श्रुत ज्ञान प्रश्नोत्तरी
धार्मिक प्रश्नोत्तरी
1. ज्ञान कितने प्रकार का है ?
उत्तर- पाँच
मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान, केवलज्ञान
2. श्रुतज्ञान का सहयोगी ज्ञान कौन-सा है ?
उत्तर- मतिज्ञान
3. इन्द्रियों और मन की सहायता से कौन-सा ज्ञान होता है ?
उत्तर- श्रुतज्ञान
4. श्रुतज्ञान के कितने भेद हैं ?
उत्तर- 14 (चौदह)
1. अक्षर श्रुत, 2. अनक्षर श्रुत, 3. संज्ञी श्रुत, 4. असंज्ञी श्रुत, 5. सम्यक् श्रुक, 6. मिथ्या श्रुत, 7. सादी श्रुत, 8. अनादि श्रुत, 9. सपर्यवसित श्रुत, 10. अपर्यवसित श्रुत, 11. गमिक श्रुत, 12. अगमिक श्रुत, 13. अंग प्रविष्ट श्रुत, 14. अनंग प्रविष्ट श्रुत
5. अंग प्रविष्ट श्रुतज्ञान के कितने प्रकार हैं ?
उत्तर- 12 (बारह)
1. आचारांग, 2. सूत्रकृतांग, 3. स्थानांग, 4. समवायांग, 5. भगवती (विवाह पन्नति = व्याख्या -प्रज्ञप्ति), 6. ज्ञाताधर्म कथांग, 7. उपासक दशांग, 8. अन्तकृत् दशांग, 9. अनुत्तरौपपातिक दशांग, 10. प्रश्नव्याकरण सूत्र, 11. विपाक सूत्र, 12. दृष्टिवाद
6. अंग प्रविष्ट श्रुतज्ञान के बारह भेदों को किस नाम से जाना जाता है ?
उत्तर- द्वादशांगी गणिपिटक
7. इन्द्रियों एवं बुद्धि के द्वारा पदार्थों का बोध करना, कौन सा ज्ञान है ?
उत्तर- मतिज्ञान
8. कौन से ज्ञान के द्वारा बुद्धि को यथार्थ रूप से सोचने-समझने की प्रेरणा मिलती है ?
उत्तर- श्रुतज्ञान
9. श्रुतज्ञान की आराधना करने से कौन से कर्म का क्षय होता है ?
उत्तर- ज्ञानावरणीय कर्म
10. बारह अंग सूत्रों में से प्रथम अंग सूत्र कौन सा है ?
उत्तर- आचारांग सूत्र
11. अंग सूत्रों का सार क्या है ?
उत्तर- आचार
12. आचार का सार क्या है ?
उत्तर- अनुयोग-अर्थ
13. अनुयोग का सार क्या है ?
उत्तर- प्ररूपणा करना
14. प्ररूपणा का सार क्या है ?
उत्तर- सम्यक्चारित्र को स्वीकार करना ।
15. सम्यक्चारित्र का सार क्या है ?
उत्तर- निर्वाण पद की प्राप्ति
16. निर्वाण पद पाने का सार क्या है ?
उत्तर- अक्षय सुख को प्राप्त करना ।
17. संपूर्ण जैन आगम कितने अनुयोगों में विभाजित किये जाते हैं ?
उत्तर- चार अनुयोगों में
1. धर्म कथानुयोग, 2. गणितानुयोग, 3. द्रव्यानुयोग, 4. चरणकरणानुयोग
18. आचारांग सूत्र कौन से अनुयोग के अंतर्गत है ?
उत्तर- चरणकरणानुयोग
19. संक्षिप्त सूत्र का विस्तृत विवेचन करना क्या कहलाता है ?
उत्तर- अनुयोग
20. आचारांग सूत्र में कितने आचारों का वर्णन है ?
उत्तर- पाँच
1. ज्ञानाचार, 2. दर्शनाचार, 3. चारित्राचार, 4. तपाचार, 5. वीर्याचार
21. ज्ञानाचार के कितने प्रकार है ?
उत्तर- आठ
1. काल, 2. विनय, 3. बहुमान, 4. उपधान, 5. अणिण्हवण-अनिह्नवता, 6. व्यंजन, 7. अर्थ, 8. तदुभय
22. सूत्र और अर्थ को बहुमान एवं आदर पूर्वक ग्रहण करना क्या कहलाता है ?
उत्तर- तदुभय
23. नियत समय पर शास्त्र का स्वाध्याय करना क्या कहलाता है ?
उत्तर- काल
24. जिससे आगम का ज्ञान प्राप्त किया हो, उसके नाम को गुप्त ना रखना क्या कहलाता है ?
उत्तर- अणिण्हवण-अनिह्नवता
25. सूत्र के शुद्ध एवं यथार्थ अर्थ को ग्रहण करना क्या कहलाता है ?
उत्तर- अर्थ
26. विनय भक्ति पूर्वक शास्त्र का अनुशीलन करना क्या कहलाता है ?
उत्तर- विनय
27. तप करते हुए शास्त्र का अध्ययन करना क्या कहलाता है ?
उत्तर- उपधान
28. सूत्र का शुद्ध उच्चारण करना क्या कहलाता है ?
उत्तर- व्यंजन
29. बहुमान पूर्वक शास्त्र का अध्ययन करना क्या कहलाता है ?
उत्तर- बहुमान
30. दर्शनाचार कितने प्रकार का है ?
उत्तर- आठ
1. निःशंकित, 2. निःकांक्षित, 3. निर्विचिकित्सा, 4. अमूढ़ दृष्टि, 5. उपबृहण, 6. स्थिरीकरण, 7. वात्सल्य, 8. प्रभावना
31. धर्म की विविध प्रकार से प्रभावना करना कौन सा दर्शनाचार है ?
उत्तर- प्रभावना दर्शनाचार ।
32. अन्यमत की प्रशंसा नहीं करना कौन सा दर्शनाचार है ?
उत्तर- निःकांक्षित दर्शनाचार ।
33. समान धर्म एवं समाचारी वालों के प्रति दया एवं प्रेम का भाव रखना कौन सा दर्शनाचार है ?
उत्तर- वात्सल्य दर्शनाचार ।
34. स्वकृत कर्म के फल में संदेह नहीं करना कौन सा दर्शनाचार है ?
उत्तर- निर्विचिकित्सा ।
35. धर्म में डीगते हुए व्यक्ति को धर्म में अडिग रखना कौन सा दर्शनाचार है ?
उत्तर- स्थिरीकरण ।
36. जिनवाणी में संशय नहीं करना कौन सा दर्शनाचार है ?
उत्तर- निःशंकित ।
37. किसी व्यक्ति के प्रति मूढ़ दृष्टि नहीं होना, यह दर्शनाचार का कौन-सा प्रकार है ?
उत्तर- अमूढ़ दृष्टि ।
38. गुणियों के गुण की प्रशंसा करना, यह दर्शनाचार का कौन-सा प्रकार है ?
उत्तर- उपबृहण ।
39. चारित्राचार के कितने प्रकार है ?
उत्तर- आठ।
पाँच समिति
(1. ईर्या समिति, 2. भाषा समिति, 3. एषणा समिति, 4. आदान भाण्डमात्र निक्षेपणा समिति, 5. उच्चार प्रस्रवण खेल जल्ल परिष्ठापनिका समिति)
तीन गुप्ति
( 1. मन गुप्ति, 2. वचन गुप्ति, 3. काया गुप्ति)
40. चारित्राचार के आठ प्रकारों को क्या कहते हैं ?
उत्तर- अष्ट प्रवचन माता ।
41. तपाचार के कितने भेद और प्रकार है ?
उत्तर- 2 भेद और 12 प्रकार ।
1. बाह्य तप और 2.आभ्यंतर तप
बाह्य तप
अनशन, उनोदरी, भिक्षाचर्या, रसपरित्याग, कायक्लेश और प्रतिसंलीनता तप ।
आभ्यंतर तप
प्रायश्चित, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, ध्यान, कायोत्सर्ग ।
42. अपनी आत्मशक्ति या आत्मसामर्थ्य के द्वारा कर्म श्रंखला को क्षीण या क्षय करना क्या है ?
उत्तर- वीर्याचार ।
43. आचारांग सूत्र में कितने श्रुतस्कंध है ?
उत्तर- दो ।
44. आचारांग सूत्र में कुल मिलाकर कितने अध्ययन है ?
उत्तर- 25 अध्ययन ।
45. आचारांग सूत्र में चूलिका सहित कितने पद है ?
उत्तर- 18,000 पद ।
46. आचारांग सूत्र में कितने उद्देशक और समुद्देशनकाल हैं ?
उत्तर- 85 उद्देशक और 85 समुद्देशनकाल ।
47. आचारांग सूत्र के प्रथम श्रुतस्कंध का स्थानांग सूत्र में किस नाम से वर्णन मिलता है ?
उत्तर- ब्रह्मचर्य नाम से ।
48. आचारांग सूत्र में प्रथम श्रुतस्कंध (ब्रह्मचर्य) के कितने अध्ययन कहे गये हैं ?
उत्तर- नौ अध्ययन ।
1. शस्त्र परिज्ञा, 2. लोक विजय, 3. शीतोष्णीय, 4. सम्यक्त्व, 5. लोकसार, 6. धूत, 7. विमोह (विमोक्ष), 8. उपधान, 9. महापरिज्ञा ।
49. आचारांग सूत्र में द्वितीय श्रुतस्कंध के कितने अध्ययन कहे गये हैं ?
उत्तर- 16 अध्ययन ।
1. पिण्डैषणा, 2. शय्यैषणा, 3. इर्यैषणा, 4. भाषैषणा, 5. वस्त्रैषणा, 6. पात्रैषणा, 7. अवग्रह प्रतिमा, 8. सप्तसप्तिका, 9. निषीधिका, 10. उच्चार प्रसवण, 11. शब्दसप्तकका, 12. रूपसप्तैकका, 13. परक्रिया, 14. अन्योन्य क्रिया, 15. भावना, 16. विमुक्ति ।
50. आचारांग सूत्र कौन-सी भाषा में है ?
उत्तर- अर्धमागधी भाषा ।
तीर्थंकर भगवान अर्धमागधी भाषा में उपदेश/देशना देते हैं इस कारण से आचारांग सूत्र की भाषा भी अर्धमागधी है ।
51. तीर्थंकर भगवान के अलावा और कौन-कौन अर्धमागधी भाषा में बोलते हैं और इसका उल्लेख कहाँ मिलता है ?
उत्तर- देवगति के देव-देवांगनाएं और आर्य पुरुष ।
इसका उल्लेख भगवती एवं प्रज्ञापना आदि सूत्रों में मिलता है ।
52. ब्राह्मी लिपि में कितने प्रकार का लेख विधान (लेखन-प्रकार) बताया गया है ?
उत्तर- 18 प्रकार का ।
1. ब्राह्मी, 2. यवनानी, 3. दोषापुरिका, 4. खरोष्ट्री, 5. पुष्करशारिका 6. भोगवतिका, 7. प्रहरादिका, 8. अन्ताक्षरिका, 9. अक्षर पुष्टिका, 10. वैनयिका, 11. निह्नविका, 12. अंकलिपि, 13. गणितलिपि, 14. गंधर्वलिपि, 15. आदर्श लिपि, 16. माहेश्वरी, 17. तामिली-द्राविड़ी, 18. पौलिन्दी ।
53. सूत्र किसे कहते हैं ?
उत्तर- अक्षर से अल्प, हो और अर्थ से महान एवं विराट हो, 32 दोषों से रहित और 8 गुणों से युक्त हो, वह सूत्र है ।
54. सूत्र के आठ गुणों और बत्तीस दोषों का वर्णन किस आगम में है ?
उत्तर - अनुयोग द्वार सूत्र में ।
सूत्र के आठ गुण
1. निर्दोष, 2. सारवत्, 3. हेतुयुक्त, 4. अलंकृत, 5. उपनीत, 6. सोपचार, 7. मित, 8. मधुर ।
सूत्र के 32 दोष
1. अनृत दोष, 2. उपघात दोष, 3. निरर्थक दोष, 4. अपार्थक दोष, 5. छल दोष, 6. द्रुहिल दोष, 7. निस्सार दोष, 8. अधिक दोष, 9. ऊन दोष, 10. पुनरूक्त दोष, 11. व्याहत दोष, 12. अयुक्त दोष, 13. क्रमभिन्न दोष, 14. वचनभिन्न दोष, 15. विभक्ति भिन्न दोष, 16. लिंग भिन्न दोष, 17. अनभिहित दोष, 18. अपद दोष, 19. स्वभाव हीन दोष, 20. व्यवहित दोष, 21. काल दोष, 22. यति दोष, 23. छवि दोष, 24. समयविरूद्ध दोष, 25. निर्हेतुक दोष, 26. अर्थापत्ति दोष, 27. असमास दोष, 28. उपमा दोष, 29. रूपक दोष, 30. निर्देश दोष, 31. पदार्थ दोष, 32. संधि दोष ।
55. वर्ण आदि के नियत परिणाम से युक्त हो, यह सूत्र का कौन-सा गुण है ?
उत्तर- मित गुण ।
56. समस्त अनृत, उपघात आदि दोषों से रहित हो, यह सूत्र का कौन-सा गुण है ?
उत्तर- निर्दोष ।
57. जो अनेक पर्यायों से युक्त हो, यह सूत्र का कौन-सा गुण है ?
उत्तर- सारवत् ।
58. असभ्य कहावतों से नहीं, किन्तु सभ्य और शिष्ट कहावतों से युक्त हो, यह सूत्र का कौन-सा गुण है ?
उत्तर- सोपचार।
59. जो सुनने में मधुर हो, यह सूत्र का कौन-सा गुण है ?
उत्तर- मधुर।
60. अन्वय, व्यतिरेक आदि हेतुओं से संयुक्त हो, यह सूत्र का कौन-सा गुण है ?
उत्तर- हेतुयुक्त ।
61. उपनय आदि के द्वारा जिसका उपसंहार किया गया हो, यह सूत्र का कौन-सा गुण है ?
उत्तर- उपनीत
62. उपमा, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारो से विभूषित हो, यह सूत्र का कौन-सा गुण है ?
उत्तर- अलंकृत
63. सत्य का अपलाप करना व असत्य की स्थापना करना सूत्र का कौन-दोष है ?
उत्तर- अनृत दोष
( जैसे - अनादिकाल से चले आ रहे जगत् को ईश्वर कर्तृक बतलाना असत्य की स्थापना है और आत्मा-परलोक आदि के अस्तित्व का निषेध करना सत्य का अपलाप करना है ।)
64. हिंसा का विधान करना सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- उपघात दोष ।
(जैसे - वेद विहित हिंसा, हिंसा नहीं है ।)
65. जिस सूत्र में केवल वर्णों का निर्देश हो, किन्तु उसका कोई अर्थ न निकलता हो, यह सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- निरर्थक दोष ।
(जैसे - अ, आ, इ, ई या डित्थ-डवित्थ आदि।)
66. जो सूत्र असंबद्धार्थक हो या अर्थ के संबंध से शून्य हो, यह सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- अपार्थक दोष ।
(जैसे - दशदाडिमानि, षड्पूपा आदि ।)
67. जहाँ विवक्षित अर्थ का अनिष्ट अर्थान्तर के द्वारा उपघात किया जाये, यह सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- छल दोष ।
(जैसे - किसी ने कहा - देवदत्त के पास नव (नया) कंबल है । परंतु कोई व्यक्ति यह कहकर उसका विरोध करे कि देवदत्त के पास नव (9) कंबल कहाँ है ? वह नवीन (नया) अर्थ में प्रयुक्त नव शब्द को संख्यावाची बनाकर विरोध करे तो यह छल है ।)
68. जो सूत्र साधक को अहित कर उपदेश दे और पापकार्य का परिपोषक हो, यह सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- द्रुहिल दोष ।
69. जिस सूत्र में कोई युक्ति या तर्क न होकर केवल शब्दाडंबर हो, यह सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- निस्सार दोष ।
70. जिस सूत्र में पद या अक्षर अधिक हों, या एक हेतु या उदाहरण से अर्थ सिद्धि होने पर भी कई हेतु या उदाहरण दिये हों, यह सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- अधिक दोष ।
71. जिसमें अक्षर, मात्रा, पद, आदि कम हो, यह सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- ऊन दोष ।
(जैसे - कृतक होने से शब्द अनित्य है, यहाँ उदाहरण की कमी है ।)
72. एक ही बात को पुनः पुनः दोहराना, यह सूत्र का कौन सा दोष है ?
उत्तर- पुनरूक्त दोष ।
73. जिस सूत्र में पूर्व कथन का पर वाक्य से खंडन होता है, यह सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- व्याहत दोष ।
74. जो वाक्य उपपत्ति से युक्त न हो, सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- अयुक्त दोष ।
75. जिसमें पदार्थ को क्रमशः न रखा जाए, यह सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- क्रमभिन्न दोष ।
(जैसे - श्रोत, चक्षु, घ्राण, रसना, स्पर्श इन्द्रिय न कहकर घ्राण, चक्षु, श्रोत, स्पर्श, रसनेन्द्रिय कहना ।)
76. जिस सूत्र में विशेष्य और विशेषण भिन्न हो, सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- वचनसिद्ध दोष
77. जिस सूत्र में विशेष्य और विशेषण में विभक्ति भिन्न हो, सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- विभक्ति विभिन्न दोष
78. जिस सूत्र में विशेष्य और विशेषण में लिंग भिन्न हो, सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- लिंग भिन्न दोष
79. अपनी सैद्धांतिक मान्यता के विरुद्ध पदार्थों का वर्णन करना, सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- अनभिहित दोष
80. पद्य छंद के संबंध अनुचित योजना करना, सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- अपद दोष
81. जिस सूत्र में वस्तु का स्वभाव से विपरीत चित्रण किया जाये, यह सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- स्वभाव हीन दोष
82. प्रासंगिक विषय को छोड़कर अप्रासंगिक विषय का वर्णन करना और पुनः प्रासंगिक विषय पर आ जाना, यह सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- व्यवहित दोष
83. जिस सूत्र में भूत, भविष्य, वर्तमान का ध्यान न हो, सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- काल दोष
84. पद्य या गद्य रचना में पूर्ण विराम, अर्ध विराम आदि का ध्यान न रखा हो, यह सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- यति दोष
85. जहाँ पर कोई विशेष अलंकार उपयुक्त हो, फिर भी उसे वहाँ नहीं कहना, यह सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- छवि दोष
86. किसी के मान्य सिद्धांत के विरूद्ध मत की स्थापना करना, यह सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- समयविरूद्ध दोष
(जैसे- वेदान्त को द्वैतवादी और जैन दर्शन को अद्वैतवादी कहना ।)
87. जिस सूत्र में युक्ति हेतु आदि कुछ न हो, केवल शब्द मात्र हो, यह सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- निर्हेतुक दोष
88. जिस वाक्य का अर्थोपत्ति से अनिष्ट अर्थ निकलता हो, सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- अर्थापत्ति दोष
89. जिस जगह समास होता है, वहाँ समास नहीं करना या विपरीत समास करना, सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- असमास दोष
90. हीन या अधिक उपमा बताना, यह सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- उपमा दोष
91. पदार्थों के स्वरूप एवं अवयवों का विपरीत रूपक के द्वारा वर्णन करना सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- रूपक दोष
92. निर्दिष्ट पदों में एकरूपता नहीं रखना सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- निर्देश दोष
93. आचारांग सूत्र के प्रथम अध्ययन का नाम क्या है ?
उत्तर- शस्त्र परिज्ञा
94. आचारांग सूत्र प्रथम अध्ययन में कितने उद्देशक हैं ?
उत्तर- 7 उद्देशक
95. शास्त्र के अनेकों विभागों को क्या कहते हैं ?
उत्तर - अध्ययन
96. एक अध्ययन में प्रयुक्त होने वाले अभिनव विषय को नये शीर्षक से प्रारंभ करने की पद्धति को आगमिक भाषा में क्या कहते हैं ?
उत्तर- उद्देशक
97. आचारांग सूत्र के प्रथम अध्ययन में शस्त्र को किसका कारण बताया गया है ?
उत्तर- महाभय का
98. शस्त्र से वैर बढ़ता है और वैर विरोध के बढ़ने से क्या बढता है ? उत्तर- संसार परिभ्रमण
99. आचारांग सूत्र के पहले उद्देशक में किसका सामान्य संबोधन करके वर्णन किया गया है ?
उत्तर- जीव का
100. आचारांग सूत्र के दूसरे उद्देशक में किससे निवृत्ति का उपदेश दिया गया है ?
उत्तर- पृथ्वीकाय की हिंसा से निवृत्ति का उपदेश ।
101. आचारांग सूत्र के तीसरे उद्देशक में किससे निवृत्ति का उपदेश दिया गया है ?
उत्तर- अपकाय की हिंसा से निवृत्ति का उपदेश ।
102. आचारांग के चौथे उद्देशक में किससे निवृत्ति का उपदेश दिया गया है ?
उत्तर- तेउकाय की हिंसा से निवृत्ति का उपदेश ।
103. आचारांग के पाँचवें उद्देशक में किससे निवृत्ति का उपदेश दिया गया है ?
उत्तर- वायुकाय की हिंसा से निवृत्ति का उपदेश ।
104. आचारांग सूत्र के छठें उद्देशक में किससे निवृत्ति का उपदेश दिया गया है ?
उत्तर- वनस्पतिकाय की हिंसा से निवृत्ति का उपदेश ।
105. आचारांग सूत्र के सातवें उद्देशक में किससे निवृत्ति का उपदेश दिया गया है ?
उत्तर- त्रसकाय की हिंसा से निवृत्ति का उपदेश
106. चेतना को क्या कहते हैं ?
उत्तर- संज्ञा
107. चेतना के कितने भेद हैं ?
उत्तर- दो - ज्ञान चेतना और अनुभव चेतना
108. विशेष बोध को क्या कहते हैं ?
उत्तर- ज्ञान चेतना
109. ज्ञान चेतना के कितने भेद हैं ?
उत्तर- पाँच ।
मतिज्ञान चेतना, श्रुतज्ञान चेतना, अवधिज्ञान चेतना, मनःपर्यवज्ञान चेतना और केवलज्ञान चेतना ।
110. संवेदन को कौन-सी चेतना कहते हैं ?
उत्तर- अनुभव चेतना (संज्ञा)
111. अनुभव चेतना (संज्ञा) के कितने भेद हैं ?
उत्तर- सोलह ।
आहार संज्ञा, भय संज्ञा, मैथुन संज्ञा, परिग्रह संज्ञा, क्रोध संज्ञा, मान संज्ञा, माया संज्ञा, लोभ संज्ञा, ओघ संज्ञा, लोक संज्ञा, सुख संज्ञा, दुःख संज्ञा, मोह संज्ञा, विचिकित्सा संज्ञा, शोक संज्ञा और धर्म संज्ञा ।
112. क्षुधा वेदनीय कर्म के उदय से उत्पन्न होने वाली आहार की अभिलाषा रूप आत्मा की परिणति कौन-सी संज्ञा है ?
उत्तर- आहार संज्ञा
113. आहार संज्ञा किन जीवों के होती हैं ?
उत्तर- एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के जीवों में होती है ।
114. आहार संज्ञा कितने कारणों से उत्पन्न होती है ?
उत्तर- चार कारणों से ।
1. क्षुधा वेदनीय के उदय से ।
2. पेट खाली होने से ।
3. आहार की कथा करने से ।
4. आहार का चिन्तन करने से, भोज्य वस्तु के श्रवण, दर्शन, चिन्तन से ।
115. किसी कारण से या बिना कारण के ही मोहनीय कर्म के उदय से भयभीत होने की आत्म परिणति क्या कहलाती है ।
उत्तर- भय संज्ञा
116. भय संज्ञा की उत्पत्ति के कितने कारण हैं ?
उत्तर- चार ।
1. दुर्बलता से अर्थात् अशक्तता के कारण ।
2. भय मोहनीय के उदय से ।
3. भय उत्पन्न करने वाली बात सुनने से ।
4. भयंकर वस्तु के देखने से अथवा इहलोक आदि में भयजनक वस्तु का विचार करने के कारण ।
117. भय संज्ञा जीवों में कब तक रहती है ?
उत्तर- संसार के अंत तक केवलज्ञान प्राप्ति से कुछ समय पूर्व तक रहती है ।
118. वेद मोहनीय कर्म के उदय से विषयेच्छा को तृप्त करने की अभिलाषा होना कौन-सी संज्ञा सै ?
उत्तर- मैथुन संज्ञा
119. मैथुन संज्ञा क्यों उत्पन्न होती है ?
उत्तर - शरीर में रक्त मांस की वृद्धि होने से, वेद मोहनीय कर्म के उदय से, स्त्रीकथा/पुरुषकथा आदि के श्रवण से उत्पन्न हुई बुद्धि से, मैथुन का विचार-चिन्तन करने से ।
120. लोभ मोहनीय/कषाय मोहनीय कर्म के उदय से धर्म के उपकरणों के सिवाय अन्य सचित्त, अचित्त, मिश्र पदार्थों को मूर्च्छा, आसक्ति, ममत्व भावों से ग्रहण करना कौन-सी संज्ञा है ?
उत्तर- परिग्रह संज्ञा
121- परिग्रह संज्ञा क्यों उत्पन्न होती है ?
उत्तर- अति मूर्च्छा, आसक्ति होने से, लोभ मोहनीय कर्म के उदय से, परिग्रह की बात सुनने से, परिग्रह का चिन्तन करने से, सचित्त-अचित्त- मिश्र रूप वस्तुओं का परिग्रह देखने से, संग्रह करने से परिग्रह संज्ञा उत्पन्न होती है ।
122- परिग्रह संज्ञा एकेन्द्रियादि जीवों में कैसे पायी जाती है ?
उत्तर- परिग्रह संज्ञा एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के जीवों में पायी जाती है । वनस्पति कायिक में परिग्रह संज्ञा- बिल्व (बेल) आदि वनस्पतियाँ अपने पत्तों से फूल-फल वगैरह को ढंक लेती है, इससे उनमें परिग्रह संज्ञा का होना प्रतीत होता है ।
123- क्रोध मोहनीय कर्म के उदय से जीव में जातिमद आदि से उत्पन्न, कर्तव्य-अकर्तव्य का विवेक नष्ट कर देने पर की अप्रीतिरूप एवं जलन आत्मा की विभाव परिणति कौन-सी संज्ञा है ?
उत्तर- क्रोध संज्ञा
124- कौन-सी संज्ञा से जीव अहंभाव, गर्व, घमंड का अनुभव करता है ?
उत्तर- मान संज्ञा
125- कौन से कर्म के उदय से विचारों में एवं वाणी में उत्तेजना अथवा आवेश आता है ?
उत्तर- क्रोध मोहनीय कर्म के उदय से ।
126- मान संज्ञा क्या है ?
उत्तर- मान मोहनीय के उदय से अहंकार रूप आत्मा की विभाव परिणति मान संज्ञा है । मान संज्ञा से जीव, अहंभाव, गर्व, घमंड का अनुभव करता है ।
127- किस संज्ञा के कारण जीव छल-कपट-धूर्त-ठगाई-वंचकता आदि क्रियाएँ करता है ?
उत्तर- माया संज्ञा के कारण ।
128- माया संज्ञा क्या है ?
उत्तर- माया मोहनीय के उदय से जीव की कपटभाव रूप विभाव परिणति होना माया संज्ञा है माया संज्ञा के कारण जीव छल-कपट-धूर्त-ठगाई-वंचकता आदि क्रियाएँ करता है ।
129- लोभ संज्ञा क्या है ?
उत्तर- लोभ मोहनीय कर्म के उदय से सचित्त-अचित्त आदि वस्तुओं पर आसक्ति बंधन रूप विभाव परिणति लोभ संज्ञा है । भौतिक पदार्थों, विषय-वासनाओं एवं भोगोपयोग के साधनों को प्राप्त करने की लालसा बनाए रखना, संग्रह की कामना को बढ़ाते रहना लोभ संज्ञा का उदाहरण है ।
130- ओघ संज्ञा क्या है ?
उत्तर- ज्ञानावरणीय कर्म के अल्प क्षयोपशम से उत्पन्न होने वाली तथा अव्यक्त (अप्रकट) उपयोग रूप जीव का विभाव परिणमन ओघ संज्ञा है ।
131- लोक संज्ञा क्या है ?
उत्तर- ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से और मोहनीय कर्म के उदय से कुबुद्धि जनित तर्क रूप आत्मा की विभाव परिणति लोक संज्ञा है । जैसे - 'अपुत्रस्य गतिर्नास्ति' - पुत्र रहित को सद्गति नहीं मिलती, आदि लोक प्रचलित मान्यताओं पर विश्वास करना तथा उनके अनुसार अपनी धारणा बना लेना ।
132- सुख संज्ञा क्या है ?
उत्तर- संसारी जीवों को साता वेदनीय के उदय से सभी इन्द्रियों एवं मन के अनुकूल प्रतीत होने वाली विषयों के उपभोग एवं आनंद की अनुभूति सुख संज्ञा है ।
133- दुःख संज्ञा क्या है ?
उत्तर- संसारी जीवों को असाता वेदनीय के उदय से सभी इन्द्रियों के एवं मन के प्रतिकूल प्रतीत होने वाली, विविध प्रकार के संतापों का अनुभव रूप जीव की परिणति दुःख संज्ञा है ।
134- मोह संज्ञा के कारण जीव किसमें आसक्त रहता है ?
उत्तर- विषय-वासना एवं कषायों में ।
135- मोह संज्ञा क्या है ?
उत्तर- मोहनीय कर्म के उदय से मिथ्या दर्शन रूप तथा ज्ञानादि गुणों का निषेध करने वाली, समस्त पापस्थानकों का कारण रूप आत्मा की विभाव परिणति मोह संज्ञा है । कुदेव, कुगुरु, कधर्म आदि में प्रवृत्ति होने से मोह संज्ञा का ज्ञान होता है । मोह संज्ञा के जीव विषय-वासना एवं कषायों में आसक्त रहता है ।
136- विचिकित्सा संज्ञा क्या है ?
उत्तर- मोहनीय एवं ज्ञानावरणीय कर्म के उदय से सर्वज्ञ भगवान द्वारा प्ररूपित धर्म एवं तत्त्वों में शंका-संशय रूप आत्मा का परिणमन विचिकित्सा संज्ञा है ।
137- विचिकित्सा संज्ञा के दो प्रकार कौन से हैं ?
उत्तर- देशतः विचिकित्सा संज्ञा और सर्वतः विचिकित्सा संज्ञा ।
138- वास्तव में परलोक है या नहीं ? सर्वज्ञ के द्वारा प्ररूपित जीव आदि तत्त्व यथार्थ है या नहीं ? इस प्रकार का संशय होना कौन-सी संज्ञा है ?
उत्तर- सर्वतः विचिकित्सा संज्ञा ।
139- 22 परीषहों को सहने का, ब्रह्मचर्य पालन का, केश लुंचन आदि कायक्लेश सहने का फल मिलेगा या नहीं, इस प्रकार का संशय होना कौन-सी संज्ञा है ?
उत्तर- देशतः विचिकित्सा संज्ञा ।
140- मोहनीय कर्म के उदय से इष्ट वस्तु के न मिलने पर या उसका वियोग होने पर तथा अनिष्ट वस्तु का संयोग पाकर रोना, पीटना, विलाप आदि करना कौन-सी संज्ञा है ?
उत्तर- शोक संज्ञा ।
141- इष्ट वियोग, अनिष्ट संयोग से उत्पन्न होने वाली आत्मा की विभाव परिणति कौन-सी संज्ञा है ?
उत्तर- शोक संज्ञा ।
142- मोहनीय कर्म के क्षयोपशम से कर्म क्षयजनक सर्वविरति तथा देशविरति रूप आत्मा की स्वभाव परिणति कौन-सी संज्ञा है ?
उत्तर- धर्म संज्ञा ।
143- जीवरक्षा, यतना, विवेक, उपयोग आदि व्यापारों से जीव की कौन-सी संज्ञा का ज्ञान होता है ?
उत्तर- धर्म संज्ञा ।
144- योनियाँ कितने प्रकार की हैं ?
उत्तर- प्रज्ञापना सूत्र के नवमें योनिपद में 3-3 भेद 4 प्रकार से बताते हुए कुल 12 भेद बताये हैं
पहले प्रकार से योनि के तीन भेद - शीत योनि, उष्ण योनि, शीतोष्ण योनि ।
दूसरे प्रकार से योनि के तीन भेद - सचित्त योनि, अचित्त योनि, सचित्ताचित्त योनि ।
तीसरे प्रकार से योनि के तीन भेद - संवृत्त योनि, विवृत्त योनि, संवृत्त-विवृत्त योनि ।
चौथे प्रकार से योनि के तीन भेद - कूर्मोन्नत योनि, शंखावृत्ता योनि, वंशीपत्रा योनि ।
145- योनि क्या है ?
उत्तर - जीव औदारिक, वैक्रिय आदि शरीर वर्गणा के पुद्गलों को लेकर जिसमें मिश्रित होता है, संबंध करता है वह स्थान 'योनि' है अथवा जीव की उत्पत्ति का स्थान 'योनि' है ।
उत्तर- पाँच
मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान, केवलज्ञान
2. श्रुतज्ञान का सहयोगी ज्ञान कौन-सा है ?
उत्तर- मतिज्ञान
3. इन्द्रियों और मन की सहायता से कौन-सा ज्ञान होता है ?
उत्तर- श्रुतज्ञान
4. श्रुतज्ञान के कितने भेद हैं ?
उत्तर- 14 (चौदह)
1. अक्षर श्रुत, 2. अनक्षर श्रुत, 3. संज्ञी श्रुत, 4. असंज्ञी श्रुत, 5. सम्यक् श्रुक, 6. मिथ्या श्रुत, 7. सादी श्रुत, 8. अनादि श्रुत, 9. सपर्यवसित श्रुत, 10. अपर्यवसित श्रुत, 11. गमिक श्रुत, 12. अगमिक श्रुत, 13. अंग प्रविष्ट श्रुत, 14. अनंग प्रविष्ट श्रुत
5. अंग प्रविष्ट श्रुतज्ञान के कितने प्रकार हैं ?
उत्तर- 12 (बारह)
1. आचारांग, 2. सूत्रकृतांग, 3. स्थानांग, 4. समवायांग, 5. भगवती (विवाह पन्नति = व्याख्या -प्रज्ञप्ति), 6. ज्ञाताधर्म कथांग, 7. उपासक दशांग, 8. अन्तकृत् दशांग, 9. अनुत्तरौपपातिक दशांग, 10. प्रश्नव्याकरण सूत्र, 11. विपाक सूत्र, 12. दृष्टिवाद
6. अंग प्रविष्ट श्रुतज्ञान के बारह भेदों को किस नाम से जाना जाता है ?
उत्तर- द्वादशांगी गणिपिटक
7. इन्द्रियों एवं बुद्धि के द्वारा पदार्थों का बोध करना, कौन सा ज्ञान है ?
उत्तर- मतिज्ञान
8. कौन से ज्ञान के द्वारा बुद्धि को यथार्थ रूप से सोचने-समझने की प्रेरणा मिलती है ?
उत्तर- श्रुतज्ञान
9. श्रुतज्ञान की आराधना करने से कौन से कर्म का क्षय होता है ?
उत्तर- ज्ञानावरणीय कर्म
10. बारह अंग सूत्रों में से प्रथम अंग सूत्र कौन सा है ?
उत्तर- आचारांग सूत्र
11. अंग सूत्रों का सार क्या है ?
उत्तर- आचार
12. आचार का सार क्या है ?
उत्तर- अनुयोग-अर्थ
13. अनुयोग का सार क्या है ?
उत्तर- प्ररूपणा करना
14. प्ररूपणा का सार क्या है ?
उत्तर- सम्यक्चारित्र को स्वीकार करना ।
15. सम्यक्चारित्र का सार क्या है ?
उत्तर- निर्वाण पद की प्राप्ति
16. निर्वाण पद पाने का सार क्या है ?
उत्तर- अक्षय सुख को प्राप्त करना ।
17. संपूर्ण जैन आगम कितने अनुयोगों में विभाजित किये जाते हैं ?
उत्तर- चार अनुयोगों में
1. धर्म कथानुयोग, 2. गणितानुयोग, 3. द्रव्यानुयोग, 4. चरणकरणानुयोग
18. आचारांग सूत्र कौन से अनुयोग के अंतर्गत है ?
उत्तर- चरणकरणानुयोग
19. संक्षिप्त सूत्र का विस्तृत विवेचन करना क्या कहलाता है ?
उत्तर- अनुयोग
20. आचारांग सूत्र में कितने आचारों का वर्णन है ?
उत्तर- पाँच
1. ज्ञानाचार, 2. दर्शनाचार, 3. चारित्राचार, 4. तपाचार, 5. वीर्याचार
21. ज्ञानाचार के कितने प्रकार है ?
उत्तर- आठ
1. काल, 2. विनय, 3. बहुमान, 4. उपधान, 5. अणिण्हवण-अनिह्नवता, 6. व्यंजन, 7. अर्थ, 8. तदुभय
22. सूत्र और अर्थ को बहुमान एवं आदर पूर्वक ग्रहण करना क्या कहलाता है ?
उत्तर- तदुभय
23. नियत समय पर शास्त्र का स्वाध्याय करना क्या कहलाता है ?
उत्तर- काल
24. जिससे आगम का ज्ञान प्राप्त किया हो, उसके नाम को गुप्त ना रखना क्या कहलाता है ?
उत्तर- अणिण्हवण-अनिह्नवता
25. सूत्र के शुद्ध एवं यथार्थ अर्थ को ग्रहण करना क्या कहलाता है ?
उत्तर- अर्थ
26. विनय भक्ति पूर्वक शास्त्र का अनुशीलन करना क्या कहलाता है ?
उत्तर- विनय
27. तप करते हुए शास्त्र का अध्ययन करना क्या कहलाता है ?
उत्तर- उपधान
28. सूत्र का शुद्ध उच्चारण करना क्या कहलाता है ?
उत्तर- व्यंजन
29. बहुमान पूर्वक शास्त्र का अध्ययन करना क्या कहलाता है ?
उत्तर- बहुमान
30. दर्शनाचार कितने प्रकार का है ?
उत्तर- आठ
1. निःशंकित, 2. निःकांक्षित, 3. निर्विचिकित्सा, 4. अमूढ़ दृष्टि, 5. उपबृहण, 6. स्थिरीकरण, 7. वात्सल्य, 8. प्रभावना
31. धर्म की विविध प्रकार से प्रभावना करना कौन सा दर्शनाचार है ?
उत्तर- प्रभावना दर्शनाचार ।
32. अन्यमत की प्रशंसा नहीं करना कौन सा दर्शनाचार है ?
उत्तर- निःकांक्षित दर्शनाचार ।
33. समान धर्म एवं समाचारी वालों के प्रति दया एवं प्रेम का भाव रखना कौन सा दर्शनाचार है ?
उत्तर- वात्सल्य दर्शनाचार ।
34. स्वकृत कर्म के फल में संदेह नहीं करना कौन सा दर्शनाचार है ?
उत्तर- निर्विचिकित्सा ।
35. धर्म में डीगते हुए व्यक्ति को धर्म में अडिग रखना कौन सा दर्शनाचार है ?
उत्तर- स्थिरीकरण ।
36. जिनवाणी में संशय नहीं करना कौन सा दर्शनाचार है ?
उत्तर- निःशंकित ।
37. किसी व्यक्ति के प्रति मूढ़ दृष्टि नहीं होना, यह दर्शनाचार का कौन-सा प्रकार है ?
उत्तर- अमूढ़ दृष्टि ।
38. गुणियों के गुण की प्रशंसा करना, यह दर्शनाचार का कौन-सा प्रकार है ?
उत्तर- उपबृहण ।
39. चारित्राचार के कितने प्रकार है ?
उत्तर- आठ।
पाँच समिति
(1. ईर्या समिति, 2. भाषा समिति, 3. एषणा समिति, 4. आदान भाण्डमात्र निक्षेपणा समिति, 5. उच्चार प्रस्रवण खेल जल्ल परिष्ठापनिका समिति)
तीन गुप्ति
( 1. मन गुप्ति, 2. वचन गुप्ति, 3. काया गुप्ति)
40. चारित्राचार के आठ प्रकारों को क्या कहते हैं ?
उत्तर- अष्ट प्रवचन माता ।
41. तपाचार के कितने भेद और प्रकार है ?
उत्तर- 2 भेद और 12 प्रकार ।
1. बाह्य तप और 2.आभ्यंतर तप
बाह्य तप
अनशन, उनोदरी, भिक्षाचर्या, रसपरित्याग, कायक्लेश और प्रतिसंलीनता तप ।
आभ्यंतर तप
प्रायश्चित, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, ध्यान, कायोत्सर्ग ।
42. अपनी आत्मशक्ति या आत्मसामर्थ्य के द्वारा कर्म श्रंखला को क्षीण या क्षय करना क्या है ?
उत्तर- वीर्याचार ।
43. आचारांग सूत्र में कितने श्रुतस्कंध है ?
उत्तर- दो ।
44. आचारांग सूत्र में कुल मिलाकर कितने अध्ययन है ?
उत्तर- 25 अध्ययन ।
45. आचारांग सूत्र में चूलिका सहित कितने पद है ?
उत्तर- 18,000 पद ।
46. आचारांग सूत्र में कितने उद्देशक और समुद्देशनकाल हैं ?
उत्तर- 85 उद्देशक और 85 समुद्देशनकाल ।
47. आचारांग सूत्र के प्रथम श्रुतस्कंध का स्थानांग सूत्र में किस नाम से वर्णन मिलता है ?
उत्तर- ब्रह्मचर्य नाम से ।
48. आचारांग सूत्र में प्रथम श्रुतस्कंध (ब्रह्मचर्य) के कितने अध्ययन कहे गये हैं ?
उत्तर- नौ अध्ययन ।
1. शस्त्र परिज्ञा, 2. लोक विजय, 3. शीतोष्णीय, 4. सम्यक्त्व, 5. लोकसार, 6. धूत, 7. विमोह (विमोक्ष), 8. उपधान, 9. महापरिज्ञा ।
49. आचारांग सूत्र में द्वितीय श्रुतस्कंध के कितने अध्ययन कहे गये हैं ?
उत्तर- 16 अध्ययन ।
1. पिण्डैषणा, 2. शय्यैषणा, 3. इर्यैषणा, 4. भाषैषणा, 5. वस्त्रैषणा, 6. पात्रैषणा, 7. अवग्रह प्रतिमा, 8. सप्तसप्तिका, 9. निषीधिका, 10. उच्चार प्रसवण, 11. शब्दसप्तकका, 12. रूपसप्तैकका, 13. परक्रिया, 14. अन्योन्य क्रिया, 15. भावना, 16. विमुक्ति ।
50. आचारांग सूत्र कौन-सी भाषा में है ?
उत्तर- अर्धमागधी भाषा ।
तीर्थंकर भगवान अर्धमागधी भाषा में उपदेश/देशना देते हैं इस कारण से आचारांग सूत्र की भाषा भी अर्धमागधी है ।
51. तीर्थंकर भगवान के अलावा और कौन-कौन अर्धमागधी भाषा में बोलते हैं और इसका उल्लेख कहाँ मिलता है ?
उत्तर- देवगति के देव-देवांगनाएं और आर्य पुरुष ।
इसका उल्लेख भगवती एवं प्रज्ञापना आदि सूत्रों में मिलता है ।
52. ब्राह्मी लिपि में कितने प्रकार का लेख विधान (लेखन-प्रकार) बताया गया है ?
उत्तर- 18 प्रकार का ।
1. ब्राह्मी, 2. यवनानी, 3. दोषापुरिका, 4. खरोष्ट्री, 5. पुष्करशारिका 6. भोगवतिका, 7. प्रहरादिका, 8. अन्ताक्षरिका, 9. अक्षर पुष्टिका, 10. वैनयिका, 11. निह्नविका, 12. अंकलिपि, 13. गणितलिपि, 14. गंधर्वलिपि, 15. आदर्श लिपि, 16. माहेश्वरी, 17. तामिली-द्राविड़ी, 18. पौलिन्दी ।
53. सूत्र किसे कहते हैं ?
उत्तर- अक्षर से अल्प, हो और अर्थ से महान एवं विराट हो, 32 दोषों से रहित और 8 गुणों से युक्त हो, वह सूत्र है ।
54. सूत्र के आठ गुणों और बत्तीस दोषों का वर्णन किस आगम में है ?
उत्तर - अनुयोग द्वार सूत्र में ।
सूत्र के आठ गुण
1. निर्दोष, 2. सारवत्, 3. हेतुयुक्त, 4. अलंकृत, 5. उपनीत, 6. सोपचार, 7. मित, 8. मधुर ।
सूत्र के 32 दोष
1. अनृत दोष, 2. उपघात दोष, 3. निरर्थक दोष, 4. अपार्थक दोष, 5. छल दोष, 6. द्रुहिल दोष, 7. निस्सार दोष, 8. अधिक दोष, 9. ऊन दोष, 10. पुनरूक्त दोष, 11. व्याहत दोष, 12. अयुक्त दोष, 13. क्रमभिन्न दोष, 14. वचनभिन्न दोष, 15. विभक्ति भिन्न दोष, 16. लिंग भिन्न दोष, 17. अनभिहित दोष, 18. अपद दोष, 19. स्वभाव हीन दोष, 20. व्यवहित दोष, 21. काल दोष, 22. यति दोष, 23. छवि दोष, 24. समयविरूद्ध दोष, 25. निर्हेतुक दोष, 26. अर्थापत्ति दोष, 27. असमास दोष, 28. उपमा दोष, 29. रूपक दोष, 30. निर्देश दोष, 31. पदार्थ दोष, 32. संधि दोष ।
55. वर्ण आदि के नियत परिणाम से युक्त हो, यह सूत्र का कौन-सा गुण है ?
उत्तर- मित गुण ।
56. समस्त अनृत, उपघात आदि दोषों से रहित हो, यह सूत्र का कौन-सा गुण है ?
उत्तर- निर्दोष ।
57. जो अनेक पर्यायों से युक्त हो, यह सूत्र का कौन-सा गुण है ?
उत्तर- सारवत् ।
58. असभ्य कहावतों से नहीं, किन्तु सभ्य और शिष्ट कहावतों से युक्त हो, यह सूत्र का कौन-सा गुण है ?
उत्तर- सोपचार।
59. जो सुनने में मधुर हो, यह सूत्र का कौन-सा गुण है ?
उत्तर- मधुर।
60. अन्वय, व्यतिरेक आदि हेतुओं से संयुक्त हो, यह सूत्र का कौन-सा गुण है ?
उत्तर- हेतुयुक्त ।
61. उपनय आदि के द्वारा जिसका उपसंहार किया गया हो, यह सूत्र का कौन-सा गुण है ?
उत्तर- उपनीत
62. उपमा, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारो से विभूषित हो, यह सूत्र का कौन-सा गुण है ?
उत्तर- अलंकृत
63. सत्य का अपलाप करना व असत्य की स्थापना करना सूत्र का कौन-दोष है ?
उत्तर- अनृत दोष
( जैसे - अनादिकाल से चले आ रहे जगत् को ईश्वर कर्तृक बतलाना असत्य की स्थापना है और आत्मा-परलोक आदि के अस्तित्व का निषेध करना सत्य का अपलाप करना है ।)
64. हिंसा का विधान करना सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- उपघात दोष ।
(जैसे - वेद विहित हिंसा, हिंसा नहीं है ।)
65. जिस सूत्र में केवल वर्णों का निर्देश हो, किन्तु उसका कोई अर्थ न निकलता हो, यह सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- निरर्थक दोष ।
(जैसे - अ, आ, इ, ई या डित्थ-डवित्थ आदि।)
66. जो सूत्र असंबद्धार्थक हो या अर्थ के संबंध से शून्य हो, यह सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- अपार्थक दोष ।
(जैसे - दशदाडिमानि, षड्पूपा आदि ।)
67. जहाँ विवक्षित अर्थ का अनिष्ट अर्थान्तर के द्वारा उपघात किया जाये, यह सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- छल दोष ।
(जैसे - किसी ने कहा - देवदत्त के पास नव (नया) कंबल है । परंतु कोई व्यक्ति यह कहकर उसका विरोध करे कि देवदत्त के पास नव (9) कंबल कहाँ है ? वह नवीन (नया) अर्थ में प्रयुक्त नव शब्द को संख्यावाची बनाकर विरोध करे तो यह छल है ।)
68. जो सूत्र साधक को अहित कर उपदेश दे और पापकार्य का परिपोषक हो, यह सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- द्रुहिल दोष ।
69. जिस सूत्र में कोई युक्ति या तर्क न होकर केवल शब्दाडंबर हो, यह सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- निस्सार दोष ।
70. जिस सूत्र में पद या अक्षर अधिक हों, या एक हेतु या उदाहरण से अर्थ सिद्धि होने पर भी कई हेतु या उदाहरण दिये हों, यह सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- अधिक दोष ।
71. जिसमें अक्षर, मात्रा, पद, आदि कम हो, यह सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- ऊन दोष ।
(जैसे - कृतक होने से शब्द अनित्य है, यहाँ उदाहरण की कमी है ।)
72. एक ही बात को पुनः पुनः दोहराना, यह सूत्र का कौन सा दोष है ?
उत्तर- पुनरूक्त दोष ।
73. जिस सूत्र में पूर्व कथन का पर वाक्य से खंडन होता है, यह सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- व्याहत दोष ।
74. जो वाक्य उपपत्ति से युक्त न हो, सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- अयुक्त दोष ।
75. जिसमें पदार्थ को क्रमशः न रखा जाए, यह सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- क्रमभिन्न दोष ।
(जैसे - श्रोत, चक्षु, घ्राण, रसना, स्पर्श इन्द्रिय न कहकर घ्राण, चक्षु, श्रोत, स्पर्श, रसनेन्द्रिय कहना ।)
76. जिस सूत्र में विशेष्य और विशेषण भिन्न हो, सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- वचनसिद्ध दोष
77. जिस सूत्र में विशेष्य और विशेषण में विभक्ति भिन्न हो, सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- विभक्ति विभिन्न दोष
78. जिस सूत्र में विशेष्य और विशेषण में लिंग भिन्न हो, सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- लिंग भिन्न दोष
79. अपनी सैद्धांतिक मान्यता के विरुद्ध पदार्थों का वर्णन करना, सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- अनभिहित दोष
80. पद्य छंद के संबंध अनुचित योजना करना, सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- अपद दोष
81. जिस सूत्र में वस्तु का स्वभाव से विपरीत चित्रण किया जाये, यह सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- स्वभाव हीन दोष
82. प्रासंगिक विषय को छोड़कर अप्रासंगिक विषय का वर्णन करना और पुनः प्रासंगिक विषय पर आ जाना, यह सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- व्यवहित दोष
83. जिस सूत्र में भूत, भविष्य, वर्तमान का ध्यान न हो, सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- काल दोष
84. पद्य या गद्य रचना में पूर्ण विराम, अर्ध विराम आदि का ध्यान न रखा हो, यह सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- यति दोष
85. जहाँ पर कोई विशेष अलंकार उपयुक्त हो, फिर भी उसे वहाँ नहीं कहना, यह सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- छवि दोष
86. किसी के मान्य सिद्धांत के विरूद्ध मत की स्थापना करना, यह सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- समयविरूद्ध दोष
(जैसे- वेदान्त को द्वैतवादी और जैन दर्शन को अद्वैतवादी कहना ।)
87. जिस सूत्र में युक्ति हेतु आदि कुछ न हो, केवल शब्द मात्र हो, यह सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- निर्हेतुक दोष
88. जिस वाक्य का अर्थोपत्ति से अनिष्ट अर्थ निकलता हो, सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- अर्थापत्ति दोष
89. जिस जगह समास होता है, वहाँ समास नहीं करना या विपरीत समास करना, सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- असमास दोष
90. हीन या अधिक उपमा बताना, यह सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- उपमा दोष
91. पदार्थों के स्वरूप एवं अवयवों का विपरीत रूपक के द्वारा वर्णन करना सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- रूपक दोष
92. निर्दिष्ट पदों में एकरूपता नहीं रखना सूत्र का कौन-सा दोष है ?
उत्तर- निर्देश दोष
93. आचारांग सूत्र के प्रथम अध्ययन का नाम क्या है ?
उत्तर- शस्त्र परिज्ञा
94. आचारांग सूत्र प्रथम अध्ययन में कितने उद्देशक हैं ?
उत्तर- 7 उद्देशक
95. शास्त्र के अनेकों विभागों को क्या कहते हैं ?
उत्तर - अध्ययन
96. एक अध्ययन में प्रयुक्त होने वाले अभिनव विषय को नये शीर्षक से प्रारंभ करने की पद्धति को आगमिक भाषा में क्या कहते हैं ?
उत्तर- उद्देशक
97. आचारांग सूत्र के प्रथम अध्ययन में शस्त्र को किसका कारण बताया गया है ?
उत्तर- महाभय का
98. शस्त्र से वैर बढ़ता है और वैर विरोध के बढ़ने से क्या बढता है ? उत्तर- संसार परिभ्रमण
99. आचारांग सूत्र के पहले उद्देशक में किसका सामान्य संबोधन करके वर्णन किया गया है ?
उत्तर- जीव का
100. आचारांग सूत्र के दूसरे उद्देशक में किससे निवृत्ति का उपदेश दिया गया है ?
उत्तर- पृथ्वीकाय की हिंसा से निवृत्ति का उपदेश ।
101. आचारांग सूत्र के तीसरे उद्देशक में किससे निवृत्ति का उपदेश दिया गया है ?
उत्तर- अपकाय की हिंसा से निवृत्ति का उपदेश ।
102. आचारांग के चौथे उद्देशक में किससे निवृत्ति का उपदेश दिया गया है ?
उत्तर- तेउकाय की हिंसा से निवृत्ति का उपदेश ।
103. आचारांग के पाँचवें उद्देशक में किससे निवृत्ति का उपदेश दिया गया है ?
उत्तर- वायुकाय की हिंसा से निवृत्ति का उपदेश ।
104. आचारांग सूत्र के छठें उद्देशक में किससे निवृत्ति का उपदेश दिया गया है ?
उत्तर- वनस्पतिकाय की हिंसा से निवृत्ति का उपदेश ।
105. आचारांग सूत्र के सातवें उद्देशक में किससे निवृत्ति का उपदेश दिया गया है ?
उत्तर- त्रसकाय की हिंसा से निवृत्ति का उपदेश
106. चेतना को क्या कहते हैं ?
उत्तर- संज्ञा
107. चेतना के कितने भेद हैं ?
उत्तर- दो - ज्ञान चेतना और अनुभव चेतना
108. विशेष बोध को क्या कहते हैं ?
उत्तर- ज्ञान चेतना
109. ज्ञान चेतना के कितने भेद हैं ?
उत्तर- पाँच ।
मतिज्ञान चेतना, श्रुतज्ञान चेतना, अवधिज्ञान चेतना, मनःपर्यवज्ञान चेतना और केवलज्ञान चेतना ।
110. संवेदन को कौन-सी चेतना कहते हैं ?
उत्तर- अनुभव चेतना (संज्ञा)
111. अनुभव चेतना (संज्ञा) के कितने भेद हैं ?
उत्तर- सोलह ।
आहार संज्ञा, भय संज्ञा, मैथुन संज्ञा, परिग्रह संज्ञा, क्रोध संज्ञा, मान संज्ञा, माया संज्ञा, लोभ संज्ञा, ओघ संज्ञा, लोक संज्ञा, सुख संज्ञा, दुःख संज्ञा, मोह संज्ञा, विचिकित्सा संज्ञा, शोक संज्ञा और धर्म संज्ञा ।
112. क्षुधा वेदनीय कर्म के उदय से उत्पन्न होने वाली आहार की अभिलाषा रूप आत्मा की परिणति कौन-सी संज्ञा है ?
उत्तर- आहार संज्ञा
113. आहार संज्ञा किन जीवों के होती हैं ?
उत्तर- एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के जीवों में होती है ।
114. आहार संज्ञा कितने कारणों से उत्पन्न होती है ?
उत्तर- चार कारणों से ।
1. क्षुधा वेदनीय के उदय से ।
2. पेट खाली होने से ।
3. आहार की कथा करने से ।
4. आहार का चिन्तन करने से, भोज्य वस्तु के श्रवण, दर्शन, चिन्तन से ।
115. किसी कारण से या बिना कारण के ही मोहनीय कर्म के उदय से भयभीत होने की आत्म परिणति क्या कहलाती है ।
उत्तर- भय संज्ञा
116. भय संज्ञा की उत्पत्ति के कितने कारण हैं ?
उत्तर- चार ।
1. दुर्बलता से अर्थात् अशक्तता के कारण ।
2. भय मोहनीय के उदय से ।
3. भय उत्पन्न करने वाली बात सुनने से ।
4. भयंकर वस्तु के देखने से अथवा इहलोक आदि में भयजनक वस्तु का विचार करने के कारण ।
117. भय संज्ञा जीवों में कब तक रहती है ?
उत्तर- संसार के अंत तक केवलज्ञान प्राप्ति से कुछ समय पूर्व तक रहती है ।
118. वेद मोहनीय कर्म के उदय से विषयेच्छा को तृप्त करने की अभिलाषा होना कौन-सी संज्ञा सै ?
उत्तर- मैथुन संज्ञा
119. मैथुन संज्ञा क्यों उत्पन्न होती है ?
उत्तर - शरीर में रक्त मांस की वृद्धि होने से, वेद मोहनीय कर्म के उदय से, स्त्रीकथा/पुरुषकथा आदि के श्रवण से उत्पन्न हुई बुद्धि से, मैथुन का विचार-चिन्तन करने से ।
120. लोभ मोहनीय/कषाय मोहनीय कर्म के उदय से धर्म के उपकरणों के सिवाय अन्य सचित्त, अचित्त, मिश्र पदार्थों को मूर्च्छा, आसक्ति, ममत्व भावों से ग्रहण करना कौन-सी संज्ञा है ?
उत्तर- परिग्रह संज्ञा
121- परिग्रह संज्ञा क्यों उत्पन्न होती है ?
उत्तर- अति मूर्च्छा, आसक्ति होने से, लोभ मोहनीय कर्म के उदय से, परिग्रह की बात सुनने से, परिग्रह का चिन्तन करने से, सचित्त-अचित्त- मिश्र रूप वस्तुओं का परिग्रह देखने से, संग्रह करने से परिग्रह संज्ञा उत्पन्न होती है ।
122- परिग्रह संज्ञा एकेन्द्रियादि जीवों में कैसे पायी जाती है ?
उत्तर- परिग्रह संज्ञा एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के जीवों में पायी जाती है । वनस्पति कायिक में परिग्रह संज्ञा- बिल्व (बेल) आदि वनस्पतियाँ अपने पत्तों से फूल-फल वगैरह को ढंक लेती है, इससे उनमें परिग्रह संज्ञा का होना प्रतीत होता है ।
123- क्रोध मोहनीय कर्म के उदय से जीव में जातिमद आदि से उत्पन्न, कर्तव्य-अकर्तव्य का विवेक नष्ट कर देने पर की अप्रीतिरूप एवं जलन आत्मा की विभाव परिणति कौन-सी संज्ञा है ?
उत्तर- क्रोध संज्ञा
124- कौन-सी संज्ञा से जीव अहंभाव, गर्व, घमंड का अनुभव करता है ?
उत्तर- मान संज्ञा
125- कौन से कर्म के उदय से विचारों में एवं वाणी में उत्तेजना अथवा आवेश आता है ?
उत्तर- क्रोध मोहनीय कर्म के उदय से ।
126- मान संज्ञा क्या है ?
उत्तर- मान मोहनीय के उदय से अहंकार रूप आत्मा की विभाव परिणति मान संज्ञा है । मान संज्ञा से जीव, अहंभाव, गर्व, घमंड का अनुभव करता है ।
127- किस संज्ञा के कारण जीव छल-कपट-धूर्त-ठगाई-वंचकता आदि क्रियाएँ करता है ?
उत्तर- माया संज्ञा के कारण ।
128- माया संज्ञा क्या है ?
उत्तर- माया मोहनीय के उदय से जीव की कपटभाव रूप विभाव परिणति होना माया संज्ञा है माया संज्ञा के कारण जीव छल-कपट-धूर्त-ठगाई-वंचकता आदि क्रियाएँ करता है ।
129- लोभ संज्ञा क्या है ?
उत्तर- लोभ मोहनीय कर्म के उदय से सचित्त-अचित्त आदि वस्तुओं पर आसक्ति बंधन रूप विभाव परिणति लोभ संज्ञा है । भौतिक पदार्थों, विषय-वासनाओं एवं भोगोपयोग के साधनों को प्राप्त करने की लालसा बनाए रखना, संग्रह की कामना को बढ़ाते रहना लोभ संज्ञा का उदाहरण है ।
130- ओघ संज्ञा क्या है ?
उत्तर- ज्ञानावरणीय कर्म के अल्प क्षयोपशम से उत्पन्न होने वाली तथा अव्यक्त (अप्रकट) उपयोग रूप जीव का विभाव परिणमन ओघ संज्ञा है ।
131- लोक संज्ञा क्या है ?
उत्तर- ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से और मोहनीय कर्म के उदय से कुबुद्धि जनित तर्क रूप आत्मा की विभाव परिणति लोक संज्ञा है । जैसे - 'अपुत्रस्य गतिर्नास्ति' - पुत्र रहित को सद्गति नहीं मिलती, आदि लोक प्रचलित मान्यताओं पर विश्वास करना तथा उनके अनुसार अपनी धारणा बना लेना ।
132- सुख संज्ञा क्या है ?
उत्तर- संसारी जीवों को साता वेदनीय के उदय से सभी इन्द्रियों एवं मन के अनुकूल प्रतीत होने वाली विषयों के उपभोग एवं आनंद की अनुभूति सुख संज्ञा है ।
133- दुःख संज्ञा क्या है ?
उत्तर- संसारी जीवों को असाता वेदनीय के उदय से सभी इन्द्रियों के एवं मन के प्रतिकूल प्रतीत होने वाली, विविध प्रकार के संतापों का अनुभव रूप जीव की परिणति दुःख संज्ञा है ।
134- मोह संज्ञा के कारण जीव किसमें आसक्त रहता है ?
उत्तर- विषय-वासना एवं कषायों में ।
135- मोह संज्ञा क्या है ?
उत्तर- मोहनीय कर्म के उदय से मिथ्या दर्शन रूप तथा ज्ञानादि गुणों का निषेध करने वाली, समस्त पापस्थानकों का कारण रूप आत्मा की विभाव परिणति मोह संज्ञा है । कुदेव, कुगुरु, कधर्म आदि में प्रवृत्ति होने से मोह संज्ञा का ज्ञान होता है । मोह संज्ञा के जीव विषय-वासना एवं कषायों में आसक्त रहता है ।
136- विचिकित्सा संज्ञा क्या है ?
उत्तर- मोहनीय एवं ज्ञानावरणीय कर्म के उदय से सर्वज्ञ भगवान द्वारा प्ररूपित धर्म एवं तत्त्वों में शंका-संशय रूप आत्मा का परिणमन विचिकित्सा संज्ञा है ।
137- विचिकित्सा संज्ञा के दो प्रकार कौन से हैं ?
उत्तर- देशतः विचिकित्सा संज्ञा और सर्वतः विचिकित्सा संज्ञा ।
138- वास्तव में परलोक है या नहीं ? सर्वज्ञ के द्वारा प्ररूपित जीव आदि तत्त्व यथार्थ है या नहीं ? इस प्रकार का संशय होना कौन-सी संज्ञा है ?
उत्तर- सर्वतः विचिकित्सा संज्ञा ।
139- 22 परीषहों को सहने का, ब्रह्मचर्य पालन का, केश लुंचन आदि कायक्लेश सहने का फल मिलेगा या नहीं, इस प्रकार का संशय होना कौन-सी संज्ञा है ?
उत्तर- देशतः विचिकित्सा संज्ञा ।
140- मोहनीय कर्म के उदय से इष्ट वस्तु के न मिलने पर या उसका वियोग होने पर तथा अनिष्ट वस्तु का संयोग पाकर रोना, पीटना, विलाप आदि करना कौन-सी संज्ञा है ?
उत्तर- शोक संज्ञा ।
141- इष्ट वियोग, अनिष्ट संयोग से उत्पन्न होने वाली आत्मा की विभाव परिणति कौन-सी संज्ञा है ?
उत्तर- शोक संज्ञा ।
142- मोहनीय कर्म के क्षयोपशम से कर्म क्षयजनक सर्वविरति तथा देशविरति रूप आत्मा की स्वभाव परिणति कौन-सी संज्ञा है ?
उत्तर- धर्म संज्ञा ।
143- जीवरक्षा, यतना, विवेक, उपयोग आदि व्यापारों से जीव की कौन-सी संज्ञा का ज्ञान होता है ?
उत्तर- धर्म संज्ञा ।
144- योनियाँ कितने प्रकार की हैं ?
उत्तर- प्रज्ञापना सूत्र के नवमें योनिपद में 3-3 भेद 4 प्रकार से बताते हुए कुल 12 भेद बताये हैं
पहले प्रकार से योनि के तीन भेद - शीत योनि, उष्ण योनि, शीतोष्ण योनि ।
दूसरे प्रकार से योनि के तीन भेद - सचित्त योनि, अचित्त योनि, सचित्ताचित्त योनि ।
तीसरे प्रकार से योनि के तीन भेद - संवृत्त योनि, विवृत्त योनि, संवृत्त-विवृत्त योनि ।
चौथे प्रकार से योनि के तीन भेद - कूर्मोन्नत योनि, शंखावृत्ता योनि, वंशीपत्रा योनि ।
145- योनि क्या है ?
उत्तर - जीव औदारिक, वैक्रिय आदि शरीर वर्गणा के पुद्गलों को लेकर जिसमें मिश्रित होता है, संबंध करता है वह स्थान 'योनि' है अथवा जीव की उत्पत्ति का स्थान 'योनि' है ।
1. श्रुत ज्ञान के कितने भेद है ?
उत्तर - श्रुत ज्ञान के दो भेद है। * अंग प्रविष्ट, अंग बाह्य *
2. द्वादशांग में कुल कितने पद है ?
उत्तर - द्वादशांग में कुल ११२ करोड़ ५७ लाख ५ हजार ५ पद है।
(कंही कंही शास्त्रो में 112 करोड़ 83 लाख 58 हजार 5 पद भी बताए गए हैं।)
3. एक पद कितने अक्षरों का होता है?
उत्तर - एक मध्यम पद 1634 करोड़, 83 लाख 7888 अक्षर का होता है।
4. द्वादशांग में कुल कितने अक्षर हैं ?
उत्तर - द्वादशांग में कुल 18446744073709559551615
(1 लाख 84 हजार 4 सौ 67 कोड़ाकोड़ी 44 लाख 7 हजार 3 सौ 70 करोड़ 95 लाख 51 हजार 6 सौ पन्द्रह) अक्षर हैं।
5. ज्योतिष का ज्ञान कौनसे अंग से निकला है
उत्तर - ज्योतिष का ज्ञान दृष्टिवाद अंग से निकला है।
6. पूर्व में सम्पूर्ण पद कितने है ?
उत्तर - पूर्व में 95 करोड़ 50 लाख 5 पद है।
7. विद्यानुवाद पूर्व में किसका वर्णन है?
उत्तर - विद्यानुवाद पूर्व में 700 लघु विद्या 500 महाविद्याओं आठ महा निमित्त, रज्जु राशविधि, क्षेत्र, श्रेणी, लोक प्रतिष्ठा, समुद्घाट, आदि का वर्णन है। विशेषतः तंत्र, मन्त्र एवं यंत्र का वर्णन है।
8. तीन सौ त्रेसठ मिथ्यामतों के निराकरण का वर्णन कौन से पूर्व में हैं।
उत्तर - तीन सौ त्रेसठ मिथ्यामतों के निराकरण का वर्णन सूत्र - सूत्र नाम का अर्थधिकार पूर्व मे है।
9. अंग बाह्य श्रुतज्ञान के सम्पूर्ण अक्षर का प्रमाण कितना है?
उत्तर - अंग बाह्य श्रुतज्ञान के सम्पूर्ण अक्षर का आठ करोड़ एक लाख आठ हजार एक सौपिचहत्तर (80108175) प्रमाण है।
10 भगवान महावीर स्वामी जी के निर्वाण के पश्चात्त कितने कौन केवली हुए?
उत्तर - भगवान महावीर स्वामी जी के निर्वाण के पश्चात्त गौतम, सुधर्मा और जम्बूस्वामी 3 केवली हुए।
11. भगवान महावीर स्वामी जी के निर्वाण के पश्चात्त कितने श्रुत केवली हुए?
उत्तर - भगवान महावीर स्वामी जी के निर्वाण के पश्चात्त 5 श्रुत केवली हुए। विष्णुनन्दि, नन्दिमित्र, अपराजित, गोवर्धनाचार्य, व भद्रबाहुस्वामी।
12. भगवान महावीर स्वामी जी के निर्वाण के पश्चात्त कितने दस पूर्व के ज्ञाता कौन हुए उनके नाम ?
उत्तर - भगवान महावीर स्वामी जी के निर्वाण के पश्चात्त दस
पूर्व के ज्ञाता प्रमुखता से 11 हुए उनके नाम विशाखाचार्य, प्रोष्ठिलाचार्य, क्षत्रियाचार्य, जयसेनाचार्य, नागसेनाचार्य, सिद्धार्थाचार्य, घृतिसेनाचार्य, विजयाचार्य, बृद्धिलिंगाचार्य, देवाचार्य व धर्मसेनाचार्य।
(नोट-इसी क्रम में आचार्य दोलामस व कल्याण मुनि के बारे में इतिहास में प्रचुरता से भी वर्णन हैं।)
13 भगवान महावीर स्वामी जी के निर्वाण के पश्चात्त कितने ग्यारह अंग के ज्ञाता हुए उनके नाम?
उत्तर- भगवान महावीर स्वामी जी के निर्वाण के पश्चात्त 5 ग्यारह अंग के ज्ञाता हुए उनके नाम क्रमशः नक्षत्राचार्य, जयपालाचार्य, पाण्वाचार्य, ध्रुवसेनाचार्य व कंसाचार्य हैं।
14. भगवान महावीर स्वामी जी के निर्वाण के पश्चात्त कितने एक अंग के ज्ञाता हुए उनके नाम उत्तर - भगवान महावीर स्वामी जी के निर्वाण के पश्चात्त 4 एक अंग के ज्ञाता हुए उनके नाम क्रमशः तदनंतर सुभद्र, यशोभद्र, यशोबाहु और लोहार्य ।
15. भगवान महावीर स्वामी जी के निर्वाण के पश्चात्त कितने
अंग के एक देश के ज्ञाता हुए उनके नाम? उत्तर- भगवान महावीर स्वामी जी के निर्वाण के पश्चात्त आचार्य अंग के एक देश के ज्ञाता हुए उनका नाम आचार्य अर्हदबलि जी, धरसेनाचार्य जी थे।
16. भगवान महावीर स्वामी जी के निर्वाण के पश्चात्त कितने समय के बाद शास्त्र लिखना प्रारंभ हुए ? उत्तर - भगवान महावीर स्वामी जी के निर्वाण के पश्चात्त 683 वर्ष के बाद शास्त्र लिखना प्रारंभ हुए।
17. कम से कम श्रुतज्ञान को क्या कहते हैं?
उत्तर - कम से कम श्रुतज्ञान को पर्याय श्रुतज्ञान कहते हैं।
18. जैन शासन में सबसे बड़ा शास्त्र कौनसा है और रचियता कौन है?
उत्तर - जैन शासन में सबसे बड़ा शास्त्र गंधहस्ति महा काव्य (तत्त्वार्थ सूत्र टीका 84000 श्लोक प्रमाण) है आचार्य श्री समन्तभद्र स्वामी है।
19. ऐसा कौनसा शास्त्र है जिसमें लगभग 3500 रोगों की चिकित्सा का वर्णन है?
उत्तर - कल्याण कारक ग्रन्थ एक ऐसा शास्त्र है जिसमें लगभग 3500 रोगों की चिकित्सा का वर्णन है।
20. अष्टांग निमित्त के विशेष ज्ञाता आचार्य श्री का क्या नाम था ?
उत्तर - अष्टांग निमित्त के विशेष ज्ञाता आचार्य श्री का नाम आचार्य भद्रबाहु था ।
21. ऐसा स्थान जहां ना अंधेरा है और ना ही प्रकाश है? उत्तर - अलोकाकाश
22. ऐसा स्थान जहां प्रकाश है तो प्रकाश ही है, और अंधेरा है तो अंधेरा ही है?
उत्तर - नरक एवं ढाई द्वीप के बाहर स्थान है जहां प्रकाश है तो प्रकाश ही है, और अंधेरा है तो अंधेरा ही है।
23. वह स्थान जहां सूर्य चन्द्रमा तो है पर उनका उपयोग नहीं है?
उत्तर -भोगभूमि, समवशरण, नंदीश्वर स्थान है जहां सूर्य चन्द्रमा तो है पर उनका उपयोग नहीं कारण वहां कल्पवृक्ष है।
24. वह क्या है जो अरिहंत परमेष्ठी नहीं देखते किन्तु मनुष्य देखते हैं?
उत्तर- वह स्वप्न है जो अरिहंत परमेष्ठी नहीं देखते किन्तु मनुष्य देखते हैं।
25. मुनिराज के आवश्यक संबंधी कितने कृतिकर्म होते हैं? उत्तर - मुनिराज के आवश्यक संबंधी 28 कृतिकर्म होते हैं।
26. प्रतिक्रमण कितने प्रकार का होता है?
उत्तर - प्रतिक्रमण 7 प्रकार का होता है। दैवसिक, रात्रिक, ईर्यापथिक, पाक्षिक, चातुर्मासिक, संवत्सरिक (वार्षिक), औतमार्थिक प्रतिक्रमण जो सल्लेखना के समय होता है।
27. मुनिराज के कितने उत्तरगुण होते हैं?
उत्तर- मुनिराज के 84 हजार उत्तर गुण होते हैं।
28. लौकांतिक देवों की संख्या कितनी है?
उत्तर- लौकांतिक देवों की संख्या 407806 है।
29. पर्याप्त मनुष्य की संख्या कितने अंक प्रमाण है।
उत्तर- पर्याप्त मनुष्य की संख्या 29 अंक प्रमाण है।
30. नियम संल्लेखना का उत्कृष्ट काल कितना है।
उत्तर- नियम संल्लेखना का उत्कृष्ट काल 12 वर्ष है।
31. तीन लोकों मेंअकृत्रिम चैत्यालय कितने हैं?
उत्तर- तीन लोकों मेंअकृत्रिम चैत्यालय 8 करोड़ 56 लाख 97
हजार 4 सौ 81 हैं।
32. तीन लोकों के अकृत्रिम चैत्यालय में कितनी प्रतिमा है?
उत्तर - तीन लोकों के अकृत्रिम चैत्यालय में प्रत्येक चैत्यालय में 108 जिन प्रतिमा है इस प्रकार 925 करोड़ 53 लाख 27 हजार 9 सौ 48 प्रतिमाए है।
33. नंदीश्वर द्वीप में कुल कितनी प्रतिमा विराजमान है?
उत्तर - नंदीश्वर द्धीप में कुल ५६१६ प्रतिमा विराजमान है।
34. अधोलोक में कितने अकृत्रिम चैत्यालय है?
उत्तर- अधोलोक में 7 करोड़ 72 लाख अकृत्रिम चैत्यालय है।
35. ऐसा जीव जिसके औपशमिक क्षयोपशमिक, क्षायिक, औदायिक, पारिणामिक पांचों भाव हैं?
उत्तर - उपशम श्रेणी आरोहण करते हुए क्षायिक भाव वाले सम्यकदृष्टि मुनि के ५ भाव हो सकते हैं।
36. एक ऐसा संसारी जीव है जिसे सम्यक्तव नही, मिथ्यात्व नहीं, देश संयम नहीं, सकल संयम नहीं, समुद्धघात नहीं, मरण भी नही होता?
उत्तर - मिश्र गुण स्थान वर्ती ऐसा संसारी जीव है जिसे सम्यक्तव नही, मिथ्यात्व नहीं, देश संयम नहीं, सकल संयम नहीं, समुद्धघात नहीं, मरण भी नही होता।
37. एक ऐसा गुणस्थान जहां मात्र एक ही प्रकृति का बंध होता हैं?
उत्तर - सयोग केवली गुणस्थान जहां मात्र एक ही सांता वेदनीय प्रकृति का बंध होता हैं।
38. तीन लोकों के जिनालयों की पूजा वाला विधान कौनसा है?
उत्तर - तीन लोकों के जिनालयों की पूजा वाला सर्वतोभद्र महामंडल विधान, तीन लोक महामंडल विधान है।
39. ज्ञान अपेक्षा सम्यकदर्शन के कितने भेद है?
उत्तर - ज्ञान अपेक्षा सम्यकदर्शन के २ भेद अवगाढ़, परमवगाढ़ है।
40. निमित्त अपेक्षा सम्यग्दर्शन के कितने भेद है?
उत्तर - निमित्त अपेक्षा सम्यग्दर्शन के 8 भेद है। सूत्र, बीज, संक्षेप विस्तार, आज्ञा, मार्ग, अर्थ, उपदेश।
41. सात नरों में कितने पटल है?
उत्तर - सात नरर्कों में ४९ पटल है।
42. 16 स्वर्गो में कितने पटल है?
उत्तर -16 स्वर्गों में 63 पटल है।
43. निगोदिया जीव कहां पर नहीं है? आठ जगह निगोदिया नहीं रहते हैं पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, देव, नारकी, आहार शरीर, केवली भगवान के शरीर में।
44. आलौकित गणित में संख्यामान के कितने भेद है?
उत्तर - आलौकित गणित में संख्यामान के 3 भेद है। (उत्तर भेद 21 हैं)
45. स्वर्गों में देवीयों की आयु कितनी है?
उत्तर - स्वर्गों में देवीयों की आयु ५ पल्य से ५५ पल्य तक है। (अर्थात् पाँच पल्य से शुरू करके सहस्रार स्वर्ग की सत्ताईस पल्य तक दो-दो पल्य बढ़ायी गयी है। पुनः आगे सात-सात पल्य बढ़कर सोलहवें स्वर्ग में पचपन पल्य हो गयी है।)
46. आचार्य कुन्दकुन्द स्वामी जी ने कितने पाहुड की रचना की है?
उत्तर- आचार्य कुन्दकुन्द स्वामी जी ने 84 पाहुड की रचना की है।
47. जम्बूद्वीप में कितने आर्य खण्ड है?
उत्तर - जम्बूद्वीप में ३४ आर्य खण्ड है।
48. श्रुत पंचमी पर्व का शुभारंभ कहां से हुआ ?
उत्तर - श्री पुष्पदंत जी महाराज एवं मुनि श्री भूतबली जी महाराज ने करीब 2000 वर्ष पूर्व गुजरात के अंकलेश्वर में ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी के दिन जैन धर्म के प्रथम ग्रंथ श्री षटखंडागम की रचना पूर्ण की थी। इसी कारण ज्येष्ठ शुक्ल के पांचवें दिन श्रुत पंचमी मनाई जाती है।
49. सम्यकज्ञान के कितने अंग है?
उत्तर - सम्यकज्ञान के ८ अंग है।
50. धरसेनाचार्य के चरण एवं गुफा कहां पर है?
उत्तर - धरसेनाचार्य के चरण एवं गुफा सौराष्ट्र के कठियावाड़ के गिरनार पर चन्द्र गुफा चरण है।
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