भगवान अजितनाथ

परिचय

इस जम्बूद्वीप के अतिशय प्रसिद्ध पूर्व विदेहक्षेत्र में सीता नदी के दक्षिण तट पर ‘वत्स' नाम का विशाल देश है। उसके सुसीमा नामक नगर में विमलवाहन राजा राज्य करते थे। किसी समय राज्यलक्ष्मी से निस्पृह होकर राजा विमलवाहन ने अनेकों राजाओं के साथ गुरू के समीप में दीक्षा धारण कर ली। ग्यारह अंग का ज्ञान प्राप्त कर दर्शनविशुद्धि आदि सोलहकारण भावना का चिंतवन करके तीर्थंकर नामकर्म का बंध कर लिया। आयु के अन्त में समाधिमरण करके विजय नामक अनुत्तर विमान में तेंतीस सागर आयु के धारक अहमिंद्र हो गये।

गर्भ और जन्म

इन महाभाग के स्वर्ग से पृथ्वीतल पर अवतार लेने के छह माह पूर्व से ही प्रतिदिन जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र की अयोध्या नगरी के अधिपति इक्ष्वाकुवंशीय काश्यपगोत्रीय राजा जितशत्रु के घर में इन्द्र की आज्ञा से कुबेर ने साढ़े तीन करोड़ रत्नों की वर्षा की थी। ज्येष्ठ मास की अमावस के दिन विजयसेना ने सोलह स्वप्नपूर्वक भगवान को गर्भ में धारण किया और माघ शुक्ल दशमी के दिन अजितनाथ तीर्थंकर को जन्म दिया। देवों ने ऋषभदेव के समान इनके भी गर्भ, जन्मकल्याणक महोत्सव मनाये।

तप

अजितनाथ की आयु बहत्तर लाख पूर्व की, शरीर की ऊँचाई चार सौ पचास धनुष की और वर्ण सुवर्ण सदृश था। एक लाख पूर्व कम अपनी आयु के तीन भाग तथा एक पूर्वांग तक उन्होंने राज्य किया। किसी समय भगवान महल की छत पर सुख से विराजमान थे, तब उल्कापात देखकर उन्हें वैराग्य हो गया पुन: देवों द्वारा आनीत ‘सुप्रभा' पालकी पर आरूढ़ होकर माघ शुक्ल नवमी के दिन सहेतुक वन में सप्तपर्ण वृक्ष के नीचे एक हजार राजाओं के साथ बेला का नियम लेकर दीक्षित हो गये।
प्रथम पारणा में साकेत नगरी के ब्रह्म राजा ने पायस (खीर) का आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये।

केवलज्ञान और मोक्ष

बारह वर्ष की छद्मस्थ अवस्था के बाद पौष शुक्ल एकादशी के दिन सायं के समय रोहिणी नक्षत्र में सहेतुक वन में सप्तपर्ण वृक्ष के नीचे केवलज्ञान को प्राप्त कर सर्वज्ञ हो गये। इनके समवसरण में सिंहसेन आदि नब्बे गणधर थे। एक लाख मुनि, प्रकुब्जा आदि तीन लाख बीस हजार आर्यिकाएँ, तीन लाख श्रावक, पाँच लाख श्राविकाएँ और असंख्यात देव-देवियाँ थीं। भगवान बहुत काल तक आर्य खंड में विहार करके भव्यों को उपदेश देकर अंत में सम्मेदाचल पर पहुँचे और एक मास का योग निरोध कर चैत्र शुक्ला पंचमी के दिन प्रात:काल के समय सर्वकर्म से छूटकर सिद्ध पद प्राप्त किया।
भगवान अजितनाथ चालीसा

पिछलेभगवान आदिनाथ
अगलेभगवान संभवनाथ
चिन्हहाथी
पितामहाराज जितशत्रु
मातामहारानी विजया
वंशइक्ष्वाकु
वर्णक्षत्रिय
अवगाहना450 धनुष (अट्ठारह सौ हाथ)
देहवर्णतप्त स्वर्ण सदृश
आयु72 लाख पूर्व वर्ष (508.032 x 1018 years old)
वृक्षसहेतुक वन एवं सप्तपर्ण वृक्ष
प्रथम आहारसाकेतनगरी के राजा ब्रह्म द्वारा (खीर)
पंचकल्याणक तिथियां
गर्भज्येष्ठ कृ. अमावस्या
अयोध्या
जन्ममाघ शु. १०
अयोध्या
दीक्षामाघ शु. ९
अयोध्या
केवलज्ञानपौष शु.११
अयोध्या
मोक्षचैत्र शु.५
सम्मेद शिखर
समवशरण
गणधरश्री सिंहसेन आदि ९०
मुनिएक लाख
गणिनीआर्यिका प्रकुब्जा
आर्यिकातीन लाख बीस हजार
श्रावकतीन लाख
श्राविकापांच लाख
यक्षमहायक्ष देव
यक्षीरोहिणी देवी

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