेकों वंशों को स्थापित करने से ‘कुलंधर’ तथा युग की आदि में होने से ‘युगादि पुरुष’ भी कहे गये थे।
चौदह कुलकर
1️⃣ *प्रतिश्रुतिकुलकर*
प्रथम कुलकर का नाम ‘प्रतिश्रुति’ और उनकी देवी का नाम स्वयं प्रभा था। उनके शरीर की ऊँचाई एक हजार आठ सौ धनुष और आयु पल्य के दसवें भाग प्रमाण थी।उनका नाम विमल वाहन के नाम सेइसलिये प्रसिद्ध हुए क्योंकि वो सफेद हाथी (वाहन)
पर सवारी करते थे। सफेदहाथी ने पुर्वभव की प्रीति से प्रेरित होकर इनयुगल को सूंड मे उठा कर अपनी पीठ पर बैठाया ?
विमलवाहन कुलकर की पुर्व भव की पत्नी का नाम ,प्रियदर्शना था।
उस समय आषाढ़ शुक्ला पूर्णिमा के दिन सायंकाल में भोगभूमियों को पूर्व दिशा में उदित होता हुआ चन्द्र और पश्चिम दिशा में अस्त होता हुआ सूर्य दिखलाई पड़ा। ‘यह कोई आकस्मिक उत्पात है’ ऐसा समझकर वे लोग भय से व्याकुल हो गये। उस समय वहाँ पर ‘प्रतिश्रुति’ कुलकर सबमें अधिक तेजस्वी और प्रजाजनों के हितकारी तथा जन्मांतर के संस्कार से अवधिज्ञान को धारण किये हुए थे, सभी में उत्कृष्ट बुद्धिमान गिने जाते थे।उन्होंने जातीस्मरण ज्ञान से पूर्वभव मे पालीहुई न्यायनीति जानी थी । उन्होंने कहा-हे भद्र पुरुषों! तुम्हें जो ये दिख रहे हैं वे सूर्य-चन्द्र नाम के ग्रह हैं, कालवश अब ज्योतिरंग जाति के कल्पवृक्षों की किरण समूह मंद पड़ गई हैं अतः इस समय ये दिखने लगे हैं, ये हमेशा ही आकाश में परिभ्रमण करते रहते हैं, अभी तक ज्योतिरंग कल्पवृक्ष से इनकी प्रभा तिरोहित होने से ये नहीं दिखते थे अतः तुम इनसे भयभीत मत होवो। प्रतिश्रुति के वचनों से उन लोगों को आश्वासन प्राप्त हुआ और उन लोगों ने उनके चरण कमलों की पूजा तथा स्तुति की।
*प्रश्न के उत्तर भेजे* ⤵️
9️⃣9️⃣2️⃣6️⃣1️⃣6️⃣4️⃣0️⃣8️⃣9️⃣
*अंजुगोलछा*
*आज का प्रसंग*
जैन कालचक्र- तीसरे भाग, सुखमा-दुखमा में १४ कुलकर हुए थे।
इस भरतक्षेत्र के मध्यवर्ती आर्यखण्ड में अवसर्पिणी का तृतीय काल चल रहा था। इनमें आयु, अवगाहना, ऋद्धि, बल और तेज घटते-घटते जब इस तृतीय काल में पल्योपम के आठवें भाग मात्र काल शेष रह जाता है तब कुलकरों की उत्पत्ति प्रारंभ होती है।
जैन धर्म में कुलकर उन बुद्धिमान पुरुषों को कहते हैं जिन्होंने लोगों को जीवन निर्वाह के श्रमसाध्य गतिविधियों को करना सिखाया।[1] जैन ग्रन्थों में इन्हें मनु भी कहा गया है। जैन काल चक्र के अनुसार जब अवसर्पिणी काल के तीसरे भाग का अंत होने वाला था तब दस प्रकार के कल्पवृक्ष (ऐसे वृक्ष जो इच्छाएँ पूर्ण करते है) कम होने शुरू हो गए थे,[2] तब १४ महापुरुषों का क्रम क्रम से अंतराल के बाद जन्म हुआ। इनमें अंतिम कुलकर नाभिराज थे, जो प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के पिता थे।
*चौदह कुलकर कहाँ से आये थे*
प्रतिश्रुति आदि को लेकर नाभिराजपर्यंत ये सब चौदह कुलकर अपने पूर्व भव में विदेह क्षेत्र में महाकुल में राजकुमार थे, उन्होंने उस भव में पुण्य बढ़ाने वाले पात्रदान तथा यथायोग्य व्रताचरणरूपी अनुष्ठानों के द्वारा सम्यग्दर्शन प्राप्त होने से पहले ही भोगभूमि की मनुष्य आयु बाँध ली थी, बाद में श्री जिनेन्द्र देव के समीप रहने से क्षायिक सम्यग्दर्शन तथा श्रुतज्ञान की प्राप्ति हुई थी जिसके फलस्वरूप आयु के अंत में मरकर वे इस भरतक्षेत्र में उत्पन्न हुए थे। इन चौदह कुलकरों में से कितने ही कुलकरों को जातिस्मरण था और कितने ही अवधिज्ञानरूपी नेत्र के धारक थे इसलिए उन्होंने विचार कर प्रजा के लिए ऊपर कहे हुए कार्यों का उपदेश दिया था। ये प्रजा के जीवन को जानने से ‘मनु’ तथा आर्य पुरुषों को कुल की तरह इकट्ठे रहने का उपदेश देने से ‘कुलकर’, अनेकों वंशों को स्थापित करने से ‘कुलंधर’ तथा युग की आदि में होने से ‘युगादि पुरुष’ भी कहे गये थे।
चौदह कुलकर
1️⃣ *प्रतिश्रुतिकुलकर*
प्रथम कुलकर का नाम ‘प्रतिश्रुति’ और उनकी देवी का नाम स्वयं प्रभा था। उनके शरीर की ऊँचाई एक हजार आठ सौ धनुष और आयु पल्य के दसवें भाग प्रमाण थी।उनका नाम विमल वाहन के नाम सेइसलिये प्रसिद्ध हुए क्योंकि वो सफेद हाथी (वाहन)
पर सवारी करते थे। सफेदहाथी ने पुर्वभव की प्रीति से प्रेरित होकर इनयुगल को सूंड मे उठा कर अपनी पीठ पर बैठाया ?
विमलवाहन कुलकर की पुर्व भव की पत्नी का नाम ,प्रियदर्शना था।
उस समय आषाढ़ शुक्ला पूर्णिमा के दिन सायंकाल में भोगभूमियों को पूर्व दिशा में उदित होता हुआ चन्द्र और पश्चिम दिशा में अस्त होता हुआ सूर्य दिखलाई पड़ा। ‘यह कोई आकस्मिक उत्पात है’ ऐसा समझकर वे लोग भय से व्याकुल हो गये। उस समय वहाँ पर ‘प्रतिश्रुति’ कुलकर सबमें अधिक तेजस्वी और प्रजाजनों के हितकारी तथा जन्मांतर के संस्कार से अवधिज्ञान को धारण किये हुए थे, सभी में उत्कृष्ट बुद्धिमान गिने जाते थे।उन्होंने जातीस्मरण ज्ञान से पूर्वभव मे पालीहुई न्यायनीति जानी थी । उन्होंने कहा-हे भद्र पुरुषों! तुम्हें जो ये दिख रहे हैं वे सूर्य-चन्द्र नाम के ग्रह हैं, कालवश अब ज्योतिरंग जाति के कल्पवृक्षों की किरण समूह मंद पड़ गई हैं अतः इस समय ये दिखने लगे हैं, ये हमेशा ही आकाश में परिभ्रमण करते रहते हैं, अभी तक ज्योतिरंग कल्पवृक्ष से इनकी प्रभा तिरोहित होने से ये नहीं दिखते थे अतः तुम इनसे भयभीत मत होवो। प्रतिश्रुति के वचनों से उन लोगों को आश्वासन प्राप्त हुआ और उन लोगों ने उनके चरण कमलों की पूजा तथा स्तुति की।
*प्रश्न के उत्तर भेजे* ⤵️
9️⃣9️⃣2️⃣6️⃣1️⃣6️⃣4️⃣0️⃣8️⃣9️⃣
*अंजुगोलछा*
४२. कुलकर युग कब तक चलता है?
४२.उत्तर:-जब तक तीर्थंकर भगवान का जन्म नहीं होता उनसे पहले-पहले तक चलता है।
४३. कुलकर युग समाप्त होने के पश्चात किसका काल प्रारंभ होता है?
४३.उत्तर:- कर्मभूमि का काल।
४४.प्रथम तीर्थंकर का जन्म कब होता है?
४४.उत्तर :-जब तीसरा आरा पूर्ण होने में ८४ लाख पूर्व ३ वर्ष ८मास १५ दिन शेष रहते है,तब प्रथम तीर्थंकर का जन्म होता है।
४५. प्रथम तीर्थंकर कौन हुये ?
४५.उत्तर :- भगवान ऋषभदेव।
४६. भगवान ऋषभदेव के माता-पिता बनने का सौभाग्य किसको मिला?
४६. उत्तर :- सातवें कुलकर नाभिराजा पिता व् मरुदेवी माता।
४७. जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति में भगवान ऋषभ को कौनसा कुलकर माना गया है?
४७. उत्तर:- पन्द्रहवां कुलकर।
४८. भगवान ऋषभदेव का राज्याभिषेक किसने किया?
४८.उत्तर :- शक्रेन्द्र ने।
४९. लोगोँ की अपराध प्रवृति बढ़ने पर कौनसी दण्ड निति का भगवान ऋषभदेव ने उपयोग किया?
४९. उत्तर :- परिभाष और मण्डल बंध नामक निति।
५०. परिभाष दण्ड निति क्या है?
५०. उत्तर :- अल्प काल केलिए नजर कैद रखने का आदेश देना।
५१. मंडल बंध दण्ड निति क्या है?
५१. उत्तर :- नियत क्षेत्र से बाहर न जाने का आदेश देना।
५२. भारत चक्रवाती ने कौनसी और दो दंडनीतियो का उपभोग किया?
५२. उत्तर:- चारक और छविच्छेद दंड नीति का।
५३. चारक दंड नीति क्या है?
५३. उत्तर:- जेलखाने में बंद रखने का आदेश देना।
५४. छविच्छेद दंड नीति क्या है?
५४. उत्तर:- हाथ-पैर आदि शरीर के अंग काटने का आदेश देना।
५५. भरत क्षेत्र में प्रथम राजा , प्रथम मुनि, प्रथम केवली, प्रथम तीर्थंकर, प्रथम जिन कौन बने?
५५. उत्तर:- भगवन ऋषभदेव।
५६. भरत क्षेत्र में अवसर्पिणी काल में सर्वप्रथम चार तीर्थो की स्थापना किसने की?
५६. उत्तर :- भगवन ऋषभदेव।
५७. भगवन ऋषभदेव कुमारावस्था में कितने समय तक रहे?
५७. उत्तर:- २० लाख पूर्व तक।
५८. भगवन ऋषभदेव महाराजावस्था में कितने समय तक रहे?
५८. उत्तर :- ६३ लाख पूर्व तक।
५९ भगवान ऋषभदेव ने पुरुषों की कितने कलाएं सिखाई ?
५९. उत्तर:- ७२ कलाएं।
६०. भगवान ऋषभदेव ने स्त्रियों की कितने कलाएं सिखाई ?
६०. उत्तर:- ६४ कलाएं
६१. भगवान ऋषभदेव ने ब्राम्ही को किसका ज्ञान सिखाया?
६१.उत्तर:- १८ प्रकार की लिपिकला का ज्ञान।
६२. भगवान ऋषभदेव ने सुंदरी को कौनसा ज्ञान सिखाया?
६२.उत्तर:- गणित कला का ज्ञान।
६३. भगवान ऋषभदेव के लिए नगरी किसने बनाई ?
६३.उत्तर:- धनपति कुबेर
ने (वैश्रमण देव ने ) ।
७३. इस अवसर्पिणी काल में भरत क्षेत्र में सबसे पहले शादी किसकी रचाई गई?
७३. उत्तर:- भगवान ऋषभदेव की।
७४. भगवान ऋषभदेव के विवाह में पुरोहित का कार्य किसने किया ?
७४.उत्तर:- शक्रेंन्द्र ने।
७५. शक्रेंन्द्र ने भगवान ऋषभदेव का कितनी रानियों के साथ विवाह करवाया?
७५ उत्तर:- दो १.सुमंगला २.सुनन्दा।
७६. सुमंगला जी के कितनी संताने थी?
७६.उत्तर:- १००अर्थात् भरत आदि ९९पुत्र एवं एक पुत्री ब्राह्मी जी।
७७. सुनन्दा जी को कितनी संताने थी?
७७. उत्तर:- दो संताने। एक पुत्र बाहुबली जी एवं एक पुत्री सुन्दरी जी।
७८. भगवान ऋषभदेव के सभी पुत्र पुत्री क्या थे ?
७८. उत्तर:- चरम शरीरी।
७९. भरत जी के गर्भ में आने पर सुमंगला जी ने कितने महास्वप्न देखे?
७९. उत्तर:- १४ महास्वप्न
८०. भगवान ऋषभदेव व् सुमंगला का प्रथम रिश्ता क्या था?
८०. उत्तर :- भाई-बहिन का
८१. भगवान ऋषभदेव व् सुमंगला का उस युग के अनुसार दूसरा रिश्ता क्या था?
८१. उत्तर:- पति-पत्नी ।
८२. भगवान ऋषभदेव के गर्भ में अवतरण होने पर माता मरुदेवी ने कितने महा स्वप्न देखे?
८२. उत्तर:- १४ महास्वप्न
८३. भगवान ऋषभदेव के जन्म समय माता मरुदेवी की उम्र कितनी थी?
८३. उत्तर:- १७ लाख पूर्व की थी।
८४. १४ महास्वप्न किन-किन माताओं को आते है?
८४. उत्तर:- तीर्थंकर व् चक्रवर्ती की माताओं को।
८५. भगवान ऋषभदेव जी के पास लोकान्तिक देव कब आए?
८५. उत्तर:- जब भगवान ऋषभदेव ८३ लाख पूर्व में एक वर्ष कम के थे तब आए।
८६. भगवान ऋषभदेव जी को लोकान्तिक देवों ने क्या कहा?
८६.उत्तर:- हे प्रभु!आप तीर्थ प्रवर्तन करो
८७. लोकान्तिक देवों के जाने के बाद भगवान ऋषभदेव ने क्या किया?
८७.उत्तर:- एक वर्ष तक दान दिया।
८८. भगवान ऋषभदेव का अभिनीष्क्रमण किस ऋतु में हुआ?
८८.उत्तर:- ग्रीष्म ऋतु में।
८९. भगवान ऋषभ ने गृह त्याग
किस माह की किस तिथि को किया?
८९.चैत्र कुष्णा अष्टमी को।
९०. भगवान ऋषभ ने गृह त्याग किस प्रहर में किया?
९०.उत्तर:- मध्यानोत्तर काल में।
९१. भगवान ऋषभदेव की अभिनिष्क्रमण यात्रा में कितने प्रकार के देव आये?
९१. उत्तर:- ६४ इन्द्र एवं चारो जाती के असंख्य देवी देवता।
९२. भगवान ऋषभदेव जी संयम ग्रहण करने किस वन में आये?
९२.उत्तर:- सिद्धार्थ वन मे।
९३. भगवान ऋषभदेव जी किस शिविका में बैठकर सिद्धार्थ वन में पधारे?
९३.उत्तर:- सुदर्शना नामक शिविका।
९४. भगवान ऋषभदेव ने किस वृक्ष के निचे केश लोचन किया?
९४.उत्तर:- अशोक वृक्ष के निचे।
९५. भगवान ऋषभदेव ने कितने मुष्ठी लोच किया?
९५. उत्तर:- चार मुष्ठी लोच किया।
९६. भगवान ऋषभदेव के दीक्षा के समय कितना तप था?
१६.उत्तर:- छट्टम तप- बेले की तपस्या (दो उपवास)।
९७. भगवान ऋषभदेव के दीक्षा ग्रहण करते समय कौनसा नक्षत्र था?
९७. उत्तर:- उत्तराषाढ़ा नक्षत्र था ।
९८. भगवान ऋषभदेव के लोच के समय केश राशि को किसने ग्रहण करी?
९८.उत्तर:- देवेन्द्र शक्र ने।
९९. भगवान ऋषभदेव को दीक्षा से पहले शक्रेंद्र ने क्या दिया?
९९.उत्तर:- एक देव दूष्य-दिव्य वस्त्र दिया।
१००. भगवान ऋषभदेव को दीक्षा लेने के बाद प्रथम पारणा कितने दिन से हुआ?
१००.उत्तर:- लगभग एक वर्ष से ज्यादा।
१०१. भगवान ऋषभदेव को कौनसे नगर में केवलज्ञान हुआ?
१०१. उत्तर:-पुरिमतल नगर में।
१०२. भगवान ऋषभदेव केवलज्ञान प्राप्ति के समय पुरिमतल नगर के किस उधान में विराज रहे थे?
१०२.उत्तर:-शकट मुख उद्यान में।
१०३. भगवान ऋषभदेव को किस वृक्ष के नीचे केवल्य ज्ञान प्राप्त हुआ?
१०३.उत्तर:- बरगद के वृक्ष के निचे(वटवृक्ष)।
१०४. भगवान ऋषभदेव के केवलज्ञान प्राप्ति के समय कितनी तपस्या थी?
१०४. उत्तर:- निर्जल तेले की तपस्या थी।
१०५. भगवान ऋषभदेव के दर्शन करते ही केवली कौन बने?
१०५.उत्तर:- माता मरुदेवी।
१०६. भगवान ऋषभदेव के शाशन में प्रथम कौनसे सिद्ध बने?
१०६.उत्तर:- अतीर्थ सिद्धा ।
१०७. भगवान ऋषभदेव के शाशन में अतीर्थ सिद्धा कौन कहलाये?
१०७. उत्तर:- माता मरुदेवी (तीर्थ स्थापना से पूर्व ही मोक्ष गमन हो जाने से)।
१०८. भगवान ऋषभदेव की दो प्रकार की भूमि कौनसी थी?
१०८.उत्तर:- १. युगान्तर भूमि,
२. पर्यायान्तकर भूमि।
१०९. भगवान ऋषभदेव की युगान्तर भूमि क्या थी?
१०९.उत्तर:- युगान्तर भूमि -शिष्य क्रमानुबद्ध यावत असंख्यात पुरुष परंपरा परिमित थी।
११०. भगवान ऋषभदेव की पर्यायान्तकर भूमि कितनी थी?
११०.उत्तर:- अन्तमुहुर्त प्रमाण थी(क्योकी भगवान के केवलज्ञान प्राप्त होने के अन्तर्मुहूर्त पश्चात माता मरुदेवी को मुक्त्ति प्राप्त हो गई थी।
१११. भगवान ऋषभदेव के कितने गण थे?
१११. उत्तर:- ८४ गण थे।
११२. भगवान ऋषभदेव के कितने गणधर थे?
११२.उत्तर:- ८४ गणधर थे।
११३. भगवान ऋषभदेव के कितने शिष्य थे?
११३. उत्तर:- ८४ हजार शिष्य थे।
११४. भगवान ऋषभदेव के कितनी शिष्याएं थी?
११४.उत्तर:- ३ लाख शिष्याएँ थी।
११५. भगवान ऋषभदेव प्रथम शिष्य कौन थे?
११५.उत्तर:- ऋषभसेन जी आदि।
११६. भगवान ऋषभदेव के प्रथम शिष्या कौन थी?
११६.उत्तर:- ब्राह्मी जी।
११७. भगवान ऋषभदेव के कितने श्रावक थे?
११७.उत्तर:-श्रेयांस आदि ३लाख ५० हजार शर्माणोपसक थे।
११८. भगवान ऋषभदेव के कितनी श्राविकाएं थी?
११८. उत्तर:- सुभद्र आदि ५ लाख ५४हजार श्रमणोपासिकाए थी।
११९. भगवान ऋषभदेव के कितने १४पूर्वधर थे?
११९. उत्तर:-४,७५० मुनि पूर्वधर थे।
१२० भगवान ऋषभदेव के कितने आवधिज्ञानी थे?
१२०.उत्तर:- ९,०००
१२१. भगवान ऋषभदेव के कितने केवली जिन थे?
१२१.उत्तर:-२०,०००
१२२. भगवान ऋषभदेव के कितने वैक्रिय लब्धिधारी थे?
१२२. उत्तर:-२०,६००
१२३. भगवान ऋषभदेव के कितने मनःपर्यवज्ञानी थे?
१२३.उत्तर:- १२,६५०
भोगभूमि की अन्य विशेषताए -
भोगभूमि का जीवों को सुख भरत क्षेत्र के चक्रवर्ती से भी अधिक होता है ! जीवों का बल ९००० हाथियों के बराबर होता है !भोगभूमि में विकलत्रय जीव उत्पन्न नहीं होते ,विषैले सर्प ,बिच्छू आदि जंतु नहीं उत्पन्न होते !वहां ऋतुओं का परिवर्तन नहीं होता ,मनुष्यों की यहाँ वृद्धावस्था नहीं होती ,उन्हें कोई रोग नहीं होता ,कोई चिंता नहीं होती ,उन्हें निंद्रा नहीं आती!
भोगभूमि में युगल बच्चे ही युवा होने पर पति पत्नी की तरह रहते है,कोई विवाह व्यवस्था नहीं है !यहाँ जीवों को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए पुरुषार्थ नहीं करना पड़ता ,सभी की पूर्ती दस प्रकार के कल्प वृक्षों के नीचे खड़े होकर याचना करने से हो जाती है !
तीसरा आरा
६१. भगवान ऋषभदेव ने ब्राम्ही को किसका ज्ञान सिखाया?
६१.उत्तर:- १८ प्रकार की लिपिकला का ज्ञान।
६२. भगवान ऋषभदेव ने सुंदरी को कौनसा ज्ञान सिखाया?
६२.उत्तर:- गणित कला का ज्ञान।
६३. भगवान ऋषभदेव के लिए नगरी किसने बनाई ?
६३.उत्तर:- धनपति कुबेर
ने (वैश्रमण देव ने ) ।
६४. इस अवसर्पिणी काल में सर्वप्रथम किस नगरी का निर्माण हुआ?
६४
७३. इस अवसर्पिणी काल में भरत क्षेत्र में सबसे पहले शादी किसकी रचाई गई?
७३. उत्तर:- भगवान ऋषभदेव की।
७४. भगवान ऋषभदेव के विवाह में पुरोहित का कार्य किसने किया ?
७४.उत्तर:- शक्रेंन्द्र ने।
७५. शक्रेंन्द्र ने भगवान ऋषभदेव का कितनी रानियों के साथ विवाह करवाया?
७५ उत्तर:- दो १.सुमंगला २.सुनन्दा।
७६. सुमंगला जी के कितनी संताने थी?
७६.उत्तर:- १००अर्थात् भरत आदि ९९पुत्र एवं एक पुत्री ब्राह्मी जी।
७७. सुनन्दा जी को कितनी संताने थी?
७७. उत्तर:- दो संताने। एक पुत्र बाहुबली जी एवं एक पुत्री सुन्दरी जी।
७८. भगवान ऋषभदेव के सभी पुत्र पुत्री क्या थे ?
७८. उत्तर:- चरम शरीरी।
७९. भरत जी के गर्भ में आने पर सुमंगला जी ने कितने महास्वप्न देखे?
७९. उत्तर:- १४ महास्वप्न
८०. भगवान ऋषभदेव व् सुमंगला का प्रथम रिश्ता क्या था?
८०. उत्तर :- भाई-बहिन का
८१. भगवान ऋषभदेव व् सुमंगला का उस युग के अनुसार दूसरा रिश्ता क्या था?
८१. उत्तर:- पति-पत्नी ।
८२. भगवान ऋषभदेव के गर्भ में अवतरण होने पर माता मरुदेवी ने कितने महा स्वप्न देखे?
८२. उत्तर:- १४ महास्वप्न
८३. भगवान ऋषभदेव के जन्म समय माता मरुदेवी की उम्र कितनी थी?
८३. उत्तर:- १७ लाख पूर्व की थी।
८४. १४ महास्वप्न किन-किन माताओं को आते है?
८४. उत्तर:- तीर्थंकर व् चक्रवर्ती की माताओं को।
८५. भगवान ऋषभदेव जी के पास लोकान्तिक देव कब आए?
८५. उत्तर:- जब भगवान ऋषभदेव ८३ लाख पूर्व में एक वर्ष कम के थे तब आए।
८६. भगवान ऋषभदेव जी को लोकान्तिक देवों ने क्या कहा?
८६.उत्तर:- हे प्रभु!आप तीर्थ प्रवर्तन करो
८७. लोकान्तिक देवों के जाने के बाद भगवान ऋषभदेव ने क्या किया?
८७.उत्तर:- एक वर्ष तक दान दिया।
८८. भगवान ऋषभदेव का अभिनीष्क्रमण किस ऋतु में हुआ?
८८.उत्तर:- ग्रीष्म ऋतु में।
८९. भगवान ऋषभ ने गृह त्याग
किस माह की किस तिथि को किया?
८९.चैत्र कुष्णा अष्टमी को।
९०. भगवान ऋषभ ने गृह त्याग किस प्रहर में किया?
९०.उत्तर:- मध्यानोत्तर काल में।
९१. भगवान ऋषभदेव की अभिनिष्क्रमण यात्रा में कितने प्रकार के देव आये?
९१. उत्तर:- ६४ इन्द्र एवं चारो जाती के असंख्य देवी देवता।
९२. भगवान ऋषभदेव जी संयम ग्रहण करने किस वन में आये?
९२.उत्तर:- सिद्धार्थ वन मे।
९३. भगवान ऋषभदेव जी किस शिविका में बैठकर सिद्धार्थ वन में पधारे?
९३.उत्तर:- सुदर्शना नामक शिविका।
९४. भगवान ऋषभदेव ने किस वृक्ष के निचे केश लोचन किया?
९४.उत्तर:- अशोक वृक्ष के निचे।
९५. भगवान ऋषभदेव ने कितने मुष्ठी लोच किया?
९५. उत्तर:- चार मुष्ठी लोच किया।
९६. भगवान ऋषभदेव के दीक्षा के समय कितना तप था?
१६.उत्तर:- छट्टम तप- बेले की तपस्या (दो उपवास)।
९७. भगवान ऋषभदेव के दीक्षा ग्रहण करते समय कौनसा नक्षत्र था?
९७. उत्तर:- उत्तराषाढ़ा नक्षत्र था ।
९८. भगवान ऋषभदेव के लोच के समय केश राशि को किसने ग्रहण करी?
९८.उत्तर:- देवेन्द्र शक्र ने।
९९. भगवान ऋषभदेव को दीक्षा से पहले शक्रेंद्र ने क्या दिया?
९९.उत्तर:- एक देव दूष्य-दिव्य वस्त्र दिया।
१००. भगवान ऋषभदेव को दीक्षा लेने के बाद प्रथम पारणा कितने दिन से हुआ?
१००.उत्तर:- लगभग एक वर्ष से ज्यादा।
१०१. भगवान ऋषभदेव को कौनसे नगर में केवलज्ञान हुआ?
१०१. उत्तर:-पुरिमतल नगर में।
१०२. भगवान ऋषभदेव केवलज्ञान प्राप्ति के समय पुरिमतल नगर के किस उधान में विराज रहे थे?
१०२.उत्तर:-शकट मुख उद्यान में।
१०३. भगवान ऋषभदेव को किस वृक्ष के नीचे केवल्य ज्ञान प्राप्त हुआ?
१०३.उत्तर:- बरगद के वृक्ष के निचे(वटवृक्ष)।
१०४. भगवान ऋषभदेव के केवलज्ञान प्राप्ति के समय कितनी तपस्या थी?
१०४. उत्तर:- निर्जल तेले की तपस्या थी।
१०५. भगवान ऋषभदेव के दर्शन करते ही केवली कौन बने?
१०५.उत्तर:- माता मरुदेवी।
३-अवसर्पिणी का तीसरा काल दुषमा सुषमा २ कोड़ा कोडी सागर का जघन्य भोग भूमि होती है !जन्म लेने पर बच्चे सोते सोते ७ दिन तक अंगूठा चूसते है ,दुसरे सप्ताह में घुटने के बल चलते है,तीसरे सप्ताह में मधुर तुतलाती भाषा बोलते है,चौथे सप्ताह में पैरो पर चलने लगते है,पांचवे सप्ताह में कला और रूप आदि गुणों से युक्त हो जाते है,छठे सप्ताह में युवावस्था को प्राप्त करते है,सातवे सप्ताह में सम्यग्दर्शन के धारण की योग्यता प्राप् कर लेते है !ये आवले के समान दूसरे दिन आहार लेते है !इनकी आयु १ पल्य लम्बाई १ कोस अर्थात २००० धनुष होती है!इस हरित और श्याम वर्ण के जीव उत्पन्न होते है
भोगभूमि में जीवों के सइस काल में जीवों के सम्यक्त्व के कारण-यहाँ जीवों को जातिस्मरण ,देवों के उपदेशों ,सुखों/दुखो के अवलोकन से, जिनबिम्ब दर्श से और स्वभावत: भव्य जीवों को सम्यक्त्व होता है !
३-अवसर्पिणी का तीसरा काल दुषमा सुषमा २ कोड़ा कोडी सागर का जघन्य भोग भूमि होती है !जन्म लेने पर बच्चे सोते सोते ७ दिन तक अंगूठा चूसते है ,दुसरे सप्ताह में घुटने के बल चलते है,तीसरे सप्ताह में मधुर तुतलाती भाषा बोलते है,चौथे सप्ताह में पैरो पर चलने लगते है,पांचवे सप्ताह में कला और रूप आदि गुणों से युक्त हो जाते है,छठे सप्ताह में युवावस्था को प्राप्त करते है,सातवे सप्ताह में सम्यग्दर्शन के धारण की योग्यता प्राप् कर लेते है !ये आवले के समान दूसरे दिन आहार लेते है !इनकी आयु १ पल्य लम्बाई १ कोस अर्थात २००० धनुष होती है!इस हरित और श्याम वर्ण के जीव उत्पन्न होते है
भोगभूमि में जीवों के सइस काल में जीवों के सम्यक्त्व के कारण-यहाँ जीवों को जातिस्मरण ,देवों के उपदेशों ,सुखों/दुखो के अवलोकन से, जिनबिम्ब दर्श से और स्वभावत: भव्य जीवों को सम्यक्त्व होता है !
तृतीय काल
तीन कोड़ाकोड़ी सागर काल के व्यतीत होने पर क्रम से सुषमादुःषमा नामक तृतीय काल प्रवेश करता है, इस काल का प्रमाण दो कोड़ाकोड़ी सागर है। प्रारंभ में मनुष्यों की ऊँचाई दो हजार धनुष-एक कोस, आयु एक पल्य प्रमाण और वर्ण प्रियंगुफल के समान होता है। इस काल में स्त्री-पुरुषों धनुष-एक कोस, आयु एक पल्य प्रमाण और वर्ण प्रियंगुफल के समान होता है। इस काल में स्त्री-पुरुषों के पृष्ठभाग की हड्डियाँ चौंसठ होती हैं। सभी मनुष्य समचतुरस्र संस्थान से युक्त, एक दिन के अंतराल से आंवले के बराबर भोजन ग्रहण करने वाले होते हैं। इस काल मेंं उत्पन्न हुए बालकों के शय्या पर सोते हुए अपने अंगूठे के चूसने में सात दिन व्यतीत होते हैं। इसके पश्चात् उपवेशन, अस्थिर गमन, स्थिर गमन, कलागुण प्राप्yति, तारुण्य और सम्यक्त्व ग्रहण की योग्यता। इनमें से प्रत्येक अवस्था में क्रमशः सात-सात दिन जाते हैं। इतनी मात्र विशेषता को छोड़कर शेष वर्णन जो सुषमा-सुषमा नामक काल में कह चुके हैं सो ही यहाँ पर समझना चाहिए। इन तीनों ही भोगभूमियों में चोर, शत्रु आदि की बाधाएँ, असि, मसि आदि छह कर्म, शीत, आतप, प्रचंडवायु एवं वर्षा आदि नहीं होती हैं। इन्हें क्रम से उत्तम, मध्यम और जघन्य भोगभूमि भी कहते हैं।
षट्काल परिवर्तन कहाँ- कहाँ हैं?
भरत और ऐरावत क्षेत्र के आर्यखण्डों में अरहघटिका के न्याय से अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी काल अनन्तानन्त होते हैं।
हुंडावसर्पिणी
असंख्यात अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी काल की शलाकाओं के बीत जाने पर प्रसिद्ध एक हुंडावसर्पिणी आती है। इसके चिन्ह ये हैं-
इस काल के भीतर सुषमादुषमा नामक तृतीय काल की स्थिति में कुछ काल अवशिष्ट रहने पर भी वर्षा आदि पड़ने लगती है और विकलेन्द्रिय जीवों की उत्पत्ति होने लगती है। इसी तृतीय काल में कल्पवृक्षों का अन्त और कर्मभूमि का व्यापार प्रारंभ हो जाता है। उसी काल में प्रथम तीर्थंकर और प्रथम चक्रवर्ती भी उत्पन्न हो जाते हैं। इस हुँडावसर्पिणी के दोष से चक्रवर्ती का विजयभंग, उसी के द्वारा की गई ब्राह्मण वर्ण की उत्पत्ति भी हो जाती है। इस काल में अट्ठावन ही शलाका पुरुष होते हैं और नौंवे से लेकर सोलहवें तीर्थंकर तक सात तीर्थों में धर्म का विच्छेद हो जाता है। ग्यारह रुद्र और कलह प्रिय नव नारद उत्पन्न होते हैं। इसके अतिरिक्त सातवें, तेईसवें और अंतिम तीर्थंकर के ऊपर उपसर्ग भी होता है। तृतीय, चतुर्थ व पंचमकाल में उत्तम धर्म को नष्ट करने वाले विविध प्रकार के दुष्ट, पापिष्ठ, कुदेव और कुलिंगी भी दिखने लगते हैं। चाण्डाल, शबर, श्वपच तथा किरात आदि निकृष्ट जातियाँ तथा बयालीस कल्की व उपकल्की भी होते हैं। अतिवृष्टि, अनावृष्टि, भूकम्प, वङ्कााग्नि आदि का गिरना, इत्यादि विचित्र भेदों को लिए हुए नाना प्रकार के दोष इस हुंडावसर्पिणी काल में हुआ करते हैं।
ग्यारह रुद्र
भीमावली, जितशत्रु, रुद्र, वैश्वानर, सुप्रतिष्ठ, अचल, पुण्डरीक, अजितंधर, अजितनाभि, पीठ और सात्यकिपुत्र ये ग्यारह रुद्र अंगधर होते हुए तीर्थकर्ताओं के समयों में हुए हैं। इनमें से प्रथम रुद्र ऋषभनाथ के काल में और जितशत्रु अजितनाथ के काल में हुआ है, इसके आगे सात रुद्र क्रम से सुविधिनाथ से लेकर सात तीर्थंकरों के समय में हुए हैं। दसवाँ रुद्र शान्तिनाथ के समय में और सात्यकिपुत्र वीर भगवान के तीर्थ में हुआ है। सब रुद्र दसवें पूर्व का अध्ययन करते समय विषयों के निमित्त से तप से भ्रष्ट होकर सम्यक्त्वरूपी रत्न से रहित होते हुए घोर नरकों में डूब गये।
नव नारद
भीम, महाभीम, रुद्र, महारुद्र, काल, महाकाल, दुर्मुख, नरकमुख और अधोमुख ये नौ नारद हुए हैं। ये सब नारद अतिरुद्र होते हुए दूसरों को रुलाया करते हैं और पाप के निधान होते हैं। सब ही नारद कलह एवं महायुद्ध प्रिय होने से वासुदेवों के समान नरक को प्राप्त हुए हैं।
चौबीस कामदेव
भगवान बाहुबली, अमिततेज, श्रीधर, यशोभद्र, प्रसेनजित, चन्द्रवर्ण, अग्निमुक्ति, सनत्कुमार (चक्रवर्ती), वत्सराज, कनकप्रभ, सिद्धवर्ण, शान्तिनाथ (चक्र।), वुं â थुनाथ (चक्र।), अरनाथ (हकीर), विजयराज, राजराज हनुमान, बलगज, वसुदेव, प्रद्युम्न, नागकुमार, श्रीपाल और जम्बूस्वामी।
चौबीस तीर्थंकरों के समयों में अनुपम आकृति के धारक ये बाहुबली आदि चौबीस कामदेव होते हैं।
तीर्थंकर, उनके माता-पिता, चक्रवर्ती, बलदेव, नारायण, रुद्र, नारद, कामदेव और कुलकर पुरुष, ये सब भव्य होते हुए नियम से सिद्ध होते हैं। तीर्थंकर तो उसी भव से नियम से सिद्ध होते हैं। अन्यों के लिए उसी गर्व का नियम नहीं है। यहाँ तक सृष्टि का क्रम कहा गया है। युग परिवर्तन की अपेक्षा से यह करणानुयोग का विषय है। क्रम को समझने के लिए इसे प्रथमानुयोग में भी लिया जाता है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें