कथा अनाथीमुनी
. *।। श्रीमहावीराय नमः।।*
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*🔸🔸श्री उत्तराध्ययन सूत्र🔸🔸*
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. *महानिर्ग्रन्थीय (अनाथीमुनी)*
( बीसवां अध्ययन)
🔸🔹🔸🔹🔸🔹🔸🔹🔸🔹
*🙏प्रस्तुत अध्ययन में महानिर्ग्रन्थ अनाथीमुनि की कथा है।इसमें अनाथीमुनि और श्रेणिक राजा का संवाद वर्णित है।*
*☝️एक बार मगध देश का सम्राट श्रेणिक अपने परिवार सहित राजगृह के बाहर पर्वत की तलहटी में बने विशाल मण्डितकुक्षि नामक क्रिड़ा-उद्यान में घूमने के लिए गये।घूम-फिर कर उन्होंने उद्यान की शोभा निहारी।देखते-देखते उनकी आंखें वृक्ष के मूल में कायोत्सर्ग में ध्यानस्थ मुनि के दिव्य और भव्य रूप पर जा टिकीं।राजा उनको देखकर आश्चर्यमग्न हो गया।*
*👏राजा ने वन्दन नमन् कर सविनय पूछा--*
*☝️महामुनि आप कौन है ?*
*☝️ इस तरुण और सुख भोगोचित अवस्था में आप मुनि क्यों बन गए ?*
*☝️क्या किसी अभाव से प्रेरित होकर आप मुनि बने हैं ?*
*🙏मुनि ने नपे तुले शब्दों में कहा--*
*"राजन् ! मैं अनाथ हूँ।मेरा कोई नाथ नहीं है, त्राण नहीं है।इसलिए मैं मुनि बन गया हूँ।*
~~~~~~~~~~~~~~~~~~
*मुनि के रूप लावण्य तथा व्यक्तित्व को देखते हुए श्रेणिक राजा को सहसा इस उत्तर पर विश्वास नहीं हुआ।उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा--*
*☝️यदि ऐसा है तो लो,मैं आपका नाथ बनता हूँ।आपको समस्त सुखभोग उपलब्ध करा देता हूँ।मनुष्य भव बार-बार नहीं मिलता।आप मेरे साथ चलें।सुखपूर्वक भोग भोगें।*
*🙏मुनि ने कहा---*
*राजन् ! आप स्वयं अनाथ हैं, फिर दूसरे के नाथ कैसे बन सकते हैं ?*
~~~~~~~~~~~~~~~~~~
*राजा इस अप्रत्याशित उत्तर को सुनकर और भी आश्चर्य में मग्न होते हुए बोला---*
*☝️आप कैसी बात कर रहे हैं ? मैं मगध का सम्राट हूँ।मेरे पास धन-सम्पत्ति है, ऐश्वर्य, सता, सेना ,शासन, नौकर-चाकर आदि सुखभोग के सभी साधन उपलब्ध है।फिर मैं अनाथ कैसे ?*
*🙏मुनि ने कहा---*
*राजन् ! आप सनाथ-अनाथ के रहस्य को नहीं समझते, केवल धन-सम्पत्ति आदि होने मात्र से कोई सनाथ नहीं हो जाता।आप जब समझ लेंगे तब आपको स्वयं ज्ञात हो जाएगा कि आप अनाथ है या सनाथ ! मैं अपनी आपबीती सुनाता हूँ...*
☝️मैं कोशाम्बी नगरी में रहता था।मेरे पिता अपार धन-सम्पत्ति के स्वामी थे।हमारा कुल सम्पन्न था।मेरा विवाह उच्च कुल में हुआ था।एक बार मुझे असह्य नैत्र-पीड़ा उत्पन्न हुई।मेरे पिताजी ने पानी की तरह पैसा बहाकर मेरी चिकित्सा के लिए वैद्य, मंत्रवादी, यंत्रवादी आदि बुलाए।उनके सब प्रयत्न व्यर्थ हूए।मेरी माता, मेरी सगी बहनें, भाई सब मिलकर रोगनिवारण के प्रयत्न में जुट गये।परन्तु वे किसी तरह मेरी पीड़ा नहीं मिटा सके।मेरी पत्नी रात दिन मेरी सेवा-सुश्रूषा में जुटी रहती, परन्तु वह भी मुझे स्वस्थ न कर सकी।कोई मेरी वेदना को मिटा नहीं सका।मुझे कोई भी उससे बचा न सका, *यह मेरी अनाथता थी।*
☝️एक दिन रोग-शय्या पर पड़े-पड़े मैंने निर्णय किया कि "धन, परिवार वैद्य आदि सब शरण मिथ्या है।मुझे इन आश्रयों का भरोसा छोडे बिना शान्ति प्राप्त नहीं हो सकती। मुझे श्रमण धर्म का एकमात्र आश्रय लेकर दु:ख के बीजों--कर्मों को निर्मूल कर देना चाहिए।" *मैंने संकल्प लिया.... यदि इस पीड़ा से मैं मुक्त हो गया तो प्रभात होते ही निर्ग्रन्थ मुनि बन जाउंगा।इस दृढ़ संकल्प के साथ मैं सो गया।*
*☝️धीरे-धीरे मेरा रोग स्वतः शान्त हो गया।सूर्योदय होते-होते मैं पूर्ण स्वस्थ हो गया।*
🙏अत: प्रातःकाल ही मैंने अपने समस्त परिजनों के समक्ष अपना संकल्प दोहराया और उनसे अनुमति लेकर प्रव्रजित होकर...
*☝️ मैं सभी प्राणियों का नाथ बन गया।उन सबको मुझसे त्राण मिल गया---यह है मेरी सनाथता।*
*☝️मैंने आत्मा पर शासन किया---यह है मेरी सनाथता।*
*☝️मैं श्रामण्य का विधिपूर्वक पालन करता हूँ--- यह है मेरी सनाथता।*
~~~~~~~~~~~~~~~~~~
*🙏मुनि ने अनाथता के और भी लक्षण बताए,जैसे कि...*
*☝️ निर्ग्रन्थ धर्म को पाकर उसके पालन से कतराना।*
*☝️ महाव्रतों को अंगीकार कर उनका सम्यक् पालन न करना।*
*☝️ इन्द्रियनिग्रह न करना।*
*☝️ रसलोलुपता रखना।*
*☝️ रागद्वेषादि बन्धनों का उच्छैद न करना।*
*☝️पंचसमिति-त्रिगुप्ति का उपयोग पूर्वक पालन न करना।*
*☝️ अहिंसादि व्रतों, नियमों एवं तपस्या से भ्रष्ट हो जाना।*
*☝️ मस्तक मुंडा कर भी साधु धर्म का आचरण न करना।*
*☝️ केवल वेष एवं चिन्ह के सहारे जीविका चलाना।*
*☝️ अनेषणीय, अप्रासुक आहारादि कि उपयोग करना।*
*☝️ संयमी और ब्रह्मचारी न होते हुए भी स्वयं को संयमी और ब्रह्मचारी बताना आदि।*
*👉 इन अनाथताओं का दुष्परिणाम भी मुनि ने साथ-साथ बता दिया।*
~~~~~~~~~~~~~~~~~~
*☝️ राजा ने अनाथ और सनाथ का यह अर्थ पहली बार सुना। राजा अत्यंत संतुष्ट एवं प्रभावित हुआ। उसके ज्ञान-चक्षु खुले। वह सनाथ-अनाथ का रहस्य समझ गया।उसने स्वीकार किया कि वास्तव मे मैं अनाथ हूँ और तब श्रद्धापूर्वक मुनि के चरणों में वन्दना करते हुए सारा परिवार धर्म में अनुरक्त हो गया।राजा ने मुनि से अपने अपराध के लिए क्षमा मांगी। पुनः वन्दना, स्तुति, भक्ति एवं प्रदक्षिणा करके मगधेश श्रेणिक लौट गया।*
*☝️अनाथी मुनि के सम्पर्क से ही राजा श्रेणिक को सम्यक्त्व की प्राप्ति हुई।*
*☝️ श्रेणिक के धर्मक्षेत्र आश्रित उपकारी...*
1.चेटकपुत्री महारानी चेलना,
2.अनाथीमुनि और
3.महावीर स्वामी थे।
*🙏इस अध्ययन का शिक्षा-सार*🙏
*☝️ऐश्वर्य का अंबार लगने से और विराट परिवार होने से कोई नाथ नहीं होता।*
*🙏 नाथ वही है, जो छहकाय जीवों का रक्षक है।*
*🙏 उपरोक्त कथानक पर चिन्तन करें तो सहज ही हमारी बाह्य दृष्टि अंतर की ओर मुड़ सकती है।*
*☝️इस अध्ययन में आए दो श्लोकों पर विशेष ध्यान देकर आत्मज्ञान प्राप्त किया जा सकता है...*
अप्पा नई वेयरणी अप्पा में कूडसामली।
अप्पा कामदुहा धैणू अप्पा मे नंदणं वणं।।36।।
*मेरी आत्मा ही वैतरणी नदी है और आत्मा ही कूटशाल्मली वृक्ष है, आत्मा ही कामदुधा धेनु है और आत्मा ही नन्दन वन है।*
अप्पा कत्ता विकत्ता य दुहाण य सुहाण य।
अप्पा मित्तममित्तं च दुप्पट्ठियसुपट्ठिओ।।37।।
*आत्मा ही दु:ख-सुख की करनेवाली और उनका क्षय करनेवाली है।सत्प्रवृत्ति में लगी हुई आत्मा ही मित्र है और दुष्प्रवृत्ति में लगी हुई आत्मा ही शत्रु है।*
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🙏🙏
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*🔸🔸श्री उत्तराध्ययन सूत्र🔸🔸*
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. *महानिर्ग्रन्थीय (अनाथीमुनी)*
( बीसवां अध्ययन)
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*🙏प्रस्तुत अध्ययन में महानिर्ग्रन्थ अनाथीमुनि की कथा है।इसमें अनाथीमुनि और श्रेणिक राजा का संवाद वर्णित है।*
*☝️एक बार मगध देश का सम्राट श्रेणिक अपने परिवार सहित राजगृह के बाहर पर्वत की तलहटी में बने विशाल मण्डितकुक्षि नामक क्रिड़ा-उद्यान में घूमने के लिए गये।घूम-फिर कर उन्होंने उद्यान की शोभा निहारी।देखते-देखते उनकी आंखें वृक्ष के मूल में कायोत्सर्ग में ध्यानस्थ मुनि के दिव्य और भव्य रूप पर जा टिकीं।राजा उनको देखकर आश्चर्यमग्न हो गया।*
*👏राजा ने वन्दन नमन् कर सविनय पूछा--*
*☝️महामुनि आप कौन है ?*
*☝️ इस तरुण और सुख भोगोचित अवस्था में आप मुनि क्यों बन गए ?*
*☝️क्या किसी अभाव से प्रेरित होकर आप मुनि बने हैं ?*
*🙏मुनि ने नपे तुले शब्दों में कहा--*
*"राजन् ! मैं अनाथ हूँ।मेरा कोई नाथ नहीं है, त्राण नहीं है।इसलिए मैं मुनि बन गया हूँ।*
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*मुनि के रूप लावण्य तथा व्यक्तित्व को देखते हुए श्रेणिक राजा को सहसा इस उत्तर पर विश्वास नहीं हुआ।उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा--*
*☝️यदि ऐसा है तो लो,मैं आपका नाथ बनता हूँ।आपको समस्त सुखभोग उपलब्ध करा देता हूँ।मनुष्य भव बार-बार नहीं मिलता।आप मेरे साथ चलें।सुखपूर्वक भोग भोगें।*
*🙏मुनि ने कहा---*
*राजन् ! आप स्वयं अनाथ हैं, फिर दूसरे के नाथ कैसे बन सकते हैं ?*
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*राजा इस अप्रत्याशित उत्तर को सुनकर और भी आश्चर्य में मग्न होते हुए बोला---*
*☝️आप कैसी बात कर रहे हैं ? मैं मगध का सम्राट हूँ।मेरे पास धन-सम्पत्ति है, ऐश्वर्य, सता, सेना ,शासन, नौकर-चाकर आदि सुखभोग के सभी साधन उपलब्ध है।फिर मैं अनाथ कैसे ?*
*🙏मुनि ने कहा---*
*राजन् ! आप सनाथ-अनाथ के रहस्य को नहीं समझते, केवल धन-सम्पत्ति आदि होने मात्र से कोई सनाथ नहीं हो जाता।आप जब समझ लेंगे तब आपको स्वयं ज्ञात हो जाएगा कि आप अनाथ है या सनाथ ! मैं अपनी आपबीती सुनाता हूँ...*
☝️मैं कोशाम्बी नगरी में रहता था।मेरे पिता अपार धन-सम्पत्ति के स्वामी थे।हमारा कुल सम्पन्न था।मेरा विवाह उच्च कुल में हुआ था।एक बार मुझे असह्य नैत्र-पीड़ा उत्पन्न हुई।मेरे पिताजी ने पानी की तरह पैसा बहाकर मेरी चिकित्सा के लिए वैद्य, मंत्रवादी, यंत्रवादी आदि बुलाए।उनके सब प्रयत्न व्यर्थ हूए।मेरी माता, मेरी सगी बहनें, भाई सब मिलकर रोगनिवारण के प्रयत्न में जुट गये।परन्तु वे किसी तरह मेरी पीड़ा नहीं मिटा सके।मेरी पत्नी रात दिन मेरी सेवा-सुश्रूषा में जुटी रहती, परन्तु वह भी मुझे स्वस्थ न कर सकी।कोई मेरी वेदना को मिटा नहीं सका।मुझे कोई भी उससे बचा न सका, *यह मेरी अनाथता थी।*
☝️एक दिन रोग-शय्या पर पड़े-पड़े मैंने निर्णय किया कि "धन, परिवार वैद्य आदि सब शरण मिथ्या है।मुझे इन आश्रयों का भरोसा छोडे बिना शान्ति प्राप्त नहीं हो सकती। मुझे श्रमण धर्म का एकमात्र आश्रय लेकर दु:ख के बीजों--कर्मों को निर्मूल कर देना चाहिए।" *मैंने संकल्प लिया.... यदि इस पीड़ा से मैं मुक्त हो गया तो प्रभात होते ही निर्ग्रन्थ मुनि बन जाउंगा।इस दृढ़ संकल्प के साथ मैं सो गया।*
*☝️धीरे-धीरे मेरा रोग स्वतः शान्त हो गया।सूर्योदय होते-होते मैं पूर्ण स्वस्थ हो गया।*
🙏अत: प्रातःकाल ही मैंने अपने समस्त परिजनों के समक्ष अपना संकल्प दोहराया और उनसे अनुमति लेकर प्रव्रजित होकर...
*☝️ मैं सभी प्राणियों का नाथ बन गया।उन सबको मुझसे त्राण मिल गया---यह है मेरी सनाथता।*
*☝️मैंने आत्मा पर शासन किया---यह है मेरी सनाथता।*
*☝️मैं श्रामण्य का विधिपूर्वक पालन करता हूँ--- यह है मेरी सनाथता।*
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*🙏मुनि ने अनाथता के और भी लक्षण बताए,जैसे कि...*
*☝️ निर्ग्रन्थ धर्म को पाकर उसके पालन से कतराना।*
*☝️ महाव्रतों को अंगीकार कर उनका सम्यक् पालन न करना।*
*☝️ इन्द्रियनिग्रह न करना।*
*☝️ रसलोलुपता रखना।*
*☝️ रागद्वेषादि बन्धनों का उच्छैद न करना।*
*☝️पंचसमिति-त्रिगुप्ति का उपयोग पूर्वक पालन न करना।*
*☝️ अहिंसादि व्रतों, नियमों एवं तपस्या से भ्रष्ट हो जाना।*
*☝️ मस्तक मुंडा कर भी साधु धर्म का आचरण न करना।*
*☝️ केवल वेष एवं चिन्ह के सहारे जीविका चलाना।*
*☝️ अनेषणीय, अप्रासुक आहारादि कि उपयोग करना।*
*☝️ संयमी और ब्रह्मचारी न होते हुए भी स्वयं को संयमी और ब्रह्मचारी बताना आदि।*
*👉 इन अनाथताओं का दुष्परिणाम भी मुनि ने साथ-साथ बता दिया।*
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*☝️ राजा ने अनाथ और सनाथ का यह अर्थ पहली बार सुना। राजा अत्यंत संतुष्ट एवं प्रभावित हुआ। उसके ज्ञान-चक्षु खुले। वह सनाथ-अनाथ का रहस्य समझ गया।उसने स्वीकार किया कि वास्तव मे मैं अनाथ हूँ और तब श्रद्धापूर्वक मुनि के चरणों में वन्दना करते हुए सारा परिवार धर्म में अनुरक्त हो गया।राजा ने मुनि से अपने अपराध के लिए क्षमा मांगी। पुनः वन्दना, स्तुति, भक्ति एवं प्रदक्षिणा करके मगधेश श्रेणिक लौट गया।*
*☝️अनाथी मुनि के सम्पर्क से ही राजा श्रेणिक को सम्यक्त्व की प्राप्ति हुई।*
*☝️ श्रेणिक के धर्मक्षेत्र आश्रित उपकारी...*
1.चेटकपुत्री महारानी चेलना,
2.अनाथीमुनि और
3.महावीर स्वामी थे।
*🙏इस अध्ययन का शिक्षा-सार*🙏
*☝️ऐश्वर्य का अंबार लगने से और विराट परिवार होने से कोई नाथ नहीं होता।*
*🙏 नाथ वही है, जो छहकाय जीवों का रक्षक है।*
*🙏 उपरोक्त कथानक पर चिन्तन करें तो सहज ही हमारी बाह्य दृष्टि अंतर की ओर मुड़ सकती है।*
*☝️इस अध्ययन में आए दो श्लोकों पर विशेष ध्यान देकर आत्मज्ञान प्राप्त किया जा सकता है...*
अप्पा नई वेयरणी अप्पा में कूडसामली।
अप्पा कामदुहा धैणू अप्पा मे नंदणं वणं।।36।।
*मेरी आत्मा ही वैतरणी नदी है और आत्मा ही कूटशाल्मली वृक्ष है, आत्मा ही कामदुधा धेनु है और आत्मा ही नन्दन वन है।*
अप्पा कत्ता विकत्ता य दुहाण य सुहाण य।
अप्पा मित्तममित्तं च दुप्पट्ठियसुपट्ठिओ।।37।।
*आत्मा ही दु:ख-सुख की करनेवाली और उनका क्षय करनेवाली है।सत्प्रवृत्ति में लगी हुई आत्मा ही मित्र है और दुष्प्रवृत्ति में लगी हुई आत्मा ही शत्रु है।*
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