धर्म रुचि अनगारधर्म भावना
#भावना - 34
धर्म भावना
जाचे सुर तरु देत सुख, चिन्तत चिन्ता रैन।
बिन जाचे बिन चिन्तये, धर्म सकल सुख दैन।।
धर्म करत संसार सुख , धर्म करत निरवान ।
धर्म पंथ साधे बिना , नर तिर्यंच समान ।12।
दया मूलक धर्मभावना के लिए उत्कृष्ट दृष्टांत है धर्मरूचि अणगार का।
आचार्य धर्मघोष के शिष्य धर्मरूचि अणगार एकबार तपस्या के पारणे पर गुरु आज्ञा लेकर गोचरी हेतु निकले। एक नागश्री ब्राह्मणी के घर गलती से कड़वे तुंबे की सब्जी बन गई थी। नागश्री ने उस सारी सब्जी को योग्य स्थान पर फेंकने की जगह इन संत को मना करने के बाद भी वहोरा दी।
मुनि ज्यादा सब्जी देख अन्य गोचरी लिए बिना ही गुरु के पास आये और विनययुक्त अपनी गोचरी गुरुदेव को बतायी। गुरुदेव ने उस सब्जी को सूंघकर जान लिया कि वह सब्जी अत्यंत विषैली है। इसे खाने से प्राण जा सकते है। आचार्य ने उस सब्जी को निर्वद्य स्थान पर परठने की आज्ञा दे दी।
गुरु आज्ञा मानकर मुनि वन में एक निर्वद्य स्थान पर आये। वह सब्जी किसी अन्य जीव को नुकसान न पहुंचाये इस हेतु सब्जी की एक बूंद जमीन पर डाली। उस के घी व मसाले की सुगंध से खींचकर कुछ ही क्षणों में कई चींटियां वहाँ आ गई। सब्जी खाते ही वे सब मृत्यु को प्राप्त हुई , यह देखकर करुणा के अवतार मुनि कांप उठे। यदि सारी सब्जी यहां डाल दी तो कितने ही मूक जीवो की हिंसा हो जायेगी।
मुनि ने चिंतन किया, ऐसे कोई भी स्थान पर सब्जी डाली तो ऐसे छोटे जीव खींचकर आ ही जायेंगे व अनजाने उस सब्जी को खाएंगे। तो उन सभी की मृत्यु निश्चित है। ऐसा कौन सा निर्वद्य स्थान है जंहा कोई जीव न आये। और किसी जीव को अपने प्राण त्यागना न पड़े। सोचते-सोचते मुनि को अपना पेट सबसे उचित स्थान लगा। यदि यह सारी सब्जी वह खुद ही खा ले तो अन्य बहुत से जीव बच जायेंगे।
ऐसे चिंतन के बाद वह सारी सब्जी उन्होंने अपने उदरस्थ कर ली। विष ने अपना असर दिखाया। शुभ भावों में रमण करते हुए संथारा लेकर मुनि ने अपार जीवो के प्राण बचाकर अपने प्राण त्याग दिए। और देवलोक में उत्पन्न हुए। यह है धर्म भावना - अन्य जीवों के लिए करुणा का साक्षात दृष्टांत।
हम भी इन महात्माओं से प्रेरणा लेकर अपने कल्याण के लिये धर्मभावना का चिंतन करे।
सन्दर्भ : - जैन तत्त्व प्रकाश व अन्य ग्रंथ।
जिनवाणी विपरीत अंशमात्र प्ररूपणा की हो तो मिच्छामी दुक्कडम।
*भावना भवनाशिनी* का चिंतन व कथानक की श्रेणी आज इस अंतिम पोस्ट के साथ पूर्ण होती है। पूरी श्रृंखला में जाने अनजाने लगे सभी दोषों के लिए हृदय से मिच्छामी दुक्कडम। सभी वाचक वर्ग ने उत्साह बढाया उन सभी का हृदयपूर्वक धन्यवाद।
प्रणाम
🙏
धर्म भावना
जाचे सुर तरु देत सुख, चिन्तत चिन्ता रैन।
बिन जाचे बिन चिन्तये, धर्म सकल सुख दैन।।
धर्म करत संसार सुख , धर्म करत निरवान ।
धर्म पंथ साधे बिना , नर तिर्यंच समान ।12।
दया मूलक धर्मभावना के लिए उत्कृष्ट दृष्टांत है धर्मरूचि अणगार का।
आचार्य धर्मघोष के शिष्य धर्मरूचि अणगार एकबार तपस्या के पारणे पर गुरु आज्ञा लेकर गोचरी हेतु निकले। एक नागश्री ब्राह्मणी के घर गलती से कड़वे तुंबे की सब्जी बन गई थी। नागश्री ने उस सारी सब्जी को योग्य स्थान पर फेंकने की जगह इन संत को मना करने के बाद भी वहोरा दी।
मुनि ज्यादा सब्जी देख अन्य गोचरी लिए बिना ही गुरु के पास आये और विनययुक्त अपनी गोचरी गुरुदेव को बतायी। गुरुदेव ने उस सब्जी को सूंघकर जान लिया कि वह सब्जी अत्यंत विषैली है। इसे खाने से प्राण जा सकते है। आचार्य ने उस सब्जी को निर्वद्य स्थान पर परठने की आज्ञा दे दी।
गुरु आज्ञा मानकर मुनि वन में एक निर्वद्य स्थान पर आये। वह सब्जी किसी अन्य जीव को नुकसान न पहुंचाये इस हेतु सब्जी की एक बूंद जमीन पर डाली। उस के घी व मसाले की सुगंध से खींचकर कुछ ही क्षणों में कई चींटियां वहाँ आ गई। सब्जी खाते ही वे सब मृत्यु को प्राप्त हुई , यह देखकर करुणा के अवतार मुनि कांप उठे। यदि सारी सब्जी यहां डाल दी तो कितने ही मूक जीवो की हिंसा हो जायेगी।
मुनि ने चिंतन किया, ऐसे कोई भी स्थान पर सब्जी डाली तो ऐसे छोटे जीव खींचकर आ ही जायेंगे व अनजाने उस सब्जी को खाएंगे। तो उन सभी की मृत्यु निश्चित है। ऐसा कौन सा निर्वद्य स्थान है जंहा कोई जीव न आये। और किसी जीव को अपने प्राण त्यागना न पड़े। सोचते-सोचते मुनि को अपना पेट सबसे उचित स्थान लगा। यदि यह सारी सब्जी वह खुद ही खा ले तो अन्य बहुत से जीव बच जायेंगे।
ऐसे चिंतन के बाद वह सारी सब्जी उन्होंने अपने उदरस्थ कर ली। विष ने अपना असर दिखाया। शुभ भावों में रमण करते हुए संथारा लेकर मुनि ने अपार जीवो के प्राण बचाकर अपने प्राण त्याग दिए। और देवलोक में उत्पन्न हुए। यह है धर्म भावना - अन्य जीवों के लिए करुणा का साक्षात दृष्टांत।
हम भी इन महात्माओं से प्रेरणा लेकर अपने कल्याण के लिये धर्मभावना का चिंतन करे।
सन्दर्भ : - जैन तत्त्व प्रकाश व अन्य ग्रंथ।
जिनवाणी विपरीत अंशमात्र प्ररूपणा की हो तो मिच्छामी दुक्कडम।
*भावना भवनाशिनी* का चिंतन व कथानक की श्रेणी आज इस अंतिम पोस्ट के साथ पूर्ण होती है। पूरी श्रृंखला में जाने अनजाने लगे सभी दोषों के लिए हृदय से मिच्छामी दुक्कडम। सभी वाचक वर्ग ने उत्साह बढाया उन सभी का हृदयपूर्वक धन्यवाद।
प्रणाम
🙏
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