तीर्थकरआगम
1.च्यवन कल्याण 2.जन्म कल्याण 3.दीक्षा कल्याण 4.केवलज्ञान कल्याण 5.निर्वाण कल्याण ।
माता द्वारा बारहवें स्वप्न में देव विमान देखना।
माता द्वारा बारहवें स्वप्न में देव विमान की जगह भवन देखना।
तीसरे भव पहले (मनुष्य के भव में ही)।
बीस स्थानक।
नही करते हैं ।
हाँ ,कर सकते हैं । कोई बहरावे तो ले सकते है
लोगस्स
चौबीस
चतुर्विशति स्तव।
क्षपक क्षेणी
84000 वर्ष का ।
वर्तमान का पांचवा आरा 21,000वर्षों का ,छठा आरा 21,000
वर्षों का ,आगे- आनेवाली उत्सर्पिणी का प्रथम आरा 21,000 वर्षों का एंव दूसरा आरा भी 21,000 वर्षों का इन चारो आरो मे तीर्थकर नही होने से 21,000 × 4=84,000 वर्षों का अंतर पड़ता है ।
अल्प त्याग कमजोर मानसिकता वाले करते है ,तीर्थकर भगवान सुदृढ़ मानसिकता वाले होने से श्रावकव्रत नहीं किंतु महाव्रत ही ग्रहण करते हैं ।
35 गुण ।
भगवान महावीर के बाद आनेवाली चौबीसी के प्रथम महापदम तीर्थकर (श्रेणिक राजा के जीव)84,000 वर्षों बाद तीर्थकर बनेंगे।
अवसर्पिणी काल के पश्चात आने वाले उत्सर्पिणी काल की अपेक्षा से ।
84,000वर्ष बाद ।
देशोन 18 कोड़ाकोड़ी सागरोपम का।
बीस
भगवान महावीर के।
भगवान ऋषभदेव की ।
72 वर्ष ।
84 लाखपूर्व की।
22 तीर्थकर के साधु (दुसरे से 23 वे तीर्थंकर तक के)
84000 वर्ष बाद।
22 तीर्थकरो के (दुसरे से 23 वे तीर्थकर )।
प्रथम एवं अंतिम तीर्थकर के।
उत्सपिर्णी काल का चौथा आरा 2 कोड़ाकोडी़ सागरोपम का ,पांच वां आरा 3 कोडा कोडी सागरोपम का , छठा आरा चार कोड़ाकोड़ी सागरोपम का - इन 3आरों के 9कोड़ाकोडी़ सागरोपम तथा इसके पश्चात अवसपिर्णी काल शुरू होता हैं अवसर्पिणी काल का पहला आरा 4 कोड़ाकोड़ी सागरोपम ,दुसरा आरा _ 3कोड़ाकोड़ी सागरोपम का एंव तीसरा आरा - 2कोड़ाकोड़ी सागरोपम प्रमाण लगभग(84लाख वर्ष पूर्ण 3वर्ष8-1/2 माह कम ) काल के पश्चात अर्थात उत्सर्पिणी काल के भी 9 कोड़ाकोड़ी एंव पश्चात आनेवाले अवसर्पिणी काल के 9कोड़ाकोडी़ सागरोपम - इन दोनों को मिलाने पर देशोन 18 कोड़ाकोड़ी सागरोपम का उत्कृष्ट अंतर पड़ता हैं,फिर पहले तीर्थंकर का जन्म होता हैं।(दोनो तरफ 84 लाख पूर्व कम होने से 18 कोड़ाकोड़ी सागरोपम से कुछ कम को देशोन में लिया गया है)
देवलोक से च्यवना अर्थात मृत्यु को प्राप्त होना च्यवन कहलाता है।
अपने अपने स्थानों पर ही ।
सवा नौ महीने लगभग
रात्रि में ।
64 इन्द्र ,56दिशा कुमारिया,आदि देव,दानव,मानव,आदि।
मेरु पर्वत के पंडग वन मे ।
अभिषेक शिलाओ पर।
अर्धचन्द्राकार ।
चार
500योजन लंबी, 250,योजन चौड़ी ,4योजन मोटी ।
अभिषेक सिहांसन।
500धनुष्य लंबे और 250धनुष्य चौडे़ हैं ।
मेरु पर्वत के पंड़ग वन की चारों दिशाओं में।
चारो शिलाओं पर कुल मिलाकर छ:सिंहासन हैं।
पाण्डुशिला।
मेरुपर्वत के चूलिका के पूर्व में पण्डक वन मे पूर्वी भाग पर ।
स्वर्णमय।
दो ।
एक उत्तरवर्ती व दूसरा दक्षिणवर्ती सिंहासन ।
पाण्डुकंबल शिला।
एक
भरत क्षेत्र मे उत्पन्न तीर्थकरों का।
रक्त शिला
पण्डक वन के पश्चिम भाग पर।
तपनीय स्वर्णमय ।
दो,एक उत्तरवर्ती एंव एक दक्षिणावर्ती
पक्ष्मादि 8विजयों मे उत्पन्न तीर्थकरो का(पश्चिममहाविदेहवर्ती)
वप्रादि 8विजयों में उत्पन्न तीर्थकरों का (पश्चिममहाविदेहवर्ती)
रक्त कंबल शिला।
मेरु पर्वत की चूलिका के उत्तर में पण्डक �वन के उत्तरी भाग पर ।
एक
एेरवत क्षेत्र मे उत्पन्न तीर्थंकर भगवंतो का ।
पाण्डु कंबल शिला पर ।
पाण्डु शीला पर ।
दूसरा कल्याणक - जन्म कल्याणक
माता द्वारा अर्धनिद्रित अवस्था मे देखें हुये 14 महास्वप्न ।
1एेरावत हाथी 2धोरी ऋषभ 3शादुर्ल सिंह 4लक्ष्मी देवी 5 पुष्प माला युगल 6पुर्ण चन्द्रमा 7 जाज्वलयमान सुर्य 8 इन्द्र ध्वजा 9पुर्ण कलश 10 पद्म सरोवर 11 क्षीर सागर 12देव विमान 13रत्नो की राशी 14 निर्धुम अग्नि ।
तीर्थकर रूप पुत्र दान,शील,तप भाव रूप चार प्रकार के धर्म का उपदेशक होगा ।
भरत क्षेत्र में सम्यक्त्व बीज का वपन करेगा ।
आठ कर्म रूपी हाथी का विदारण करेगा।
दान देकर पृथ्वी को हर्षित करने वाला अथवा तीर्थकर लक्ष्मी का भोगी होगा ।
समस्त प्राणी उसकी आज्ञा को स्वीकार करेगे।
वह सर्व भव्यजनों के हदय और नेत्र को आहादित करने वाला बनेगा ।
उसके पीछे आभामण्डल दीप्तियुक्त होगा ।
उनकी धर्मध्वजा खूब ही लहलहा उठेगी ।
ज्ञान ,धर्म आदि रुप महल के शिखर पर चलने वाला होगा ।
देव रचित अचित स्वर्ण कमलों पर चलनेवाला होगा ।
समुद्र से केवल ज्ञान रुपी रत्न का वह आधार भूत होगा ।
वैमानिक देवो
रत्न जड़ित मुकुटों वाले इन्द्रों से समवशरण में वह शोभित होने वाला होगा ।
भव्यजनो की आत्मशुद्धि करनेवाला होगा ।
आसन चलित होने से ।
पुर्व महाविदेह क्षेत्र के कच्छ आदि 8 विजयो में उत्पन्न तीर्थकरों का ।
पुर्व महाविदेह क्षेत्रोत्पन्न वत्स आदि 8 विजयों में उत्पन्न तीर्थंकरों का।
भगवान ऋषभदेव नें ,गृहस्थावस्था में, तीर्थकर बनने से पूर्व ।
अवधिज्ञान सें।
भोगंकरा ,भोगवती,सुभोगा ,भोगमालिनी,तोयधारा ,विचित्रा,पुष्प-माला ,अनिंदिता-ये 8 अधोलोक वासिनी दिशा कुमारियां आती हैं ।
वैक्रिय लब्धि से विकुर्वित यान विमान (यात्रा विमान)में ।
सैंकड़ों खंभे ।
परम्परागत आचार होने से /जीताचार व्यवहार होने से आती हैं ।
तीर्थकर भगवान के जन्म भवन से ईशान कोण में।
चार अंगुल ऊंचा ।
विमानों से नीचे उतरकर भगवान की माता के पास आती है।
भगवान तीर्थंकर व उनकी माता को तीन बार प्रदक्षिणा करती है।
दो संबोधन - 1रत्नकुक्षिधारिके 2.जगतप्रदीपप्रदायिके।
तीर्थकर रूप रत्न को अपनी कोख में धारण करनेवाली ।
जगतवर्ती जनों के सर्वभाव प्रकाशक तीर्थकर रूप दीपक प्रदान करनेवाली ।
भगवान की माता को भी नमस्कार करती है।
संवर्तक वायु से।
एक योजन परिमंडल क्षेत्र (भूमि)।
आठ
1मेघकंरा 2 मेघवती 3सुमेघा 4मेघमालिनी 5सुवत्सा 6वत्समित्रा 7वारिषेणा 8बलाहका ।
आकाश में बादलों की विकुर्णा करके अचित जल की वर्षा करती है।
रज-धुल जम जाती है।
अचित पुष्पों के बाद बादलों की वर्षा करती है।
प्रश्न 200 - कौन-से तीर्थंकर का समवसरण सबसे बड़ा था और कितना?
उत्तर - श्री आदिनाथ जी का समवसरण 12 योजन (96) विस्तृत था।
प्रश्न 201 - कौन से तीर्थंकर का समवसरण सबसे छोटा था और कितना?
उत्तर - 24वें श्री महावीर स्वामी का समवसरण 1 योजन अर्थात 4 कोश का था।
प्रश्न 202 - तीर्थंकरों के लिए वस्त्रादि एवं भोजन की व्यवस्था कहां से होती हैं?
उत्तर - तीर्थंकरों के भोजन एवं वस्त्रादि की व्यवस्था स्वर्ग से होती है।
प्रश्न 203 - क्या तीर्थकर अपनी माता का दूध पीते हैं?
उत्तर - तीर्थंकर अपनी माता का दूध नहीं पीते हैं।
प्रश्न 204 - क्या तीर्थंकर अपने माता-पिता को नमस्कार करते हैं?
उत्तर - तीर्थंकर अपने माता-पिता केा भी नमस्कार नहीं करते हैं।
05 - श्री सुपाश्र्वनाथ एवं पाश्र्वनाथ जी में किन-किन बातों में समानता पायी जाती है?
उत्तर - निम्न बातों में समानता पायी जाती है-
1 - दोनों तीर्थंकरों का गर्भ - जन्म कल्याणक बनारस में हुआ था।
2 - दोनों तीर्थंकरों का हरित श्याम वर्ण था।
3 - दोनों तीर्थंकरों की प्रतिमाओं पर सर्प का फण पाया जाता है।
4 - दोनों तीर्थंकरों का गर्भ, जन्म, तप एवं केवलज्ञान कल्याणक विशाखा नक्षत्र में हुआ था।
5 - दोनों तीर्थंकरों ने पूर्वाण्ह काल में दीक्षा ली थी।
6 - दोनों तीर्थंकरों को मोक्ष सप्तमी तिथि को हुआ था।
7 - दोनों तीर्थंकरों को मोक्ष सम्मेदशिखर से हुआ था।
प्रश्न 206 - मिथला नगरी में जन्म लेने वाले तीर्थंकरों के नाम बताइये।
उत्तर - 19 वें श्री मल्लिनाथ जी एवं 21 वें नमिनाथ जी।
प्रश्न 207 - इक्ष्वाकुवंश में जन्म लेने वाले कितने तीर्थंकर थे?
उत्तर - सत्रह तीर्थंकर।
प्रश्न 208 - इक्ष्वाकु वंश में जन्म लेने वाले तीर्थंकरों के नाम बताइये?
उत्तर - (1) श्री आदिनाथ जी से लेकर अनंतनाथजी, शांतिनाथजी, श्री मल्लिनाथ जी, श्री नमिनाथ जी।
प्रश्न 209 - कुरूवंश में कौन-कौन से तीर्थंकरों ने जन्म लिया है?
उत्तर - 25वें श्री धर्मनाथजी, 17वें श्री कुंथुनाथजी, 18 वें श्री अरहनाथ जी इन तीन तीर्थंकरों ने कुरू वंश में जन्म लिया है।
प्रश्न 210 - यादव वंश में कौन-कौन से तीर्थंकरों ने जन्म लिया है?
उत्तर - 20 वें मुनिसुव्रतनाथ जी एवं 22वे श्री नेमिनाथजी।
प्रश्न 211 - उग्र वंश में कौन से तीर्थंकर ने जन्म लिया था?
उत्तर - 23वें श्री पाश्र्वनाथ जी ने।
प्रश्न 212 - श्री महावीर भगवान ने कौन से वंश में जन्म लिया था?
उत्तर - नाथ वंश में।
प्रश्न 213 - चैबीसों तीर्थंकरों के कुल कितने गणधर थे?
उत्तर - चैबीस तीर्थंकरों के कुल चैदह सौ उनसठ गणधर थे।
प्रश्न 214 - गणधर किसे कहते हैं?
उत्तर - जो मुनि, भगवान की बारह सभाओं रूपी इन बारह गणों के स्वामी माने जाते हैं वे गणनायक, गणधर, गणपति, विनायक आदि नामों से जाने जाते हैं उन्हें गणधर कहते हैं।
प्रश्न 215 - बारह गण कौन-कौन से हैं?
उत्तर - भगवान के समवसरा में जो बारह सभायें बारह कोठे होते हैं उन्हें ही बारह गण कहते हैं।
प्रश्न 216 - अशोक वृक्ष किसे कहते हैं?
उत्तर - तीर्थंकर को जिस वृक्ष के नीचे केवलज्ञान होता है उसे अशोक नाम से जाना जाता है?
प्रश्न 217 - अशोक नाम की सार्थकता बताइये।
उत्तर - समस्त प्राणियों का शोक हरने से इस वृक्ष का अशोक नाम सार्थक है।
प्रश्न 218 - शाल वृक्ष के नीचे कौन-कौन से तीर्थंकरों को केवलज्ञान हुआ है?
उत्तर - श्री मुमतिनाथ जी व श्री पद्मप्रभु जी।
प्रश्न 219 - पीपल वृक्ष के नीचे कौन-से भगवान को केवलज्ञान हुआ था?
उत्तर - श्री अनंतनाथ जी को।
प्रश्न 220 - आम्रवृक्ष के नीचे कौन-से तीर्थंकर को केवलज्ञान हुआ था?
उत्तर - श्री अरहनाथजी को।
प्रश्न 221 - तीर्थंकरों के सबसे अधिक कल्याणक कौन-से महीने में आते हैं और कितने?
उत्तर - चैत्र के महीने में सत्रह कल्याणक।
प्रश्न 222 - तीर्थंकर के सबसे कम कल्याणक कौन-से महीने में आते और कितने?
उत्तर - आश्विन के महीने में केवल तीन कल्याणक।
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