आगम गगन में उडान*


🙏सादर जय जिनेन्द्र
*आगम गगन में उडान*
इस नाम के ग्रुप में आप जुड़ गये हैं तो परम सौभाग्य की बात है।वैदिक शास्त्रों को जैसे *"वेद"* और बोद्ध शास्त्रों को *"पिटक"* कहा जाता है वैसे ही जैन शास्त्रों को *"आगम"* कहा जाता है

*🌸🌸 आगम गगन में उड़ान 🌸🌸*
           *।। श्रीमहावीराय नमः।।*
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*🔸 🔸 🔸  भूमिका  🔸 🔸 🔸*
(  प्रारम्भ  एक  रूप  कथा  से  )
*◆ उपवन में एक घटादार और रमणीय वृक्ष है जिसकी छाया शीतल है।*

*◆ जो व्यक्ति इस वृक्ष की छाया में विश्रांति करता है उसका ताप (गर्मी) दूर हो जाता है।*

*◆ शाखाओं और प्रशाखाओं से सुसज्ज यह वृक्ष अपने चित्त को चोर ले ऐसा है,और हाँ उसके पुष्पों की सुगंध और सौरभ से समस्त वातावरण मादक बन जाता है।*

*◆ इस वृक्ष पर सुमधुर फल लगे हैं,जिन्हें देखकर हर किसी का इनके स्वाद में लुप्त हो जाने का मन हो जाता है।*

*◆ परन्तु इस वृक्ष पर कोई चढ़ नहीं सकता लेकिन एक हिम्मत वाला आदमी उस वृक्ष पर चढ़ जाता है।*

*◆ नीचे खड़े रहे लोग तो उसे देखते ही रह गये।उन्होंने वृक्ष पर चढ़े हुए दयालु व्यक्ति को फल देने की विनंती की।*

*☝️ इस रूपकथा के साथ हम जिनागम का अनुसंधान करते हैं... समझने का प्रयास करते हैं..*

*👉घटादार वृक्ष... यानि केवलज्ञान और केवलदर्शन*

*🙏वृक्ष पर चढ़ जाने वाले... तीर्थंकर परमात्मा*

*👏गणधर भगवंत नीचे खड़े होकर झोली फैलाते हुए पूछते हैं...*

*....❓❓  किम् तत्वम् ❓ ❓....*

*☝️उनकी झोली में जो फल गिरते हैं वे है......*

*🙏☝️🙏 अपने आगमसूत्र 🙏☝️🙏*

*कहा जाता है कि जिनशासन जयवंतु हैं।*
( हम सभी उस प्रकार के नारे भी लगाते हैं )

*लेकिन क्या आपको पता हैं...इस जिनशासन को जयवंता बनाने वाला तत्व कौन-सा हैं ?*

*☝️☝️वह तत्व है "जिनागम"☝️☝️*

*कत्थ अम्हारिसा प्राणी, दुसमा दोसदूसिया।*

*हा अण्हा कहं हुंता,जई न हुंतो जिनागमो।।*

                    *अर्थात्*                 

*दुषमकाल में दोष से दूषित ऐसे हमारे जैसै पामर जीवों का क्या होता ? जो जिनेश्वर देव के ये आगम हमें प्राप्त नहीं हुए होते ?*

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*❓❓आगम का अर्थ क्या❓❓*

*आगम की शास्त्रीय परिभाषा करते हुए बताया गया हैं कि...*

 *आगम्यते ज्ञायते वस्तुतत्वमनेनेति आगम:*

                       *अर्थात्*                 

*☝️जो सिद्धांतों द्वारा यथार्थ रूप से वस्तु का बोध कराए ,उसे आगम कहते हैं।*

*☝️जिसके माध्यम से खुद के आत्मा को जान सकें ,मान सकें उन्हें आगम कहते हैं।*

*🙏जिसको गणधर भगवंतों ने सूत्र के रूप में गूँथ कर जो द्वादशांगी बनाई - - वो ही हैं आगम।*

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*🙏☝️🙏 आगम परिचय 🙏☝️🙏*

*☝️जैन धर्म, दर्शन व संस्कृति का मूल आधार वीतराग सर्वज्ञ की वाणी है।*

*🙏तीर्थंकरों की वाणी मुक्त सुमनों की वृष्टि के समान होती है।*

*👏महान प्रज्ञावान गणधर उसे सूत्र रूप में ग्रंथित करके व्यवस्थित "आगम" का रूप देते हैं।*

        *☝️पहले लिखने की परम्परा नहीं थी तब आगमों को स्मृति के आधार पर या गुरु परम्परा से सुरक्षित रखा जाता था।भगवान महावीर के बाद लगभग एक हजार वर्ष आगम इसी प्रकार स्मृति परम्परा पर ही चले आते थे।धीरे-धीरे आगम ज्ञान लुप्त होता गया।महासरोवर का जल सूखता-सूखता गोष्पद जितना रह गया।वि.नि. के 980 या 993 वर्ष पश्चात देवार्द्धिगणी क्षमाश्रमणने श्रमणों का सम्मेलन बुलाकर जीनवाणी रूपी आगम ज्ञान को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से लिपिबद्ध करने का ऐतिहासिक प्रयास किया।पुनः विक्रम की 16वीं शताब्दी में लोकाशाह ने एक क्रांतिकारी प्रयत्न किया।आगमों के शुद्ध और यथार्थ अर्थ-ज्ञान को निरूपित करने का एक साहसिक उपक्रम पुनः चालू हुआ।किन्तु कुछ काल बाद उसमें भी व्यवधान आ गए।उन्नीसवीं शताब्दी के प्रथम चरण में जब आगम-मुद्रण की परम्परा चली तो पाठकों को कुछ सुविधा हुई।*
*☝️आगम जिनशासन के शणगार समान हैं ,जिसके परिचय से हम अपने जीवन को रत्नत्रयी और तत्वत्रयी से शणगार दें... यही तो मनुष्य जीवन की सार्थकता और सफलता है।*
*☝️आगमों की संख्या के विषय में अनेक मत प्रचलित है।उनमें से तीन मुख्य हैं.....*
*84   आगम*
*45   आगम*
*32   आगम*
*🙏हम 32 आगम...(11 अंग , 12 उपांग , 4 मूल ,4 छेद  और 1 आवश्यक) के बारे में संक्षेप में जानने का प्रयास करेंगे क्रमशः आगामी पोस्ट में....*
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*🌸🌸 आगम गगन में उड़ान 🌸🌸*
           *।। श्रीमहावीराय नमः।।*
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*🔸🔸🔸प्रथम आगम 🔸🔸🔸*
*🔹🔹श्री आचारांग सूत्र🔹🔹*

*🙏जिनागमो में प्रथम आगम यानि आचारांग सूत्र।*

*☝️आचारांग का दूसरा नाम वेद भी है।*

>>यहाँ प्रश्न हो सकता है कि इस आगम को ही प्रथम क्यों माना गया है ?

   *"आचार: प्रथमो धर्म:"।*
 आचार अपना सर्वप्रथम धर्म है।साधु जीवन में आचार और विचार के बिना एक कदम भीआगे नहीं बढ़ा जा सकता है।इस आगम (सूत्र) में साधु-साध्वियों को कौन-से आचारों का पालन कब करना चाहिए इसके बारे में बताया गया है।मूख्यतः इस आगम में छह जीव निकाय का सुंदर वर्णन किया गया है।

     *आचारांग सूत्र का स्वरूप नंदी सूत्र में बहुत अच्छी तरह समझाया गया है। संक्षेप में आचार के पाँच प्रकार है...*

*1.ज्ञानाचार   2.दर्शनाचार  3.चारित्राचार*
*4.तपाचार  और 5.वीर्याचार।*
*☝️आचार मुक्तिमहल में प्रवेश करने का भव्य द्वार है।उससे आत्मा पर लगे अनन्त काल का कर्म-मल छट जाता है।*

जिनशासन मानता है कि विचारों का उद्गम बिंदु भी आचार है।व्यवहार मात्र विचार से नहीं बल्कि आचार से चलता है, यह समझाने के लिए सबसे प्रथम आचारांग सूत्र को रखा गया है।

*☝️गणधर केवल द्वादशांगी की रचना करते हैं किन्तु अंगबाह्य आगमों की रचना स्थविर करते हैं।*

*☝️अतित काल में जितने भी तीर्थंकर हुए हैं, उन सभी ने सर्वप्रथम आचारांग का उपदेश दिया है।वर्तमान में जो तीर्थंकर महाविदेह क्षेत्र में विराजमान है वे भी आचारांग का ही उपदेश देते हैं और भविष्यकाल में जितने भी तीर्थंकर होंगे वे भी सर्वप्रथम आचारांग का ही उपदेश देंगे।*

*☝️आचारांग का अध्ययन किये बिना कोई भी श्रमण आचार्य पद को प्राप्त नहीं कर सकते।*

    *आचारांग सूत्र बारह अंगों (द्वादशांगी) में से प्रथम अंग सूत्र है।इस अंग सूत्र का दो श्रुतस्कन्ध और पच्चीस अध्ययनो में विभागीकरण किया गया है।*

*स्कन्ध... यानि ...समुदाय।*

*श्रुतज्ञान के संचय(समुदाय)को श्रुत स्कन्ध कहते हैं।*

*🔹🚥🔸प्रथम श्रुतस्कन्ध🔸🚥🔹*

*प्रथम श्रुतस्कन्ध के नौ अध्ययन है। इसे "नव ब्रह्मचर्याध्ययन" भी कहा जाता है।ब्रह्मचर्य का अर्थ ही श्रमण धर्म है।इसमें श्रमण आचार (अहिंसा-संयम-समभाव-कषाय विजय-अनासक्ति और विमोक्ष आदि) का वर्णन है।*

     *☝️प्रथम श्रुतस्कन्ध के नौ अध्ययनों में सातवें अध्ययन का दस पूर्वधर श्री वज्र स्वामी के स्वर्ग गमन के बाद विच्छेद हो गया था।*
 (सातवें अध्ययन की सहाय से श्री वज्र स्वामी ने आकाश गामिनी विद्या प्रकट की थी)

*☝️आचारांग निर्युक्ति में आचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध के नौ अध्ययनों का सार संक्षेप में इस प्रकार है....*

*●जीव-संयम , जीवों के अस्तित्व का प्रतिपादन और उसकी हिंसा का परित्याग।*

*●किन कार्यों के करने से जीव कर्मों से आबद्ध होता है और किस प्रकार की साधना करने से जीव कर्मों से मुक्त होता है।*

*●श्रमण को अनुकूल और प्रतिकूल उपसर्ग उपस्थित होने पर सदा समभाव में रहकर उन उपसर्गों को सहन करना चाहिए।*

*●दूसरे साधकों के पास अणिमा, गणिमा, लघिमा आदि लब्धियों के द्वारा प्राप्त ऐश्वर्य को निहारकर साधक सम्यक्त्व से विचलित न हो।*

*●इस विराट विश्व में जितने भी पदार्थ है वे निस्सार है, केवल सम्यक्त्व रत्न ही सार रूप है।उसे प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करें।*

*●सदगुणों को प्राप्त करने के बाद श्रमणों को किसी भी पदार्थ में आसक्त बनकर नहीं रहना चाहिए।*

*●संयम साधना करते समय यदि मोहजन्य उपसर्ग उपस्थित हो तो उन्हें सम्यक प्रकार से सहन करना चाहिए।पर साधना से विचलित नहीं होना चाहिए।*

*●सम्पूर्ण गुणों से युक्त प्रन्थक्रिया की सम्यक प्रकार से आराधना करनी चाहिए।*

*●जो उत्कृष्ट संयम साधना, तप आराधना भगवान महावीर ने की उसका प्रतिपादन किया गया है।*

*🙏 हम श्री आचारांग सूत्र के प्रथम श्रुतस्कन्ध के नौ अध्ययनों के बारे में संक्षेप में जानने का प्रयास करेंगे क्रमशः आगामी पोस्ट में....*
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*जिज्ञासा और समाधान*

*(1) अणिमा, गणिमा, लघिमा*
(यहाँ संक्षेप में उत्तर लिख रहा हूँ कारण कि यह जिनागमो और जैन धर्म की मान्यता अनुसार नहीं है)

*वैदिक धर्म में आठ प्रकार की सिद्धियों का उल्लेख मिलता है।जिसमें ये तीन सिद्धियां भी है।
*अणिमा :--* अपने शरीर को एक अणु के समान छोटा कर लेने की क्षमता।
*गणिमा :--* शरीर को अत्यंत भारी बना देने की क्षमता।
*लघिमा :--* शरीर है वैसा ही परन्तु उसे भार रहित करने की क्षमता।
*🙏साधक को दूसरे साधकों के पास ऐसी लब्धियों से प्राप्त ऐश्वर्य को देखकर सम्यक्त्व से विचलित नहीं होना चाहिए।*







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