अभवी

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भाग 1.

1. अभवी यानी जिसमें मोक्ष जाने की योग्यता नहीं होती ।

2. अभवी में चारित्र नहीं होता, मात्र द्रव्य चारित्र होता है । पाँच चारित्रों में मात्र दो चारित्र - सामायिक एवं छेदोपस्थापनीय चारित्र हीं द्रव्य से होते हैं । भाव में चारित्र नहीं होता ।

3. अभवी को परिहार विशुद्ध चारित्र नहीं होता क्योंकि परिहार विशुद्ध चारित्र में नौवें पूर्व की तीसरी आचार वत्थु का ज्ञान न्यूनतम होना अनिवार्य है, जबकि अभवी में नौवें पूर्व की तीसरी आचार वत्थु से कम ज्ञान होता है ।

4. अभवी में आहारक लब्धि नहीं होती ।



5. अभवी आगम व्यवहारी नहीं होते हैं ।

6. अभवी तीर्थंकरों से दान प्राप्त करने भी नहीं जाते क्योंकि तीर्थंकरों के पास जाकर दान लेने की भावना ही नहीं बनती ।

7. अभवी 63 (त्रेसठ) श्लाघनीय पुरुषों की पदवी प्राप्त नहीं कर सकते हैं ।

8. अभवी जीवों की दीक्षा तीर्थंकर परमात्मा के मुखारविन्द से नहीं होती ।

9. अभवी को मोक्ष तत्व पर श्रद्धा नहीं होती है ।

10. अभवी को पांच भावों में से औदयिक, क्षायोपशमिक एवं पारिणामिक ये तीन भाव हो सकते हैं । परंतु औपशमिक एवं क्षायिक भाव नहीं होता ।


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भाग 2.

11. अभवी की गति जीव के 563 भेदों में से 5 अनुत्तर विमान को छोड़कर 553 हो सकती हैं एवं आगति 366 (7 नरक के पर्याप्ता + 48 तिर्यंच + 217 मनुष्य + 94 देव) होती है ।

12.  अभवी भक्ति से, स्वरुचि से, अपनी इच्छा से भगवान् के समवशरण में नहीं आते हैं । स्वामी की आज्ञा से या व्यवहारादि निभाने आते हैं ।

13. अभी वर्तमान में प्रसिद्ध अभवी जीव-
1) संगमदेव,
2) कालसौरिक कसाई,
3) कपिला दासी
4) श्रेणिक की दादी
5) विनयरत्न भट्ट (चंड़प्रद्योतन राजा के राज्य में 12 वर्षों तक साधु वेश में रहा और उदायन राजा की पौषधावस्था में हत्या की)
6) अंगारमर्दनाचार्य ~ 500 शेर शिष्यों का गीदड़ के रुप में नेतृत्व (राजा को स्वप्न आना) जिसकी राजा ने परीक्षा ली । अंतर ह्रदय से दया के भाव नहीं थे ।
7) खंदक जी मुनि के 500 शिष्यों को घाणी में पीलने वाला पालक मंत्री,
8) सोमिल ब्राह्मण,
9) धन्वंतरि वैद्य - भगवान अरिषटनेमि के समय में हुये । त्रस जीवों की हिंसा करता था, छह काय के जीवों की हिंसा कर दवाईयों में मिलाता था ।
10) कृष्ण वासुदेव का पुत्र पालक जिसने भगवान अरिष्टनेमि के चूंटिया भरा था और नख का निशान बनाया ।



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भाग 3.

14. अभवी जीव जो द्रव्य से चारित्र क्रिया के आराधक होते हैं, पुण्यानुबंधी पुण्य का उपार्जन कर सकते हैं मगर सकाम निर्जरा नहीं कर सकते हैं ।

15. जिस प्रकार बाजरे, मक्के, ज्वार के आटे से जलेबी नहीं बन सकती, उसी प्रकार अभवी में मोक्ष जाने की योग्यता ही नहीं है । भव्यपना या अभव्यपना औदयिक भाव में नहीं है । स्वभाव या परिणामिक भाव में है । कर्मों के उदय से होने वाले परिणाम को तो पुरुषार्थ द्वारा नष्ट किया जा सकता है, परन्तु जिससे स्वभाव से ही मोक्ष जाने की योग्यता नहीं है, उसे बदला नहीं जा सकता ।

16. अभवी जीव का स्थान ही पहला गुणस्थान है । वह उस स्थान को छोड़ता ही नहीं है ।

17. अभवी जीवों में आहारक एवं आहारक मिश्र को छोड़कर शेष तेरह योग, तीन दर्शन, तीन अज्ञान और लेश्या छह भी हो सकती है ।

18. अपूर्वकरण एवं अनिवृत्तिकरण मात्र भवी जीव ही कर सकता है । यथा-प्रवृत्तिकरण भवी एवं अभवी दोनों कर सकते हैं ।

19. जघन्य-युक्त-अनंता अभवी जीव व्यवहार राशि की अपेक्षा से है ।

20. अभवी एवं मिथ्यात्वी जीव, वास्तव में आराधक नहीं होते ।

21. अभवी भी निश्चय को छोड़कर शेष धर्म आराधना कर सकता है । यह क्रिया का आराधक होकर, नवग्रैवेयक तक जा सकता है ।(स्वलिंग में)
कल यहां से
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भाग 4.

22. अभवी को 28 लब्धियों में से 15 लब्धियां प्राप्त हो सकती है:-

(1) आमर्षोहि ~ बड़ी नीत के स्पर्श से रोग नष्ट हो जाए
(2) विप्पोसोहि ~ शरीर के स्पर्श से रोग नष्ट हो जाए
(3) खेलोसहि-श्लेष्म
(4) जल्लोसहि-पसीने से
(5) सव्वोसही
(6) अवधिज्ञान-विभंग ज्ञान दोनों
(7) आशीविष
(8) खीर-मधुरोसहि ~ वचन एवं शब्द घी जैसा
(9) कोष्टबुद्धि ~ सीखा ज्ञान भूले नहीं, दिमाग में सुरक्षित रखे
(10) पदानुसारिणी ~ एक पद से अनेक पदों की जानकारी
(11) बीज-बुद्धि ~ थोड़े से विस्तृत जानकारी
(12) तेजो लेश्या
(13) शीत लेश्या
(14) वैक्रिय लब्धि
(15) अक्षीण महानसी ~ खुद सेवन न करे, तब तक खतम नहीं होवे ।


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भाग 5.

23.  8 बोलों की अल्पबहुत्व में -
(1) सबसे थोड़े (कम) अभवी
(2) उनसे पड़वाई सम्यग् दृष्टि अनंत गुणा
(3) उनसे सिद्ध भगवान् अनंत गुणा
(4) उनसे संसारी जीव अनंत गुणा
(5) उनसे पुद़्गल अनंत गुणा
(6) उनसे काल अनंत गुणा
(7) उनसे आकाश प्रदेश अनंत गुणा
(8) उनसे केवलज्ञान-केवलदर्शन की पर्याय अनंत गुणा ।

24. अभवी जीव संख्या में चौथे अनंत जितने हैं ।

25. अभवी जीव मात्र व्यवहार राशि में हैं । अव्यवहार राशि में है, तो वे निकलते नहीं ।

26. अनंत भवी जीव के पीछे एक अभवी जीव होता है । यह भवी एवं अभवी जीवों का अनुपात है ।

27. अभवी में सात समुद़्घातों में से आहारक एवं केवली समुद़्घात छोड़कर पांच समुद़्घात हो सकते हैं ।

28. अभवी से प्रतिबोधित अनंत जीव मिल सकते हैं, भवी से प्रतिबोधित जीव संख्यात मिलते हैं ।

29. अभवी की शुक्ल लेश्या उत्कृष्ट अंतरमुहूर्त अधिक 31 सागरोपम

30. जीवधड़ा में अभवी के 553 भेद बताए गए हैं, इससे सिद्ध होता है कि लोकान्तिक देव भी अभवी हो सकते हैं ।


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भाग 6.

31. भवीपना या अभवीपना अवधिज्ञान का विषय नहीं है । अवधि ज्ञान का विषय रूपी पदार्थों को जानना है, जबकि भवीपना या अभवीपना अरूपी है ।

32. अभवी की दीक्षा वीर्यान्तराय, ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय के क्षयोपशम से होती है ।

33. अभवी को पूर्व-लब्धि नहीं होती, अत: पूर्वों का ज्ञान 'अंतरमुहूर्त' में फेरना नहीं समझा जाता । महाप्राण साधना में विशिष्ट कार्य के आने-जाने पर सभी पूर्वों को सूत्रार्थ के द्वारा गिन लेना, हेमचंद्राचार्य के परिशिष़्ठ पर्व में बताया गया है ।

34. अभवी को नवतत्व व नमस्कार सूत्र के पांच पदों में कितने पद में श्रद्धा होती है ?

अभवी को चौथे ऋतुसूत्र नय की अपेक्षा से नमस्कार सूत्र के पांचों पदों एवं नवतत्वों पर श्रद्धा हो सकती है परन्तु शब्दादि नयों की अपेक्षा एक भी तत्त्व पर श्रद्धा नहीं होती । नव तत्वों में मोक्ष तत्त्व को छोड़कर, शेष आठ तत्वों पर श्रद्धा हो सकती है ।

35. अभवी नववें पूर्व की तीसरी वत्थु से कम का ज्ञान कितने समय में फेर सकते हैं ? -इसका खुलासा आगम में पढ़ने में नहीं आया ।

36. अभवी द्रव्य संथारा कर सकता है पर भाव संथारा नहीं, क्योंकि अभवी का गुणस्थान पहला हीं है । जबकि भाव संथारा पांचवे गुणस्थान से होता है ।

37  अभवी साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका द्रव्य पादोपगमन संथारा कर सकते हैं, भाव संथारा नहीं कर सकते ।



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भाग 7.

38. अभवी के मोहनीय कर्म की छब्बीस (26) प्रकृतियाँ सत्ता में रहती है । मोहनीय कर्म की 28 प्रकृतियों में से सम्यक्त्व मोहनीय एवं मिश्र मोहनीय, ये दो प्रकृतियाँ छोड़कर शेष 26 प्रकृतियाँ पायी जाती है ।

39. अभवी क्या नहीं पाता ? सम्यक्त़्व, समाधिमरण, अनुत्तरविमान, 63 श्लाघ्नीय पुरुषों की पदवी, केवली, गणधर, केवलु व गणधर के हाथों से दीक्षा, त्रायंस्त्रिंषक देव, तीर्थंकर के माता-पिता, स्त्रीपद, आहारक लब्धि, पुलाक लब्धि, चित्त समाधि के दस बोल ।

40. अभवी में एकल विहारी पड़िमा (भिक्षु पड़िमा) नहीं होती है ।

41. अभवी में जिन कल्प नहीं होता ।

42. अभवी को मन:पर्याय ज्ञान नहीं होता ।

43. अभवी को भावों से पश्चाताप नहीं होता ।

44. अभवी उपशम और क्षपक श्रेणी नहीं कर सकता ।

45. अभवी चरम शरीरी नहीं होता ।

46. अभवी शुक्ल पक्षी नहीं होता ।

47. अभवी के शुक्ल ध्यान नहीं होता ।

48. अभवी में मिश्रदृष्टि नहीं पाई जाती ।

49. अभवी में धर्म ध्यान नहीं होता ।

50. अभवी नोसंज्ञोपयुक़्त नहीं होता ।


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भाग 8.

51. अभवी नोसन्नी नोअसन्नी नहीं होता ।

52. अभवी परित्त संसारी नहीं होता ।

53. अभवी अवेदी नहीं होता ।

54. अभवी में ये ग्यारह गुण श्रेणी नहीं होती -
(1) सम्यक़्त्व
(2) देशविरति
(3) सर्वविरति
(4) अप्रमत्त
(5) अनंतानुबंधी विसंयोजक
(6) उपशमक
(7) क्षपक
(8) उपशम श्रेणी
(9) क्षीण मोही
(10) सयोगी केवली
(11) अयोगी केवली

55. पन्नवणा सूत्र में वर्णित नौ आर्यों में से अभवी छह आर्यता प्राप्त कर सकता है । तीन आर्यता निश्चय में प्राप्त नहीं करता - ज्ञान आर्यता, दर्शन आर्यता एवं चारित्र आर्यता ।

56. अभवी के ईर्यापथिक क्रिया नहीं लगती ।

57. अभवी में क्रियावादी समवशरण नहीं होता ।

58. अभवी में आयुष्य बंध को भविष्य में नहीं बांधे-ऐसा नहीं हो सकता अर्थात दो भंग:-
(1) बांधा, बांधे, बांधसी (बांधेगा)
(2) बांध्या नहीं, बांधे, बांधसी (बांधेगा) ।

59. अभवी में ईर्यावही का बंध नहीं होता अर्थात् ग्यारहवें गुणस्थान एवं उससे ऊपर हीं ईर्यापथिकी बांधता है जबकि अभवी पहला गुणस्थान से आगे जा हीं नहीं पाता ।

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भाग 9.

60. अभवी के पर्याप्ता में कार्मण काययोग नहीं होता ।

61. अभवी का पर्याप्ता अनाहारक नहीं होगा ।

62. अभवी को होने वाला अवधिज्ञान का संस्थान जवनालिका वाला नहीं होता, यह संस्थान मात्र अनुत्तर विमानवासी देवों के ही होता है ।

63. अभवी अनुत्तर विमान को नहीं देख सकता ।

64. अभवी सिद्धशिला को नहीं देख सकता ।

65. अभवी पुद़्गल परमाणु से लेकर असंख्यात प्रदेशी स्कन्ध तक को नहीं देख सकता ।

66. अभवी अचित्त महास्कन्ध (सर्व लोकवर्ती सूक्ष्म अनन्त प्रदेशी स्कन्ध) को नहीं देख सकता

67. अभवी के साता वेदनीय का ध्रुव बन्ध नहीं होता । अभवी में व्यवहार के 5 बोलों के सिवाय, शेष 68 बोल पाये जाते हैं ।
(1) संवेग
(2) धर्मश्रद्धा
(3) राग-द्वेष विजय
(4) शैलेषी
(5) अकर्मण्यता,
ये बोल नहीं पाये जाते ।

68. अभवी के आठों हीं कर्मों का उदय रहता है ।

69. अभवी अलोक को नहीं देख सकता ।

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भाग 10.

70. अभवी श्रावकपणा-साधुपणा भाव से प्राप्त नहीं कर सकता । मात्र द्रव्य से श्रावकपणा-साधुपणा पाल सकता है ।

71. अभवी प्रत्येक बुद्ध और स्वयं बुद्ध नहीं होता है ।

72. अभवी में निसर्ग-उपदेशादि दस रुचियां नहीं होती, व्यवहार में एक संक्षेप (देखादेखी) रुचि हो सकती है ।

73. अभवी में निश्चय से सम्यक़्त्व के 5 लक्षणों में से एक भी लक्षण नहीं होता ।

74. अभवी व्यवहार से बकुश, प्रतिसेवना और कषाय कुशील नियण्ठा में निश्चय में नहीं पाया जाता, व्यवहार से ये तीनो पायें जाते हैं ।

75. अभवी में निश्चय में एक भी नियण्ठा नहीं पाया जाता है ।

76. अभवी का सम्पराय बन्ध होता है, ईर्या पथिक बन्ध नहीं होता ।

77. अभवी के वेदनीय एवं आयुष्य कर्म को छोड़कर, शेष छह कर्मों की उदीरणा नहीं होती ।

78. अभवी में सम्यक़्त्त्व पराक्रम के 73 बोलों में से एक भी बोल नहीं पाया जाता ।

79. ऐसा कभी नहीं हुआ, होता हीं नहीं और होगा भी नहीं कि अभवी कभी भवी बन जाय ।

80. निगोद में अभवी दूसरे अनंत जितने और भवी आठवें अनंत जितने मिल सकते हैं ।


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भाग 11.

81. अभवी अप्रथम ही होते हैं, कभी प्रथम नहीं होते (जिस अवस्था को पहली बार प्राप्त की है, वह प्रथम) ।

82. अभवी अचरम ही होते हैं ।

83. अभवी में 141 प्रकृतियों की सत्ता हो सकती है । (आहारक शरीर, आहारक अंगोपांग, आहारक बंधन, आहारक संस्थान, जिन नाम, समकित मोहनीय, मिश्र मोहनीय - ये सात प्रकृति छोड़कर) ।

84. अभवी नोसूक्ष्म नोबादर नहीं होते हैं ।

85. अभवी के सकाम निर्जरा नहीं होती है ।

86. अभवी लवसप्तम देव नहीं हो सकते ।

87. एक भवी से प्रतिबोधित की अपेक्षा, अभवी से प्रतिबोधित अनन्तगुणा ज्यादा होते हैं ।

88. अभवी के निश्चय में बावीस परीषहों में से एक भी परीषह नहीं होता ।

89. अभवी के ज्ञानावरणीय कर्म की तीन प्रकृतियों का क्षयोपशम हो सकता है ।

90. अभवी पल्योपम के संख्यात्वें भाग से अधिक तथा अतीत व अनागत को नहीं जान सकता ।

91. अभवी तीर्थंकर परमात्मा को सुपात्र दान नहीं दे सकता ।

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भाग 12.

92. अभवी, श्रावक व साधु के गुणस्थानों को नहीं जान सकता ।

93. अभवी, मोक्ष पहुंचे जीवों यानि सिद्ध भगवान से अनंतवें भाग जितने हैं और भवी, अभवी से अनंतगुणा ज्यादा हैं । अभवी स्वयं का गुणस्थान जान ले तो भवी हो जायेगा, पर यह संभव नहीं है । भवी ही अपना गुणस्थान जान सकता है ।

94. द्वादशांगी-वाणी में भगवान् ने कहीं पर भी अभवी को संबोधित नहीं किया है ।

95. अभवी का 9 ग्रैवेयक में काल, उत्कृष्ट अनंत काल (असंख्यात पुद़्गल परावर्तन) का है ।

96. दसवें ठाणे में बताये गये दस सुखों में से आठ सुख, अभवी में पाये जाते हैं । (अनाबाध व निष्क्रमण को छोड़कर) ।

97. अभवी सर्वाक्षर सन्निपाती (अक्षरों के संयोग से जितने भी वाक्य बन सकते हैं, उन सबका जिनमें ज्ञान होता है वह सर्वाक्षर सन्निपाती), नहीं बन सकते हैं ।

98. अभवी, श्रुतकेवली नहीं हो सकते हैं ।

99. अभवी, गणधर नहीं हो सकते हैं ।

100. अभवी के बंध प्रायोग्य 120 प्रकृतियों में से 117 का बंध कर सकता है (आहारक द्विक एवं जिन नाम कर्म को छोड़कर) ।

101. अभवी के उदय प्रायोग्य 122 प्रकृतियों में से 117 का उदय हो सकता हैं (आहारकद्विक, समकित मोहनीय, मिश्रमोहनीय, जिन नामकर्म को छोड़कर) ।

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भाग 13.

102. अभवी तीर्थंकर प्रभु के होते हुए दीक्षा नहीं ले सकता ।

103. अभवी के परमशुक्ल लेश्या नहीं होती ।

104. अभवी के ऐसी विशुद्ध शुक्ल लेश्या आ सकती है जो चौथे पांचवें गुणस्थान में नहीं होती ।

105. अभवी के मनोवर्गणा लब्धि हो सकती है । (मनोवर्गणा लब्धि के दण्डक ~ वैमानिक, मनुष्य, असुरकुमार) ।

106. अभवी को यह शंका नहीं होती कि "मैं भवी हूँ या अभवी" ।

107. अभवी के इंगित मरण संथारा नहीं होता ।

108. अभवी में देवगति में एक हाथ की अवगाहना नहीं पाई जाती ।

109. अभवी पूरे लोक में अपनी अवगाहना नहीं फैला सकता और न ही सम्पूर्ण पुद़्गलों को स्पर्श कर सकता है ।

110. अभवी के लिए मति अज्ञान के लिए अभिनिबोधिक ज्ञान का प्रयोग नहीं किया जा सकता ।

111.अभवी आठों आत्माओं का एक साथ स्पर्श नहीं कर सकता । ज्ञान व चारित्र आत्माओं को छोड़कर छह आत्माएं पायी जाती है ।

112. अभवी में मतिज्ञान के एगट्ठिया के 20 बोल नहीं पाये जाते, मतिअज्ञान के बोल पाये जाते हैं ।


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भाग 14.

113. अभवी आठ प्रवचन माता की प्ररूपणा करता है, पालन करता है, परन्तु श्रद्धा स्पर्शना नहीं करता ।

114. अभवी के 39 पुण्य प्रकृतियों का बंध हो सकता है, 42 प्रकृतियों में आहारकद्विक एवं जिन नाम कर्म को छोड़कर ।

115. अभवी के 4 ही प्रकृतियां आयुष्य की एकांत निकाचित बन्धती है और भवी के पाँच प्रकृतियों (चार आयु + जिननाम कर्म) का निकाचित बंध होता है ।

116. अभवी में गम्मा शतकानुसार घर 42 की पृच्छा होगी, 44 की नहीं ।

117. अभवी में गम्मा शतकानुसार जीव 46 की पृच्छा होगी, 48 की नहीं ।

118. अभवी में अनादि-अनंत भंग ही पाया जाता है ।

119. अभवी में आयुष्य के सिवाय उत्कृष्ट प्रदेश बंध नहीं होता ।

120. अभवी में आयुष्य के सिवाय शेष सात कर्मों का जघन्य स्थिति बंध नहीं होता है ।

121. अभवी भव्यद्रव्य देव भावदेव ही बन सकते हैं ।

122. अभवी में 23 में से 15 पदवी ही पायी जा सकती है । (7 एकेन्द्रिय + 7 पंचेंन्द्रिय + मांडलिक राजा) अभवी लब्धी वीर्य की अपेक्षा सवीर्य ही होता है ।

123. अभवी आत्मारंभी, परारंभी व तदुभयारंभी होता है मगर अनारंभी नहीं होता ।


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भाग 15.

124. अभवी में वर्द्धमान या हीयमान भंग न होकर, अनवस्थित भंग ही पाया जाता है ।

125. अभवी के साता वेदनीय का ध्रुव बंध नहीं होता है ।

126. अभवी के आठों कर्मों का उदय रहता है ।

127. अभवी नारद पदवी नहीं पा सकता ।

128. अभवी के जन्मादि महोत्सव पर 64 इन्द्र नहीं आते । चौसठ इन्द्रों के लिए कभी भी वंदनीय पूजनीय नहीं होते ।

129. अभवी में पच्चीस बोल के स्तोक के सातवें बोल में आहारक शरीर छोड़कर बाकी चार शरीर ही पाये जाते हैं ।

130. अभवी में संवर के भेद नहीं पाये जाते हैं । आश्रव के बीसों भेद मिलते हैं ।

131. अभवी में धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय इन तीनों के स्कन्ध छोड़कर ग्यारह भेद अजीव के पाये जाते हैं ।

132. अभवी में पांचों प्रतिक्रमण में से, एक भी प्रतिक्रमण नहीं पाया जाता है ।

133. अभवी अवस्थित रहते हैं, भवों की संख्या कम होती जाती है ।


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भाग 16.

134. पुलाक, निर्ग्रन्थ की शुक्ल लेश्या से भी अभवी की शुक्ल लेश्या का दर्जा ऊंचा हो सकता है ।

135. परिहार विशुद्ध चारित्र की शुक्ल लेश्या से भी अभवी की शुक्ल लेश्या का दर्जा ऊंचा हो सकता है ।

136. भवी के स्त्रीवेद की कायस्थिति जघन्य एक समय हो सकती है, अभवी के स्त्रीवेद की कायस्थिति जघन्य अंतरमुहूर्त होनी चाहिये ।

137. तीर्थंकरों के प्रथम भिक्षादाता भवी ही होते हैं क्योंकि ऐसे भिक्षा दाता उसी भव में या तीसरे भव में मोक्ष जाते हैं । अभवी तीर्थंकर को भिक्षा दाता नहीं होता ।

138. अभवी इन दस बोलों को कभी भी संपूर्ण रूप से नहीं जान सकता । यथा:
1) धर्मास्तिकाय, 2) अधर्मास्तिकाय, 3) आकाशास्तिकाय, 4) परमाणु पुद्गल, 5) शरीर रहित जीव, 6) शब्द, 7) गंध, 8) वायु, 9) यह दुखों का अंत करेगा या नहीं ? 10) यह जिन होगा या नहीं ?

139. अभवी में दृष्टि परिवर्तन नहीं होता ।

140. अभवी तीन या चार समय से ज्यादा अनाहारक रह हीं नहीं सकता ।

141. अठाणवें (98) बोल के बासठिये में चौथा, पचहत्तरवाँ (75), छियत्तरवाँ (76), सितियासिवाँ (87), इन चार बोलों की पृच्छा नहीं होती ।

142. एक सौ दो बोल (102) के बासठिये में अभवी के 66 बोल की पृच्छा हो सकती है, पर 36 बोल की पृच्छा नहीं होती ।

143. अभवी के प्रत्युत्पन्न बंध नहीं होता - वर्तमान में ऐसा बंध पहले कभी नहीं हुआ, वह बंध केवली समुद़्घात के पाँचवें समय में होता है ।


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भाग 17.

144. अभवी के कभी भी अनंतानुबंधी आदि का क्षय, उपशम, क्षयोपशम नहीं होता ।

145. अभवी में बासठिये की अपेक्षा 41 बोलों की ही पृच्छा होती है । योग 2 + उपयोग 6 +  गुणस्थान 13, कुल 21 की पृच्छा नहीं होती ।

146. जघन्य अवगाहना वाले अभवी को अवधि दर्शन नहीं होता ।

147. अभवी कूर्मोऩ्नत योनि से पैदा नहीं होता ।

148. अभवी भविष्यत् काल में द्रव्येन्द्रियाँ अनंत करेंगे ।

149. अभवी मनुष्य का उपपात, समुद़्घात, स्वस्थान लोक के असंख्यातवें भाग ही होता है ।

150. अभवी भविष्य में पाँच समुद़्घात, पुद़्गल परावर्तन अनन्त करेंगे ।

151. अभवी भविष्य में सात पुद़्गल परावर्तन ही अनन्त करेंगे ।

152. लोक के अन्दर आहारक पुद़्गल अनन्त है पर अभवी के लिए तो यह वर्गणा अग्राह्य ही रहेगी ।


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भाग 18.

153. अभवी ज्यादा से ज्यादा 31,000 वर्ष भूखा रह सकता है और अभवी उत्कृष्ट श़्वासोच्छ्वास 31 पक्ष से श़्वांस ले सकता है ।(जब कभी अधिकतम देवायु पाने की अपेक्षा से)

154. अभवी 31 सागरोपम से अधिक की स्थिति नहीं पाता ।

155. अभवी के तेजस् एवं कार्मण अबंधक होते ही नहीं ।

156. अभवी के पुरुषवेद का अंतर कम से कम अंतरमुहूर्त का ही होगा ।

157. अभवी के सकषाय का कभी अंतर नहीं पड़ता ।

158. अभवी के 140 कर्म प्रकृतियों की सत्ता रहती है । (आहारक चौक, शरीर अंगोंपांग, संघात, जिननाम कर्म, समकित मोह, मिश्र मोहनीय, इनको छोड़कर)

159. अभवी में शुभ प्रकृति का उत्कृष्ट बंध नहीं होता ।

160. अभवी को कौनसी स्थितियां प्राप्त नहीं होती- अनुत्तरविमान नहीं जाता, इन्द्र की पदवी प्राप्त नहीं करता, त्रायस्त्रिंशक देव नहीं हो सकता, शासन रक्षक देव-देवी नहीं हो सकता, श़्लाघनीय पुरुष नहीं बन सकता, तीर्थंकर होते दीक्षा नहीं ले सकता, तीर्थंकर से वर्षीदान नहीं प्राप्त कर सकता, 14 पूर्व का अभ्यास नहीं कर सकता ।

तत्व केवली गम्य
मासिक पत्रिका से साभार

सभी पोस्ट्स में तथ्यों के साथ कोई आशातना हुयी हो, जिनवाणी विपरीत अंशमात्र भी कम-ज्यादा, आगे-पीछे लिखा हो, जाने-अनजाने कोई आशातना हुयी हो तो मिच्छामि दुक्कडम ।
🙏🏼



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