महावीर कथा 6


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      *महावीर के उपदेश ग्रुप से*
 📕 *भगवान महावीर स्वामी का जीवन चरित्र* 📕

🔴 *इंद्रभूतिजी का समर्पण* 🔴3⃣1⃣4⃣
प्रभु की एक पुकार 🗣के साथ इंद्रभूति गौतम नजर👁👀 उठाकर देखते है और एक पल में कुछ अदभुत हो जाता है....एक पल में इंद्रभूति के सारे संशय का निराकरण हो जाता हैं।इंद्रभूति के मन मे एक सन्देह था , *आत्मा है या नही* ।
 🍁आत्म अस्तित्व को लेकर..मैं हु या नही ❓होने को लेकर भी समस्याए थी ,न होने को लेकर भी....प्रभु ने इंद्रभूति गौतम की जिज्ञासा का समाधान कर दिया।गौतम समझ गए😊 ।उनका सन्देह नष्ट हो गया ।वे भगवान के  चरणों मे नतमस्तक🙏🏼 हो कर बोले," भगवान मैं अज्ञान रूपी अंधकार में भटक रहा 😌और अपने को समर्थ मान रहा था।आज आपकी कृपा से मेरा अज्ञान नष्ट हो गया है।आपने मेरा भ्रम दूर😇 कर दिया ।आप समर्थ है सर्वज्ञ 🙏🏼है ...मैं आपका शिष्य हु  ।मुझे स्वीकार कीजिये..प्रभो !!"
इंद्रभूति गौतम 👲🏽प्रभु के शिष्य हो जाते है और यह संदेश सब जगह पहुचते देर नही लगती ।

      *महावीर के उपदेश ग्रुप से*
 📕 *भगवान महावीर स्वामी का जीवन चरित्र* 📕

🔴 *ग्यारह गणधर..* 🔴3⃣1⃣5⃣
🍁 ग्यारह के ग्यारह वे सोमिल ब्राम्हण👲🏽 के पुरोहित अपने शिष्यों के साथ प्रभु के पास दीक्षित हो जाते है एक मुहूर्त में चार हजार चार सौ चालीस शिष्य हो जाते है प्रभु के....🙏🏼🙏🏼
 🍁ये *इंद्रभूतिजी भगवान के प्रथम गणधर हुए*।इस प्रकार उत्तम कुल में उतपन्न ग्यारह महान👲🏽 पंडित ,प्रतिबोध पा कर अपने छात्र समूह के साथ भ महावीर प्रभु के शिष्य एवम गणधर हुए.....
🍁वो मंगल पथ🛣...वो मंगल बेला और वो तीर्थ की स्थापना ।तीर्थ की प्रवर्तना हो जाती है ।पूछते है ग्यारह गणधर प्रभु से

*किं तत्तं --तत्व क्या है*
*उप्पनेई वा प्रभु फरमाते है*
*किं सतं। सत्य क्या है*
*विगमेइं वा विगमन ,विलय प्रलय विनाश सत्य है*
*किं तत्तं फिर पूछते है गणधर*
*धुव्वेई वा ।शाश्वतता सत्य है ।अमृत्य सत्य है*
*उत्पाद व्यय धौव्य की त्रिपदी*

      *महावीर के उपदेश ग्रुप से*
 📕 *भगवान महावीर स्वामी का जीवन चरित्र* 📕

🔴  *त्रिपदी उपदेश* 🔴3⃣1⃣6⃣
  🍁भगवान के समवशरण में देवी देवता 👰🤴🏼आकाशमार्ग से आ रहे थे ।उन्हें जाते हुए शतानीक राजा 👑के भवन में रही हुई चंदना ने देखा🙄 ।
 🍁उसे निश्चय हो गयाकि भगवान को केवलज्ञान हो गया है।उसे भगवान के समवशरण में जा कर दीक्षित होने की उत्कट ✨⚡इच्छा हुई।
  🍃 *जिसके पुण्य का प्रबल उदय हो ,उसकी इच्छा तत्काल सफल होती हैं* ।🍃
  🍁निकट रहे हुए देव ने चंदना👰 को ले जा कर भगवान के समवशरण में रखा उस समय भगवान के उपदेश से प्रभावित हो कर  समवशरण में उपस्थित अनेक राजकुमारियां 👰👰आदि भी प्रवज्या ग्रहण करने को तत्पर हुई ।भगवान ने चन्दनबालाजी की प्रमुखता में सभी को प्रवज्या😷 प्रदान की ।हजारों नरनारी👨‍👩‍👧‍👦👨‍👩‍👧 देश विरत बने ।इस प्रकार चतुर्विधसंघ की स्थापना हुई
  🍁एक पल में इन तीन मातृका पदों के साथ ग्यारह ही गणधर आगमो की रचना करते है...
 *वैशाख शुक्ल ग्यारस ,जिनशासन का ये सनातन तीर्थ ,ये शाश्वत तीर्थ स्थापित होता हैं* ।


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 📕 *भगवान महावीर स्वामी का जीवन चरित्र* 📕

🔴  *तीर्थ की स्थापना* 🔴3⃣1⃣7⃣
🍁एक पल में इन तीन मातृका पदों के साथ ग्यारह ही गणधर आगमो📖📚 की रचना करते है...
 *वैशाख शुक्ल ग्यारस ,जिनशासन का ये सनातन तीर्थ ,ये शाश्वत तीर्थ स्थापित होता हैं* ।
 🍁साधु साध्वी ,श्राबक श्राविका चार प्रकार के श्रमण प्रधान तीर्थ की स्थापना की प्रभु महावीर ने....
 भगवान के मुख्य गणधर👲🏽 तो *इंद्रभूतिजी* थे ,परन्तु भगवान ने गण की अनुज्ञा पंचम गणधर श्री सुधर्मस्वामीजी को दी।इसका कारण यह हुआ कि श्री इंद्रभूतिजी तो प्रभु के निर्वाण के पश्चात ही केवलज्ञानी✨ होनेवाले और अन्य गणधर भगवान के निर्वाण के पूर्व ही मुक्ति प्राप्त करनेवाले थे ।
 🍁इसलिए धर्मशासन का चिरकाल संचालन करनेवाले प्रथम उत्तराधिकारी *पंचम गणधर श्री सुधर्मास्वामी* ही रहे।इसीसे भगवान😷 ने गण की अनुज्ञा इन्हिको दी ।


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🔴 *केवलीचर्या का प्रथम वर्ष* 🔴 3⃣1⃣8⃣

साध्वियों की शिक्षा दीक्षा के लिए प्रवर्तिनी पदपर आर्या *चन्दनाजी* को स्थापित किया।भगवान कुछ दिन वही विराजे ।इसके बाद अन्यत्र विहार🚶🏽🚶🏽 किया। ग्रामनुग्राम विहार करते हुए भगवान राजगृह पधारे ।
 🍁श्रेणिक पुत्र मेघकुमार भी  भगवान को वंदन🙏🏼🙏🏼 करने गए भगवान का धर्मोपदेश सुनकर मेघकुमार भोग जीवन से विरक्त 😌हो गया और त्यागमय जीवन अपनाने के लिए आतुर हुआ ।मातापिताकी 👴🏼👵🏼अनुमति प्राप्त कर मेघकुमार भगवान के समीप दीक्षित 😷हो गया ।
 🍁दीक्षित होने के पश्चात रात्रि को शयन किया ।इनका संथारा क्रमानुसार द्वार के निकट हुआ था रात्रि के प्रथम एवम अंतिम प्रहर में श्रमण गण ,पृच्छना ,प्रावर्त्तना तथा परिस्तानपनाके लिए आने जाने लगे ।इससे उन श्रमणों में से किसी का पाँव 🚶🏽आदि अंग मेघमुनि के अंग से स्पर्श होते ,उन सन्तो के पाँव में लगी हुई रज मेघमुनि के अंगों और संस्तरक क लग गई और चलने फिरने से उड़ी हुई धूल से सारा शरीर भर गया ।


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🔴 *अरति परिषह...मेघकुमार* 🔴3⃣1⃣9⃣

इससे उन्हें ग्लानि😞 हुई ,वे अकुला गए और रातभर नींद नही ले सके उन्होंने सोचा ....🤔🤔"जब में राजकुमार था तब तो सब मेंरा आदर सत्कार 👏🏽करते थे ,किन्तु श्रमण बनते ही मेरी उपेक्षा होने लगी और मैं ठुकराया जाने लगा।"
 🍁  "अब प्रातःकाल होते ही भगवान से पूछकर मैं घर चला जाऊंगा ।मेरे लिए यही श्रेयस्कर है ।"
 प्रातःकाल🌅 होने पर मेघमुनि भगवान के निकट आये और वंदना नमस्कार 👏🏽🙏🏼करके पर्युपासना करने लगे ।
भगवान ने मेघमुनि को सम्बोधन कर कहा
  "मेघ !!रात्रि में हुए परिषह से विचलित😔 होकर ,तुम घर 🏡लौट जाने की भावना से मेरे निकट आये ।क्या यह बात ठीक है ?"
  "हा भगवान!! मैं इसी विचार से उपस्थित हुआ हूं " मेघमुनि 😷बोले ।
   "मेघ तुम इतने से परिषह से चलित😔 हो गए ? तुमने पूर्वभव में कितने भिषण परिषह 😱😨सहन किये।इसका तुम्हे पता नहीं ।"


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🔴   *मेघकुमार की क्षमायाचना* 🔴3⃣2⃣0⃣
 "मेघ तुम इतने से परिषह से चलित😔 हो गए ? तुमने पूर्वभव में कितने भिषण परिषह सहन😨 किये।इसका तुम्हे पता नहीं ।"
  🍁इस तरह वे मेघमुनि को पूर्व भव का वर्णन सुनाकर उन्हें विचारमग्न 🤔कर दिया ।शुभ भावो की वृद्धि से उन्हें जातिस्मरण ज्ञान उतपन्न हुआ और उन्होंने स्वयं ही अपने पूर्व भाव को देख लिया ।उनके संवेग पहले से द्विगुण बढ़ गया।उनकी आँखों से आनंदाश्रु 😭😭बहने लगे
 उन्होंने भगवान को वंदना 👏🏽कर के कहाँ ,"भगवान मैं भटक🙅🏽‍♂ गया था ।आपश्री ने मुझे संभाला ,सावधान किया।"
 "अब आज से मैं अपने दोनों नेत्र👀 छोड़कर शेष सारा शरीर श्रमण निर्ग्रंथो को समर्पित करता हूं ।अब मुझे पुनः दीक्षित करने की कृपा करें ।"
 पुनः चरित्र😷 ग्रहण करके मेघमुनि आराधना करने लगे ।इसी तरह राजगृह में अभयकुमार ने श्रावक व्रत एवम👑 श्रेणिकराजा ने सम्यक्त्व ग्रहण की ।
 *भगवान ने तेरहवाँ चातुर्मास राजगृही नगरी के गुणशील चैत्य में किया* ।

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🔴 *ऋषभदत्त..देवानन्दा जी से मिलन* 🔴3⃣2⃣1⃣

🍁चातुर्मास के बाद प्रभु ने विदेह देश की ओर विहार कर🚶🏽🚶🏽 *ब्राम्हणकुण्ड* पधारे ।वहाँ  बहुशाल उद्यान🏝 में ठहरे ।भगवान का आगमन जानकर *ऋषभदत्त ब्राम्हण तथा देवनंदा* रथारूढ़ हो कर बहुशालक वन में आई ।
 🍁भगवान को विधिपूर्वक वंदना🙏🏼 की ,नमस्कार किया ।देवनन्दा भगवान को देखकर ठिठक 😨गई ।उसके हृदय में वात्सल्य भाव उत्पन्न हो कर वृध्दिगत हुआ ।उसके नेत्र👁👁 आनंदाश्रु 😭बरसाने लगे ।हर्षावेग से उसकी भुजाएं विकसित हुई।,शरीर प्रफुल्लित हुआ और वह निनर्निमेष दृष्टि👀 से भगवान को देखने लगी ।
 🍁देवनंदा को हर्षावेग युक्त एकटक निहारती देख कर श्री गौतम स्वामीजी ने भगवान से पूछा
 "भगवान आपको देख कर देवनंदा इतनी हर्षित ☺☺क्यो हुई की आपको एकटक देखे ही जा रही है ।इसको इतना हर्ष हुआ कि शरीर एवम रोमकूप तक विकसित हो गए ?"


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🔴 *ऋषभदत्त देवानंदाजी की दीक्षा* 🔴3⃣2⃣2⃣

"गौतम ,देवनंदा मेरी माता है और मै देवनंदा का पुत्र हूँ ।पुत्र स्नेह के कारण ही देवनन्दा अत्यधिक हर्षित☺ हुई ।"
*भगवान 82 रात दिन देवन्दाजी के गर्भ में रहे थे* ।उसके बाद शकेंद्र कि आज्ञा से हरिंगमैशी देव ने गर्भ का संहरण कर त्रिशलाजी के गर्भ में स्थापित किया था ।
 🍁भगवान ने धर्मोपदेश दिया।ऋषभदत्त 👴🏼और देवानन्दा👵🏼 संसार से विरक्त हुए ।उन्होंने वही भगवान से प्रवज्या 😷स्वीकार कर ली । वे घर से भगवान को वंदन🙏🏼🙏🏼 करने निकले थे और दीक्षित हो गए लौट कर घर आये ही नही ।
 दीक्षित होने के बाद उन्होंने तप और संयम की खूब साधना की और सिद्धगति को प्राप्त हुए ।
  🍁इसी तरह जमाली👲🏽👲🏽 आदि 500 क्षत्रिय राजकुमारों ने तथा जमाली की पत्नी और प्रभु की बेटी प्रियदर्शना ने 1000 स्त्रियों 👩🏼👩🏼 के साथ संयम ग्रहण किया  और महासती चन्दनबालाजी की शिष्या हुई ।

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 🔴 *चौदहवाँ चातुर्मास..* 🔴3⃣2⃣3⃣

🍁इसी तरह जमाली👲🏽 आदि 500 क्षत्रिय राजकुमारों ने तथा जमाली की पत्नी और *प्रभु की बेटी प्रियदर्शना* 👩🏼ने 1000 स्त्रियों  के साथ संयम ग्रहण किया  और महासती चन्दनबालाजी की शिष्या हुई ।
 🍁 *भगवान ने चौदहवाँ चातुर्मास वैशाली नगरी में किया* ।वहासे विहार🚶🏽🚶🏽 करके वत्स्य देश की राजधानी कौशाम्बी पधारे ।वहाँ नगरी के बाहर स्थित चन्द्रवतारण चैत्य 🏝में ठहरे ।
🍁कौशाम्बी नगरी के👑 राजा शतानीक ,उनकी बहन👱🏻‍♀ जयंती और मृगावती👩🏼 नाम की पत्नी थी ।जयंती जो जीवजीव आदि तत्वों की जानकर श्रमनोपसिका थी ।
वह पूर्व शय्यातर नाम से प्रसिद्ध थी ।श्रमण भ महावीरस्वामीजी के आगमन की बात सुनकर जयंती हर्षतित☺ एवम संतुष्ट हुई और अपनी भाभी मृगावती के पास आकर बोली
," हे देवानुप्रिय !! भ महावीर स्वामीजी अपने नगर में पधारे है ,उनका नाम गोत्र सुनने से भी महाफल 🙏🏼🙏🏼होता है तो दर्शन और वंदन का तो कहना ही क्या ? उनका एक भी धर्मवचन सुनने मात्र से क्या कहना ? "
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🔴 *जयंतिबाई के सवालों का समाधान* 🔴3⃣2⃣4⃣
"....मात्र से महाफल मिलता है तो तत्वज्ञान सम्बन्धी विपुल अर्थ सीखने के महाफल का तो क्या कहना ? "
"अतः अपन चले और वंदन🙏🏼 नमस्कार करे यह कार्य हमारे लिए इस भव पर भव और दोनों भवो के लिए कल्याणप्रद और श्रेयस्कर होगा ।"
 मृगावती👩🏼 ने जयंती के वचन स्विकार किया ।
  🍁भ महावीर स्वामी ने 👑उदायन राजा, मृगावती देवी 👩🏼और जयंती और महापरिषद को धर्मोपदेश दिया यावत परिषद लौट गई ।👑उदायन राजा और मृगावती भी चले गए परन्तु जयंती श्रमनोपसिका प्रभु की सेवा 🙏🏼में रुक गई उसने प्रभु को वंदन नमस्कार👏🏽 किया और अपनी शंकाओं का समाधन के लिए प्रभु से विनय पुर्बक  12 प्रश्न पूछे।
 🍁भगवान ने उसका यथार्थ समाधान किया ।जयंती श्रमनोपसिका प्रभु से समाधान पाकर हर्षित☺ एवम संतुष्ट हुई ।प्रभु को तीन बार वंदना👏🏽🙏🏼 नमस्कार कर निवेदन किया कि "आपका कथन यथार्थ है मैं प्रवज्या😷 अंगीकार करना चाहती हु"


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🔴 *धन्ना शालीभद्रजी की दीक्षा* 🔴3⃣2⃣5⃣

🍁श्रमण भगवान महावीर स्वामी के मुखारविंद से दीक्षित😷 होकर जयंती आर्य चन्दनाजी की आज्ञानुसार प्रत्येक प्रवृत्ति करती हुई संयम का पालन करने लगी ।
 *भगवान ने पन्द्रहवां चातुर्मास वाणिज्यग्राम में किया* ।
उसके बाद मगध देश की ओर विहार करके राजगृह पधारे ।
 *राजगृही में  सोलहवाँ चातुर्मास किया* ।उस समय धन्नजी👳🏽‍♀ एवम शालिभद्रजी 👱🏽इन्होंने संयम अंगीकार किया।उस के बाद भगवान ने अंग देश की राजधानी चंपा की ओर विहार🚶🏽🚶🏽 किया ..वहासे सिंधु सौवीर देश की वितभया नगरी की ओर पधारे जहाँ के *राजा उदायन* थे ।रास्ते मे उन्होंने गौतमस्वामीजी को हलुक किसान👳🏾 को उपदेश देने भेजा ।भगवान के आदेश को मानकर *गौतमस्वामीजी* किसान को प्रतिबोध देने गए ।


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🔴 *हलुक किसान का पन्ना* 🔴3⃣2⃣6⃣

उनके उपदेश से वह प्रभावित😌 हुआ उसका हृदय वैराग्य  से भर आया और वह श्री गौतम स्वामी से निर्ग्रन्थ प्रवज्या ग्रहण कर के साधु 😷बन गया दीक्षित होकर चलते हुए हलुक ने श्री गौतम स्वामी से पूछा," भगवान हम कहाँ🤔🤔 जा रहे है ?"
"मेरे गुरु के समीप चल🚶🏽🚶🏽 रहे है "
"अरे !!आप स्वयं अद्वितीय महापुरुष है ।आपसे बढ़कर भी कोई गुरु हो सकता है🤔🤔 क्या ?"
हलुक ने आश्चर्य😳😳 से पूछा
"भद्र मेरे ही क्या , समस्त विश्व के गुरु ,परम् वीतराग सर्वज्ञ सर्वदर्शी तीर्थंकर भगवान महावीर प्रभु त्रिलोक पूज्य🙏🏼🙏🏼 है ।हम उन्ही परमात्मा के पद जा रहे है "
श्री गौतम स्वामी ने कहाँ
  🍁हलुक मुनि ने भगवान की प्रशंसा ☺अपने गुरु के मुख से सुनी ,तो उनके मन मे भगवान के प्रतिभक्ति उमड़ी ।वे प्रमोद भावना में रमते हुए प्रभु के समीप पहुचे ।भगवान पर दृष्टि👀 पड़ते ही हलुक मुनि 😷ने गौतम गुरु से पूछा ,"ये कौन बैठे है "

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🔴 *प्रभु को देखके हलुक भागा* 🔴3⃣2⃣7⃣

"ये ही मेरे धर्माचार्य धर्मगुरु जिनेश्वर भगवान😷 है ।चलो वंदना👏🏽🙏🏼 करो ।"
हलुक भगवान को देखते ही सहम 😨गया ।उसे भगवान भयानक😱 लगने लगे ।वह बोला," यदि ये आपके गुरु है ,तो मुझे आपके साथ नही रहना ।मैं जा🚶🏽 रहा हूं..अपने घर🏚....।"
कहता है हलुक  साधु 😷वेश छोड़ कर चला गया ।
 गौतम गुरु को आश्चर्य🤔😳 हुआ ।उन्होंने भगवान से पूछा ..
"प्रभो !! हलुक👱🏽 को मुझ पर प्रेम था।उसने मेरे उपदेश से प्रभावित होकर दीक्षा ली और प्रमोद भावना में चलता हुआ यहाँ तक आया।
 "परन्तु आपको देखते ही उसकी भावना पलटी ,मेरे प्रति उभर हुआ प्रेम भी नष्ट हो गया और वह दीक्षा त्याग कर चला गया ।इसका कारण 🤔क्या है ?"
"हे गौतम !! मैने त्रिपृष्ट वसुदेब के भव में जिस सिंह 🦁🦁को मारा था ,उसी सिंह🦁 का जीव यह हलुक है ।उस भव में तुम मेरे सारथी थे ।तुमने सिंह को मधुर वचनों से आश्वासन दिया था ...उस समय यह मेंर द्वेषी और तुम्हारा स्नेही बन गया था ।"


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🔴 *हलुक का पलायन* 🔴3⃣2⃣8⃣

"मैने त्रिपृष्ट वसुदेब के भव में जिस सिंह 🦁को मारा था ,उसी सिंह का जीव यह हलुक 👱🏽है ।उस भव में तुम मेरे सारथी थे ।तुमने सिंह 🦁को मधुर वचनों से आश्वासन दिया था ...उस समय यह मेंर द्वेषी और तुम्हारा स्नेही बन गया था ।"
"तुम्हारे प्रति उसका स्नेह☺ होने के कारण ही मैन तुम्हे उसे प्रतिबोध देने भेजाथा । "
यद्यपि हलुक👱🏽 उस समय पतित हो गया था ..किन्तु उस एक महालाभ तो हो ही गया था ।
उसकी आत्मा ने सम्यक👏🏽👏🏽  ज्ञान, दर्शन और चरित्र को स्पर्श कर लिया था ।उसकी आत्मा से अनादि मिथ्यात्व छूट गया था ।उसके सम्यग दर्शन के संस्कार फिर कभी उसके सादी मिथ्यात्व को उखाड़ कर पुनः सम्यग्दर्शन प्रकट ⚡⚡करेगा और वह मुक्त भी हो जाएगा ।



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🔴 *राजगृही में आगमन* 🔴3⃣3⃣1⃣

 🍁वाराणसी के समृद्ध श्रेष्ठि 👴🏼चुल्लनी पिता अपनी पत्नी श्यामा👩🏼 एवम सुरादेव अपनी पत्नी धन्या के साथ प्रभु से श्रावक धर्म अंगीकार करके उनके अनुयायी बन जाते है । वाराणसी से भगवान आलमभिया गांव पधारते है ।वहाँके प्रतिष्ठित चुल्लशतक👴🏼 अपनी पत्नी बहुला👩🏼 के साथ भगवान के पास अणुव्रतों की शिक्षा ग्रहण कर श्रावक बन जाते है ।
भगवान आलंभिया से राजगृही🏚 पधारे..
 🍁राजगृही उनके धर्मसंघ का केंद्रबिंदु बन गया था।प्रभु के उपदेश की चर्चा दूर दूर तक पहुँच गई थी
 ।👑राजा श्रेणिक ने अपने राज्य में शिकार पर प्रतिबंध लगा दिया था ।
अभय के देवता अभय देनेवाले राजगृही में उपस्थित थे ।फिर भी राजगृही की जनता भयभीत😱 थी....कारण ही कुछ ऐसा था कि नगर की जनता घर🏠 से बाहर निकलनेकी हिम्मत नही करती थी ।

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🔴 *अर्जुनमाली का पन्ना* 🔴3⃣3⃣2⃣
🍁 अभय के देवता अभय 👏🏽देनेवाले राजगृही में उपस्थित थे ।फिर भी राजगृही की जनता भयभीत😱 थी....कारण ही कुछ ऐसा था कि नगर की जनता घर 🏠से बाहर निकलनेकी हिम्मत नही करती थी ।
  🍁रातको को तो बिल्कुल नही.... *अर्जुनमाली* नामके हत्यारे ने लोगोकी नींद खराब कर दी थी ।उसका नाम सुनकर लोग भयभीत😱 थे ।
 🍁अर्जुनमाली का इतिहास उसपर हुए अन्याय और उसकी पत्नीपर👩🏼 हुए अत्याचार का इतिहास है ।अर्जुनमाली कि पत्नी पर कुछ बीमार ,मन के रोगी क्रूर कर्माओने अत्याचार किया ।इस अन्याय अत्यचार को देखकर अर्जुनमाली विक्षिप्त बन गया।
 🍁उसने विक्षिप्तता में आकर सभीकी हत्या कर दी 😞😰और संकल्प किया कि इस अत्यचार का बदला लेने के लिए रोज 6 पुरुष 🙎🏽‍♂और एक स्त्री 🙍🏼की हत्या करेगा ।हिंसा क्रूर और विक्षिप्त बना देती है।अर्जुनमाली कि क्रूरता बढ़ गई थी।वह जहासे निकलता लोग दरवाजे बंद कर लेते।


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🔴 *भयभीत जनता* 🔴3⃣3⃣3⃣
अर्जुनमाली का  भय😰 राजगृही में उसके आसपास फैला हुआ था ।वह छुपकर वार करता और अपना प्रण पूरा करता था ।
👑राजा श्रेणिक तक यह बात पहुँची हर तरह से उसको पकड़ने का प्रयास किया पर सारे प्रयास विफल हुए।राजा चिंतित😢 और जनता👨‍👩‍👧‍👦 भयभीत😱 थी.....
🍁राजगृही नगरी में भगवान के श्रावक *सुदर्शन सेठ* रहते थे ।नाम के अनुरूप ही उनका भीतर बाहर का जीवन था ।भगवान की देशना और दर्शन👏🏽🙏🏼 के लिए उत्सुक सुदर्शन घर से बाहर जानेका संकल्प करता है और अपने माता पिता से कहते है "मैं भगवन के दर्शन को जा रहा हूँ "
 तब वे घबराकर कहते है ,"तुम क्या कर रहे हो ?तुम जानते हो अर्जुनमाली👽 जैसा हत्यारा मार्ग में है ।कभी भी पकड़कर मार सकता है ।तुम्हे पता है ,वह किसीको भी नही छोड़ता है ?"
सुदर्शन🙎🏽‍♂ कहते है ,"मालूम है पर मैं यह जनता हु की भय ,हिंसा के प्रतीक बन अर्जुनमाली मुझे अभय के देवता के पास जाने से नही रोक सकता ।"



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🔴 *निर्भय सुदर्शन*🔴3⃣3⃣4⃣
 🍁सुदर्शन🙎🏽‍♂ कहते है," मालूम है पर मैं यह जनता हु की भय ,हिंसा के प्रतीक बन अर्जुनमाली मुझे अभय के देवता के पास जाने से नही रोक सकता ।"
सेठ सुदर्शन निकल पड़े मातापिता 👪देखते रहे .....सुदर्शन का ध्यान 👀भगवान की ओर ही था ,न कोई भय न चिंता और न उद्वेग।वे इर्यपथक देखते हुए अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते🚶🏽🚶🏽 ही जा रहे थे।
 🍁अर्जुनमाली के शरीरस्थ यक्ष ने सुदर्शन को देखा और क्रोधित हो कर ,किलकारी करता हुआ सुदर्शन की ओर दौड़ा🏃🏼🏃🏼।
 🍁सुदर्शन ने विपत्ति देखी ।वह  न भयभीत हो कर भागा और न चिंतित हुआ....उसने वस्र से भूमि का प्रमार्जन किया और भगवान को वंदन👏🏽🙏🏼 करके सागारी संथारा कर लिया ।उसने यही आगार रखा कि *यदि उपसर्ग टल जाएगा तो मैं संथारा पाल कर पूर्व स्थिति प्राप्त कर लूंगा अन्यथा जीवनपर्यंत संथारा रहेगा*।


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      *महावीर के उपदेश ग्रुप से* 
 📕 *भगवान महावीर स्वामी का जीवन चरित्र* 📕

3⃣3⃣5⃣🔴 *अर्जुनमाली की मुक्ति* 🔴

🍁 यक्ष ने मुद्दगर ☄☄का प्रहार करने के लिए हाथ👊🏾 उठाया ,परन्तु वह प्रहार नही कर सका ।उसके हाथ अंतरिक्ष मे ही थम गए ।धर्मात्मा के तेज ⚡⚡की शांत प्रभा ने यक्ष के प्रकोप 😡को शांत कर दिया ।
  🍁यक्ष 👺अर्जुन के शरीर से निकल पड़ा और अर्जुन भूमि पर गिर पड़ा । कुछ समय मूर्छित रहने के पश्चात स्वस्थ हो कर उठा और सुदर्शन को देख कर पूछा,
  "आप कौन है ? कहाँ जा रहे है ?"
 🍁मैं इसी नगर का निवासी सुदर्श👲🏽न हू और भगवान  महावीर को वंदन 🙏🏼करने व धर्मोपदेश सुनने जा रहा हूँ  सुदर्शन ने शांतिपूर्वक कहाँ 
"महानुभव मैं भी आपके साथ चलना चाहता हूं ",अर्जुन ने कहाँ
अर्जुनमाली भी सुदर्शनजी के साथ भगवान😷 के समीप गए ।वंदना नमस्कार किया और भगवान का परम पावन उपदेश सुना ।
 🍁भगवान की वाणी से अर्जुन की आत्मा में ज्ञानदर्शन और चरित्र की ज्योत जगी ।वे वही निर्ग्रन्थ😷 दीक्षा ग्रहण कर तपस्या करने लगे।बेले बेले तप करते रहने की प्रतिज्ञा की ।वे प्रथम बेले के पारणे के दिन भगवान की आज्ञा लेकर नगर🏚 में गये ।लोगो ने गुस्से 😡से बहोत मारा ,गालियां दी।परन्तु अर्जुन अनगार पूर्णरूप से शांत 😌रहते और क्षमा धारण करके सभी प्रकार के परिषह सहन किये इस प्रकार छह माह पर्यंत सहते हुए और निष्ठापूर्वक संयम तप की आराधना करते हुए छह मास में ही समस्त कर्म बन्धनों को नष्ट कर सिद्ध भगवान हो गए ।

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      *महावीर के उपदेश ग्रुप से* 
 📕 *भगवान महावीर स्वामी का जीवन चरित्र* 📕

🔴 *संभ्रम में श्रेणिक* 🔴3⃣3⃣7⃣

  🍁इसके बाद 👑राजा श्रेणिक को छींक आयी तो वह बोला,      "चिरजीवी रहो "
इसके कुल काल पश्चात अभयकुमार 👱🏽को छींक आयी तो कहा," जिओ या मरो "
 अंतिम छींक कलसौरिक कसाई👺 को आई तब कहाँ," न जिओ न मरो ।"
 🍁वह पुरुष क्षणमात्र में दिव्य रूप धारण कर के आकाश में उड गया ।राजा चकित😳 हो गया और भगवान से पूछा ।भगवान ने कहा वह देव था।राजा श्रेणिक ने गम्भीर 😌मुद्रा में भगवान से जिज्ञासा शांत करने केलिए निवेदन किया ।इंद्र ने सभा मे तुम्हारी श्रद्धा की प्रशंसा की ।
 🍁दर्दुरंनक देव को विश्वास नही हुआ।इससे वह तुम्हारी परीक्षा करने यहाँ आया था ।उसने गोशीर्ष चन्दन मेरे पाव के लगाया था ..पीप नही ।उसने तुम्हारी दृष्टि👀 मोहित कर दी थी ,जिससे तुम्हे वह पीप लगा ।
🍁"भगवान आपको छींक आने पर अमांगलिक वचन क्यो बोला" श्रेणिक ने पूछा 🤔

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      *महावीर के उपदेश ग्रुप से* 
 📕 *भगवान महावीर स्वामी का जीवन चरित्र* 📕

🔴 *संभ्रम में श्रेणिक* 🔴3⃣3⃣7⃣

  🍁इसके बाद 👑राजा श्रेणिक को छींक आयी तो वह बोला,      "चिरजीवी रहो "
इसके कुल काल पश्चात अभयकुमार 👱🏽को छींक आयी तो कहा," जिओ या मरो "
 अंतिम छींक कलसौरिक कसाई👺 को आई तब कहाँ," न जिओ न मरो ।"
 🍁वह पुरुष क्षणमात्र में दिव्य रूप धारण कर के आकाश में उड गया ।राजा चकित😳 हो गया और भगवान से पूछा ।भगवान ने कहा वह देव था।राजा श्रेणिक ने गम्भीर 😌मुद्रा में भगवान से जिज्ञासा शांत करने केलिए निवेदन किया ।इंद्र ने सभा मे तुम्हारी श्रद्धा की प्रशंसा की ।
 🍁दर्दुरंनक देव को विश्वास नही हुआ।इससे वह तुम्हारी परीक्षा करने यहाँ आया था ।उसने गोशीर्ष चन्दन मेरे पाव के लगाया था ..पीप नही ।उसने तुम्हारी दृष्टि👀 मोहित कर दी थी ,जिससे तुम्हे वह पीप लगा ।
🍁"भगवान आपको छींक आने पर अमांगलिक वचन क्यो बोला" श्रेणिक ने पूछा 🤔

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      *महावीर के उपदेश ग्रुप से* 
 📕 *भगवान महावीर स्वामी का जीवन चरित्र* 📕

 🔴 *श्रेणिक की जिज्ञासा* 🔴3⃣3⃣8⃣

"भगवान आपको छींक आने पर अमांगलिक वचन क्यो बोला" श्रेणिक ने पूछा। 
🍁"श्रेणिक देव के कथन का आशय यह था कि आप अब तक संसार मे क्यो बैठे हो ?"
 "आपकी मृत्यु तो अनंत आनंदप्रद होगी शाश्वत सुखदायक होगी और मुझे चिरकाल तक जीवित रहने को क्यो कहाँ ?"🤔🤔
"क्योकि  तुम्हारे लिए मृत्यु अधिक दुःखदायक होगी तुम नरक में जाओगे ।"
"अभयकुमार👲🏽 को जिओ या मरो कहा क्योकि यह जीवित रहेगा तो धर्मसाधना करेगा और मरने पर अनुत्तर विमान ✈✈में देव होगा।"
कलसौरिक👺 तो यहाँ पाप करेगा और मरने पर नरकादि दुःख पायेगा।उसका जीवन और मरण दोनों दुःखदायक है।जीवन की इन गूढ़ बातो को सुनकर सारे विस्मित😳 और स्तब्ध😑😐 रह गए ।
🍁भगवान ने सबको कर्मदर्शन और उसके परिणाम का यथार्थ दर्शन करा दिए ।👑श्रेणिक राजा आगे की गति ठीक नही इस विचार से दुखी😔😞 हुआ
"भगवान आप जैसे तारक को पा कर हजारों मनुष्य तीर गए..किन्तु मैं नरक जा कर दुखी रहूँगा ।यह तो अचंभे की बात है❓"
 👑 राजन ! तुमने पहले ही नरकायु का बन्ध किया है भगवान ने कहा।
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 📕 *भगवान महावीर स्वामी का जीवन चरित्र* 📕

🔴  *दुःखी श्रेणिक..* 🔴3⃣3⃣9⃣
 🍁भगवान ने सबको कर्मदर्शन और उसके परिणाम का यथार्थ दर्शन करा दिए ।👑श्रेणिक राजा आगे की गति ठीक नही इस विचार से दुखी😞😞 हुआ।
 🍁"भगवान आप जैसे तारक 🙏🏼को पा कर हजारों मनुष्य तीर गए..किन्तु मैं नरक जा कर दुखी 😞रहूँगा ।"
 "यह तो अचंभे की बात है ?"
"राजन !तुमने पहले ही नरकायु का बन्ध किया है "भगवान ने कहा।
 🍁चिंतित स्वर में बोले," भगवान! आगे की मेरी गति अच्छी हो इसके लिए क्या उपाय है ⁉....
"भगवान 😷कोई ऐसा उपाय बताए कि जिससे बद्ध नरकायु ⛓टूट जाये ।मैं वह उपाय करूँगा ।"
भगवान😷 ने कुछ नही कहाँ ।पर बार बार पूछने पर फरमाया, "किये हुए कर्मो को भोगे बिना छुटकारा नही ।फिर भी तुम्हारा आग्रह हैतो इन उपयोको करके देखो...."
🍁 राजगृही में कपिला दासी👧🏼 से दान करवाओ वह सम्भव न हो तो श्रेणिक तुम दादी👵🏼 के दर्शन करवाओ ।यदि यह भी न कर सके तो कलसौरिक👽 की हिंसा बन्द करवा दो अन्यथा अंतिम उपाय पुनिया श्राबक 😷की एक सामयिक खरीद लो ।

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3⃣4⃣0⃣   🔴 *श्रेणिक के उपाय* 🔴

 🍁"इन चार उपयो में से एक भी कर सके तो तुम्हारी गति अच्छी होगी ।"
 इन उपायोको सुनकर श्रेणिक खुशी😃☺ से उछल पड़ा ।बड़े ही खुश🤗 हुए ,"मैं राजा हु मेरे लिए क्या असम्भव है ? "
🍁श्रेणिक कुछ दिन बाद भगवान की सेवा में उपष्टित हुए ,बड़े दुखी 😔नजर आए ।भगवान😷 ने पूछा ,"राजन क्या बात हैबड़े ही दुःखी हो ?"
 🍁"भगवान आपसे क्या छिपा है ।दुर्गति से बचने के लिए आपने जो भी उपाय बताए ,वे आजमाए पर उसमे मुझे सफलता नही मिली ।मुझे सब आसन लगा पर सब कठिन 😔था।"
 🍁राजा ने कहाँ ,"भगवान कपिला👩🏼 से बहुत कहाँ दान देने के लिए पर वह तैयार नहीं हुई ।उसके हाथ से दान दिलाया पर वह कहती है ,दान मैं नही ये चाटु 🥄🥄दे रहा है ।यह मेरा नही राज्य का है ।

✍ संकलन 
      बेहेन सोनालीजी कटारिया
      निरगुड़सर,पूना
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🔴 *श्रेणिक की चिंता* 🔴3⃣4⃣1⃣

🍁 "दादी👵🏼 से इतना आग्रह किया ,जबरदस्ती लाने की कोशिश की तो उसने आखों 👁👁को नुकसान पहुँचाया।वह उपाय मैंने छोड़ दिया ।"
 🍁"कालसौरिक👹👺 से बहुत कहा पर मानता ही नही ।छिपकर हिंसा करता था ।मैंने उसे कुएं में बंधवा दिया तो वहाँ मिट्टी के भैंसे🐃🐃 बनाकर मनसे हिंसा करता जिसकी कोई सीमा नही।"
🍁 "हारकर बड़ी आशा से पुनिया श्रावक😷 के पास गया ,सोचा यह तो बड़ा सरल उपाय 🤗है  ।"
"ध्यान में क्यो नही🤔 आया....मेरे पास धन 💰💷💰की क्या कमी है ।मैंने पुनिया से सामयिक देने की बात कही उसके लिए चाहे जो धन💰💰 ले लो ,पहले तो वह देखता रहा 😳फिर मेरी बात पे हँसा😁 और बोला ,"भगवान से ही पूछना एक सामयिक का मूल्य क्या है ? फिर आप खरीदने आना।"
"भगवान मैं क्या 😓🤔करूँ ❓मुझे दुर्गति में नही जाना है "

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      बेहेन सोनालीजी कटारिया
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🔴 *श्रेणिक राजा..आगामी तीर्थंकर* 🔴3⃣4⃣2⃣

 🍁👑" राजन ! कपिला👱🏽‍♀ से जबर्दस्ती दान करवाया उसके मन मे भाव नही थे ।"
 " दादी👵🏼 को बहुत कहा चलो दर्शन करने ,उसके मन मे भी भावना नही थी ।"
  🍁"कालसौरिक👺 के लिए अनेक प्रयास किए ,उसे डराया😱 भी ,उसे कुएं में भी डाला वहाँ भी वह भाव हिंसा करने लगा ।"

 *सब मनके भावो पर आधारित है ।भाव अच्छे तो कर्म भी अच्छे।भाव मे अगर कमी आई तो कर्म भी वैसे ।फिर यह परिभ्रमण चलता रहता है* ।

 👑राजन ! पुनिया श्रावक😷 ने सामयिक का मूल्य नही बताया ।
*सामयिक का मोल नही होता।सामयिक क्रय विक्रय की वस्तु नही है।वह तो आत्माकी एक स्थिति है*
🍁भगवान के वचन सुनकर राजा हताश😒😔 हुआ तब प्रभु ने कहा ,"तुम हताश क्यो होते हो ❓नरक से निकलकर तुम आगामी उत्सर्पिणी काल मे प्रथम तीर्थंकर 🙏🏼बनोगे ।भगवान की भविष्यवाणी सुनकर श्रेणिक प्रसन्न😊🤗 हुआ ।

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      बेहेन सोनालीजी कटारिया
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*विहार की ओर.....* 🔴3⃣4⃣3⃣
 🍁भ महावीर ने *उन्नीसवाँ चातुर्मास राजगृह* में किया ।उसके बाद आलंभिया नगरी की ओर विहार🚶🏽🚶🏽 किया वहा ऋषिभद्रपुत्र श्राबक👱🏽 ने भगवान से जघन्य एवम उत्कृष्ट देवायुष्य आदि सम्बन्धी प्रश्न पूछे ।
 🍁वहासे प्रभु ने कौशाम्बी की ओर विहार किया ।जब वे साधना काल के समय पधारे थे ,उस समय युद्ध ⚔🛡और उसकी जीत का उन्माद वैशाली के राजा के साथ नगर जनो👨‍👩‍👧‍👧👩‍👦 पर भी छाया हुआ था।
 🍁भगवान की दीर्घ तपस्या का पारणा चन्दनबाला के हाथों से हुआ था।भगवान के सर्वज्ञ होने केबाद अपने शिष्यों के साथ उसी नगरी में पधरे थे। आगमन के समाचार सुनकर  कौशाम्बी में हर्ष🤗🤗 की लहर दौड़ गई ।
वहा शतानीक पत्नी एवम👑 चेटक राजा की पुत्री मृगावती ने संयम ग्रहण किया ।उसके बाद भगवान ने *वैशाली में बिसावा चातुर्मास* किया ।

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