गौतमस्वामी की मानसिक अधैर्यता की व्यथा
प्रश्न-११ : गौतमस्वामी की मानसिक अधैर्यता की व्यथा का भगवान ने किस प्रकार निवारण किया था ?
उत्तर- प्रस्तुत उद्देशक-१३/७ अनुसार एक बार राजगृहनगर में प्रवचन हुआ, परिषद चली गई । उस दिन प्रवचन में संभवतः अनेक जीवों के केवली होकर मोक्ष जाने का वर्णन चला होगा या गौतम स्वामी के ९ छोटे साथी गणधरों को केवलज्ञान और मुक्ति हो चुकी
होगी। उस विषय से गौतमस्वामी के मनोमंथन में खुद को केवलज्ञान नहीं होने की व्यथा अत्यंत उग्र बन रही थी। उनके चहेरे में, भावों में खेद-उदासीनता वर्तने लगी और मन आर्तध्यान में तल्लीन हो रहा था। तब भगवान ने गौतमस्वामी को स्वत: संबोधन करते हुए कहा
कि हे गौतम! तुम-हम चिरकाल से साथी हैं, पूर्व देव भव में, उसके पूर्व मानव भव में, यों अनेक लंबे समय से परिचित साथी है और इस भव के बाद भी हम दोनों मोक्ष में भी आत्मस्वरूप से तुल्य बन कर साथ में ही रहेंगे ।
इस कथन से गौतमस्वामी को केवलज्ञान और मुक्ति होने
की स्पष्टता हो जाने से उन्हें अत्यंत संतुष्टी हो गई कि मैं भी चरम शरीरी हूँ एव इसी भव से संसार का अंत करके मुक्त होने वाला हूँ।
इस तरह उनका अधैर्य(व्यथा) मिटकर संतोष एव आनंद में परिवर्तित हो गया ।
भगवान एव गौतमस्वामी के इस प्रसंग को अनुत्तर विमान
वासी देव अपनी मनोवर्गणा लब्धि से वहाँ रहे हुए जानते है, ऐसा भगवान ने गौतमस्वामी के पूछने पर फरमाया । मनोवर्गणा लब्धि,अवधिज्ञान का ही एक विशिष्ट विभाग है, ऐसा समझना चाहिये ।🙏🙏
उत्तर- प्रस्तुत उद्देशक-१३/७ अनुसार एक बार राजगृहनगर में प्रवचन हुआ, परिषद चली गई । उस दिन प्रवचन में संभवतः अनेक जीवों के केवली होकर मोक्ष जाने का वर्णन चला होगा या गौतम स्वामी के ९ छोटे साथी गणधरों को केवलज्ञान और मुक्ति हो चुकी
होगी। उस विषय से गौतमस्वामी के मनोमंथन में खुद को केवलज्ञान नहीं होने की व्यथा अत्यंत उग्र बन रही थी। उनके चहेरे में, भावों में खेद-उदासीनता वर्तने लगी और मन आर्तध्यान में तल्लीन हो रहा था। तब भगवान ने गौतमस्वामी को स्वत: संबोधन करते हुए कहा
कि हे गौतम! तुम-हम चिरकाल से साथी हैं, पूर्व देव भव में, उसके पूर्व मानव भव में, यों अनेक लंबे समय से परिचित साथी है और इस भव के बाद भी हम दोनों मोक्ष में भी आत्मस्वरूप से तुल्य बन कर साथ में ही रहेंगे ।
इस कथन से गौतमस्वामी को केवलज्ञान और मुक्ति होने
की स्पष्टता हो जाने से उन्हें अत्यंत संतुष्टी हो गई कि मैं भी चरम शरीरी हूँ एव इसी भव से संसार का अंत करके मुक्त होने वाला हूँ।
इस तरह उनका अधैर्य(व्यथा) मिटकर संतोष एव आनंद में परिवर्तित हो गया ।
भगवान एव गौतमस्वामी के इस प्रसंग को अनुत्तर विमान
वासी देव अपनी मनोवर्गणा लब्धि से वहाँ रहे हुए जानते है, ऐसा भगवान ने गौतमस्वामी के पूछने पर फरमाया । मनोवर्गणा लब्धि,अवधिज्ञान का ही एक विशिष्ट विभाग है, ऐसा समझना चाहिये ।🙏🙏
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