क्रमांक - 252
. *तत्त्व - दर्शन*
*✨ प्राण, पर्याप्ति, लेश्या और इन्द्रिय*
*🔹लेश्या*
*💫लेश्या की गति*
*1. कृष्ण लेश्या - दुर्गति*
*2. नीललेश्या - दुर्गति*
*3. कापोतलेश्या - दुर्गति*
*4. तेजोलेश्या - सुगति*
*5. पद्मलेश्या - सुगति*
*6. शुक्ललेश्या - सुगति*
*💫 लेश्या का परिणाम*
*1. कृष्ण लेश्या - जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट*
*2. नील लेश्या - जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट*
*3. कापोत लेश्या - जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट*
*4. तेजस् लेश्या - जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट*
*5. पद्म लेश्या - जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट*
*6. शुक्ल लेश्या - जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट।*
*जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट परिणामों के तारतम्य पर विचार करने से प्रत्येक लेश्या के नौ-नौ परिणाम होते हैं।*
*✒️ नोट - 1. जघन्य - जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट, 2. मध्यम - जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट, 3. उत्कृष्ट - जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट। इसी प्रकार लेश्याओं के परिणामों का जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट के त्रिक से गुणा करने पर विकल्पों की वृद्धि होती है।*
*क्रमशः ...........*
*✒️ लिखने में कोई गलती हुई हो तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं।*
*✍️आज की जिज्ञासा का समाधान✍️*
*******************************
*प्रश्न - तीसरे और छठे देवलोक के देवों में कितनी लेश्या पाई जाती हैं?*
*उत्तर - तीसरे देवलोक के देवों में एक पद्म-लेश्या और छठे देवलोक के देवों में एक शुक्ल-लेश्या भगवती सूत्र के २४ वें शतक के २० वें उद्देशे में बतलाई है।*
क्रमांक - 248
. *तत्त्व - दर्शन*
*✨ प्राण, पर्याप्ति, लेश्या और इन्द्रिय*
*🔹लेश्या के प्रकार*
*💫3. कापोतलेश्या -*
*👉 जो दूसरों के ऊपर रोष करता है। दूसरों की निंदा करता है। शोक और भय से ग्रस्त हो, दूसरों से ईर्ष्या करता है। नाना प्रकार से अपनी प्रशंसा करता है तथा दूसरो को अपने समान नहीं मानता। प्रशंसा किये जाने पर हानि-लाभको भूल जाता है। युद्ध में मरने का इच्छुक होता है तथा कर्तव्य एवं अकर्त्तव्य को नहीं जानता वह कापोतलेश्या वाला होता है। राजवार्तिक में इसके लक्षण को स्पष्ट करते हुए कहा गया है- 'मात्सर्य-पैशुन्य-परपरिभवात्मप्रशंसा परपरिवादुद्धिहान्य गणनात्मीय जीवितनिराशता प्रशस्यमानधनदान युद्धमरणोद्यमादि कापोतलेश्यालक्षणम्' अर्थात् निंदा, चुगलखोरी, पर-परिभव, आत्म-प्रशंसा, पर-परिवाद, जीवन नैराश्य, प्रशंसक को धन देना, युद्ध में मरने को तत्पर रहना आदि कापोत लेश्या के लक्षण हैं। इसका वर्ण कबूतर के गले के समान होता है। इसका रस कच्चे आम के रस से अनंत गुणा कसैला होता है। इसकी गंध मरे हुए सर्प की गंध से अनन्त गुणा अनिष्ट होती है तथा इसका स्पर्श गाय की जीभ से अनन्त गुणा कर्कश होता है। उत्तराध्ययन सूत्र में कार्य करने एवं बोलने में वक्रता रखना, दूसरों को कष्ट देने वाली भाषा बोलना, चुगली करना आदि कापोत लेश्या का परिणाम बताया गया है।*
*क्रमशः ...........*
*✒️ लिखने में कोई गलती हुई हो तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं।*
*वितराग वाटिका*
14 - 07 - 2025
गुरु जी -::- प्रीति जी सावडया
Topic -::- छः लेश्या
1️⃣ प्रथम जितनी काली, अंतिम उतनी ही श्वेत..!!
🆗 कृष्ण लेश्या और शुक्ल लेश्या..!!
2️⃣ आठवें बलभद्र , दशरथनन्दन , कमल का पुष्प..!!
🆗 पद्म लेश्या..!!!
3️⃣ एक वर्ण भी,एक पर्वत भी, एक लेश्या भी..!!!
🆗 नील लेश्या ।
4️⃣ पीत लेश्या का एक और नाम..!!
🆗 तेजो लेश्या ।
5️⃣ एक लेश्या भी , एक ध्यान भी..!!
🆗 शुक्ल लेश्या ।
6️⃣ नवमें नारायण , श्याम वर्ण..!!!
🆗 कृष्ण लेश्या ।
7️⃣ कबूतर के रंग जैसा; धूसर रंग का..!!
🆗 कापोत लेश्या ।
8️⃣ दो महानायक ...
एक महाभारत से जुड़े और दूसरे रामायण से..!!
🆗 कृष्ण लेश्या और पद्म लेश्या ।
(वासुदेव कृष्ण जी और श्री राम जी)
9️⃣ एक शुभ और एक अशुभ, दोनों एक दूसरे से विपरीत..!!
🆗 शुक्ल लेश्या और कृष्ण लेश्या ।
🔟 दो लेश्या को जोड़ने से एक तीर्थंकर परमात्मा का चिन्ह बन जाता है...
(एक लेश्या का नाम + एक लेश्या का अर्थ)
🆗 नील कमल ।
(नील लेश्या+ पद्म लेश्या/कमल)
1️⃣1️⃣ रामायण के दो पात्र में से एक, नल का भाई..!!
🆗 नील लेश्या ।
1️⃣2️⃣ चंद्रमा की कलाओं के ज्यादा और कम के हिसाब से हमको बांटा गया है..!!!
🆗 कृष्ण लेश्या और शुक्ल लेश्या ।
(कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष)
1️⃣3️⃣ वृक्ष को जड़ से उखाड़कर फल खाने चाहिए!!
यह कौन-सी लेश्या दर्शाता है??
🆗 कृष्ण लेश्या ।
1️⃣4️⃣ छः लेश्या में एक खेचर का समावेश..!!!
🆗 कापोत लेश्या ।
1️⃣5️⃣ इस लेश्या में, केवल ज्ञान भी पा सकते हो..!!!
🆗 शुक्ल लेश्या ।
*
1⃣लेश्या किसे कहते है?
🅰व्यक्ति के मनोभावों को/ विचारों की तरंगों को
2⃣लेश्या मुख्य रुप से कितने प्रकार की होती है?
🅰2, शुभ अशुभ
3⃣लेश्या के भेद कितने है?
🅰ऐसा🅰4⃣उत्तराध्ययन सूत्र मे लेश्या का क्या अर्थ है?
🅰आभा,कांति,प्रभा( मनोभाव)
5⃣धर्महीन, निर्दयी, क्रोधी व्यक्ति की कौन सी लेश्या होती है?
🅰कृष्ण लेश्या
6⃣ कृष्ण लेश्या का रंग कैसा?
🅰 काजल जैसा
7⃣मायावी मनुष्य की कौन सी लेश्या होती है?
🅰नील लेश्या
8⃣ नील लेश्या का रंग कैसा?
🅰 मोर की गर्दन जैसा
9⃣आत्म प्रशंसा व परनिंदा मे लिप्त की लेश्या कौनसी?
🅰 कापोत लेश्या
🔟 उसकी गति कौनसी?
🅰तिर्यंच गति
1⃣1⃣ कपटी मनुष्य की गति कौन सी?
🅰वनस्पति की
1⃣2⃣तेजो लेश्या वाला व्यक्ति कैसा होता है?
🅰 धार्मिक दयालु, विवेकी
1⃣3⃣तेजो लेश्या( लब्धि) का उपयोग किसने किस पर किया?
🅰गौशालक ने भगवान महावीर पर
1⃣4⃣तेजो लेश्या का रंग कैसा?
🅰तोते की चोंच जैसा
1⃣5⃣इस लेश्या वाले की गति कौन सी?
🅰मनुष्य गति
नमस्कार मंत्र मे कितने पद मे लेश्या नही पायी जाती है ?
उत्तर,,,,1 सिद्ध पद✅
१३ वें गुरुस्थान में भी, एक परम शुक्ल लेश्या होती है।
१४ वें गुणस्थान में जीव अलेशी होता है।
सिद्ध परमात्मा में लेश्या नहीं होती है।
धर्म ओर लेश्या की प्राप्ति में क्या अंतर है❓
✅
🅰️ धर्म की प्राप्ति अंतर्गत पुरुषार्थ से होती है लेश्या की प्राप्ति सहज में हो जाती है❗
मनुष्य गति में कितनी लेश्या पायी जाती है?
6
उपाध्यायजी मे कितनी लेश्या पायी जा सकती हैं?
3 अथवा 6
छठें गुणस्थान में 6
सातवे गुण मे 3 लेश्याएं🅰️☑️🙏
एवंकुन्द के फूल के समान कौन सी लेश्या है,
शुक्ललेश्य
समुच्चय जीव में कितनी लेश्या पाई जाती है❓
✅
🅰छह ❗
अप्रमादी साधु जी मे लेश्या कितनी ❓
3
एक प्रथम तीर्थंकर के गणधर का नाम एक लेश्या
तेजो ऋषि/तेजस
लेश्या पर आधारित कुछ सरल प्रश्न::
📘1⃣ जीव के शुभाशुभ परिणाम
को क्या कहते हैं?
📖1⃣ लेश्या!
📘2⃣ प्रशस्त लेश्या कितनी?
📖2⃣ तीन!
📘3⃣ कौन सी ?
📖3⃣ तेजो,पद्म,शुक्ल !
📘4⃣ लेश्या का गंध ,रस और स्पर्श रूपी स्वरूप का उद्बोधन कौन से सूत्र में किया गया है?
📖4⃣ श्री उत्तराध्ययन सूत्र !
📘5⃣ लेश्याओं के स्वरूप बोध के लिए जैन शास्त्रों में क्या उदाहरण दिये गये हैं ?
📖5⃣ जामुन वृक्ष फल भक्षी,
ग्राम दाह !
📘6⃣ कापोत लेश्या का वर्ण कैसा और किसने जैसा है ?
📖6⃣ काला, काजल जैसा !
📘7⃣ नील लेश्या का वर्ण कैसा ,किसने जैसा ?
📖7⃣ नीला , मोर की गर्दन जैसा!
📘8⃣ जीवात्मा उदास निराश परनिंदक किस लेश्या की वजह से होता है ?
📖8⃣ कापोत!
📘9⃣ क्षमाशील व्रत पालन में सजग सुख दुख में स्थिर सदा प्रसन्न रहनेवाला कौन सी लेश्या के लक्षण है ?
📖9⃣ पद्म !
📘🔟 शुक्ल लेश्या वाला जीव अंततः कहाँ जाता है ?
📖🔟 मुक्त होकर मोक्ष में !
📘1⃣1⃣ एक लेश्या किनमें पायी जाता है ?
📖1⃣1⃣ शुक्ल लेश्या , १३वें सयोगी केवल !
📘1⃣2⃣ दो लेश्या कहाँ पायी जाती है ?
📖1⃣2⃣ ३री नरक में , नील और कापोत !
📘1⃣3⃣ तीन लेश्या किनमें पायी जाती है ?
📖1⃣3⃣ तेऊकाय जीवों में, कृष्ण नील कापोत !
📘1⃣4⃣ चार लेश्या किनमें पायी जाती है ?
📖1⃣4⃣ भवनपति वाणव्यंतर,कृष्ण नील कापोत तेजो !
📘1⃣5⃣ पाँच लेश्या किनमें पायी जाती है ?
📖1⃣5⃣ तिर्थंकर की आगत में !
📘1⃣6⃣ छः लेश्या किनमें पायी जाती है ?
📖1⃣6⃣ समुच्चय मनुष्य में !
📘1⃣7⃣ अकर्म भूमि के मनुष्यों में कितनी लेश्या होती है ?
📖1⃣8⃣ एक, नील लेश्या !
📘1⃣9⃣ कृष्ण नील कापोत तेजो से चार स्थावर के कौन से भेद में पायी जाती है ?
📖1⃣7⃣ चार, कृष्ण नील कापोत तेजो !
📘1⃣8⃣ चौथी नरक में कितनी , कौन सी लेश्या होती है ?
📖1⃣9⃣ बादर पृथ्वीकाय अपकाय वनस्पतिकाय के अपर्याप्त में !
📘2⃣0⃣ असन्नी तिर्यंच पंचेन्द्रिय में कौन सी लेश्या ?
📖2⃣0⃣ कृष्ण नील कापोत लेश्या!
📘2⃣1⃣ शुक्ल लेश्या की उत्कृष्ट स्थिति कितनी है ?
📖2⃣1⃣ ३३ सागरोपम !
📘2⃣2⃣ पद्म लेश्या की उत्कृष्ट स्थिति कितनी है?
📖2⃣2⃣ १० सागरोपम !
📘2⃣3⃣ तेजो लेश्या की उत्कृष्ट स्थिति कितनी है ?
📖2⃣3⃣ १० सागरोपम !
📘 2⃣4⃣ कापोत लेश्या की उत्कृष्ट स्थिति कितनी है?
📖2⃣4⃣ ७ सागरोपम!
📘2⃣5⃣ नील लेश्या की उत्कृष्ट स्थिति कितनी है ?
📖2⃣5⃣ १७ सागरोपम !
📘2⃣6⃣ सम्यक्त्व की प्राप्ति किस लेश्या में होती है - शुभ भाव लेश्या या शुभ द्रव्य लेश्या?
📖2⃣6⃣ शुभ भाव लेश्या !
📘2⃣7⃣ पृथ्वी पानी वनस्पतिकाय में तेजो लेश्या जघन्य स्थिति वालों को होती है - सही या गलत ?
📖2⃣7⃣ गलत ... मध्यम और उत्कृष्ट स्थिति वालों को होती है !
📘2⃣8⃣ तेजो लेश्या का वर्ण कैसा है ?
📖2⃣8⃣ तोते की चोंच के समान ! 📘2⃣9⃣ जामुनों से लदी छोटा डालियाँ ही काट देते हैं।।ये कौन सी लेश्या वाले कहते हैं?
📖2⃣9⃣ कापोत लेश्या वाले!
📘3⃣0⃣ केवल धन ही चाहिये तो हत्या करने का क्या लाभ । से कौन सी लेश्या वाले कहते हैं ?
📖3⃣0⃣ शुक्ल लेश्या वाले !
📘3⃣1⃣ दान नहीं है ,दया नहीं है
नहीं भलाई भी करते
हाय कमाई हाय कमाई
हाय हाय करते मरते ....
📖3⃣1⃣ कृष्ण लेश्या वाले !
🌹आप सब के साथ के लिए धन्यवाद!!🌹
🌹भूल चूक के लिए मिच्छामी दुक्कडं!!🌹
एक पर्वत का नाम, एक लेश्या?
,🅰️नील
योगलिक में कितनी
लेश्या होती है
योगलिक में चार-कृष्ण, नील, कापोत और तेजो
लेश्या होती है l
*छः लेश्या में विरूद्ध शब्द*
कृष्ण - शुक्ल
जय जिनेंद्र
जैन धर्म में लेश्या आत्मा के स्वभाव को दर्शाती है, जो कर्मों के साथ उसके संबंध के कारण होती है। लेश्याओं को छह प्रकारों में विभाजित किया गया है, जिनमें से प्रत्येक का एक विशिष्ट रंग और लक्षण होता है. लेश्याएँ मन की स्थिति, दृष्टिकोण और कर्मों को दर्शाती हैं.
लेश्याओं के छह प्रकार:
कृष्ण लेश्या:
क्रूरता, द्वेष, और हिंसा से संबंधित.
नील लेश्या:
घमंड, आलस्य, और सांसारिक इच्छाओं में आसक्ति से संबंधित.
कापोत लेश्या:
ईर्ष्या, लालच, और द्वेष से संबंधित.
तेजो लेश्या:
क्रोध, राग, और मोह से संबंधित.
पद्म लेश्या:
सांसारिक सुखों में आसक्ति, मोह, और अज्ञान से संबंधित.
शुक्ल लेश्या:
निष्पक्षता, शांति, और ज्ञान से संबंधित.
लेश्याओं का महत्व:
कर्मों का निर्धारण:
लेश्याएँ हमारे कर्मों की प्रकृति को प्रभावित करती हैं।
आत्मा का विकास:
लेश्याओं के माध्यम से, हम अपनी आत्मा को शुद्ध कर सकते हैं और मोक्ष की ओर बढ़ सकते हैं।
मानसिक स्थिति:
लेश्याएँ हमारी मानसिक स्थिति और दृष्टिकोण को दर्शाती हैं।
आध्यात्मिक प्रगति:
लेश्या ध्यान के माध्यम से, हम अपनी आध्यात्मिक प्रगति में मदद कर सकते हैं.
उदाहरण:
एक जम्बू वृक्ष के माध्यम से लेश्याओं को दर्शाया गया है, जिसमें छह व्यक्ति फल प्राप्त करने का प्रयास कर रहे हैं। प्रत्येक व्यक्ति की लेश्या उसके रंग और उसके द्वारा किए गए कार्य से निर्धारित होती है.
सारांश:
लेश्याएँ जैन धर्म में एक महत्वपूर्ण अवधारणा हैं, जो आत्मा के स्वभाव, मन की स्थिति, और कर्मों को दर्शाती हैं। लेश्याओं को समझकर, हम अपनी आध्यात्मिक प्रगति में मदद कर सकते हैं और मोक्ष की ओर बढ़ सकते हैं.
प्रश्न- लेश्या किसे कहते है ?
जवाब- जिनके द्वारा आत्मा कर्मो से लिप्त होती है, मन के ऐसे शुभाशुभ परिणामों को लेश्या कहते है ।
प्रश्न- लेश्या के कितने भेद है ?
जवाब- छह – 1.कृष्णलेश्या 2.नीललेश्या 3.कपोतलेश्या 4.पीतलेश्या 5.पद्मलेश्या 6.शुक्ललेश्या ।
प्रश्न- कृष्णलेश्या किसे कहते है ?
जवाब- काजल के समान कृष्ण और नीम के अनन्तगुण कटु पुद्गलों के सम्बन्ध के सम्बन्ध से आत्मा में जो परिणाम होता है, वह कृष्ण लेश्या
है । इस लेश्या वाला जीव क्रूर, हिंसक, असंयमी तथा रौद्र परिणामवाला होता है ।
प्रश्न- नील लेश्या किसे कहते है ?
जवाब- नीलम के समान नीले तथा सौंठ से अनन्त गुण तीक्ष्ण पुद्गलों के सम्बन्ध से आत्मा में जो परिणाम होता है, वह नील लेश्या है । इस लेश्यावाला जीव कपटी, निर्लज्ज, स्वादलोलुपी, पौद्गलिक सुख में रत रहने वाला होता है ।
प्रश्न- कपोत लेश्या किसे कहते है ?
जवाब- कबुतर के गले के समान वर्ण वाले तथा कच्चे आम के रस से अनन्तगुण कसैले पुद्गलों के सम्बन्ध से आत्मा में जो परिणाम होता है, वह कपोत लेश्या है । इस लेश्यावाला जीव अभिमानी, जड, वक्र तथा कर्कशभाषी होता है ।
प्रश्न- पीत लेश्या किसे कहते है ?
जवाब- हिंगुल के समान रक्त तथा पके आमरस से अनन्तगुण मधुर पुद्गलों के सम्बन्ध से आत्मा में जो परिणाम होता है, वह पीत लेश्या है । इस लेश्यावाला जीव पापभीरु, ममत्वरहित, विनयी तथा धर्म में रुची रखनेवाला होता है ।
प्रश्न- पद्म लेश्या किसे कहते है ?
जवाब- हल्दी के समान पीले तथा मधु से अनन्तगुण मिष्ट पुद्गलों के सम्बन्ध से आत्मा में जो परिणाम होता है, वह पद्म लेश्या है । पद्म लेश्यावाला जीव सरल, सहिष्णु, समभावी, मितभाषी तथा इन्द्रियों पर नियंत्रण करने वाला होता है ।
प्रश्न- शुक्ल लेश्या किसे कहते है ?
जवाब- शंख के समान श्वेत और मिश्री से अनन्तगुण मिष्ट पुद्गलों के सम्बन्ध से आत्मा में जो परिणाम होता है, वह शुक्ल लेश्या है । शुक्ल लेश्यावाला जीव राग-द्वेष रहित, विशुद्ध ध्यानी तथा आत्मलीन होता है ।
लेश्या के ऊपर प्रश्न ओर उत्तर।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,👇
1⃣एक लेश्या किसमे ❓
🅰 सयोगी केवली गुणस्थान में ❗
2⃣एक शुक्ल लेश्या में किंतने दण्डक❓
🅰तीन दण्डक वैमानिक , तिर्यंच पंचेंद्रिय और मनुष्य में ❗
3⃣14 गुणस्थान में लेश्या होती है❓
🅰नहीं अलेशी हो जाते हैं❗
4⃣कृष्ण लेश्या का रस केसा है❓
🅰कृष्ण लेश्या का रस अत्यंत कड़वा है❗
5⃣लेश्या का वर्णन किस
आगम में है❓
🅰 उत्तराध्ययन सूत्र में ❗
1⃣लेश्या जीव है या अजीव❓
🅰️ अजीव ❗
2⃣ द्रव्य लेश्या किसे कहते है❓
🅰️ जिनसे जीव के परिणामों की स्थिति बनती है❗
3⃣धर्म ओर लेश्या की प्राप्ति में क्या अंतर है❓
🅰️ धर्म की प्राप्ति अंतर्गत पुरुषार्थ से होती है लेश्या की प्राप्ति सहज में हो जाती है❗
4⃣दो लेश्या किन में पाई जाती है ❓
🅰तीसरी नरक में कपोत ओर नील❗
5 वी में नरक मेंनील ओर कृष्ण❗
5⃣कृष्ण लेश्या की स्थिति कितनी ❓
🅰 जघन्य अन्तर मुहूर्त उत्कृष्ट 33 सागरोपम❗
6⃣ लेश्या किसे कहते है ❓
🅰योग ओर कसाय कि तरंग से उत्पन्न होने वाले जीव के शुभाशुभ परिणाम को लेश्या कहते है❗
7⃣भाव लेश्या,किसे कहते है ❓🅰जीव के चिंतन परिणाम विचार आदि को भाव लेश्या कहते है❗
8⃣छह लेश्या को किन दो भागो में विभक्त किया गया है❓
🅰प्रशस्त , अप्रशस्त❗
9⃣ समुच्चय जीव में कितनी लेश्या पाई जाती है❓
🅰छह ❗
🔟पहले भाव लेश्या आती है या द्रव्य लेश्या आती है❓
🅰पहले भाव लेश्या आती है फिर द्रव्य लेश्या आती है❗
लेश्या भी है और वासुदेव भी है
Ans,,,✅
कृष्ण लेश्या ओर
कृष्ण वासुदेव,👍🌺
उत्तर 'हाँ' अथवा 'नहीं' में दीजिए :
देवी में 6 लेश्या पायी जाती हैं
नहीं
केवलज्ञान कौन सी लेश्या में होता है?
परम शुक्ल
लेश्या जीव है या अजीव❓
✅
🅰️ अजीव ❗
लेश्या कितनी होती हैं, उनका लक्षण क्या है, किस गति में कितनी लेश्या होती हैं। इसका वर्णन इस अध्याय में है।
1. लेश्या के मूल में कितने भेद हैं ?
लेश्या के दो भेद हैं-द्रव्य लेश्या और भाव लेश्या।
2. द्रव्य लेश्या किसे कहते हैं ?
वर्णनामकर्म के उदय से उत्पन्न हुआ जो शरीर का वर्ण है, उसको द्रव्य लेश्या कहते हैं। (गोजी,494)
3. भाव लेश्या किसे कहते हैं ?
- "कषायोदयरंजिता योग प्रवृतिरितिकृत्वा औदयिकीत्युच्यते" | कषाय के उदय से अनुरंजित योग की प्रवृत्ति को भाव लेश्या कहते हैं। इसलिए वह औदयिकी कही जाती है। (रावा, 2/6/8)
- कषाय से अनुरंजित मन,वचन और काय की प्रवृत्ति को भाव लेश्या कहते हैं।
- "लिम्पतीति लेश्या" - जो लिम्पन करती है, उसको लेश्या कहते हैं। अर्थात् जो कर्मों से आत्मा को लिप्त करती है, उसको भाव लेश्या कहते हैं।
- संसारी आत्मा के भावों को (परिणामों को) भाव लेश्या कहते हैं। अन्य दर्शनकार इसे चित्तवृत्ति कहते हैं। वैज्ञानिकों ने इसे आभामण्डल कहा है।
4. द्रव्य एवं भाव लेश्या के भेद कितने हैं ?
द्रव्य एवं भाव लेश्या के छ:भेद हैं - कृष्ण, नील, कापोत, पीत, पद्म एवं शुक्ल लेश्या। (गोजी,493)
5. कृष्णादि भाव लेश्याओं के लक्षण बताइए ?
- कृष्ण लेश्या - तीव्र क्रोध करने वाला हो, शत्रुता को न छोड़ने वाला हो, लड़ना जिसका स्वभाव हो, धर्म और दया से रहित हो, दुष्ट हो, दोगला हो, विषयों में लम्पट हो आदि यह सब कृष्ण लेश्या वाले के लक्षण हैं। (ध.पु., 1/390)
- नील लेश्या - बहुत निद्रालु हो, परवंचना में दक्ष हो, अतिलोभी हो, आहारादि संज्ञाओं में आसक्त हो आदि नील लेश्या वाले के लक्षण हैं।
- कापोत लेश्या - दूसरों के ऊपर रोष करता हो, निन्दा करता हो, दूसरों से ईष्र्या रखता हो, पर का पराभव करता हो, अपनी प्रशंसा करता हो, पर का विश्वास न करता हो, प्रशंसक को धन देता हो आदि कापोत लेश्या वाले के लक्षण हैं।
- पीत लेश्या - जो अपने कर्तव्य-अकर्तव्य, सेव्य-असेव्य को जानता हो, दया और दान में रत हो,मृदुभाषी हो, दृढ़ता रखने वाला हो आदि पीत लेश्या वाले के लक्षण हैं।
- पद्म लेश्या - जो त्यागी हो, भद्र हो, सच्चा हो, साधुजनों की पूजा में तत्पर हो, उत्तम कार्य करने वाला हो, बहुत अपराध या हानि पहुँचाने वाले को भी क्षमा कर दे आदि पद्म लेश्या वाले के लक्षण हैं।
- शुक्ल लेश्या - जो शत्रु के दोषों पर भी दृष्टि न देने वाला हो, जिसे पर से राग-द्वेष व स्नेह न हो,पाप कार्यों से उदासीन हो, श्रेयो कार्य में रुचि रखने वाला हो, जो पक्षपात न करता हो और न निदान करता हो, सबमें समान व्यवहार करता हो आदि शुक्ल लेश्या वाले के लक्षण हैं।
6. छ: लेश्याओं में से कितनी शुभ एवं कितनी अशुभ हैं ?
कृष्ण, नील, कापोत लेश्याएँ अशुभ एवं पीत, पद्म, शुक्ल लेश्याएँ शुभ हैं।
7. तीव्रतम, तीव्रतर, तीव्र, मन्द, मन्दतर, मन्दतम लेश्याएँ कौन-कौन सी हैं ?
तीव्रतम-कृष्ण लेश्या, तीव्रतर-नील लेश्या, तीव्र-कापोत लेश्या, मन्द-पीत लेश्या,मन्दतर-पद्म लेश्या एवं मन्दतम-शुक्ल लेश्या है। (गो.जी., 500)
8. लेश्याओं के दृष्टान्त क्या हैं ?
छ: मनुष्य यात्रा को निकले, खाने को पास में कुछ भी नहीं था। सामने एक वृक्ष दिखा। उनके परिणाम कैसे-कैसे हुए। देखिए -
- कृष्ण लेश्या वाला कहता है कि जड़ से वृक्ष को उखाड़ो, तब फल खाएंगे।
- नील लेश्या वाला कहता है कि स्कन्ध (तने) को तोड़ो, तब फल खाएंगे।
- कापोत लेश्या वाला कहता है कि शाखा को तोड़ो तब फल खाएंगे।
- पीत लेश्या वाला कहता है कि उपशाखा को तोड़ो तब फल खाएंगे।
- पद्म लेश्या वाला कहता है कि फलों को तोड़कर खाएंगे।
- शुक्ल लेश्या वाला कहता है कि जो फल अपने आप जमीन पर गिर रहे हैं, उन्हें खाकर अपनी क्षुधा को शान्त करेंगे। (गो.जी., 507-508
9. कौन-सी लेश्या कौन-से गुणस्थान तक रहती है ?
कृष्ण, नील और कापोत लेश्या प्रथम गुणस्थान से चतुर्थ गुणस्थान तक एवं पीत और पद्म लेश्या प्रथम गुणस्थान से सप्तम गुणस्थान तक तथा शुक्ल लेश्या प्रथम गुणस्थान से तेरहवें गुणस्थान तक। (ध.पु., 1/137-139,392-393)
10. नरकगति में कौन-कौन-सी लेश्याएँ होती हैं ?
नरकगति में 3 अशुभ लेश्याएँ होती हैं। प्रथम एवं दूसरी पृथ्वी में कापोत लेश्या। तीसरी पृथ्वी में कापोत एवं नील लेश्या। चौथी पृथ्वी में नील लेश्या। पाँचवीं पृथ्वी में नील एवं कृष्ण लेश्या। छठवीं पृथ्वी में कृष्ण लेश्या एवं सप्तम पृथ्वी में परम कृष्ण लेश्या होती है। (स.सि. 3/3/371)
11. देवगति में कौन-कौन सी लेश्याएँ होती हैं ?
देवगति में 6 लेश्याएँ होती हैं।
भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवों में अपर्याप्त अवस्था में कृष्ण, नील और कापोत लेश्याएँ होती हैं एवं पर्याप्त अवस्था में जघन्य पीत लेश्या होती है। (धपु, 2/545)
- सौधर्म एवं ऐशान स्वर्ग के देवों में मध्यम पीत लेश्या होती है।
- सानत्कुमार एवं माहेन्द्र स्वर्ग के देवों में उत्कृष्ट पीत एवं जघन्य पद्म लेश्या होती है।
- ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर, लान्तव-कापिष्ठ एवं शुक्र-महाशुक्र स्वर्ग के देवों में मध्यम पद्म लेश्या होती है।
- शतार एवं सहस्रार स्वर्ग के देवों में उत्कृष्ट पद्म एवं जघन्य शुक्ल लेश्या होती है।
- आनत से नवग्रैवेयक-तक के देवों में मध्यम शुक्ल लेश्या होती है।
- नव अनुदिश एवं पञ्च अनुतरों के देवों में उत्कृष्ट शुक्ल लेश्या होती है। (धपु, 2/545–567)
विशेष -
- सौधर्म-ऐशान कल्प में पीत लेश्या होती है। सानत्कुमार-माहेन्द्र कल्प में पीत और पद्म दो लेश्याएँ होती हैं। ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर, लान्तव-कापिष्ठ कल्पों में पद्म लेश्या होती है। शुक्र-महाशुक्र, शतारसहस्रार कल्पों में पद्म और शुक्ल लेश्या होती हैं। आनत-प्राणत, आरण-अच्युत कल्पों में शुक्ल लेश्या होती है। नवग्रैवेयक में शुक्ल लेश्या होती है। नव अनुदिश एवं पञ्च अनुत्तर विमानों में परम शुक्ल लेश्या होती है। (स सि,4/22/485)
- सौधर्म स्वर्ग से पञ्च अनुत्तर विमानों तक पर्याप्त एवं अपर्याप्त दोनों अवस्था में एक-सी भाव लेश्या होती है।
12. मनुष्यगति में कौन-कौन-सी लेश्याएँ होती हैं ?
मनुष्यगति में सभी छ: लेश्याएँ होती हैं।
13. तिर्यञ्चगति में कौन-कौन-सी लेश्याएँ होती हैं ?
तिर्यञ्चगति में सभी छ: लेश्याएँ होती हैं किन्तु एकेन्द्रिय, दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय, चार इन्द्रिय एवं असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय में 3 अशुभ अर्थात् कृष्ण, नील और कापोत लेश्याएँ होती हैं। (धपु., 1/393)
14. भोगभूमि के मनुष्यों एवं तिर्यञ्चों में कौन-कौन-सी लेश्याएँ होती हैं ?
छ: लेश्याएँ होती हैं-विशेष यह है कि पर्याप्त अवस्था में तीन शुभ लेश्याएँ एवं अपर्याप्त अवस्था में तीन अशुभ लेश्याएँ होती हैं।
15. नारकियों की द्रव्य लेश्या कौन-सी होती है ?
सभी नारकी कृष्ण लेश्या वाले होते हैं। (धपु.2/458)
नरक मे लेश्या कितनी होती है ?
🅰️☑️तीन - कृष्ण ,नील और कपोत ।🙏
16. पर्याप्त भवनत्रिक के देवों की द्रव्य से कितनी लेश्याएँ होती हैं ?
पर्याप्त भवनत्रिक देवों की द्रव्य से छ: लेश्याएँ होती हैं। (ध.पु. 2/547)
17. पर्याप्त वैमानिक देवों में द्रव्य से कौन-सी लेश्या रहती हैं ?
पर्याप्त वैमानिक देवों में द्रव्य एवं भाव लेश्या समान होती हैं। (गो.जी., 496)
18. अपर्याप्त अवस्था में द्रव्य लेश्या कौन-सी होती हैं ?
अपर्याप्त अवस्था में शुक्ल एवं कापोत लेश्या होती है। सम्पूर्ण कर्मों का विस्रसोपचय शुक्ल ही होता है, इसलिए विग्रहगति में विद्यमान सम्पूर्ण जीवों के शरीर की शुक्ल लेश्या होती है। तदनन्तर शरीर को ग्रहण करके जब तक पर्याप्तियों को पूर्ण करता है तब तक छ: वर्ण वाले परमाणुओं के पुज्जों से शरीर की उत्पत्ति होती है, इसलिए उस शरीर की कापोत लेश्या कही जाती है। (ध.पु. 2/426)
19. मनुष्य एवं तिर्यञ्चों में द्रव्य लेश्याएँ कितनी होती हैं ?
मनुष्य एवं तिर्यच्चों में छ: लेश्याएँ होती है। (गो.जी., 496
6 लेश्याओं के लक्षण से अपने को पहिचानो-
कृष्ण, नील, कापोत ये तीन लेश्या अशुभ है और तेजो, पद्म, शुक्ल ये तीन लेश्या शुभ है। अथवा तीन अधर्म लेश्याएँ हैं वे जीव को दुर्गति में ले जाने वाली है और तीन धर्म लेश्याएँ हैं वे जीव को सद्गति में ले जाने वाली है।
लेश्याएँ द्रव्य और भाव दोनों प्रकार की होती है। भावलेश्या तो आत्मा के परिणाम अर्थात् अध्यवसाय रूप है, जो अरूपी है l द्रव्यलेश्या पुद्गलमय होने से रूपी है उसके वर्ण, गंध, रस, स्पर्श, परिणाम, स्थान, स्थिति आदि का उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन-३४में वर्णन किया गया है तथा भावलेश्या की अपेक्षा-लक्षण, गति, आयुबंध का वर्णन किया गया है l
(1) कृष्ण लेश्या का लक्षण- पाँच आश्रवों में प्रवृत्त, अगुप्त, अविरत, तीव्र भावों से आरंभ में प्रवृत्त, निर्दय, क्रूर, अजितेन्द्रिय, ऐसे अपने परिणाम हों तो कृष्ण लेश्या समझना चाहिये।
(2) नील लेश्या का लक्षण- ईर्ष्यालु, कदाग्रही, अज्ञानी, मायावी, निर्लज्ज, गद्ध, धूर्त, प्रमादी, रसलोलुप, सुखैशी, अविरत, क्षुद्र स्वभावी, ऐसे अपने परिणाम हों तो नील लेश्या समझना चाहिये।
(3) कापोत लेश्या का लक्षण- वक्र, वक्राचरण बाला, कपटी, सरलता से रहित, दोषों को छिपाने वाला, मिथ्यादृष्टि, अनार्य, हंसोड़, दुष्टवादी, चोर, मत्सर-भाव वाला, ऐसे अपने परिणाम हो तो कापोत लेश्या समझना चाहिये।
(4) तेजो लेश्या का लक्षण- नम्रवृत्ति, अचपल, माया रहित, कुतूहल रहित, विनय, दमितात्मा, समाधिवान, प्रियधर्मी, दृढ़धर्मी, ऐसे अपने परिणाम हों तो तेजोलेश्या समझना चाहिये।
(5) पद्म लेश्या का लक्षण- क्रोध,मान,माया,लोभ अत्यंत अल्प हों, प्रशांत चित्त, दमितात्मा, तपस्वी, अत्यल्प भाषी, उपशांत, जितेन्द्रिय, ऐसे अपने परिणाम हों तो पद्म लेश्या समझना चाहिये।
(6) शुक्ल लेश्या का लक्षण- आर्तरौद्र ध्यान को छोड़कर धर्म और शुक्लध्यान में लीन, प्रशांत चित्त, दमितात्मा, समितिवंत, गुप्तिवंत, उपशांत, जितेन्द्रिय, इन गुणों से युक्त, सराग हो या वीतराग, ऐसे अपने परिणाम हों तो शुक्ल लेश्या समझना चाहिये।
इन परिणामों की अवस्थाओं का अनुशीलन कर तीन शुभ लेश्या के परिणामों में रहने का प्रयत्न करना चाहिये और 3 अशुभ लेश्याओं के परिणामों से यथाशक्य दूर रहना चाहिये l अशुभ लेश्या में अशुभ कर्म और अशुभ आयुष्य का बंध होता है तथा अशुभ लेश्या के परिणामों में संयम भाव ज्यादा समय टिकता नहीं है वह असंयम में परिणत हो जाता है l इसलिये तीन शुभ लेश्याओं का साधक जीवन में अत्यधिक महत्त्व है l
संयम के मूलगुण या उत्तर गुण में दोष लगाने वाला साधक तीन अशुभ लेश्याओं के लक्षण में विद्यमान हो तो उसका संयम नष्ट हो जाता है वह तत्काल असंयम में चला जाता है। निर्दोष संयम का पालन करने वाले साधकों को ६ हों लेश्या में संयम रह सकता है l अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान, विशिष्ट लब्धि आदि की उत्पत्ति तीन शुभ लेश्याओं में ही होती है l
वैमानिक देवों में उत्पन्न होने वाले तिर्यंच मनुष्यों के शुभ लेश्या होती है, अशुभ लेश्याओं में मरने वाला वैमानिक देवों में नहीं जाता है l सातवाँ गुणस्थान भी तीन शुभ लेश्याओं में ही होता है l अत: प्रत्येक साधक को ये उपरोक्त लेश्याओं के लक्षणों को सही रूप में समझ कर अनुभव में ले लेना चाहिये l
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