आदिनाथ भव भाग 2



             *महावीर के उपदेश ग्रुप*

               

*श्री आदिनाथ चारित्र*
             *भाग -1*

*हे प्रभु ! आदि जिनेश्वर तुमको वन्दन 🙏🏽करु*

*तुम हो जैन धर्म की शान*🚩
*नाम तुम्हारा ही लेकर प्रारंभ किया गुणगान* ✍🏽✍🏽✍🏽
जो इस अवसर्पिणी काल में
     *पहला राजा* 👑
     *पहला तिर्थंकर* 🌅
      *पहला त्यागीमुनि* हैं।
जो स्वर्ग लोक, मृत्युलोकऔर पाताल लोक के स्वामी 🌅हैं।
 उस *अरिहंत पद को हम नमस्कार करते हैं* 🙏🏻।
 प्रभुने शाशन व्यवस्था का विकास  एवं दंड नीति🔗🔗 बनाकर राष्ट्र कि सुरक्षा की उत्तम व्यवस्था की।
  सामान्य लोक अपना जीवन सरलतासे, सुरक्षा⚔ से बिता सके इसलिए  असि की स्थापना की।
       मसि:   प्रारम्भ में मुद्रा का प्रचलन था। इसलिए लोगों को प्रशिक्षित कर
 व्यापार करना सिखाया।
कृषि: कल्पवृक्ष की संख्या कम होने से खाद्य समस्या दूर करने🌾🎋 खेती कैसे करनी है ।इसका प्रशिक्षण दिया।
 लोगो को स्वावलंबी और कर्मशील बनाने 72 विविध कलाएं🏹🏹🤺🎣 सिखाई।
 स्त्रीयों के हित के लिए✂✏🔍🖌 64 कलाएं सिखाई।
   भगवान ने युगला धर्म👫 निवार कर  शादी की आदर्श व्यवस्था स्थापित की।

     जो इस 🌍के नाथ हैं । जिन्होंने असि⚒,मसी✍🏻,कृषि 🌾की स्थापना करके हमे लोक व्यवहार में जीने के आयाम दिए।
 ऐसे हे आदेश्वर दादा आपके चरणों👣 की धूल जो पाए, वो
कंकर कोहिनूर बन जाये....
      भरत क्षेत्र 🌎पर असीम उपकार हैं। उन आदि कर्ता प्रभु को सादर वंदन 👏🏾करते हुए हम 📚*जैन धर्म के प्रथम* *तीर्थंकर श्री* *आदिनाथ भगवान का जीवन चारित्र का प्रारंभ करते है*


           

श्री आदिनाथ चारित्र  भाग --2
 प्रथम भव - धन सार्थवाह
🌕जम्बूदीप्! पश्चिम महाविदेह! 
    क्षितिप्रतिष्ठित नगर !  🕍                             
       प्रसन्नचंद्र राजा ! 🤴
उस नगरमें एक 'धन' नामक सेठ👳 रहता था। वह यश रूपी दौलत का स्वामी था। उसमें उदारता, गंभीरता और धीरजरूपी उत्तम बीज थे। उसके घर अनाज के ढेरों की तरह रत्नों के ढेर थे।
                                एक बार उसने  व्यापार के लिए वसंतपुर🚶 जाना निष्चित किया। उसने शहर में उदघोषणा करवाई की, "धन सेठ वसंतपुर जाने वाले हैं🥁 इसलिए जिसकी भावना हो वे उनके साथ चल सकते है। बीच मार्ग में सारा प्रबंध सेठ करेगा। किसी को🥞 भोजन,🏛आवास,💰धन की चिंता करने की जरूरत नही है।
                     ये घोषणा सुनकर अनेक लोगों की वसंतपुर जाने को तैयार हो गए।🚶🚶🚶🏽‍♀
     उसी नगर में अपने विशाल शिष्य परिवार के साथ😷 धर्मघोषसूरीजी आचार्य भी विराजमान थे। उनके मन में वसंतपुर जाने की भावना हो👣 गई। वसंतपुर की ओर मंगलप्रयाण के पूर्व आचार्य से के पास आए।
              👳सेठ ने उनको देखकर आदर सहित खड़े होकर विधि पूर्वक वंदना 🙏🏼की और आने का कारण पूछा।आचार्य ने कहा हे सार्थवाह! तुम्हारे सदाचरण से आकर्षित होकर तुम्हारे साथ विचरण करने की भावना है।



                  💁‍♂💁 *भगवान रुषभदेवजी/आदिनाथजी जीवन चरित्र* 🙋🙋‍♂

*श्री आदिनाथ चारित्र*
           
श्री आदिनाथ चारित्र  भाग--3
आचार्यश्री की वसंतपुर 🕍 साथ👣 चलने की बात सुनके सेठ बोले :  हे भगवंत🙏🏼 आज मैं धन्य हुआ  महान पुण्योदय से ही महा पुरुषो का समागम प्राप्त होता है।
पास खड़े हुए
:👩🏼‍🍳:अपने रसोइये को आज्ञा दी:  इन आचार्य महाराज के लिए तुम हमेशा 🍋🥛आहार पानी का प्रबंध करना।
 सेठ की बात सुनकर आचार्य बोले   साधु😷
उनके निम्मित बनाया गया🥝🥂🍺🥓 आहार , सचित जल,  सचित फल साधु ग्रहण नहीं करते है। हम वही आहार लेते है।जो  गृहस्थ ने अपने लिए बनाया हो, निर्दोष हो, अचित हो। हमारे लिए जिनेश्वर भगवान की यही आज्ञा है।
👳 सेठ ने आचार्यश्री के वचन सुनकर।"अहो श्रमणवर! आप तो महा दुष्कर व्रत धारक हो। ऐसा व्रत प्रमादी पुरुष एक दिन भी धारण नहीं कर सकता। आप हमारे साथ अवश्य पधारे। हम 🍛🍶आपको वही आहार -पानी देंगे जो आपके ग्रहण  करने योग्य होगी।
 दूसरे दिन मंगल बेला में सेठ,👳🚶🚶🏽‍♀🎪 संघ आदि ने  प्रस्थान किया। साथ ही😷😷 आचार्यश्री भी अपने शिष्य मंडली के साथ ईर्या समिति का पालन करते हुए विहार करने👣👣 लगे।


*श्री आदिनाथ चारित्र*
           
श्री आदिनाथ चरित्र भाग-4
   🎪 संघ के आगे👳 धनसेठ चलते उनके पीछे उनका मित्र मणिभद्र👳🏽‍♀ उसके दोनों तरफ 🏇🏻🏇🏻 घुड़सवार चल रहे थे।पीछे🐐🤺🚴🏼‍♀🚶🚶🏽‍♀😷😷👣 इस तरह सारा संघ अपने गंतव्य की ओर बढ़ रहा था।
         वर्षा ऋतु💦  आयी। मेघ⛈💥 बिजली  चमकने लगी।
  देखते ही देखते जल , कांटे,और कीचड़ से मार्ग दुर्गम हो गया☔🎿 धनसेठ ने ऊंचाई देख 🏕🏕तंबू  बंधवाया।

    सेठ के मित्र ने👳🏽‍♀ उपाश्रय⛺ बनाया। वह जमीन पर था।
 साथ मे जो  कुछ भी था वह खत्म हुआ। लोग कंदमूल का🥕🍆 भक्षण करने लगे।
 एक दिन मणिभद्र ने सेठ को लोगो की दुःखकथा 😭😥 सुनाई। उस रात चिंता में पड़े सेठ को नींद नही आई।
  रात के 4 थे पहर में अश्वशाला🐴🚶 के  चौकीदार  के शब्द सुनाई दिए।
"हमारे स्वामी  का यश चारों  दिशा में🎇फैला हुआ है। वे अपने अश्रितो का ऐसे बुरे समय मे  अच्छी तरह पालन  पोषण कर रहे है।"
   सेठ👳 ने जैसे ही ये बात सुनी
 सोचते सोचते उन्हें 😷 स्मृति  आयी।  मन ही मन स्वयं को धिक्कार ने लगा। अरे! आचार्य😷 तो अचित आहार ग्रहण करते है। मैंने उन्हें कहा था कि आपकी सब व्यवस्था करूँगा और मैंने
उन्हें भुला दिया। अब मै  किस तरह अपना मुख😩? दिखाऊंगा।

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             *
           
श्री आदिनाथ चरित्र भाग-5
  धनसेठ  के मन की व्याकुलता😴 बढ़ते जा रही थी।   उन्होंने   प्रातः🌄 मुनिराज के दर्शन  करने का  निर्णय किया। नींद  चिंता के कारण  नही आई।
       प्रातः काल  सुंदर वस्त्र  धारण कर💍👘👬 अपने मित्र के साथ तंबू⛺ में प्रवेश किया। वहाँ कोई साधु📚  स्वाध्याय कर रहे थे। तो कोई वाचना📖 ले रहे थे। कोई धर्मचर्चा तो कोई मौन🤐 थे। उन्हें देखते। वह सोच में पड़ गया।"*अहो❗  यह क्या❓
 मैंने तो  सोचा था यह मुझे ठपका देंगे..... परंतु ये सब तो साधना में मग्न है।
     हिम्मत करके आगे बढ़कर सूरी के चरणों मे नमस्कार🙏🏼 किया। आचार्य भगवन ने ’* धर्मलाभ दिया।   अब धनसेठ
चरणों मे बैठ बोला" हे पूज्यवर मैंने आपको साथ लाते समय
आपका ध्यान  रखने की जिम्मेदारी ली थी। किन्तु मैंने
आपकी सारसंभाल नही की। मैं आप  का अपराधी हूँ। मेरे वचन
।शरद ऋतु के बादलों की☁☁ गर्जना समान  मिथ्या हुए। जागते हुआ मैं सोता रहा। मुझे धिक्कार ❗ है आप मुझे क्षमा 😵 प्रदान करे।
      सेठ  की बात सुनकर सूरिजी बोले "  हे सज्जन ❗
तुम  मन मे खेद मत करो। तुमने हमे रास्ते मे🛤  हिंसक पशु और चोरों से बचाया है। तुम्हारे साथी हमे  आहर पानी🍶🍚
 देते रहे है। तुम्हारे  साथ के कारण ही हम विहार यहाँ तक आ सके।अतः तुम लेश मात्र भी
खेद मत करो।
           आचार्यश्री  की शांत-  गंभीर वाणी सुन वह बोला यह आपकी महानता है। अब आप कृपा करके मुझे आहार पानी का लाभ  दीजिये।



*श्री आदिनाथ चारित्र*
           
श्री आदिनाथ चरित्र भाग--6
     दूसरा भव---- युगलिक
 मुनि को😷 दान 🥃🥃 देने से  धनसेठ 👳 का जीव उत्तरकुरु क्षेत्र मे 🌳🍀🎄 युगलिक🎎  रूप में  जन्म लिया।  वहां सदा एकांत सुषमा( सुख ही सुख हो) ऐसा आरा वर्तता है। वह  स्थान सीता नदी के  उत्तर तट पर हैं।  उनके देह की ऊंचाई तीन गऊ प्रमाण है। उनकी पीठ में 256 पसलियां होती है।🎍
 यहां 10 प्रकार के कल्पवृक्ष  होते है। वे युगलिको को मांगी हुई   वस्तु जैसे- फूल🌷❄🍛🍱🥁🎷 ई वस्तुए देते है। सभी इच्छित चीजें यहां मिलती थी,  इसलिए सेठ का जीव युगलिया पने में, स्वर्ग🏰 की तरह विषय सुख का अनुभव करने लगा। अपने  आयुष के अंतिम भाग में एक युगलिक को जन्म  देकर 49 दिन पालनपोषण कर देवरूप में पैदा होते है।
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 तीसरा भव-- (  देव भव)
  युगलिक के  भव को पूर्णकर धनसेठ का जीव सौधर्म देवलोक🇻🇳 में देवरूप में उत्पन्न हुआ।



*श्री आदिनाथ चारित्र*
           
श्री आदिनाथ चरित्र भाग-7
  चौथा भव-   महाबलराजा
     * पश्चिम महाविदेह❗
 गंधिलावती विजय❗  🏞
    वैताढय  पर्वत के ऊपर गंधार देश के गंधसमुद्रक  नगरमें🏘
 अत्यंत पराक्रमी शतबल राजा 👑  की गुणसम्पन्न रानी  चंद्रकांता  के  कुक्षी  से पुत्र👶 रूप से उत्पन्न हुआ।बलवान💪🏿 होने से नाम  ' महाबल'  रखा गया। कुमारावस्था प्राप्त होने पर सभी प्रकार के🏹🤺🤼‍♂ शस्त्र और📚📖🗞 शास्त्र कलाओ में शिक्षण प्राप्त किया। युवान होने पर ' विनायवती'  नामक👸🏼 राज कन्या के साथ उसका पाणिग्रहण हुआ।
  एक दिन शतबल राजा  झरोखे में🤹🏼‍♀  नगर के  दृश्ययो को देख रहे थे। तभी पुण्योदय से एक सुंदर विचार 🎊 उनके  दिमाग मे आया "  संसार  के  सुख क्षणिक होते है। कटु परिणाम वाले  होते है। क्यों  ना  मैं इन क्षणिक सुखों को  त्याग कर शाश्वत सुख पाने पुरुषार्थ करू"
 इस प्रकार विचार🤔🤔 करते हुए  चारित्र धर्म  अंगीकार  करने का संकल्प  कर लिया।
  एक शुभदिन महाबल कुमार का🤴 राज्यभिषेक कर संयम ले सूंदर आराधना करने लगे।
    महाबलराजा न्याय  और नीतिपूर्वक राज्य का पालन करने लगा। पूर्वभव में सुपात्रदान  देने से उच्चकोटि के👘👑👕👖🍱🍩🍻🏢🏺🎀 भोगसुख की प्राप्ति हुई थी। विषयसुख में  आसक्ति भाव पैदा पैदा  होने से वह धर्म से विमुख हो गया। उसके  दुर्भाग्य से संभिनमती,  शात्मति, महमितवती नाम के तीन नास्तिक मंत्रियो का योग हो🤓🤠😎 गया। जो उसे संसार के भौतिक सुखों में अधिक  डुबोके रखते।
     शतबल राजा का एक👵 स्वयंबुध नाम का मंत्री था, जो अत्यंत धर्मप्रेमी था।
 महाबलराजा ने जब दीक्षा अंगी कार की तब स्वयंबुध को कहा ताकि महाबल धर्म से  विमुख हो जाये तो उसे धर्म मे स्थिर करना।
शतबल राजा की यह बात स्मृति👈 में आने पर मंत्री ने राजा🤴 को धर्माभिमुख बनाने का  निश्चय किया।

 जीवन चरित्र* 🙋🙋‍♂

*श्री आदिनाथ चारित्र*

श्र्री  आदिनाथ चरित्र भाग-८
   स्वयंबुध मंत्री👵 ने मन मे

अफसोस किया  ये मैं  क्या देख रहा   हूँ  विषयों में आसक्त मेरे स्वामी  को इन्द्रियरूपी दुष्ट घोड़े🐴🐴🐴   लिये जा रहे है।💋👂🏻👀👂🏻👄 विषयो के आनंद में लीन स्वामी का मनुष्य  जन्म   व्यर्थ जा रहा है,  मेरा मन जिस  त्तरह थोड़े जल में मछली 🐠🐟 दुखी होती है वैसा ही दुखी है  । यदि हम मंत्री उन्हें उच्च पद पर नही ले जाएंगे तो हममें और विदुषक में क्या अंतर है❓  राजा सदा  उसी मार्ग पर चलता है जिसपर उनके मंत्री चलते है इसीलिए  उन्मार्ग पर गए रथ को जिस तरह सारथी वापिस लाता है, मुझे भी अपने स्वामी को सन्मार्ग में स्थिर करना है" ऐसा   निर्णय कर वह राजा के पास आया।
 🙏🏼 बोला " हे राजन❗ पूर्व में किये हुए सुकृत से यह भोग सामग्री प्राप्त हुई है। जब तक पुण्य का उदय चालू है तब तक
 धर्म आराधना कर लेनी । चाहिए ।  मूल धन का ही  नाश करदे तो नवीन धन की  प्राप्ति कहाँ से होगी❓
 हे,   स्वामिन स्त्री 💃🏽 तो विष बेल के समान है।  काम के परिणाम अत्ति भयंकर👹😱 है। जब कामदेव शरीर मे घुसता 👺 तो वह पुरुष के धर्म, अर्थ और  मोक्ष को नष्ट करता है। मन  रूपी 🐘 को  बांधने के लिए स्त्री मजबूत रस्सी  के समान है
इसीलिए विषयसुख त्यागकर धर्माराधना कर   परलोक सुधारिये।"
        ।स्वयंबुध मंत्री की ये बात सुन  समिन्नमती मंत्री बोले" हे राजन❗ स्वयंबुध मंत्री की बातों में कोई तथ्य नही  है। इस लोक में प्राप्त सुखों को छोड़कर
परलोक में सुखप्राप्ति की इच्छा करना केवल मूर्खता है। स्वामिन आप तो उल्लास  के साथ भोग  सुख का आनंद लो।"  परलोक है ही नही।
   यह  बात  सुनकर  स्वयंबुध मंत्री ने कहा  " परलोक है  राजन और आत्मा भी है।  आत्मा शरीर
से भिन्न है। कर्म की कर्ता और भोक्ता आत्मा ही है। संसार मे एक सुखी है, एक दुखी है ।इसप्रकार  कर्मफल🎲🎲  अनुभवगोचर है"।
  स्वयंबुध मंत्री की बात सुनकर शतमती मंत्री ने कहा आत्मा  जैसी कोई वस्तु है ही नही।

  स्वयंबुध ने खंडन  करते हुए कहा हर इंसान को अपने कर्म का हिसाब⚖⚖ देना होता है।
 उसी समय  4 थे मंत्री महामति ने  कहा , संसार सब माया है।
 तब स्वयंबुध ने कहा ' यदि जगत में सब   माया है तो वे पदार्थ अपना- अपना कार्य कैसे कर सकते है❓
  ' हे राजन❗ आप  इस जाल में मत फँसो। अभी भी समय है, विवेक का आलंबन लेकर धर्मशील बनो।'



*श्री आदिनाथ चारित्र*

आदिनाथ चरित्र भाग-9
     स्वयंबुध मंत्री की बात सुनकर   महाबल राजा ने कहा,  मंत्रिवर❗ आप का कथन सत्य है कि  धर्म से सुख और अधर्म से दुख प्राप्त होता है। परंतु यौवनवय👱🏽 में तो काम का साम्राज्य छाया हुआ रहता है, अतः धर्म के लिए👨🏼‍🔬 वृद्धावस्था ही है।
 तब मंत्रिवर ने कहा, हे राजन❗   आपको बाल्यवय मे बनी हुई घटना क्या आपको याद नही❓  एक बार नंदनवन में🌳 आपको देव मिला था।   उस देव ने आपको कहा था,'   महाबल तू मेरा  पौत्र है। मैं  तुम्हारा पितामह हूँ। मैंने राज्य त्यागकर चरित्र धर्म स्वीकार किया पंचपरमेष्टि का स्मरण करते हुए   मुत्यु पाकर  🏤 लातंक देवलोक का इंद्र  बना हूँ।
यह कहकर वह अदृश्य हो गया।
   हे राजन⁉  स्वर्ग आदि परलोक है।  इसमें अब कोई संदेह नही रह  जाता है। जब प्रत्यक्ष प्रमाण हो वहाँ दूसरे प्रमाण की कल्पना क्यो करनी  चाहिए⁉
 ये सब सुनकर महाबलराजा बोले," तुमने मुझे पितामह
की बात याद दिलाई, यह बहुत अच्छा किया। अब मैं धर्म अधर्म जिस के कारण है उस परलोक को मानता हूँ।
 महाबलराजा की यह बात सुनकर स्वयंबुध मंत्री ने कहा महाराज सुनिए आज मैंने यह बात क्यों कि, आज मेरुपर्वत के नंदनवन में  *विययच्चार*
और *उर्विधर* नाम के दो 6 चारणमुनियो को वंदन स्तुति👏🏿👏🏿🙏🏼 की तब  आपके आयुष के बारे में मैंने पूछा तो उन्होंने आपकी आयु के बारे में बताया।'   आप का *1माह* आयुष्य⚫ बाकी है '  इसीलिए मैं आपको यथाशीघ्र  धर्माराधना के लिये कह रहा हूँ।


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*श्री आदिनाथ चारित्र*

श्री आदिनाथ चरित्र भाग-10
   महाबल राजा ने👑 जैसे ही   अपना भविष्य जाना वैसे ही वह बोला, *हे स्वयंबुध❗ बुद्धि के समुद्र❗  मेरे बंधु तुम एक ही हो। तुम्ही मेरे हीत की चिंता में सदा रहते हों।*  विषयो में💋👂🏻👁 फंसे हुए और मोहनिद्रा में पड़े हुए मुझको तुमने जगाया है।* अब तुम ही बताओ मैं किस धर्म का साधन करू❓ आयु⚫🕠  कम है , अब इतने  *समय मे कितनी धर्मारा धना 📿📿 कर सकूंगा। आग🔥 लगने के बाद कुँआ  खोदकर 🔥    आग बुझाना कैसे हो  सकता है❓"* तुम मेरे   कल्याण मित्र हो।  तुम ही मुझे कोई उपाय बताओ❓ * अहो❗ यह आयुष्य  तो क्षणभंगुर है। यह यौवन   पानी के परकोटे  के  भांति चपल है।    मैंने मोहनिद्रा में अपना सम्पूर्ण जीवन पूरा कर दिया है। अब सिर्फ एक महीने में कितनी🤔🤔 * धर्माराधना*  कर पाऊंगा।

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             *महावीर के उपदेश ग्रुप*

                  💁‍♂💁 *भगवान रुषभदेवजी/आदिनाथजी जीवन चरित्र* 🙋🙋‍♂

*श्री आदिनाथ चारित्र*

श्री   आदिनाथ चरित्र भाग- 11
  महाबलराजा को अब एक एक क्षण का भी विलंब सह्य नही हो रहा था.....  उन्होंने मंत्री से कहा
 हे   मंत्रीश्वर❗ तेरी बुद्धिमत्ता से मैंने आज तक सुख  अनुभव किया है,*अब मुझे ऐसा उपाय🤔 बताओ, जिससे अल्प काल मे ही मेरा उद्धार हो सके।'*
    मंत्री ने कहा, ' हे स्वामिन❗ आप खेद ना करे। * आप परलोक के मित्र के समान चरित्र धर्म का आसरा लीजिये। एक दिन चरित्र पालन से आत्मा  मोक्ष प्राप्त कर सकती है, तो 🔴 फिर स्वर्ग की बात क्या है❗❓  महाबलराजा राजा ने दीक्षा  अंगीकार करने के लिए😷 तैयार हो गया। अपने पुत्र को राजगद्दी पर आसीन⛩ पर आसीन कर दिया।    राजा ने याचकों को अनुकंपा 🛍🎁 दान  दिया। उसके  बाद जीन मंदिर🇧🇴  में अष्टान्हिका महोत्सव का आयोजन किया।
   सभी👨‍👨‍👦‍👦👪👨‍👩‍👧‍👧 प्रजाजन से व🎅🏻👩🏻‍🚀🤵  क्षमायाचना🙏🏼 की उसके बाद दीक्षा ली। और अनशन व्रत स्वीकार कर लिया।
 जिस प्रकार अग्नि से सुवर्ण की  शुद्धि होती है, उसी प्रकार तपश्चर्या  से महाबलमुनि 22 दिन का अनशन  पूर्ण कर कालधर्म को प्राप्त हुए।

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             *महावीर के उपदेश ग्रुप*

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*श्री आदिनाथ चारित्र*

श्री आदिनाथ चरित्र-1 2
  *पांचवा भव-ललितांग देव*

अपने आयुष्य की समाप्ति के साथ महाबल मुनि का जीव दूसरे
इशान देवलोक में *श्रीप्रभ* नाम के विमान   के अधिपति के रूप में पैदा हुआ। उसका नाम *'ललितांग*'देव रखा गया। औपपतिकी  शय्या में जब ललितांग देव पने जन्म हुआ,
उस समय उनके सभी अंग💍👑  आभूषणों🌞💅🏼 से अलंकृत थे। सर्वांग सुन्दर  युवान की भांति उनका मजबूत💪🏿💪🏿 शरीर था। ललितांग देव के जन्म के समय सारा विमान  वाद्य-यंत्रों 🎷🎸🎸🎻  से  गूंज उठा। रमणीय ध्वनि को सुनकर ललितांग सोचने लगा *अहो यह क्याहै* *क्या यह इंद्रजाल है*
*सपना है❓ *माया है❓ *ये सब नाच गीत मेरे लिए ही क्यों हो रहे है*❓🔉📣 *देवदुन्धभी*  बजने लगी।
*मंगलपाठ* कहने लगे। जगत को *आनंदित करो* *जय 👏🏿👏🏿 पावो*   कहकर बोला " हे स्वामिन❗ आप हमारे स्वामी है । यह ईशान नामक  दूसरा🏤 देवलोक है । आप *श्रीप्रभ* नामक विमान शोभा रूप हो।
 आपकी सेवा में ये समानिक देव👩🏼‍✈👨🏿‍✈  सदैव  उपस्थित है।

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             *महावीर के उपदेश ग्रुप*

                  💁‍♂💁 *भगवान रुषभदेवजी/आदिनाथजी जीवन चरित्र* 🙋🙋‍♂

*श्री आदिनाथ चारित्र*

श्री आदिनाथ  चरित्र- 13
 🏤    इशान देवलोक में रहे हुए ललितांग देव🤴 देव  ने  अवधिज्ञान  का उपयोग लगाया। उस समय उन्हें ये खयाल😘 आया कि गत भाव में मैं  👑 महाबलराजा था।  मैं प्रमाद निद्रा में सोया हुआ था, उस समय  स्वयंबुध👵 मंत्री ने मुझे धर्मबोध  दिया था। उसी के😊 प्रतिबोध  🤴दिया था। उसी के प्रतिबोध से मुझे👏🏿 दीक्षा धर्म की प्राप्ति हुई थी। दीक्षा के दिन से मैंने 🤐 अनशन  व्रत स्वीकार किया था। उसी धर्म  के प्रभाव से  मैं 👲 देव बना हूँ। अहो ❗ धर्म का प्रभाव  अतुलनीय है।  इस प्रकार विचार करता हुआ🏵 फूलो की शय्या से खड़ा हुआ, तब अन्य  देवों ने  अभिषेक किया। उसके बाद🎉🎊💃🏽🎷🥁🎸 संगीत और नृत्य चालू हुआ। तत्पश्चात  *नृत्य में अनासक्त  बने ललितांग देव ने   चैत्य में जाकर शाश्वत चैत्यों के प्रतिमाओं। का पूजन किया। प्रभु की भक्ति की,  अगाध ज्ञानवाली📚📖📓 पुस्तकों का स्वाध्याय किया।* फिर *वसुमाणव स्तंभ* के मध्य में रही हुई जिनेश्वर भगवंत की अस्थियों की पूजा की, उसके बाद ललितांग अपने  अंतःपुर🏤 में चला गया।
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             *महावीर के उपदेश ग्रुप*

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*श्री आदिनाथ चारित्र*
श्री आदिनाथ चरित्र
भाग-14
☘ एक दिन ललितांग देव  छत्र👨‍🚒 धारण करने से पूर्णिमाके  चंद्र 🌕 की  तरह प्रकाशमान हो कर   क्रीड़ाभवन 🏢 में गया।
   अपनी प्रभा से बिजली⚡⚡⚡ की प्रभा को लज्जित करनेवाली *स्वयंप्रभा*  नामकी💃🏽 देवी को उसने  वहाँ देखा।  उसके👁👧👣 नेत्र, मुख,  चरण बहुत कोमल थे। वह ऐसी मालूम होती मानो *लावण्य सिंधु में कमलवाटिका* हो।🌈     स्वच्छ वस्त्रो 👗👗  से  ढंके हुए शरीर से  *राजहँसी* की तरह शोभती थी। शरीर का प्रत्यक अंग 👂🏻👄💅🏼👃💋👁  उदर और कमर मनोहर थे। उसके कान *कामदेव*  के  लीला हरने वाले थे, नेत्र *कमल* की तरह थे, केश  *काजल* के समान थे।सारे शरीर मे धारण किये हुए आभूषण से वह कमलतासी जान पड़ती थी। *हज़ारो💃🏽💃🏽 अप्सरा से घिरी हुई वह गंगा के समान जान पड़ती*   थी।
 ललितांग देव को अपने पास आता देख, उसने खड़े होकर उसका सत्कार कियाl🙏🏼👏🏿👏🏿 *श्रीप्रभ*विमान का स्वामी  *स्वयंप्रभा*के साथ पलंगपर  🥅 🤝👩‍⚖ *बैठा* *ललितांग उस देवी के अद्भुत रूप लावण्य में आसक्त बना*। उस देवी के साथ दिव्य भोगो💑🏰🍱🌈 को भोगने लगाl
 
*श्री आदिनाथ चारित्र*
श्री आदिनाथ चरित्र भाग-15
 ☘ ललितांग देव को   👩‍🚒   *स्वयंप्रभा*  के साथ दिव्य👫🏺🛌🍱🌺 भोगों का अनुभव करते हुए दीर्घ काल व्यतीत हो गया।
   एक दिन स्वयंप्रभा का 💃🏽 आयुष पूर्ण⚪ हो जाने से उसका *च्यवन*  हो गया। उस देवी के वियोग से ललितांग ऐसे मूर्छित होकर गिर जैसे पर्वत🏔🏔 से गिर हो। नंदनवन🌳 में भी उसको खुशी नही हुई😣😩😫😭  *हा प्रिये❗*तू   कहा है  प्रिये*⁉ *पुकारता  रोता*,
वह सारी दुनिया को , 🌏😭 स्वयंप्रभामय देखता, वह चारो  तरफ दृष्टि  फिराने लगा। तीव्र मोह के कारण ललितांग देव स्वयंप्रभा देवी के  नामोच्चार  💃🏽 पूर्वक करुण रुदन करने लगा,  हे प्रिये❗तू  मुझे जल्दी   दर्शन  दे। *तेरे वियोग सर यह स्वर्ग भी🏤 नरक   🕋समान प्रतीत हो रहा है।* इस प्रकार स्वयंप्रभा देवी के वियोग की पीड़ा अभिव्यक्त करने लगा।
   *मोह की गति बड़ी विचित्र है* *भविष्य में तिर्थंकर बनकर जगत में सन्मार्ग दान करने वाले ललितांग देव की भी यह कैसी स्थिति  हो गयी।*

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             *महावीर के उपदेश ग्रुप*

                  💁‍♂💁 *भगवान रुषभदेवजी/आदिनाथजी जीवन चरित्र* 🙋🙋‍♂

*श्री आदिनाथ चारित्र*

श्री आदिनाथ चारित्र भाग- 16
🍃  इधर  स्वयंबुध मंत्री👱🏽  को अपने स्वामी के अनशन और स्वर्गारोहण के बारे में पता चला,   तो वह वैराग्यवासित हो गया। सिद्धाचार्य  नामक आचार्य से दीक्षा ग्रहण की । दीर्घकालिक👏🏿  संयम पालकर , ईशान  देवलोक 🗼🗼 में *इन्द्र का 'दृढवर्मा' नामक समानिक देव हुआ*।
      पूर्वभव के प्रेम के कारण, बंधु 🤝🤝 सा प्रेम हुआ।  वह अपने🗼 विमान से ललितांग🤴 देव के पास आया। धीरज धराते हुऐ बोला :*हे  महासत्व❗ हे महागुणी❗*केवल स्त्री  के लिए आप इतना  क्यों विलाप कर रहे हो❓  धीर पुरूष  मौत के समय भी इतने नहीं घबराते है। *पुरुष के वियोग में स्त्रियां रुदन करती है परंतु स्त्री के 😭😰 वियोग में पुरुष को रुदन करना, योग्य नहीं है*
  ललितांग ने कहा,"  हे बंधु


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                  💁‍♂💁 *भगवान रुषभदेवजी/आदिनाथजी जीवन चरित्र* 🙋🙋‍♂

श्री आदिनाथ चरित्र भाग-17
  🍀  दृढवर्मा देव ललितांग देव को अपने 🗽 अवधिज्ञान का उपयोग  लगाकर वर्तमान स्थिति के बारे में बताते है।
     🌏    पृथ्वी  पर    धातकीखण्ड    🏞  के 🌄  पूर्वमहाविदेह क्षेत्र  में *नंदी*नामक गाँव है। उसमें *नागिल* नामक एक निर्धन😪  व्यक्ति रहता है। उसके पास  पेट भरने   के  🍱 भोजन नही है, *वह भूखा ही सोता है  और  भुखा ही उठता है*।
   एक और गरीबी ..... 😣 *नागश्री *नागिल की पत्नी ने एक एक कर छह  छह पुत्रियो को जन्म दिया*😇उसके बाद नागश्री फिर  से गर्भवती  बनी। अपनी गर्भवती पत्नी को नागिल ने कहा"  इस गरीबी में छह छह पुत्रियो का पालन करना मेरे लिए दुष्कर है।यह मेरे किस कर्म का फल है कि *मैं मनुष्यलोक 🌏 में रहते हुए भी नरक का फल भोग रहा हूँ*  जिस तरह  दीमक खोखला 🕷 करती  है, उसी तरह इन अशुभ लक्षणों वाली 👩‍👩‍👧‍👧👩‍👧 यह  कन्याएं है। *अब सातवी बार अगर कन्या जन्मी तो मैं इस घर🏚 को छोड़कर चला जाऊंगा*।
 दुर्भाग्य से सातवी बार भी 😩😫 नागश्री ने पुत्री को जन्म दिया। जब यह बात नागिल को पता चली तो ,वह जैसे   *अधम बैल भार छोड़कर भाग 🏃🏼🏃🏼जाता है वैसे नागिल 🏚 घर छोड़कर भाग गया*।
   जब नागश्री को पता हुई तो वह दुखी हुई  ,उसे पुत्री का 👷🏻‍♀ जन्म ऐसा प्रतीत हुआ *जैसे  घाव पर नमक  होता💩 है*दुखिनी नागश्री ने पुत्री का कोई  नाम नही रखा,इसलिए सब लोग उसे  *निर्नामिका* कहकर पुकारने लगे ।

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श्री आदिनाथ चरित्र भाग-18
🌿 निर्नामिका  का नागश्री ने  अच्छी तरह पालन पोषण नही किया, फिर भी वह *बाला 👷🏻‍♀ बेल की तरह बढ़ने लगी*****
 उसका कही भी *मानसम्मान* नही था।
 अभागी माता  दुसरो के घर हल्के काम करके अपना जीवन बिताने लगी👟👞😰🥋
 एक दिन निर्नामिका ने किसी धनिक लड़के के हाथ मे लड्डू🍪 देखा। वह अपनी माँ  से👱🏻‍♀ लड्डू मांगने लगी। उसकी माता दांत पिसते हुए  कहने लगी" की ,*लड्डू क्या तेरा बाप है*की तू उससे मांगती है⁉ यदि तुझे *लड्डू खाने की इच्छा हो तो अम्बरतीलक पर्वत पर लकड़ी का  बोझा लेने जा*,   *तब तक तुझे खाने को कुछ नही मिलेगा*❗ अपनी *माँ*की *कंडे की  आग 😤 की तरह* बाते सुनकर वह रस्सी लेकर,वह🏃‍♀🚶🏽‍♀  रोती हुई🌋  पर्वत की तरफ पर गयी......
   उस समय 🌋 पर युगंधर नामक  😷  को *केवलज्ञान*उत्पन्न होने से  देवताओ ने🤴🤴   महिमा👏🏿👏🏿 ,उत्सव🎺🎉🎊🎊  करना प्रारंभ किया। अनेक नर नारी पर्वत पर जा रहे  थे। वह विस्मित होकर पुतली सी खड़ी रही,जब उसे लोगो के👨‍👧‍👦👩‍👩‍👧‍👦 पर्वत पर जाने का कारण मालूम हुआ तो वह भी *अपने🗿🗿 तिरस्कार का बोझ उतार कर*   लोगों के साथ पर्वत पर चढ़ी।


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श्री आदिनाथ चरित्र भाग-19
  🍀 पर्वत पर महामुनि युगंधर   ने जीवों के लिए हितकारी देशना प्रारम्भ किया"  इस *
*संसार मे परिभ्रमण करती हुई आत्मा को कही  पर भी सुख नहीं है*। *संसार के सभी सुख नाशवंत है*। *चौरासिलाख जीव योनि में भटकने वाले ⚙ जीवों पर जो  अनंत दुःखो का भार है वह अपने कर्मों का ही परिणाम है*। तब हाथ जोड़कर🙏🏼 निर्नामिका ने  प्रश्न किया"  हे भगवन❗ आप राजा और रंक दोनों में समान भाव  रखने वाले है,इसीलिए मैं आपसे पूछती हूँ। आपने कहा संसार  दुःखो का घर है, *मगर मूझसे ज्यादा 😭😰 दुःखी भी क्या कोई इस👆 दुनिया मे है*⁉
 केवली भगवन  🌅  ने  कहा, *नरक के👹👿👺 दुःखो के आगे तेरा दुःख तो अंश मात्र भी नहीं है*इतना कहकर केवली भगवंत ने सातो नरको😱😡👺👹🗣🌑 कि  भयंकर  वेदना का वर्णन किया'
जो जीव  अपने बूरे कर्मो के कारण नरक गति में जाते है 💣 उनमे से  अनेको के शरीर भेदते है, अनेको के  अंग छिदते है और अनेको के मस्तक धड़ से जुदा होते है, परमाधामी💩 देवों द्वारा, घाणि में पीले जाते है, कोई⚔ तीक्ष्ण  चीज़ों से चीरे जाते🐲🏟 है ,कोई कूटे जाते है , टुकड़े🚧 किये जाते ......। ऐसे अनेको प्रकार के दुःखों वे भोगते है,उनका वर्णन  सुनकर👽👻💩  निर्नामिका  का  हृदय कांप उठा।
   धर्मदेशना सुनकर वैराग्य🤦‍♀ उत्पन्न हुआ। लोहे के गोले  की तरह कर्मग्रंथि भेद ली......और सम्यग्रत्न💎 प्राप्त कर लिया। श्रावक धर्म के पाँच अणुव्रत को धारण किया।
 अत्यंत प्रसन्न होकर🏚 आयी... 🎪🙏🏼और विविध तप करने लगी। यौवन होने पर भी उसने   किसी से शादी नही की। *जैसे कड़वी लौकी को पकने पर कोई नही खाता वैसे ही उसने किसी को ग्रहण नही किया*
 अंत मे  अम्बरतीलक पर्वत पर युगंधर मुनी के पास अनशन व्रत  स्वीकार किया।

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श्री आदिनाथ चरित्र  -20/21
 🔴 छठा भव-वज्रजंघ 🔴
  जम्बूदीप❗🌄 महाविदेह क्षेत्र ❗पुष्कलावती विजय लोहार्गल नगर🏘  मे राजा🤴 सुवर्णजंघ की   महारानी की गर्भ में ललितांग देव का च्यवन हुआ। शुभदिन महारानी ने पुत्र रत्न👼🏻 को जन्म दिया। आनंद से भरे हुए मातापिता ने नाम रखा *वज्रजंघ*।
 स्वयंप्रभा देवी भी, ललितंगदेव के वियोग से😪🤴🙇‍♀ दुःखी होकर धर्मकार्य में लीन रहकर, आयुपुर्ण कर उसी विजय में *वज्रसेन* चक्रवती की *गुणवती* पट्टरानी की कुक्षि से पुत्री रूप में जन्मी। अतीव सूंदर होने से उसका नाम *श्रीमती* रखा।उसका पालनपोषण धायो द्वारा👩‍💼👩‍⚕💆🏻 लता की तरह होने लगा।सुवर्ण की अंगूठी को जिस तरह रत्न प्राप्त होता है,वैसे ही श्रीमती को यौवन और सुंदरता प्राप्त हुई।
 एक दिन 🌘संध्याकाल में वह अपने🏰 सर्वतोभद्र नामक महल में चढ़ी। उस समय  मनोरथ नामक उद्यान में🌴🌳 *सुस्थित* नामक मुनि को केवलज्ञान होने से,वहाँ से चारो  दिशाओ  में आने जाने वाले देव देवी पर 🤴👸🏼 उसकी दृष्टि पड़ी।केवलज्ञान के इस महोत्सव को देखते हुए *'यह  महोत्सव मैंने पहले भी कहीं देखा है,*सोचते सोचते  पूर्वभव👧💃🏽 की बात सपने की तरह याद आ गयी।जातिस्मरण ज्ञान🔮 में उसे पूर्व के भव दिखाई दिए।पूर्वजन्म का  ज्ञान  भार वह सहन नही कर😇😳😳 सकी,वह पलभर में जमीन पर गिरी और बेहोश हो गयी। सखियो के उपचार से उसे होश आया गया ।उसके मन मे ललितंगदेव🤔🙄👨‍👧 देव के प्रति अनुराग भाव उत्पन्न हो गया।विचार करने लगी" पूर्वभव में ललितांग देव ही मेरे पति थे।उनका स्वर्ग से पतन हुआ है। अब वे कहाँ है⁉ मेरे हदय में उन्ही का स्थान है।वो ही मेरे प्राणेश्वर है।कपूर के बर्तन में नमक कौन डाले❓यदि *मैं अपने प्राणप्रिय से बातचीत नही कर🤐 🤐🤐सकती* तो दूसरों के साथ बातचीत का क्या लाभ है⁉ ऐसा विचार कर के उसने मौन धारण कर लिया।

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श्री आदिनाथ चरित्र-22
   *श्रीमती  का मौन*......
  श्रीमती🙇‍♀🙅🏻 की उदासी, एकांत और🤐 को दूर करने के लिए   सब अनेको उपचार करने लगे।पर वह न बोली।तब सखियॉँ दैवदोष की शंका से तंत्र मंत्र☠🃏🎲 ज्योतिष आदि से यथोचित उपचार करने लगी।ऐसे सैकड़ो उपचार से भी उसने मौन नही त्यागा।कारण *एक रोग की दवा दूसरे रोग को नही लगती*।📌💊जब जरूरत होती वह लिखकर📝 या इशारे से✍🏿✌🏽 से परिवार के लोगो को अपनी जरूरत बताती थी।
 एक दिन श्रीमती उद्यान में क्रीड़ा⚽🤼‍♀ करने गयी।उस समय एकांत देखकर उसकी पंडिता नामक धाय ने उससे कहा"हे राजपुत्रि❗ *तू मुझे प्राणों के समान प्रिय है और मैं तेरी माता के समान हूँ।इसलिए हमें एकदूसरे पर विश्वास करना चाहिए।हे पुत्री तूने जिस कारण द्मौन धारण किया ,वह मुझे बता और अपना दुख कम कर ।तेरा दुख जानकर मिटाने का कष्ट करूँगी*❗ धायमाता के👵 अतिआग्रह  को जानकर  अपनी पूर्वभव की सारी घटना सुना दी।यह भी कह दिया *मैं ललितांग देव की आत्मा को छोड़कर अन्य किसी के साथ पाणिग्रहण नही करूँगी*।
  श्रीमती की इन बातों को सुनकर  धायमाता ने कहा" बेटी❗तूने झूठा साहस किया है।इस संसार मे प्राणी अपने कर्मयोग से जन्म लेता है।पूर्वभव के तेरे पति कहाँ  और किस रूप मे जन्मे  हुआ होगा, यह हमें कहाँ पता है❓
 *कर्म की गति बड़ी विचित्र🖱🖨 है*।मूर्ख व्यक्ति विद्वान के रूप में, धनवान  व्यक्ति गरीब के रूप में,पुरुष स्त्री रूप मे,स्त्री पुरुष रूप मे पैदा हो सकती है। अतः तू आग्रह छोड़ दे।
 जब बार बार समजाने पर भी श्रीमती नही मानी तो पंडिता ने  सारी बातें एक🖼🎎📜⛳🗼
 पट पर  चित्रित कर ली और वह पट लेकर वहाँ से विदा हुई।

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श्री आदिनाथ चरित्र-23
        पंडिता जब जाने लगी तब श्रीमती बोली" जिनेश्वर परमात्मा की भक्ति करने वाले देव का तिर्यंचगति में🦄🐅 गमन नहीं होता है, वह तो क्षत्रिय 🤺🏹आदि उत्तम कुलो में ही जन्म लेते है। *परस्पर स्नेह के कारण अधिकांशतः जीव एक ही क्षेत्र में जन्म लेते है, मुझे विश्वाश है ललितंगदेव देव मेरी तरह  इसी देश मे 🏰 उत्तम राजवंश में पैदा हुए होंगे*, अतः  इस जीवन मे मैं उन्ही के साथ बात करूँगी, *अन्य किसी के साथ🙅🏻 बातचीत करने की मेरी इच्छा नहीं है*।
       पंडिता पट  लेकर🚶🏽‍♀🚶🏽‍♀ विदा हो गयी। उन्ही दिनो चक्रवर्ती वज्रसेन का *जन्मदिन🎂🥁🎊 आ रहा था। बहुत से राजा,🤴🤵 राजकुमार,चक्रवती🤺 प्रतिवर्ष अनुसार बधाई देने आने वाले थे। पंडिता ने वह चित्र🚏 *राजमार्ग पर स्थापित कर दिया।अनेक लोग कोतुहल वश आकर देखने लगे।*कुछ नंदीश्वर🌋 द्वीप, तो को इसमे चित्रित *अरिहंत परमात्मा🙏🏼 के बिम्ब का वर्णन करने लगे।कोई देव,देवी और👨‍👧🤴💃🏽🗼 *स्वर्गलोक* की बात करने लगें। कितने ही लोग पट् के अंदर के लाल,🌈💥 पिला ,हरा, नीला रंग के समायोजन की स्तुति करने लगे।
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श्री आदिनाथ चरित्र-24
🔴श्रीमती के पाणिग्रहण के उपाय🔴
  जब पंडिता राजमार्ग पर पट दिखा रही थी।इसी मौके पर दुर्दांत नामक राजपुत्र 🤓 पहुँचा।वह एक क्षण बाद बनावटी मूर्छा से😇 जमीन पर गिर पड़ा और फिर होश आया हो ऐसे  उठ बैठा।जब लोगों ने कारण👆 पूछा तब बोला मैं ही ललितंगदेव हूँ।मुझे जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न💥 हुआ है।यह पट में मैं ही हूँ।तब पंडिता बोली" यदि यही बात हैं तो,इस पट में कौन कौन से स्थान है उंगली से बताओ⁉ दुर्दांत ने कहा यह मेरुपर्वत, ये पुंडरिकनी नदी है।फिर *पंडिता ने पूछा मुनिराज का नाम* बताओ तब वह बोला मैं नाम भूल गया।इस बात से🎭 पंडिता समझ गयी यह धूर्त,🤓😎 मायावी है।पंडिता ने दिल्लगी से😄 कहा"ललितांग का जीव तू है और तेरी स्त्री🙎🏼 स्वयंप्रभा ,इस समय  नंदीग्राम में, *कर्मदोष से लंगड़ी होकर जन्मी है*।उसने जातिस्मरण यह पट बनवाया है।उस लंगड़ी पर दया कर मैने  तुझे  खोज🖼 निकाला है। इसलिए अब तू मेरे साथ चल।हे पुत्र वह गरीबनि तेरे वियोग मे बड़े दुख से जी रही है। जब पंडिता चुप हुई तब उसके 👨‍👦‍👦 लंगोटिया मित्रो ने उसकी दिल्लगी करते हुए कहा: मित्र ❗आप को स्त्री
रत्न की प्राप्ति हुई है,आप का पुण्य उदय हुआ है।इसलिए आप जाकर, *उस लूला स्त्री से मिलिए  और उसका पालन पोषण 😡कीजिये*।"मित्रों की ऐसी बाते सुनकर  लज्जित
 हो😣 गया और बेची हुइ वस्तु से अवशिष्ट-बाकी
हुइ कि तरह होकर, वहाँ से चला गया।

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श्री आदिनाथ चरित्र-25
  पंडिता धायमता ने पट राजमार्ग पर लगा दिया था। कुछ ही समय बाद लोहार्गल के महाराज सुवर्णजंग का पुत्र *वज्रजंघ* भी वहाँ पर आ गया।उसने जैसे ही चित्रपट देखा, मूर्छित हो गया।पंखो से हवा की गई,जल के छींटे💦 मारे  गये,तब  मूर्छा दूर हुई।इसके बाद मानो जातिस्मरण🇻🇮 हुआ।उस समय पंडिता ने पूछा"हे कुमार❗पट को देखकर तुमको मूर्छा क्यो आ गयी⁉ वज्रजंघ ने कहा"भद्रे❗ *इस चित्रपट में मेरा और मेरी स्त्री का💑 पूर्वजन्म का वृतांत लिखा हुआ है, उसे देख मैं बेहोश हो गया*। यह ईशान कल्प है,उसमे श्रीप्रभ🚝 है, यह मैं ललितांग देव हूँ और यह मेरी देवी स्वयंप्रभा है।धातकीखण्ड के नंदीग्राम में महादरिद्री पिता की *निर्नामिका* नामक पुत्री है।यह🎍 अम्बरतीलक पर्वत, *यह युगंधर मुनि* है। यह🎪 *नन्दीश्वरद्वीप द्वीप* है यहाँ से दूसरे तीर्थ में जाते हुए मेरा च्यवन हुआ।वहाँ से अकेली दिन हीन😒😓 *स्वयंप्रभा ही यहाँ आयी है, इसको मैं मानता हूँ*। यही मेरी पूर्वजन्म की प्रिया है। उसने ही यह सब जाना है।यह मैं मानता हूँ,* *यह मैं जानता हूँ कि बिना,अनुभव के  कोई भी आदमी इन बातों को नही जान सकता*।
 इतने मे  पंडिता बोली" कुमार‼ आपका कहना सच है। यह कहकर पंडिता शीघ्र ही श्रीमती की ओर प्रस्थान किया🏃‍♀🏃‍♀।


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श्री आदिनाथ चरित्र- 25/26
  पंडिता श्रीमती के पास आई औऱ  *हृदय को शल्यरहित करने में औषधि-समान* वह वृतांत उसने श्रीमती को सुनाया... अर्थात *दिल को खटकने वाली वे सब बातें उसने उस से कह दी। मेघ के शब्दों से🏔⛈ विद्दुर पर्वत की जमीन जिस तरह रत्नों से💎💎💎 अंकुरित होती*
 है , उसी तरह *श्रीमती अपने प्यारे पति का वृतांत सुनकर🎎 हुई*।
 कुलीन स्त्री के आचार के तहत पंडिता से खबर📞📞 कराई। मेघ की वाणी से जिस तरह मोर🌈  प्रसन्न होता है, उसी तरह पंडिता की बाते सुनकर वज्रसेन प्रसन्न हुआ। उसने शीघ्र ही वज्रजंघ कुमार🤴 को बुलवा कर कहा"मेरी *बेटी श्रीमती पूर्वजन्म की तरह इसी जन्म में भी आपकी पत्नी बने*। 💏 वज्रजंघ ने मंजूर किया।तब वज्रसेन चक्रवती  ने, *समुद्र जिस प्रकार लक्ष्मी की शादी🎺👫🤝 करता है,उसी तरह अपनी कन्या का पाणिग्रहण किया*।उसके बाद✨ दोनों राजा की आज्ञा लेकर। लोहार्गलपुर गए। वहाँ सुवर्णजंघ राजा ने योग्य उत्तराधिकारी जान⛩ राजगद्दी पर आसीन कर, आप दीक्षा ली।

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lLश्री आदिनाथ चरित्र -27
इधर राजा वज्रसेन ने अपने पुत्र  पुष्करपाल को 👑🎓 राज्यलक्ष्मी सौंपकर दीक्षा अंगीकार की और तिर्थंकर हुए।अपनी प्यारी श्रीमती के साथ भोग विलास करते हुए🥂🌼🌺 वज्रजंघ राजा ने, *हाथी जिस तरह कमल को वहन करता है उसी तरह राज्य को वहन किया। गंगा और सागर की तरह वियोग को प्राप्त ना होने वाले सुख को वहन किया*।पुत्र जन्म हुआ 👪।
एक बार *पुष्करपाल राजा के राज्य की सीमा पर   सामंत राजाओं ने हमला🏹🥋🤺 किया। सर्प कि  तरह उनको वश करने वज्रजंघ को बुलाया गया।वज्रजंघ मदद करने चला। जिस तरह इंद्र के साथ इंद्राणी चलती है , उसी तरह *पति में अचल भक्ति रखने वाली श्रीमती अपने पति के साथ हो ली*। आधे रास्ते पहुचे होंगे कि🛤 उनको अमावस की रात में🌑✨✨✨ *चंद्रिका का  भरम कराने वाला  काँस का महावन दिखाई दिया। मुसाफिरों ने बताया उस रास्ते पर दृष्टिविष🐍 सर्प अर्थात ( *जिन सांपो के देखते ही विष चढ़ता है*।)रहते है, इसलिए वह दूसरे मार्ग से  चला।सफेद कमल की उपमा वाला  वज्रजंघ पुंडरिकनी नगरी में आया। *उनके आगमन के समाचार मात्र से ही सभी दुश्मन🎠🎠 राजा वहाँ से भाग गए*। पुष्करपाल
ने वहाँ  खूब आदर सम्मान किया।  आथित्य स्वीकार कर कुछ दिन वहाँ रहना स्वीकार किया।
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श्री आदिनाथ चरित्र-28
 पुंडरिकनी से कुछ समय बाद श्रीमती के भाई की अनुमति लेकर वज्रजंघ🚂 श्रीमती को लेकर जिस तरह  लक्ष्मीपति चलता है ऐसे👫 चला।जब वह रणवीर कांसा🎄🌵 के वन के पास आया तब मार्गदर्शक चतुर पुरुषों ने👨🏼‍🔬 कहा" अभी इस वन मे  *दो मुनियो को🌅 केवलज्ञान उत्पन्न हुआ है, इससे देवताओं के आने से  दृष्टिविष सर्प🐍 निर्विष हुआ है*। वे सागरसेंन और मुनिसेन नाम के *मुनि सूर्य 🌞 और🌔 चंद्र की तरह अब भी यही मौजूद है*।वह दोनों  सगे भाई है। यह सुनकर वह  प्रसन्न हुआ। देवता की परिषद से शोभायमान मुनि धर्मोपदेश  दे  रहे थे।दोनों ने भक्तिभाव से वंदना की।देशना के अंत मे अन्न,🍱🥛🍶 पानी,वस्त्र आदि से मुनि को बोहराये। फिर वह सोचने लगा" *धन्य है इन मुनियो को जो सहोदर भाव मे समानहै, 💵कषाय रहित है,ममता और🤑 परिग्रह से कोसो दूर है*। मैं ऐसा नही  हूँ इसलिए  हूँ अधन्य हूँ। व्रत ग्रहण करनेवाले पिता के *सन्मार्ग का अनुसरण करने वाले पिता  आरस( शरीर से जन्म लेनेवाले) पुत्र है और मैं ऐसा नही करता इसलिए खरीदे हुए लड़के के समान हूँ*।


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श्री आदिनाथ चरित्र -29
केवलज्ञानी मुनियो के दर्शन से वज्रजंघ के अंतर  में व्रत के लिये विचार उत्पन्न हो गए।"यदि मै *व्रत ग्रहण करू तो उचित होगा कारण दीक्षा, दीपक की तरह  ग्रहण करने से अज्ञान रूपी अंधेरा दूर होता है। इसलिए यहाँ से नगर में जाकर पुत्र  को राज्य दूंगा और हंस जिस तरह हँसगति का आश्रय लेता है वैसे ही मैं भी अपने पिता का अनुसरण करूँगा*"।
 दीक्षा के संकल्प के साथ😷 वह श्रीमती के साथ लोहार्गल🏨 आया।इधर पुत्र राज्य💺💺पाने के लिए अत्यंत आतुर था।"पिता मुझे राज्य देंगे या नही⁉ इस प्रकार विचार    करके उसने सारे मंत्रिमंडल👲👳🏽‍♀👵 को अपने पक्ष में कर लिया।
🌿 *जल की तरह  धनसे कौन अभेद्य है❓ अर्थात  धन से प्रायः आदमियों को अप्रामाणिक बनाया जा सकता है*।🌿
श्रीमती और वज्रजंघ यह विचार करके सो गए कि सुबह उठते ही⛩⛩पुत्र को राजगद्दी देना है और हमे व्रत ग्रहण करना है, दीक्षा लेनी है।उस समय सुख से सोते हुए दोनों को मार🛌🛌 डालने राजपुत्र ने जहरीला धुंआ किया।
 कहा है‼* *घर के चिराग से लगने वाली आग को रोकने में कौन समर्थ हो सकता है*❓ विष का धुआं 🚬🚬🚬 राजारानी के नाक में  जाते ही वे दोनों मृत हो गए।

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श्री  आदिनाथ चरित्र-30
  🔴सातवा भव🔴
 चरित्र की भावना के फलस्वरूप वज्रजंघ और श्रीमती मरकर  उत्तरकुरु🎑 क्षेत्र में युगलिक रूप में उत्त्पन्न हुए।
🍃🍃🍃🍃🍃🍂🍂
      🔴आठवां भव🔴
 उत्तरकुरु क्षेत्र की योग्य आयु पूर्ण कर वे दोनों  सौधर्म देवलोक्🌉 में स्नेहशील देव हुए और बहुत समय तक स्वर्ग के सुखों को भोगा।
   🔴नौवां भव🔴
  देव आयु समाप्त होने पर,जैसे बर्फ  गलता है वैसे ही *वज्रजंघ का* जीव वहाँ से च्यवन कर जम्बूदीप  के🏝 विदेह क्षेत्रमे,क्षितिप्रतिष्ठित नगर🏭 में सुविधि वैध के घर पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ। नाम *जीवानंद* रखा गया।उसी दिन उसी शहर में, धर्म के चार अङ्गों की तरह, दूसरे चार बालक जन्मे।
      पहला *ईशानचंद्र राजा👑 के घर कनकवती नाम कि रानी से महीधर* नामक पुत्र हुआ।
  दूसरा  सुनासीर👳🏽‍♀ मंत्री की *लक्ष्मी  नामक स्त्री से लक्ष्मीपुत्र के समान  सुबृद्धि* नामक हुए।
    *तीसरा  सागरदत्त नामक सेठ की अभयमती  रानी से पूर्णभद्र* नामक पुत्र हुआ।
    चौथा  धनश्रेष्ठि की *शीलमती ने गुणाकर* नाम का पुत्र हुआ।
 दाइयों👱🏻‍♀ द्वारा सभी सुख सामग्री के साथ  उनका समान रूप से लालन पालन होने लगा।वह सब शरीर के अंग जैसे एकसाथ बढ़ते है, वैसे ही एकसाथ खेल कूदते। सारी कलाएं🏇🏻🏌🏽
 इस तरह ग्रहण की जैसे *वृक्ष मेघ का जल  समान रूप से ग्रहण करते है*



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श्री आदिनाथ चरित्र-31
 श्रीमती की आत्मा का पहले देवलोक में से च्यवन हुआ और वह ईश्वरदत्त श्रेष्ठि के यहाँ *केशव* नाम के पुत्र रूप में पैदा  हुई। * *पाँच इन्द्रिय और छट्ठे मन की तरह,पूर्व पुण्योदय से👨‍👨‍👦👨‍👨‍👦 परस्पर  गाढ़ मैत्री हो गयी*। वे दिनभर साथ रहते।
    उनमे से जीवानंद 🌱💊💉 *औषधि और रस, वीर्य , और पाक आदि अष्टांग आयुर्वेद को* अपने पिता से  ज्ञान प्राप्त कर‼ जैसे *हाथी में ऐरावत🐘🐘 और नवग्रह में सूर्य🌞🌞 अग्रणी होता है* वैसे ही सभी वैद्यों में वह,
  ज्ञानवान और निर्दोष विद्या को जानने वाला हु।
  एक बार वे सभी छह मित्र जीवानंद वैद्य के घर मे🏛 प्रसन्नता पूर्वक वार्तालाप कर रहे थे।तभी एक *मुनिराज गोचरी के लिए पधारे। वे साधु पुण्यपाल राजा के गुणाकर नाम के पुत्र थे। उन्होने लक्ष्मी की💰💵💸 चंचलता और संसार 🎡की असारता को जानकर राज्य🏰 छोड़ भगवती दीक्षा अंगीकार की थी। दीक्षा अंगीकार कर उग्र *तप  नीरस आहार आदि के कारण   गर्मी में जैसे नदी सुख जाती है, वैसे ही  तप से शरीर सुख गया था*।बदन में भी अल्प रक्त मांस रह गया था। *बेसमय और अपथ्य भोजन से शरीर मे  कृमिकाष्ठ*(ऐसा कोढ़ जिसमे कीड़े पैदा
 हो जाते हौ )। *सारे शरीर मे रोग फैल जाने पर भी वे *मोक्ष कामी किसी से दवा नही मांगते💉 थे*।


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             *महावीर के उपदेश ग्रुप*

                  💁‍♂💁 *भगवान रुषभदेवजी/आदिनाथजी जीवन चरित्र* 🙋🙋‍♂

श्री आदिनाथ चरित्र-32
   छः मित्रो ने   देखा  देह के प्रति निर्मम बने हुए😷 *महात्मा किसी भी प्रकार की चिकित्सा कराने  के लिए उत्सुक  नहीं थे*, वे अत्यंत समता पूर्वक रोग की😌 भयंकर पीड़ा को सहन कर रहे थे।
   *गोमुत्रिका विधान*( साधु जब आहार लेने जाय तो वह🏛🏛🏛 सिलसिलेवार  घरो में आहार के लिए न जाये,कारण🍱🍿🍶 *सिलसिलेवार जाने से संभव है अगले घरवाले  साधु के लिए  कुछ तैयारी  कर ले*।इसलिए *दाहिने हाथ से बाएं की श्रेणी* के किसी घर मे जाते है और *बाएं हाथ से दाये जाते* है) घर घर फिरते साधु को, छट्ठ के पारणे के दिन😷 दरवाजे से आते देखा तब महीधर ने जीवानंद से कहा"  *तुम रोग-परीक्षा में निपुण👨🏽‍⚕👨🏽‍⚕ हो,औषधितत्वज्ञ हो और चिकित्सा-कर्म में भी दक्ष हो: परंतु तुम में दया का अभाव है*❗जिस तरह💃🏽 *वेश्या धनहीन को नज़रे उठा के नही  देखती उसी तरह तुम निरन्तर स्तुति और👏🏻👌🏻👌🏻 प्रार्थना करने वालो के सामने नही देखते*❗परंतु विवेक और👨 विचारशील पुरुष को एकमात्र धन का लोभी होना उचित नही है❗ *किसी समय धर्मार्थ🙏🏼 चिकित्सा भी करनी चाहिए*। निदान और💊💉 चिकित्सा में जो तुम्हारी कुशलता है, उस के लिए धिक्कार है‼ क्योंकि ऐसे मुनि की तुम उपेक्षा करते हो❗परोपकार  बुदधि से चिकित्सा करने वाले वैद्य🗣🎖💰 को *धर्म ,धन और यश  तीनो की प्राप्ति  होती है*❗
   हे जीवानंद❗" तू धर्म का आश्रय कर और व्याधिग्रस्त महात्मा की चिकित्सा कर❗ *ये महात्मा रोगमुक्त बनेंगे और इसके फलस्वरूप तुम्हे भी महान पुण्य होगा*❗
  कल आगे का भाग▶▶▶▶
✍ *बेहेन हिनाजी भूरा सिवनी*
*महावीर के उपदेश ग्रुप टीम*
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  कल आगे का भाग▶▶▶


श्री आदिनाथ चरित्र-33
 🤴 राजपुत्र महीधर की बात सुनकर  विज्ञान रत्न☺️👨🏽‍⚕👨🏽‍⚕ जीवानंद ने कहा," तुंमने मुझे याद दिलाई, यह बहुत अच्छा किया❗" धन्यवाद❗ अक्सर----  दुनिया मे ब्राह्मण जाति द्वेष रहित नही होती( द्वेष करने वाली होती है) *बनियो की जाती अवंचक( न ठगने वाली)  नही होती( ठगने वाली होती  है)। मित्रमंडली इर्ष्या न☺️😏 करने वाली नही होती। ❗।शरीरधारी निरोग नही 💪🏿 होता।विद्वान धनवान✍🏿 नही होते, *गुणवान निरभिमानी नही होते❗ स्त्री *अचपल नहीं होती ❗और  राजपुत्र  🤴एक  *अच्छे चारित्र* वाला नही होता❗
 वे 😷महामुनि अवश्य ही चिकित्सा करने लायक है।उस बीमारी के लिए *जिन औषधि की जरूरत है, उनमे से  मेरे पास लक्षपाक तेल है,परंतु गोशीर्षचन्दन और रत्नकम्बल ये  दो मेरे पास नही है*❗इनको तुम लाकर दो तो मैं *मैं उन महात्मा की चिकित्सा करने का संकल्प लेता हूँ*।
ये दोनों चीजें हम लाएंगे, कहकर *पांचो मित्र बाजार में गये*।और मुनि अपने स्थान पर गए। 

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श्री आदिनाथ चरित्र-34
    पांचो मित्र बाजार  जाकर 🚵🏻एक बूढ़े   वणिक की दुकान में👳🏽‍♀  वणिक से कहा :" हमे *गोशीर्षचन्दन और रत्नकम्बल* दाम लेकर दीजिये"❗ उस  वणिक ने कहा" इन दोनों का मूल्य  *एक-एक लाख 💴💰मुहर है।मूल्य देकर आप इन्हें ले जा सकते है"।इसके साथ उसने पूछा  कि " आपको इसकी जरूरत क्यो है❓पांचो ने कहा 'जो दाम हो सो ले लीजिए और हमे ये वस्तुये दे दीजिए'❗यह  बात सुनते  ही वणिक  आश्चर्य चकित हो गया,उसके नेत्र फटे 🙄🙄की फटे रह गए वह हक्का  बक्का होकर देखता रह🤔🤔 गया।वह अपने  मन मे विचार करने लगा" अहो❗कहाँ  तो *इन सब का उन्माद- प्रमाद और कामदेव🙍🏻‍♂🙍🏻‍♂🙍🏾‍♂ से भी अधिक मदपूर्ण यौवन और कहाँ इन सबकी वयोवृद्ध के योग्य विवेक- पूर्णमति*❓इस *उठती जवानी में,इनमे वृद्ध के योग्य विवेक-पूर्ण मति- गति देखकर* विस्मय होता है: मेरे जैसे बुढ़ापे से जर्जर शरीर वाले मनुष्यो के करने योग्य शुभ कामो को ये करते है और दमन करने योग्य भार को उठाते  है: ऐसा विचार कर वृद्ध वणिक ने कहा--" हे भद्र पुरुषो❗इस *गोशीर्षचन्दन  और  रत्नकम्बल ले जाइए। आप लोगो  का कल्याण हो❗  मूल्य की दरकार नही❗इनका मूल्य चुकाने की आवश्यकता नही है❗ मुनि के उपचार में मुझे भी लाभ मिलना चाहिये❗आप लोगो ने मुझे  धर्मकार्य में हिस्सेदार बनाया है*❗ कहकर दोनों चीजे दी। *अपना शेष धन धर्मकार्य में लगाकर  भागवती दीक्षा अंगीकार कर* आत्म कल्याण किया❗

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श्री आदिनाथ चरित्र-35
 🌱 🌱रत्नकम्बल और👬👬👬 गोशीर्षचंदन लेकर वह  छह मित्र  🌳 वटवृष के नीचे ध्यान कर रहे मुनी के  पास आये।उन्होंने हाथ जोड़कर विनती की" हे धयानमग्न मुनिवर❗ *यधपि आप इस देह के प्रति निर्मम हो,फिर भी आपके😷 ध्यान में हम थोड़ा अंतराय पैदा कर रहें* है❗ आप अनुमति प्रदान करने🙏🏼 की कृपा करें"❗
 देह के प्रति निर्मम बने हुए महात्मा ने मूक सहमति प्रदान की।
 मुनिवर के देह से🕷🕷 निकले हुए *कीड़े व्यर्थ ही न मार जाय इसलिए वे थोड़ी देर पहले मरी हुई गाय का कलेवर* ले आये❗क्योकि सद वैद्य 👨🏽‍⚕🔎कभी भी *विपरीत📌✂ चिकित्सा* नही करते❗
       उसके बाद उन्होंने मुनि के प्रत्येक अंग  🙌🏾   में *लक्षपाक 🥃 तेल* से मालिश की, जिस तरह🌿 *क्यारी का जल बाग में फैल जाता है: उसी तरह वह तेल मुनि की नस  नस में फैल गया*❗ *उग्र व्याधि को शांत करने उग्र औषधि का प्रयोग करना पड़ता है*❗ उस तेल के उष्णवीर्य 🔥☄होने के कारण मुनि मूर्छित हो गए❗
 कल  हम जानेंगे की  जीवानंद वैद्य अपने 🍖🥃💊⚱ *अष्टांगआयुर्वेद* के ज्ञान से   कैसे  आगे  की चिकित्सा करेंगे।

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श्री आदिनाथ चरित्र-36
  लक्षपाक तेल के प्रभाव  व्याकुल हुए कीड़े🕷🕷 मुनि की देह से निकलने लगे: *जिस तरह बिल में जल डालने पर चींटिया बाहर निकलती है*❗ कीडो को निकलता देख,🕷🕷🕷 जीवानन्द ने मुनी को रत्नकम्बल से इस तरह आच्छादित कर दिया: जैसे *चंद्रमा अपने चांदनी को आच्छादित करता है*❗रत्नकम्बल में शीतलता होने से, सारे कीड़े उसमे लीन हो गए: जिस तरह *गर्मी के मौसम की  दोपहरी में तपी हुई  मछलियां 🐠🐠🐟शैवाल में लीन हो जाती है*❗ उसके बाद बिना हिलाये धीरे धीरे   उठाकर ,सारे कीड़े गाय की लाश पर डाल दिये गए❗
    *सत्पुरुष दया से काम लेते है*❗
 इस के बाद,जीवानंद👨🏽‍⚕ ने,अमृतरस- समान प्राणी को जिलाने वाले,🥛 *गोशीर्षचन्दन का लेप  कर के मुनि की देह को शांत किया*❗


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श्री आदिनाथ चरित्र-37
चिकित्सा🥃🛌👨🏽‍⚕ के तीनों चरण पूर्ण होते ही  मुनि 😷निरोग और नवीन कांतिमान हो गए और🌛🌜 उजाली हुई सोने की मूर्ति की तरह शोभा पाने लगे❗ *मुनिवर की चिकित्सा से उन् छः  मित्रो ने  विशेष पुण्य  उपार्जित 👏🏻👏🏻 किया*❗ मुनि ने सबको धर्मलाभ की आशीष दी....🖐.तत्पश्चात वे मुनि वहाँ से अन्यत्र विहार कर गए❗कारण,साधुपुरुष कभी एक स्थान पर ज्यादा नही रुकते है❗फिर *उन बुद्धिमानो ने बचे हुए ⚖⚖ रत्नकम्बल और गोशीर्षचन्दन को बेचकर💰💰💵 सोना लिया*❗ *सोने से मेरु के  🌠शिखर का जिनचैत्य 🎪बनवाया*❗एक शुभ दिन उस परमात्मा की प्रतिष्ठा🚩 करवाई❗उसके बाद वे प्रतिदिन परमात्मा की🍚🍎🌹🌹 अष्टप्रकारी पूजा करने लगे❗ द्रव्यपूजा के बाद भावपूजा करने लगे❗ *जिनपुजा व गुरु की उपासना- सेवामें* तत्पर उन लोगों ने कर्म की तरह बहुत सा *समय ⌛⌛व्यतीत किया*❗एक बार  उन छह *मित्रो के मन संसार से 😣😣विरक्ति के भाव उत्पन्न हुए*❗ तब उन्होंने गुरु महाराज के पास जाकर दीक्षा ली❗

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श्री आदिनाथ चरित्र-38
  🌿🌿 दीक्षा 😷लेकर वे नक्षत्रो  🌟💥जिस तरह  *एक राशि से दूसरी राशि पर चक्कर लगाते है ❗ उसी तरह एक  गांव 🏕से दूसरे🌲 वन में नियत समय तक  रहकर विहार  करने लगे*❗ उपवास, छठ और अट्ठम🤐 तप करते हुए *अपने चरित्र रत्न को अत्यंत निर्मल किया*❗ वे माधुकरी वृत्ति( भवरों की तरह)  से भिक्षा ग्रहण करते थे❗ अर्थात *जिस तरह  भवरें फूलो को कष्ट दिए बिना पराग ग्रहण करता* है❗ उसी तरह वे गृहस्तो से👨👨 आहार ग्रहण करते थे❗ *सुभट 🤺योद्धा जिस तरह प्रहार को सहते है उसी तरह वे भूख,प्यास,इ परिषह सहने करते थे*❗ *मोहराजा🥊🤼‍♂🤼‍♂ के चारों सेनापतियों को उन्होंने क्षमा के अस्त्रो 🥇से जीत लिया था*❗ अंत समय उन्होंने *द्रव्य  और भाव से संलेखना कर के*,  कर्मरूपी पर्वत को नाश करने में वज्रवत अनशन व्रत ग्रहण किया❗पंचपरमेष्ठी का स्मरण करते हुए अपने अपने शरीर त्याग दिए❗

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श्री आदिनाथ चरित्र-39
 🔴 दसवाँ भव🔴
      *वे छः आत्माये देह🙏🏼 त्यागकर,अच्युत नामक *बारवे 🗼देवलोक में,इंद्र के समानिक🤴 देव हुए❗ *इस प्रकार के तप का🎊🎉 सामान्य फल नही होता है❗ *बाइस सागरोपम की🏮 आयु पूर्ण कर वे वह से 🛏 चयवे अर्थात उनका *उस लोक  से दूसरे लोक के🌁 लिए पतन हुआ‼ अर्थात *जब तक मोक्ष नही⚪ होता है ,तब तक प्राणी को नित्य शांति नही मिलती❗ वह एक स्थान में सदा नही रहता❗ *एक लोक से दूसरे लोक में,दूसरे से भी तीसरे में..... इस तरह घूमा करता है❗ *एक शरीर छोड़ता है दूसरा शरीर धारण करता है*❗ *शरीर त्यागने और धारण करने का झगडा एक मात्र मोक्ष से ही मिटता है*❗
   *मोक्ष हो जाने से प्राणी को फिर  जन्म मरण नही करना पड़ता है*❗

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श्री आदिनाथ चरित्र-40
    *जम्बूदीप  पुष्कलावती🕌 विजय मे लवणसमुद्र के पास,पुंडरिकनी नाम की नगरी है❗उस नगरी के राजा वज्रसेन 🤴👸🏼कि धारिणी नाम की रानी की कुक्षी से, उनमे से पांच ने अनुक्रमसे, पुत्र रूप में जन्म लिया❗ उसमे जीवानंद  का जीव ,चौदह महास्वप्न 🎉🎉से सूचित *वज्रनाभ* नामक पुत्र हुआ❗राजपुत्र क् जीव👼🏻 *बाहु* नामक दूसरा पुत्र हुआ❗मंत्री पुत्र का जीव 👦🏻*सुबाहु* नामक तीसरा पुत्र हुआ❗श्रेष्ठि पुत्र और सारथेस का जीव *पीठ और महापीठ नाम के पुत्र हुए❗केशव का जीव 👶सुयशा नाम का अन्य राजपुत्र हुआ❗सुयशा बचपन से वज्रनाभ का आश्रय करने लगा❗कहा है *पूर्वजन्म से हुआ  संबंध   🤝🤝 हुआ स्नेह बंधुत्व में ही बंधता है❗ अर्थात जिन में पूर्वजन्म में प्रीति होती है,उनकी इस  👨‍👦‍👦👨‍👦‍👦जन्म में भी प्रीति होती है❗ *मानो छः वर्षधर पर्वत्तो ने पुरुष रूप में जन्म लिया हो*, इस तरह वे राजपुत्र और सुयशा  अनुक्रम से बढ़ने लगे❗*वे महापराक्रमी  *राजपुत्र इस तरह🐎🐎🐎 घोड़े कुदाते थे,मानो सूर्यपुत्र क्रीड़ा कर रहे हो❗ *शिला की तरह 🗻🗻बड़े बड़े पर्वतों को उठाते थे*❗ *कलाओ 🤼‍♂🤺🤽‍♂का अभ्यास कराने में उनके  कलाचार्य 👨🏻‍🏫को सिखाने को विशेष कष्ट नही उठाना पड़ता*❗ *क्योंकि महान पुरूषों में ये गुण खुद बखुद पैदा हो जाते है*❗

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श्री आदिनाथ चरित्र-41
          यौवन के प्रांगण में प्रवेश करने पर अनेक राजकन्याओं 👩‍👩‍👧‍👧👩‍👧 के साथ वज्रनाभ का🤝 पाणिग्रहण हुआ❗ लौकांतिक देवो 💁‍♂ने आकर राजा वज्रसेन से विज्ञप्ति की--  *स्वामिन ❗धर्मतीर्थ प्रवताओ*, इसके बाद राजा वज्रसेन ने वज्र जैसे *पराक्रमी वज्रनाभ को⛩ राजगद्दी पर आसीन किया*❗🌧 *मेघ जिस तरह पृथ्वी को तृप्त करता है उसी तरह उसने  सावंतसरिक 💰💰दान से पृथ्वी को तृप्त किया❗देव🤴 ,असुर 👺और 👩🏼‍✈मनुष्य के स्वामियों ने राजा वज्रसेन का 🚶🚶🚶निर्गमोउत्सव किया❗ *राजा ने नगर के बाहर उद्यान 🌳🌲में जाकर दीक्षा 😷ली*❗ उसी समय उन्हें मनपर्यव 👏🏻👏🏻ज्ञान प्राप्त हुआ❗पीछे *वह नाना प्रकार के 🤐अभिग्रह धारण कर पृथ्वी पर विहार👣 करने*  लगे❗
      इधर वज्रनाभ ने अपने सब प्रत्येक भाइ को अलग देश 🏠🏣दे दिए और *लोकपालों में जिस तरह इन्द्र शोभता है* *उसी तरह वह भी रोज सेवा में उपस्थित रहनेवाले  *चारो भाइयो से ⛱शोभा पाने लगा*❗ *अरुण जैसे सूर्य का सारथी है वैसे सुयश🌅 उसका सारथी हुआ*❗ महारथी पुरुषो को सारथी भी अपने समान चाहिए❗

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श्री आदिनाथ चरित्र-42
     समय का प्रहाव  आगे बढ़ने लगा❗ *वज्रनाभ ने सारे पुष्कलावती  विजय को जीत लिया*❗वज्रनाभ ने छः खंडों पर ⛳विजय प्राप्त की और चक्रवर्ती बने❗
🍂जैसे *कमलिनी जल के प्रमाण से ऊंची होती है वैसे ही पुण्य के अनुसार संपत्ति मिलती है*🍂
    *सुगंध से आकर्षित होकर भंवरे आते है* वैसे ही उस
के *प्रबल पुण्योदय से आकर्षित नव निधियां भी आकर उसकी सेवा करने लगी*❗भोगो का 💃🏽🥂🎺🎠उपभोग करनेवाले *उस चक्रवर्ती कि धर्मबुद्धि भी अधिकाधिक बढ़ने लगी मानो वह बढ़ती हुई आयु से स्पर्धा कर रही हो*❗ *अधिक 🌧जल से जैसे लताये 🌿बढ़ती है वैसे ही संसार के *वैराग्य की संपत्ति से उसकी धर्मबुद्धि भी पुष्ट होने लगी*❗
 एक शुभदिन *समस्त  घाती कर्मो का क्षय  वज्रसेन भगवन को केवलज्ञान🌅 उत्पन्न हुआ*❗ देवताओ ने आकर समवसरण की रचना की❗चतुर्विध *धर्म की स्थापना की परमात्मा ने पैतीस  गुणो से युक्त *धर्मदेशना प्रदान की,जिसे सुनकर अनेक पुण्यात्माओं ने *सर्वविरती, देशविरती* धर्म स्वीकार किया❗

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📔📔श्री आदिनाथ चरित्र-43
   एक बार भगवान  वज्रसेन विहार करते हुए पुंडरिकनी🕍 आये❗वहाँ उनका समवसरण हुआ❗ *उसी समय वज्रनाभ की आयुध शाला🥊🥅 में सूर्यमंडल का तिरस्कार करनेवाले ⚙ चक्ररत्न ने प्रवेश किया*❗ दूसरे तेरह रत्न भी उसको तत्काल मिल गए❗
*सुगंध से आकर्षित  होकर जैसे भंवरे आते है* वैसे ही *प्रबल पुण्योदय* से आकर्षित
 *नवनिधियाँ* भी आकर उसकी सेवा करने लगी❗
  *प्रभु का 👣आगमन सुनकर वज्रनाभ चक्रवर्ती बंधुवर्ग👨‍👦🤴👨‍👦 सहित राजहंस की तरह, सानंद प्रभु के  समवसरण में* आया❗ तीन प्रदीक्षणा देकर  , जगत्पति 👏🏻🙏🏼को वंदना कर   छोटे भाई की तरह इन्द्र के पीछे बैठा ❗फिर *भव्यजीवो की,मनरूपी सीप में बोधरूपी मोती को उत्पन्न करने वाली 🌨स्वाति नक्षत्र की वर्षा के समान* प्रभु की *अमृत देशना 🗣🗣को वह श्रवण करने* लगा❗ मृग जैसे गाना सुनकर हर्षित होता है उसी तरह देशना सुन  *हर्षपूर्वक🤔🤔🤔😌😌 विचार करने* लगा......

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श्री आदिनाथ चारित्र-44
     🗣🗣 देशना सुनकर वज्रनाभ चक्रवर्ती  मन मे🤔🤔😴 विचारने लगे" यह  अपार🎡 *संसार समुद्र की तरह दुष्टर है.... इसका पार 🎢करना कठिन है❗इसको पार लगानेवाले लोकनाथ 🙏🏼मेरे पिता ही है❗ यह अंधरे की तरह पुरुषो को अत्यंत *अंधा🗿🗿 करनेवाले मोह को सब तरफ से  भेदने वाले जिनेश्वर है❗ *चिरकाल से संचित कर्मराशी असाध्य👽👽 व्याधि स्वरूपा है❗ उसकी चिकित्सा🔍🔍 करनेवाले  पिता ही है❗*मेघ की आवाज सुनकर *विदुरपर्वत की  भूमि रत्नों🌨 से अंकुरित होती है* वैसे ही  मेरी स्थिति है❗ करुणा रूपी *अमृत के सागर रूप ये प्रभु ही दुःख का नाश करने वाले है और अद्वितीय सुख को उत्पन्न करने वाले है❗ अहो❗😣😒 ऐसे स्वामी  के होते  हुए भी   मैंने, *मोह से  प्रमादी* बने हुए लोगो के मुखिया ने, अपने *आत्मा को बहुत समय तक धर्म से वंचित रखा*❗

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📔श्री आदिनाथ चरित्र📔
                45
🌿वज्रनाभ चक्रवर्ती  ने *वैराग्य 🙏🏼भावना* से   विनती की" हे नाथ❗ *जिस तरह घास🌱🌱 खेत को खराब 🌾🌾करती है* उसी तरह *अर्थसाधन के  प्रतिपादन करनेवाले नीति  📓📓शास्त्र* ने मेरी  😇😇  *मति को बहुत समय तक भ्रष्ट रखा* ❗ *विषयो में लोलुप👅👃👁 होकर मैंने(कर्म) अनेक प्रकार के रूप धरकर  अपनी आत्मा को नट की तरह चिरकाल🎡 तक नचाया है*❗ यह *मेरा साम्राज्य अर्थ और काम का कारण है❗ इसमें धर्म का जो चिंतन होता है वह भी पाप का अनुबन्ध कराने वाला होता है*❗ आप जैसे पिता का पुत्र होकर ,भी मैं  यदि इस *संसार 💨💨समुद्र में भटकूँ तो मुझमे और सामान्य मनुष्यो में क्या भिन्नता होगी*⁉ इसलिए जैसे  आपके दिए हुए *साम्राज्य⛩ का पालन किया*, ठीक उसी तरह अब मैं *संयम- साम्राज्य का पालन😷😷 करूँगा*:इसलिए आप मुझे🙏🏼 संयम प्रदान करे

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📔श्री आदिनाथ चारित्र📔46..
             
           🌼🌼अपने *वंशरूपी आकाश में सूरज🌞🌞 के समान चक्रवर्ती* वज्रनाभ ने *निज पुत्र को राज्य ⛩💺💺सौंपकर* भगवान के पास *दीक्षा 😷ग्रहण की*❗ पिता और बड़े *भाई ने जिस मार्ग का👣👣 अनुसरण किया उस व्रत 👏🏻👏🏻को   बाहु आदि सब भाइयो ने 🙏🏼ग्रहण किया*❗ कारण यही उनकी कुलरीति थी❗ *सुयशा 🏇🏻🏇🏻सारथी* ने भी धर्म के सारथी ऐसे *भगवान* से  अपने *स्वामी के साथ दीक्षा* ली❗
☘☘ कारण, *सेवक  स्वामी  की  चाल पर ही🏇🏻🚴🏼‍♀ चलने वाले होते है*❗ ☘☘
  वज्रनाभ मुनि थोड़े समय मे ही *शास्त्र 📚📖📚समुद्र के पारगामी हो गए❗ इससे मानो वे जंगम द्वादशंगी* 📔📔हो ऐसे मालूम पड़ते थे❗ *बाहु वैगेरे मुनि* भी *ग्यारह* 📝📝अंग के ज्ञाता हुए❗
 कहा है::

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📔श्री आदिनाथ चारित्र📔47...   
 कहा है::
☘☘☘☘ *क्षयोपशम से विचित्रता पाई हुई  गुणसम्पत्ति भी विचित्र तरह की होती है*❗ ☘☘☘☘
यानी  जैसा  *क्षयोपशम👨🏼‍🔬✍🏿✍🏿 होता है  वैसे ही गुण मिलते है*❗☘☘
         यद्यपि   वे *सन्तोषरूपी धन* के धनी  थे  तो  भी  तिर्थंकर की  वाणी 🗣🗣रूपी *अमृत का पान* 👂🏻👂🏻करने  से वे  थकते  नही थे❗ तथा तिर्थंकर की *सेवा और दुष्कर तप* करने  में  असंतुष्ट  रहते  थे  ❗ 👏🏻👏🏻मासोपवास 🤐💳तप  में भी  वह अपनी *तप भावना को और प्रबल करते*❗👏🏻
         भगवान  *वज्रसेन*
स्वामी  उत्तम  शुक्ल घ्यान 🌅 *निर्वाण पद* को प्राप्त हुए❗ देवो ने 🤴👰⏺आकर *महोत्सव*🎊🎉🎊 किया❗

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📔श्री आदिनाथ  चारित्र📔48
           🌺🌺 वज्रसेन स्वामी  के निर्वाण🔆🔆 के  बाद धर्म के भाई के समान *वज्रनाभ मुनि* अपने साथ *व्रतधारण  😷😷करने वाले मुनियो के साथ पृथ्वी पर विहार 👣👣करने लगे*❗   
        अंतरात्मा से जैसे *पांच 🤝👂🏻इंद्रिया सनाथ  होती  है*  वैसे  ही वज्रनाभ  स्वामी  से  *बाहु  वैगरह  चारो भाई  तथा सारथी, ये पांचो मुनि सनाथ हुए*❗
🌿  *चंद्रमा की कांति🌒🌓🌙 से जिस  तरह  औषधियां 🎍🎄प्रगट* होती है   उसी तरह  योग के प्रभाव से  1   *खेलादी  💥☄लब्धि*  कोटिवेध  रास से जिस  तरह  *ताम्बा  सोना हो* जाता है ❗उसी तरह  *कोढ़ी 💩🤧के शरीर पर थोड़ा  सा  थूक  मलने पर शरीर सोने 👨सा हो जाता है*❗
      2 *जल्लोसहि लब्धि*
  इससे👁👂🏻👃 कान, आंख और शरीर का मैल का नाश , *कस्तूरी समान शरीर सुगंधित होता है*❗
3 *आमोसहि लब्धी*  अमृत के🚿 स्नान से जैसे रोग जाते है वैसे ही *शरीर के  💈स्पर्श  से रोग चले जाते है*❗:

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📔श्री आदिनाथ  चारित्र📔

📔श्री आदिनाथ  चारित्र📔49
           🔴वज्रनाभ मुनि के तपोबल से प्राप्त लब्धिया🔴
4    *सव्वोसहि लब्धी*
             बारिश का🌨⛈ जल,नदी  का  💦💦जल, इस लब्धी वाले के स्पर्श से सभी तरह के रोग का नाश होता है❗अगर विष मिला हुआ अन्न 🍵🍵पात्र में आय तो भी वह निर्विष हो☕ जाता है❗ स्वाति  नक्षत्र  के  💧जल  से  सिप  मोती  बन  जाती है वैसे  ही उनके  नख ,केश💅🏼 आदि  उनके शरीर से होने वाली सभी चीजें रामबाण दवाइयां💊💊 बन जाती है
 5  *अणुत्व शक्ति*
     इच्छा करने मात्र से शरीर  को  छोटा  👶👨🖕बड़ा  रुप  बनाने की धागे की तरह शरीर को सुई निकालने की  शक्ति ❗
6   महत्व शक्ति:  जिसमें शरीर को इतना बड़ा कर सकते थे कि 🗼🗼मेरुपर्वत उनके घुटने तक आवे.🗽
 7    लघुत्व शक्ति : इसमें🎈🎈 शरीर हवा से  भी हल्का हो जाता है❗

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   *वज्रनाभ मुनि को प्राप्त  लब्धियो का वर्णन*➡
   8 गुरुत्व शक्ति:  इन्द्रादिक *देव भी जिसे सह नही सकते ऐसा ,वज्र से भारी शरीर* करने की शक्ति❗
  9 *प्राप्ति शक्ति*: पृथ्वी पर  रहते  हुए   भी  पेड के पत्तो की तरह *मेरु के🗼 अग्रभाग और ग्रहदिक को🌞⚡💫🌙 स्पर्श करने की शक्ति*❗
 10   *प्राकाम्य शक्ति*: जमीन की तरह पानी मे💦 चलने 🚶🚶की *जल की तरह जमीन पर भी  डुबकी* लगाने की शक्ति
 11 एषत्व शक्ति: चक्रवर्ती और *इ🤴न्द्र की तरह  रिद्धि 💍🚀🗽का विस्तार करने की शक्ति*❗
12   *वशित्व शक्ति*;  क्रूर से 🦁🐍क्रूर  *प्राणियो को वश  में  करने  की  शक्ति*❗
  13 *अप्रतिघाती शक्ति*: *छिद्र की तरह पर्वत के बीच में से बेरोक निकल  जाने* की शक्ति❗
14  *अप्रतिहत अन्तरध्यान* शक्ति: *पवन की तरह अदृश्य* रूप धारण  करने  की  शक्ति❗
15  *कामरूप  लब्धी*: एक  ही  समय *अनेक👱🏽👲👴🏻 प्रकार के रूपों* से लोक को पूर्ण करने की शक्ति❗
16   बीज बुद्धि:  एक अर्थरूपी  बीज से  *अनेक अर्थरूपी*  बीजो  को जान सके ऐसी शक्ति❗(अर्थात- जैसे अच्छी जोति हुई जमीन में बीज बोता है और उसके अनेक बिज होते है,इसी तरह *ज्ञानावरणीय आदि कर्मो के क्षयोपशम की अधिकता से एक अर्थ रूपी बीज को जानने- सुनने से अनेक अर्थ* को  जानते है, उसे बीज बुद्धि कहते है❗
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 *वज्रनाभ मुनि को प्राप्त लब्धियो  का वर्णन* ➡
17  *कोष्टलब्धी*: इससे कोठे 🍙 में रखे हुए धान्य की तरह पहले  *सुने  हुए अर्थ, स्मरण  🤦‍♂किये वैगैर भी यथास्थित रहते* है❗
18  *पदानुसारिणी लब्धी*;  इससे आदि,अंत या  मध्य  का *एक पद सुनने से सारे ग्रंथ का📚 बोध हो जाता है*❗
19  *मनोबली लब्धी*:  इससे  एक वस्तु का उद्धार🗞📖 करके याने  *एक बात जानकर अन्तर्मुहूर्त में सारे श्रुतसमुद्र का अवगाहन* किया  जा सकता है❗
20  *वागबली  लब्धी*: इस में   *एक मुहूर्त में  मूलाक्षरों गिनने की लीला से सारे शास्त्र  पाठ* का किया जा सकता है❗
 21   *काय लब्धी*:  इससे   बहुत समय *कायोत्सर्ग करके प्रतिमा की तरह  स्थिर रहने पर भी थकान  नही  होती  है*❗
                  23        *अमृत- क्षीरमध्वज्याश्रवी  लब्धी*: इससे पात्र में पड़े हुए खराब   🍛अन्न में भी अमृत, षिर, 🍷🥃🍺मधु और  घी  वैगरे  का   रस आता  है, दुख  से पीड़ित लोगों को *इस  लब्धी वाले कि वाणी से अमृत, मधु , और घी की जैसी शांति   देनेवाली  होती  है*❗
22 *अक्षिण महानसी लब्धी*;
           इससे पात्र मे पडे हुए अन्न  🍱से कितने ही दान देने पर भी *वह अन्न कायम रहता है, समाप्त नही होता*❗

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   *वज्रनाभ  मुनि के पास रही हुई लब्धियो  का   वर्णन*➡
 23 *अक्षिण महालय लब्धी*:
 इससे   तीर्थंकरों की  पर्षदा की तरह  *कम जगह  में भी असंख्य  प्राणियो को बिठाया जा सकता* है❗
24   *सभिन्नश्रोत लब्धी*: इससे   *एक इन्द्रियो  👃से दूसरी 👂🏻👂🏻इन्द्रिय  का  ज्ञान  प्राप्त हो सकता है*❗           चक्रवती की फौज का कोलाहल   हो  रहा हो, *शंख 🕹🔦🥁🎷,ढोल, पणव आदि एकसाथ बज रहे हो*,तो भी इस लब्धिवाला *सभी की आवाजों को अलग अलग पहचान  सकता है*❗
 25  *जंघा चारण लब्धी*: इस  लब्धिवाला एक 👣कदम में *जम्बूदीप* से  🎪 *रुचकद्वीप* 🏜पहुँच सकता है, और लौटते समय एक कदम 🎿में *नन्दीश्वरद्वीप और दूसरे कदम में🎿🗼 जम्बूदीप  यानी जहाँ से चला है वही पहुँच सकता है*❗और  अगर ऊपर की तरफ जाना हो तो *एक कदम में मेरुपर्वत 🗻🏝स्थित पांडुक उद्यान में जा सकता है* ,और लौटते हुए एक  कदम 🌳🌳*नंदनवन में रख दूसरे🐾🐾
 कदम में *जहाँ से चला हो वही* पहुँच जाता है❗
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*वज्रनाभ  मुनि  के पास प्राप्त लब्धिया* ➡
 26   *विद्याचारण लब्धी*: इस  लब्धी  वाला एक कदम में *मानुषोत्तर⛰ पर्वत पर, दूसरा नन्दीश्वरद्वीप 🎪और तीसरे क़दम* में रवाना होने की जगह पहुँच सकता है❗उपर जाना हो तो🚶🚶   *जंघाचारण  से      विपरीत गमनागमन( जाना आना) कर सकता है*❗
        ये   सारी  लब्धिया वज्रनाभ  आदि  मुनियो के पास थी❗इनके अलावा *आसिविष     🗣🎓           लब्धी  और  हानीलाभः पहुचाने  वाली कई दूसरी लब्धिया  भी उनको मिली थी❗ मगर *इन लब्धी का उपयोग वे कभी नही करते थे*❗सच है----
    🌿 *मोक्ष जाने की इच्छा  रखनेवाले  मिली हुई वस्तुओ की इच्छा  नही  रखते  है*❗🌿

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*वज्रनाभ  मुनि  के पास प्राप्त लब्धिया* ➡
 26   *विद्याचारण लब्धी*: इस  लब्धी  वाला एक कदम में *मानुषोत्तर⛰ पर्वत पर, दूसरा नन्दीश्वरद्वीप 🎪और तीसरे क़दम* में रवाना होने की जगह पहुँच सकता है❗उपर जाना हो तो🚶🚶   *जंघाचारण  से      विपरीत गमनागमन( जाना आना) कर सकता है*❗
        ये   सारी  लब्धिया वज्रनाभ  आदि  मुनियो के पास थी❗इनके अलावा *आसिविष     🗣🎓           लब्धी  और  हानीलाभः पहुचाने  वाली कई दूसरी लब्धिया  भी उनको मिली थी❗ मगर *इन लब्धी का उपयोग वे कभी नही करते थे*❗सच है----
    🌿 *मोक्ष जाने की इच्छा  रखनेवाले  मिली हुई वस्तुओ की इच्छा  नही  रखते  है*❗🌿

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*विस स्थानक   पदों का  वर्णन*   ➡
9   *दर्शनपद*:शंका आदि *दोषों से रहित,स्थिरता आदि  गुणों  से भूषित और *क्षमा आदि  लक्षण  वाला सम्यग्दर्शन*  होना इस पद की आराधना है❗
10: *विनयपद्*:   *ज्ञान,दर्शन ,चरित्र और उपचार* ऐसे चार तरह के- कर्मो दूर करने वालों का *विनय करना* इस पद क आराधना है❗
11  *चारित्र पद*: *इच्छा,मिथ्यात,करुणादिक दस तरह की समाचारी* के *योग में और आवश्यक में अत्तिचार रहित* होकर यत्न करना इस पद की आराधना है❗
12  *ब्रह्चार्य पद*  : *अहिंसा आदि मूलगुणों में और समिति* आदि *उत्तरगुणो में अत्तिचार रहित प्रवुति करना* इस पद की आराधना है❗
13   *समाधिपद*: पल पल और *क्षण क्षण प्रमाद छोड़कर शुभध्यान में रहना* इस पद की आराधना है❗
14  *तप पद* : *मन और शरीर को पीड़ा न हो, इस तरह यथाशक्ति तप करना*❗
       15 *दानपद*: *मन, वचन काया की शुद्धिपूर्वक तपस्वियोंको अन्न आदि का दान* इस आराधना का लक्ष है❗
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*विस स्थानक   पदों का  वर्णन*   ➡
9   *दर्शनपद*:शंका आदि *दोषों से रहित,स्थिरता आदि  गुणों  से  भूषित और *क्षमा आदि  लक्षण  वाला सम्यग्दर्शन*  होना इस पद की आराधना है❗
10: *विनयपद्*:   *ज्ञान,दर्शन ,चरित्र और उपचार* ऐसे चार तरह के- कर्मो दूर करने वालों का *विनय करना* इस पद क आराधना है❗
11  *चारित्र पद*: *इच्छा,मिथ्यात,करुणादिक दस तरह की समाचारी* के *योग में और आवश्यक में अत्तिचार रहित* होकर यत्न करना इस पद की आराधना है❗
12  *ब्रह्चार्य पद*  : *अहिंसा आदि मूलगुणों में और समिति* आदि *उत्तरगुणो में अत्तिचार रहित प्रवुति करना* इस पद की आराधना है❗
13   *समाधिपद*: पल पल और *क्षण क्षण प्रमाद छोड़कर शुभध्यान में रहना* इस पद की आराधना है❗
14  *तप पद* : *मन और शरीर को पीड़ा न हो, इस तरह यथाशक्ति तप करना*❗
       15 *दानपद*: *मन, वचन काया की शुद्धिपूर्वक तपस्वियोंको अन्न आदि का दान* इस आराधना का लक्ष है❗

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 *विसस्थानक तप पदों का वर्णन*➡
16  *वैयावच्च पद*: *आचार्य आदि दस( जिन, सूरी, वाचक,मुनि, बाल मुनि, स्थविर, रोगी मुनि, तपस्वी,चैत्य और श्रमण संघ) ये दस* की🍱🥃🛋 *अन्न ,जल,आसन* वैगेरे से वैयावच्च करना❗
17  *संयमपद*:  *चतुर्विध संघ के सभी विघ्नों को दूर करके मन मे समाधि उत्पन्न करना* ❗
18  *अभिनव ज्ञान पद*: अपूर्व ऐसे *सूत्र और अर्थ इन दोनों को प्रयत्न पूर्वक ग्रहण* करना❗
19  *श्रुतपद*:  *श्रद्धा से, प्रकाशन से और  *अवर्णवाद-  निंदा  को  मिटाकर  के 📚  श्रुतज्ञान  की  भक्ति  करना*❗
20  *तीर्थपद*:  *विद्या, निमित,  कविता,वाद और धर्मकथा आदि से शाशन की प्रभावना करना*❗
 इस बीस स्थानक में से एक एक पद की आराधना भी *तिर्थंकर नामकर्म* के बंध का कारण होती है,परंतु वज्रनाभ मुनि ने इन बीसों पद की आराधना करके *तिर्थंकर नाम कर्म का बंध* किया था❗
   *बाहु मुनि ने साधुओ की सेवा करके चक्रवर्ती🤴🍻🎠 🏺🛋 के     भोग- फलो   को  देने    वाला  कर्म  बांधा*❗
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🌷श्री आदिनाथ चरित्र🌷
              *58*
       🌿🌿  तपस्वी मुनियो की सेवा 💆🏼‍♂💆🏼‍♂करने वाले *बाहु और सुबाहू मुनि ने लोकोत्तर बाहुबल👊🏻💪🏿 उर्पाजन किया*❗
    तब वज्रनाभ  तब वज्रनाभ मुनि ने कहा:" अहो❗ *साधुओं की 😷😷😷 वैयावच्च और सेवा करने वाले ये बाहु और सुबाहू मुनि 👏🏻👏🏻👏🏻 धन्य है*❗"
 तब प्रशंसा सुन कर पीठ और महापीठ मुनियो ने सोचा की *जो  लोंगोका उपकार  करते  है  उन्ही  की तारीफ 👌🏻👌🏻👌🏻 होती है*❗हम  *दोनों आगमो का📕📖📚  अध्ययन और ध्यान*  करने में।  लगे रहे, *इसीलिए हमारी तारीफ़ कौन करेगा❓अथवा सभी लोग अपना काम करने वालो को ही मानते है*❗
    *इस तरह की ईर्ष्या🔥 भावना से वे दोनों  चलित हुए*❗

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                *59*
        *पीठ  और महापीठ मुनियो ने माया मिथ्यात्व इर्ष्या युक्त भाव से  बांधे हुए दुष्कृत्य💩  को आलोचना न करने से😴😴 , उन्होंने स्त्री नाम कर्म का🙍🏻🙍🏻 कर्म उपार्जन किया*❗
   *उन छः महर्षियो ने *अत्तिचार रहित और तलवार       🗡🗡की धार के समान प्रवज्या* *को चौदह लाख पूर्व⌛⏳ तक पालन किया❗पीछे वह धीर गंभीर मुनि दोनों😷😷 प्रकार की *संलेखना-   पूर्वक      पादोपगमन   अनशन  🤐🤐🤐  अंगीकार  कर*  *उस   देह  का  त्याग  किया*❗

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              *60*
   * *सागरचंद्र का वृतांत*
  जम्बूदीप के पश्चिम🏰 महाविदेह में,  *शत्रुओं से जो कभी पराजित नही हुई* ऐसी🏢  अपराजिता   नामक  नगरी में, *अपने बल💪🏿🤼‍♂ पराक्रम से जगत को जीतने वाला और लक्ष्मी💰💰 में  ईशान इन्द्र     🤴🤴के समान*  *ईशानचंद्र नामक👑 राजा था*❗
  उसी नगरी में *चंदनदास👵 नामक सेठ* रहता था❗ उसके पास बहुत धन ,सम्पति 💵💸थी❗ वह धर्मात्मा पुरुषों में मुख्य और *दुनिया को सुख पहुचाने में चंदन के समान था*❗
 उसके *सागरचंद्र* 👲नामक पुत्र था❗ उससे दुनिया की🏞 आंखे ठंडी होती थी❗ *समुद्र 🗾जैसे चंद्रमा🌚 को आनंदित करता है*, वैसे   ही   वह   पिता  को आनंदित   ☺करता था❗ *स्वभाव से ही वह सरल, धार्मिक।  और विवेकी*  था❗ इससे  सारे नगर  में  *महिमामंडित* हो गया था❗
 कल आगे का भाग

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               *61*
  एक दिन वह  🕍राजदरबार में गया❗ वहाँ राजा ⛩सिंहासन पर बैठा था❗ उसकी सेवा में 👳👳🏽‍♀👴🏻👱🏽चारो तरफ सामंत बैठे थे❗ *राजा ने सागरचंद्र को उसके पिता के  समान आसन, 🛋🍭 ताम्बूलदान( पान बीड़ा) वैगेरे से सत्कार किया* और बड़ा  स्नेह  😘😘जतलाया❗
            उस समय कोई मंगलपाठक आया और📻📻 *शंख की ध्वनि को भी दबानेवाली ऊंची आवाज में कहने लगा," हे राजा, आज आपके उद्यान मे उद्यान पालिका--- मालिन- की तरह फूलो को सजानेवाली वसंतलक्ष्मी का आगमन हुआ है*❗ इसलिए खिले हुए सुगंध से दिशाओ के मुख को सुगंधित करने वाले बगीचे को,  आप इसी तरह सुशोभित कीजिये जिस तरह  *इन्द्र नंदनवन को  सुशोभित करता है*" ,मंगलपाठक की बात सुनकर राजा ने द्वारपाल को👨‍🚒  हुक्म दिया--- अपने नगर में घोषणा 🥁🥁करदो की, *कल सवेरे सब लोग राजबाग में एकत्रित हो" इसके बाद सागरचंद्र को आज्ञा दी आप भी आईये* गा❗

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             *62* 
           राजा से आज्ञा🙏🏼 पाकर   सागरचंद्र   खुशी 😌  खुशी  अपने  घर   गया❗👱🏽अपने मित्र अशोकदत्त को यह बात बताई❗
  दूसरे दिन *राजा अपने👨‍👩‍👧‍👦 परिवार सहित*  बाग 🎄🎄में गया❗नगर के 👫👫लोग भी बाग मे आ गए❗कहते है ...
🌱🌱
*प्रजा सदा हि राजा का अनुकरण करती है*❗        सागरचंद्र   भी  अपने *मित्र अशोकदत्त  के साथ   उद्यान  में जिस तरह मलय✨🌈 पवन के साथ   वसंत ऋतुआती है❗ वहाँ कामदेव 🤴🤴के शाशन में सभी लोग फूल 🥀🌺चुनकर 💃🏽💃🏽🕺गीत, नाच वैगेरे क्रीड़ा करने लगे❗पद पद पर गायन और वाद्य🎷🥁🎻 कि ध्वनी इस  तरह  हो  रही  थी  मानो  वह  दूसरे  *इन्द्रियो के विषय को जीतने*
 के लिए निकली  है*  *❗ नगर के लोग *इस बाग की तुलना कामदेव के बाग से करने लगे*❗

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                *63*
     राजोउद्यान में उसी  समय किसी वृक्ष की  गुफा में से "रक्षा करो,रक्षा करो " की आवाज़ किसी स्त्री की कंठ  अकस्मात  से  निकली❗ उस आवाज़ के कान में पड़ते ही,उस से आकर्षित हुए समान सागरचंद्र " ये क्या है"❗ कहता हुआ संभ्रम के साथ वहाँ दौड़ गया❗ वहाँ जाकर उसने देखा कि, की जिस तरह व्याघ्र हिरनी को पकड़ लेता है: उसी तरह बंदिवनो ने पूर्णभद्र सेठ की पुत्री प्रियदर्शना को बदमाशोने पकड़ रखा है

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                *64*
      सागरचंद्र ने 👨‍💼 राजोउद्यान *में प्रियदर्शना को बदमाशो 🤑😎😎से इस तरह छुड़ाया मानो लकड़हारे के पास से आम्रलता  🍃🍃छुड़ाई जाती है*❗ उस समय  *प्रियदर्शना  🙍🏻 सागरचंद्र की और आकर्षित हुई*❗उसी समय उस के मन 😘💏मे यह विचार आया" अहो❗ यह  *परोपकारी सत्पुरुष कौन है*❓यह तो अच्छा ही हुआ  मेरी👍🏻 सदभाग्य रूपी संपत्ति  के कारण यह उपकारी यहाँ आया है❗ वह पुनः पुनः सागरचंद्र को निहारने😌😌 लगी❗ वह मन मे विचारने लगी"  *कामदेव 🤴🤴 के रूप को तिरस्कार करने वाला यह     पुरुष ही   मेरा पति* हो❗"
    इस तरह  विचारती वह अपने घर की 🚘🚘ओर रवाना हुई❗
          *सागरचंद्र भी,  मूर्ति स्थापित की गई हो इस तरह प्रियदर्शना 🙍🏻को अपने  हृदय - मंदिर में रखकर मित्र👬 अशोकदत्त के साथ  घर  गया*❗
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             *महावीर के उपदेश ग्रुप*

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              *65*
          सागरचंद्र के *राजवाटिका🌼🌺☘ का पराक्रम 🤺उसके पिता के कानों में पड़ा क्योकि ऐसी बाते 🤗🤗किस तरह छिप सकती है❗ चंदनदास ने मन में विचार किया," इस पुत्र का💑 प्रियदर्शना पर प्रेम हुआ, यह उचित ही है ❗कारण.....  🍀🍀🍀 *कमलिनी  की मित्रता 🤝  राजहंस  से  ही होती  है*❗🍀🍀🍀🎍
 परंतु उसने जो 💪🏿वीरता प्रकाशित की ,यह अनुचित हुआ❗कारण *पराक्रमी बनियो को  अपना पराक्रम प्रकट नही  👊🏻करना  चाइए*❗
 फिर.... सागर का स्वभाव भी सरल है❗ *उसकी मित्रता 💩मायावी और 👿धूर्त  अशोकदत्त  से हुई है ये   अयोग्य  बात  है*❗
 *उसका   साथ इस तरह बुरा है ,*जैसे 🍌🍌*केले के साथ *बेर  🍈🍈का संग अहितकर*  होता है *❗" इस  तरह  विचार  करता हुआ  बहुत   देर तक 🤔🤔 सोचने के बाद उसने *सागरचंद्र को अपने कक्ष🏛🏛 में बुलाया*❗

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             *महावीर के उपदेश ग्रुप*

                  💁‍♂💁 *भगवान रुषभदेवजी/आदिनाथजी जीवन चरित्र* 🙋🙋‍♂

📚श्रीआदिनाथ चरित्र📚
             *66*
         सागरचंद्र 👦🏻को जिस तरह *उत्तम  🐘🐘हाथी को उसका महावत शिक्षा  👈देता है* वैसे ही  देना शुरू किया❗
   " हे  पुत्र❗ सब  📚📚शास्त्रों का  अभ्यास करने से तुम व्यवहार- को अच्छी तरह समझते  हो, तो भी मैं तुमसे कुछ कहता हूँ❗ *हम बनिये( वणिक) कला-- कौशल से निर्वाह करने  वाले है, इसलिए हमें सौम्य  😌स्वभाव व मनोहर वेश🤵 से रहना चाहिए❗ इस तरह रहने से निंदा नही  होती:: इसलिए इस जवानी में 💪🏿💪🏿भी तुमको गूढ़  🏇🏻🏇🏻 पराक्रमी( वीरता  को     गुप्त      रखने  वाला)  होना  चाहिये*❗वणिक ,सामान्य अर्थ के लिए भी आशंका वृत्ति वाले कहलाते है❗
       *स्त्रियों का👰 शरीर जैसे ढका हुआ ही अच्छा लगता है वैसे ही, हमारी 💰💸संपत्ति, विषयक्रीड़ा 💏और   दान ये  सभी  गुप्त  ही  अच्छे लगते है*❗

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             *महावीर के उपदेश ग्रुप*

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📚श्रीआदिनाथ चरित्र📚
                *67*
         चंदनदास  ने आगे समजाते।  हुए सागरचंद्र को कहा:: *जैसे ऊंट 🐪के पैरों में बंधा हुआ सोने का कंकण नही शोभता* वैसे ही ही अपनी जाति के लिए 🚷 *अयोग्य काम* करना हमे शोभा नही देता❗
   इसलिए    हे❗ प्रिय   पुत्र❗ *अपने कुल परंपरा से आये हुए योग्य व्यवहार  करनेवाले   बनो*❗
      जो अपने   कुल में       होता    आया है वही तुम करो❗ *तुम्हें धन 💰💰की तरह गुण🗣 को भी गुप्त  रखना चाहिए*❗जो *स्वभाव से कपटी 🤓🤡और दुर्जन है, उनकी संगति  त्याग देना चाहिये*❗कारण::::
        🍂🍂🍂 *दुर्जन की संगति पागल कुत्ते के जहर की  तरह  समय पाकर विकृत होती है-- नुकसान पहुँचाती है*❗🍂🍂🍂🍂
        हे वत्स❗तेरा *मित्र अशोकदत्त* अधिक परिचय से तुझे इसी तरह दूषित करेगा *जिस तरह कोढ़👽 का रोग ,फैलने से  शरीर    को  दूषित  करता  है*❗वह मायावी वेश्या👯 की तरह *मन मे जुदा ,वचनमे जुदा  और कार्य मे जुदा होता है*❗
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             *महावीर के उपदेश ग्रुप*

                  💁‍♂💁 *भगवान रुषभदेवजी/आदिनाथजी जीवन चरित्र* 🙋🙋‍♂

📚श्रीआदिनाथ चरित्र📚
           *68*
    चंदनदास सेठ प्रेमपूर्वक हितोपदेश   📖  😌  देकर चुप रहे,तब सागरचंद्र मन मे सोचने लगा,"पिताजी ऐसा उपदेश कर रहे है इसका अर्थ उन्हें 👩प्रियदर्शना संबंधी बात इनको मालूम 🗣हो गयी है❗ ऐसे उपदेश देने वाले लोग भाग्यशालियों को👏🏻👏🏻 मिलते है❗ ठीक है, इनकी इच्छा पूरी हो❗" थोड़ी देर विचार कर बोला:" पिताजी आप जो आदेश🙏🏼 करे, जो हुक्म दे वही मुझे करना चाहिए: क्योंकि मैं आप का पुत्र हूँ❗ जिस काम के करने में गुरुजनों की आज्ञा का 🚫उल्लंघन हो, उस काम के करने से अलग होना ही भला;लेकिन अनेक बार दैवयोग से ऐसे कार्य  आ पड़ते है, जिनमे विचार 😇😇करने की थोड़ी गुंजाइश भी नही रहती है,विचार के लिए समय ⏳ही नही होता❗
🍂🍂 जिस तरह किसी  किसी मूर्ख 🔔के पांव पवित्र करने में पर्व- वेला🔕 निकल जाती है: उसी तरह मनुष्य विचारते रहता है और समय निकल जाने से हानि होती है❗🍂🍂🍂🍂
   ऐसे प्राण संकट  काल में रहने पर भी, जान पर  बन आने पर भी आपको शर्मिंदा नही करूँगा❗
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📚श्रीआदिनाथ चरित्र📚
                 *69*
         
        सागरचंद्र 👨अपने पिता को  कहते है कि   आप     🙏🏼  मुझ   पर   विश्वास   रखिये की मैं ऐसा कोई कार्य नही करूँगा, *जिससे   आपको   लज्जा से   सिर  🙇🏼🤦‍♂    नीचा करना पड़े*❗
     आगे कहते है," आपने अशोकदत्त 👦🏻के बारे में जो   कहा,मगर *मैं   न  तो उन दोषों  से दूषित 🖕 हूँ और ना ही उसके 👌🏻गुणों से भूषित हूँ*❗                          सदा    का   सहवास,   रात    दिन 🤝*एकसाथ रहना,,     बार     बार    मिलना,    🤼‍♂खेलना, *समान 💰💰जाती, समान 📔📓विद्या, समान  👥शील, समान वय 👶👶🏽और परोक्ष में भी उपकारिता ,सुख दुःख एकसाथ हिस्सा लेना* आदि कारणों  से मेरी मित्रता 🤷🏽‍♂👰 हुई है❗ *मुझे उसमे कोई कपट 🤓🤓😎नही दिखता है*❗ उसके सम्बंध में आपको   किसीने 🗣🗣🗣 अवश्य ही  कोई  *झूठी* बातें कही है"❗

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📚श्री आदिनाथ चरित्र📚
            *70*
      सागरचंद्र अपने पिता को पूरी  तरह से अपनी और *अशोकदत्त कि मित्रता* के बारे में      आश्वस्त   करते हुए विनय पूर्वक कहता है,"
      🍂🍂 *दुष्ट  लोग दुःखी  😩😰😰करनेवाले  होते है*❗🍂🍂
 यदि *वह 🗿🗿 मायावी भी होगा तो भी वह मेरा क्या नुकसान 🤷🏽‍♂🤷🏽‍♂💰कर  सकेगा*❗🎭
           🐾  एकसाथ  रखने  पर *कांच  💎 कांच  ही  रहेगा   और   मणि  मणि ही रहेगा*❗
  सागरचंद्र इस तरह कहकर  चुप हो गया, तब सेठ ने कहा👵 " पुत्र❗ यधपि तू  बुद्धिमान है , तथापि मुझे कहना ही चाहीए:;
       *पराये का अन्तःकरण जानना कठिन है उसके दिल मे क्या है यह जानना आसान नही"*❗
      इस तरह सेठ ने कई  बातों  से   आगे......   *संग  ,असंग,गुण अवगुण     आदि* के बारे में सागरचंद्र को सदुपदेश दिया❗
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             *71*
     *सागरचंद्र के मनोभावों💏 को समझ कर  सेठ ने शिलादिक 🙍🏻गुणों👩 से परिपूर्ण  प्रियदर्शना*  की सागरचंद्र के लिए 🙏🏼  *पूर्णभद्र सेठ  से मांगा*❗( प्राथना की)  तब' *आपके पुत्र ने उपकार 👦🏻द्वारा मेरी पुत्री👩 को  पहले ही खरीद ली है'* ऐसा।  कह कर *पूर्णभद्र सेठ ने सागरचंद्र के पिता की बात स्वीकार 👍🏻👍🏻कर ली*❗ अर्थात अपनी कन्या देना स्वीकार👧 किया❗
  ।फिर, *शुभ दिन 🌝🌞और शुभ* 🌈💥लग्न मे*    🕰 उनके मातापिता👱🏻‍♀🎅🏻 ने ने।   *सागरचंद्र    के साथ🤴👰 प्रियदर्शना  का बाजे 🎊🎷🎷 गाजे के साथ  विवाह 🤝🤝कर दिया*❗ अनेक प्रकार   🚌🎠💸💰   की  💍🛍भेंट दी❗
    *दोनों  💏💏     एक दूसरे को पाकर अत्यंत   खुश  हुए*❗

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              *72*
     सागरचंद्र और प्रियदर्शना  🎀🎀 *मनचाहा बाजा  बजने🎉🎉 पर* जिस तरह🤗🤗 खुशी होती है :: उसी तरह *मनोवांछित 💏विवाह होने से  दोनों को  हुई*❗ 👫  समान अन्त..करण  होने से एक दिल एक आत्मा हो ,इस त्तरह *उन दोनों की प्रीति सारस  🦆🦆पक्षी की तरह   बढ़ने 🌈🌈🌈लगी*❗
        *चंद्र से 🌚⭐ चांदनी⭐जिस तरह शोभती है: उसी तरह निर्मल हृदय और  सौम्य दर्शनवाली प्रियदर्शना सागरचंद्र से शोभने लगी❗ *चिरकाल से घटना  घटाने वाले दैव ☃⛄🎲के योग से, उन शीलवान, रूपवान, और सरलहृदय  🎲स्त्री पुरुषो का उचित योग हुआ*--- अच्छा मेल 🤝🤝मिला❗
  *आपस मे एक दूसरे  का विश्वास होने से,👣 उन दोनों का   आपस  मे  अविश्वास 👐🏼 तो  हुआ ही नही*❗
🌿🌿🌿🌿क्योंकि *सरल हृदयवाले कभी  विपरीत शंका 👆👉🏻👇नही करते है*❗

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             *73*       
         एक दिन सागरचंद्र🚶 किसी काम से बाहर गया हुआ था❗ ऐसे ही समय *कुट्टिल 🤓अशोकदत्त उसके घर🏠 आया,* और    उसकी  पत्नी प्रियदर्शना   🙎🏼से बोला" *सागरचंद्र हमेशा धनदत्त सेठ की स्त्री     👩के साथ एकांत में 👥   मिलता  जुलता  है*❗ इस   का  क्या मतलब है❓ स्वभाव से     😌सरल प्रियदर्शना ने कहा---" *उसका मतलब आपका मित्र   🙅🏻जाने अथवा उनके साथ साथ सदा रहने वाले आप जाने*⁉   *व्यवसायी 👨👦🏻और बडे लोगो   की   एकांत 🌑सूचक काम को कौन जान सकता है*❓ और जो जाने भी   तो  घर मे में क्यो कहे⁉" तब अशोकदत्त😎😎 ने कहा" *तुम्हारे   पति  का उस स्त्री के साथ एकांत में  मिलने जुलने का मतलब मैं जानता हूँ, पर   😬🤐कह कैसे  सकता हूँ*❓"

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            *74*
        दुष्ट 🤓 अशोकदत्त सागरचंद्र   के बारे में  सुशील  👩 प्रियदर्शना को किसी *दूसरी स्त्री👥  से एकांत   में मिलने  की बात*  कहता  है तब  🙄प्रियदर्शना पूछती है "इसमें उनका  क्या प्रयोजन है"

     तब अधम 👿अशोकदत्त कहता है *हे ,"सुंदरी 🙎🏼मृगनयनी❗ जो प्रयोजन मेरा🤝 तुम्हारे साथ है वही सागरचंद्र 💘💘का उसके साथ है"*❗
   अशोकदत्त  के ऐसा कहने पर  भी उसके भावो को न समझकर सरला प्रियदर्शना ने पूछा," *तुम्हारा मेरे  साथ  क्या प्रयोजन  है*❓
   अशोकदत्त ने कहा," हे👱🏻‍♀ सुंदरी❗  *तेरे पति  के  सिवा,  तेरे  साथ  क्या  कोई  अन्य  रसीले  👲 पुरुष  का  समागम  का  प्रयोजन  नही*⁉
  *कानो में सुई 🙄😤😤जैसा,उसका एकएक शब्द  सुनकर  वह कुपित हुई क्रोध से 😱 कांप उठी*❗

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               *75*
        *अशोकदत्त   कि इच्छा 😍😍को सूचित करनेवाले उसके वचन🗣👂🏻👂🏻 सुनकर वह रुष्ट होकर  सिर 😠😠झुकाकर  बोली," हे  नराधम👿❗  हे निर्लज्ज👺❗ तुमने ऐसी बात सोची भी   कैसे❓ अगर सोची   तो जुबान🤒🤒 पर भी  क्यो लाये❓  मूर्ख तेरे  इस  दु: साहस  को  धिक्कार  है❗ और  हे🗿 दुष्ट❗ मेरे महात्मा 👦🏻👦🏻पति को तू अपने  समान   होने  की  संभावना करता  है, नीच❗तू  मित्रता 🤝 के बहाने  शत्रुता  का काम कर  रहा है❗ तुझे 👋👋धिक्कार है❗हे पापी❗ *हे 🤓 चांडाल❗ तू यहाँ से 🏃🏼🏃🏼चला जा❗ *एक क्षण भी खड़ा  मत  रह❗ तुझे देखने 😡😡से भी मुझे पाप होता है*❗


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          *76*
          *प्रियदर्शना से अपमानित 🤥😬होकर, अशोकदत्त चोर की तरह वहाँ से नौ दो ग्यारह 🚶🚶🚶हुआ*❗ *गोहत्या करने.    वाले  कि  🤢 तरह,अपने  पाप की  गठरी को अंधकार से मलिन 😫😩मुख से खीजता हुआ जा रहा था**,इतने में उसे सामने से आता सागरचंद्र  दिख गया❗ सरल सागरचंद्र ने उससे आंखे चार होते ही पूछा--' मित्र❗ तुम दु: खि क्यो 🕺दिखाई दे रहे हो❓ *सागर की बात सुनते ही  वह दीर्घ नि:श्वास त्याग कर,कष्ट से दुखी हुए समान, होंठो को चबाते  हुआ, मा या के पहाड़ बनाकर वह कपटी बोला" हे भाई*❗
🌱🌱  *हिमालय पर्वत के नजदीक रहने वालों को सर्दी से ठीठुर ने का कारण जिस तरह प्रगट है :, उसी *तरह इस संसार मे बसने वाले के उद्ववेग का कारण भी प्रगट ही है*❗🌱🌱 आगे ओर नीचता से बोलता है ❗ *बुरे जगह के फोड़े की तरह, यह न तो छु छूपाया जा सकता है  ना  ही  प्रगट  किया  जा सकता   है*❗
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📚श्रीआदिनाथचरित्र📚
              *77*
        अशोकदत्त सागर  को अपने *मन का कपट 😭😭😰 छुपाकर मगरमच्छ के आंसू दिखाकर चुप हो गया❗ निष्कपट 😌सागरचंद्र में विचार करता है'अहो❗ *यह 🎡संसार असार है, जिसमे ऐसे पुरुषो को भी    😴😴अकस्मात ऐसे संदेह के स्थान प्राप्त हो जाते है*❗
          *धुंआ🌋🌋 जिस तरह अग्नि की सूचना देता है*: उसी तरह, :::
*धीरज    से न सहने योग्य,इसके भीतरी उद्वग इनके 😥 😢  आंसू,जबरदस्ती  सूचना देते है"*❗ इस तरह  विचार करके सागरचंद्र दुखी स्वर से  कहने   लगा---- 'हे *बंधु❗ अगर कहने लायक हो तो इस समय  👬👬अपना दुख मुझे बताक़र अपने दुख का भार  कम करो"*❗

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📚श्रीआदिनाथ चरित्र📚
              *78*
       अशोकदत्त अपनी धूर्तता  🤓🤓😎भरी बातों से सागरचंद्र 🤔🤔
वह सोचता है की *मेरा मित्र जरूर संकट  में है*❗
   इधर अशोकदत्त कहता है,"'प्राण  समान  🤝आप से *मैं कोई भी बात छुपाकर रख नही सकता,तब  इस बात को कैसे छुपा सकता हूँ❓ आप जानते है *अमावस्या 🌑🌑की रात जिस तरह अंधेरा करती है: उसी तरह स्त्रियां 🙍🏻🙍🏻अनर्थ उत्पन्न करती है*❗
      सागरचंद्र ने पूछा--- *भाई ❗तुम इस समय नागिन 🐍🐍जैसे किसी स्त्री के संकट में पड़े हो*❓
    अशोकदत्त ने बनावटी लज्जा   दिखाकर  बोला *प्रियदर्शना  मुझसे बहुत दिनों से  अनुचित बात 👥❤❤कहा करती थी❗मैंने यह समझकर की कभी तो लाज   😔😔😩आएगी और यह खुद ही *ऐसी बातों से अलग हो जाएगी, मैने लज्जा के मारे कितनो दिन तक उसकी उपेक्षा की*, तो भी *वह कुलटा नारी योग्य बातें कहने से बंद नही हुई*❗
    *अहो❗ स्त्रीओ का अनुचित आग्रह कितना होता है.*......
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                  💁‍♂💁 *भगवान रुषभदेवजी/आदिनाथजी जीवन चरित्र* 🙋🙋‍♂

📚 श्रीआदिनाथ चरित्र📚
           *79*
        कपटी 🤓अशोकदत्त आगे कहता है---हे मित्र❗ आज *मैं तुमसे मिलने 🏢तुम्हारे घर गया था❗तब छल-कपट से भरी हुई उस स्त्री ने 🗿राक्षसी की तरह मुझे रोका*❗ *मगर हाथी🐘🐘 जैसे बंधन से छूटता है उसी तरह उसके पंजे   💅🏼से बड़ी कठिनाई से छूटकर* जल्दी जल्दी 🏃🏼🏃🏾वही से आ रहा हूँ❗ मैंने रास्ते मे सोचा," *यह स्त्री मुझे जीता 🤦‍♂🤦‍♂ना छोड़ेगी इसलिए मुझे आत्मघात 🔫🔫कर लेना चाहिये* मगर मरना भी तो ठीक नही है❗कारण यह स्त्री *मेरे लिए मेरी अनुपस्थिति में 🗣🗣मेरे मित्र से इन सब बातों से विपरीत कहेगी*: इसलिए क्यो न मैं स्वयं ही अपने मित्र को सारी बात बता दूं: *जिससे वह स्त्री 👱🏻‍♀पर विश्वास  करके   अपना  नाश  न  करे*❗अथवा यह भी ठीक नही क्योंकि *यह तुम्हारे  घाव  पर  नमक   छिड़कने    वाली बात*  होगी❗

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             *महावीर के उपदेश ग्रुप*

                  💁‍♂💁 *भगवान रुषभदेवजी/आदिनाथजी जीवन चरित्र* 🙋🙋‍♂

📚 श्रीआदिनाथ चरित्र📚
           *79*
        कपटी 🤓अशोकदत्त आगे कहता है---हे मित्र❗ आज *मैं तुमसे मिलने 🏢तुम्हारे घर गया था❗तब छल-कपट से भरी हुई उस स्त्री ने 🗿राक्षसी की तरह मुझे रोका*❗ *मगर हाथी🐘🐘 जैसे बंधन से छूटता है उसी तरह उसके पंजे   💅🏼से बड़ी कठिनाई से छूटकर* जल्दी जल्दी 🏃🏼🏃🏾वही से आ रहा हूँ❗ मैंने रास्ते मे सोचा," *यह स्त्री मुझे जीता 🤦‍♂🤦‍♂ना छोड़ेगी इसलिए मुझे आत्मघात 🔫🔫कर लेना चाहिये* मगर मरना भी तो ठीक नही है❗कारण यह स्त्री *मेरे लिए मेरी अनुपस्थिति में 🗣🗣मेरे मित्र से इन सब बातों से विपरीत कहेगी*: इसलिए क्यो न मैं स्वयं ही अपने मित्र को सारी बात बता दूं: *जिससे वह स्त्री 👱🏻‍♀पर विश्वास  करके   अपना  नाश  न  करे*❗अथवा यह भी ठीक नही क्योंकि *यह तुम्हारे  घाव  पर  नमक   छिड़कने    वाली बात*  होगी❗


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📚 श्रीआदिनाथ चरित्र📚

📚श्रीआदिनाथ चरित्र📚
                     *80*
       कपटी अशोकदत्त सागरचंद्र को  प्रियदर्शना के बारे में *अनाप शनाप🗿🎭 बताकर   मगरमच्छ  के  आँसु😥😰 बहाकर  *यह  बताने में सफल हो गया कि प्रियदर्शना दु:शिला 🙍🏻 नारी हैं*❗आगे कहता है कि "प्रियदर्शना से पिंड छुड़ाकर  अभी मैं तुम्हारे🏢 घर की ओर से🚶 आ रहा था की तुंमने🕺 मुझे देखा❗ *हे भाई यही मेरे दुःख  कारण है*❗"
       *अशोकदत्त की  बातें ☝🏾 सागरचंद्र 🤦‍♂को ऐसी लगी मानो🍷 😱हलाहल ( भयंकर विष) का पान किया हो❗ *वह पवन रहित समुद्र की 🌊भांति स्थिर हो गया*❗फिर थोड़ा संयत होकर बोला" बंधु❗
*स्त्रियों से ऐसी ही आशा है: कारण खारी जमीन के तल में हमेशा खारा जल ही होता है*❗ हे मित्र *अब तुम खेद 😒मत करो,अच्छे काम मे लगे रहो और उसकी बातों को याद मत करो❗भाई,वह जैसी हो,भले ही वैसे ही रहे,: परंतु  *हम मित्रों 👥के मन मे मलिनता 🤝नही आनी चाहिए*❗"

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📚श्रीआदिनाथ चरित्र📚
                 *81*
        अशोकदत्त सरल सागरचंद्र को  😧 *मनगढंत कहानी* बनाकर उसका  *विश्वास🤝 जितने में सफल हो गया*❗ सागरचंद्र के  अनुनय 🙏🏼  विनय   *वह  🤓अधम  और  खुश  हो  गया*❗
🍂🍂,*क्योंकि *मायावी लोग  *अपराध 🎭🎭करकर भी अपनी आत्मप्रशंसा कराते है*❗🍂🍂
  उस दिन से *सागरचंद्र ने प्रियदर्शना को 💔💔प्यार करना छोड़ दिया,नीस्नेह🖤 होकर,रोगवाली अंगुली की तरह,उसके साथ 😣👨‍👧रहने लगा*❗फिर भी *उसके साथ पहले की तरह बर्ताव रखा*❗
क्योकि☘☘☘
 *अगर अपने हाथों से लगाई हुई लता।  अगर बांझ 🌵🌵🌵भी हो  जाय तो नही उखाड़ते*❗

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             *महावीर के उपदेश ग्रुप*

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📚श्री आदिनाथ चरित्र📚
          *82*
       प्रियदर्शना ने यह🤔😴 सोचकर, कि *मेरी वजह से इन दोनों की मित्रो का वियोग 🙅🏾‍♂🙅🏻‍♂न हो जाय, अशोकदत्त के संबंध  वृतांत अपने पति  से न कहा*❗
     सागरचंद्र *संसार को 🤦‍♂🏟 जेल खाना समझकर, अपनी सारी💰💰💵💸 धनदौलत को दीन 😰😪और अनाथों को दान करके कृतार्थ करने लगा*❗ समय आने पर   प्रियदर्शना, अशोकदत्त और सागरचंद्र तीनों ने अपनी-अपनी उम्र पूरी करके देह त्याग दी❗
🌈🌼🌼🌼🌈🌼🌼
      सागरचंद्र और प्रियदर्शना *जम्बूदीप 🌄🌉में,भरत क्षेत्र के दक्षिण खंड में,गंगासिन्धु 🗾🗾के मध्यप्रदेश में  युगलिक 🎎उतपन्न हुए*❗

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             *महावीर के उपदेश ग्रुप*

                  💁‍♂💁 *भगवान रुषभदेवजी/आदिनाथजी जीवन चरित्र* 🙋🙋‍♂

📚श्रीआदिनाथ चरित्र📚
                  *83*     
   जब वे दोनों युगलिक पने उत्पन्न हुए तब *अवसर्पिणी के तीसरे आरे में पल्योपम का आठवा भाग शेष था*❗
   *पांच  भरत  और  पांच    *ऐरावत  क्षेत्रो में   समय की व्यवस्था करने का🎆🌠 *कारणरूप  बारा आरो का एक  कालचक्र  🎡गिना जाता है*❗
 अवसर्पिणी काल के छः आरे है❗ वे इस प्रकार है❗
1⃣ *एकांत सुषमा*------ यह *चारकोटकोटी⏳⌛ सागरोंपम* का होता है❗
2⃣*  *सुषमा*-----यह *तीन कोटकोटी सागरोपम* का होता है❗
3⃣ *सुषमा दुखमा*-----यह *दो कोटकोटी सागरोपम का होता है*❗
       4⃣दुखमा सुषमा----यह *बयालीस हज़ार काम एक  कोटाकोटी सागरोपम* का होता है❗
5⃣ दुखमा यह *इक्कीस हज़ार वर्ष* का होता है❗
6⃣ *एकांतदुखमा*------यह भी *इक्कीस हज़ार वर्ष* का होता है❗
 🍁जिस तरह अवसर्पिणी कहे उसी तरह उत्सर्पिणि के भी *प्रतिलोम  क्रम* से समझने  चाहिए❗🍁
      🍃🍃 *अवसर्पिणी *और उत्सर्पिणी काल की कुल संख्या मिलाकर बीस  *कोड़ाकोड़ी सागरोपम होती है*❗ उसे *कालचक्र कहते है*❗


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