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सितंबर, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

जैन महाभारत

             *पोस्ट, 1* 🔘🔲🔘🔲🔘🔲🔘 एक राजा था। *शांन्तनु* उनका नाम था। स्वभाव के शांत नदी के जैसे थे। तेज़ ऐसा था कि जैसे दूसरा सूर्य देख लो और न्याय के लिए तो आदर्श रूप थे।  वो राजा की प्रजा भी कैसी?  चतुर सार असार को समझने वाली अच्छे और बुरे का विवेक करने वाली धर्म वाली धन और ऐश्वर्य से युक्त थी।  राजा की नगरी भी अद्भुत थी जैसे देव नगरी को देख लो।  वो नगरी का नाम था *हस्तिनापुर* शांतनु गुणों के भंडार थे। पर जैसे निर्मल चंद्र में भी कलंक होता है वैसे ही शांतनु में भी एक भयंकर दोष था वो  *शिकार के बहुत शौकीन थे।* समय होते ही वो शिकार पर निकल जाते थे।  इतना अच्छा राजा पर रंग प्राणियों पर दया नहीं थी दया होती तो शिकार जैसा क्रूर कार्य नहीं करता। दया के बिना ना राज्य शोभता है और न राजा शोभता है और दिल में दया न हो तो मनुष्य देह भी नहीं शोभता ।  *एक समय की बात है।* शांतनु राजा शिकार करने के लिए निकले। हैं शिकार की चाह में दूर दूर तक पहुँच गए है। बहुत दूर जाने के बाद राजा एक पेड़ के नीचे हरण और हरणी को देखा हरण और हरनी...

नमुत्थुणं

एक बात की विशेष चर्चा होनी थी कि जब तीर्थंकर का जन्म औऱ च्यवन होता है तब  कब करते है शक्रेन्द्र, शक्रस्तव की स्तुति और कैसे करते है ?* जब भी प्रभु का *च्यवन या जन्म कल्याणक* होता है, शक्रेन्द्र के *सिंहासन कंपायमान* होते ही उन्हें पता चलता है और वह अपने सिंहासन को, आपनी पादपीठ पादुका वि. को छोड़, जिस तरफ प्रभु है, उस दिशा की और, सात से आठ कदम चलकर, अखण्ड वस्त्र का उतरासंग करते हुए, अपने दक्षिण जानु (बायें घुटने) को आरोपण करके, (सिकोड़कर), और, वामजानु को,  (दाहिने घुटने) को भूमि पर टिकाकर *नमुत्थुणं मुद्रा* में, जिसे हम *योगमुद्रा* भी कहते है, और इसी *नमुत्थुणं सूत्र यानी शक्रस्तव के द्वारा, अरिहंत भगवंत के ३६ विशिषणों के साथ, नमुत्थुणं सूत्र, जिसकी ९ गाथा शाश्वत है, वह स्तुति करते है। (दसवीं गाथा को बाद में जोड़ा गया है)*, *त्रिशष्टिसलाका में भी, शक्रस्तव स्तुति करते समय की, अरिहंत प्रभु के विशेषणों की स्तुति का ही वर्णन है ।*  उसके बाद अपने मस्तक को भूमि पर लगाकर, तीन बार वंदन करते है और यही भाव तब वह भाते है कि, भगवान को वंदन करता हूँ, वहाँ स्थित भगवान मुझे देखें । *तो ऐस...