सोलह भावना

*भावना किसे कहते हैं?*

बार-बार एक प्रकार का चिंतन करने को भावना कहते हैं।  - इसमे *1️⃣दर्शन विशुद्धि भावना* ➡️कि ये विशेषता है -  सोलह भावनाओं    * का होना अत्यंत आवश्यक है उसके साथ एक, दो या कितनी ही भावना हों या सभी हों तो तीर्थंकर प्रकृति का बंध हो सकता है। यदि दर्शन विशुद्धि भावना नहीं है तो तीर्थंकर प्रकृति का बंध नहीं होगा।  दर्शन विशुद्धि भावना  - पच्चीस मल दोषों से रहित विशुद्ध सम्यग्दर्शन का पालन करना दर्शन विशुद्धि भावना है।                   
2️⃣ *विनयसम्पन्नता* ➡️ -औऱ देवशास्त्र गुरू रत्नत्रय तथा इनके धारण करने वालों का आगम के अनुसार विनय करना।
 3️⃣   *अभीक्षण ज्ञानोपयोग भावना*
 4️⃣ *अनतिचार भावना*  -शीलव्रतों में * व्रतों एवं शीलों में अतिचार नहीं लगाना।
5️⃣ *अभीक्षण ज्ञानोपयोग* *भावना** ➡️
सदा ज्ञान के अभ्यास में लगे रहना अभीक्षण ज्ञानोपयोग भावना है।
  6️⃣ *संवेगभावना*➡️  पापों तथा पाप के फल से डरना तथा धर्म एवं धर्म के फल में अनुराग होना संवेग है।
 7️⃣  *शक्ति, तप भावना* ➡️ - अपनी शक्ति के अनुसार शक्ति को न छिपाकर तप करना।  -        8️⃣ *शक्ति त्याग भावना* ➡️
  अपनी शक्ति के अनुसार त्याग करना आहार दान आदि देना।  9️⃣ *साधु समाधि भावना*➡️ साधुओं का उपसर्ग आदि दूर करना या समाधि सहित मरण करना साधु समाधि भावना है।  -        1️⃣0️⃣ *वैयावृत्यकरण भावना* ➡️ - वृती त्यागी आदि की सेवा वैयावृत्ति करना।
1️⃣1️⃣ *अर्हंत भक्ति भावना*➡️  - अर्हंत भगवान की भक्ति करना अर्हंत भक्ति है।
1️⃣2️⃣     *आचार्य भक्ति* ➡️ आचार्य की भक्ति करना आचार्य भक्ति है।
1️⃣3️⃣- *बहुश्रुत भक्ति* ➡️ - उपाध्याय परमेष्ठी की भक्ति करने को बहुश्रुत भक्ति कहते हैं।   जिनवाणी की भक्ति करना प्रवचन भक्ति है। -       
1️⃣4️⃣
*आवश्यकापरिहाणि* *भावना** ➡️ - छः आवश्यक क्रियाओं को सावधानी से पालना आवश्यकापरिहाणि है।
  1️⃣5️⃣     *मार्ग प्रभावना*  - जैन धर्म के प्रभाव को लोक में प्रसारित करना।
1️⃣6️⃣ *प्रवचन वत्सलत्व भावना*  साधर्मीजनों में आगाध प्रेम करना।
 - तीर्थंकर कितने प्रकार के होते हैं? उत्तर - तीर्थंकरों को दो भागों में विभाजित किया

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

भगवान पार्श्वनाथ प्रश्नोत्तरी

जैन प्रश्नोत्तरी

सतियाँ जी 16