आहार

हम जो खाते हैं हम वैसे ही बन जाते हैं” जैन श्रावक की पहचान के तीन चिह्न कहे गये हैं। उसमें सर्वप्रथम प्रतिदिन देव दर्शन, दूसरा रात्रि भोजन त्याग और तीसरा छान कर पानी पीना है। रात्रि भोजन त्याग का अर्थ – सूर्य अस्त होने के पश्चात् चारों प्रकार के आहार (भोजन) का त्याग करना है। वे चार प्रकार के आहार- खाद्य - दाल, रोटी भात आदि। स्वाद - इलायची, लौंग, सौंफ आदि। लेय - रवड़ी, लपसी, दही आदि। पेय - जल, रस, दूध आदि। भोजन के कितने प्रकार है हमारे सनातन धर्म में हर चीज को लेकर कुछ मान्यताये है जो वैज्ञानिक द्रष्टि से भी सही जान पड़ती है | हमारे मन और शरीर पर इस बात का भी बहुत फर्क पड़ता है की भोजन किस प्रकार का है और कितनी मात्रा का है | कहा भी गया है , “जैसा खाओगे अन्न , वैसा रहेगा मन ” | जीवन को आगे वाला और उर्जा देने वाला भोजन भी हिन्दू धर्म में तीन भागो में बांटा गया है | यह आहार के तीन भाग सात्विक , राजसिक और तामसिक भोजन है | आइये जाने इन तीनो के बारे में विस्तार से | सात्विक आहार | Sattvic Food | Satvik Food सात्विक भोजन वह है जो शरीर को शुद्ध करता है और मन को शांति प्रदान करता है I पकाया हुआ भोजन यदि ३-४ घंटे के भीतर सेवन किया जाता है तो इसे सात्विक माना जाता है I उदाहरण - ताजे फल, हरी पत्तेदार सब्जियाँ,बादाम आदि, अनाज और ताजा दूधI राजसिक आहार |Rajasic Food ये आहार शरीर और मस्तिष्क को कार्य करने के लिए प्रेरित करते हैं। इनका अत्यधिक सेवन शरीर में अतिसक्रियता, बेचैनी, क्रोध, चिड़चिड़ापन, अनिद्रा इत्यादि लाते हैं I अतिस्वादिष्ट खाद्य पदार्थ राजसिक हैं I उदाहरण - मसालेदार भोजन, प्याज, लहसुन, चाय, कॉफी और तले हुए खाद्य पदार्थ I तामसिक आहार |Tamasic Food तामसिक भोजन वो हैं जो शरीर और मन को सुस्त करते हैंI इनके अत्यधिक सेवन से जड़ता, भ्रम और भटकाव महसूस होता है I बासी या पुन: गर्म किया गया भोजन, तेल या अत्यधिक भोजन और कृत्रिम परिरक्षकों से युक्त भोजन इस श्रेणी के अंतर्गत आते हैं I उदाहरण - मांसाहारी आहार, बासी भोजन, वसा का अत्यधिक सेवन, तेलयुक्त और अत्यधिक मीठा भोजनI सिर्फ सही प्रकार का भोजन ही नहीं बल्कि सही समय पर उचित मात्रा में भोजन करना भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। अत्यधिक खाने से शरीर में सुस्ती आती है जैन भोजन की समाविष्टि जैन धर्म के अंतर्गत हुई हैं, जो सात्विकता से परिपूर्ण, अहिंसक शाकाहारी भोजन हैं। जैन भोजन न केवल मांसाहार का त्याग करता हैं, बल्कि आम शाकाहार से वृहत्, वह कंदमूल (जमीकंद) को भी अभक्ष्य मानता हैं।






अभक्ष्य बाईस भी माने गये हैं

 ओला घोर बड़ा निशि भोजन, बहुबीजा बैंगन संधान ।
बड़, पीपर, ऊमर, कठऊमर, पाकर फल या होय अजान ।
कंदमूल माटी विष आमिष, मधु माखन अरू मदिरापान।
फल अतितुच्छ तुषार चलित रस, ये बाईस अभक्ष्य बखान ।

आहार को संतों ने, पूर्वाचार्यों ने, तीन भागों में विभाजित किया है।

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