कथा श्रीदेवी

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🌹🌹🌹 श्रीदेवी 🌹🌹🌹
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काकर गाँव में जन्मी हुई श्रीदेवी गुजरात के इतिहास की तेजस्विनी नारी के रुप में विख्यात हैं । उसमें सूझ-बूझ तथा साहस दोनों का विरल संगम था । चाहे जैसी कठिन परिस्थिति में घबड़ाये बिना या भयभीत हुए बिना वह रास्ता बना लेती थी । उस समय कच्छ के रेगिस्तान के किनारे पर आये हुए पंचासर पर राजा भूवड़ ने आक्रमण किया था । पंचासर के राजा जयशिखरी ने विशाल सेना का दृढ़ता से मुकाबला किया , परंतु अंत में राजा जयशिखरी युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुआ । जयशिखरी के पुत्र वनराज ने जैन साधु शीलगुणसूरि से आश्रय प्राप्त किया और उपाश्रय में बड़ा हुआ । उसके मन में लगन थी कि पिता का राज्य वापस प्राप्त करुँ तभी तो मैं सच्चा वनराज । मामा सूरपाल के साथ रहकर वनराज डकैती करने लगा । राज्य वापस लेना हो , तो बड़ी सेना की आवश्यकता रहे । शस्त्र चाहिए । इन सबके लिए वनराज ने जंगल में रहकर वहाँ से जाते-आते राजखजानों को लूट लेना आरंभ किया ।

एक समय वनराज चावड़ा काकर गाँव के सेठ के यहाँ चोरी करने गया । वनराज ने सेठ की कोठरी या भंडारी में जाँच -पड़ताल की । वह मानता था कि भंडारी में से कोई मूल्यवान चीजवस्तु या धनसंपत्ति हाथ लगेगी , पर रात के अँधेरे में भंडारी में चोरी करते हुए वनराज का हाथ दही से भरे हुए बरतन में पड़ा । वनराज रुक गया । इसका कारण यह था कि दही से भरे हुए बरतन में हाथ गिरा यानी वह इस घर का कुटुंबीजन कहलाये । भला अपने घर में लूट कैसे की जाय ? इसलिए उसने खाली हाथों वापस जाना उचित माना ।

मुँह अँधेरे काकर गाँव में सेठ ने देखा तो घर में सब छिन्न-भिन्न पड़ा था । उन्हें ख्याल आ गया कि अवश्य ही घर में कोई चुपचाप चोरी करने आया होना चाहिए । सेठ ने अपनी बहन श्रीदेवी से कहा , " घर में सैंध लगी हो ऐसा लगता है । चोर आकर हमारी माल-मिलकत ले गये हों ऐसा ज्ञात होता है । " भाई-बहन दोनों एक-एक करके वस्तुएँ देखने लगे । देखा तो गहने सलामत थे, घर की नगदी वैसी की वैसी पड़ी थी । वस्त्र इधर-उधर अलग-थलग बिखरे हुए पड़े थे , पर एक भी वस्त्र की चोरी नहीं हुई थी । दोनों ने सोचा कि रात को चोर ने सैंध लगाई होगी । नींद में उन्हें कुछ खबर नहीं हैं । तो फिर बिना कुछ चोरी किये वह वापस क्यों लौट गया होगा ? उन्हें यह बात रहस्यमय ज्ञात हुई ।

तभी श्रीदेवी की दृष्टि दही के बरतन पर पड़ी । उसने देखा तो उसमें किसी के हाथ के पंजे के निशान थे । उसके हाथ की रेखाएँ उसमें पड़ी थी । उन हस्तरेखाओं को देखकर लगता है कि यह पुरुष कैसा भाग्यवान तथा प्रतापी होना चाहिए ! उसकी रेखाएँ उसकी वीरता और तेजस्विता दर्शाति हैं । साथ ही दही में हाथ गिरा उस घर का कुछ भी न लिया जाय ऐसा माननेवाला मानव चोर कैसे हो सकता हैं ? अवश्य , किसी कारणवश ही वह यह कार्य करता होगा । ऐसे व्यक्ति से मुलाकात हो तो कितना अच्छा ?

श्रीदेवी का यह विचार वनराज को ज्ञात हुआ । वनराज रात को गुप्तवेश में श्रीदेवी के घर आया । उसके भाई को प्रणाम किया । श्रीदेवी को देखते ही वनराज के हृदय में भाई का प्रेम उभरने लगा । वन में भटकते हुए राजा और उसके सैनिकों से स्वयं को छिपाते और राज्य वापस प्राप्त करने के लिए दिन-रात कड़ा परिश्रम करते वनराज को यहाँ शांति एवं स्नेह का शीतल , मधुर अनुभव हुआ । श्रीदेवी ने उसे भाई माना और प्रेम से भोजन करवाया । तत्पश्चात् वनराज को सीख दी । ब
भाई ने बहन की सीख मानी । बहन के प्रेम से भावविभोर हुए वनराज ने कहा , " बहन , तू भले ही मेरी सगी बहन न हों , पर मुझ पर प्रेम की वर्षा करनेवाली धर्म की बहन है । मैं राजा बनूँगा , तब तेरे हाथ से ही राजतिलक करवाऊँगा । "

काकर गाँव की श्रीदेवी का विवाह पाटण में हुआ । एक बार श्रीदेवी पाटण से अपने पीहर जा रही थी । फिर जंगल की राह में वनराज मिला और श्रीदेवी ने उस पर स्नेह -अमृत की वर्षा की । आखिर वनराज ने सेना एकत्र करके भूवड़ के अधिकारियों को मार भगाया । पंचासर के स्थान पर सरस्वती नदी के तट पर अणहिलपुर पाटण बसाया । विक्रम संवत् 802 की वैशाख सुदि द्वितीया , सोमवार के दिन यह घटना घटी । वनराज ने राज्याभिषेक के समय धर्म की बहन श्रीदेवी को बुलाकर उसके हाथ से राजतिलक करवाया । राजा वनराज ने अपने ऊपर किए हुए उपकार का उचित बदला चुकाया , तो श्रीदेवी जैसी सद्गुणी गुर्जरी धर्म , समाज और राष्ट्र के उत्थान में सहायक हुई ।

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साभार : जिनशासन की कीर्तिगाथा

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