जैन महाभारत
*पोस्ट, 1* 🔘🔲🔘🔲🔘🔲🔘 एक राजा था। *शांन्तनु* उनका नाम था। स्वभाव के शांत नदी के जैसे थे। तेज़ ऐसा था कि जैसे दूसरा सूर्य देख लो और न्याय के लिए तो आदर्श रूप थे। वो राजा की प्रजा भी कैसी? चतुर सार असार को समझने वाली अच्छे और बुरे का विवेक करने वाली धर्म वाली धन और ऐश्वर्य से युक्त थी। राजा की नगरी भी अद्भुत थी जैसे देव नगरी को देख लो। वो नगरी का नाम था *हस्तिनापुर* शांतनु गुणों के भंडार थे। पर जैसे निर्मल चंद्र में भी कलंक होता है वैसे ही शांतनु में भी एक भयंकर दोष था वो *शिकार के बहुत शौकीन थे।* समय होते ही वो शिकार पर निकल जाते थे। इतना अच्छा राजा पर रंग प्राणियों पर दया नहीं थी दया होती तो शिकार जैसा क्रूर कार्य नहीं करता। दया के बिना ना राज्य शोभता है और न राजा शोभता है और दिल में दया न हो तो मनुष्य देह भी नहीं शोभता । *एक समय की बात है।* शांतनु राजा शिकार करने के लिए निकले। हैं शिकार की चाह में दूर दूर तक पहुँच गए है। बहुत दूर जाने के बाद राजा एक पेड़ के नीचे हरण और हरणी को देखा हरण और हरनी...