उत्तराध्ययन के तीसराअध्ययन




🔴  उत्तराध्ययन सूत्र  प्रश्नावली

1  भगवान  महावीर  के उपदेशों के
  संकलन  शास्त्रों  को क्या कहते है
उ    आगम

2  प्रभु  महावीर। की  अंतीम  वाणी
    कौनसी  थी ❓❓❓
उ  उत्तराध्ययन सूत्र,  विपाक  सूत्र

3  भ. महावीर  की  अंतिम  देशना
  किस  नगर  में  प्रवाहित  हुई❓❓
उ   पावापुरी में

4  उत्तराध्ययन सूत्र  में  कितने अध्ययन  है❓❓❓❓
उ   36

5  उत्तराध्ययन  सूत्र  कौनसा  सूत्र है
उ    मूलसूत्र

6  उत्तराध्ययन  सूत्र  का  दुसरा नाम
     क्या  है❓❓❓❓
उ। अप्रश्न  व्याकरण

7  उत्तराध्ययन  का  क्या अर्थ क्या है
उ। उत्तर + अध्ययन  इन  दो  शब्दों से
उत्तराध्ययन  बनता  हैं

8 अंतिम  देशना  के  समय भ. महावीर की उम्र कितनी थी❓❓
उ।   72.  वर्ष

9  उत्तराध्ययन  सूत्र  किस भाषा में है
 उ  अर्धमागधि, प्राकृत भाषा में

10  उत्तराध्ययन सूत्र की कुल मिलाकर  कितनी  गाथाएँ है❓❓
उ।   2,000

11  भ,महावीर की देशना का समय
 कितना  था❓❓
उ।   16  प्रहर अर्थात  48  घण्टे

12  निर्वाण  के  समय कौनसा तप था
उ  बेला तप

13  द्वादशांगी  का वर्णन किस शास्त्र
   में  है❓❓❓❓
उ  नंदीसूत्र,  समवायांग  सुत्र

14  चुर्णि के  अनुसार प्रथम  अध्ययन
   का  नाम  क्या  है❓❓❓❓
 उ।   विनय सूत्र

15  उत्तराध्ययन  सूत्र  की नींव
      क्या है❓❓❓
  उ   विनय

16  विनयवान  शिष्य किससे  पुजित
   होता  है❓❓❓❓
उ।  देव  तथा  गंधर्वों से

17  विनय  करते  केवलज्ञान किसे
    हुआ  ❓❓❓
उ   मृगावतीजी

18  द्वितीय  अध्ययन  का  नाम क्या
 उ   परीषह  प्रविभक्ति

19  ज्ञानावरणीय  कर्म से कौनसे
    परिषह  आते  हैं❓❓❓
उ।  प्रज्ञा,  और  अज्ञान

20  क्रोध  के  समय  भिक्षु को किसकी  उपमा  दी  है❓❓
उ   छोटे  बालक  की

21  प्रज्ञा  किसको  कहते  है❓❓
  उ।  विशिष्ट  बुद्धि को

22  लोच  करना  कायक्लेश  तप है
या  परिषह❓❓⁉
 उ  कायक्लेश  तप  है  परिषह नही

23  कौनसा  धर्म  श्रेष्ठ  है❓❓
उ।  आर्यधर्म

24  परिषह  और  उपसर्ग  में क्या
     अंतर  है❓❓❓
उ   परिषह  अपने  अंतराय कर्म के
    कारण  आते  हे, उपसर्ग  मनुष्य,
    तिर्यंच,  देवता के द्वारा दिए जाते है

25  चतुरंगीय  अध्ययन की कितनी
      गाथाएँ  है❓❓❓
 उ    20

 26  जीव  कहाँपर भवभ्रमण कर
   रहा है❓❓❓
उ। आवर्त स्वरुप  योनीचक्र में

27  संयम  में  पुरुषार्थ  किस  कर्म
   के  उदय  से नही  होता❓❓
 उ  चारित्र  मोहनीय  कर्म के उदय से

28  धर्म का निवास स्थान  कौनसा
उ  शुद्ध हृदय में

29  भ. महावीर के समय कितने निन्हव हुए❓❓❓❓
उ   सात

30  भ.  महावीर  के निर्वाण के समय
   कौनसा  ग्रह  लग  रहा था❓❓
उ   भस्मक  ग्रह







    *।। श्रीमहावीराय नमः।।*
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🎄🎄🎄🎄2️⃣🎄🎄🎄🎄
*🔸🔸श्री उत्तराध्ययन सूत्र🔸🔸*
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*3️⃣ चतुरंगीय (तीसरा अध्ययन)*
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*🙏उत्तराध्ययन के तीसरे अध्ययन में*
(1) मनुष्यता (2) धर्मश्रुति (3) श्रद्धा और
(4) तप-संयम में पुरुषार्थ।
*इन चार अंगों की दुर्लभता का प्रतिपादन है।*

*☝️जीवन के ये चार प्रशस्त अंग--विभाग है। ये अंग प्रत्येक व्यक्ति के द्वारा सहज प्राप्य नहीं है।चारों का एकत्र समाहार बिरलों में पाया जाता है।जिनमें ये चारों अंग नहीं पाए जाते वे धर्म की पूर्ण आराधना नहीं कर सकते।एक की भी कमी उनके जीवन में लंगड़ापन ला देती है।इन चार अंगों की दुर्लभता प्रत्येक के विवेचन से समझी जा सकती है।*

*(1) मनुष्यता :- -*
☝️●आत्मा से परमात्मा बनने का एकमात्र अवसर मनुष्य-जन्म में प्राप्त होता है। मनुष्य का विवेक जागृत होता है।वह नारक की तरह अति दु:खी और देव की तरह अति सुखी नहीं होता अतः वह धर्म की पूर्ण आराधना का उपयुक्त अधिकारी है।

       ●तिर्यंच जगत में क्वचित पूर्व संस्कारों से प्रेरित होकर धर्माराधना होती है, परन्तु वह अधुरी रहती है।

      ● देवता धर्म की पूरी आराधना नहीं कर पाते।वे विलास में ही अधिक समय गवां देते हैं।श्रामण्य के लिए वे योग्य नहीं होते।

     ● नैरकिय जीव दु:खों से प्रताड़ित होते हैं अतः उनका धार्मिक-विवेक प्रबुद्ध नहीं होता।

*☝️जीव अपने कृत कर्मों के कारण कभी देवलोक में,कभी तिर्यंच में,कभी नरक में और कभी असुरों के निकाय में उत्पन्न होता है।हम सौभाग्य से(काल-क्रम से) मनुष्य भव को प्राप्त है।इस प्रकार चार दुर्लभ अंगों में से एक हमें प्राप्त हुआ है।हमने एक दुर्लभता को प्राप्त कर लिया है।*
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*(2) धर्म श्रुति :- -*
मनुष्य-शरीर प्राप्त होने पर भी *धर्म की श्रुति* दुर्लभ होती है।निर्युक्तिकार ने श्रुति की दुर्लभता के 13 कारण बतलाए हैं...

*1.आलस्य.* मनुष्य आलस्य के वशीभूत होकर धर्म के प्रति उद्यम नहीं करता।वह कभी साधु-साध्वियों के पास धर्म-श्रवण हेतु नहीं जाता।

  *2.मोह.* व्यक्ति गृहस्थ के कर्तव्य निभाते-निभाते उसमें एक ममत्व भाव पैदा हो जाता है और वह पूरे समय उसी में डूबा रहता है।उसमें हेय या उपादेय के विवेक का अभाव हो जाता है।

  *3. अवज्ञाभाव* श्रमणों के प्रति अवज्ञाभाव आ जाता है वह सोचता है कि ये श्रमण क्या जानते हैं ? मैं इनसे अधिक जानता हूँ। *ये मुझे क्या उपदेश देंगे?*

*4. अहंकार* व्यक्ति के मन में जाति, कुल, रूप, ऐश्वर्य का अहंकार जाग जाता है तब वह सोचता है---ये मुनि अन्य जाति के हैं।मेरा कुल और जाति इतनी उत्तम है, *फिर मैं इनके पास क्यों जाऊं ?*

*5. क्रोध* किसी के मन में श्रमणों के प्रति प्रीति नहीं होती।वह उनको देखते ही कुपित हो जाता है, सदा उनके प्रति द्वेष भाव रखता है।वह भी धर्म-श्रवण के लिए नहीं जा पाता।

*6. प्रमाद* कुछ व्यक्ति निरन्तर प्रमाद में रहते हैं, नींद लेना और खाना-पीना ही उन्हें सुहाता है।वे भी धर्म-श्रवण से वंचित रहते हैं।

*7. कृपणता* कुछ व्यक्ति अत्यंत कृपण होते हैं।वे सोचते हैं कि धर्मगुरुओं के पास जाएंगे तो अर्थ का निश्चय ही नुकसान होगा।उनके वहाँ जाने से व्यर्थ पैसा खर्च हो जाएगा।इसलिए इनसे दूर रहना ही अच्छा समझने लगते है।

 *8. भय* व्यक्ति जब धर्म प्रवचन में बार-बार नारकीय जीवों की वेदना के बारे में सुनता है तो उसके रोंगटे खड़े हो जाते हैं और मन भय से व्याप्त हो जाता है। *यह भय भी धर्म-श्रवण में बाधक बनता है।*

  *9. शोक* शोक(परिजन-वियोग) या चिंता (बिमारी, आर्थिक नुकसान आदि) और उनकी स्मृति में निरंतर खोए रहना भी धर्म-श्रवण में बाधा उपस्थित करता है।

*10. अज्ञान* जब व्यक्ति का ज्ञान मोहावृत हो जाता है, तब वह मिथ्या धारणाओं में फंस कर धर्म की श्रुति से वंचित रह जाता है।

*11व्याक्षेप :--*  गृहवास में व्यक्ति निरन्तर आकुल-व्याकुल रहता है।वह सोचता है--अभी यह करना है, अभी वह करना है।इससे उसका मन व्याक्षिप्त हो जाता है, और उसके लिए *धर्मश्रुति दुर्लभ हो जाती है।*

*12.कुतुहल* नाटक देखना, संगीत सुनने या अन्य मनोरंजन क्रीड़ाओं में रत रहने से भी व्यक्ति धर्म के प्रति आकृष्ट नहीं हो पाता।

*13. क्रीड़ाप्रियता* कुछ व्यक्ति सांडों को लड़ाने, जूआ खेलने आदि में रत रहते हैं, *वे धर्म-श्रुति का लाभ नहीं ले पाते।
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*(3) श्रद्धा :- -*
व्यक्ति को मनुष्य भव मिल जाता है, धर्मश्रुति भी प्राप्त हो जाती है फिर भी उसमें श्रद्धा होना दुर्लभ है।बहुत से लोग मोक्ष की ओर ले जाने वाले मार्ग को सुनकर भी उससे भ्रष्ट हो जाते हैं।

        *☝️यहाँ पर चूर्णिकार जमाली आदि निह्नवों का उल्लेख करते हैं।ये निह्नव कुछ एक शंकाओं को लेकर नैर्यातृकमार्ग--निर्गृन्थ प्रवचन से भ्रष्ट हो गऐ थे,दूर हो गए थे।*
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*(4) तप--संयम में पराक्रम :- -*
मनुष्य भव, श्रुति और श्रद्धा प्राप्त होने पर भी संयम में पुरूषार्थ होना अत्यंत दुर्लभ है।बहुत से लोग संयम में रुचि रखते हुए भी उसे स्वीकार नहीं करते।

      *🙏मनुष्यत्व को प्राप्त कर जो धर्म को सुनता है, उसमें श्रद्धा करता है- - वह तपस्वी संयम में पुरूषार्थ कर संवृत हो कर्मरजों को धुन डालता है और शाश्वत सिद्ध हो जाता है।*
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*4️⃣ असंस्कृत (असंखयं) चौथा अध्ययन*

असंखयं जीविय मा पमायए
जरोवणीयस्स हु नत्थि ताणं।

*☝️जीवन सांधा नहीं जा सकता ,इसलिए प्रमाद मत करो।*

👉जिसका संस्कार किया जा सके, सांधा जा सके, बढ़ाया जा सके-- *उसको संस्कृत कहा जाता है।*

*☝️जीवन "असंस्कृत" होता है।न उसको सांधा जा सकता है और न बढ़ाया जा सकता है।यही जीवन की सच्चाई है।*

👉सड़े-गले घर की मरम्मत कर उसमें दो-चार वर्ष रहा जा सकता है।किन्तु ऐसा कोई  साधन नहीं है, जिससे टूटे हुए जीवन को सांधा जा सके।

*☝️"जीवन असंस्कृत है---उसका संधान नहीं किया जा सकता, इसलिए व्यक्ति को प्रमाद नहीं करना चाहिए"---यही इस अध्ययन का प्रतिपाद्य है।*

*(1) यह माना जाता था कि धर्म बुढ़ापे में करना चाहिए, पहले नहीं।*
*🙏भगवान ने कहा---* धर्म करने के लिए सब काल उपयुक्त है, बुढ़ापे में कोई त्राण नहीं है।

*(2) लोग धन को त्राण मानना और येनकेन प्रकारेण धन अर्जित करना*
*🙏भगवान ने कहा---* जो व्यक्ति अनुचित साधनों द्वारा धन का अर्जन करते हैं, वे धन को छोड़कर नरक में जाते हैं।यहाँ इस भव में या परभव में धन किसी कि त्राण नहीं बन सकता। *धन का व्यामोह व्यक्ति को सही मार्ग पर जाने नहीं देता।*

*(3) किये हुए कर्मों का फल परभव में मिलता है या यह मानना  कि कर्मों का फल है ही नहीं।*
*🙏भगवान ने कहा---* "किए हुए कर्मों को भोगे बिना छुटकारा नहीं मिलता।कर्मों का फल इस जन्म में भी मिलता है और पर-जन्म में भी।

*(4) यह मान्यता कि एक व्यक्ति बहुतों के लिए कोई कर्म करता है तो उसका परिणाम वे सब भुगतते हैं*
*🙏भगवान ने कहा---* संसारी प्राणी अपने बन्धुजनों के लिए जो साधारण कर्म करते हैं, उस कर्म के फल-भोग के समय वे बन्धुजन बन्धुता नहीं दिखाते, उसका भाग नहीं बंटाते।

*(5) यह मान्यता कि साधना के लिए समूह विघ्न है।व्यक्ति को अकेले में साधना करनी चाहिए*
*भगवान् ने कहा---* "जो स्वतंत्र वृत्ति का त्याग कर गुरु के आश्रयण में साधना करता है, वह मोक्ष पा लेता है।

*(6) यह मान्यता कि छन्द के निरोध से मुक्ति मिलती है तो वह यह कार्य अन्त समय में भी किया जा सकता है*
*🙏भगवान् ने कहा---* "धर्म पीछे(अन्तिम समय में) करेंगे---ऐसी बात वे शाश्वतवादी कर सकते हैं जो अपने आपको अमर मानते हो, उनका यह कथन हो सकता है, परन्तु जो जीवन को क्षण-भंगुर मानते हैं वे भला काल की प्रतिक्षा कैसे करेंगे ? वे काल का विश्वास कैसे करेंगे ?"

*🙏धर्म की उपासना के लिए समय का विभाग अवांछनीय है।व्यक्ति को प्रतिपल अप्रमत्त रहना चाहिए।*

*👏इस प्रकार यह अध्ययन जीवन के प्रति एक सही दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है और मिथ्या मान्यताओं का निरसन करता है।*
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