बोधिदुर्लभ भावना

#भावना - 32

बोधिबीज भावना
या बोधिदुर्लभ भावना,

धन जन कंचन राज सुख, सबहि सुलभ कर जान।
दुर्लभ है संसार में, एक यथारथ ज्ञान  ।।11।।

बोधिबीज भावना का चिंतन बताते हुए ग्रन्थकार मुनि फरमाते है : - हे जीव, हमारा मुक्ति प्राप्त करने का एकमात्र साधन सम्यक्त्व है । इस सम्यक्त्व के अभाव में हम 9 ग्रेवयक तक के देव बनकर आ चुके होंगे। पर सम्यक्त्त्व के बिना इतना ऊपर जाकर भी कोई कल्याण न हुआ। इसलिए अब यदि इस भव में कषायों को क्षय या उपशम कर सम्यक्त्व प्राप्त करने का मौका मिला है तो इसका हमें लाभ उठाना चाहिए।

जिस तरह अकेली सुई कचरे के ढेर में गुम हो तो वह वापिस ढूंढना मुश्किल है। पर यदि सुई डोरे से सहित है तो आसानी से मिल जाती है । बस सम्यक्त्व उस धागे की तरह है जो हमारी आत्मा को ज्यादा खोने नही देता।

यह बोधिबीज भावना ऋषभदेव के 98 पुत्रों ने भायी थी।
जब चक्रवर्ती भरतेश्वर 6 खण्ड जीतकर वापिस लौटे तब चक्र रत्न ने आयुध शाला में प्रवेश नही किया। जब वजह तलाश करवाई तब पता चला कि अभी तक उनके 99 भाइयों ने उनकी अधीनता स्वीकृत नही की थी।
बाहुबली जी व अन्य 98 भाई का कहना था कि यह राज्य हमें पिता की ओर से प्राप्त हुआ है तो हम भरत की आज्ञा में क्यों रहे ?  और बाहुबलीजी के अलावा 98 भाई ने कहा कि हम ऋषभदेव प्रभुके पास जाएंगे । वे जैसे कहेंगे वही करेंगे।

98 भाई प्रभुके पास आकर यह बात रखी। तब प्रभु उन्हें समझाते है।

संबुज्झह कीं न बुज्झह , संबोहि खलु पेच्च दुल्लहा।

अर्थात
समझो, प्रतिबोध प्राप्त करो, ऐसे राज्य तुम्हें अतीत के भवों में अनंत बार प्राप्त हो चुके हैं। पर बोधिबीज सम्यक्त्त्व की प्राप्ति होना अत्यंत दुर्लभ है। उस राज्य को प्राप्त कर के क्या लाभ जो इस भव के बाद तुमसे छीन जाएगा ? वह राज्य प्राप्त करो जो तुम्हारे पास हमेशा रहेगा। जिस राज्य पर भरत या किसी चक्रवर्ती का जोर नही चलेगा। उस महान व अक्षय सुख को प्राप्त करो।

प्रभु से प्रतिबोध पाकर इस राज्य के बदले मोक्ष का शाश्वत राज्य प्राप्त करने के लिए 98 भाईयों ने संयम ग्रहण किया। उत्कृष्ट आराधना कर उत्तम संयम का पालन कर संपूर्ण कर्मो को क्षय कर के अंत मे सिद्धि का असीम, अनंत और अक्षय साम्राज्य प्राप्त किया।

धन्य ऐसे प्रेरणादायी महान आत्माओंको।

सन्दर्भ : - जैन तत्त्व प्रकाश

जिनवाणी विपरीत अंशमात्र प्ररूपणा की हो तो मिच्छामी दुक्कडम।

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