ऋषभदेव का जन्म



             *महावीर के उपदेश ग्रुप*

                  💁‍♂💁 *भगवान रुषभदेवजी/आदिनाथजी जीवन चरित्र* 🙋🙋‍♂

📚श्रीआदिनाथ चरित्र📚
             *98*
       *सातवा कुलकर*
    *आयु पूर्ण  होने मे थोड़ा समय रहा तब मरुदेव की प्रिया श्रीकांता ने एक🎎 युगलिक को जन्म दिया❗ *पुरुष का नाम नाभि और स्त्री का मरूदेवा रखा गया*❗ *सवा पांचसौ प्रमाण ऊंचे  शरीर वाले  *क्षमा और संयम की भांति एकसाथ बढ़ने लगे*❗
     *मरूदेवा प्रियंगुलता समान👱🏻‍♀ और  नाभि सुवर्ण 🌞 के समान कांतिवाले थे*❗ इससे वे *अपने माता पिता की🤴👸🏼 प्रतिबिम्ब की भांति सुशोभित  होते थे*❗ *उनकी आयु उनके माता पिता से कुछ कम संख्यतः पूर्व की   हुई*❗
   *काल करके मरुदेव द्वीपकुमार* देवों में उत्पन्न हुआ और *श्रीकांता भी तत्काल मरकर🏰 नागकुमार* में उत्पन्न हुई❗
    *मरुदेव की मृत्यु के पश्चात नाभिराजा 🎉🎊सातवा कुलकर हुआ❗☝🏾 ऊपर बताई हुई दंडनीति के द्वारा ही कुलकरो को दंड देने लगा*❗
     कल आगे का भाग▶▶▶

✍ *बेहेन हिनाजी भूरा सिवनी*
*महावीर के उपदेश ग्रुप टीम*
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             *99*
     *ऋषभदेव जी की माता के  कुक्षी में च्यवन*➡
      तीसरे आरे के चौरासी लाख पूर्व और नवासी पक्ष( तिन वर्ष और साढ़े सात माह) बाकी रहे तब *आसाढ़ मास की कृष्ण🌑 चतुर्दशी के दिन, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र💥✨ में, चन्द्रयोग  के    समय     वज्रनाभ का( धनसेठ का) जीव तेतीस सागरोपम की🛌 आयु पूर्ण कर, सर्वार्थसिद्ध🗼 विमान से    🎇च्यव कर*, *नाभि कुलकर की स्त्री 👸🏼मरूदेवी के 🤰🏻गर्भ में इस तरह आया* *जिस तरह से हंस🕊 मानसरोवर🌌 से🗾 गंगा के तट पर आता है*❗
*प्रभु गर्भ में आये उस समय, क्षण भर के लिए प्राणिमात्र के दुःख का   😿😺अभाव  हुआ*❗
  कल आगे का भाग▶▶▶



                  💁‍♂💁 *भगवान रुषभदेवजी/आदिनाथजी जीवन चरित्र* 🙋🙋‍♂

📚 श्रीआदिनाथ चरित्र📚
           *100*
      जिस रात को प्रभु   *च्यवन कर  माता की कुक्षी में आये उसी रात अपने महल में🕍 सोती हुई *मरुदेवी माता ने चौदह महास्वप्न देखे*❗
      *पहला स्वप्न*➡ उज्जवल, पुष्ट काँधेवाला, लंबी और  सीधी पूँछ वाला, *सोने की घुगर मालवाला और *मानो विद्युत सहित  शरद ऋतु का मेघ🌦🌦 हो वैसा *ऋषभ*🐂🐂 देखा❗
    *दूसरा स्वप्न*➡ सफेद रंगवाला ,क्रम से ऊंचा,निरंतर *झरते हुए मद की नदी से रमणीय* और मानो *चलता फिरता कैलाश* हो वैसा चार दांतवाला  हाथी🐘🐘 देखा❗
*तीसरे स्वप्न*➡ में पीली आँखों वाला,लंबी जीभ वाला,चपलकेश वाला, मानो *वीरो की जयध्वजा हो वैसा पूंछ को उछालता हुआ केसरी सिंह🐯देखा*❗
  कल आगे का भाग▶▶▶
✍ *बेहेन हिनाजी भूरा सिवनी*


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               *101*
*चौथा स्वप्न*➡  में कमल में रहने वाली ,पद्म नयनो वाली,    *हाथियों की सूंड से उठाई ,पूर्ण कुम्भो से  शोभती*  *लक्ष्मी  👸🏼💰देवी*  देखी❗
*पांचवे स्वपन* में देववृक्षो के फूलों से  गूँथी हुई,सरल और *धनुष धारण किये हुए धनुष के जैसी🌼🌼🌼🌼 📿फूलमाला देखी*❗
*छठा स्वप्न*➡ में मानो अपने मुख का प्रतिबिंब🌝 हो वैसा,   *आनंद का कारणरूप दसों दिशाओ से  प्रकाशित  किया है  ऐसा  चन्द्रमण्डल* 🌚🌔देखा❗
*सातवा स्वप्न*➡ में रात के समय मे दिन का भ्रम कराने वाला, *सारे अंधकार को मिटाने वाला और फैलती हुई कांतिवाला  सूरज🌞 देखा*❗
*आठवा स्वप्न*➡ में चपल कानो से जैसे हाथी शोभता है वैसा, *घुघरिओ     की  🇰🇬🇰🇬🇰🇬पंक्ति  वाला  हिलती पताका से  सुशोभित 🚩🚩  🚩 महा ध्वज देखा*❗
 कल आगे  का भाग▶▶▶




📚श्रीआदिनाथ चरित्र📚
               *102*
     *नववा स्वप्न*➡ में       खिले हुए कमलो🌷 से जिसका मुख अचित किया  हुआ है ऐसा, *समुद्र मथने  से निकले हुए अमृत🏮 के घड़े के समान* जल से भरा *सोने का 🛎 कलश देखा*❗
    *दसवे स्वप्न*➡ मे मानो *अरहंत( प्रथम तीर्थंकर) की स्तुति  करने को  *अनेको मुख हो ऐसे ओर भँवरे🐜 जिनपर  गूंज रहे है ऐसे अनेक कमलो से शोभता पद्म सरोवर🌷🌷🌷🌷 देखा*❗
*ग्यारहवा स्वप्न*➡ में पृथ्वी 🌏पर फैले हुए,*   *शरदऋतु के मेघ की लीला को चुराने वाला* और ऊंची 💦 *तरंगों के समूह से चित को आनंदित करने वाला    *क्षीरसमुद्र*  देखा❗
  *बारहवा स्वप्न*➡  में मानो *भगवान देवशरीर से उसमे रह रहे हो, ऐसा बहुत कांति💥 वाला🚁 विमान  देखा*❗
 कल आगे का भाग▶▶▶

            *103*
 *तेरहवा  स्वप्न*➡ में *तारे 🌟🌟⭐का समूह जमा हो ऐसा और एकत्र हुयी निर्मल ⚡कांति के समूह जैसा 💫 आकाशस्थित रत्नपूंज*💎💎💎 देखा❗
        *चौदहवाँ स्वप्न*➡ में *तीन लोक में फैले हुए तेजस्वी ✨🌈💥पदार्थो  तेज  के  जैसे *निरधुम अग्नि* ☄🔥🔥☄मुख  में  प्रवेश  करते देखी❗
  यह सब वृषभ🐂, हाथी 🐘,केसरी सिंह🐯,लक्ष्मी देवी 👸🏼, पुष्पमाला📿,चन्द्र🌚,सूरज🌞,महा ध्वज🚩,सोनेका कलश🛎,पद्मसरोवर🌷,क्षीर समुद्र🌪,देव विमान 🚁,रत्न पुंज 💎,निरधुम अग्नि 🔥   *चौदह स्वप्न देखकर ,*रात के अंत मे *सपने समाप्त होने पर खिले हुए मुखवाली😘☺ स्वामिनी मरुदेवी, जागी* *❗



📚श्रीआदिनाथ चरित्र📚

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             *104*
     माता मरुदेवी कमलिनी की तरह 👰 जागकर,           *हृदय  में हर्ष समाता ना  हो* इससे💗💓🗣👥,
उन्होंने *अपने सपने  की  सारी  ठीक ठीक बातें* कोमल अक्षरों से उद्धार करती हो,एक *एक बात इस तरह बताई मानो* वह बात बताकर *सुख की अनुभूति 🎊🎊को वह बार बार अनुभूत करना चाहती* हो❗वैसे 🤴नाभिराजा को कह सुनाई❗ नाभिराजा ने अपने सरल स्वभाव को शोभा दे इस  तरह स्वप्नों का 🤔विचार करके कहा," *तुम्हारे उत्तम कुलकर 🤴पुत्र होगा*"
       उस समय *इन्द्र 🤴🏼के आसन  🚨कम्पायमान हुआ*❗ मानो वो यह सोचकर नाराज हुए हो कि
*स्वामिन 🙏🏼ने केवल कुलकर 👨‍🚒उत्पन्न होने की ही  संभावना की यह अनुचित है*❗ हमारे आसन क्यो  कंपे❓ *यह प्रश्न कर,उपयोग ⚡⚡⚡देने से इन्द्रो 🤴🏿🤴🏿🤴🏾को काऱण मालूम हुआ*❗
 कल आगे का भाग▶▶▶



     इन्द्रो 🎊🎊को कारण मालूम होनेपर *पहले  से किये हुए संकेत ⚡⚡के अनुसार, जैसे मित्र एक जगह🏰 जमा होते है* वैसे, सभी इन्द्र 👨‍👨‍👦‍👦मित्रों की तरह जमा होकर,  *स्वप्न का अर्थ बताने भगवान की⚡👸🏼 माता के पास  आये*❗
     वे हाथ🙏🏼 जोड़कर विनयपूर्वक इस तरह  स्वप्न का अर्थ ♻फल  समजाने लगे, *जैसे वॄत्तिकार 📖यानी व्याख्या करनेवाला सूत्रों का अर्थ 📝स्पष्ट करके समजाता है*❗
         वे कहने लगे," हे स्वामिनी❗आपने पहले स्वप्न में वृषभ 🐂देखा *इससे आपका पुत्र मोहरूपी कीचड़ 🗻🗻में फंसे हुए  धर्मरूप 🚲 रथ का उद्धार करने में सफल होगा*❗हे देवी❗     *हाथी 🐘🐘 को     देखने   👀  से  आपका पुत्र  महा  बलवान  का भी गुरु होगा*❗
कल आगे का भाग▶▶▶

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          *106*
     *स्वप्न का फल*
       *सिंह 🐯को देखने से आपका पुत्र *पुरुषो में सिंह जैसे धीर,निर्भय,वीर💪🏿🤛🏾✊ औऱ पराक्रमी होगा*❗ हे देवी❗ आपने स्वप्न में 👸🏼   *लक्ष्मि देखी इससे आपका पुत्र पुरुषों में उत्तम 🌅*    *तिनलोक के साम्राज्य लक्ष्मी का स्वामी होगा*❗
  आपने   *पुष्पमाला* देखी इससे आपका पुत्र पुण्यदर्शन🙏🏼 वाला होगा *सारी दुनिया उसकी 👏🏻आज्ञा माला की तरह धारण करेगी*❗
  हे जगन्माता❗ आपने स्वप्न में🌚 *चंद्रमा देखा इससे *आपका पुत्र  मनोहर और आंखों 👁👁को आनंद देने वाला होगा*❗
       *सूर्य🌞 देखा इससे आपका पुत्र *मोह ⚫रूपी अंधकार का नाश करके दुनिया 🌕मे प्रकाश करने वाला होगा*❗
   महाध्वज 🚩🚩देखा इससे *आपका पुत्र आपके वंश 🎊🎩में बड़ी प्रतिष्ठा वाला होगा*❗

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         *107*
    *स्वप्न का फल*🗣🗣
  हे❗ देवी आपने सपने में *पूर्णकुम्भ 🏺देखा इससे आपका पुत्र सभी 🎉🔮🎇अतिशयो का पूर्णपात्र होगा अर्थात *सभी  अतिशयो  वाला होगा*❗ हे स्वामिनी❗ आपने   पद्मसरोवर🗾 देखा *इससे  आपका आत्मज( पुत्र) संसाररूपी🎡  जंगल में पड़े हुए मनुष्यों का🗿 पापरूपी  ताप  🌅मिटाएगा*❗ आपने समुद्र 🌁देखा इससे  आपका तनय(पुत्र) *अजेय 🗽🗽होते हुए भी उसके पास लोग जाए ऐसा वह होगा*❗
         हे 👸🏼देवि❗आपने सपने में संसार मे  🛌🛌🚁अदभुत ऐसा विमान देखा इससे  *आपके सूत( पुत्र) की वैमानिक देव भी सेवा 🙏🏼🙏🏼करेंगे*❗
कल आगे का भाग▶▶▶▶

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           *108* 🗣🗣🗣🗣🗣                                     हे ❗ 👸🏼 *जगतजननी*, आपने चमकती हुई💎💎💎💎 *कांतिवाला रत्नपुंज* देखा इससे *आपका आत्मज सर्वगुण रूपी रत्नों की खान के समान 🏙🏙होगा*, और।    आपने🌋🌋🌋 *जाज्वल्यमान(दहकती हुई) अग्नि ☄☄देखी* इससे आपका पुत्र *दूसरे 🌞✨✨तेजस्वी का तेज दुर करने वाला होगा*❗
    हे स्वामिनी❗ आप
ने *चौदह 🛌सपने* देखे है वे यह सूचित  करते है कि *आपका पुत्र  🌅चौदह राजलोक का🤴 स्वामी होगा*❗"
    इस तरह सभी 🤴🏾🤴🏾इन्द्र  *सपनों फल* बता, मरुदेवी माता को 🙏🏼प्रणाम  कर, अपने  अपने  स्थानों ✈✈✈ को  गए❗        👸🏼स्वामिनी मरुदेवी माता स्वप्नफल  🗣🗣की  व्याख्यारूपी🌈🌈
   सुधा से सींची जाकर *ऐसी  प्रफुल्ललित ☺हुई जैसे जमीन*⛈💦☘☘☘
 *बरसात के पानी से सींची जाने पर प्रफुल्ललित* होती है❗

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            *109*
       🌼 महादेवी मरूदेवी उस *गर्भ🤰🏻 से ऐसी शोभने लगी जैसे सूरज से🌤⛅🌤 मेघमाला*( बादलों की कतार) शोभती है: *मोती से सिप* 🐌🐚शोभती है और *सिंह से 🐯गुफा* शोभती है❗ *प्रियंगु( राई) 👧🏾के समान श्यामवर्ण वाली होने पर भी,गर्भ के प्रभाव से ऐसे पीले👧 वर्णवाली  हो गयी* जैसे *शरद ऋतु में मेघमाला* पीले 🌤🌤रंगवाली हो जाती है❗ उनके स्तन हर्ष से उन्नत और पुष्ट हुए की *जगत के 🙏🏼स्वामी हमारा पयपान करेंगे- दूध पियेंगे*❗ उनकी 👀आंखें विशेष विकसीत हुई मानो *वे भगवान का 👦🏻मुख देखने से पहले उत्कंठित हो रही  है*❗उनका नितंब- भाग , वर्षाकाल बीतने पर नदी के किनारे की *जमीन का भाग जैसे विशाल हो जाता है वैसे विशाल हुआ*❗
  उनकी चाल 👣यधपि पहले से ही मंद थी, लेकिन *अब मतवाले 🐘🐘हाथी की तरह और भी मंद हो गयी*❗
   कल आगे का भाग▶▶▶▶

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            *110*
       सुबह 🌅🌅के समय जिस तरह 👵    *विद्वान आदमी की 🖥🖥 बुद्धि बढ़ जाती है, और गर्मी 🌄की ऋतु में जिस तरह समुद्र 🌁की वेला बढ़ जाती ठीक उसी तरह गर्भावस्था में *मरुदेवी माता की   लावण्य  लक्ष्मी 💋💍👩👩🏼बढ़ने लगी*❗ यद्धपि उन्होंने *त्रिलोकी🎇 के असाधारण गर्भ को 🤰🏻🤰🏻धारण कर रखा  था*: तथापि उन्हें ज़रा भी खेद या *कष्ट नही   या खेद 👧नही होता था*: क्योंकि *गर्भ में रहनेवाले अरिहंतो 🙏🏼का ऐसा🎉🎊🎀 प्रभाव* ही होता है❗
   जिस तरह *पृथ्वी के भीतरी भाग में अंकुर बढ़ते है*: उसी तरह *मरूदेवी माता* के  पेट मे वह  वह गर्भ भी, गुप्तरीति से  *धीरे- धीरे* बढ़ने  लगा❗
     कल आगे का भाग▶▶▶▶
✍ *बेहेन हिनाजी भूरा सिवनी*


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             *महावीर के उपदेश ग्रुप*

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📚श्रीआदिनाथ चरित्र📚
             *111*
       ☘☘ जिस तरह  *शितल जल में हिम - मृतिका🛁 या बर्फ डालने* से वह और भी *शीतल हो जाता है*: उसी तरह गर्भ के 🤰🏻🤰🏻प्रभाव से , स्वामिनी *मरूदेवा और भी अधिक विश्ववत्सला या यों कहें कि🌏🌏 सम्पूर्ण जगत की प्यारी हो गयी*❗ गर्भ में आये हुए भगवान के प्रभाव से,    *युगलिको🎎🎎 में भी नाभिराजा अपने पिता से 🤴🏾अधिक माननीय 👏🏻👏🏻हो गए*❗
          *शरदऋतु* 🥀🥀के योग या मेल से  जिस तरह *चंद्रमा 🌚की किरणों का तेज* और भी अधिक हो जाता है: उसी तरह *सारे कल्पवृक्ष 🌳🌳🎄🎄और भी प्रभावशाली हो गए*

 *जगत में 🐒🦉तिर्यंच और मनुष्यों के 👨🏻👨🏻👨🏻आपस के वैर ➿➿शांत हो 🔆🔆गए*: क्योंकि  *वर्षा ⛈⛈ऋतु के आने से सर्वत्र 🔥संताप की शांति हो जाती है*❗
     कल आगे का भाग▶▶▶▶


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📚श्रीआदिनाथचरित्र📚
                *112*
🎊🔔🔔🔔🔔🎊
        *जन्ममहोत्सव*
           *नव⌛ महीने और साढ़े आठ दिन बीतने पर, चैत्र मास  🌑कृष्ण अष्टमी के दिन*, जब *सब 🌞⚡🌟🌕ग्रह उच्च स्थानो* में आये हुए थे और *चंद्रमा🌚✨✨ का योग उत्तराषाढ़ा से* हो गया था❗तब *महादेवी 🤰🏻मरूदेवा ने युगल- धर्मी 👶🏽👶🏼पुत्र ( जुड़वां)को 🛌सुखपूर्वक जन्म दिया*❗
     🎉🎉उस समय 🌈🌈   *सारी दिशाएं 🎊🎊हर्षित  हुई*  और स्वर्ग 🎎🎎में रहने वाले देवो की तरह *लोग बड़े 🥁🥁🎷🎺आनंद से क्रीड़ा करने लगे*❗
            🛏🛏   *उपपाद शय्या* (देवताओं के *उत्पन्न होने की शय्या) में उत्पन्न हुए देवता की तरह  *जरायु*🎃( *वह झिल्ली जिसमे बच्चा लिपटा हुआ  गर्भ से बाहर आता है)❗और *रुधिर*🔴 आदि *कलंकों से रहित भगवान सुंदर 👶 और शोभावान दिखने  लगे*❗
  कल आगे का भाग▶▶▶
✍ *बेहेन हिनाजी भूरा सिवनी*
*महावीर के उपदेश ग्रुप टीम*

             *113*
  🌈     भगवान  के  जन्म  के     समय       *दुनिया की 👀👀आंखों में अचरज*  🤔🤔पैदा करने वाला और *अंधकार 🌑को🌟🌟 मिटानेवाला*, *बिजली के प्रकाश जैसा, प्रकाश 🏔🌄तीनो लोको में फैल* गया❗
*नौकरों ने 🥁🥁नगाड़े नहीं  बजानेपर* भी, बादलो की गड़गड़ाहट के 🌨🌨समान शब्द वाली 🎻🎻 *देवदून्दुभी आकाश में बजने लगी हो* , उससे ऐसा मालूम होता था कि  मानो *स्वर्ग खुशी से गरज रहा हो*❗
   उस समय 💣💣     *नारकियों को क्षण मात्र के लिए  अपूर्व 🎊🎊सुख* हुआ, जैसा पहले कभी नही हुआ था❗फिर 🦅🐒   *तिर्यंच, मनुष्य👨‍👨‍👦‍👦 और देवताओ 🤴🏾🤴🏾को सुख हुआ हो, इसमे तो कहना ही क्या* ❓जमीन पर मंद मंद चलता हुआ *पवन, नौकरों की तरह  जमीन साफ करने लगा*❗ *बादल🌨 सुगंधित जल* की वृष्टि करने लगे❗
  पृथ्वी 🌱🌱बीज बोए हुए की तरह उछवास को प्राप्त होने लगी❗
     कल आगे का भाग▶▶▶▶


📚श्रीआदिनाथ चरित्र📚
              *114*
           🍃 उसी समय अपने 💺💺आसनो के हिलने से  भोगंकरा, भोगवती,सुभोगा,👩‍👩‍👧‍👦👩‍👩‍👧‍👦 भोगमालिनी,तोयधरा, विचित्रा, पुष्पमाला और अनिंदिता-–-ये *आठ दिशाकुमारिया तत्काल ही अधोलोक👇🗻 से भगवान के 🏥सूतिकागृह में आई*❗
       आदि तीर्थंकर 👩‍👦और तिर्थंकर की माता को प्रदिक्षणा देकर, प्रणाम 🙏🏼 कर  कहने लगी" *हे🗣🗣 जगन्नमाते❗हे जगदीपक को जन्म 👏🏻👏🏻देनेवाली देवी हम आप को नमस्कार करती है*❗हम 👇अधोलोक में रहने वाली आठ दिशाकुमारिया तिर्थंकर 🔖🛎🛎जन्म का पावन प्रसंग अपने *अवधिज्ञान के  🎉📣द्वारा जानकर*, उनके प्रभाव से, उनकी *महिमा 😘☺करने  यहाँ आयी है*:, इससे आप भयभीत न हो❗
कल आगे का भाग▶▶▶

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             *115*
    आठों दिशाकुमारियो ईशान विदिशा में रहकर एक *सूतिका गृह🏨 ( जच्चाघर) बनाया*❗⬅⬅ उसका मुख पूर्व दिशा की तरफ था और उसमें *एक हज़ार🏢 खंबे थे*❗ उन्होंने *संवर्तक नामक* वायु🌬🌬🌬 चलाकर सूतिका गृह के चारो तरफ *एक योजन तक के कंकर  और कांटे🗻🗻 दूर कर दिए*❗ संवर्तक वायु को रोक कर भगवान को 🙏🏼 नमस्कार करके ,वे *मंगल गीत 🗣🗣गाती हुई भगवान के पास बैठ गयी*❗
      इस तरह आसन कम्पायमान ⛩होने से  प्रभु का 🎉🎊जन्म जानकर *मेरुपर्वत* पर रहने वाली, दिशाकुमारिया भी वहाँ आयी❗
कल आगे का भाग▶▶

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           *116*
   ऊर्ध्वलोक 👆🏻🌳की *मेंघकरा, मेघवती, सुमेघा, मेघमालिनी,👰👰👸🏼👸🏼👸🏼👸🏼👸🏼👸🏼 तोयधारा, विचित्रा, वारिशेना और बलादिका* नाम की आठ दिशाकुमारिया *मेरुपर्वत* से आई❗
           माता 👩‍👦और प्रभु को नमस्कार🙏🏼 करके, भादो के महीने🌨🌨🌨 की तरह तत्काल आकाश में मेघ उत्पन्न कर, *सुगंधित जल🚿🚿🚿 बरसाकर, सूतिका गृह के चारो तरफ चार कोस तक, चंद्रिका *जिस तरह ✨🌟🌟 अंधरे का नाश करती है उसी तरह धूल का नाश कर दिया*❗
     घुटनो तक *पांच🏵🌼🌸🌺🥀 वर्ण* के *फूलों की वृष्टि* से इस तरह सुशोभित कर दिया जिस तरह फूलो की *रंगोली* सजी हो❗ फिर वह प्रभु का गुणगान 👏🏻करके अपने ⛩⛩उचित स्थानों पर बैठ गयी❗
     कल आगे का भाग▶▶▶▶

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           *117*
        उसी तरह आसान कम्पायमान  ⛩⛩होने से  प्रभु के🎉🎊 जन्म को जानकर, *दक्षिण 🏞रुचकाद्री* में रहनेवाली   *नंदा, नंदोत्तरा, आनंदा, नंदिवर्धना, विजया,🙎🏼🙎🏼🙎🏼🙎🏼🙎🏼🙎🏼🙎🏼🙎🏼 वैजयंती,  जयंती और अपराजिता* नाम की आठ दिशाकुमारिया भी ऐसे *वेगवान 🚀🚀🚀विमानों में*  बैठकर आयी जो मन की गति के साथ *स्पर्धा* करते थे❗ वे स्वामी 🙏🏼तथा मरूदेवी माता को नमस्कार करके, पहले देवियो की तरह👏🏻👏🏻 स्तुति कर, *अपने हाथों 🕵‍♀🕵‍♀🕵‍♀में दर्पण ले*, मांगलिक गीत गाती हुई *पूर्व दिशा*⬅ की और खड़ी हुई❗
         कल आगे का भाग▶▶▶

                *118*
        दक्षिण🎑  रुचिकाद्री पर्वत पर रहने वाली *समहारा,सुप्रदाता,सुप्रभुदा, यशोधरा,लक्ष्मीवती,शेषवती, चित्रगुप्ता और वसुंधरा* नाम की दिशाकुमारिया💁💁💁💁💁💁 *आनंद प्रेरित की तरह प्रमोद करती हुई वहाँ 💃🏽आयी❗पहले की दिगकुमारी की तरह,🙏🏼 जिनेश्वर और उनकी माता को  नमस्कार करके, *अपना कार्य निवेदन कर* , *हाथ मे 🏺🏺कलश लेकर*,दक्षिण दिशा में गीत 🎉🎉गाती हुई खड़ी रही❗
इसी तरह *पश्चिम रुचकाद्री पर्वत से*     *इलादेवी,सुरादेवी, पृथ्वी,पद्मावती,एकनासा, अनवमिका,भद्रा और अशोका  आयी❗पहले वाली दिशाकुमारिया की तरह सब करके *पंखा🏳🏳🏳🏳 हाथो* में लेकर *मंगल गीत गाती* हुई पश्चिम दिशा में खड़ी रही❗
      कल आगे का भाग▶▶▶▶


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          *119*
           ✨✨✨✨✨✨ उत्तर 🏕रुचकाद्री पर्वत से*  *अलंबुसा, मिश्रकेषि, पुण्डरीक, वारुणी,हासा, सर्वप्रभा , श्री  और ह्रीं*  नाम की आठ दिशाकुमारिया आभियोगिक 🤴🏾🤴🏾देवताओं के साथ इस वेग 🏇🏻🏇🏻🏇🏻के साथ *रथों में आयी मानों रथ वायु का ही रूप हो*❗ फिर वे भगवान तथा उनकी माताको पहले 🙏🏼आनेवाली दिगकुमारी की तरह  नमस्कार कर अपना काम बता,*  *हाथ मे चँवर ले गीत गाती हुई पश्चिम दिशा* में खड़ी हो गयी❗
    विदिशाओं के रूचक पर्वत से चित्र,🏞 *चित्रकनका,सतेरा, सूत्रामणि* नामकी चार दिगकुमारीयॉ 👑👑भी आयी और पहलेवाली की तरह कर, अपना काम बता *हाथ मे 👯👯दीपक 💡💡🕯लेकर ईशान प्रभुति विदिशाओं* में खड़ी रही❗
     कल आगे का भाग▶▶▶▶▶

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📚श्रीआदिनाथ चरित्र📚
                *120*
      🌿 रुचकद्वीप  से *रुपा,      👩‍⚕👩‍⚕👩‍⚕👩‍⚕ रूपसिका,सुरुपाऔर रूपकावती* नाम की चार दिगकुमारीया भी वहाँ तत्काल आयी❗उन्होंने भगवान का *नाभिनाल📯 चार अंगुल छोड़कर* छेदन किया❗ उसके बाद वहां  *गड्डा 📥खोद ,उसमे उसे डाल, गड्ढे को रत्न और वज्र से पुर ⚰⚰दिया और उसके ऊपर दूब से पीठिका बांधी*❗ इसके बाद भगवान के जन्मघर के लगता- लगत, पूर्व- दक्षिण और उत्तर दिशाओं में, उन्होंने *लक्ष्मी के घररूप तीन🏕🏕🏕 कदलीघर ( केले के घर) बनाये*❗ उनमे से प्रत्येक घर मे उन्होंने विमान में हो ऐसे विशाल और 🚟🚟सिंहासन से भूषित चौक बनाये❗ फिर जिनेश्वर को अपने *हस्ताअंजलि* में💁👩‍👦 लेकर *जिन माता को हाथ का सहारा देकर,चौक में ले गयी*❗

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                  💁‍♂💁 *भगवान रुषभदेवजी/आदिनाथजी जीवन चरित्र* 🙋🙋‍♂

📚श्रीआदिनाथ चरित्र📚
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          *121*
          दिगकुमारीया  👯👯चतुर दासियों की तरह दोनों को( जिनेश्वर और माता) सिंहासन🍄🍄 पर बिठाकर, *वृद्ध💆🏻💆🏼‍♂🤶🏿 संवाहिका( मालिश करनेवाली*)  की👵👩‍👦 तरह,खुशबूदार *लक्षपाक तेल* से  मालिश करने लगी❗ फिर उन्होंने दोनों को *दिव्य 🍯उबटन*  लगाया, तेल और उबटन की सुगंध से सभी दिशाएं 👃🎀🎀प्रमुदित हो उठी❗ फिर उन्हें पूर्व दिशा के 🛀🏼 चौक में ले जाकर के सिंहासन पर बैठाकर ,  *अपने मन जैसे निर्मल* 🛁🚿जल से,दोनों को स्नान कराया❗ *गेरुआ रंग के अंगोछे*  🔶🔶🔶से उनके शरीर को पोंछा,* *गोशीर्षचन्दन*  के रस से उनके 👼🏻शरीर को चर्चित किया❗दोनों को *दिव्य वस्त्र  👑👘👒💍💅🏼तथा बिजली के प्रकाश के समान विचित्र* 🐚🥀🎽💎📿आभूषण पहनाए❗
      कल आगे का भाग▶▶▶▶


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             *महावीर के उपदेश ग्रुप*

                  💁‍♂💁 *भगवान रुषभदेवजी/आदिनाथजी जीवन चरित्र* 🙋🙋‍♂

📚श्रीआदिनाथ चरित्र📚
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           *122*
       दिगकुमारीयो ने  भगवान 👩‍👦और उनकी जननी को *उत्तर  दिशा के चौक की और ले जाकर के 🛋⛩सिंहासन पर बिठाया*❗ वहाँ उन्होंने आभियोगिक देवो से, क्षुद्र ⛰हिमवंत पर्वत से, शीघ्र ही *गोशीर्षचन्दन कि लकड़ियाँ  मंगवाई*❗ *अरणी* ( ख़ास तरह की लकड़ी) के दो टुकड़े  *लेकर उनसे ♨♨♨ आग  पैदा की*,होम करने लायक बनाये हुए *गोशीर्षचन्दन  के काष्ट से हवन किया* और उस 🔥आग से बनाई हुई *राख  की पोटली 🖱🖱दोनों हाथों में बांधी*❗प्रभु और उनकी
   जननी  दोनों ही
  *महामहिमावन्त थे*, तो भी👏🏻🙏🏼👏🏻
   दिशाकुमारिया *भक्ति के आवेश*😘😘 में ये सब कर रही थी❗
     पीछे "    *आप पर्वत जैसे आयु 💪🏿वाले होओ*"ऐसा कान में  कह  कर *दो गोले*  🤾🏾‍♀🤾🏾‍♀पत्थर के *जमीन पर  पछाड़ें*❗
     इसके बाद प्रभु और उनकी  जननी को सूतिका- भुवन में पलंग 🛌🛌पर सुलाकर, वे मांगलिक 🗣🗣🗣🗣🗣गीत गाने लगी❗
   कल आगे का भाग▶▶▶▶
✍ *बेहेन हिनाजी भूरा सिवनी*
*महावीर के उपदेश ग्रुप टीम*
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📚श्रीआदिनाथ चरित्र📚
                *123*
      सौधर्ममेंद्र का आगमन
           अब उस समय, *लग्न- काल मे जिस तरह सब बाजे🎻🎸🎺🥁🎷एक साथ बज उठते है: उसी तरह स्वर्ग की *शाश्वत  घंटिया🔔🔔📣  बड़े जोरो से बज उठी*❗ पर्वतो की चोटियों के समान अचल और अडिग्ग *इन्द्रो के 🛋🛋 आसन*,सहसा हृदय कांपता है इस तरह *कांप उठे❗ उस  वक्त सौधर्म- देवलोक* 🤴🏼👁👁
  अधिपति सौधर्मं इन्द्र के *नेत्र कांपने* के साथ लाल हो गए❗ *ललाट-पट्टी भृकुटि* चढ़ाने से उनका 👺 चेहरा *विकराल* हो गया❗भीतरी क्रोध रूपी अग्नि की शिखा की तरह उनके *होंठ👹 फड़कने लगे*❗मानो आसन को स्थिर करने के लिए---- उस   का कम्पन😡😠🤢
  बंद करने के लिए- एक पांव को ऊंचा करने लगे और   *आज यमराज ने   किसको*  👨‍🚒  *पत्र  भेजा  है*❓आज *मौत का किस का वारंट जारी हुआ हैं* ❓आज किसका काल पुकार रहा है❓" ऐसा कहकर, उन्होंने अपना- शुरातन रूप अग्नी को *वायु- समान-💪🏿🤺 वज्रग्रहण करने की इच्छा की*❗
कल आगे का भाग▶▶▶▶

✍ *बेहेन हिनाजी भूरा सिवनी*
*महावीर के उपदेश ग्रुप टीम*

              *124*
       इन्द्र को कुपित *केशरीसिंह* 👺 की तरह देखकर, मानो मूर्तीमान हो  ऐसे *सेनापति* 🤺ने आकर कहा" स्वामिन❗मुझ जैसे सिपाही के होते हुए, आप स्वयं आवेश 😾में क्यो आते हो❓ हे 🎇जगत्पति❗ आज्ञा कीजिये, *मैं आप के किस शत्रु 🔱का  मर्दन करू*❓
   उसी क्षण, अपने मन का समाधान कर इन्द्र 🖼ने  *अवधिज्ञान से देखा , तो  उसे मालूम हो गया कि, आदि *प्रभु का 🎊🎉जन्म हुआ है❗ उसके क्रोध का वेग तत्काल हर्ष ☺☺से गल गया, और *वर्षा से 🌨🌨🔥☄जैसे दावानल के बुझने  पर पर्वत जैसे शांत होता है*❗वैसे ही वह शांत हुआ❗ खुशी के मारे उसका गुस्सा फौरन गल गया❗
" *मुझे धिक्कार है कि मैंने ऐसा विचार किया*❗ *मेरा  दुष्कृत मिथ्या हो"*❗ यह कहकर उसने इन्द्रासन का त्याग किया❗
   कल आगे का भाग▶▶▶▶

✍ *बेहेन हिनाजी भूरा सिवनी*
*महावीर के उपदेश ग्रुप टीम*
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           *125*
           इन्द्रासन का 🛋त्याग करके ,सौधर्मइन्द्र  सात 🤴🏼👣👣.  *आठ कदम* भगवान के सामने चलकर ,मानो दूसरे रत्न मुकुट की लक्ष्मी को देने वाली हो ऐसी कर🙏🏼अंजलि को मस्तक पर स्थापन करके, *जानू और मस्तक- कमल से पृथ्वी को स्पर्श करते* हुए प्रभु को नमस्कार 👏🏻👏🏻किया❗रोमांचित होकर स्तुति करने लगा" हे तीर्थनाथ❗हे *जगत को 🌅सनाथ करने वाले*❗ हे *कृपा रस🌁  के समुद्र*❗ हे श्री नाभिनंदन❗ मैं आप को नमस्कार करता हूँ❗
   हे नाथ❗(नंदन,🏝🌳🌴 सोमनस और पांडुक)इन *तीन वनों से मेरुपर्वत  🎄शोभता है❗ वैसे ही *आप मति, 🗽🗽📚श्रुति और अवधि इन तीन* ज्ञानो  सहित 👑आप शोभते हो❗
कल आगे का भाग▶▶▶



📚श्रीआदिनाथ चरित्र📚
            *126*
     सौधर्मइन्द्र 🤴🏼आगे कहते है ,हे देव❗ आज यह *भरतक्षेत्र🌅 स्वर्ग🗼 से भी अधिक* शोभायमान है: क्योकि उसने तिनलोक के *मुकुटरत्न* के समान 🙏🏼आप उसको 👏🏻👏🏻अलंकृत करते है❗
   हे जगन्नाथ❗जन्म कल्याणक से 🔔🔔📝पवित्र हुआ *आज का दिन, संसार मे रहूं तब तक वन्दनीय है*❗ आप के इस जन्म के पर्व से *नरक⚫⚫ वासियो को सुख* 🎊हुआ है❗ *अरहंतो का जन्म किसके  🎈👼🏻संताप को मिटाने वाला नही होता है*❓इस जम्बूद्वीप स्थित *भरतक्षेत्र या भारतवर्ष🌏 में निधान की तरह धर्म नष्ट हो गया है*, उसी आप अपने *आज्ञा रूपी बीज* 🌾🌾से पुनः प्रकाशित कीजिये❗
    कल आगे का भाग▶▶▶▶

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📚श्रीआदिनाथ चरित्र📚
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           *127*
       सौधर्मइन्द्र कहते है हे जगतारक❗ अब *आप के चरणों को प्राप्त करके कौन संसार  समुद्र से पार न होगा*❓ कारण *नाव 🛶के योग से लोहा भी 🕋समुद्र को तैर जाता है*❗हे भगवन❗ आपने इस  भरतक्षेत्र  में *लोगो के पुण्य से ऐसे अवतार लिया है*  जैसे बिना वृक्ष के 🏔🎄🎄प्रदेश में *कल्पवृक्ष* उत्पन्न होता है और *मरुदेश* में नदी🗾🗾 का प्रवाह होता है❗
      प्रथम देवलोक के इन्द्र ने इस प्रकार स्तुति करके अपने *सेनापति नैगमेशी नामक* 🎅🏻🎅🏻देव से कहा,"* *जम्बूद्वीप दक्षिणार्द्*  भरत क्षेत्र के बीच के भूभाग में नाभि कुलकर की👸🏻 लक्ष्मी की निधि के समान *पत्नी मरूदेवीजी के🤰🏻 गर्भ* से प्रथम  तिर्थंकर का जन्म हुआ है, इसलिए उनके उनके *जन्मस्नात्र* के लिए सभी 🤴🏼🤴🏻🤴🏿🤴* *देवताओं को बुलाओ* ❗
    कल आगे  का भाग▶▶▶

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             *128*
      इन्द्र 🤴🏻कि  आज्ञा सुनकर *नैगमेशी देव🤴🏿 ने एक योजन* 🔔विस्तार  वाला और अद्भुत 🔊🔊 ध्वनिवाला *सुघोषा  नाम का घंटा 🔔तीन बार बजाया*❗ इससे दूसरे 🔔🔔🔔विमानों के घंटे भी इस तरह बजने लगे, जैसे *मुख्य गाने वाले के पीछे दूसरे गवैये भी गाने लगते है*❗उन सभी घण्टो 🎼🎼🎼🔈🔈🔈का शब्द, दिशाओ के मुख   में हुई प्रतिध्वनि से इस तरह बढ़ा *जिस तरह कुलवंत पुत्रो से कुल की वृद्धि होती है*❗ *बत्तीस लाख*🚁🚁🚁 विमानों में उछलता हुआ वह शब्द तालुकी तरह *प्रतिध्वनि रूप होकर* बढ़ा❗देवता *प्रमाद में  🎷🎸💃🏽आसक्त* थे,गफलत में पड़े हुए थे, *घंटीओ की घोर ध्वनि सुनकर मूर्छित 😇🙇🏼🤔और बेहोश* हो गए❗* *मूर्च्छा    जाने पर  सोचने  लगे  कि   क्या 🤔🤔होगा*❓
   कल आगे का भाग▶▶▶▶▶

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           *129*
     सेनापति 🤴🏿नैगमेशी ने *मेघ के समान गर्जना* करती हुई गंभीर शब्दो 🗣🗣मे कहा," हे देवो❗ जिस 🤴🏻*  *इन्द्र का शाशन 👌🏻अनुलंघ्य*  है, *जिस सुरपति की आज्ञा विरुद्ध 🤞कोई भी चलने का साहस नही कर सकता*, जिस देवराज के *हुक्म के खिलाफ* कोई 😷 *चूं भी नही* कर सकता, जिस स्वर्गाधिपति के *आदेश के विपरीत चलने की  किसी मे भी क्षमता 🤛🏾और 💪🏿सामर्थ्य नही है* ❗ वही  वृत्तारि 🎪देवाधिपति इन्द्र  आप लोगो को *देवी प्रभुति परिवार* 🤴👸🤴🏽सहित आज्ञा देते है, की जम्बूदीप दक्षिणार्द्ध  🌏भरत खंड के मध्य भाग में, *कुलकर नाभिराजा* के कुल में,आदि तिर्थंकर भगवान ने 👼🏻जन्म लिया है❗ उन्ही भगवान के *जन्म कल्याणक महोत्सव* मनाने के लिए हम लोग वहां जाना  चाहते है❗ आप लोग भी सपरिवार 👨‍👩‍👦‍👦शीघ्र तैयार हो कर हमारे पास आ जाओ❗
    कल आगे का भाग▶▶▶▶▶

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               *130*
      सेनापति 🤴🏽नैगमेशी की बात सुनकर,उत्तम अवसर 🎉🎊जानकर  *जल्दी जल्दी* तैयार होकर 🤴🤴🤴कई देवता भगवान की *प्रीति से 😘😘😘खींचकर वायु के सन्मुख वेग से जानेवाले 🦌🦌🦌हिरण की तरह*, चल खड़े हुए❗कितने ही  *चकमक⚡⚡ से आकर्षित होने वाले🕳🕳 लोहे की तरह*, इन्द्र की आज्ञा से खींचकर, *कई अपने देवांगनाओं💃🏽💃🏽💃🏽 के उत्साहित करने* पर इस तरह  चले जैसे 🐾🐾* *पवन ❄❄के आकर्षण* से  सुगंध फैलती है❗कितने ही *नदियो के वेग* से दौड़ने वाले *जल 🐟🐠🐬जीवो* की तरह चल पड़े, कितने ही  अपने *मित्रों* के आकर्षण से चल 👣👣👣पड़े❗इसी तरह सभी देव  *अपने ✈✈विमानों से, अन्य 🚁🚁🚁🗽वाहनो से*,  मानो दूसरा स्वर्ग हो इस तरह, आकाश 🗼को सुशोभित करते हुए देवराज 🤴इंद्र के पास आकर इकट्ठे हो गए❗
  कल आगे का भाग▶▶▶▶



           *131*
                     उस      
समय  *पालक    नामक     आभियोगिक*👈👈
 👨‍🚀.  👑देव  को   इन्द्र         ने *असंभाव्य ( बहुत कठिन) और🗼🗼 अप्रतिम(  लाजवाब) विमान* 🚝रचने की आज्ञा दी❗  स्वामी की आज्ञा का पालन 🙏🏼करने वाले पालक *देव  ने तत्काल🚁🚁 इच्छानुगामी*(☺️ बैठ ने वाले कि इच्छानुसार👌🏻👌🏻👌🏻 चलने वाला) विमान बनाया❗ *वह विमान हज़ारो 🌌🌌रत्न-स्तम्भो 💡🚄🚄के किरण* समूह से आकाश को पवित्र 💫💫करता था❗ उसमे बनी हुई *खिड़कियां 🚡उसके नेत्रों जैसी, दीर्घ ध्वजाये उसकी भूजाओ* जैसी और *वेदिकाये उसके दांतो 🏯जैसे* मालूम होती थी❗. *सोने के कलशों से वह पुलकित* हुआ जान पड़ता था❗
     उसकी *ऊंचाई 4000 मील* ☝🏾की और विस्तार और *लंबाई चौड़ाई 8 लाख मील* 🏎की थी❗
   कल आगे का भाग▶▶▶▶▶

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          *132*
      पालक देव द्वारा  🚝🚝बनाये हुए इस *अप्रतिम विमान* में *कांति की तरंगों* वाली  तीन ⚡⚡⚡⚡⚡सोपान(सीढ़ीयो) की कतारें थी ❗जो *हिमालय पर्वत पर गंगा सिन्धु और रोहितशा* 🗾🗾🗾 नदियो की भांति मालूम होती थी❗ उन सोपान-पंक्तियों की कतार के आगे, *इंद्रधनुष की 🌈🌈🌈शोभा* को धारण करने वाले, *नाना प्रकार के रत्नों 💎💎💎💎💎💎💎से बने हुए तोरण* थे❗उस विमान के अंदर 🌚* *चंद्रबिम्ब, दर्पण🔍, मृदङ्ग🎷 और उत्तम दीपिका के समान 🕋🕋चौरस  जमीनें* शोभती थी❗ उस जमीन पर बिछायी हुई *रत्नमय शिलाएं*, अविरल और घनी 💥💥💥💥💥किरणों से, *दीवार पर बने हुए 🖼🖼चित्रों* पर, परदों के जैसे शोभायमान *सुंदर* दिखती थी❗
       उसके मध्य मे  *अप्सराओं  💃🏽💃🏽जैसी पुतलियों से विभूषित*--* *रत्नखचित एक  प्रेक्षामंडप* था❗ उसके अंदर खिले हुए *कमल 🌷🌷की कर्णिका के समान* सुंदर माणिक्य की *पीठिका* थी❗ उस पीठिका की *लंबाई- चौड़ाई  ⬛32  माइल थी और मोटाई 16 योजन थी*❗
  **†** (* *कुछ पुस्तको में लंबाई  चौड़ाई 8 योजन और मोटाई में 4 योजन का उल्लेख है*)❗   *विशेष     केवलीगम्य*‼
   कल आगे का भाग▶▶▶▶▶


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📚श्रीआदिनाथ चरित्र📚
           *133*
        🚁🚁 पालक विमान में *एक 🛋🛋सिंहासन था*, जो सारे *तेज के सार 💡💡💡के पिंड से बना हुआ* मालूम पड़ता  था❗ उस सिंहासन के ऊपर अपूर्व शोभवाला, *विचित्र 🏙🏙विचित्र रत्नों से  जड़ा हुआ* और अपनी किरणों से आकाश को व्याप्त करनेवाला  *एक विजयवस्त्र 🚩🚩🚩दैदीप्यमान* हो रहा था❗ उसके बीच मे,   *हाथी 👂🏻👂🏻के कान* में हो ऐसा एक वज्रांकुश 🛰और *लक्ष्मी के क्रीड़ा करने के 🚆हिंडोले* जैसी *कुम्भिक जाति के मोती की माला* शोभा  दे रही थी❗उस मोतियों की माला के आसपास 🗾🗾गंगा नदी के   अंतर  जैसी , उसकी    अपेक्षा आधे  विस्तारवाली,  *अर्धकुंभीक मोतियों की मालाएं 👌🏻👌🏻शोभती थी*❗ऐसा लगता था मानो उसके 💨💨स्पर्श को पाने मंदगति से चलते हुए पूर्वदिशा की वायु से माला  धीरे धीरे हिल रही 🌌थी❗ *उसके अंदर आता -जाता हुआ पवन,कानो  👂🏻😘😘को सुख देने वाला शब्द करता था*❗ वह, ऐसा मालूम पड़ता मानों,🗣🗣🗣🗣 *स्तुतिपाठक की तरह वह निर्मल यश गान कर रहा हो*❗
   कल आगे का भाग▶▶▶▶

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📚श्रीआदिनाथ चरित्र📚
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              *134*
       उस 🚁🚁विमान में स्थित 🛋सिंहासन  के   *वायव्य ↗और उत्तर ⬆दिशा तथा पूर्व ➡और उत्तर ⬆दिशा* के  बीच मे *स्वर्गलक्ष्मी के 👑👑👑मुकुट*  जैसे, *चौरासी हज़ार* समानिक  🤴🏽देवताओ के चौरासी  हज़ार 🍄* *भद्रासन* बने हुए थे❗ *पूर्व में  आठ अग्रमहिषी* 👰👰यानी इन्द्राणियो के आसन थे❗ वे *सहोदरों के समान  एकसे आकार* 🍄🍄से शोभते थे❗         *  *दक्षिण ↙ पूर्व*  के बीच में *अभ्यान्तर सभा* के👨‍👦👨‍👦 सभासदों के *बारह हज़ार 🍄🍄भद्रासन थे*❗ *दक्षिण* में ❇मध्य सभा के सभासद चौदह हज़ार  🤴🏼देवताओ के अनुक्रम से *चौदह 🚨🚨हज़ार भद्रासन थे*❗ *दक्षिण पश्चिम के* ✡बीच मे  बाहरी सभा सोलह हजार देवताओ के *सोलह हजार* सिंहासनो⌨ की पंक्तिया थी❗ *पश्चिम दिशा में*, एकदूसरे📱📲 के *प्रतिबिम्ब* के समान *सात प्रकार की 🏂🏹🤺🤼‍♀🏇🏻🚴🏼‍♀🥊सेना* के सेनापति देवताओ 🤴🏼🤴🏼🤴🏼के  सातआसन थे❗
      मेरुपर्वत 🏜के चारों तरफ जिस तरह  🌠नक्षत्र शोभते है, उसी तरह *शक्र सिंहासन🛋 के चौतरफा⬜ चौरासी हज़ार आत्मरक्षक 🤴🏿देवताओ के चौरासी हज़ार आसन शोभते*  थे❗
   कल आगे का भाग▶▶▶


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📚श्रीआदिनाथ चरित्र📚
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             *135*
          👨🏻‍🔧👨🏻‍🎤 *विमान 🚁की रचना करके आभियोगिक देवताओं ने इंद्र को 🗣सूचना दी❗ तब *इन्द्र ने तत्काल वैक्रिय रूप🗽🗽 ( इच्छानुसार रूप  बनाना, देवताओ के लिए स्वाभाविक है)  धारण* किया❗
       इसके बाद मानो दिशाओं की 👸🏿👸🏼लक्ष्मी हो ऐसी आठ पटरानियों सहित, *गंधर्व 🎊और 🤹🏼‍♀ नटों का  कौतुक देखते हुए, इन्द्र ने सिंहासन  💺की प्रदक्षिणा* की और पूर्व की की सीढ़ियों की राह से, अपने मन के सिंहासन पर चढ़ा❗ माणिक्य की दीवारों में उसका 🌞🌝प्रतिबिम्ब पड़ने से मानो हज़ारों👁शरीरवाला हो ऐसा मालूम पड़ता था❗
     *सौधर्म इन्द्र पूर्व की और मुख करके अपने आसन 🛋पर बैठा*❗  फिर  मानो इन्द्र का ही रूप हो वैसे उसके सामानिक देव, उत्तर की ओर सीढ़ियों से चढकर, अपने- अपने आसनों ⛩⛩पर जा बैठे❗ बाकी देवता 🤴🏿🤴🏿🤴🏿भी दक्षिण की तरफ सीढियो से चढ़कर अपने- अपने आसनों 🍄🍄पर जा बैठे *क्योंकि स्वामी के पास आसन 🚷🚷का उल्लंघन नही होता है*❗
     कल आगे का भाग▶▶▶▶


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             *महावीर के उपदेश ग्रुप*

                  💁‍♂💁 *भगवान रुषभदेवजी/आदिनाथजी जीवन चरित्र* 🙋🙋‍♂

📚 श्रीआदिनाथ चरित्र📚
             *136*
          सिंहासन 🛋पर बैठे हुए *शचीपति*(इन्द्र) के आगे *दर्पण🐟⛩🔍 🎏आदि अष्टमांगलिक  👌🏻👌🏻 शोभा* दे रहे थे❗ इन्द्र के सिर पर   *चंद्रमा🎊  🌚के  समान   ⛱ छत्र सुशोभित था*❗ चलते फिरते ⛱⛱दो हंसो की तरह चँवर ढुल रहे थे❗ *झरनों से पर्वत शोभा देता है, उसी तरह पताकाओं से सुशोभित* आठ हजार मिल ऊंचा🚩🚩 *एक 'इन्द्रध्वज'* विमान के आगे फिरक रहा था❗ उस समय *नदियो🗾🗾🗾 से घिरने पर जैसे समुद्र 🌁शोभता है* उसी तरह, सामानीक 🤴🏼🤴🏼👑👑👑आदि देवताओं से घिरकर 👏🏻👏🏻🤴🏻इन्द्र  शोभने लगा❗
    अन्य देवताओं के ✈✈✈🚀विमान से  वह विमान🚁 घिरा हुआ  था, इसलिये *मंडलाकार चैत्यों से घिरा हुआ ⛳⛳जिस तरह मूल 🎪🎪चैत्य शोभता है*: उसी तरह वह शोभता था❗
  कल आगे का भाग▶▶▶▶

             *137*
             🚁विमान की सुंदर 👌🏻 *माणिक्यमय दीवारों* के 🚄🚅अंदर एकदूसरे  विमान को प्रतिबिम्ब पड़ता था, उससे ऐसा मालूम पड़ता था, मानो विमानों से विमानों  से  गर्भ   धारण   किया हो❗ अर्थात🚀 *विमान के अंदर विमान का  😇🤔धोखा होता था*❗
       दिशाओं के मुखमें प्रतिध्वनि रूप हुई🗣🗣 बंदीजनोकी जयध्वनी से, *दुन्दुभि 🔊🔊के शब्द से, गंधर्व और नटों 🎷🥁🎻की  बाजो कीआवाज से*, मानो *आकाश🌌 को चीरता* हो इस तरह वह विमान, इन्द्र की इच्छा से, सौधर्म देवलोक 🛫के बीच मे होकर चला❗सौधर्म देवलोक के उत्तर के तरफ से जरा तिरछा होकर उतरता हुआ वह  विमान *आठ लाख मिल लंबा - चौड़ा होने से जम्बूदीप 🏜को ढकने🕳🛎🕳 वाला ढक्कन  प्रतीत* होने लगा❗
  कल आगे का भाग▶▶▶


           *138*
        जब  🤴🏻सौधरमेंद्र का वह *विशाल 🎊🚁विमान* चला तब  उससे मानो 🏜* *जम्बूदीप ढक* सा गया,राह चलने  🏃🏾🚶🏃🏾वाले एक दूसरे से इस तरह कहने लगे------' हे *हस्तिवाहन❗👉🏻दूर हट जाओ: आपके🐘 हाथी को मेरा सिंह 🦁देख न सकेगा*❗हे अश्वारोही 🏇🏻🏇🏻महाशय❗ जरा दूर रहो❗ *मेरे ऊंट🐫 का मिजाज बिगड़ा हुआ है,उसे क्रोध 😤आ रहा है*,आपके घोड़े को वह सहन न कर सकेगा❗हे🦌🦌 मृगवाहन❗आप 👐🏼.  *नजदीक मत आओ* ,क्योकि *मेरा हाथी 👿आपके हिरण को नुकसान पहुचायेगा*❗हे सर्पवाहन👴🏻❗ यहाँ से दूर रहो, देखो मेरा वाहन गरुड़ है, यह 🐍🐍आपके सर्प को  तकलीफ देगा❗ *अरे भाई❗तू मेरी राह रोकने को 😡आड़े क्यों आता है* और अपने विमान को क्यो 🛬🛫मेरे विमान से लड़ाता है❓ दूसरा कहता *अर्रे मैं पीछे रह गया हूँ*, और  *इन्द्र महाराजा जल्दी जल्दी चले जा रहे* है, इसलिए कोई 👬भी परस्पर में संघर्षण होने पर आपस मे नाराज मत होओ, *क्योकि पर्व 🎊🎊दिनों में अक्सर भीड़भाड़ होती ही है*❗
     कल आगे का भाग▶▶▶


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             *महावीर के उपदेश ग्रुप*

                  💁‍♂💁 *भगवान रुषभदेवजी/आदिनाथजी जीवन चरित्र* 🙋🙋‍♂

📚श्रीआदिनाथ चरित्र📚
            *139*
       सौधर्मइन्द्र 🤴🏻के पीछे- पीछे 👑👑जाने वाले *देवलोक के देवो का भारी कोलाहल* होने  लगा❗ उस समय  🚩 🚩🚩दीर्घ🚁🚁
ध्वज पट वाला वह पालक विमान, *समुद्र से म🌁ध्य शिखर से उतरती हुई  ⛵नाव जिस तरह  शोभती  है ठीक उसी तरह, आकाश🏙 से उतरता हुआ शोभने लगा*❗ जिस तरह 🐘🌴🌴 *हाथी वृक्षों से चलता हुआ वृक्षों को नमाता है, उसी तरह मेघमण्डल 🌨⛈से पंकिल हुऐ( नम्र) स्वर्ग 🌈को झुकाता है* इस तरह, *नक्षत्र 🌟✨💫चक्र*  के बीच मे, वह विमान  आकाश में चलता-चलता, *वायु के वेग से, अनेक द्वीप समुद 🌪🌫🏖🏝को लांघता हुआ, नन्दीश्वरद्वीप में आ 🏕उपस्थित हुआ*❗ जिस तरह *विद्वान पुरुष ग्रंथ 📔को संक्षिप्त करते* है: उसी तरह उस द्वीप  के दक्षिण पूर्व के मध्य भाग में, रतिकर🏔🏔पर्वत के ऊपर, *इन्द्र ने उस विमान 🚄को संक्षिप्त किया*❗
       कल आगे का भाग▶▶▶▶

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📚श्रीआदिनाथ चरित्र📚
              *140*
      सौधरमेंद्र का विमान  *नन्दीश्वरद्वीप* से  आगे चलकर, कितने ही द्वीपसमुद को लाँघता हुआ, *उस विमान को पहले से छोटा बनाता हुआ, इन्द्र जम्बूद्वीप*  के दक्षिण भरतरार्ध में, *आदि तिर्थंकर के जन्म  में आ पहुंचा*❗
      *सूर्य जिस तरह मेरू की प्रदक्षिणा* करता है; वैसे ही इन्द्र ने प्रभु के *सूतिका गृह की प्रदक्षिणा दी* और फिर
       घर के कोने में  *जिस तरह  निधि( धन) रखत ,वैसे ही ईशान कोण में विमान को स्थापन्न किया* ❗
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न📚श्रीआदिनाथ चरित्र📚
               *141*
            विमान 🚁को स्थापित कर जिस तरह  मान से 🎠  *महामुनि उतरते है वैसे  मान का त्याग करता* है, उसी तरह प्रसन्नचित शकेन्द्र  प्रभु के पास आया❗ प्रभु को देखते ही *उस देवाधिपति ने प्रणाम  किया: क्योंकि.  'स्वामी के दर्शन होते प्रणाम करना स्वामी की पहली भेंट है'*❗ इसके बाद *माता सहित प्रभु  की प्रदक्षिणा करके, उसने फिर प्रणाम किया*❗ क्योंकि भक्ति में पुंनरुक्ति दोष नही  लगता❗ यानी *भक्ति में किये हुए काम को बारबार करने से दोष नही लगता है*❗ देवताओं द्वारा मस्तक पर अभिषेक किये हुए उस   भक्तिमान इन्द्र ने, मस्तक पर अंजलि जोड़कर, स्वामिनी मरूदेवा से कहना प्रारंभ किया: *अपने पेट मे रत्नरूपी पुत्र को धारण करने वाली और जगतदीपक को जनने वाली* हे  जगतमाता❗ मैं आपको नमस्कार करता हूँ❗ आप धन्य है, *आप पुण्यवती है*❗

             *142*
        हे माता ❗
आप *सफल जन्मवाली तथा उत्तम लक्षणों वाली है*❗
           सौधरमेंद्र  मरूदेवी माता से ,कहते है  की *त्रिलोक में जितनी पुत्रवती स्त्रियां  है, उन में आप पवित्र हो*,क्योंकि आप ने *धर्म का उद्धार*  करने  में  अग्रसर और        आच्छादित  हुए 
        सूर्य    के समान  , तथा 
    *मोक्षमार्ग  को  प्रगट  करने वाले*  भगवान आदि तिर्थंकर  को  जन्म दिया 
है अर्थात *आप से धर्म का उद्धार करने वाला और मोक्ष मार्ग को प्रकाशित करने वाले* भगवान का जन्म हुआ है❗ हे देवी❗ मैं सौधर्म देवलोक का इन्द्र हूँ❗ आप के पुत्र अर्हन्त  भगवान  का  *जन्म  महोत्सव*
    मनाने के लिए यहाँ आया हूँ❗



               *143*
     सौधरमेंद्र  कहते है हे माता *आप मुझसे खौफ न खाना*  , आप मुझसे  *भय न करना*❗ ये बातें कहकर......
        इन्द्र ने माता  के ऊपर *अवस्वापिणी नामक निद्रा* निर्माण की और प्रभु का  प्रतिबिंब बनाकर उनकी बगल में रख दिया❗ पीछे *इन्द्र ने अपने     पांच* रूप बनाये,   क्योंकि ऐसी शक्तिवाला अनेक रूपों से
  स्वामी की योग्य भक्ति करना चाहता है ❗ 
             *उनमे से    एक रूप से भगवान के*
पास आकर, *प्रणाम किया* और विनय नम्र हो----- 'हे 
भगवन आज्ञा कीजिये' वह 
कहकर *कल्याणकारी भक्तिवाले उस इन्द्र ने गोशीर्षचन्दन से चर्चित अपने दोनों हाथों* से मानो मूर्तिमान कल्याण हो इस तरह,   भुवनेश्वर भगवान को 
   ग्रहण किया❗
    कल आगे का भाग▶▶▶▶



               *144*
          एक रूप से जगत का ताप नाश करने में छत्र रूप जगत्पति के मस्तक🕴🏿 पर पीछे खडे होकर छत्र  धारण किया ❗ स्वामी के दोनों और,   बाहुदंड के समान दोनों रूपों से,दो सुंदर चँवर  धारण किये और एक रूप से मानो द्वारपाल हो इस तरह वज्र धारण करके भगवान के सामने खड़ा हो गया❗
     जयजय शब्दो से आकाश को एक शब्दमय करनेवाले देवताओँ सेघिरा हुआ  और आकाश जैसे निर्मल चित्तवाला इन्द्र पांच रूपो से आकाशमार्ग पर चला❗
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              *145*
   जब सौधरमेंद्र  आकाश मार्ग से चल रहे थे तब *प्यासे पथिको की नज़र👀 जिस तरह अमृत सरोवर पर पड़ती है: उसी तरह उत्कंठित देवताओ की  दृष्टि भगवान के अदभुत रूप* पर पड़ी❗ भगवान के उस रूप को देखने के लिए, आगे चलनेवाले देवता पिछले भाग में नेत्रों के होने की इच्छा करते थे: यानी वे चाहते थे, की *अगर हमारे सिर के पीछे आंख होती तो हम भगवान के अद्भुत रूप  का दर्शन कर लेते*❗
     *अगल बगल चलनेवाले देवताओ की तृप्ति नहीं हुई*, इसलिए मानो उनके  नेत्र स्तम्भित हो गए हो; इस  तरह वह अपने नेत्रों को दूसरी औऱ नही फेर सके❗ पीछे वाले देवताओं भी भगवान के दर्शन के लिए आगे आना चाहते थे;इसलिए *वे अपने मित्रों औऱ स्वामी को उल्लंघन करने में परवा नही करते थे*❗
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          *146*
   देवपति *इन्द्र भगवान को अपने हृदय से लगाकर मेरुपर्वत ले गया*❗ यहाँ *पांडुक वन में, दक्खन चुलिका पर*, *अतिपाण्डुक बला शिला पर*, *अर्हन्त स्नात्र* योग्य सिंहासन पर, पूर्व दिशा का स्वामी इन्द्र, हर्ष के साथ,  प्रभु को अपनी  गोद मे लेकर बैठा
   जिस समय इन्द्र मेरुपर्वत पर के ऊपर आया, *उस समय महाघोषा  घंटी* से खबर पाकर, अट्ठाइस लाख देवो से घिरा हुआ *त्रिशूल धारि वृषभ वाहन* ईशान कल्पाधिपति  ईशान इन्द्र अपने पुष्पक नामक अभिनियोगिक देवों द्वारा बनाये हुए  *पूष्पक विमान में बैठ कर*  *दक्षिण दिशा की राह से, ईशान कल्प* से नीचे उत्तरकर और जरा तिरछा लोक चलकर *नन्दीश्वरद्वीप* आया❗
 
147

 *नन्दीश्वरद्वी के  ईशान कोण में  स्थित रतिकर पर्वत पर*, *सौधर्म इन्द्र* की तरह अपना छोटा रूप बनाकर के, *मेरुपर्वत पर भगवान के निकट ईशान इन्द्र आया*❗
                *सनत्कुमार इन्द्र* भी बारह लाख वि🚁🚁मानवासी देवताओ से घिरकर *सुमन* नामक विमान में बैठकर आया❗ 
   *महेन्द नामक इन्द्र*, आठ लाख विमानवासी 👑👑देवताओ सहित,  *श्रीवत्स् नामक* विमान में बैठ कर,  मन के जैसी चल से आया❗
*ब्रह्म इन्द्र भी, विमानवासी चार लाख देवताओ के साथ नंद्यावर्त* नामक विमान में बिठ क़र, स्वामी के पास आया❗
 *लातंक नामक इन्द्र*, पच्चास हज़ार विमानवासी देवताओ के साथ, *कामयव नामक विमान* में बैठकर जिनेश्वर के पास आया❗
    कल 
           *148*
        *शुक्र नामक इन्द्र,चालीस हजार* विमानवासी देवताओं के साथ,  *पित्तीगम नामक* ✈विमान  में बैठकर, मेरुपर्वत पर आया❗
 *सहससात्र्र नामक इन्द्र छः हज़ार विमानवासी   देवताओं* के साथ  *मनोरम* नामक विमान में बैठकर, जिनेश्वर के पास आया❗
  *आणत-प्राणत🗼 देवलोक का इन्द्र*, चार सौ विमानवासी देवताओ के साथ *विमल नामक विमान* मे बैठकर आया और *आरण-अच्युत* देवलोक का इन्द्र भी तीनसौ विमानवासी देवताओं के साथ, *अपने अति वेगवान सर्वतोभद्र नामक* विमान में बैठकर आया❗
  
           *149*
   उस समय   *रत्नप्रभा पृथ्वी*  की मोटी तह में निवास करने वाले  *भुवनपति और व्यन्तर*  इन्द्रों के आसन
 कंपायमन हुए❗          *चमरचन्चा* नामक  नगरी में, *सुधर्मा सभा के अंदर चमर 🛋नामक* *सिंहासन पर   चमरासुर  -------- चमरेंद्र* बैठा हुआ था❗ उसने 🗽  *अवधिज्ञान* से भगवान के जन्म का समाचार जानकर *सम्पूर्ण देवताओं को सूचित  करने के लिए, अपने द्रुम  नामक सेनापति से औधघोषा  नामक घंटी*  बजवाई❗
       चौसठ हज़ार समानीक देव,तेतीस*त्रायत्रिशंक( गुरुस्थान योग्य)देवो, चार लोकपालों, पांचअग्र महिषीया, *आभ्यान्तर, मध्य और बाह्य इन तीन  सभाओं  के देव, *सात तरह की सेनाओ*, सात सेनापतियों, चारो तरफ से *चौसठ  चौसठ हज़ार आत्मरक्षक देवों* तथा दूसरे उत्तम ऋद्धिवा असुरकुमार देवो से वह चमरेंद्र घिरा हुआ( शोभित) थ




         *150*
    चमरेंद्र  *अभिनियोगिक देवो* द्वारा  तत्काल बनाये हुए, *पांचसौ योजन ऊंचे, बड़े ध्वज से  सुशोभित* और *पचास हज़ार योजन के विस्तार* वाले, *विमान* में बैठकर भगवान का जन्ममहोत्सव मनाने की इच्छा से रवाना हुआ❗
   वह *चमरेंद्र*  भी शकेन्द्र की तरह, अपने विमान को 
    *मार्ग में संकुचित*( छोटा)
  बनाकर  , प्रभु के आगमन से पावन बने हुए ऐसे *मेरुपर्वत की चोटी* पर आया❗
         *बलिचन्चा* नाम की 🕌नगरी का *बली नामक इन्द्र भी, महाघौस्वराघ नामक घंटा  बजवाकर* *महाद्रुम नाम के* सेनापति के  बुलाने से आये हुए, *साठ हजार समानीक देव से शोभितथा*❗
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             *महावीर के उपदेश ग्रुप*

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📚श्रीआदिनाथ चरित्र📚
            *151*
          बलीचंचा 🕌नगरी के *बलि 🤴🏿इन्द्र* के समानिक देवो से चौगुने  *आत्मरक्षक💂🏼💂🏼💂🏼 देव(240000) थे*❗  त्रायत्रिशंक  देवो सहित  चमरेंद्र  की तरह *अतीव आनंद के  👏🏻👏🏻मन्दिर रूप* *मेरुपर्वत 🏜पर आया*❗
         *नागकुमार 🐍के धरण  नामक  इन्द्र ने मेघस्वरा📢📢 नामक घंटा बजवाया*❗ उसकी *6000 🚶🚶🚶🚶पैदल सेना के सेनापति भद्रसेन 👨🏿‍✈👨🏿‍✈के कहने से आये हुए छः हज़ार समानीक देवों, अपनी *इन्द्राणियो 👸🏼👸🏻और दूसरे नागकुमार देवो* सहित , *इन्द्रध्वज🚩🚩🚩 से शोभित* पच्चीस हजार योजन 🎴विस्तार वाले और  *ढाईसो योजन ऊंचे विमान में बैठ 🚝🚝🚝कर भगवान के दर्शन*  *के लिए क्षण  🔜🔜भर में मंदराचल के ( मेरु) के शिखर 🎑पर आया*❗
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             *महावीर के उपदेश ग्रुप*

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📚श्रीआदिनाथ चरित्र📚
📚श्रीआदिनाथ चरित्र📚
              *152*
         👺 *भूतानंद नाम के नागेंद्र ने मेघस्वरा 📣📣नाम का घंटा*  बजवाया और उसके *दक्ष 👿नामके सेनापति द्वारा समानिक देवता आदि 👽देवों को बुलवाया*❗ फिर 👨‍🚀👩🏻‍🚀वह *आभियोगिक देवो** द्वारा बनाये हुए🚆 विमानमे, सबके साथ बैठकर, जो *तिनलोक के👳 नाथ से सनाथ हुए उस🎑 मेरु पर्वत पर आया*❗
      फिर *विधुत्कुमार* के इन्द्र हरि 👽👽और हरिसह,
 *सुवर्णकुमार के  इन्द्र* 🤴🏿🤴🏿वेणु देव और वेणुदारी,
 *अग्निकुमार ♨के इन्द्र* अग्निशिख 👹और👹 अग्निमानव,
  *वायुकुमार☄☄ के इन्द्र*  वेलम्भ 👲👲और प्रभंजन ,
 *स्तनितकुमार ❄के इन्द्र* सुघोष 👥  👥और महाघोष,
           *उधदिकुमार के इन्द्र* जलकान्त 🤴🏿और जलप्रभ🤴🏿,
          *द्वीपकुमार के इन्द्र* 🤴🏼पूर्ण और 🤴🏾.   अवशिष्ट,
 *दिङ्गकुमार के इन्द्र* *अमित और अमितवाहन भी 🛩🛩आये*❗
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             *महावीर के उपदेश ग्रुप*

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📚श्रीआदिनाथ चरित्र📚
📚 श्रीआदिनाथ चरित्र📚
           *153*
           *व्यंतर💀 देवों में पिशाचों ☠के इन्द्र 👿काल और 👿महाकाल*,
  *भूतों💩 के इन्द्र 👽सुरूप* और 👽प्रतिरूप,
 *यक्षों👹 के इन्द्र*  पूर्णभद्र और 🤶🏿मणिभद्र,
         *राक्षसों  👺👺के इन्द्र* भीम 😱 और😱 महाभीम,
        *किन्नरों 💩के इन्द्र* किन्नर और किंपुरुष,
              *किंपुरुषों के इन्द्र* सत्पुरुष 👥और महापुरुष,
     *महोरगो 🐲के इन्द्र* अत्तिकाय और महाकाय,
 *गंधर्वो 🤹🏾‍♂के इंद्र*        *गीतरती* और.  🤹🏻‍♂.   🗿.   🗿🗿
*गीतयशा, अप्रगप्ति और पंच प्रज्ञप्ती* वैगेरे:
      भी 🎑आये❗
      कल आगे का भाग▶▶▶▶



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             *महावीर के उपदेश ग्रुप*

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📚श्रीआदिनाथ चरित्र📚
             *154*
            🎑  *मेरुपर्वत पर व्यंतरो के दूसरे 👿👽💀😱.  *आठ निकाय, उनके सोलह* 🤴🏾🤴🏾🤴🏼🤴🏼इन्द्र, उनमे से अप्रज्ञप्ति के इन्द्र धाता 🤴🏻और 🤴🏼विधाता,
      *ऋषिवादी 🤴🏾के इन्द्र* ऋषि और ऋषिपालक,
           ☠☠ *भूतवादी के इन्द्र* ईश्वर 🐲और महेश्वर,
      *क्रंतिक 👺के इन्द्र* सुवत्सक और विशालक,
    *महाकृन्तिक👹 के इन्द्र*  हास और   हासरति,
       *कुष्मांड🗿🗿 के इन्द्र* श्र्वेत और महाशेव्त,
  *पावक के 💀💀इन्द्र* पवक और पवकपति,
  *ज्योतिषकों ✨✨के असंख्यात सूर्य 🌞और🌚 चंद्र* इन दो नामो के ही इन्द्र, इस प्रकार कुल 
  चौसठ इन्द्र  मेरुपर्वत पर एकसाथ आये❗
  64 इन्द्र➡➡➡➡
 *वैमानिक के 10, भुवनपति दस निकाय के 20, व्यंतरो के 32 और ज्योतिषकों के 2 इन्द्र: है❗( सूर्य चंद्र नाम के के असंख्य इन्द्र है:🌀🌀 इसलिए कहा जाता है की असंख्य इन्द्र प्रभु का जन्ममहोत्सव 🎉🎊 करते है*❗)
   कल आगे का भाग▶▶▶▶
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             *महावीर के उपदेश ग्रुप*

                  💁‍♂💁 *भगवान रुषभदेवजी/आदिनाथजी जीवन चरित्र* 🙋🙋‍♂

📚श्रीआदिनाथ चरित्र📚
📚 श्रीआदिनाथ चरित्र📚
             *155*
      अच्युतेंद्र 🤴🏼ने,  जिनेश्वर  के 🎊* *जन्ममहोत्सव* के लिए *उपकरण( साधन) लाने की आभियोगिक👨‍🚀👩🏻‍🚀 देवताओं को आज्ञा दीं*👉🏻: इसलिये वे  ईशान ⏬ दिशा की तरफ गए❗ वहाँ उन्होंने *वैक्रिय 🗽🗽समुद्राघात* के द्वारा एक पल में उत्तम 🎐🎐* *पुद्गलों का आकर्षण करके* सोने 🛎के, चांदी के, रत्नों💎💎 के, सोने और चांदी के, सोने और रत्नों के, सोना- चांदी  और रत्नों के, चांदी और रत्नों के एवं मिट्टी 🎱 के,  *ऐसे आठ 🏺🏺प्रकार के आठ माइल ऊंचे इस तरह से प्रत्येक 🤴🏼🤴🏼देव ने एक हज़ार* आठ अती👌🏻👌🏿 सुंदर कलश बनाये❗
        कलशों 🏺🏺🏺की संख्या अनुसार ही आठ प्रकार के पदार्थो  की झारीयाँ,( सुवर्ण, चांदी,  रत्न, मिट्टी ,आदि)🖼🏮 *दर्पण, रत्नके💎💎 करंडिये( छोटी टोकरी), सुप्रतिष्टक📦🕋( डिब्बे),  थाल, पत्रिकायें📜📃 कटोरियाँ) और फूलों* 🌼🌻🌻की चंगेरिया   ये सब मानो पहले से ही बनी रखी हो तत्काल 🏃🏾ले आये❗
     कल आगे का भाग▶▶▶▶



           *156*
   जन्ममहोत्सव
      
       * *आभियोगिक  देवता* *घड़े उठाकर* ले गए और उन्होंने *क्षीरसागर में से जिस तरह वर्षा का जल* घडो में भरते है ठीक उसी तरह घड़ों में पानी भर लिया❗ *वहाँ से        पुण्डरीक, उत्पल और कोकनद  जाती के कमल* भी, इस तरह ले आये  कि उनकी *क्षीर निधि की जानकारी को इन्द्र  जान ले*❗     *पानी भरने वाले पुरुष.      जलाशय( कुँआ, तालाब,बावड़ी, आदि) में से जल भरते समय हाथ मे लेते है वैसे ही देवो ने कलश उठाये*❗
 *पुष्करवर समुद्र*  पर जाकर वहाँ से पुष्करवर जाती के कमल लिए, फिर वे  *मागध आदि तीर्थो* पर गए और वहाँ से उन्होंने  *जल और मिट्टी लिए*, मानो वे अधिक से अधिक कलश बनाना चाहते हो❗ माल खरीदने वाले जैसे नमूना लेते है वैसे ही उन्होंने *गंगा आदिमहानदियो से जल  ग्रहण किया*❗
   
             
        अब देवों न*    *देवकुरु और उत्तरकुरु क्षेत्रों के द्रहो*( तालाबों)  के जल से कलशों को इस तरह से भरा मानो *मंगलकल्याण से अपनी आत्माओ को भरा हो*❗इस तरह *आलस्य रहित* उन देवताओं ने देवकुरु  और उत्तरकुरु क्षेत्र के  सरोवरों में कलश जल से भर लिये❗
            *भद्रशाल, नंदन, सौमनस और पाण्डुक वन.    में उन्होंने  गोशीर्षचन्दन आदि वस्तुयें ली*❗* *गंधकार जिस तरह  गंध  द्रव्यों को  एकत्रित करता* है, उसी तरह वे सब द्रव्य एकत्रित करके* *तत्काल मेरुपर्वत* पर आये❗
     कल आग
158 नहीं है


              *157*
  🎉जन्ममहोत्सव🎉
        अब देवों ने *    *देवकुरु और उत्तरकुरु क्षेत्रों के द्रहो*( तालाबों)  के जल से कलशों को इस तरह से भरा मानो *मंगलकल्याण से अपनी आत्माओ को भरा हो*❗इस तरह *आलस्य रहित* उन देवताओं ने देवकुरु  और उत्तरकुरु क्षेत्र के  सरोवरों में कलश जल से भर लिये❗
            *भद्रशाल, नंदन, सौमनस और पाण्डुक वन.    में उन्होंने  गोशीर्षचन्दन आदि वस्तुयें ली*❗* *गंधकार जिस तरह  गंध  द्रव्यों को  एकत्रित करता* है, उसी तरह वे सब द्रव्यएकत्रित करके ✈✈* *तत्काल मेरुपर्वत* पर आये❗
     





          *159*
  जन्ममहोत्सव
         
                 *पानी के कलशों* के
 मुख्य भाग पर भँवरों के *शब्दों से गूंजते हुए*, कमल थे, जो ऐसे मालूम पड़ते थे मानो वे भगवान के *प्रथम स्नात्रमंगल का पाठ पढ़ रहे हो*❗
       कलश ऐसे मालूम पड़ते थे  मानो *वे पाताल कलश* है और स्वामी को *स्नान कराने के लिए पाताल से वहाँ आये  है*❗
   अपने *समानिक देवताओं के साथ अच्युतइन्द्र*  ने एक हज़ार आठ कलश इस तरह उठाये मानो वे उसकी *संपत्ति के फल  थे*❗     ऊंची उठाई हुई *भुजाओं की  अग्र भाग* में ( हाथो)  कुम्भ,नाले( कमल की डांडिया) जिनके ऊपर की गई हो ऐसे 
              *कमलकोशों की विडंबना* ( परिहास)  करते से मालूम होते थे❗ अर्थात उनसे भी  
 अधीक सूंदर लगते थे❗        
     अच्युतइन्द्र ने *अपने    मस्तक की तरह कलशों को जरा झुकाकर* *जगत्पति को स्नान करना आरंभ किया*❗
  
              *160*
           अच्युतइन्द्र *प्रभु को जैसे ही स्नान कराना*  आरम्भ किया उस समय कई एक देवों ने, *गुफाओं में होते हुए शब्दों की प्रतिध्वनि से मेरुपर्वत को वाचाल करते हो वैसे आनक नामक मृदङ्ग बजाने आरम्भ* किये❗ भक्तिमें  तत्पर *कई देव,  सागर मंथन की ध्वनि को चुराने वाली दुन्दुभियाँ बजाने लगे*❗
     कई देवता  *भक्ति में मस्त होकर,  पवन जैसे आकुल ध्वनिवाले प्रवाह की तरंगों को टकराता है वैसे, झांजर बजाने लगे*❗
   कई देवता, मानो *ऊर्ध्वलोक*।में जिनेन्द्र  की आज्ञा का विस्तार करती हो वैसी *ऊंचे  मुँहवाली भेरियाँ उच्चस्वर से बजाने लगे*❗

             *161*
   जन्ममहोत्सव*
          *मेरुपर्वत  के शिखर पर  खड़े होकर कई देवता, ग्वाले जैसे*
                       
         *सिंगिया बजाते है* वैसे ऊंची आवाज वाले *काहल नामक  बाजे बजाने लगे*❗
        कई देव भगवान *जन्मअभिषेक *की घोषणा करने के लिए, जैसे दृष्ट *शिष्यों को हाथो से पीटते है वैसे,* मुरुज नामक बाजे को *अपने हाथों से पीटने लगे*❗  
     कई देवता वहाँ आये हुए असंख्य *सूरज और चांद* की लक्ष्मी(शोभा) को हरने वाली *सोने और चांदी* *की  झालरेबजाने लगे*❗ 
  तो कई देवता मुँह में अमृत की  *गंडुष( कुल्ली) भरी हो वैसे अपने उन्नत*  गालों को *फुल्ला- फुल्ला* कर शंख बजाने लगे❗ *इस तरह देवो के बाजो की प्रतिध्वनि* से आकाश भी मानो एक  
  *बाजा हो गया*❗
   
               *162*
 
         चारण मुनियो  ने कहा, " *हे  जगनाथ❗ हे सिद्धिगामी❗हे कृपा सागर❗ हे धर्मप्रवर्तक ❗ आपकी जय हो* ❗  आप सदा सुखी रहो❕ 
     अच्युतइन्द्र ने, *ध्रुवपद, उत्साह,  स्कन्धक्, गलित और वस्तुवदन नाम के मनोहर गद्य- पध*  द्वारा प्रभु की स्तुति की❗ फिर वह धीरे धीरे अपने *परिवार के देवो सहितभुवनभरतार( तीन लोक को पालनेवाले आदिनाथ) पर* धीरे धीरे जल डालने लगा❗
      भगवान के मस्तक पर जलधारा डालते हुए *वे कुंभ( कलश) मेरुपर्वत के शिखर पर बरसते हुए बादल के समान मालूम होने लगे*❗ भगवान के मस्तक के दोनों और *देवताओं के    कलशमाणिक्य के मुकुट की शोभा धारण करने लगे*❗

              *163
     एक योजन के मुखवाले *कलशों* से गिरती जल की धारा पर्वत की गुफासे  गिरते हुए *जल के छींटे पर्वत  की गुफा में निकलते हुए झरने के समान शोभने लगी*❗
  प्रभु के मस्तक भाग से उछलकर   चारों तरफ गिरते हुए *जल के छींटे धर्मरूपी वृक्ष के अंकुर समान शोभने* लगे❗ 
       प्रभु के *शरीर पर  पड़ते ही मंडलाकार हुआ कुम्भजल मस्तक के ऊपर छत्र के समान*, *ललाट -      भाग   पर फैला हुआ    कांतिमान*
    ललाट 
के आभूषण जैसा , *कर्ण भाग में वहाँ आकर विश्रांत*( थके हुए)  *नेत्रों की 
         *कांति* के समान, *कपोल भाग में कपूर* पत्रवली( पत्तों की बेले)
 के समूह जैसा, मनोहर *होंठो पर स्मित हास्य  जैसा*, कंठ भाग में मोतियों
की  *मुक्तिमाला  जैसा, *कंधोपर गोशीर्षचन्दन के तिलक*  जैसा, *और   बाहु, हृदय* और *पीठ पर विशाल* 
      वस्त्र जैसा मालूम होता था❗
   
            *164*
 🎊  स्नात्र महोत्सव🎊
    प्रभु   के *कमर और घुटने के बीच मे विस्तृत उत्तरासंग* के समान...     *क्षीरोदधि* के समान(क्षीरसागर का सुंदर जल) भगवान के प्रत्यक अंग में जुदी-जुदी *शोभा धारण करता था*  ❗   
      जैसे *चातक स्वाति का  जल* ग्रहण करते है वैसे ही कई *देवता    प्रभु के स्नात्र(स्नान)जल को जमीन पर पड़ते ही ग्रहण करने लगे: *कई देवता ऐसा जल कहाँ मिलेगा*❓ यह  विचार करके  कितने ही देवता उसे, *मरुदेश या मारवाड के लोगो की तरह* , अपने - अपने सिरों पर  छिड़कने लगे❗ कितनेक देवता *गर्मी से घबराए* हाथियों की  तरह, अभिलाष पुर्वक उस जल
को अपने शरीर पर सींचने लगे❗
      *मेरुपर्वत की चोटियोपर फैलने वाला वह जल* चारों तरफ *हज़ारों नदियों* की कल्पना कराने लगा और    *पांडुक, सोमनस , नंदनवन* तथा  *भद्रशाल* की बगीचों में वह*जलधाराओं की लीला धारण करने लगा*
 
              *165*
   🎊स्नात्र महोत्सव🎊
       स्नान करातेकराते भीतर  *जल कम हो जाने से नीचे* मुखवाले इन्द्र के कुम्भ
 *स्नात्र जल रूपी सम्पत्ति कम होने* से       *लज्जित* हुए जान पडते थे❗ उस समय *इन्द्र की आज्ञा के अनुसार* चलनेवाले *आभियोगिक देवता* उन घड़ों को दुसरे घड़ों के जल से भर देते थे❗ एक देवता के हाथ से दूसरे देवता के हाथमें.....
 इस तरह *अनेकों के हाथ मे जानेवाले वे घड़े श्रीमानों के बालको के समान शोभते थे*❗
     *नाभिराजा* के पुत्र के समीप रखी हुई कलशों की पंक्तियां आरोपण किये हुए  *सोने के कमलो* की माला की लीला धारण करती थी❗ पीछे मुख भाग में जल का आवाज( शब्द )होने से *मानो वे अर्हत की स्तुति करते थे*❗ ऐसे कलशों से देवता फिर से स्वामी के सिर पर  जल से अभिषेक करने लगे ❗️
  कल आगे का भाग▶▶▶▶


              *166*                    
यक्ष जैसे चक्रवर्ती* के *धन कलश को भर देता है वैसे ही  देवता प्रभु के स्नात्र  करने से खाली हुए इन्द्र के घड़ों को जल से  पूर्ण कर देते थे❗ *बार बार खाली घडो को भरते  वे घड़े संचार यंत्र कि घंटी* के समान सूंदर मालूम होते थे❗
        इस तरह अच्युत इन्द्र ने *करोड़ों कलशों* से प्रभु को स्नानकराया और अपने आत्मा को पवित्र किया❗ *यह भीअचरज* है❗ 
     फिर आरण- अच्युत देवलोक 🗼का स्वामी अच्युत *इन्द्र दिव्य🍾 गन्धकषायी( सुगंधित) गेरूए वस्त्र* से प्रभु का शरीर पोंछा: उसके साथ ही  *अपने आत्मा को भी पोंछा( पाप मल रहित किया)❗ प्रातः और संध्या के आकाश के रेखा जैसे *सूर्य मंडल का स्पर्श करने से  शोभती है वैसे वह गंधकषायी वस्त्र प्रभु  के शरीर को स्पर्श करने से शोभता था*❗
 कल आगे का भाग▶▶▶▶


            *167*
*🎊स्नात्र महोत्सव*🎊
साफ किया हुआ *भगवान का शरीर सुवर्ण *     सागरके *सर्वस्व*जैसा था और वह  *सुवर्णगिरि-मेरु* के *1⃣एक भाग से बनाया हुआ हो ऐसा* *देदीप्यमान* था।
                   इसके बाद *आभियोगिक  देवताओ* ने गोशीर्ष *चंदन* से रसका कदर्भ *सुंदर*।
*विचित्र रंक़ाबियों*में भरकर अच्युतेंद्र के पास रक्खा,तब *चंद्रमा* जिस तरह अपनी *चाँदनी* से *मेरु पर्वत*के *शिखर* को *विलेपित करता था।*
*उसी तरह इन्द्र ने प्रभु के अंग पर उसका विलेपन* करना *आरंभ*किया ।

          168
कितने ही *देवताओ ने उत्तरासङ्ग* धारण *करके यानी कन्धपेर दुपट्टा डालकर,* *प्रभु के चारों तरफ अतीव सुगन्धिपूर्ण *धूपदानी हाथो में लेकर खड़े हो गए।*  कितने ही उसमें *धूप डालते थे*।
    वे *चिकनी-चिकनी*➖➖ धूएँ की रेखासे मानो *मेरु पर्वत* की *दूसरी*2⃣ *श्यामरंग  की चूलिका* बनाते हो,ऐसे *मालूम* देते थे। 
    कितने ही *देवता प्रभु* के *ऊपर ऊँचा सफेद छत्र धारण करने लगे*।
*
         *169*
           *छत्र से प्रभु    गगनरूपी महा समुद्र को कमलवाला करते हुए जान पड़ते थे*❗         कितने ही *देव        चँवर डुलाने लगे*❗इससे वे *स्वामी के दर्शन के लिए रिश्तेदारोंको  बुला रहे हो ऐसे *मालूम* होते थे❗ कितने ही *देवता*  कमर बांधे हुए *आत्मरक्षक*की तरह अपने *हथियार*   लगाकर *स्वामीके  चारों तरफ खड़े* थे❗      *मानो आकाश*          स्थित   *विद्युलता या चंचला* *बिजली की लीला बताते हो*, इस तरह कितने ही देवता     *मणिमय और सुवर्णमय पंखोसे भगवान को हवा करने लगे*❗
            कितने  ही *देवता🤴🏼🤴🏼 मानो रंगाचार्य* हो इस तरह *विचित्र- विचित्र*  प्रकार के  दिव्य  *पुष्पो की वृष्टि हर्षोल्लास पूर्वक करने लगे*❗
 कितने ही *देवता* अपने *पाप का उच्चाटन करते हो,* इस तरह अत्यंत सुगंधिपूर्ण *द्रव्यों का चूर्ण कर चारों दिशाओं* में बरसाने लगे❗

               *170*
          कई देवों ने मानो स्वामी द्वारा  *अधिष्ठत मेरुपर्वत की रिद्धि बढ़ाने की इच्छा रखते हों* इस तरह *सुवर्ण* की  वर्षा ✨✨✨
 करने लगे❗
               कितनेक देवता स्वामी के चरणों मे प्रणाम करने के लिए उतरने वाले *तारों कीपंक्तियां हो ऐसी रत्नों की वृद्धि* करने लगे: अर्थात *देवता गण जो रत्नों की  वृष्टि*  करते थे, उससे ऐसा मालूम पड़ता था कि   *प्रभु को वंदन करने आसमान*  से 
 सितारों की कतारें उत्तर रही हो❗
            कितनेक देवता अपने मधुर औरमीठे स्वर से *गंधर्वो की सेना का तिरस्कार करने वाले नए नए रागों और तालों से भगवान के गुणगान करने लगे*❗
कितनेक  देवता मढ़े हुए घन और छेद वाले बाजे बजाने लगे क्योंकि *भक्ति अनेक प्रकार से होती है*❗
 कल आगे का भाग▶▶▶


               *171*
     *कई देवता* मानो *मेरुपर्वत* के *शिखरों को नचाते हो*, इस  तरह अपने *चरणों के प्रहार से उसको कंपाते हुए नाचने लगे*❗
         कितनेक *देवता  दूसरी वीरांगना*हो इस तरह *दूसरी स्त्रीओ* के साथ *विचित्र प्रकार* के  अभिनय से *उज्वल नाटक करने  लगे*❗
     कितने ही *देवता पंखो वाली गति से आकाश☄ में उड़नेलगे*❗ कितने ही मुर्गे की तरह *जमीनपर फड़कने लगें*❗ कितने ही  *हंसकी तरह सुंदर चाल* चलने  लगे❗
  कितने ही *सिंह* की तरह 
    *सिंघनाद* करने लगे❗
  कितनेक् *हाथी* की तरह चिंघाडते थे❗ कितनेक *घोड़ो* की तरह ख़ुशी से हिनहिनाते थे❗ तो कई 
*रथों की तरह घनघनाट* की तरह  *आवाज करते थे*❗
   *कल
            *172*
        कई *देव विदूषक  या मसखरे* की तरह *चार 4⃣ प्रकार के शब्द बोलते थे*❗      कितनेक *बंदर जैसे शाखाओं को हिलाते है*, 
उस तरह *अपने पावों से पर्वत शिखर  को नाचते हुए कूदते थे*❗ कितनेक मानो  रणसंग्राम में *प्रतिज्ञा करने को तैयार योद्धा* हो, इस *तरह अपने हाथों से चपेट से पृथ्वी के ऊपर ताड़ना करते थे*❗
       कितनेक *मानो  दाव जीते हो*, इस तरह हल्ला मचाते थे। *कितने ही बाजो की तरह  फुले हुए गालो को  बजाते थे*❗
       कितनेक *नट की तरह विकृत* रूप बना  कर लोगो को *हंसाते* थे❗ 
कितनेक आगे *पीछे🏃‍♀ और अगल ब* में गेंद की तरह *उछालते  थे*❗ 
   *कल आगे का भाग*▶▶▶


            *173*
*स्त्रियां*  जिस तरह *गोलाकर ⚽🌍फिरते  हुए रास की तरह गाते 🗣🗣🗣और मनोहर नाच 💃🏽करते थे*❗
 कितने ही *आग 🔥🔥🔥की तरह *प्रकाश☄☄☄ करते थे*❗
 कितनेक *सूर्य 🌞🌞🌞की तरह तपते🔥🔥 थे*❗ 
कितने हि *मेघ☁☁ की गर्जना🌬🌬  करते थे*❗
 कितने ही  *चपला  की तरह चमकते⚡⚡⚡ थे*❗
         कितने ही *देवता 👑👑 नाक 👃तक खूब खाये 🍱🍱हुए    विद्यार्थियों👩‍💼👨‍💼👩‍💼👨‍💼 की तरह दिखावा करते थे*❗
   *स्वामी🙏🙏 की  प्राप्ति* से हुए उस आनंद🙂🙂 को  कौन  *छिपा  🤦‍♀🤦‍♂सकता  था*❓
*कल आगे का भाग*▶▶▶▶



🌾🍁🐂🌾🍁🐂🌾🍁🐂🌾🍁🐂🌾🍁🐂🌾🍁🐂🌾🍁

             *महावीर के उपदेश ग्रुप*

                  💁‍♂💁 *भगवान रुषभदेवजी/आदिनाथजी जीवन चरित्र* 🙋🙋‍♂

📚
              *174*
        इस  *तरह देवता अनेक तरह के आनंद  का *विचार कर रहे थे, उस *समय अच्युतेंद्र   प्रभु के  विलेपन किया*
❗ 
उसने *पारिजात  प्रभुति के खिले हुए*  फूलों से  *प्रभुकी भक्तिपुर्वक पूजा* की और जरा  पीछे हटकर भक्ति से
 *नम्र होकर शिष्य  भगवान की वंदना की*❗ 
बड़े भाई के पीछे *दूसरे सहोदरों की तरह, अन्य बासठ इन्द्रो* ने भी  उसी तरह *स्नात्र और विलेपन* से *भगवान की  पूजा की*❗
   *कल आगे का भाग*▶▶▶▶



              *180*
          *बालहस्ती के दंतुल में जैसे *सोने के कंकण* पहनाते है  वैसे  ही उसने  *प्रभु की  भुजाओ में  दो2⃣ भुजबंद पहनाए*❗
              उसने *वृक्ष की शाखा के अंतिम भाग* के *गुच्छ के समान, गोलाकार और बड़े मोतियों के *मणिमय कंकण प्रभु के मणिबंध( कलाईयों) में पहनाए*❗
             *वर्षधर पर्वत  के नितंब भाग (ढाल)* पर रहे हुए *सुवर्णकुल के विलास को धारण* करनेवाला कंदोरा  *इन्द्र ने प्रभु की कमर में पहनाया*❗
  *
              *181*
               *इन्द्र ने  प्रभु को दोनों पैर में     माणिक्यमय लंगर पहनाए*, वे ऐसे *मालूम होते थे मानो देवों* और *असुरों के तेज* उनमे *समा गए हो*❗
                           *इन्द्र ने जो आभूषण या गहनेप्रभु  के अंग* को *अलंकृत* करने के लिए पहनाए, *वे आभूषण या जेवर भगवान के अंगों* 
से *अलंकृत हुए*❗
                *गहनों से भगवान  के अङ्गों* की *शोभा वृद्धि* होने के  बजाय उल्टी गहनों* की *शोभा बढ़ गयी*❗
  *कल आगे का भाग*▶▶▶



              *182
*पीछे भक्तियुक्त  चित्तवाले  इन्द्र* ने ,. *प्रफुल्लित*😊 पारिजात के  *फूलों की माला से प्रभु की  पूजा*    की और *पीछे मानो कृतार्थ हुआ* हो इस *तरह जरा  पीछे हटकर प्रभु*
       के *सामने आ खड़ा हुआ*❗
                  *उसने आरती करने के लिए  आरती🔘 हाथों✋🏻🤚🏻 में ली*❗
           *जलती हुई आरती की कांति* से  *इन्द्र🤴🏻 ऐसा शोभने👌🏻* लगा जैसे *प्रकाशमान☄ औषधिवाले  शिखर⛰ से महागिरी 🗻शोभता 👌🏻है*❗
                   *जिसमे श्रद्धालु देवताओंने *फूल बिखेरे* है ऐसी *आरती से उसने तीन3⃣ बार प्रभु की आरती उतारी*❗
  *कल आगे का भाग*▶▶▶



26:1:21
              *183*
                *भक्ति से रोमांचित होकर इन्द्र* ने *शक्रस्तव से प्रभु जी *वंदना* कर इस तरह *कहने लगा...
       "  *हे जगन्नाथ❗ हे *त्रैलोक्य कमल*मार्तण्ड❗            *(तीन लोकके प्राणी रूपी  कमलो के लिए सूरजके समान)* 
              *हे संसार रूपी मरुस्थल में कल्पवृक्ष*  ❗
        *हे विश्वका उद्धार* करने वाले बांधव ❗
*मै आप को नमस्कार करता हूँ*❗ 
*कल आगे का भाग*▶▶▶▶


यह मूहर्त भी वन्दनीय है    *जिसमे धर्म को जन्म देने  वाले, अपुर्नजन्मा)*
(जिनका फिर कभी *जन्म नही होगा ऐसे) *और जगजन्तुओका न करने वाले ऐसे  आपका जन्म हुआ है❗
           *इन्द्रआगे▶ स्तुति करते हुए       कहते है*, हे नाथ❗          इस समय आपके *जन्माभिषेक* 
के जलके जल के *पुट से  पल्लवित हुई है और बिना यत्न किये जिसका मल दूर हुआ है* 
ऐसी यह *रत्नप्रभा पृथ्वी सत्य नाम  वाली हुई है*❗
*कल आगे का भाग*▶▶▶▶

27:1:21

              *185*
   *हे प्रभु❗जो आपका दिन रात दर्शन करेंगे,* उनका *जन्म धन्य है*❗ हम तो *अवसर आने▶  पर ही आपके दर्शन* करने वाले है❗
 *हे स्वामी❗भरत क्षेत्र के प्राणियों का* मोक्षमार्ग *ढक गया है, उसे आप नवीन*  पांथ या पथिक *होकर फिर से प्रगट कीजिये*❗
          *इन्द्र  आगे▶ भक्ति से प्ररित* हो कहते  है" *हे प्रभु*❗आपकी  *अमृत  तुल्य  धर्मदेशना* की तो *बात ही क्या है*❓    आपका *दर्शनमात्र ही प्राणियो का  कल्याण करने वाला है*❗
*कल आगे का भाग*▶▶▶▶




              *186*
      *है भवतारक(संसार को तारने वाले)*❗आपकी उपमा के पात्र कोई नहीं, *जिससे आपकी उपमा दी* जाय ऐसा *कोई भी नहीं*, इसलिये *मैं आपके तुल्य आप ही हो ऐसा कहता हूँ*,
 तो अब *अधिक➕ स्तुति किस तरह की जाय*❓    *हे नाथ*❗आपके *अर्थ को बताने वाले गुणों* (सत्य अर्थ को बताने वाले)को भी *मैं कहने में* असमर्थ हूँ, *क्योंकि स्वयंभूरमण समुद्र के जल* को कौन माप सकता है❓"
*इस तरह जगत्पत्ति* की स्तुति करके, *प्रमोद(खुशी)* से जिसका मन *सुगंधमय हुआ* ❗
*कल आगे का भाग*▶▶▶▶


            *187*
        *अब शकेन्द्र ने पहले1⃣ की तरह पांच रूप* बनाये❗उनमे से *अप्रमादी  एक रूप*1⃣ से उसने *ईशान इन्द्र* की *गोद से*, रहस्य की तरह *जगत्पत्ति को*, अपने *हृदय पर लिया*❗
*स्वामी की सेवा* को जानने वाले उसके *दूसरे रूप*, नियुक्त किये हुए  *नौकर की तरह*,  *स्वामी  का पहले1⃣ की तरह अपना काम* करने लगे❗
*फिर अपने देवताओँ*सहित *देवता* का नायक *शकेन्द्र, आकाशमार्ग*से ,
*मरूदेवी से अलंकृत मंदिर(महल) में आया*❗
        वहाँ उसने *तिर्थंकर के प्रतिबिम्ब* का उपसंहार करके उसने उसी *जगहपर माता की बगल में प्रभु को रख दिया*❗
*कल आगे का भाग*▶▶▶▶


          *188*
    *प्रभु को  सुलाकर,* फिर जिस तरह *सूर्य पद्मिनी* की नींद को *भंग करता* है, उसी तरह *शक्र* ने *माता मरूदेवीजी* की *अवस्वापीनणी* निद्रा *भंग की*❗
           *सरिता तट*पर रहे हुए *हँसमाला* के विलास को *धारण करने वाला उजला*, दिव्य और रेशमी *वस्त्र* का एक  जोड़ा उसने प्रभु के 
 *सिरहाने रखा*❗
       *बाल्यावस्था* में भी पैदा हुए *भामंडल* के विकल्प को करनेवाले *रत्नमय दो कुंडल भी प्रभु* के *सिरहाने रखे*❗इसी तरह *सोने*  से बने हुए 🔆🔆विचित्र *रत्नहार* और *अर्धहार* से व्याप्त *सोने*  के सूर्य के समान  *प्रकाशित झुमर श्रीदामगंड(गिल्लिदंडा) खिलौना प्रभु के  *दृष्टिविनो* के लिए रखा❗
*कल आगे का भाग*▶▶▶▶

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             *महावीर के उपदेश ग्रुप*

                  💁‍♂💁 *भगवान रुषभदेवजी/आदिनाथजी जीवन चरित्र* 🙋🙋‍♂


27:1:21
            *189*
    *अब प्रभु* की नजर को *आनंदित* करने के लिए, *आकाश के सूर्य* की तरह,
*ऊपर⬆ चन्दरवा* की *तरह(झुमर)गिल्लिदंडा लटका दिया*❗
     *फिर शकेन्द्र* ने कुबेर को *आज्ञा दी* कि *बत्तीस करोड़* हिरण्य(विशेष धातु), *बत्तीस करोड़ सोना,* बत्तीस नंदासन, बत्तीस भद्रासन, और दूसरे मनोहर *वस्त्रइत्यादि* मूल्यवान पदार्थ----- जिससे *सांसारिकसुख * होता  है ऐसे
*स्वामीके भुवन* में इस तरह
  *बादल पानी* बरसातें है❗
*कुबेर ने आज्ञा* पाते ही *त्रयजम्भभृक*( दस तरह के *देव जो कुबेर* की आज्ञा में रहते है) ने सभी चीजें बरसाई❗
   
          *190*
 *फिर शकेन्द्र* जैसे *सूरज बादलों में पानी* डालता है वैसे ही उसने *भगवान के  अंगूठे* में अनेकतरह के *रस भर दिए* अर्थात *अंगूठे में अमृत* भर दिया❗
*अर्हन्त स्तनपान* नही करते है इसलिए जबउनको *भूखलगती* है तब वे
*सुधारस की वृष्टि* करनेवाले, *अपने आप, अमृत बरसाने* वाला अपना  *अंगूठा, मुँह*में लेकर *चूसते है❗शेष प्रभु*का
*धात्रुकर्म* करने के लिए उसने *पांच अप्सराओं5⃣* को, *धाय का काम* करने के लिए वही रहने की *आज्ञा दी*❗अर्थात उनको *धाय*की तरह *प्रभु के लालन-पालन की आज्ञा दी*❗





                  
          *
             *192*
*जिन- स्नात्र हो *जाने के बाद*▶,जब *इन्द्र भगवान* को रखने  के *लिए आये* उस *समय बहुत से देवता* मेरुशिखरसे *नन्दीश्वरद्वीप* गये❗
  *सौधर्म*भी *नाभिपुत्र* को *उनके महल* में रख कर,स्वर्गवासीयों के निवास *समाननन्दीश्वरद्वीप*  गया और *वहाँ पूर्व➡ दिशा* के,क्षुद्र *मेरुपर्वत*( दूसरे चार *मेरुपर्वत*4⃣ है❗*84000* योजन  *ऊंचे* है❗) के समान प्रमाण वाले, *देवरमण नामके अंजनगिरी* पर उतरा❗वहाँ उसने *विचित्र मणियों* की पीठिका वाले, *चैत्यवृक्ष और इन्द्रध्वज* द्वारा अंकित, और *चार4⃣ दरवाजों* वाले चैत्य में प्रवेश *किया* और *अष्टान्हिका उत्सव* सहित *ऋषभ आदि अर्हतों* की शाश्वती *प्रतिमाओं की पूजा की*❗
*
           *193*  
उस *अंजनगिरी चार4⃣ दिशाओं* में *चार बड़ी4⃣ बावडिया* हैं❗ उनमे से हर *एक मे एक* एक *स्फटिक मणि* का दधिमुख *पर्वत* है❗उन *चारों4⃣ पर्वतो* के *ऊपर के चैत्यों* में शाश्वती अर्हतों( *ऋषभ,चन्द्रानन,वारिषेण और वर्धमान*) की *प्रतिमाएं*  है❗ *शकेन्द्रके चार4⃣दिग्पालऒने,अष्टान्हिका *उत्सव सहित*, उन *प्रतिमाओं की विधिवत पूजाकी❗   ईशान इन्द्र उत्तर⬆ दिशा* के नित्य रमणीक ऐसे *रमणीय  नामक अंजनगिरी* पर उतरा और उसने उस *पर्वत* पर के *चैत्य  में ऊपर की तरह* शाश्वत *प्रतिमाओंकी,अष्टान्हिक* उत्सव *सहित पूजा🌸 की*❗
*कल आगे का भाग*▶▶▶


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             *महावीर के उपदेश ग्रुप*

                  💁‍♂💁 *भगवान रुषभदेवजी/आदिनाथजी जीवन चरित्र* 🙋🙋‍♂

*📚श्रीआदिनाथचरित्र*📚
            *194*
 *ईशान इन्द्र*🤴🏼 के *चारो4⃣ दिग्पालो* ने भी🗻 उन *बावडिया* 🏟में  दधिमुख *स्थित 🎪चैत्यों* में विधिवत *पूजा🌸 की*❗
   *चमरेंद्र🤴🏽दक्षिण दिशा⬇* के नित्योधोत *नामक-----🏔 अंजनगिरी* पर *उतरा और रत्नों💎* से नित्य *प्रकाशमान✨ उस पर्वत⛰* के *चैत्यों🎪* की शाश्वती *प्रतिमा की बड़ी* भक्ति से  अष्टान्हिक *महोत्सव🎊 पुर्वक पूजा🌸* की❗उसके *चार4⃣ लोकपालों💂🏼‍♀💂🏼‍♀* ने भी *अचल चित* से *महोत्सव🎊 पुर्वक* वहाँ की *प्रतिमा की पूजा🌸* की❗
   बलि *नामक---- इन्द्र🤴🏻 पश्चिम⬅ दिशा* स्थित *स्वयंप्रभ नाम* के *अंजनगिरी🏔* पर मेघ के *प्रभाव से उतरा*❗ उसने भी *उस पर्वत⛰ के चैत्यों🎪*  की *देवताओ*👑 की दृष्टि से पवित्र करनेवाली शाश्वती *प्रतिमाओ का उत्सव* किया❗
*कल आगे का भाग*▶▶▶

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             *महावीर के उपदेश ग्रुप*

                  💁‍♂💁 *भगवान रुषभदेवजी/आदिनाथजी जीवन चरित्र* 🙋🙋‍♂

*📚श्रीआदिनाथ चरित्र*📚
           *195*
    *बलि नामक---- इन्द्र🤴🏾 के चारों4⃣ लोकपालों💂🏼‍♀💂🏼‍♀* ने भी *अंजनगिरी🏔 की चारो4⃣  वापिकाओ🏟* के दधिमुख *पर्वत्तो⛰ की शाश्वती प्रतिमाओं🧖‍♂🧖‍♂* का *उत्सव🎊किया*❗
🌸 इस तरह *सारे देवता🤴🏻 नन्दीश्वरद्वीप🏝* में खूब *उत्सव🎊 करके*, जिस  तरह *आये थे: उसी तरह अपने-अपने स्थानों🏨🏪🏤* को  *चले गए*❗
🌿 *ऋषभानन, चन्द्रानन,वारिषेण और वर्धमान इन चारों4⃣ नामों---- वाली ही शाश्वती प्रतिमायें🧖‍♂🧖🏻‍♂🧖🏼‍♂🧖🏽‍♂ होती है*❗🌿
  यहाँ *प्रभु🙏आदिनाथ* का *नन्दीश्वरद्वीप🏝 में देवताओं🤴🏻🤴🤴🏼* का *महोत्सव🎊* पूर्ण हुआ❗
 *कल आगे का भाग*▶▶▶▶


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             *महावीर के उपदेश ग्रुप*

                  💁‍♂💁 *भगवान रुषभदेवजी/आदिनाथजी जीवन चरित्र* 🙋🙋‍♂

*📚श्रीआदिनाथ चरित्र*📚
              *196*
 *इधर स्वामिनी  मरूदेवा👸🏻 सवेरे🌁 के समय🕤* ज्योहीं *उठी:* उन्होंने *रात🌠 के स्वप्न* की तरह अपने *स्वामी नाभिराजा👑* से *देवताओं🤴🏻🤴🏼🤴🤴🏽 का आने* जाने का  सारा हाल कहा❗ 
*जगत्पत्ति🌍 के उरू*  या जांघ पर *ऋषभ🐂 का चिन्ह था*, उसी तरह *माता👸🏻 ने सारे स्वप्न* के *पहले1⃣ ऋषभ🐂* ही देखा था, इसलिए  *आनंदमग्न माता👸🏻 पिता👑*ने शुभदिन देखकर , *उत्त्साहपूर्वक 🎊 प्रभु🙏 का नाम*
      *ऋषभ* रखा❗
उन्ही के साथ मे युग्म- धर्म से *पैदा🤱🏼 हुई कन्या का नाम  भी सुमंगला*  ऐसा  यतार्थ और *पवित्र  नाम रखा*❗
 *कल आगे का भाग*▶▶▶



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             *महावीर के उपदेश ग्रुप*

                  💁‍♂💁 *भगवान रुषभदेवजी/आदिनाथजी जीवन चरित्र* 🙋🙋‍♂

*📚श्रीआदिनाथ चरित्र*📚
*📚श्रीआदिनाथ चरित्र*📚
           *197*
 जिस तरह *वृक्ष🌳 कुल्य्याओ का (पानी💧 की नालियों ) जल🚰 पिता है:*उसी तरह *ऋषभ-कुमार🌝 इंद्र🤴🏼* के  संक्रमण किये हुए *अंगूठे👍 का अमृत🏺* उचित *समय🕤 पर पीने लगे*❗
   *पर्वत⛰ की गुफा* में  बैठा हुआ *किशोर सिंह🐆*  जिस तरह *शोभायमान* लगता है;उसी तरह *पिता👑 की गोद मे बैठे   हुए भगवान🙏 शोभायमान* थे❗
🌿जिस तरह *पांच5⃣ समिति📖 महामुनि*को नही छोड़ती ❗🌿 
    उसी तरह *इन्द्र🤴🏻 की आज्ञा👆🏻* में  रही हुई  *पांचो5⃣ धाये🤱प्रभु🙏* को किसी *समय🕛 भी अकेला* नही छोड़ती थी❗
*कल आगे का भाग*▶▶▶▶


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             *महावीर के उपदेश ग्रुप*

                  💁‍♂💁 *भगवान रुषभदेवजी/आदिनाथजी जीवन चरित्र* 🙋🙋‍♂

*📚श्रीआदिनाथ चरित्र*📚
*📚श्रीआदिनाथचरित्र*📚
          *198*
 *प्रभु🙏 का जन्म* हुए ज्योही *एक1⃣ वर्ष*  होने को आया,त्योंही *सौधर्मं इन्द्र🤴 वंश-स्थापन्न* करने के लिए वहाँ आया❗
*सेवक को खाली हाथ🤚🏻✋🏻* *स्वामी🙏 के दर्शन* करना उचित नही:इस *विचार से इन्द्र🤴🏼* ने  ईख का  *एक बड़ा1⃣ गन्ना🎋* अपने साथ ले लिया❗
*शरीरधारी  शरदऋतु* के समान *सुशोभित इन्द्र🤴🏼 गन्ने🎋* के सहित वहाँ आया जहाँ *प्रभु🙏  नाभिराजा👑* की *गोदी में बैठे* हुए थे❗
 *प्रभु🙏 ने अवधिज्ञान* द्वारा *इन्द्र*🤴🏻  का इरादा जान , *हाथी🐘 की (सूंड) तरह अपना हाथ गन्ना🎋* लेने को *लंबा किया*❗
*कल आगे का भाग*▶▶▶

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             *महावीर के उपदेश ग्रुप*

                  💁‍♂💁 *भगवान रुषभदेवजी/आदिनाथजी जीवन चरित्र* 🙋🙋‍♂

*📚श्रीआदिनाथ चरित्र*📚
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             *199*
 *जैसे ही प्रभु🙏* ने *हाथ✋🏻🤚🏻 लंबा------ किया*, *स्वामी🙏*  का भाव जानने वाले *इन्द्र🤴🏻 ने सर💂🏻‍♂ झुकाकर*   प्रणाम कर, *गन्ना🎋भेंट* की तरह *प्रभु🙏 को अर्पण* किया ❗
  *प्रभु🙏 ने इक्षु(गन्ना🎋)* ग्रहण किया इसलिए *इन्द्र🤴🏻ने प्रभु🙏* के वंश का नाम  *"इक्वाक्षु"*
   स्थापन्न कर *इन्द्र🤴🏻 स्वर्ग🎇 को चला गया*❗
  *युगादिदेव🤴🏾  को चारों4⃣ अतिशय जन्म* से मिले थे❗ *प्रभु🙏 के  34 अतिशय* होते हैं, उनमे से *4 जन्म* के साथ  प्राप्त होते  है❗
 *युगादिदेव🤴🏾 का शरीर पसीना*, रोग और मल से रहित था❗वह *स्वर्ण⚡ कमल🌷* के समान शोभता था❗यह पहला1⃣ अतिशय था❗
*कल आगे का भाग*▶▶▶▶

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*📚श्रीआदिनाथ चरित्र*📚
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          *200*
   *युगादिदेव🤴🏾  के शरीर* का मांस और रुधिर गाय के *दूध🥛 की धारा* के समान *उज्वल और दुर्गंध* रहित थे❗उनके *आहार-भोजन🍱*, निहार(मलत्याग) की विधि *चर्मचक्षु के अगोचर* थी❗यानी कोई *आँखों👀 से प्रभु🙏* का *भोजन🍱 करना* या *मलत्याग करना देख नही सकता* था❗उनकी *सांस की सुगंध* खिले हुए *कमल🌷* के समान थी❗ ये *चारों4⃣ अतिशय प्रभु🙏* को जन्म से ही मिले थे❗
*वज्रऋषभषभनाराच* संहनन वाले *प्रभु🙏 इस विचार*से धीरे धीरे  चलते थे कि कहीं  *जमीन----धंस* न जाये❗उनकी *उम्र छोटी* थी, तो भी वे *गंभीर और मधुर* बोलते🗣------ थे❗कारण, लोकोत्तर *पुरुषों👨🏻 का बचपन* उम्र की *दृष्टि* से ही होता है❗
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