आरे
कौनसे आरे में अग्नि काय और अनाज की उपलब्धता नहीं रहेगी ❓
🅰️ पहला दूसरा, तीसरे के मध्य भाग से कुछ अधिक व छढा आरा
1⃣ चौथे आरे का क्या नाम हैं❓
🅰 दुखमा सुखमा
2⃣ दूसरे आरे की स्थिति कितनी❓
🅰 3 कोटाकोटी सागरोपम
3⃣ 5वे आरा लगते मनुष्य की अवगाहना कितनी❓
🅰 7 हाथ
4⃣ तीसरा आरा उतरते गति कितनी ❓
🅰 पाँच गति
5⃣ पहले आरे में आहार कितना ❓
🅰 तुवर की दाल बराबर
6⃣ दूसरे आरे में स्पर्श कैसा❓
🅰 रेशम के गुच्छे जैसा
7⃣ चौथे आरे में संस्थान कितने ❓
🅰 छः संस्थान
8⃣ कौन सा आरा लगते आहार की इच्छा एक बार होती हैं ❓
🅰 चौथा आरा
9⃣ तीसरा आरा लगते पसलियाँ कितनी❓
🅰 64
🔟 कौन सा आरा उतरते पापकाल रहता हैं❓
🅰 पाँचवा आरा
1⃣1⃣ दूसरा आरा लगते धरती की सरसाई कैसी❓
🅰 शक्कर जैसी
1⃣2⃣ 5 वा आरा उतरते आहार की इच्छा कितनी बार ❓
🅰बार बार
1⃣3⃣ छटवें आरे की स्थिति कितनी ❓
🅰 21,000वर्ष
1⃣4⃣ पहले आरे में जवानी कितने दिन में (लगते) ❓
🅰 49 दिन में
1⃣5⃣ तीसरे आरे में किसका आहार करते हैं ❓
🅰 फल,फूल,अन्न
1⃣6⃣ रुई जैसा स्पर्श किस आरे में रहता हैं ❓
🅰 चौथे आरे में
1⃣7⃣ धरती की सरसाई गुड़ जैसी किस आरे में रहती हैं ❓
🅰 उतरते दूसरे आरे में
लगते तीसरे आरे में
1⃣8⃣ चौथे आरे में संहनन कितने❓
🅰 6 संहनन
1⃣9⃣ लगते तीसरे आरे में मनुष्य की अवगाहना कितनी❓
🅰 एक कोस
2⃣0⃣ उतरते चौथे आरे कौन सा काल ❓
🅰धर्मकाल
2⃣1⃣ दूसरे आरे में कितना आहार ❓
🅰 बेर के बराबर
2⃣2⃣ छटवें आरे में कौन सी गति ❓
🅰 दो दुर्गति ,नरक,तिर्यंच
2⃣3⃣ दूसरा आरा लगते कौन सा काल ❓
🅰 भोगकाल
2⃣4⃣ छटवा आरा उतरते कौन सा काल❓
🅰 महाकाल
2⃣5⃣ 16 पसलियाँ किस आरे में होती हैं❓
🅰 पाँचवा आरा लगते
2⃣6⃣ फल फूल का आहार कौन कौन से आरे में होता हैं ❓
🅰 पहले ,दूसरे आरे में
2⃣7⃣ लगते चौथे आरे में मनुष्य की स्थिति कितनी ❓
🅰 एक करोड़ पूर्व
2⃣8⃣ छटवे आरे में किसका आहार होगा❓
🅰 माँसाहार
2⃣9⃣ तीसरे आरे में संतति कैसी होगी ❓
🅰सिंहवत
3⃣0⃣ दूसरे आरे में कैसा संहनन होता हैं ❓
🅰 वजृऋषभनाराच
🅰️ पहला दूसरा, तीसरे के मध्य भाग से कुछ अधिक व छढा आरा
1⃣ चौथे आरे का क्या नाम हैं❓
🅰 दुखमा सुखमा
2⃣ दूसरे आरे की स्थिति कितनी❓
🅰 3 कोटाकोटी सागरोपम
3⃣ 5वे आरा लगते मनुष्य की अवगाहना कितनी❓
🅰 7 हाथ
4⃣ तीसरा आरा उतरते गति कितनी ❓
🅰 पाँच गति
5⃣ पहले आरे में आहार कितना ❓
🅰 तुवर की दाल बराबर
6⃣ दूसरे आरे में स्पर्श कैसा❓
🅰 रेशम के गुच्छे जैसा
7⃣ चौथे आरे में संस्थान कितने ❓
🅰 छः संस्थान
8⃣ कौन सा आरा लगते आहार की इच्छा एक बार होती हैं ❓
🅰 चौथा आरा
9⃣ तीसरा आरा लगते पसलियाँ कितनी❓
🅰 64
🔟 कौन सा आरा उतरते पापकाल रहता हैं❓
🅰 पाँचवा आरा
1⃣1⃣ दूसरा आरा लगते धरती की सरसाई कैसी❓
🅰 शक्कर जैसी
1⃣2⃣ 5 वा आरा उतरते आहार की इच्छा कितनी बार ❓
🅰बार बार
1⃣3⃣ छटवें आरे की स्थिति कितनी ❓
🅰 21,000वर्ष
1⃣4⃣ पहले आरे में जवानी कितने दिन में (लगते) ❓
🅰 49 दिन में
1⃣5⃣ तीसरे आरे में किसका आहार करते हैं ❓
🅰 फल,फूल,अन्न
1⃣6⃣ रुई जैसा स्पर्श किस आरे में रहता हैं ❓
🅰 चौथे आरे में
1⃣7⃣ धरती की सरसाई गुड़ जैसी किस आरे में रहती हैं ❓
🅰 उतरते दूसरे आरे में
लगते तीसरे आरे में
1⃣8⃣ चौथे आरे में संहनन कितने❓
🅰 6 संहनन
1⃣9⃣ लगते तीसरे आरे में मनुष्य की अवगाहना कितनी❓
🅰 एक कोस
2⃣0⃣ उतरते चौथे आरे कौन सा काल ❓
🅰धर्मकाल
2⃣1⃣ दूसरे आरे में कितना आहार ❓
🅰 बेर के बराबर
2⃣2⃣ छटवें आरे में कौन सी गति ❓
🅰 दो दुर्गति ,नरक,तिर्यंच
2⃣3⃣ दूसरा आरा लगते कौन सा काल ❓
🅰 भोगकाल
2⃣4⃣ छटवा आरा उतरते कौन सा काल❓
🅰 महाकाल
2⃣5⃣ 16 पसलियाँ किस आरे में होती हैं❓
🅰 पाँचवा आरा लगते
2⃣6⃣ फल फूल का आहार कौन कौन से आरे में होता हैं ❓
🅰 पहले ,दूसरे आरे में
2⃣7⃣ लगते चौथे आरे में मनुष्य की स्थिति कितनी ❓
🅰 एक करोड़ पूर्व
2⃣8⃣ छटवे आरे में किसका आहार होगा❓
🅰 माँसाहार
2⃣9⃣ तीसरे आरे में संतति कैसी होगी ❓
🅰सिंहवत
3⃣0⃣ दूसरे आरे में कैसा संहनन होता हैं ❓
🅰 वजृऋषभनाराच
✔✅काल चक्र का ज्ञान पाईये
♻पहेलो आरो = 4कोडाकोडी सागरोपम वर्ष
♻बीजो आरो = 3कोडा कोडी सागरोपम वरस
♻तीजो आरो= २ कोडाकोडी सागरोपम वरस मा 89 पक्ष बाकि हता( पोना चार वरस बाकि) त्यारे आदिनाथ भगवान निर्वाण थया
♻चौथो आरो = 1 कोडाकोडी सागरोपम वरस मा 42 हजार वरस ओछा
(89पक्ष बाकि त्यारे महावीर स्वामी नो निर्वाण थयो)
(89पक्ष बाकि त्यारे महावीर स्वामी नो निर्वाण थयो)
♻पाचमो आरो= 21हजार वर्ष ( हजु पाचमो आरो चालु छे,2800 वर्ष व्यतीत)
महावीर भ. ना निर्वाण बाद 64 वरस पछी आ अवसर्पिणी काल ना छेल्ला मोक्षगामी "जंबूस्वामि"पाचमा आरा मा निर्वाण थया
♻छठो आरो= 21 हजार वर्ष
4+3+2+1=10 कोडाकोडी सागरोपम वर्ष= वर्तमान अवसर्पिणी काल
+10कोडाकोडी सागरोपम =गत उत्सर्पिणी काल
+10कोडाकोडी सागरोपम =गत उत्सर्पिणी काल
⤴10+10=20 कोडाकोडी सागरोपम= एक काल चक्र
कोडाकोडी मतलब १करोड×१करोड
सागरोपम मतलब असंख्य पल्योपम
1पल्योपम मतलब असंख्य पुर्व
1पुर्व मतलब=7०,56,००००००००००
वरस
वरस
✓☞बिजा आरा मा सन्तान नु पालन मात्र 64 दिवस करवानु हतु
पछी सन्तान ने बधु कल्पवृक्ष थी मली जतु
पछी सन्तान ने बधु कल्पवृक्ष थी मली जतु
✓☞तीजा आरा मा ऐटले 10 कोडाकोडी सागरोपम मा 9 कोडाकोडी सागरोपम विती गया मा मात्र 84 लाख पुर्व बाकि हता त्यारे आदिनाथ भ. नो जन्म थयो
✔अजितनाथ भ. थी महावीर भ. सुधी 23तीर्थंकर चौथा आरा मा थया....
➡चौथो आरो सुधी "अर्ध मागधी प्राकत भाषा ज जण साधारण नी भाषा हती....
➡चौविशो तिर्थंकरे आ ज भाषा मा देशना आपी....
➡संस्कृत भाषा विद्वानो नी भाषा गणाती....
➡छठा आरा मा मानस नी आयु २० वर्ष हशे ....
♻पेहला आरा मा=" पुष्करावर्त मेघ" वरसता जेना थी 10,000 वरस सुधी वरसाद नी जरुर ना पडे
♻बिजा आरा मा ="प्रधर्मन मेघ" वरसता जेनाथी 1000 वरस नी शांति
♻तीजा ने चौथा आरा मा= "भभूत मेघ" ⛈1वार वरसता दस वरस नि शांति
♻ पाचमा आरा मा= निम्न मेघ घणीवार वरसे छे तोय जमीन रस कस वगर नी रहेशे
आ अवसर्पिणी काल मा मानस नी आयु ,ऊचाई ,बल निचे उतरता क्रम मा होय
अनादिकाल थी शाश्वत शत्रुंजय गिरि नो प्रमाण पण उतरता क्रममा होय
पहेला आरा मा 80 योजन
छठा आरा मा 7 हाथ
पहेला आरा मा 80 योजन
छठा आरा मा 7 हाथ
✔आवता काल चक्र ना उतसर्पिणी काल मा
♻पहेलो आरो =21000 वरस
♻बीजो आरो= 21000वरस
♻तीजो आरो=1 कोडाकोडी सागरोपम मा 42हजार वरस ओछा
✅✔पहेला तीर्थंकर थी 23 तीर्थंकर सुधी तीजा आरा मा थसे
पहेला तीर्थंकर- पद्मनाभ स्वामी
(श्रेणीक राजा नो जीव ,उम्र 72 वरस)आज थी लगभग 82 हजार वरस पछी जन्म कल्याणक थसे
((अत्यारे नरक मा छे ,त्याथी सीधा तीर्थंकर रुपे जन्म लेशे))
(श्रेणीक राजा नो जीव ,उम्र 72 वरस)आज थी लगभग 82 हजार वरस पछी जन्म कल्याणक थसे
((अत्यारे नरक मा छे ,त्याथी सीधा तीर्थंकर रुपे जन्म लेशे))
11मा तीर्थंकर = मुनिसुव्रत स्वामि
(कृष्ण कि माँ देवकी का जीव)
(कृष्ण कि माँ देवकी का जीव)
12मा तीर्थंकर=( कृष्ण का जीव) अममनाथ
14मा तीर्थंकर = निष्पुलाक स्वामि (कृष्ण ना भाई बलदेव नो जीव)
15 मा तीर्थंकर =निर्मम स्वामि (भरहेसर सज्झाय ना सुलसा नो जीव)
17 मा तीर्थंकर =समाधि नाथ
(महावीर स्वामि ने तेजोलेश्या नी पीडा ओछी करवा दवाई बनावी ए रैवती नो जीव)
(महावीर स्वामि ने तेजोलेश्या नी पीडा ओछी करवा दवाई बनावी ए रैवती नो जीव)
20 मा तीर्थंकर =विजय स्वामि (महाभारत ना कर्ण नो जीव)
♻चौथो आरो= 2कोडाकोडी सागरोपम
चौथो आरो बेसता ज 24मा तीर्थंकर- भद्रबाहु स्वामी नो जन्म ( बुद्ध नो जीव)84लाख पुर्व आयु ,
♻पाचमो आरो =3 कोडाकोडी सागरोपम
♻छठो आरो=4कोडाकोडी सागरोपम
1+2+3+4=10
एम 10 कोडाकोडी सागरोपम ना आवता उतसर्पिणी काल पछी 10 कोडाकोडी सागरोपम नो वर्तमान नी जेम नवो अवसर्पिणी काल थसे
ऐम बन्ने बीजो कालचक्र थसे
एम 10 कोडाकोडी सागरोपम ना आवता उतसर्पिणी काल पछी 10 कोडाकोडी सागरोपम नो वर्तमान नी जेम नवो अवसर्पिणी काल थसे
ऐम बन्ने बीजो कालचक्र थसे
आ 10 -10कोडाकोडी सागरोपम ना दरेक उतसर्पिणी अने दरेक अवसर्पिणि काल मा ग्रह नक्षत्र मात्र 24-24 वखत ज उत्कृष्ट दिशा मा होय छे ज्यारे 24 तीर्थंकर नो जन्म थाय छे
दरेक 5 भरत श्रेत्र ,अने 5 ऐरावत श्रेत्र मा आ प्रकारे एक सरखो काल चक्र चाले छे
दरेक 5 भरत अने 5 एरावत श्रेत्र मा पहेला थी 24 मा तीर्थंकर ना ऐक साथे ज बधा पाचो कल्याणक आवे
दरेक भरत अने एरावत श्रेत्र ना लोको आपणा जेम ज अत्यारे जीवन जीवी रह्या छे
✔महाविदेह मा कालचक्र जुदो होय
त्या बधा 20 विहरमान तिर्थंकर ना एक साथे 17 मा तीर्थंकर कुन्थुनाथ ना निर्वाण पछी जन्म कल्याणक थया
20 मा तीर्थंकर मुनिसुव्रत स्वामि पछी ऐमना दिक्षा कल्याणक थया
बधा 20 तीर्थंकर 83 लाख पुर्व आयु ग्रहस्थाश्रम मा रहीने छेल्ले 1 लाख पुर्व आयु शेष रहे त्यारे दिक्षा ले छे
एम दर 1 लाख पुर्व पछी नवा 20 तीर्थंकर नो जन्म थाय छे
अने आवती चौविशी ना 7 मा भ. "उढाल स्वामि "पछी बधा 20 विहरमान तीर्थंकर ऐमनी 84 लाख पुर्व आयु पुरी करीने एक साथे निर्वाण थसे
त्यारे बीजा 20 तीर्थंकर दीक्षा लेसे
आ महाविदेह नो अटल नियम छे
20 तीर्थंकर ज्यारे निर्वाण थाय त्यारे बिजा 20 तीर्थंकर दिक्षा ले छे
20 तीर्थंकर ज्यारे निर्वाण थाय त्यारे बिजा 20 तीर्थंकर दिक्षा ले छे
एम पांचो महाविदेह मा तिर्थंकर नो क्यारेय अभाव नथी होतो
बधा 20 भ. नो 84 लाख पुर्व आयुष्य
83 लाख पुर्व वरस ग्रहस्थाश्रम
1लाख पुर्व नो चारित्र (दिक्षा)
बधा ने 84-84 गणधर
प्रत्येक साथे 10-10 लाख केवलि परमात्मा
प्रत्येक साथे 1-1अरब साधु
प्रत्येक साथे 1-1 अरब साध्वी
प्रत्येक साथे 9-9 अरब श्रावक
प्रत्येक साथे 9-9 अरब श्राविका
ऐम 84 लाख पुर्व आयु मा बीजा 83 वखत दर 1 लाख पुर्व वरसे नवा 20 - 20 तीर्थंकर ऐम 83×20=1660 तीर्थंकर मात्र एक महाविदेह श्रेत्र मा ग्रहास्थाश्रम मा होय
कुल पांच महाविदेह मा 1660×5=8300 तिर्थंकर ग्रहस्थाश्रम मा अत्यारे छे
8300 मा थी 20×5=100 तिर्थंकर सीमंधर स्वामि आदि 100 तिर्थंकर ना निर्वाण ने समये दिक्षा लेशे
ऐम वीसो विहरमान ना प़ांचो कल्याणक ऐक साथे ज आवे
जंबू द्वीप मा 1,घातकी खंड मा 2,अने अर्ध पुष्कवर द्वीप मा 2(1+2+2=5) एम कुल पाचो महाविदेह मा 20-20 तीर्थंकर होय अने काल चक्र बधा पांचो महाविदेह मा एक सरखो अने अही थी जुदो होय
ऐम अनादि- अनादिकाल थी अनन्ता कालचक्र थया
अनन्ता चौविशी थई
अनन्ता चौविशी थई
आपणी अजर ,अमर ,आकार रहित अनन्ता कर्मो थी बंधायेली शाश्वती आत्मा अनादिकाल थी अनन्ता भव करीने
निगोद ना⠼
तिर्यंच ना,
मनुष्य ना
देवगति ना
,नरकगति ना
अनन्ता अनन्ता जन्म मरण ना बंधन मा थी मुक्त थई ने आत्मा ना निज स्वरुप ने प्राप्त करी सिद्ध पद ने पामे
ऐ ज मंगल कामना....
निगोद ना⠼
तिर्यंच ना,
मनुष्य ना
देवगति ना
,नरकगति ना
अनन्ता अनन्ता जन्म मरण ना बंधन मा थी मुक्त थई ने आत्मा ना निज स्वरुप ने प्राप्त करी सिद्ध पद ने पामे
ऐ ज मंगल कामना....
♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
Q 1 प्रभु आदिनाथ के जन्म के समय तीसरे आरे में कितना समय शेष था❓
उ0 1 84 लाख पूर्व 3 वर्ष साढ़े 8 माह
उ0 1 84 लाख पूर्व 3 वर्ष साढ़े 8 माह
Q 2 प्रभु का जीव किस देवलोक विमान से माता मरुदेवी के गर्भ में आया ❓
उ0 2 सर्वार्थ सिद्ध से ।
उ0 2 सर्वार्थ सिद्ध से ।
Q 3 प्रभु ने किस भव में तीर्थंकर नाम कर्म का उपार्जन किया ❓
उ0 3 वज्रनाभ चक्रवर्ती के भव में ।
उ0 3 वज्रनाभ चक्रवर्ती के भव में ।
Q 4 प्रभु के जीव ने किस भव में सम्यक्त्व की प्राप्ति करी ❓
उ0 4 धन्ना सार्थवाह के भव में ।
उ0 4 धन्ना सार्थवाह के भव में ।
Q 5 प्रभु ने सम्यकत्व प्राप्ति के बाद कितने भव किए ❓
उ0 5. 13 भव
उ0 5. 13 भव
Q 6 प्रभु ने 13 भवो के अन्तर्गत कितने भवो में सयंम ग्रहण किया ❓
उ0 6. 4 भवो में ।
उ0 6. 4 भवो में ।
Q 7 कौन से भव व क्या नाम, बताये ❓
उ0 7. 4 भव - महाबल राजा
9 भव - जीवानंद वैध
11 भव - वज्रनाभ चक्रवर्ती
13 भव - आदिनाथ प्रभु
उ0 7. 4 भव - महाबल राजा
9 भव - जीवानंद वैध
11 भव - वज्रनाभ चक्रवर्ती
13 भव - आदिनाथ प्रभु
Q 8 प्रभु आदिनाथ के पिता व माता का नाम बताये ❓
उ0 8 पिता नाभिराय व माता मरुदेवी ।
उ0 8 पिता नाभिराय व माता मरुदेवी ।
Q 9 प्रभु के साथ किस कन्या ने जन्म लिया ❓
उ0 9 सुमंगला
उ0 9 सुमंगला
Q 10 प्रभु ने किस कन्या को स्वीकार कर उसकी अनाथता दूर करी ❓
उ0 10 सुनंदा
उ0 10 सुनंदा
Q 11 सुमंगला जी ने किस युगल को जन्म दिया ❓
उ0 11 भरत एवं ब्राह्मी युगल को ।
उ0 11 भरत एवं ब्राह्मी युगल को ।
Q 12 सुनंदा जी ने कितने युगलों को जन्म दिया ❓
उ0 12 बाहुबली एवं सुंदरी के पश्चात 49 पुत्र युगलों को, कुल 50 युगलों को।
उ0 12 बाहुबली एवं सुंदरी के पश्चात 49 पुत्र युगलों को, कुल 50 युगलों को।
Q 13 प्रभु कितने समय तक गृहस्थ में रहे ❓
उ0 13. 83 लाख पूर्व ।
उ0 13. 83 लाख पूर्व ।
Q 14 प्रभु ने किस दिन विशाल राज्य वैभव को छोड़कर दीक्षा ली ❓
उ0 14 चैत्र कृष्णा अष्टमी ।
उ0 14 चैत्र कृष्णा अष्टमी ।
Q 15 प्रभु किस शिविका में बैठ कर किस उद्यान में दीक्षा के लिए पहुंचे ❓
उ0 15 सुदर्शना शिविका में बैठ कर, सिद्धार्थ नामक उद्यान में ।
उ0 15 सुदर्शना शिविका में बैठ कर, सिद्धार्थ नामक उद्यान में ।
Q 16 प्रभु के साथ कितने व्यक्तयो ने दीक्षा ली ❓
उ0 16. 4000
उ0 16. 4000
Q 17 प्रभु को दीक्षा के कितने दिनों बाद आहार मिला ❓
उ0 17. 1 वर्ष 1 माह 10 दिन, लगभग 400 दिन ।
उ0 17. 1 वर्ष 1 माह 10 दिन, लगभग 400 दिन ।
Q 18 प्रभु के वर्षी तप का पारणा किसके हाथो से सम्पन्न हुआ ❓
उ0 18 पड़पौत्र श्रेयांशकुमार के हाथो से।
उ0 18 पड़पौत्र श्रेयांशकुमार के हाथो से।
Q 19 प्रभु आदिनाथ का छद्मस्त कल कितने वर्ष का ❓
उ0 19. 1000 वर्ष
उ0 19. 1000 वर्ष
Q 20 प्रभु को केवल ज्ञान व माता मरुदेवी को मोक्ष किस नगरी के किस उद्यान में हुआ ❓
उ0 20 पुरिनताल नगरी के शकटमुख उद्यान में ।
उ0 20 पुरिनताल नगरी के शकटमुख उद्यान में ।
Q 21 इस अवसर्पिणी काल में स्वमंगल में विश्वमंगल का द्वार किस तिथि को खुला ❓
उ0 21 फाल्गुन कृष्णा ग्यारस को ।
उ0 21 फाल्गुन कृष्णा ग्यारस को ।
Q 22 प्रभु ने 98 पुत्रो को वैराग्यवर्धक उपदेश दिया, किस आगम के कौन से अध्य्यन में आता है ❓
उ0 22 सूत्रकृतांग सूत्र के दूसरे वेतालिय अध्य्यन में ।
उ0 22 सूत्रकृतांग सूत्र के दूसरे वेतालिय अध्य्यन में ।
Q 23 मान कषाय को वीतरागता में किसके निमित्त से बाहुबली जी ने बदला ❓
उ0 23 ब्राह्मी जी व सुंदरी जी ।
उ0 23 ब्राह्मी जी व सुंदरी जी ।
Q 24 कुल मद करके नीच गोंडा का बंध किसने किया ❓
उ0 24 मरिचि ने ।
उ0 24 मरिचि ने ।
Q 25 निर्वाण के समय प्रभु के कितना तप था ❓
उ0 25 छः उपवास
उ0 25 छः उपवास
Q 26 प्रभु के साथ निर्वाण के समय कितने साधु थे ❓
उ0 26. 10000 साधु
उ0 26. 10000 साधु
Q 27 इस अवसर्पिणी काल में कितनी बार धर्मतीर्थ की स्थापना हुई ❓
उ027. 24 बार
उ027. 24 बार
Q 28 प्रभु आदिनाथ की कुल दीक्षा पर्याय कितनी थी ❓
उ028. 1 लाख पूर्व
उ028. 1 लाख पूर्व
Q 29 प्रभु के पांचो कल्याणक किस नक्षत्र में हुए ❓
उ0 29 उत्तराषाढ़ा नक्षत्र ।
उ0 29 उत्तराषाढ़ा नक्षत्र ।
Q 30 तीर्थंकर को केवलज्ञान होते ही किस कर्म का उदय होता है ❓
उ0 30 तीर्थंकर नाम कर्म का ।
अवसर्पिणी का पंचम दुःखमा काल २१००० वर्ष का है जिसमे जीव का हीन सहनन ,भ्रष्ट आचरण ,पांचों वर्ण के काँति रहित, उत्कृष्ट आयु १२० वर्ष और ऊचाई ७ हाथ होती है !इस काल में अधिकांश जीव दुःखी ही रहते है जीव ,यह भी कर्म भूमि का काल है !सभी जीव मिथ्यात्व में जन्म लेते है !पंचम काल के अंत से ३ वर्ष ८ माह १५ दिन पूर्व जैन धर्म और राजा लोप हो जायेंगे,अग्नि समाप्त हो जायेगी !तब तक इस कल में महावीर के निर्वाण से प्रयेक १००० वर्ष के अंतराल पर अवधि ज्ञानी मुनि और चतुर्विध संघ होगा तथा एक कल्कि राजा उत्पन्न होता रहेगा जोकि मुनि के आहार में से कर के रूप मे पहिला ग्रास वसूलने के कारण नरक में जाएगा और मुनि की अंतराय होने के कारण वे समाधी लेकर स्वर्ग जाएंगे इसी शृंखला में अंतिम के समय वीरांगज अवधि ज्ञानी मुनि,सर्वश्री नामक आर्यिका ,तथा अग्निल और पंगु श्री नामक युगल श्रावक -श्राविका होंगे !अंत में ये आहार और परिग्रहों का त्याग कर समाधी मरण ग्रहण करते है !प्रत्येक ५०० ५०० वर्षों के अंतराल पर उपक्लकी भी होते रहेंगे !इस काल में मिथ्या ब्राह्मणों का सत्कार होगा !
६- अवसर्पिणी का छठा दुःखमा दुःखमा काल २१००० वर्ष का है यहाँ !जीवों को धर्म ,दया ,क्षमा आदि गुणों रहित होने के कारण दुःख ही दुःख है,वे नग्न ही जीवन व्यतीत करते है ! सभी जीव इस काल में मिथ्यात्व मे धुए के समान काले वर्ण युक्त।गूंगे,बहरे,अंधे,कुरूप,पशु के समान स्वभाव के उत्पन्न होकर मिथ्यात्व में ही मरते है !अधिकांशत जीव नरक गति को ही प्राप्त करते है !इस काल मे हिंसा इतनी बढ़ जाती है की मनुष्य मनुष्य का भक्षण करने लगता है !इस काल के अंत से ४९ दिन पूर्व महा प्रलय भरत और ऐरावत क्षेत्र के आर्य खंड मे होती है जिसमे १ योजन तक की चित्रा पृथिवी जल कर भस्म हो जाती है !इन ४९ दिनों में ७-७ दिन के लिए क्रमश:शीट,क्षार,विष,वज्र,धुल और धूम की वर्षाये होती है जिसने इन क्षेत्रों के आर्य खंड में सभ्यता का सर्वनाश हो जाता है !यह प्रलय उत्सर्पिणी काल के प्रथम काल के ४९ दिनों तक रहती है , जिसके बाद देवों द्वारा विज्यार्ध पर्वत और गंगा सिंधु नदी के बीच की गुफाओं में छुपाये गए ७२ युगल और असंख्यात युगल भरत के आर्यखण्ड में लौटकर जीवन प्रारम्भ भादो पंचमी शुक्ल पक्ष में करते है ,पंचमी से हम उसी याद में १० दिन का दस लक्षण शाश्वत पर्व मनाते है !यहाँ जीवों की उत्कृष्ट आयु २०-१५ वर्ष और ऊंचाई १ हाथ तक होती है !उत्सर्पिणी काल का आरम्भ श्रवण कृष्णा प्रतिपदा को होता है !जिसके प्रारम्भ में प्रत्येक ७-७ दिन तक क्रमश जल,दूध,घृत ,अमृत ,सुगंधित पवन आदि की शुभ वर्षाये होती है जिससे सभी जगह शांति मय वातावरण हो जाता है !यह दिन भाद्र शुक्ल पंचमी का होता है !!
उत्सर्पिणी के छ: काल अवसर्पिणी के ठीक विपरीत है !अर्थात पहिला काल दुःखमा दुःखमा-२१००० वर्ष ,कर्म भूमि ,दूसरा दुःखमा -२१००० ,वर्ष कर्म भूमि है !उत्सर्पिणी का छठा दुःखमा दुःखमा काल और दुःखमा काल के २०००० वर्ष व्यतीत होने के बाद अर्थात उखमा काल के १००० वर्ष शेष रहने पर प्रथम कुलकर जन्म लेते है !जो मुष्यों को खाना बनाने की,कुलाचार आदि की शिक्षा देते है !तीसरा काल कर्म भूमि का १कोड़ा कोडी सागर में ४२००० वर्ष कम , चौथा काल जघन्य भोग भूमि २ कोड़ा ,कर्मभूमि कोडी सागर का है, पंचमकाल सुखमाँ ३कोड़ा कोडी सागर का माध्यम भोग भूमि है छठा काल सुखमा सुखमा ४ कोड़ा कोडी सागर का उत्तम भोगभूमि है ! इन कालों में जीवों की आयु ,सुख सम्पदा ,ऊंचाई क्रमश बढ़ती है इसलिए इस काल का नाम उत्सर्पिणी काल सार्थक है !
असंख्यात अवसर्पिणी काल के व्यतीत होने पर एक हुँडावसर्पिणी काल आता है जिसमे अनहोनी घटनाएं जैसे तीर्थंकर ऋषभदेव जी के पुत्रियों का जन्म होना,५-तीर्थंकरों वासुपूज्य,मल्लिनाथ,नेमिनाथ जी,पार्श्वनाथ जी और महावीर जी का बालयति होना,६३ श्लाखा पुरुषों की जगह ५८ ही होना ,तीर्थंकरो ऋषभदेव जी का अवसर्पिणी काल के तीसरे काल में उत्पन्न होकर मोक्ष प्राप्त करना,भरत चक्रवर्ती के मान का गलन होना ,तीर्थंकरों पर उपसर्ग होना ,तीर्थंकरों का अयोध्या के अतिरिक्त अन्य स्थानों पर जन्म लेना,तीर्थंकरों सम्मेद शिखर जी के अतिरिक्त अन्य स्थानों से मोक्ष प्राप्त करना इत्यादि !वर्तमान में यहाँ हुन्डावसर्पिनी काल ही चल रहा है !
भरत और ऐरावत के म्लेच्छ खंडो तथा विज्यार्ध पर्वत की श्रेणियों में अवसर्पिणी के चतुर्थ काल के आदि से अंत तक परिवर्तन होता है ,इजब आर्य खंड में अवसर्पिणी का प्रथम ,द्वित्य और तृ तीय काल वर्तता है उस समय म्लेच्छ खंड और विज्यार्ध की श्रेणियों में मनुष्यों की उत्कृष्ट आयु १ कोटी पूर्व और ऊंचाई ५०० धनुष होती है!जब आर्य खंड में चौथा काल वर्तता है उस समय यहाँ आयु व ऊंचाई घटते घटते ५०० धनुष से ७ हाथ आर्य खंड के समान आ जाती है!जब आर्य खंड में पांचवा छठा काल तथा उत्सर्पिणी का प्रथम और दूसरा काल कुल ८४००० वर्ष का चल रहा होता है तब ७ हाथ की काया रहती है !
इसलिए चक्रवर्ती की ९६००० रानियों में से ३२००० विज्यार्ध पर्वत की श्रेणियों से ,३२००० म्लेच्छ खंड से और ३२००० आर्य खंड से हो जाती है !उत्सर्पिणी के तीसरे -चौथे ,पांचवे और छट्टे काल में अवगाहना ५०० धनुष हो जाती है ! चक्रवर्ती छह खंडो का विजेता होता है तथा नारयण और प्रतिनारायण तीन खंडो के इसलिए अर्द्ध चक्रवर्ती कहलाते है
उत्सर्पिणी काल के समय तृतीयकाल के अंत से लेकर आदि तक परिवर्तन होता है !इनमे आर्यखण्ड की तरह ष ट काल परिवर्तन नहीं होता है !भरत ऐरावत के म्लेच्छ खण्डों और विजयार्ध पर्वत की श्रेणियों में प्रलय नही होती होती !
विजयार्ध पर्वत ,२५ योजन ऊँचा और मूल में दूना ,भरत क्षेत्रों को बीचों बीच उत्तर और दक्षिण दो भागों में विभाजित करता है !इसका प्रत्येक भाग, गंगा और सिंधु नदियों के द्वारा ३खंड उत्तर और -३ खंड दक्षिण में विभाजित हो जाते है ,इस प्रकार भरत क्षेत्र के छह खंड हो जाते है ! विज्यार्ध के उत्तर में तीनो खनंद म्लेच्छ खंड है और दक्षिण में बीच का कदंड आर्य खंड और उसके दोनों ओर के २ खंड म्लेच्छ खंड है !हमारी सम्पूर्ण पृथ्वी आर्य खंड है !चक्रवर्ती छह खंडो को जीतने के बाद म्लेच्छ खंड के वृषभांचल पर अपना नाम अंकित करने जाते है !
उ0 30 तीर्थंकर नाम कर्म का ।
अवसर्पिणी का पंचम दुःखमा काल २१००० वर्ष का है जिसमे जीव का हीन सहनन ,भ्रष्ट आचरण ,पांचों वर्ण के काँति रहित, उत्कृष्ट आयु १२० वर्ष और ऊचाई ७ हाथ होती है !इस काल में अधिकांश जीव दुःखी ही रहते है जीव ,यह भी कर्म भूमि का काल है !सभी जीव मिथ्यात्व में जन्म लेते है !पंचम काल के अंत से ३ वर्ष ८ माह १५ दिन पूर्व जैन धर्म और राजा लोप हो जायेंगे,अग्नि समाप्त हो जायेगी !तब तक इस कल में महावीर के निर्वाण से प्रयेक १००० वर्ष के अंतराल पर अवधि ज्ञानी मुनि और चतुर्विध संघ होगा तथा एक कल्कि राजा उत्पन्न होता रहेगा जोकि मुनि के आहार में से कर के रूप मे पहिला ग्रास वसूलने के कारण नरक में जाएगा और मुनि की अंतराय होने के कारण वे समाधी लेकर स्वर्ग जाएंगे इसी शृंखला में अंतिम के समय वीरांगज अवधि ज्ञानी मुनि,सर्वश्री नामक आर्यिका ,तथा अग्निल और पंगु श्री नामक युगल श्रावक -श्राविका होंगे !अंत में ये आहार और परिग्रहों का त्याग कर समाधी मरण ग्रहण करते है !प्रत्येक ५०० ५०० वर्षों के अंतराल पर उपक्लकी भी होते रहेंगे !इस काल में मिथ्या ब्राह्मणों का सत्कार होगा !
६- अवसर्पिणी का छठा दुःखमा दुःखमा काल २१००० वर्ष का है यहाँ !जीवों को धर्म ,दया ,क्षमा आदि गुणों रहित होने के कारण दुःख ही दुःख है,वे नग्न ही जीवन व्यतीत करते है ! सभी जीव इस काल में मिथ्यात्व मे धुए के समान काले वर्ण युक्त।गूंगे,बहरे,अंधे,कुरूप,पशु के समान स्वभाव के उत्पन्न होकर मिथ्यात्व में ही मरते है !अधिकांशत जीव नरक गति को ही प्राप्त करते है !इस काल मे हिंसा इतनी बढ़ जाती है की मनुष्य मनुष्य का भक्षण करने लगता है !इस काल के अंत से ४९ दिन पूर्व महा प्रलय भरत और ऐरावत क्षेत्र के आर्य खंड मे होती है जिसमे १ योजन तक की चित्रा पृथिवी जल कर भस्म हो जाती है !इन ४९ दिनों में ७-७ दिन के लिए क्रमश:शीट,क्षार,विष,वज्र,धुल और धूम की वर्षाये होती है जिसने इन क्षेत्रों के आर्य खंड में सभ्यता का सर्वनाश हो जाता है !यह प्रलय उत्सर्पिणी काल के प्रथम काल के ४९ दिनों तक रहती है , जिसके बाद देवों द्वारा विज्यार्ध पर्वत और गंगा सिंधु नदी के बीच की गुफाओं में छुपाये गए ७२ युगल और असंख्यात युगल भरत के आर्यखण्ड में लौटकर जीवन प्रारम्भ भादो पंचमी शुक्ल पक्ष में करते है ,पंचमी से हम उसी याद में १० दिन का दस लक्षण शाश्वत पर्व मनाते है !यहाँ जीवों की उत्कृष्ट आयु २०-१५ वर्ष और ऊंचाई १ हाथ तक होती है !उत्सर्पिणी काल का आरम्भ श्रवण कृष्णा प्रतिपदा को होता है !जिसके प्रारम्भ में प्रत्येक ७-७ दिन तक क्रमश जल,दूध,घृत ,अमृत ,सुगंधित पवन आदि की शुभ वर्षाये होती है जिससे सभी जगह शांति मय वातावरण हो जाता है !यह दिन भाद्र शुक्ल पंचमी का होता है !!
उत्सर्पिणी के छ: काल अवसर्पिणी के ठीक विपरीत है !अर्थात पहिला काल दुःखमा दुःखमा-२१००० वर्ष ,कर्म भूमि ,दूसरा दुःखमा -२१००० ,वर्ष कर्म भूमि है !उत्सर्पिणी का छठा दुःखमा दुःखमा काल और दुःखमा काल के २०००० वर्ष व्यतीत होने के बाद अर्थात उखमा काल के १००० वर्ष शेष रहने पर प्रथम कुलकर जन्म लेते है !जो मुष्यों को खाना बनाने की,कुलाचार आदि की शिक्षा देते है !तीसरा काल कर्म भूमि का १कोड़ा कोडी सागर में ४२००० वर्ष कम , चौथा काल जघन्य भोग भूमि २ कोड़ा ,कर्मभूमि कोडी सागर का है, पंचमकाल सुखमाँ ३कोड़ा कोडी सागर का माध्यम भोग भूमि है छठा काल सुखमा सुखमा ४ कोड़ा कोडी सागर का उत्तम भोगभूमि है ! इन कालों में जीवों की आयु ,सुख सम्पदा ,ऊंचाई क्रमश बढ़ती है इसलिए इस काल का नाम उत्सर्पिणी काल सार्थक है !
असंख्यात अवसर्पिणी काल के व्यतीत होने पर एक हुँडावसर्पिणी काल आता है जिसमे अनहोनी घटनाएं जैसे तीर्थंकर ऋषभदेव जी के पुत्रियों का जन्म होना,५-तीर्थंकरों वासुपूज्य,मल्लिनाथ,नेमिनाथ जी,पार्श्वनाथ जी और महावीर जी का बालयति होना,६३ श्लाखा पुरुषों की जगह ५८ ही होना ,तीर्थंकरो ऋषभदेव जी का अवसर्पिणी काल के तीसरे काल में उत्पन्न होकर मोक्ष प्राप्त करना,भरत चक्रवर्ती के मान का गलन होना ,तीर्थंकरों पर उपसर्ग होना ,तीर्थंकरों का अयोध्या के अतिरिक्त अन्य स्थानों पर जन्म लेना,तीर्थंकरों सम्मेद शिखर जी के अतिरिक्त अन्य स्थानों से मोक्ष प्राप्त करना इत्यादि !वर्तमान में यहाँ हुन्डावसर्पिनी काल ही चल रहा है !
भरत और ऐरावत के म्लेच्छ खंडो तथा विज्यार्ध पर्वत की श्रेणियों में अवसर्पिणी के चतुर्थ काल के आदि से अंत तक परिवर्तन होता है ,इजब आर्य खंड में अवसर्पिणी का प्रथम ,द्वित्य और तृ तीय काल वर्तता है उस समय म्लेच्छ खंड और विज्यार्ध की श्रेणियों में मनुष्यों की उत्कृष्ट आयु १ कोटी पूर्व और ऊंचाई ५०० धनुष होती है!जब आर्य खंड में चौथा काल वर्तता है उस समय यहाँ आयु व ऊंचाई घटते घटते ५०० धनुष से ७ हाथ आर्य खंड के समान आ जाती है!जब आर्य खंड में पांचवा छठा काल तथा उत्सर्पिणी का प्रथम और दूसरा काल कुल ८४००० वर्ष का चल रहा होता है तब ७ हाथ की काया रहती है !
इसलिए चक्रवर्ती की ९६००० रानियों में से ३२००० विज्यार्ध पर्वत की श्रेणियों से ,३२००० म्लेच्छ खंड से और ३२००० आर्य खंड से हो जाती है !उत्सर्पिणी के तीसरे -चौथे ,पांचवे और छट्टे काल में अवगाहना ५०० धनुष हो जाती है ! चक्रवर्ती छह खंडो का विजेता होता है तथा नारयण और प्रतिनारायण तीन खंडो के इसलिए अर्द्ध चक्रवर्ती कहलाते है
उत्सर्पिणी काल के समय तृतीयकाल के अंत से लेकर आदि तक परिवर्तन होता है !इनमे आर्यखण्ड की तरह ष ट काल परिवर्तन नहीं होता है !भरत ऐरावत के म्लेच्छ खण्डों और विजयार्ध पर्वत की श्रेणियों में प्रलय नही होती होती !
विजयार्ध पर्वत ,२५ योजन ऊँचा और मूल में दूना ,भरत क्षेत्रों को बीचों बीच उत्तर और दक्षिण दो भागों में विभाजित करता है !इसका प्रत्येक भाग, गंगा और सिंधु नदियों के द्वारा ३खंड उत्तर और -३ खंड दक्षिण में विभाजित हो जाते है ,इस प्रकार भरत क्षेत्र के छह खंड हो जाते है ! विज्यार्ध के उत्तर में तीनो खनंद म्लेच्छ खंड है और दक्षिण में बीच का कदंड आर्य खंड और उसके दोनों ओर के २ खंड म्लेच्छ खंड है !हमारी सम्पूर्ण पृथ्वी आर्य खंड है !चक्रवर्ती छह खंडो को जीतने के बाद म्लेच्छ खंड के वृषभांचल पर अपना नाम अंकित करने जाते है !
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