कथा समुद्रपाल की
. *।। श्रीमहावीराय नमः।।*
🔹🌸🔹🌸🔹🌸🔹🌸🔹🌸
🎄🎄🎄🎄2️⃣1️⃣🎄🎄🎄🎄
*🔸🔸श्री उत्तराध्ययन सूत्र🔸🔸*
🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥
. *समुद्रपालीय*
( इक्कीसवां अध्ययन)
🔸🔹🔸🔹🔸🔹🔸🔹🔸🔹
*👉इस अध्ययन में समुद्रपाल के जन्म से लेकर मुक्तिपर्यन्त की जीवन घटनाओं से सम्बंधित विवरण होने के कारण इसका नाम समुद्रपालीय रखा गया है।*
*☝️ अंग देश की चम्पा नगरी में पालित नामक श्रावक निवास करता था।वह निर्ग्रन्थ प्रवचन का विशिष्ट ज्ञाता था।समुद्र में चलने वाले जहाजों के द्वारा वह अपना माल सुदूर देशों में ले जाता था और वहाँ उत्पन्न होने वाला माल लेकर आता था।इस तरह उसका आयात-निर्यात व्यापार काफी अच्छा चलता था।*
*☝️एक बार वह जलमार्ग से पिहुण्ड नगर गया।वहाँ उसे व्यापार के निमित्त अधिक समय तक रुकना पड़ा।नगरवासियों से उसका परिचय बढ़ा। उसकी प्रामाणिकता, व्यापार कला और व्यवहारकुशलता आदि गुणों से प्रभावित होकर पिहुण्ड नगर के एक सेठ ने उसके साथ अपनी पुत्री का विवाह कर दिया।*
*☝️पालित अपनी पत्नी को साथ लेकर समुद्र मार्ग से चम्पा लौट रहा था।मार्ग में जलपोत में ही उसकी पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया।समुद्र में जन्म होने के कारण उसका नाम "समुद्रपाल" रखा गया। वैभव से उसका लालन-पालन हुआ। सुन्दर सुशील समुद्रपाल यथासमय 72 कलाओं में पारंगत हो गया।जब वह युवा हुआ तब 64 कलाओं में पारंगत रूपिणी नामक कन्या के साद उसका पाणिग्रहण हुआ।वह उसके साथ देवतुल्य कामभोगों का उपभोग करते हुए आनन्द से रहने लगा।*
*☝️एक दिन समुद्रपाल अपने महल के गवाक्ष में बैठा हुआ वह नगर की शोभा निहार रहा था तभी उसने मृत्युदंड प्राप्त एक व्यक्ति को देखा, जिसे राजपुरुष वध्यभूमि की ओर ले जा रहे थे।उसे लाल कपड़े पहनाए हुए थे, उसके गले में लाल कनेर की मालाएँ पड़ी थी।उसके दुष्कर्म की घोषणा की जा रही थी।*
*☝️समुद्रपाल को यह समझते देर न लगी कि यह घोर अपराधी है।इसने जो दुष्कर्म किया है, उसका फल यह भोग रहा है।यह सब देखकर कुमार का मन संवेग से भर गया।उसका चिन्तन आगे बढ़ा--- "*
*☝️जो जैसे भी कर्म* (अच्छे या बुरे) *करता है, उसका फल उसे देर-सबेर भोगना ही पड़ता है।"*
☝️इस प्रकार कर्म और कर्मफल पर गहराई से चिन्तन करते-करते उसका मन बन्धनों को काटने के लिए तिलमिला उठा और उसे यह स्पष्ट प्रतिभासित हो गया कि *विषयभोगों और कषायों के कीचड़ में पड़ कर तो मैं अधिकाधिक कर्मबन्धनों से जकड़ जाउंगा।अतः इन भोगों और कषायों के दलदल से निकलने का एकमात्र मार्ग है--*
*🙏निर्ग्रन्थ श्रमणधर्म का पालन।🙏*
*🙏उसने माता पिता से अनुमति पाकर अनगारधर्म की दीक्षा ली।*
*महर्षि समुद्रपाल द्वारा आत्मा को....*
*👉स्वयं स्फुरित मुनिधर्मशिक्षा👈*
🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥
*👉 महाक्लेशकारी संग का परित्याग करे*
*👉 पांच महाव्रतों को स्वीकार करके जिनोपदिष्ट धर्म का आचरण करे*
*👉 समस्त प्राणियों के प्रति दया से अनुकम्पाशील रहे*
*👉 क्षमा से दुर्वचनादि सहन करनेवाला हो*
*👉 संयत एवं ब्रह्मचर्य-धारी हो*
*👉 वह सावद्ययोग का परित्याग करता हुआ विचरण करे*
*👉 शीतोष्णादि परिषहों को समभावपूर्वक सहन करे*
*👉राग-द्वेष-मोह का त्याग करके आत्मरक्षक बने*
*👉सम्मान में वृद्धि और कमी होने पर रुष्ट न हो*
*👉 अरति-रति को सहन करे*
*👉 अकिंचन साधु समभाव एवं सरलभाव रखे*
*👉 सम्यग्दर्शनादि परमार्थ साधनों में स्थिर रहे*
*👉 एकान्त आवास-स्थान का सेवन करे*
*👉 अनुत्तर धर्म का आचरण करे,सम्यग्ज्ञान उपार्जन करे तथा*
द्विविधं क्षपयित्वा च पुण्यपापं
निरड्•गण: सर्वतो विप्रमुक्त:।
तरित्वा समुद्रमिव महाभवौघं
समुद्रपालोपुनरागमां गत:।।
*🙏 इस प्रकार समुद्रपाल मुनि पुण्य और पाप दोनों प्रकार के कर्मों का क्षय करके* (संयम में) *निश्चल और समस्त प्रतिबन्धों से मुक्त होकर समुद्र के समान संसार-प्रवाह को तैर कर मोक्ष में गए।*
*🙏सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हो गये।🙏*
*🔸🔹🔸शिक्षा-सार🔸🔹🔸*
*☝️जैसा कर्म वैसा फल।*
*☝️जीवन परिवर्तन करने में कभी-कभी छोटी से छोटी घटना भी किस प्रकार प्रेरणा प्रदीप बन जाती है ! एक अपराधी चोर को देखकर समुद्रपाल के अन्त:करण में संवेग का दीपक जल उठा।कर्मविपाक का चिन्तन एवं संयम में जागरूकता यही इस अध्ययन का मुख्य संदेश है।*
. 🙏
*चोर पाप फल देखके, संबुद्ध समुद्रपाल।*
*संयम ले पाला विमल,भेद दिया भवजाल।।*
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🙏🙏
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*🔸🔸श्री उत्तराध्ययन सूत्र🔸🔸*
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. *समुद्रपालीय*
( इक्कीसवां अध्ययन)
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*👉इस अध्ययन में समुद्रपाल के जन्म से लेकर मुक्तिपर्यन्त की जीवन घटनाओं से सम्बंधित विवरण होने के कारण इसका नाम समुद्रपालीय रखा गया है।*
*☝️ अंग देश की चम्पा नगरी में पालित नामक श्रावक निवास करता था।वह निर्ग्रन्थ प्रवचन का विशिष्ट ज्ञाता था।समुद्र में चलने वाले जहाजों के द्वारा वह अपना माल सुदूर देशों में ले जाता था और वहाँ उत्पन्न होने वाला माल लेकर आता था।इस तरह उसका आयात-निर्यात व्यापार काफी अच्छा चलता था।*
*☝️एक बार वह जलमार्ग से पिहुण्ड नगर गया।वहाँ उसे व्यापार के निमित्त अधिक समय तक रुकना पड़ा।नगरवासियों से उसका परिचय बढ़ा। उसकी प्रामाणिकता, व्यापार कला और व्यवहारकुशलता आदि गुणों से प्रभावित होकर पिहुण्ड नगर के एक सेठ ने उसके साथ अपनी पुत्री का विवाह कर दिया।*
*☝️पालित अपनी पत्नी को साथ लेकर समुद्र मार्ग से चम्पा लौट रहा था।मार्ग में जलपोत में ही उसकी पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया।समुद्र में जन्म होने के कारण उसका नाम "समुद्रपाल" रखा गया। वैभव से उसका लालन-पालन हुआ। सुन्दर सुशील समुद्रपाल यथासमय 72 कलाओं में पारंगत हो गया।जब वह युवा हुआ तब 64 कलाओं में पारंगत रूपिणी नामक कन्या के साद उसका पाणिग्रहण हुआ।वह उसके साथ देवतुल्य कामभोगों का उपभोग करते हुए आनन्द से रहने लगा।*
*☝️एक दिन समुद्रपाल अपने महल के गवाक्ष में बैठा हुआ वह नगर की शोभा निहार रहा था तभी उसने मृत्युदंड प्राप्त एक व्यक्ति को देखा, जिसे राजपुरुष वध्यभूमि की ओर ले जा रहे थे।उसे लाल कपड़े पहनाए हुए थे, उसके गले में लाल कनेर की मालाएँ पड़ी थी।उसके दुष्कर्म की घोषणा की जा रही थी।*
*☝️समुद्रपाल को यह समझते देर न लगी कि यह घोर अपराधी है।इसने जो दुष्कर्म किया है, उसका फल यह भोग रहा है।यह सब देखकर कुमार का मन संवेग से भर गया।उसका चिन्तन आगे बढ़ा--- "*
*☝️जो जैसे भी कर्म* (अच्छे या बुरे) *करता है, उसका फल उसे देर-सबेर भोगना ही पड़ता है।"*
☝️इस प्रकार कर्म और कर्मफल पर गहराई से चिन्तन करते-करते उसका मन बन्धनों को काटने के लिए तिलमिला उठा और उसे यह स्पष्ट प्रतिभासित हो गया कि *विषयभोगों और कषायों के कीचड़ में पड़ कर तो मैं अधिकाधिक कर्मबन्धनों से जकड़ जाउंगा।अतः इन भोगों और कषायों के दलदल से निकलने का एकमात्र मार्ग है--*
*🙏निर्ग्रन्थ श्रमणधर्म का पालन।🙏*
*🙏उसने माता पिता से अनुमति पाकर अनगारधर्म की दीक्षा ली।*
*महर्षि समुद्रपाल द्वारा आत्मा को....*
*👉स्वयं स्फुरित मुनिधर्मशिक्षा👈*
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*👉 महाक्लेशकारी संग का परित्याग करे*
*👉 पांच महाव्रतों को स्वीकार करके जिनोपदिष्ट धर्म का आचरण करे*
*👉 समस्त प्राणियों के प्रति दया से अनुकम्पाशील रहे*
*👉 क्षमा से दुर्वचनादि सहन करनेवाला हो*
*👉 संयत एवं ब्रह्मचर्य-धारी हो*
*👉 वह सावद्ययोग का परित्याग करता हुआ विचरण करे*
*👉 शीतोष्णादि परिषहों को समभावपूर्वक सहन करे*
*👉राग-द्वेष-मोह का त्याग करके आत्मरक्षक बने*
*👉सम्मान में वृद्धि और कमी होने पर रुष्ट न हो*
*👉 अरति-रति को सहन करे*
*👉 अकिंचन साधु समभाव एवं सरलभाव रखे*
*👉 सम्यग्दर्शनादि परमार्थ साधनों में स्थिर रहे*
*👉 एकान्त आवास-स्थान का सेवन करे*
*👉 अनुत्तर धर्म का आचरण करे,सम्यग्ज्ञान उपार्जन करे तथा*
द्विविधं क्षपयित्वा च पुण्यपापं
निरड्•गण: सर्वतो विप्रमुक्त:।
तरित्वा समुद्रमिव महाभवौघं
समुद्रपालोपुनरागमां गत:।।
*🙏 इस प्रकार समुद्रपाल मुनि पुण्य और पाप दोनों प्रकार के कर्मों का क्षय करके* (संयम में) *निश्चल और समस्त प्रतिबन्धों से मुक्त होकर समुद्र के समान संसार-प्रवाह को तैर कर मोक्ष में गए।*
*🙏सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हो गये।🙏*
*🔸🔹🔸शिक्षा-सार🔸🔹🔸*
*☝️जैसा कर्म वैसा फल।*
*☝️जीवन परिवर्तन करने में कभी-कभी छोटी से छोटी घटना भी किस प्रकार प्रेरणा प्रदीप बन जाती है ! एक अपराधी चोर को देखकर समुद्रपाल के अन्त:करण में संवेग का दीपक जल उठा।कर्मविपाक का चिन्तन एवं संयम में जागरूकता यही इस अध्ययन का मुख्य संदेश है।*
. 🙏
*चोर पाप फल देखके, संबुद्ध समुद्रपाल।*
*संयम ले पाला विमल,भेद दिया भवजाल।।*
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