अधर्म से होता -पुण्य नष्ट*
*अधर्म से होता -पुण्य नष्ट*
*
श्री कृष्ण ,जब महाभारत के युद्ध के बाद लौटे तो रुक्मिणी ने रोष में श्री कृष्ण से पूछा, युद्ध में आपने द्रोणाचार्य और भीष्म पितामह जैसे धर्म परायण लोगों के वध में क्यों साथ दिया?
इस पर श्री कृष्ण ने उत्तर दिया, देवी! यह सही है। कि वे दोनों धर्म परायण थे। और दोनों ने ही पूरे जीवन धर्म का पालन किया, लेकिन उसके किए एक पाप ने उनके सारे पुण्यो पर पानी फेर दिया।
ये सुनकर रुक्मिणी चौंक गई। और पूछा की उन दोनों ने कौन से पाप किये थे?
श्री कृष्ण ने कहा-जब भरी सभा में द्रोपदी का चीर -हरण हो रहा था, तब यह दोनों भी वहां उपस्थित थे। और बड़े होने के नाते ये दुशासन को ऐसा न करने की आज्ञा दे सकते थे। किंतु दोनों ही उस वक्त चुप रहे और अंजाने में ही अधर्म का साथ दिया। उस उनके इस एक पापा के आगे, धर्म निष्ठता छोटी पड़ गई और मुझे भी धर्म का पालन करते हुए उनके वध में पांडवों का साथ देना पड़ा।
इसके बाद रुक्मिणी ने श्री कृष्ण से पूछा उन्होंने कर्ण के वध में क्यों साथ दिया, जबकि वह तो अपनी दानवीरता के लिए प्रसिद्ध था? कोई कभी भी उसके द्वार से खाली हाथ नहीं गया, उसकी क्या गलती थी?
श्री कृष्ण ने कहा-वस्तुतः वो अपनी दानवीरता के लिए विख्यात था। और उसने कभी किसी को ना नहीं किया किंतु जब अभिमन्यु सभी युद्ध वीरो को धूल चटाने के बाद युद्ध क्षेत्र में आहत हुआ, भूमि पर पड़ा था । तो उसने कर्ण से, जो उसके पास खड़ा था, पानी मांगा।
कर्ण जहां खड़ा था, उसके पास पानी का गड्ढा था। किंतु कर्ण ने मरते हुए अभिमन्यु को पानी नहीं दिया। इसलिए उसका जीवन भर दानवीरता से कमाया हुआ, पुण्य नष्ट हो गया। बाद में उसी गड्ढे में उसके रथ का पहिया फंस गया और वो मारा गया।
रुक्मिणी को सारी बात समझ आ गई।
*शिक्षा*-अक्सर ऐसा होता है। की हमारे आसपास कुछ गलत हो रहा होता है। और हम कुछ नहीं करते।
हम सोचते हैं। की इस पाप के भागी हम नहीं हैं। किंतु मदद करने की स्थिति में होते हुए, भी कुछ न करने से, हम भी उस पाप के बराबर के ही हिस्सेदार हो जाते हैं।
*याद रखें*-हमारे ऐसे अधर्म का एक क्षण, सारे जीवन के कमाये हुए पुण्य को नष्ट कर सकता है।
आचार्य श्री ज्ञान
🙏🙏🙏
चित्र सिर्फ़ परिचयार्थ
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श्री कृष्ण ,जब महाभारत के युद्ध के बाद लौटे तो रुक्मिणी ने रोष में श्री कृष्ण से पूछा, युद्ध में आपने द्रोणाचार्य और भीष्म पितामह जैसे धर्म परायण लोगों के वध में क्यों साथ दिया?
इस पर श्री कृष्ण ने उत्तर दिया, देवी! यह सही है। कि वे दोनों धर्म परायण थे। और दोनों ने ही पूरे जीवन धर्म का पालन किया, लेकिन उसके किए एक पाप ने उनके सारे पुण्यो पर पानी फेर दिया।
ये सुनकर रुक्मिणी चौंक गई। और पूछा की उन दोनों ने कौन से पाप किये थे?
श्री कृष्ण ने कहा-जब भरी सभा में द्रोपदी का चीर -हरण हो रहा था, तब यह दोनों भी वहां उपस्थित थे। और बड़े होने के नाते ये दुशासन को ऐसा न करने की आज्ञा दे सकते थे। किंतु दोनों ही उस वक्त चुप रहे और अंजाने में ही अधर्म का साथ दिया। उस उनके इस एक पापा के आगे, धर्म निष्ठता छोटी पड़ गई और मुझे भी धर्म का पालन करते हुए उनके वध में पांडवों का साथ देना पड़ा।
इसके बाद रुक्मिणी ने श्री कृष्ण से पूछा उन्होंने कर्ण के वध में क्यों साथ दिया, जबकि वह तो अपनी दानवीरता के लिए प्रसिद्ध था? कोई कभी भी उसके द्वार से खाली हाथ नहीं गया, उसकी क्या गलती थी?
श्री कृष्ण ने कहा-वस्तुतः वो अपनी दानवीरता के लिए विख्यात था। और उसने कभी किसी को ना नहीं किया किंतु जब अभिमन्यु सभी युद्ध वीरो को धूल चटाने के बाद युद्ध क्षेत्र में आहत हुआ, भूमि पर पड़ा था । तो उसने कर्ण से, जो उसके पास खड़ा था, पानी मांगा।
कर्ण जहां खड़ा था, उसके पास पानी का गड्ढा था। किंतु कर्ण ने मरते हुए अभिमन्यु को पानी नहीं दिया। इसलिए उसका जीवन भर दानवीरता से कमाया हुआ, पुण्य नष्ट हो गया। बाद में उसी गड्ढे में उसके रथ का पहिया फंस गया और वो मारा गया।
रुक्मिणी को सारी बात समझ आ गई।
*शिक्षा*-अक्सर ऐसा होता है। की हमारे आसपास कुछ गलत हो रहा होता है। और हम कुछ नहीं करते।
हम सोचते हैं। की इस पाप के भागी हम नहीं हैं। किंतु मदद करने की स्थिति में होते हुए, भी कुछ न करने से, हम भी उस पाप के बराबर के ही हिस्सेदार हो जाते हैं।
*याद रखें*-हमारे ऐसे अधर्म का एक क्षण, सारे जीवन के कमाये हुए पुण्य को नष्ट कर सकता है।
आचार्य श्री ज्ञान
🙏🙏🙏
चित्र सिर्फ़ परिचयार्थ
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