कथा करकण्डु*
. *।। श्रीमहावीराय नमः।।*
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*🔸🔸श्री उत्तराध्ययन सूत्र🔸🔸*
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. *प्रतयेकबुद्ध करकण्डु*
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*🙏मुनि वही बनता है जिसे बोधि प्राप्त है।वे तीन प्रकार के होते हैं - - -*
*स्वयं-बुद्ध* जो स्वयं बोधि प्राप्त करते हैं, उन्हें स्वयं-बुद्ध कहा जाता है।
*प्रत्येक-बुद्ध* जो किसी एक घटना के निमित्त से बोधि प्राप्त करते हैं, उन्हें प्रत्येक-बुद्ब कहा जाता है।
*बुद्ध-बोधित* जो बोधि-प्राप्त व्यक्तियों से बोधि-लाभ करते हैं,उन्हें बुद्ध-बोधित कहते है।
*🙏उत्तराध्ययन सूत्र के इस नवम अध्ययन का सम्बन्ध प्रत्येक-बुद्ध मुनि से है।*
*करकण्डु*(कलिंग राजा)
*द्विमुख*(पंचाल राजा)
*नमि*(विदेह राजा) और
*नग्गति*(गंधार राजा)
(बुढ़ा बैल--इन्द्रध्वज--एक कंकण की नीरवता और मंजरी-विहीन आम्र वृक्ष----ये चारों घटनाएं क्रमशः चारों के बोधि-प्राप्ति की हेतु बनी)
*☝️ये चारों समकालीन प्रत्येक-बुद्ध हैं।*
● इन चारों प्रत्येक-बुद्धों के जीव पुष्पोतर नाम के विमान से एक साथ च्युत हुए थे।
● चारों ने एक साथ प्रव्रज्या ली।
● चारों एक ही समय में प्रत्येक-बुद्ब हुए।
● चारों एक ही समय में केवली बने।
●चारों एक ही समय में सिद्ध हुए।
*☝️एक बार चारों प्रत्येक-बुद्ध विहार करते हुए क्षितिप्रतिष्ठित नगर में आए।वहाँ व्यन्तरदेव का एक मन्दिर था।उसके चार द्वार थे।*
*करकण्डु पूर्व दिशा के द्वार से,*
*द्विमुख दक्षिण दिशा के द्वार से,*
*नमि पश्चिम दिशा के द्वार से और*
*नग्गति उत्तर दिशा के द्वार से प्रविष्ट हुए।*
*☝️वहाँ के व्यंतरदेव ने यह सोचकर कि साधुओं को पीठ देकर कैसे बैठूं,अपना मुंह चारों ओर कर लिया।*
*करकण्डु खुजली से पीड़ित था।उसने एक कोमल कण्डूयन लिया और कान को खुजलाया।खुजला लेने के बाद उसने कण्डयून को एक ओर छिपा लिया।*
*द्विमुख ने यह देख लिया।उसने कहा---"मुने ! अपना राज्य, राष्ट्र, पुर, अंत:पुर...आदि सब कुछ छोड़कर आप इस कण्डूयन का संचय क्यों करते हैं ?"*
*यह सुनते ही करकण्डु के उत्तर देने से पूर्व ही नमि ने कहा--- "मुने ! आपके राज्य में आपके अनेक कृत्यकार--आज्ञा पालने वाले थे।उनका कार्य था दण्ड देना और दूसरों का पराभव करना।इस कार्य को छोड़ आप मुनि बने।आज आप दूसरों के दोष क्यों देख रहे हैं।"*
*यह सुन नग्गति ने कहा--- "जो मोक्षार्थी हैं, जो आत्म-मुक्ति के लिए प्रयत्न करते हैं, जिन्होंने सबकुछ छोड़ दिया है, वे दूसरों की गर्हा कैसे करेंगे ?"*
*तब करकण्डु ने कहा---"मोक्ष मार्ग में प्रवृत्त साधु और ब्रह्मचारी यदि अहित का निवारण करते हैं तो वह दोष नहीं है।नमि,द्विमुख और नग्गति ने जो कुछ कहा है, वह अहित-निवारण के लिए ही कहा है अत: दोष नहीं है।"*
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*☝️आज हम प्रथम प्रत्येक बु द्ध करकण्डु के बारे में जानेंगे।*
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. *प्रत्येकबुद्ध करकण्डु*
. 👏👏👏👏👏
*उस समय और उस काल में चम्पानगरी में दधिवाहन नाम का राजा राजा राज्य करता था।उसकी रानी का नाम पद्मावती*(महाराज चेटक की पुत्री) *था।*
*☝️एक बार रानी गर्भवती हुई।उसे दोहद उत्पन्न हुआ परन्तु वह उसे व्यक्त करने में लज्जा का अनुभव करती रही।शरीर सुख गया।राजा के पूछने पर रानी ने अपने मन की बात कह दी।*
*👉दोहद के अनुसार रानी राजा का वेष धारण कर हाथी पर बैठी।राजा स्वयं उसके मस्तक पर छत्र लगाकर खड़ा था।रानी का दोहद पुरा हुआ।वर्षा आने लगी।*
*☝️हाथी वन की ओर भागा।राजा रानी घबराए।राजा ने रानी से सामने आ रहे वटवृक्ष की शाखा पकड़ने के लिए कहा।हाथी उस वटवृक्ष के नीचे से निकला।राजा ने एक डाल पकड़ ली।रानी डाल नहीं पकड़ सकी।हाथी रानी को ले भागा।राजा अकेला रह गया।रानी के वियोग से वह अत्यंत दु:खी हो गया।*
*☝️हाथी थककर निर्जन वन में जा ठहरा।उसे एक तालाब दिखा।वह प्यास बुझाने के लिए पानी में घुसा।रानी अवसर देख नीचे उतरी और तालाब से बाहर आ गई।*
*👉वह दिग्मुढ़ हो इधर-उधर देखने लगी।भयाक्रांत हो वह एक दीशा की ओर चल पड़ी।वहां उसने एक तापस को देखा।उसके निकट जा प्रणाम किया।तापस ने उसका परिचय पूछा।रानी ने सब बता दिया।*
*👏तापस ने कहा--- मैं भी महाराजा चेटक का सगोत्री हूँ।अब भयभीत होने की कोई बात नहीं है।उसने रानी को आश्वस्त कर, फल भेंट किये।रानी ने फल खाए।दोनों वहां से चले।कुछ दूर जाकर तापस ने गांव दिखाते हुए कहा--- मैं इस हल-कृष्ट भूमि पर चल नहीं सकता।सामने वह दंतपुर नगर दीख रहा है।वहाँ दंतवक्र राजा है।तुम निर्भय होकर चली जाओ।और वहां से अच्छा साथ देखकर चम्पापुरी चली जाना।*
*☝️रानी पद्मावती दंतपुर पहूंची।वहाँ उसने एक उपाश्रय में साध्वियों को देखा।उनके पास जा वन्दना की।साध्वियों ने परिचय पूछा।उसने सारा हाल कह सुनाया पर गर्भ की बात गुप्त रख ली।*
*👏 साध्वियों का उपदेश सुन उसे वैराग्य हुआ।उसने दीक्षा ले ली।गर्भ वृद्धिगत हुआ।महत्तरिका ने यह सब देख रानी से पूछा। साध्वी रानी ने सच-सच बात बता दी।महत्तरिका ने यह बात गुप्त रखी।काल बीता।गर्भ के दिन पूरे हुए।रानी ने शय्यातर के घर जा प्रसव किया।उस नवजात शिशु को रत्नकंबल में लपेटा और अपनी नामांकित मुद्रा उसे पहना श्मशान में छोड़ दिया। शमशानपाल ने उसे उठाया और अपनी पत्नी को दे दिया।*
*उसने उसका नाम "अवकीर्णक" रखा।*
*साध्वी रानी ने श्मशानपाल की पत्नी से मित्रता की।रानी जब उपाश्रय में पहूंची तब साध्वियों ने गर्भ के विषय में पूछा।उसने कहा--- मृत पुत्र हुआ था। मैंने उसे फेंक दिया।*
*☝️ उधर बालक श्मशानपाल के यहाँ बड़ा हुआ।वह अपने समवयस्क बालकों के साथ खेल खेलते हुए कहता---*
*"मैं तुम्हारा राजा हूँ।मुझे 'कर' दो।"*
*☝️एक बार उसके शरीर में सुखी खुजली हो गई।वह अपने साथियों से कहता--- मुझे खुजला दो।*
*ऐसा करने से उसका नाम करकण्डु हो गया*
*करकण्डु उस रानी साध्वी के प्रति अनुराग रखता था।वह साध्वी मोहवश उसे भीक्षा में प्राप्त लड्ढु आदि दिया करती थी।*
*☝️ बालक बड़ा हुआ।वह शमशान की रक्षा करने लगा।वहां पास ही बांस का वन था।एक बार दो साधु उस ओर से निकले।एक साधु दण्ड के लक्षणों को जानता था।उसने कहा ---*
*☝️अमुक प्रकार का दण्ड जो ग्रहण करेगा, वह राजा होगा।"*
*👉करकण्डु तथा ब्राह्मण के लड़के ने यह बात सुनी।ब्राह्मण कुमार तत्काल गया और उस लक्षण वाले बांस का दण्ड काटा।करकण्डु ने कहा--- यह बांस मेरे श्मशान में बढ़ा है, अतः इसका मालिक मैं हूँ। दोनों में विवाद हुआ न्यायाधीश के पास गए।उसने न्याय करते हुए करकण्डु को बांस दिला दिया।*
*ब्राह्मण कुमार कुपित हुआ और उसने चाण्डाल परिवार को मारने का षडयंत्र रचा। चाण्डाल को इसकी जानकारी मिल गई।वह अपने परिवार को साथ ले दूसरे नगर काच्चनपुर चला गया।*
*☝️ काच्चनपुर का राजा मर चुका था।उसके पुत्र नहीं था।परम्परानुसार राजा चुनने के लिए घोड़ा छोड़ा गया।घोड़ा घुमते-घुमते सीधा वहीं जा रुका जहाँ चाण्डाल परिवार विश्राम कर रहा था।घोड़े ने कुमार करकण्डु की प्रदक्षिणा की और वह उसके निकट ठहर गया।काच्चनपुर राज्य के सामंत आए।कुमार करकण्डु को ससम्मान ले गए।करकण्डु का राज्याभिषेक हुआ।*
*अब वह काच्चनपुर का राजा बन गया।*
*☝️जब ब्राह्मण कुमार ने यह समाचार सुना तो वह एक गांव लेने की आशा से राजा करकण्डु के पास आया और याचना की कि मुझे चम्पा राज्य में एक गांव दिया जाए।राजा करकण्डु ने दधिवाहन राजा के नाम एक पत्र लिखा।दधिवाहन ने इसे अपना अपमान समझा।उसरे करकण्डु राजा के लिए बुरा-भला कहा।करकण्डु राजा ने जब यह सब सुनकर चम्पा फर चढ़ाई कर दी।*
*👏 उधर साध्वी रानी पद्मावती ने युद्ध की बात सुनी।मानव संहार की कल्पना साकार हो उठी।वह चम्पा पहूंची।युद्धक्षेत्र में पहुंच कर पिता-पुत्र का परिचय कराया। युद्ध बन्द हो गया।राजा दधिवाहन अपना सारा राज्य करकण्डु को दे प्रव्रजित हो गये।*
*करकण्डु गो-प्रिय था।एक दिन वह गोकुल देखने गया।उसने एक दुबले-पतले बछड़े को देखा।उसका मन दया से भर गया।उसने आज्ञा दी कि इस बछड़े को उसकी मां का सारा दुध पिलाया जाए और जब यह बछड़ा बड़ा हो जाए तो दूसरी गायों का दुध भी उसे पिलाया जाए।गोपालकों ने यह आदेश स्वीकार कर पालन किया।*
*बछड़ा सुखपूर्वक बढ़ने लगा।वह युवा हुआ।उसमें अपार शक्ति थी।राजा ने देखा।वह बहुत प्रसन्न हुआ।*
*☝️कुछ समय बीता।एक दिन राजा पुनः वहां आया।उसने देखा कि...*
*उसे प्रिय वही बछड़ा अब बुढ़ा हो गया है,*
*उसकी आंखें धंसी जा रही हैं,*
*पैर लड़खड़ा रहे हैं और*
*दूसरे छोटे-बड़े बैलों का संघटन सह रहा है।*
*👏यह सब देख कर राजा का मन वैराग्य से भर गया।उसे संसार की परिवर्तनशीलता का भान हुआ।वह प्रतिबुद्ध होकर प्रत्येक बुद्ध हो गया।वह प्रव्रजित होकर विहरण करने लगा।*
*🙏आगे हम रिक्त समय में शेष दो प्रत्येक बुद्ध द्विमुख और नग्गति के बारे में जानने का प्रयास करेंगे।*
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*विनम्र प्रस्तुति: : सुरेश चन्द्र बोरदिया भीलवाड़ा*
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*🔸🔸श्री उत्तराध्ययन सूत्र🔸🔸*
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. *प्रतयेकबुद्ध करकण्डु*
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*🙏मुनि वही बनता है जिसे बोधि प्राप्त है।वे तीन प्रकार के होते हैं - - -*
*स्वयं-बुद्ध* जो स्वयं बोधि प्राप्त करते हैं, उन्हें स्वयं-बुद्ध कहा जाता है।
*प्रत्येक-बुद्ध* जो किसी एक घटना के निमित्त से बोधि प्राप्त करते हैं, उन्हें प्रत्येक-बुद्ब कहा जाता है।
*बुद्ध-बोधित* जो बोधि-प्राप्त व्यक्तियों से बोधि-लाभ करते हैं,उन्हें बुद्ध-बोधित कहते है।
*🙏उत्तराध्ययन सूत्र के इस नवम अध्ययन का सम्बन्ध प्रत्येक-बुद्ध मुनि से है।*
*करकण्डु*(कलिंग राजा)
*द्विमुख*(पंचाल राजा)
*नमि*(विदेह राजा) और
*नग्गति*(गंधार राजा)
(बुढ़ा बैल--इन्द्रध्वज--एक कंकण की नीरवता और मंजरी-विहीन आम्र वृक्ष----ये चारों घटनाएं क्रमशः चारों के बोधि-प्राप्ति की हेतु बनी)
*☝️ये चारों समकालीन प्रत्येक-बुद्ध हैं।*
● इन चारों प्रत्येक-बुद्धों के जीव पुष्पोतर नाम के विमान से एक साथ च्युत हुए थे।
● चारों ने एक साथ प्रव्रज्या ली।
● चारों एक ही समय में प्रत्येक-बुद्ब हुए।
● चारों एक ही समय में केवली बने।
●चारों एक ही समय में सिद्ध हुए।
*☝️एक बार चारों प्रत्येक-बुद्ध विहार करते हुए क्षितिप्रतिष्ठित नगर में आए।वहाँ व्यन्तरदेव का एक मन्दिर था।उसके चार द्वार थे।*
*करकण्डु पूर्व दिशा के द्वार से,*
*द्विमुख दक्षिण दिशा के द्वार से,*
*नमि पश्चिम दिशा के द्वार से और*
*नग्गति उत्तर दिशा के द्वार से प्रविष्ट हुए।*
*☝️वहाँ के व्यंतरदेव ने यह सोचकर कि साधुओं को पीठ देकर कैसे बैठूं,अपना मुंह चारों ओर कर लिया।*
*करकण्डु खुजली से पीड़ित था।उसने एक कोमल कण्डूयन लिया और कान को खुजलाया।खुजला लेने के बाद उसने कण्डयून को एक ओर छिपा लिया।*
*द्विमुख ने यह देख लिया।उसने कहा---"मुने ! अपना राज्य, राष्ट्र, पुर, अंत:पुर...आदि सब कुछ छोड़कर आप इस कण्डूयन का संचय क्यों करते हैं ?"*
*यह सुनते ही करकण्डु के उत्तर देने से पूर्व ही नमि ने कहा--- "मुने ! आपके राज्य में आपके अनेक कृत्यकार--आज्ञा पालने वाले थे।उनका कार्य था दण्ड देना और दूसरों का पराभव करना।इस कार्य को छोड़ आप मुनि बने।आज आप दूसरों के दोष क्यों देख रहे हैं।"*
*यह सुन नग्गति ने कहा--- "जो मोक्षार्थी हैं, जो आत्म-मुक्ति के लिए प्रयत्न करते हैं, जिन्होंने सबकुछ छोड़ दिया है, वे दूसरों की गर्हा कैसे करेंगे ?"*
*तब करकण्डु ने कहा---"मोक्ष मार्ग में प्रवृत्त साधु और ब्रह्मचारी यदि अहित का निवारण करते हैं तो वह दोष नहीं है।नमि,द्विमुख और नग्गति ने जो कुछ कहा है, वह अहित-निवारण के लिए ही कहा है अत: दोष नहीं है।"*
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*☝️आज हम प्रथम प्रत्येक बु द्ध करकण्डु के बारे में जानेंगे।*
🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥
. *प्रत्येकबुद्ध करकण्डु*
. 👏👏👏👏👏
*उस समय और उस काल में चम्पानगरी में दधिवाहन नाम का राजा राजा राज्य करता था।उसकी रानी का नाम पद्मावती*(महाराज चेटक की पुत्री) *था।*
*☝️एक बार रानी गर्भवती हुई।उसे दोहद उत्पन्न हुआ परन्तु वह उसे व्यक्त करने में लज्जा का अनुभव करती रही।शरीर सुख गया।राजा के पूछने पर रानी ने अपने मन की बात कह दी।*
*👉दोहद के अनुसार रानी राजा का वेष धारण कर हाथी पर बैठी।राजा स्वयं उसके मस्तक पर छत्र लगाकर खड़ा था।रानी का दोहद पुरा हुआ।वर्षा आने लगी।*
*☝️हाथी वन की ओर भागा।राजा रानी घबराए।राजा ने रानी से सामने आ रहे वटवृक्ष की शाखा पकड़ने के लिए कहा।हाथी उस वटवृक्ष के नीचे से निकला।राजा ने एक डाल पकड़ ली।रानी डाल नहीं पकड़ सकी।हाथी रानी को ले भागा।राजा अकेला रह गया।रानी के वियोग से वह अत्यंत दु:खी हो गया।*
*☝️हाथी थककर निर्जन वन में जा ठहरा।उसे एक तालाब दिखा।वह प्यास बुझाने के लिए पानी में घुसा।रानी अवसर देख नीचे उतरी और तालाब से बाहर आ गई।*
*👉वह दिग्मुढ़ हो इधर-उधर देखने लगी।भयाक्रांत हो वह एक दीशा की ओर चल पड़ी।वहां उसने एक तापस को देखा।उसके निकट जा प्रणाम किया।तापस ने उसका परिचय पूछा।रानी ने सब बता दिया।*
*👏तापस ने कहा--- मैं भी महाराजा चेटक का सगोत्री हूँ।अब भयभीत होने की कोई बात नहीं है।उसने रानी को आश्वस्त कर, फल भेंट किये।रानी ने फल खाए।दोनों वहां से चले।कुछ दूर जाकर तापस ने गांव दिखाते हुए कहा--- मैं इस हल-कृष्ट भूमि पर चल नहीं सकता।सामने वह दंतपुर नगर दीख रहा है।वहाँ दंतवक्र राजा है।तुम निर्भय होकर चली जाओ।और वहां से अच्छा साथ देखकर चम्पापुरी चली जाना।*
*☝️रानी पद्मावती दंतपुर पहूंची।वहाँ उसने एक उपाश्रय में साध्वियों को देखा।उनके पास जा वन्दना की।साध्वियों ने परिचय पूछा।उसने सारा हाल कह सुनाया पर गर्भ की बात गुप्त रख ली।*
*👏 साध्वियों का उपदेश सुन उसे वैराग्य हुआ।उसने दीक्षा ले ली।गर्भ वृद्धिगत हुआ।महत्तरिका ने यह सब देख रानी से पूछा। साध्वी रानी ने सच-सच बात बता दी।महत्तरिका ने यह बात गुप्त रखी।काल बीता।गर्भ के दिन पूरे हुए।रानी ने शय्यातर के घर जा प्रसव किया।उस नवजात शिशु को रत्नकंबल में लपेटा और अपनी नामांकित मुद्रा उसे पहना श्मशान में छोड़ दिया। शमशानपाल ने उसे उठाया और अपनी पत्नी को दे दिया।*
*उसने उसका नाम "अवकीर्णक" रखा।*
*साध्वी रानी ने श्मशानपाल की पत्नी से मित्रता की।रानी जब उपाश्रय में पहूंची तब साध्वियों ने गर्भ के विषय में पूछा।उसने कहा--- मृत पुत्र हुआ था। मैंने उसे फेंक दिया।*
*☝️ उधर बालक श्मशानपाल के यहाँ बड़ा हुआ।वह अपने समवयस्क बालकों के साथ खेल खेलते हुए कहता---*
*"मैं तुम्हारा राजा हूँ।मुझे 'कर' दो।"*
*☝️एक बार उसके शरीर में सुखी खुजली हो गई।वह अपने साथियों से कहता--- मुझे खुजला दो।*
*ऐसा करने से उसका नाम करकण्डु हो गया*
*करकण्डु उस रानी साध्वी के प्रति अनुराग रखता था।वह साध्वी मोहवश उसे भीक्षा में प्राप्त लड्ढु आदि दिया करती थी।*
*☝️ बालक बड़ा हुआ।वह शमशान की रक्षा करने लगा।वहां पास ही बांस का वन था।एक बार दो साधु उस ओर से निकले।एक साधु दण्ड के लक्षणों को जानता था।उसने कहा ---*
*☝️अमुक प्रकार का दण्ड जो ग्रहण करेगा, वह राजा होगा।"*
*👉करकण्डु तथा ब्राह्मण के लड़के ने यह बात सुनी।ब्राह्मण कुमार तत्काल गया और उस लक्षण वाले बांस का दण्ड काटा।करकण्डु ने कहा--- यह बांस मेरे श्मशान में बढ़ा है, अतः इसका मालिक मैं हूँ। दोनों में विवाद हुआ न्यायाधीश के पास गए।उसने न्याय करते हुए करकण्डु को बांस दिला दिया।*
*ब्राह्मण कुमार कुपित हुआ और उसने चाण्डाल परिवार को मारने का षडयंत्र रचा। चाण्डाल को इसकी जानकारी मिल गई।वह अपने परिवार को साथ ले दूसरे नगर काच्चनपुर चला गया।*
*☝️ काच्चनपुर का राजा मर चुका था।उसके पुत्र नहीं था।परम्परानुसार राजा चुनने के लिए घोड़ा छोड़ा गया।घोड़ा घुमते-घुमते सीधा वहीं जा रुका जहाँ चाण्डाल परिवार विश्राम कर रहा था।घोड़े ने कुमार करकण्डु की प्रदक्षिणा की और वह उसके निकट ठहर गया।काच्चनपुर राज्य के सामंत आए।कुमार करकण्डु को ससम्मान ले गए।करकण्डु का राज्याभिषेक हुआ।*
*अब वह काच्चनपुर का राजा बन गया।*
*☝️जब ब्राह्मण कुमार ने यह समाचार सुना तो वह एक गांव लेने की आशा से राजा करकण्डु के पास आया और याचना की कि मुझे चम्पा राज्य में एक गांव दिया जाए।राजा करकण्डु ने दधिवाहन राजा के नाम एक पत्र लिखा।दधिवाहन ने इसे अपना अपमान समझा।उसरे करकण्डु राजा के लिए बुरा-भला कहा।करकण्डु राजा ने जब यह सब सुनकर चम्पा फर चढ़ाई कर दी।*
*👏 उधर साध्वी रानी पद्मावती ने युद्ध की बात सुनी।मानव संहार की कल्पना साकार हो उठी।वह चम्पा पहूंची।युद्धक्षेत्र में पहुंच कर पिता-पुत्र का परिचय कराया। युद्ध बन्द हो गया।राजा दधिवाहन अपना सारा राज्य करकण्डु को दे प्रव्रजित हो गये।*
*करकण्डु गो-प्रिय था।एक दिन वह गोकुल देखने गया।उसने एक दुबले-पतले बछड़े को देखा।उसका मन दया से भर गया।उसने आज्ञा दी कि इस बछड़े को उसकी मां का सारा दुध पिलाया जाए और जब यह बछड़ा बड़ा हो जाए तो दूसरी गायों का दुध भी उसे पिलाया जाए।गोपालकों ने यह आदेश स्वीकार कर पालन किया।*
*बछड़ा सुखपूर्वक बढ़ने लगा।वह युवा हुआ।उसमें अपार शक्ति थी।राजा ने देखा।वह बहुत प्रसन्न हुआ।*
*☝️कुछ समय बीता।एक दिन राजा पुनः वहां आया।उसने देखा कि...*
*उसे प्रिय वही बछड़ा अब बुढ़ा हो गया है,*
*उसकी आंखें धंसी जा रही हैं,*
*पैर लड़खड़ा रहे हैं और*
*दूसरे छोटे-बड़े बैलों का संघटन सह रहा है।*
*👏यह सब देख कर राजा का मन वैराग्य से भर गया।उसे संसार की परिवर्तनशीलता का भान हुआ।वह प्रतिबुद्ध होकर प्रत्येक बुद्ध हो गया।वह प्रव्रजित होकर विहरण करने लगा।*
*🙏आगे हम रिक्त समय में शेष दो प्रत्येक बुद्ध द्विमुख और नग्गति के बारे में जानने का प्रयास करेंगे।*
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*विनम्र प्रस्तुति: : सुरेश चन्द्र बोरदिया भीलवाड़ा*
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