आगम प्रश्नोत्तरी। 4
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
🅿️1. 10 श्रावको का वर्णन किस आगम में❓
🅰️1. उपसंगदशा सूत्र में।
🅿️ 2) बुरे कर्म का बुरा नतीजा ,किस सूत्र में❓
🅰️ .दुख विपाक सूत्र में
🅿️ 3.मुझमें ठानो का वर्णन है❓
🅰️3. ठाणाग सूत्र
🅿️4. मुझमें बताया कि सुकर्मो का फल सदेव मीठा होता है❓
🅰️4.सुख विपाक सूत्र
🅿️5 मै भगवान महावीर की अंतिम देशना❓
🅰️ उत्तराध्ययन सूत्र
🅿️6 . मुझमें जीव अजीव का वर्णन है❓
🅰️ जीवाभीगम सूत्र
🅿️.7 मुझमें अनुयोगो का वर्णन है❓
🅰️ .अनुयोग द्वार सूत्र
🅿️ 8 .मुझमें कल्प का वर्णन है❓
🅰️ .बृहत्कल्प सूत्र
🅿️ 9- किस आगम में 5 वे गुणस्थानधारीयो का वर्णन❓
🅰️ उपासंगदशा सूत्र
🅿️10-. मुझमे कोणिक राजा का वर्णन है❓
🅰️ .निर्यावलिका आदि 5 में
प्रणाम
आज तारिख 1..2..2021 के प्रश्न
1..घडी की उपमा देकर शास्त्र मे क्या समझाया गया है?
Kalchakra
2..वृक्ष,चोर का दृष्टांत देकर क्या समझाया गया है?
Leshya
3.एक कालचक्र मे धर्म कितने समय तक नही होता
Laghbhag18 sagaropam
4..जिन्होने आगम को चार भाग मे विभाजित किया?
Aryarakshit suruji m.s
5..पालने मे11अंग पढे?
Arya vajraswamyji
6..भगवान पर उपसर्गो की शुरूआत और अंत इसी से हुआ?
Gwala
7..सोने के ढगले के कारण इनका नाम बदल गया?
Acharya hemchandra suriji
8..गोचरी जाते जाते स्तुति की रचना किसने की?
Shobhan muniji
9..परमार्हत का बिरूद्ध किसे मिला?
Raja kumarpal
10..वीर प्रभु के शासन मे कितनो ने तीर्थंकर नाम कर्म बांधा?
A 9
बारह -अंग सूत्र
1014 आचारांग मे किसका वर्णन है?
साधु के आचार का।
साधु के आचार का।
1015 आचारांग सुत्र में कितने प्रकार का आचार है?
5 आचार - ज्ञानाचार ,दर्शनाचार , चारित्राचार , तपाचार वीर्याचार ।
5 आचार - ज्ञानाचार ,दर्शनाचार , चारित्राचार , तपाचार वीर्याचार ।
1016 आचारांग सुत्र के कितने श्रुतस्कन्ध है?
दो श्रुतस्कन्ध ।
दो श्रुतस्कन्ध ।
1017 आचारांग सुत्र में कितने अध्ययन और उद्देशक है?
25 अध्ययन एंव 85 उद्देशक ।
25 अध्ययन एंव 85 उद्देशक ।
1018 आचारांग सुत्र की पद संख्या कितनी है ?
18000 पद ।
18000 पद ।
1019 आचारांग सुत्र मे वाचनाएं कितनी है?
परिमित वाचनाएं ।
परिमित वाचनाएं ।
1020 आचारांग सुत्र में संग्रहणिया- निर्युक्तियाँ प्रतिपत्तियाँ कितनी है ?
संख्याता ।
संख्याता ।
1021 आचारांग सुत्र में अक्षर , श्लोक एंव वेद कितने है?
संख्याता, संख्याता ,संख्याता ।
संख्याता, संख्याता ,संख्याता ।
1022 आचारांग सुत्र मे गमक , पर्यव कितने है?
अनन्त ।
अनन्त ।
1023 एक अनुष्टुप श्लोक में कितने अक्षर होते है?
बत्तीस ।
बत्तीस ।
1024 सुत्रकृतांग सूत्र कौन सा अंग सुत्र है?
दुसरा अंग सूत्र ।
दुसरा अंग सूत्र ।
1025 सुत्रकृत किसे कहते है?
जो भगवान के वचनो को सुचित करे वह सूत्र है, जिसे इस प्रकार सूत्र रुप से बनाया गया हो, वह सूत्रकृत है ।
जो भगवान के वचनो को सुचित करे वह सूत्र है, जिसे इस प्रकार सूत्र रुप से बनाया गया हो, वह सूत्रकृत है ।
1026 सुत्रकृतांग के कितने श्रुत्रस्कन्ध है?
दो ।
दो ।
1027 सुत्रकृतांग सुत्र मे कितने अध्ययन है?
23 (तेवीस )
23 (तेवीस )
1028 सुत्रकृतांग सुत्र मे कितने उद्देशक है?
33 (तेतीस)
33 (तेतीस)
1029 सुत्रकृतांग सूत्र में कितने पद है?
36000 पद ।
36000 पद ।
1030 सूत्रकृतांग सूत्र मे किसका वर्णन है?
जीव-अजीव,जीवाजीव,लोकअलोक, लोकालोक, स्वसिद्धांत स्वपरसिद्धांत, आदि का वर्णन है ।
जीव-अजीव,जीवाजीव,लोकअलोक, लोकालोक, स्वसिद्धांत स्वपरसिद्धांत, आदि का वर्णन है ।
1031 सूत्रकृतांग सूत्र मे कितने मतों का खण्डन किया है?
363 पाखण्डी मतों का
363 पाखण्डी मतों का
1032 363 पाखण्डी मत कौन से है?
180 क्रियावादी , 84 अक्रियावादी , 67 अज्ञानवादी , 32 विनयवाद ।
180 क्रियावादी , 84 अक्रियावादी , 67 अज्ञानवादी , 32 विनयवाद ।
1033 क्रियावादी किसे कहते है?
जो जीव अजीव आदि पदार्थों के अस्तित्व को एकांत रुप से मानते हैं अथवा जो क्रिया ही प्रधान है और ज्ञान की कोई आवश्यकता नहीं ,एेसा मानते है ,उन्हे क्रियावादी कहते है।
जो जीव अजीव आदि पदार्थों के अस्तित्व को एकांत रुप से मानते हैं अथवा जो क्रिया ही प्रधान है और ज्ञान की कोई आवश्यकता नहीं ,एेसा मानते है ,उन्हे क्रियावादी कहते है।
1034 क्रियावादी के 180 भेद कौन-कौन से है?
जीव,अजीव, आश्रव ,बंध,पुण्य,पाप, संवर,निर्जरा, मोक्ष इन नव पदार्थों के स्व और पर से (18)भेद हुए।इन 18 के नित्य,अनित्यरुप से 36 भेद हुए ।इनमे से प्रत्येक काल,नियति स्वभाव, पुरुषार्थ और कमॅ की अपेक्षा पाँच भेद करने से 36*5=180 भेद हुए ।
जीव,अजीव, आश्रव ,बंध,पुण्य,पाप, संवर,निर्जरा, मोक्ष इन नव पदार्थों के स्व और पर से (18)भेद हुए।इन 18 के नित्य,अनित्यरुप से 36 भेद हुए ।इनमे से प्रत्येक काल,नियति स्वभाव, पुरुषार्थ और कमॅ की अपेक्षा पाँच भेद करने से 36*5=180 भेद हुए ।
1035 क्रियावादी के स्वरुप को किसी उदाहरण से समझाइये?
जैसे-जीव स्व रुप से काल की अपेक्षा नित्य है । जीव स्वरूप से काल की अपेक्षा अनित्य है जीवपर-रुप से काल की अपेक्षा अनित्य है ।इस काल की अपेक्षा चार भेद हैं। इसी प्रकार नियति,स्वभाव ,पुरुषाथॅ, कमॅ के अपेक्षा से भी जीव के चार-चार भेद होते हैं । इस तरह जीव आदि नव तत्वों के 20-20 भेद होते हैं।
जैसे-जीव स्व रुप से काल की अपेक्षा नित्य है । जीव स्वरूप से काल की अपेक्षा अनित्य है जीवपर-रुप से काल की अपेक्षा अनित्य है ।इस काल की अपेक्षा चार भेद हैं। इसी प्रकार नियति,स्वभाव ,पुरुषाथॅ, कमॅ के अपेक्षा से भी जीव के चार-चार भेद होते हैं । इस तरह जीव आदि नव तत्वों के 20-20 भेद होते हैं।
1036 अक्रियावादी किसे कहते है?
किसी भी अनवस्थित पदार्थ में क्रिया नहीं होती हैं।यदि पदार्थ में क्रिया होगी तो वह अनवस्थित नहीं होगा ।इस प्रकार पदार्थों को अनवस्थित मानकर उसमें क्रिया का अभाव मानने वाले को अक्रियावादी कहते है ।ये ज्ञान से मोक्ष की मान्यता वाले होते हैं ।
किसी भी अनवस्थित पदार्थ में क्रिया नहीं होती हैं।यदि पदार्थ में क्रिया होगी तो वह अनवस्थित नहीं होगा ।इस प्रकार पदार्थों को अनवस्थित मानकर उसमें क्रिया का अभाव मानने वाले को अक्रियावादी कहते है ।ये ज्ञान से मोक्ष की मान्यता वाले होते हैं ।
1037 अक्रियावादी के 84 भेद कौन-कौन से है?
जीव,अजीव,आस्रव, बंध ,संवर,निर्जरा,मोक्ष इन सात तत्वों के स्व और पर के भेद से 14 भेद होते हैं ।काल,यदृच्छा,नियति ,स्वभाव,ईश्वर और आत्मा इन छहो की अपेक्षा 14भेदों का विचार करने से 14×6=84 भेद होते हैं।
जीव,अजीव,आस्रव, बंध ,संवर,निर्जरा,मोक्ष इन सात तत्वों के स्व और पर के भेद से 14 भेद होते हैं ।काल,यदृच्छा,नियति ,स्वभाव,ईश्वर और आत्मा इन छहो की अपेक्षा 14भेदों का विचार करने से 14×6=84 भेद होते हैं।
1038 अक्रियावादी के स्वरुप को किसी उदाहरण से समझाइये?
जैसे जीव स्वतः काल से नही है ।जीव परतः काल से नही है इस प्रकार काल की तरह यदृच्छा नियति आदि की अपेक्षा भी जीव के दो-दो भेद होते हैं । इस प्रकार जीव के 12भेद होते है जीव की तरह शेष तत्वों के भी बारह -बारह भेद होते है। इस तरह कुल 84 भेद होते है।
जैसे जीव स्वतः काल से नही है ।जीव परतः काल से नही है इस प्रकार काल की तरह यदृच्छा नियति आदि की अपेक्षा भी जीव के दो-दो भेद होते हैं । इस प्रकार जीव के 12भेद होते है जीव की तरह शेष तत्वों के भी बारह -बारह भेद होते है। इस तरह कुल 84 भेद होते है।
1039 अज्ञानवादी किसे कहते है?
जीवादि अतीन्द्रिय पदार्थों को जाननेवाला कोई नहीं है।न उनके जानने से कुछ सिद्धि ही होती है।इसके अतिरिक्त समान अपराध में ज्ञानी को अधिक दोष माना है और अज्ञानी को कम,इसलिए अज्ञानी ही श्रेय रुप है, एेसा मानने वाले को अज्ञानवादी कहते है ।
जीवादि अतीन्द्रिय पदार्थों को जाननेवाला कोई नहीं है।न उनके जानने से कुछ सिद्धि ही होती है।इसके अतिरिक्त समान अपराध में ज्ञानी को अधिक दोष माना है और अज्ञानी को कम,इसलिए अज्ञानी ही श्रेय रुप है, एेसा मानने वाले को अज्ञानवादी कहते है ।
1040 अज्ञानवादी के67 भेद कौन -कौन से है?
जीव,अजीव,आश्रव,संवर,बंध,पुण्य,पाप,निर्जरा,मोक्ष -इन नव तत्वों के सद्,असद्,सद्सद्,अवक्तव्य,सद्वक्तव्य,असदवक्तव्य,सद्सद्वक्तव्य-इन सात भागों से 63 भेद होते हैं और उत्पत्ति के सद्,असद् और अवक्तव्य की अपेक्षा से4 भंग हुए । इस प्रकार 67भेद अज्ञानवादी के होते हैं। जैसे -जीव सद् है यह कौन जानता है? और इसके जानने का क्या प्रयोजन है?
जीव,अजीव,आश्रव,संवर,बंध,पुण्य,पाप,निर्जरा,मोक्ष -इन नव तत्वों के सद्,असद्,सद्सद्,अवक्तव्य,सद्वक्तव्य,असदवक्तव्य,सद्सद्वक्तव्य-इन सात भागों से 63 भेद होते हैं और उत्पत्ति के सद्,असद् और अवक्तव्य की अपेक्षा से4 भंग हुए । इस प्रकार 67भेद अज्ञानवादी के होते हैं। जैसे -जीव सद् है यह कौन जानता है? और इसके जानने का क्या प्रयोजन है?
1041 विनयवादी किसे कहते है?
स्वर्ग ,अपवर्ग आदि के कल्याण की प्राप्ति विनय से होती है इसलिये विनय ही श्रेष्ठ है।इस प्रकार विनय को प्रधान माननेवाले को विनयवादी कहते है ।
स्वर्ग ,अपवर्ग आदि के कल्याण की प्राप्ति विनय से होती है इसलिये विनय ही श्रेष्ठ है।इस प्रकार विनय को प्रधान माननेवाले को विनयवादी कहते है ।
1042 विनयवादी के 32 भेद कौन से है?
देव,राजा,यति,ज्ञाति,स्थविर,अधम,माता,और पिता इन आठों का 1 मन 2वचन,3काया, और 4 दान- इन चारों प्रकार से विनय होता है। इस प्रकार आठ को चार से गुणा करने पर 8*4=32 भेद होते हैं।
देव,राजा,यति,ज्ञाति,स्थविर,अधम,माता,और पिता इन आठों का 1 मन 2वचन,3काया, और 4 दान- इन चारों प्रकार से विनय होता है। इस प्रकार आठ को चार से गुणा करने पर 8*4=32 भेद होते हैं।
1043 क्रियावादी ,अक्रियावादी, अज्ञानवादी ,विनयवादी,में कौन सी दृष्टि पाई जाती है?
ये मिथ्यादृष्टि होते है।
ये मिथ्यादृष्टि होते है।
1044 क्रियावादी की मान्यता मिथ्यात्व रुप कैसे हैं?
क्रियावादी जीवादि पदार्थों के अस्तित्व को ही मानते है । इस प्रकार एकान्त अस्तित्व को मानने से इनके मत में पर रुप की अपेक्षा से नास्तित्व नहीं माना जाता है पर रुप की अपेक्षा से वस्तु में नास्तित्व न मानने से वस्तु में स्वरुप की तरह पर रुप का भी अस्तित्व रहने से एक ही वस्तु सर्व रुप हो जायेगी ।जो कि प्रत्यक्ष बाधित है ।इस प्रकार क्रियावादीयों का मत मिथ्यात्व से परिपूर्ण है।
क्रियावादी जीवादि पदार्थों के अस्तित्व को ही मानते है । इस प्रकार एकान्त अस्तित्व को मानने से इनके मत में पर रुप की अपेक्षा से नास्तित्व नहीं माना जाता है पर रुप की अपेक्षा से वस्तु में नास्तित्व न मानने से वस्तु में स्वरुप की तरह पर रुप का भी अस्तित्व रहने से एक ही वस्तु सर्व रुप हो जायेगी ।जो कि प्रत्यक्ष बाधित है ।इस प्रकार क्रियावादीयों का मत मिथ्यात्व से परिपूर्ण है।
1045 अक्रियावादी की मान्यता मिथ्यारुप कैसे है?
अक्रियावादी जीवादि पदार्थों को नहीं मानते हैं।इस प्रकार असदभूत अर्थ प्रतिपादन करते हैं,इसलिए वे भी मिथ्यादृष्टि हैं।एकान्त रुप से जीव के अस्तित्व का प्रतिषेध करने से उनके मत मे निषेध कर्ता का भी अभाव हो जाता है । निषेधकर्ता के अभाव से सभी का अस्तित्व स्वतः सिद्ध हो जाता है ।
अक्रियावादी जीवादि पदार्थों को नहीं मानते हैं।इस प्रकार असदभूत अर्थ प्रतिपादन करते हैं,इसलिए वे भी मिथ्यादृष्टि हैं।एकान्त रुप से जीव के अस्तित्व का प्रतिषेध करने से उनके मत मे निषेध कर्ता का भी अभाव हो जाता है । निषेधकर्ता के अभाव से सभी का अस्तित्व स्वतः सिद्ध हो जाता है ।
1046 अज्ञानवादी की मान्यता मिथ्या रुप कैसे है?
अज्ञानवादी अज्ञान को ही श्रेय मानते है इसलिए वे भी मिथ्यादृष्टि है और उनका कथन स्ववचन बाधित हैं । क्योंकिहै ' अज्ञान ही श्रेय है' यह बात भी वे बिना ज्ञान के वे अपने मत का समर्थन भी कैसे कर सकते हैं इस प्रकार अज्ञान की श्रेयता बताते हुए उन्हें ज्ञान का आश्रय लेना ही पड़ता है।
अज्ञानवादी अज्ञान को ही श्रेय मानते है इसलिए वे भी मिथ्यादृष्टि है और उनका कथन स्ववचन बाधित हैं । क्योंकिहै ' अज्ञान ही श्रेय है' यह बात भी वे बिना ज्ञान के वे अपने मत का समर्थन भी कैसे कर सकते हैं इस प्रकार अज्ञान की श्रेयता बताते हुए उन्हें ज्ञान का आश्रय लेना ही पड़ता है।
1047 विनयवादी की मान्यता मिथ्या रुप कैसे है?
केवल विनय से ही मोक्ष,स्वर्ग पाने की इच्छा रखनेवाले विनय वादी मिथ्यादृष्टि है क्योंकि ज्ञान और क्रिया दोनों से ही मोक्ष की प्राप्ति होती है। केवलज्ञान या केवल क्रिया से नहीं ।ज्ञान को छोड़कर एकान्त रुप से के केवल क्रिया के एक अंग का आश्रय लेने से सत्य मार्ग से दूर होते हैं।
केवल विनय से ही मोक्ष,स्वर्ग पाने की इच्छा रखनेवाले विनय वादी मिथ्यादृष्टि है क्योंकि ज्ञान और क्रिया दोनों से ही मोक्ष की प्राप्ति होती है। केवलज्ञान या केवल क्रिया से नहीं ।ज्ञान को छोड़कर एकान्त रुप से के केवल क्रिया के एक अंग का आश्रय लेने से सत्य मार्ग से दूर होते हैं।
1048 स्थानांग सूत्र कौन सा अंग सूत्र है?
तीसरा अंग सूत्र ।
तीसरा अंग सूत्र ।
1049 स्थानांग किसे कहते है?
जिस सूत्र में जीवादि तत्वों का संख्यामय प्रतिपादन द्वारा स्थापन किया जाता है, एेसे उस स्थापना के स्थान भूत सूत्र को स्थानांग कहते है।
1050 स्थानांग मे किसका वर्णन है?
टंक,कूट,शैल,शिखरी,प्राग्भार, कुंड,गुफा,आकर,द्रह,नदी आदि का निरुपण किया गया है ।
जिस सूत्र में जीवादि तत्वों का संख्यामय प्रतिपादन द्वारा स्थापन किया जाता है, एेसे उस स्थापना के स्थान भूत सूत्र को स्थानांग कहते है।
1050 स्थानांग मे किसका वर्णन है?
टंक,कूट,शैल,शिखरी,प्राग्भार, कुंड,गुफा,आकर,द्रह,नदी आदि का निरुपण किया गया है ।
1051 स्थानांग सूत्र में कितनी संख्या का विषय निरुपण है?
एक से दस तक ।
एक से दस तक ।
1052 स्थानांग मे कितने श्रुतस्कन्ध है?
एक ।
एक ।
1053 स्थानांग सूत्र मे कितने अध्ययन है?
10(दस)
10(दस)
1054 स्थानांग सूत्र में कितने उद्देशक समुद्देशक है?
21,21 (इक्कीस)
21,21 (इक्कीस)
1055 स्थानांग सूत्र मे कितने पद है?
72,000 (बहत्तर हजार)
72,000 (बहत्तर हजार)
1056 चौथे अंग सूत्र का नाम क्या है?
समवायांग सूत्र ।
समवायांग सूत्र ।
1057 समवाय किसे कहते है?
जिसके द्वारा जीवादि पदार्थों का सम्यक निर्णय हो वह (सम +अवाय ) समवाय है।
जिसके द्वारा जीवादि पदार्थों का सम्यक निर्णय हो वह (सम +अवाय ) समवाय है।
1058 समवायांग मे किसका वर्णन है?
एक से लेकर 100 तक संख्या मे जीवादि भावो का कथन और द्वादंशांगी आदि का विस्तृत परिचय वर्णित है ।
एक से लेकर 100 तक संख्या मे जीवादि भावो का कथन और द्वादंशांगी आदि का विस्तृत परिचय वर्णित है ।
1059 समवायांग में कितने श्रुतस्कन्ध, अध्ययन , और उद्देशक है?
एक,एक,एक ।
एक,एक,एक ।
1060 समवायांग मे कितने पद है ?
1 लाख 44हजार पद ।
1 लाख 44हजार पद ।
1061 पांचवे अंग सूत्र का नाम क्या है?
व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र ।
व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र ।
1062 व्याख्याप्रज्ञप्ति किसे कहते है ?
जिसमे व्याख्या करके जीवादि पदार्थों को समझाया जाता हो ।
जिसमे व्याख्या करके जीवादि पदार्थों को समझाया जाता हो ।
1063 व्याख्याप्रज्ञप्ति के दो और नाम क्या है?
भगवती सूत्र और विवाहपन्नति सूत्र ।
भगवती सूत्र और विवाहपन्नति सूत्र ।
1064 व्याख्याप्रज्ञप्ति के कितने श्रुतस्कन्ध है ?
एक ।
एक ।
1065 व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र में कितने अध्ययन है ?
100 से कुछ अधिक ।
100 से कुछ अधिक ।
1066 व्याख्याप्रज्ञप्ति वर्तमान मे कितने शतक प्रमाण है?
41(इकतालीस )
41(इकतालीस )
1067 व्याख्याप्रज्ञप्ति मे कितने उद्देशक व समुउद्देशक है?
10,000 उद्देशक 10,000 समुद्देशक ।
10,000 उद्देशक 10,000 समुद्देशक ।
1068 व्याख्याप्रज्ञप्ति की वाचना कितने दिन मे पूरी की जाती है?
66 या 87 दिनो में ।
66 या 87 दिनो में ।
1069 व्याख्याप्रज्ञप्ति मे कितने प्रश्नोत्तर है?
36000 (छत्तीस हजार )।
36000 (छत्तीस हजार )।
1070 व्याख्याप्रज्ञप्ति में कितने पद है?
2 लाख 88,000 पद ।
2 लाख 88,000 पद ।
1071 ज्ञाताधर्मकथांग कौन सा अंग सूत्र है?
छठा ।
छठा ।
1072 ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र किसे कहते है?
अहिंसादि का प्रतिपादन करनेवाले उदाहरण एंव कथाएं जिस सूत्र में हो वह ज्ञाताधर्मकथांग कहलाता हैं।
अहिंसादि का प्रतिपादन करनेवाले उदाहरण एंव कथाएं जिस सूत्र में हो वह ज्ञाताधर्मकथांग कहलाता हैं।
1073 ज्ञाताधर्मकथांग में कितनी कथाएं है?
3 1/२ करोड़ कथाएं ।
3 1/२ करोड़ कथाएं ।
1074 ज्ञाताधर्मकथांग के कितने श्रुत्रस्कन्ध है?
दो ।
दो ।
1075 ज्ञाताधर्मकथांग में कितने अध्ययन है?
19 अध्ययन ।
19 अध्ययन ।
1076 ज्ञाताधर्मकथांग में उद्देशक व समुद्देशक है?
19,19 (उन्नीस ,उन्नीस)
19,19 (उन्नीस ,उन्नीस)
1077 ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र में कितने पद है?
संख्यात हजार पद हैं।
संख्यात हजार पद हैं।
1078 सातवें अंग का नाम क्या है?
उपासक दशांग ।
उपासक दशांग ।
1079 उपासक दशा किसे कहते है?
श्रमण निग्रर्न्थ की उपासना करनेवाले एेसे गृहस्थों का जिसमें चारित्र हो, वह उपासक दशा सूत्र है।
श्रमण निग्रर्न्थ की उपासना करनेवाले एेसे गृहस्थों का जिसमें चारित्र हो, वह उपासक दशा सूत्र है।
1080 श्रावक की कितनी प्रतिमाएँ है?
11 प्रतिमाएँ ।
11 प्रतिमाएँ ।
1081 उपासकदशांग सूत्र में कितने श्रुत्रस्कन्ध है?
एक ।
एक ।
1082 उपासकदशा सूत्र मे कितने अध्ययनएंव उद्देशक तथा समुद्देशक है?
10 अध्ययन ,10 उद्देशक, 10 समुद्देशक हैं।
10 अध्ययन ,10 उद्देशक, 10 समुद्देशक हैं।
1082 उपासकदशा सूत्र में कितने पद है ?
संख्यात हजार पद हैं।
संख्यात हजार पद हैं।
1083 अन्तकृत दशा कौन सा सूत्र हैं?
आठवां अंग सूत्र ।
आठवां अंग सूत्र ।
1084 अन्तकृत दशा किसे कहते है?
संसार अथवा कर्मो का अन्त करनेवाले साधुओं के जीवन का जिसमें वर्णन हो वह अन्तकृत दशा सूत्र हैं।
संसार अथवा कर्मो का अन्त करनेवाले साधुओं के जीवन का जिसमें वर्णन हो वह अन्तकृत दशा सूत्र हैं।
1085 अन्तकृत दशा में कितने श्रुत्रस्कन्ध है?
एक ।
एक ।
1086 अन्तकृत दशा में कितने वर्ग है?
आठ ।
आठ ।
1087 अन्तकृत दशा में अध्ययन कितने है?
90 (नब्बे)
90 (नब्बे)
1088 अन्तकृत दशा में कितने उद्देशक समुद्देशक काल हैं ?
8-8 (आठ-आठ)
8-8 (आठ-आठ)
1089 अन्तकृत दशा में कितने पद है?
संख्यात हजार पद।
संख्यात हजार पद।
1090 नवम् अंगसूत्र का नाम क्या है ?
अनुत्तरौपपातिक दशा ।
अनुत्तरौपपातिक दशा ।
1091 अनुत्तरौपपातिक किसे कहते है?
सर्वोत्तम देवलोकों में जो उत्पन्न हुये हैं,एेसे साधुओ का जिसमें चारित्र हो, उसे अनुत्तरौपपातिक सूत्र कहते हैं ।
सर्वोत्तम देवलोकों में जो उत्पन्न हुये हैं,एेसे साधुओ का जिसमें चारित्र हो, उसे अनुत्तरौपपातिक सूत्र कहते हैं ।
1092 अनुत्तरौपपातिक दशा में कितने श्रुतस्कन्ध है?
एक ।
एक ।
1093 अनुत्तरौपपातिक दशा में कितने वर्ग है?
तीन ।
तीन ।
1094 अनुत्तरौपपातिक दशा मे कितने अध्ययन है?
तैतीस ।
तैतीस ।
1095 अनुत्ररौपपातिक दशा में कितने उद्देशक काल, समुद्देशक काल है?
तीन -तीन ।
तीन -तीन ।
1096 अनुत्तरौपपातिक दशा सूत्र में कितने पद है?
संख्यात हजार पद।
संख्यात हजार पद।
1097 दसवें अंगसूत्र का नाम क्या है?
प्रश्नव्याकरण सूत्र ।
प्रश्नव्याकरण सूत्र ।
1098 प्रश्नव्याकरण सूत्र किसे कहते है?
जिसमें प्रश्न का व्याकरण अर्थात उत्तर हो, उसे प्रश्न व्याकरण सूत्र कहते हैं।
जिसमें प्रश्न का व्याकरण अर्थात उत्तर हो, उसे प्रश्न व्याकरण सूत्र कहते हैं।
1099 प्रश्न व्याकरण सूत्र में कितने प्रकार के प्रश्न हैं?
324 प्रकार के ।
324 प्रकार के ।
1100 प्रश्न किस प्रकार के है?
कोई अंगुष्ठ प्रश्न - अंगूठे से ही प्रश्नों कें शुभाशुभ फल का सुनाई देना । कोई दर्पण प्रश्न -दर्पण में शुभाशुभ फल का दृश्य दिखाई देना ।
कोई अंगुष्ठ प्रश्न - अंगूठे से ही प्रश्नों कें शुभाशुभ फल का सुनाई देना । कोई दर्पण प्रश्न -दर्पण में शुभाशुभ फल का दृश्य दिखाई देना ।
1101 प्रश्न व्याकरण में किसका संवाद है?
मुनियो के जो नागकुमार,सुवर्णकुमार आदि के साथ दिव्य संवाद हुये थे, उनका वर्णन कहा गया है।
मुनियो के जो नागकुमार,सुवर्णकुमार आदि के साथ दिव्य संवाद हुये थे, उनका वर्णन कहा गया है।
1102 प्रश्न व्याकरण सूत्र के कितने श्रुतस्कंन्ध हैं?
एक ।
एक ।
1103 प्रश्न व्याकरण सूत्र में कितने श्रुतस्कंन्ध वर्तमान में है?
दो ।
दो ।
1104 प्रश्नव्याकरण सूत्र के कितने अध्ययन थे ?
45 (पैंतालीस)
45 (पैंतालीस)
1105 प्रश्नव्याकरण सूत्र मे कितने अध्ययन वर्तमान में है?
10 (5 आश्रव तथा 5 संवर के)
10 (5 आश्रव तथा 5 संवर के)
1106 प्रश्नव्याकरण सूत्र में कितने पद है?
संख्यात हजार पद हैं ।
संख्यात हजार पद हैं ।
1107 ग्यारहवें अंग सूत्र का नाम क्या है?
विपाक सूत्र ।
विपाक सूत्र ।
1108 ग्यारहवें अंग सूत्र में किसका वर्णन है?
शुभ-अशुभ कर्मो के फलस्वरूप होनेवाले परिणाम का ।
शुभ-अशुभ कर्मो के फलस्वरूप होनेवाले परिणाम का ।
1109 विपाक सूत्र के कितने श्रुतस्कंन्ध हैं?
दो ।
दो ।
1110 विपाक सूत्र के दो श्रुतस्कंन्ध के नाम क्या है?
1. दुःख विपाक 2. सुख विपाक ।
1. दुःख विपाक 2. सुख विपाक ।
1111 विपाक सूत्र में कितने अध्ययन है?
20 अध्ययन ।
20 अध्ययन ।
1112 विपाक सूत्र मे कितने उद्देशक काल व समुद्देशक काल है?
20-20 (बीस-बीस )
20-20 (बीस-बीस )
1113 विपाक सूत्र मे कितने पद है?
संख्यात हजार पद ।
संख्यात हजार पद ।
1114 बारहवें अंग सूत्र का नाम क्या है?
दृष्टिवाद ।
दृष्टिवाद ।
1115 दृष्टिवाद सूत्र के कितने भेद है?
पाँच- परिकर्म,सूत्र, पूर्वगत,अनुयोग, चूलिका ।
पाँच- परिकर्म,सूत्र, पूर्वगत,अनुयोग, चूलिका ।
1116 सूत्र के कितने भेद है?
22 सूत्र मूल हैं,विभिन्न भेंदों के 88 प्रकार के होते हैं । 22 छिन्नछेदनय, 22 अछिन्नछेदनय ,22 तीन नय ,22 चार नय वालें यों 4 प्रकार से 22 सूत्रों की व्याख्या करने से 88 सूत्र हो जाते हैं ।
22 सूत्र मूल हैं,विभिन्न भेंदों के 88 प्रकार के होते हैं । 22 छिन्नछेदनय, 22 अछिन्नछेदनय ,22 तीन नय ,22 चार नय वालें यों 4 प्रकार से 22 सूत्रों की व्याख्या करने से 88 सूत्र हो जाते हैं ।
1117 परिकर्म के कितने भेद और प्रभेद है?
7 मूल भेद और उत्तर भेद 14+14+11+11+11+11+11+11=83 भेद हैं।
7 मूल भेद और उत्तर भेद 14+14+11+11+11+11+11+11=83 भेद हैं।
1118 पूर्वगत कितने है?
14 पूर्व ।
14 पूर्व ।
1119 चौदह पूर्वो के कितने पद थे?
83 करोड़,26 लाख ,80हजार 5 पद थे । एेसा ही टीका गंर्थो मे मिलता हैं ।
83 करोड़,26 लाख ,80हजार 5 पद थे । एेसा ही टीका गंर्थो मे मिलता हैं ।
1120 चौदह पूर्वो मे कितनी वस्तु है?
225 वस्तु ।
225 वस्तु ।
1121 चौदह पूर्वो में कितनी चूलिकाएं है?
आदि के चार पूर्वो की 4,12,8,10=34 चूलिकाएं कही गई है।
आदि के चार पूर्वो की 4,12,8,10=34 चूलिकाएं कही गई है।
1122 अनुयोग कितने प्रकार के है?
दो प्रकार का - मूल प्रथमानुयोग गंडिकानुयोग ।
दो प्रकार का - मूल प्रथमानुयोग गंडिकानुयोग ।
1123 चौदह पूर्वो को लिखने में कितने हाथी प्रमाण स्याही लगती है?
16,383 हाथी प्रमाण स्याही की आवश्यकता लगती हैं।
16,383 हाथी प्रमाण स्याही की आवश्यकता लगती हैं।
1124 बारहवां अंग सूत्र अभी उपलब्ध हैं अथवा नहीं ?
नहीं हैं विलुप्त हो गया है।
नहीं हैं विलुप्त हो गया है।
1125 12 अंगसूत्रों को श्रुतज्ञान के कौन कौन से भेंदों में लिए जाते हैं?
अंगप्रविष्ट श्रुत में ।
अंगप्रविष्ट श्रुत में ।
1126 12 उपांग कौन -कौन से है?
औपपातिक, राजप्रशनीय, जीवाजीवाभिगम, प्रज्ञापना, जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, चंद्र प्रज्ञप्ति सूर्यप्रज्ञप्ति, निरयावलिका, पुष्पिका,पुष्पचुलिका, वृष्णिदशासूत्र ।
औपपातिक, राजप्रशनीय, जीवाजीवाभिगम, प्रज्ञापना, जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, चंद्र प्रज्ञप्ति सूर्यप्रज्ञप्ति, निरयावलिका, पुष्पिका,पुष्पचुलिका, वृष्णिदशासूत्र ।
1127 अंगसूत्र और उपांगसूत्र में क्या अंतर है?
अंगसूत्र गणधरों की देन है जबकि उपांगसूत्र अंगसूत्र में वर्णित विषय का आवश्यकतानुसार विशेष कथन स्थविर आदि आचार्यो ने किया हैं।
अंगसूत्र गणधरों की देन है जबकि उपांगसूत्र अंगसूत्र में वर्णित विषय का आवश्यकतानुसार विशेष कथन स्थविर आदि आचार्यो ने किया हैं।
1128 अंगसूत्र और उपांग सूत्र को किसी उदाहरण द्वारा समझाइये?
जैसे शरीर के अंग हाथ पैर आदि होते हैं और अंगुलिया नाखून आदि उसके उपांग होते हैं, उसी प्रकार 12 अंगसूत्रों के 12 उपांग हैं।
जैसे शरीर के अंग हाथ पैर आदि होते हैं और अंगुलिया नाखून आदि उसके उपांग होते हैं, उसी प्रकार 12 अंगसूत्रों के 12 उपांग हैं।
"बारह उपांग -सूत्र"
1129 पहले सूत्र का नाम क्या है?
उववाई (औपपातिक)सूत्र ।
उववाई (औपपातिक)सूत्र ।
1130 उववाई सूत्र में मुख्यतया किसका वर्णन है?
चंपा नगरी,कोणिकराजा,भगवान महावीर ,साधु के गुण, तप के 12 भेद ,समवशरण की रचना , चार गतियों में जाने के कारण आदि मोक्ष तक वर्णन हैं।
चंपा नगरी,कोणिकराजा,भगवान महावीर ,साधु के गुण, तप के 12 भेद ,समवशरण की रचना , चार गतियों में जाने के कारण आदि मोक्ष तक वर्णन हैं।
1131 उववाई सूत्र का मूल गाथा प्रमाण कितना है?
1167( एक हजार एक सौ सडसठ)।
1167( एक हजार एक सौ सडसठ)।
1132 दुसरे उपांग सूत्र का नाम क्या है?
रायप्पसेणी सूत्र (राजप्रश्नीय सूत्र)
रायप्पसेणी सूत्र (राजप्रश्नीय सूत्र)
1133 राजप्रश्नीय सूत्र में किसका वर्णन है?
राजा परदेशी (प्रदेशी) का जीवन चरित्र हैं।
राजा परदेशी (प्रदेशी) का जीवन चरित्र हैं।
1134 राजा प्रदेशी का प्रधान कौन था ?
चित्त प्रधान ।
चित्त प्रधान ।
1135 राजा प्रदेशी का संवाद किसके साथ हुआ?
पाश्वॅनाथ भगवान की परम्परा के श्री केशी श्रमण से ।
पाश्वॅनाथ भगवान की परम्परा के श्री केशी श्रमण से ।
1136 राजा प्रदेशी को धर्मावलंबी किसने बनाया ?
केशीस्वामी ।
केशीस्वामी ।
1137 राजा प्रदेशी को पारणे में जहर किसने दिया?
महारानी सूर्यकांता ने ।
महारानी सूर्यकांता ने ।
1138 राजा प्रदेशी को रानी सूर्यकांता ने जहर क्यों दिया?
विषयाभिलाषा की पूर्ति नहीं होने के कारण ।
विषयाभिलाषा की पूर्ति नहीं होने के कारण ।
1139 राजा प्रदेशी को मारणान्तिक उपसर्ग किसने दिया?
रानी सूर्यकांता ने ।
रानी सूर्यकांता ने ।
1140 राजा प्रदेशी मरकर क्या बने?
पहले देवलोक के सूर्याभ विमान में सूर्याभ देव।
पहले देवलोक के सूर्याभ विमान में सूर्याभ देव।
1141 राजा प्रदेशी देवलोक से च्यवकर कहाँ उत्पन्न होंगे ?
महाविदेह क्षेत्र में मनुष्य बनेंगे ।
महाविदेह क्षेत्र में मनुष्य बनेंगे ।
1142 राजा प्रदेशी का महाविदेह क्षेत्र में क्या नाम होगा?
दृढ़प्रतिज्ञ ।
दृढ़प्रतिज्ञ ।
1143 राजा प्रदेशी दृढ़प्रतिज्ञ के भव मे क्या करेगे?
दीक्षा लेकर साधना करके मोक्ष जायेंगे ।
दीक्षा लेकर साधना करके मोक्ष जायेंगे ।
1144 राजप्रश्नीय सूत्र का मूल गाथा प्रणाम कितना हैं?
2078 मूल गाथाएँ हैं।
2078 मूल गाथाएँ हैं।
1145 राजप्रश्नीय सूत्र किस सूत्र का उपांग सूत्र है?
सूत्रकृतांग सूत्र का ।
सूत्रकृतांग सूत्र का ।
1146 तीसरे उपांग सूत्र का नाम क्या है?
जीवाजीवाभिगम सूत्र ।
जीवाजीवाभिगम सूत्र ।
1147 तीसरे उपांग सूत्र मे किसका वर्णन हैं?
21/२ द्वीप , 24 दड़क , विजय द्वार आदि का वर्णन हैं।
21/२ द्वीप , 24 दड़क , विजय द्वार आदि का वर्णन हैं।
1148 जीवाजीवाभिगम सूत्र किस अंगसूत्र का उपांग हैं?
स्थानांग सूत्र का उपांग हैं।
स्थानांग सूत्र का उपांग हैं।
1149 जीवाजीवाभिगम सूत्र का मूल गाथा प्रमाण कितना हैं?
4,700 गाथा प्रमाण है।
4,700 गाथा प्रमाण है।
1150 जीवाजीवाभिगम सूत्र के मुख्य प्रतिपाद्द विषय कितने व कौन कौन से हैं?
2 विषय जीव और अजीवों का वर्णन हैं।
2 विषय जीव और अजीवों का वर्णन हैं।
1151 जीवाजीवाभिगम सूत्र में कितनी प्रतिपत्तियाँ हैं?
10 (दस)
10 (दस)
1152 चौथे उपांग सूत्र का नाम क्या हैं?
प्रज्ञापना सूत्र ।
प्रज्ञापना सूत्र ।
1153 चौथा उपांग सूत्र किस अंग सूत्र से उद्धत हैं?
समवायांग सूत्र में ।
समवायांग सूत्र में ।
1154 प्रज्ञापना सूत्र की रचना किसने की?
श्यामाचार्य ने (कालिकाचार्य )
श्यामाचार्य ने (कालिकाचार्य )
1155 प्रज्ञापना सूत्र में कितने पद हैं?
36 पद ।
36 पद ।
1156 प्रज्ञापना सूत्र का मूल गाथा परिमाण कितना हैं?
7,787 गाथा प्रमाण ।
7,787 गाथा प्रमाण ।
1157 प्रज्ञापना सूत्र के रचनाकार की प्रशंसा भगवान सीमंधर ने किस रुप में की?
निगोद व्याख्याता के रुप में ।
निगोद व्याख्याता के रुप में ।
1158 किस इन्द्र ने बाह्मण का रुप बनाकर श्यामाचार्य के निगोद विषयक ज्ञान की परीक्षा ली?
शक्रेन्द्र ने।
शक्रेन्द्र ने।
1159 श्यामाचार्य को कितने पूर्वो का ज्ञान था?
10 पूर्वो का ज्ञान ।
10 पूर्वो का ज्ञान ।
1160 पाँचवे उपांग सूत्र का नाम क्या हैं?
जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र ।
जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र ।
1161 जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र किस अंग सूत्र का उपांग सूत्र है?
भगवती सूत्र का।
भगवती सूत्र का।
1162 जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र में किसका वर्णन हैं?
जम्बुद्वीप के पर्वत क्षेत्र,नदी,द्रह, ६ आरा ,भगवान ऋषभदेव चक्रवर्ती भरत के ६ खण्ड साधना ,९ निधि, १४रत्न, ज्योतिषचक्र आदि का वर्णन हैं।
जम्बुद्वीप के पर्वत क्षेत्र,नदी,द्रह, ६ आरा ,भगवान ऋषभदेव चक्रवर्ती भरत के ६ खण्ड साधना ,९ निधि, १४रत्न, ज्योतिषचक्र आदि का वर्णन हैं।
1163 जम्बुद्वीप प्रज्ञप्ति का अभी मूल गाथा परिमाण कितने है?
4146 गाथा प्रमाण ।
4146 गाथा प्रमाण ।
1164 चन्द्रप्रज्ञप्ति कौन सा उपांग सूत्र है?
छठा ।
छठा ।
1165 चन्द्रप्रज्ञप्ति किस अंग सूत्र से उद्धृत है?
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र से ।
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र से ।
1166 चन्द्रप्रज्ञप्ति में किसका वर्णन है?
चन्द्र के विमान ,१५ मंडल,गति, नक्षत्र, योग,ग्रहण,राहु,चंद्रसंवत्सर आदि विषयों का वर्णन हैं।
चन्द्र के विमान ,१५ मंडल,गति, नक्षत्र, योग,ग्रहण,राहु,चंद्रसंवत्सर आदि विषयों का वर्णन हैं।
1167 चन्द्रप्रज्ञप्ति का वर्तमान में मूल गाथा परिमाण कितने है?
2,200 गाथा प्रमाण ।
2,200 गाथा प्रमाण ।
1168 चन्द्रप्रज्ञप्ति की रचना किस नगरी मे हुई?
मिथिला में।
मिथिला में।
1169 चन्द्रप्रज्ञप्ति सूत्र की पृच्छा भगवान महावीर से गौतम स्वामी ने कहाँ की ?
मिथिला के मणिभद्र चैत्य में ।
मिथिला के मणिभद्र चैत्य में ।
1170 चन्द्रप्रज्ञप्ति सूत्र के कितने प्राभृत हैं?
20 प्राभृत ।
20 प्राभृत ।
1171 चन्द्रप्रज्ञप्ति सूत्र के कितने प्राभृत-प्राभृत हैं?
33 प्राभृत-प्राभृत ।
33 प्राभृत-प्राभृत ।
1172 सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र कौन सा उपांग सूत्र हैं?
सातवां ।
सातवां ।
1173 सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र किस अंग सूत्र से उद्धत हैं?
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र।
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र।
1174 सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र में किसका वर्णन है?
सूर्य के विमान , १८४ मंडल, दक्षिणापन,उत्तरायण,पर्वराहु,दिनमान,सूर्यसंवत्सर,गणित आदि विषय का वर्णन हैं।
सूर्य के विमान , १८४ मंडल, दक्षिणापन,उत्तरायण,पर्वराहु,दिनमान,सूर्यसंवत्सर,गणित आदि विषय का वर्णन हैं।
1175 सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र का वर्तमान में गाथा परिमाण कितना प्रमाण हैं?
2200गाथा प्रमाण ।
2200गाथा प्रमाण ।
1176 सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र की पृच्छा किसने कहाँ की?
गौतम स्वामी ने मिथिला में की ।
गौतम स्वामी ने मिथिला में की ।
1177 सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र की पृच्छा किस चैत्य में किससे की?
मणिभद्र चैत्य में भगवान महावीर से की।
मणिभद्र चैत्य में भगवान महावीर से की।
1178 सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र में कितने प्राभृत हैं?
20 प्राभृत ।
20 प्राभृत ।
1179 सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र में कितने प्राभृत-प्राभृत है?
33 प्राभृत-प्राभृत ।
33 प्राभृत-प्राभृत ।
1180 निरयावलिका कौन से नंबर का उपांग सूत्र है?
आठवें नम्बर का।
आठवें नम्बर का।
1181 निरयावलिका किस अंग सूत्र से उद्धत है?
उपासकदशांग सूत्र से।
उपासकदशांग सूत्र से।
1182 निरयावलिका में कितने अध्ययन हैं?
दस ।
दस ।
1183 निरयावलिका में किसका वर्णन हैं?
श्रेणीक राजा के पुत्र एंव काली आदि 10 रानियों के आत्मज काल आदि 10 कुमारों का ।
श्रेणीक राजा के पुत्र एंव काली आदि 10 रानियों के आत्मज काल आदि 10 कुमारों का ।
1184 चेलना रानी के सबसे बडे़ पुत्र का नाम किया है?
कोणिक ।
कोणिक ।
1185 कोणिक कुपूत्र किस कारण कहलाया ?
अपने देव और गुरु तुल्य पिता को बंदी बनाकर जेल में डालकर स्वयं राजगद्दी पर बैठ गया ।
अपने देव और गुरु तुल्य पिता को बंदी बनाकर जेल में डालकर स्वयं राजगद्दी पर बैठ गया ।
1186 श्रेणिक राजा के पास दो दिव्य रत्न कौन से थे?
1 सेचनक गंध हस्ती , 2 देव प्रदत 18 लड़ी हार ( १८ सेर वाला हार )।
1 सेचनक गंध हस्ती , 2 देव प्रदत 18 लड़ी हार ( १८ सेर वाला हार )।
1187 श्रेणिक ने ये दोनों श्रेष्ठ चीजें किसको दी ?
महारानी चेलना के लघुपुत्र हल्ल और विहल्लकुमार को दी ।
महारानी चेलना के लघुपुत्र हल्ल और विहल्लकुमार को दी ।
1188 कोणिक राजा का श्रेणिक राजा के प्रति पूर्वगत वैर कब उपशांत हुआ ?
माता चेलना के समझाने पर ।
माता चेलना के समझाने पर ।
1189 कोणिक पिता को बन्धन मुक्त करने आ रहा था तब श्रेणिक ने क्या किया ?
तालपुट -विषवाली मुद्रिका से प्राणान्त कर लिया ।
तालपुट -विषवाली मुद्रिका से प्राणान्त कर लिया ।
1190 श्रेणिक राजा मरकर कहाँ गये ?
प्रथम रत्नप्रभा नरक मे ।
प्रथम रत्नप्रभा नरक मे ।
1191 श्रेणिक का जीव नरक से निकलकर कहाँ पर क्या बनेगे ?
भरत क्षेत्र में पहले तीर्थकर बनेगे ।
भरत क्षेत्र में पहले तीर्थकर बनेगे ।
1192 पितृ शोक से विहवल्ल कोणिक ने क्या किया?
राजगृही छोड़कर चंपा नगरी बसा ली ।
राजगृही छोड़कर चंपा नगरी बसा ली ।
1193 हार व हाथी लेकर हल्ल और विहल्ल कुमार ने कहाँ पर किसकी शरण ली ?
वैशाली में अपने नाना -चेटक राजा की शरण ली।
वैशाली में अपने नाना -चेटक राजा की शरण ली।
1194 शरणागत की रक्षा के लिये राजा चेटक का साथ किसने निभाया ?
9 मल्लवी , 9 लिच्छवी इन 18 देशों के राजाओं ने जो चेटक राजा के मित्र थे ।
9 मल्लवी , 9 लिच्छवी इन 18 देशों के राजाओं ने जो चेटक राजा के मित्र थे ।
1195 युद्ध मे कोणिक ने किन इन्द्रों की सहायता ली?
चमरेन्द्र व शक्रेन्द्र ।
चमरेन्द्र व शक्रेन्द्र ।
1196 हार व हाथी को प्राप्त करने के लिए कोणिक को किसने उकसाया ?
कोणिक की रानी पद्मावती ने ।
कोणिक की रानी पद्मावती ने ।
1197 चेटक व कोणिक राजा के बीच कौन कौन से युद्ध हुये?
रथमूसल महासंग्राम व महाशिलाकंटक ।
रथमूसल महासंग्राम व महाशिलाकंटक ।
1198 इन दोनों इन्द्रों ने कोणिक की सहायता क्यों की ?
कोणिक के प्रति पूर्व भव के स्नेह के कारण एंव पूर्व संगतिक एंव पर्याय संगतिक होने के कारण ।
कोणिक के प्रति पूर्व भव के स्नेह के कारण एंव पूर्व संगतिक एंव पर्याय संगतिक होने के कारण ।
1199 युद्ध में विजयी होने पर भी क्या कोणिक को हार व हाथी मिला ?
नहीं मिला ।
नहीं मिला ।
1200 हार व हाथी क्यो नही मिले ?
हार को देवता ले गये एंव हाथी आग की खाई में गिरकर मर गया ।
हार को देवता ले गये एंव हाथी आग की खाई में गिरकर मर गया ।
1201 चेटक राजा कितने व्रतधारी श्रावक थे ?
बारह व्रतधारी श्रावक थे ।
बारह व्रतधारी श्रावक थे ।
Comments
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
नाराच का मिलान
जवाब देंहटाएं