दूसरा आरा

१. अवसर्पिणी काल के दूसरे आरे का नाम क्या है?

१.उत्तर:-सुषमा नामक आरा है।

२.दूसरा सुषमा आरा कब लगता है?

२.उत्तर :- जब चार कोडाकोडी सागरोपम काल प्रमाण पहला आरा पूर्ण होता है तब दूसरा आरा लगता है।

३.पहले से दूसरे में प्रकृति में क्या फर्क पड़ता है?

३. उत्तर:- उसमें अनन्त वर्ण पर्याय अनंत गंध पर्याय ,अनंत रस पर्याय,
अनंत स्पर्श पर्याय,संहनन,संस्थान,आयु,उत्थानकर्म बल वीर्य पुरुष्कार पराक्रम पर्याय आदि में क्रमशः हास् होता जाता है।

४. भरत क्षेत्र में दूसरे आरे के मनुष्यों की अवगाहना कितनी है?

४.उत्तर:- चार हजार धनुष प्रमाण ( दो कोस )

५. भरत क्षेत्र में दूसरे आरे के मनुष्य की कितने दिन आहरेच्छा होती है?

५. उत्तर:- दो दिन के अन्तराल से।

६.भरत क्षेत्र में दूसरे आरे के मनुष्य कितना आहार लेते है?

६. उत्तर:- बोर जितना आहार लेते है।

७. भरत क्षेत्र में दूसरे आरे के मनुष्यों की लगते आरे अवगाहना कितनी होती है?

७. उत्तर:- दो गऊ की।

८ . भरत क्षेत्र में दूसरे आरे के मनुष्यों की उतरते आरे अवगाहना कितनी होती है?

८.उत्तर :- एक गऊ की।

९.भरत क्षेत्र में दूसरे आरे के मनुष्यों की लगते आरे आयुष कितना होता है?

९. उत्तर :- दो पल्योपम।

१०.भरत क्षेत्र में दूसरे आरे के मनुष्यों की उतरते आरे आयुष कितना होता है?

१०.उत्तर:- एक पल्योपम।

११. भारत क्षेत्र में दूसरे आरे के मनुष्य आपने संतान का कितने दिन पालन-पोषण करते है?

११.उत्तर :- ६४ दिन करते है।

१२.भारत क्षेत्र में दूसरे आरे के मनुष्यों की प्रकृति कैसे होती है?

१२.उत्तर :- वे शांत,प्रशांत,सरल,भद्रिक स्वभावी होते है।

१३.भारत क्षेत्र में दूसरे आरे के मनुष्य आयु पूर्ण करके कहाँ जाते है?

१३. उत्तर :- देव गति प्राप्त करते है।

१४.भारत क्षेत्र में दूसरे आरे में मिट्टी का स्वाद कैसा होता है?

१४.उत्तर:- शक्कर जैसा होता है।

१५. दूसरे आरे में कितने प्रकार के मनुष्य होते थे?

१५.उत्तर :- चार प्रकार के मनुष्य होते थे।

१६. दूसरे आरे में चार प्रकार के कौनसे मनुष्य होते थे?

१६. उत्तर :-
१. एक-प्रवर- श्रेष्ठ
२. प्रचुर जंघ-पुष्ट जंघा वाले
३. कुसुम - पुष्प के सदृश सुकुमार
४. सुशमन - अत्यन्त शांत -इस प्रकार के मनुष्य होते थे।


दूसरा आरा लगते कौन सा काल ❓
🅰 भोगकाल

दूसरे आरे में कितना आहार ❓
🅰 बेर के बराबर


 दूसरे आरे में स्पर्श कैसा❓
🅰 रेशम के गुच्छे जैसा

 दूसरे आरे की स्थिति कितनी❓
🅰 3 कोटाकोटी सागरोपम


२- अवसर्पिणी का द्वित्य काल ३ कोड़ा कोडी सागर का माध्यम भोग भूमि का होता है !जन्म लेने पर बच्चे सोते सोते ५  दिन तक अंगूठा चूसते है ,५ दिन में घुटने के बल  चलते है,फिर ५ दिन  में मधुर तुतलाती भाषा बोलते है,फिर ५ दिनों  में पैरो पर चलने लगते है,फिर ५ दिनों  में कला और रूप आदि गुणों से युक्त हो जाते है,फिर ५ दिनोमें  में युवावस्था को प्राप्त करते है,फिर  ५ दिनों में  सम्यग्दर्शन  धारण करने  की योग्यता प्राप् कर लेते है !ये बेहड़ा फल  के समान  तीसरे  दिन  आहार लेते है !इनकी आयु २ पल्य लम्बाई २  कोस अर्थात ४००० धनुष होती है!इस काल में जीवों का वर्ण चद्रमा की कांति  के समान उज्ज्वल होता है 






द्वितीय काल


इस प्रकार से अवगाहना आदि के घटते-घटते ‘सुषमा’ नामक द्वितीय काल प्रविष्ट होता है। इस काल के आदि में मनुष्यों के शरीर की ऊँचाई चार हजार धनुष-दो कोस, आयु दो पल्य प्रमाण और शरीर का वर्ण चन्द्रमा सदृश धवल होता है। इनके पृष्ठ भाग में एक सौ अट्ठाईस हड्डियाँ होती हैं। अतीव सुन्दर समचतुरस्र संस्थान से युक्त ये भोगभूमिज तीसरे दिन बहेड़ा के बराबर आहार ग्रहण करते हैं। इस काल में उत्पन्न हुए बालक युगल शय्या पर सोते हुए अपने अंगूठे के चूसने में पाँच दिन व्यतीत करते हैं पश्चात् उपवेशन, अस्थिर गमन, स्थिर गमन, कलागुण प्राप्ति, तारुण्य और सम्यक्त्व ग्रहण की योग्यता, इनमें से प्रत्येक अवस्था में उन बालकों के पाँच-पाँच दिन व्यतीत हो जाते हैं। इतनी मात्र विशेषता को छोड़कर शेष वर्णन जो सुषमा-दुषमा काल में कहे गये हैं, उन्हें यहाँ पर भी समझना चाहिए। तीन कोड़ाकोड़ी सागर प्रमाण इस सुषमा नामक काल में पहले से ही ऊँचाई, बल, ऋद्धि, आयु और तेज आदि उत्तरोत्तर हीन-हीन होते जाते हैं।



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