कथा आनंदश्रावक
कल्पसूत्र प्रमाण-चातुर्मास सूची,
1.अस्थिग्राम-1
2,चम्पानगरी-3
3.वैशाली,(वाणिया ग्राम)-12
4,मिथिला नगरी-6
5,राजगृही,(नालंदा पाड़ा-14
6 .भदिया नगरी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,2
8,श्रावस्ती नगरी-1
9.वज्ज्रभूमि,,(अनार्य)-1
10,पावापुरी,,,,(अंतिम)-1
टोटल 42 चातुर्मास,,,इनमे से 12
चातुर्मास छद्मस्थ अवस्था मे
30,चातुर्मास अरिहंत तीर्थंकर पद में
प्रथम चातुर्मास राजगृहि मे किया
जहाँ मेघ कुमार की दीक्षा हुई
प्रभु महावीर का 15 वां चातुर्मास एवं आनंद श्रावक:-
श्रावकों का वर्णन है ,आनंद गाथापति का वर्णन प्रथम अध्ययन में आया है जिसका वर्णन आगम के आधार पर कर रहे हैं l
उस समय प्रभु महावीर ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए वाणिज्य ग्राम में पधारें| वहां का राजा जीत शत्रु था| वह अपनी प्रजा के साथ प्रभु महावीर के दर्शनार्थ आया | वहां समवसरण लगा हुआ था |प्रभु महावीर का मंगलमय प्रवचन चल रहा था |उसी नगर में आनंद नाम का श्रेष्ठी रहता था |उसके पास करोड़ों की संपत्ति विशाल खेत समुद्री जहाज व गायों के झुंड थे |उसने नगर में अद्भुत चहल- पहल देखी उसे पता चला कि जगतगुरु श्रवण भगवान महावीर पधारे हैं, लोग उनका प्रवचन सुनने' उनकी वंदना करने जा रहे हैं|
वह बहुत प्रसन्न हुआ |उसने स्नान किया शुद्ध वस्त्र पहने आभूषणों से शरीर को अलंकृत किया फिर वाणिज्य ग्राम के मध्य में गुजरता ध्दुतिपलाश चैत्य में पहुंचा | यहीं पर प्रभु महावीर अपना धर्म उपदेश दे रहे थे| आनंद ने तीन बार आदक्षिणा- प्रदक्षिणा पूर्वक प्रभु महावीर को वंदन नमस्कार किया| फिर योग्य स्थान ग्रहण कर प्रभु महावीर का उपदेश सुनने लगा | उपदेश उसे रुचिकर लगा| उसे प्रभु महावीर के निरग्रंथ प्रवचन पर आस्था श्रद्धा हो गई lप्रवचन संपन्न होने के पश्चात उसने प्रभु महावीर से निवेदन किया -
"प्रभु ! मैं साधु जीवन ग्रहण करने में असमर्थ हूं इसलिए मैं आप से गृहस्थ के द्वादश व्रत ग्रहण करना चाहता हूं "l
प्रभु महावीर ने कहा -" देवानुप्रिय! जैसे आपकी आत्मा को सुख हो, वैसा करो | पर शुभ कार्य में प्रमाद मत करो"|
इस प्रकार आनंद गाथा पति श्रवणोपासक बन गया |उसकी धर्मपत्नी शिवानंदा ने भी अपने पति का अनुसरण किया इन व्रतों नियमों व अन्य श्रावक को अवधिज्ञान का वर्णन इसी शास्त्र में आया हैं हम यथा समय आनंद के अवधि ज्ञान का वर्णन करेंगेl
इंद्रभूति गोतम ने भगवान से प्रश्न किया -"प्रभु क्या आनंद श्रावक श्रवण बनने में समर्थ है"?
प्रभु महावीर ने कहा -"गौतम ऐसा नहीं है |श्रमणोपासक आनंद साधु नहीं बनेगा |यह लंबे समय तक इन व्रतों की आराधना करेगा अंतिम समय अनशन पूर्वक शरीर त्याग, सौधर्मकल्प नामक स्वर्ग में अरुणाभ विमान में उत्पन्न होगा| इस देवलोक में उसकी आयु 4 पल्योपम की है"| इस प्रकार प्रभु महावीर ने वाणिज्य ग्राम के आसपास के ग्रामों में धर्म प्रचार किया फिर वर्षावास का समय बिताने वाणिज्य ग्राम में आ गए|
प्रभु महावीर का 15 वा चातुर्मास इसी वाणीज्य ग्राम में संपन्न हुआ, जहां अनेक भव्य जिवो ने अपनी आत्मा का कल्याण किया वाणिज्य ग्राम का वर्षावास पूरा करने के बाद आप पुनः मगध देश में पधारेl
कथा
किसी समय वाणिज्य नामक शहर में आनंद नामक व्यापारी रहता था | वह अपार धन संपदा का स्वामी था तथा राजा भी उसका सम्मान करता था|
एक बार उस शहर में भगवान महावीर स्वामी पधारे | आनंद भी उनके प्रवचन को सुनने पहुंचा | भगवान के प्रवचन को सुनकर उसने श्रावक धर्म स्वीकार कर लिया | चौदह वर्ष तक श्रावक धर्म का पालन करने के पश्चात उसने सारे सांसारिक कार्यों से विरक्त होने का निश्चय किया | उसने अपने पुत्रों को अपने व्यापार तथा परिवार की ज़िम्मेदारी देकर कहा की अब उसके धर्मध्यान में किसी तरह का व्यवधान न डाला जाए | इस प्रकार वो अपना शेष जीवन धर्मध्यान में व्यतीत करने लगा| धर्म का आचरण करते हुए उसे अवधिज्ञान की प्राप्ति हो गई|
कुछ समय पश्चात् वहां पर भगवान महावीर का पुन: पधारना हुआ| जब उनके शिष्य गौतम स्वामी गोचरी के लिए शहर में घूम रहे थे तब उन्होंने आनंद के गिरते हुए स्वास्थ्य तथा उसके अवधिज्ञान के बारे में सुना तो उससे मिलने का निश्चय किया|
गौतम स्वामी को अपने घर आया देख आनंद बड़ा प्रसन्न हुआ तथा अपने बिस्तर पर लेटे लेटे उनको वंदन किया| जब दोनों में चर्चा होने लगी तब आनंद ने अपने अवधिज्ञान के बारे में गौतम स्वामी को बताया तथा कहा की वो बारहवे देवलोक तक देख सकता है, इस पर गौतम स्वामी बोले की गृहस्थ को अवधिज्ञान होना तो संभव है परन्तु वो इतनी दूर तक नहीं देख सकता, अत : तुम्हें असत्य बोलने के लिए प्रायश्चित करना चाहिए |
यह सुनकर आनंद अचम्भित हो गया, क्यों की वह सत्य बोल रहा था| उसने गौतम स्वामी को पुछा “ हे भगवन ! क्या सत्य बोलने पर भी प्रायश्चित किया जाना आवश्यक है ?”
गौतम स्वामी को कुछ शंका हुई और इसे दूर करने वे महावीर स्वामी के पास पंहुचे तथा अपना व आनंद का वृतांत उनको सुनाया, तब महावीर स्वामी बोले “आनंद सत्य कह रहा है, आप जैसा ज्ञानी व्यक्ति ऐसी भूल कैसे कर सकता है ?” यह सुनकर गौतम स्वामी वापस आनंद के पास पंहुचे तथा अपनी भूल के लिए क्षमा मांगी|
आनंद को यह देख कर बड़ा सुख मिला के गौतम स्वामी इतने बड़े ज्ञानी महात्मा होकर भी भूल होने पर एक साधारण गृहस्थ से भी क्षमा मांगने में नहीं हिचकिचाते, अपने ज्ञान का उनको कोई अहंकार नहीं था| उसने सोचा, ऐसा धर्म तथा ऐसे ज्ञानी की संगति मिलने से वह धन्य हो गया|
एक बार उस शहर में भगवान महावीर स्वामी पधारे | आनंद भी उनके प्रवचन को सुनने पहुंचा | भगवान के प्रवचन को सुनकर उसने श्रावक धर्म स्वीकार कर लिया | चौदह वर्ष तक श्रावक धर्म का पालन करने के पश्चात उसने सारे सांसारिक कार्यों से विरक्त होने का निश्चय किया | उसने अपने पुत्रों को अपने व्यापार तथा परिवार की ज़िम्मेदारी देकर कहा की अब उसके धर्मध्यान में किसी तरह का व्यवधान न डाला जाए | इस प्रकार वो अपना शेष जीवन धर्मध्यान में व्यतीत करने लगा| धर्म का आचरण करते हुए उसे अवधिज्ञान की प्राप्ति हो गई|
कुछ समय पश्चात् वहां पर भगवान महावीर का पुन: पधारना हुआ| जब उनके शिष्य गौतम स्वामी गोचरी के लिए शहर में घूम रहे थे तब उन्होंने आनंद के गिरते हुए स्वास्थ्य तथा उसके अवधिज्ञान के बारे में सुना तो उससे मिलने का निश्चय किया|
गौतम स्वामी को अपने घर आया देख आनंद बड़ा प्रसन्न हुआ तथा अपने बिस्तर पर लेटे लेटे उनको वंदन किया| जब दोनों में चर्चा होने लगी तब आनंद ने अपने अवधिज्ञान के बारे में गौतम स्वामी को बताया तथा कहा की वो बारहवे देवलोक तक देख सकता है, इस पर गौतम स्वामी बोले की गृहस्थ को अवधिज्ञान होना तो संभव है परन्तु वो इतनी दूर तक नहीं देख सकता, अत : तुम्हें असत्य बोलने के लिए प्रायश्चित करना चाहिए |
यह सुनकर आनंद अचम्भित हो गया, क्यों की वह सत्य बोल रहा था| उसने गौतम स्वामी को पुछा “ हे भगवन ! क्या सत्य बोलने पर भी प्रायश्चित किया जाना आवश्यक है ?”
गौतम स्वामी को कुछ शंका हुई और इसे दूर करने वे महावीर स्वामी के पास पंहुचे तथा अपना व आनंद का वृतांत उनको सुनाया, तब महावीर स्वामी बोले “आनंद सत्य कह रहा है, आप जैसा ज्ञानी व्यक्ति ऐसी भूल कैसे कर सकता है ?” यह सुनकर गौतम स्वामी वापस आनंद के पास पंहुचे तथा अपनी भूल के लिए क्षमा मांगी|
आनंद को यह देख कर बड़ा सुख मिला के गौतम स्वामी इतने बड़े ज्ञानी महात्मा होकर भी भूल होने पर एक साधारण गृहस्थ से भी क्षमा मांगने में नहीं हिचकिचाते, अपने ज्ञान का उनको कोई अहंकार नहीं था| उसने सोचा, ऐसा धर्म तथा ऐसे ज्ञानी की संगति मिलने से वह धन्य हो गया|