कथा केशी-गौतम संवाद
. *।। श्रीमहावीराय नमः।।*
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*🔸🔸श्री उत्तराध्ययन सूत्र🔸🔸*
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. *केशी-गौतमीय*
( तेईसवां अध्ययन )
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वंदन करूं गुरुदेव को,
शत् शत् नमन करे यह शीष।
उत्तराध्ययन संदेश सुनाऊँ,
सफल हो ज्ञानीजन आशीष।।
*🙏वीर प्रभु के अंतिम क्षण के,*
*🙏रत्न जड़ित है बोल।*
*☝️मानव उत्तराध्ययन को खोल☝️*
*☝️प्रस्तुतअध्ययन में तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की परम्परा के चौथे आचार्य केशी कुमार श्रमण और भगवान महावीर के प्रमुख शिष्य गौतम का संवाद है।इसलिए इसका नाम "केशी–गौतमीय" है।*
*भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा के प्रथम पट्टधर आचार्य शुभदत्त, द्वितीय पट्टधर आचार्य हरिदत्त तथा तृतीय पट्टधर आचार्य समुद्रसूरि थे।तृतीय पट्टधर के समय में "विदेशी" नामक धर्म प्रचारक आचार्य उज्जयिनी नगरी में पधारे और उनके उपदेश से तत्कालीन महाराजा जयसेन, उनकी रानी अनंगसुन्दरी और राजकुमार केशी कुमार प्रतिबुद्ध हुए।तीनों ने दीक्षा ली।कहा जाता है कि इन्हीं केशी श्रमण ने श्वेताम्बिका नगरी के नास्तिक राजा प्रदेशी को समझाकर आस्तिक एवं दृढ़धर्मी बनाया था।*
*कुमार-श्रमण––* कुमार शब्द का सम्बन्ध *कुमार श्रमण* और *केशीकुमार*– इस प्रकार दोनों रूपों में किया जा सकता है।शान्ताचार्य ने प्रथम रूप मान्य किया है।कुमार श्रमण, केशी का एक विशेषण है।वे अविवाहित थे इसलिए *कुमार* कहलाते थे और वे तपस्या करते थे, इसलिए वे *श्रमण* कहलाते थे।
*🙏भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा के कई साधुओं की धर्म चर्चा तथा संवाद भगवान् महावीर एवं गणधर गौतम स्वामी से हुआ था ऐसी जानकारी देने वाले अनेक प्रसंग उपलब्ध होते हैं।हम यहां इस अध्ययन अनुसार कुमार श्रमण केशी और गणधर भगवन् गौतम स्वामी के मध्य श्रावस्ती नगरी मे हुए संवाद के बारे में जानेंगे।*
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*☝️एक बार कुमार श्रमण केशी ग्रामानुग्राम विहरण करते हुए श्रावस्ती में आए तथा तिन्दुक उद्यान में ठहरे।भगवान् महावीर के शिष्य गणधर गौतम भी संयोगवश उसी नगर में आए और कोष्ठक उद्यान में ठहरे।नगर में आते जाते दोनों परम्पराओं के शिष्य एक दूसरे से मिले। दोनों के शिष्यों के मन जिज्ञासा से भर गये।आपस में ऊहापोह करते हुए वे अपने-अपने आचार्य के पास आए। उनसे दोनों परम्पराओं में पारस्परिक भेदों की चर्चा की।*
*🙏 कुमार-श्रमण और गणधर गौतम विशिष्ट ज्ञानीथे।वे सब कुछ जानते थे।उन दोनों*( केशी और गौतम ) *ने अपने-अपने शिष्यों की वितर्कणा को जानकर परस्पर मिलने का निश्चय किया। कुमार-श्रमण केशी पार्श्व परम्परा के आचार्य होने के कारण गौतम से ज्येष्ठ थे, इसलिए गौतम अपने शिष्यों को साथ ले 'तिन्दुक' उद्यान में गये। आचार्य केशी ने आसन आदि दे उनका सत्कार किया। कई अन्य मतावलंबी सन्यासी तथा उनके उपासक भी आए।*
केशी कुमारश्रमण: गौतमश्च महायशाः।
उभौ निषण्णो शोभेते चन्द्रसूरसमप्रभौ।।
*🌙 केशी कुमारश्रमण और🌞 महायशस्वी गौतम स्वामी, दोनों बैठे हुए वहाँ चन्द्र-सूर्य के समान प्रभा से सुशोभित हो रहे थे।*
*☝️वहाँ होने वाले संवाद में कुतूहल को ढुंढने वाले दूसरे-दूसरे सम्प्रदायों के अनेक साधु आये और हजारों-हजारों गृहस्थ आए। देव, दानव, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, किन्नर और अदृश्य भूतों* (ऐसे व्यंतरदेव जो क्रीड़ापरायण होते हैं) *का वहां मेला सा लग गया।*
*🙏आचार्य केशी तथा गणधर गौतम में संवाद हुआ। प्रश्नोत्तर चले। उनमें चातुर्याम और पंचयाम धर्म तथा सचलेक्य और अचलेक्य के प्रश्न मुख्य थे।*
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*1️⃣ प्रथम प्रश्नोत्तर :*
*आचार्य केशी ने गौतम से पूछा––*
*🙏भंते ! भगवान् पार्श्व ने चातुर्याम धर्म की प्ररूपणा की और भगवान् महावीर ने पंचयाम धर्म की। दोनों का लक्ष्य एक है। फिर यह भेद क्यों ? क्या यह पार्थक्य संदेह उत्पन्न नहीं करता ?*
*गणधर गौतम स्वामी ने इस प्रकार कहा––*
*🙏भंते ! प्रथम तीर्थंकर के श्रमण ऋजु*(सरल) *और जड़*(मन्दमति) *, अन्तिम तीर्थंकर के श्रमण वक्र और जड़ होते हैं , जबकि मध्यवर्ती बाईस तीर्थंकरों के श्रमण ऋजु और प्राज्ञ होते हैं। प्रथम तीर्थंकर के श्रमणों के लिए मुनि के आचार को यथावत् ग्रहण करना कठिन है, चरम तीर्थंकर के श्रमणों के लिए आचार का पालन करना कठिन है और मध्यवर्ती तीर्थंकरों के मुनि उसे यथावत् ग्रहण करते हैं तथा सरलता से उसका पालन करते हैं। इन्हीं कारणों से धर्म के ये दो किये गये हैं।*
*(कुमारश्रमण केशी)––हे गौतम ! उत्तम है तुम्हारी प्रज्ञा। तुमने मेरे इस संशय को दूर किया है। मुझे एक दूसरा संशय भी है।*
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*2️⃣ द्वितीय प्रश्नोत्तर :*
*🙏"भंते ! एक ही प्रयोजन के लिए अभिनिष्क्रमण करनेवाले इन दोनों परम्पराओं के मुनियों के वेश में यह विविधता क्यों है ? एक सवस्त्र है और दूसरे अवस्त्र।"*
*गणधर गौतमस्वामी ने कहा––*
*🙏भंते ! सर्वज्ञों ने केवलज्ञान से भलीभांति यथोचित रूप से धर्म के साधनों*(वेष,चिन्ह आदि उपकरणों) *को जानकर ही उनकी अनुमति दी गई है।*
*🙏भंते ! मोक्ष के निश्चित साधन तो ज्ञान, दर्शन और चारित्र हैं। वेश तो बाह्र उपकरण है।लोगों को यह प्रतित हो कि ये साधु है, इसलिए नाना प्रकार के उपकरणों की परिकल्पना की है।संयम–यात्रा को निभाना और "मैं साधु हूँ" ऐसा बोध रहने के लिए–वेशधारण के प्रयोजन है।*
*(कुमारश्रमण केशी)––हे गौतम ! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। तुमने मेरा यह संशय भी दूर कर दिया है। मेरा एक संशय और भी है।.......*
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*🙏पार्श्व परम्परा के चतुर्थ पट्टधर कुमारश्रमण केशी और श्रमण भगवान् महावीर के गणधर गौतमस्वामी के मध्य हुए संवाद का शेष भाग अगली पोस्ट में....*
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Iskka 2nd part upload kare 🙏🙏
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