भगवान विमलनाथ
जैन धर्म के तेरहवें तीर्थंकर विमलनाथ के पिता काम्पिल्य (फर्रुखाबाद, उत्तरप्रदेश) के राजा थे। उनका नाम कृतवर्मा तथा माता का नाम जयश्यामा था। उनकी माता एक धर्मपरायण स्त्री थी।
माघ शुक्ल चतुर्दशी के दिन विमलनाथ का जन्म हुआ था। स्वयं देवराज इन्द्र ने इस अवसर पर उपस्थित होकर उनका अभिषेक और पूजन-वंदन किया था। पुत्र के जन्म के बाद राजा कृतवर्मा ने पूरे राज्य भर में उत्सवों का आयोजन किया था।
बाल्यकाल में विमलनाथ के शरीर की आभा स्वर्ण के समान थी। उनके पैर में शूकर का चिह्न बना हुआ था। उनके जन्म के साथ ही काम्पिल्य के वन-अंचल अपने आप ही मीठे फलों से लद गए। खेत-खलिहानों में फसलें लहलहाने लगीं और प्रजा के घरों में धन-धान्य के भंडार भर गए।
विमलनाथ ने जब युवावस्था में कदम रखा, तो राजा कृतवर्मा ने धूमधाम से उनका विवाह कर दिया गया। इस विवाह समारोह में देवलोक के सभी देवगण स्वयं उन्हें आशीर्वाद देने पधारे थे। उन्होंने हजारों वर्षों तक सुखपूर्वक राज्य किया तथा उनके शासन में राज्य की जनता को सभी राजसी सुख और वैभव की प्राप्ति हुई। उनका शासन अपने आप में सुशासन कहलाता था। जैन पुराणों के अनुसार विमलनाथ की आयु 60 लाख वर्ष कही गई है।
जब एक दिन सर्दी की ऋतु में रुई जैसी सुकोमल बर्फ की वर्षा हो रही थी। उस वक्त विमलनाथ अपने राजप्रसाद के बगीचे में टहल रहे थे। प्रकृति की इस शोभा का आनंद उठा रहे थे। तभी थोड़ी देर में सूरज निकल आया और सारी की सारी बर्फ गायब हो गई।
किसी भी साधारण मनुष्य के लिए यह एक सामान्य घटना थी, लेकिन विमलनाथ के लिए यह एक पूर्वनियत संकेत था। यह दृश्य देखकर वे मन ही मन सोचने लगे कि सभी सांसारिक सुख भी इस बर्फ की भांति नश्वर हैं। इंद्रिय-भोग भी क्षणभंगुर हैं। अत: इस प्रकार के मोह-बधन और लालच में फंसना एक तरह से समय की बर्बादी है। उन्होंने मन ही मन सोचा मेरा जन्म स्थायी सुख पाने और जनकल्याण के लिए ही हुआ है। विमलनाथ के इन विचारों को जान कर सभी देवगण बहुत प्रसन्न हुए और उन पर पुष्पवृष्टि करके उनकी स्तुति और गुणगान करने लगे।
तत्पश्चात विमलनाथ ने अपना सारा राजपाट, अपना वैभव अपने पुत्र को सौंपा और स्वयं दीक्षा लेकर वन में निकल पड़े। तीन वर्ष की कठोर तपस्या के बाद उन्हें कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे तीर्थंकर विमलनाथ बन गए। भगवान विमलनाथ को भगवान विष्णु का वराहावतार भी माना जाता है।
उन्होंने अपना शेष जीवन लोक-कल्याण करते हुए, धर्मोपदेश देकर बिताया। आषाढ़ कृष्ण पक्ष अष्टमी के दिन आठ हजार छह सौ मुनियों के साथ पावन तीर्थ सम्मेदशिखरजी पर उन्हें निर्वाण प्राप्त हुआ।
भगवान विमलनाथ का अर्घ्य
आठों दरब संवार, मनसुख दायक पावने।
जजों अर्घ्य भरथार, विमल-विमल शिवतिय रमन
आठों दरब संवार, मनसुख दायक पावने।
जजों अर्घ्य भरथार, विमल-विमल शिवतिय रमन
प्रश्न 1 - तेरहवें तीर्थंकर का नाम बताइये।
उत्तर - श्री विमलनाथ भगवान।
प्रश्न 2- श्री विमलनाथ भगवान की पूर्व पयार्य का नाम बताइये।
उत्तर - राजा श्री पद्मसेन।
प्रश्न 3 - राजा श्री पद्मसेन किस देश में राजा थे?
उत्तर - सम्यकावली देश में।
प्रश्न 4 - राजा श्री पद्मसेन किस नगर के राजा थे?
उत्तर - स्थान ज्ञात नहीं हैं।
प्रश्न 5 - राजा श्री पद्मसेन के पुत्र का क्या नाम था?
उत्तर - पद्म।
प्रश्न 6 - श्री विमलनाथ भगवान के पिता का क्या नाम था?
उत्तर - राजा श्री कृतवर्मा।
प्रश्न 7 - श्री विमलनाथ भगवान की माता का क्या नाम था?
उत्तर - श्रीमती जयश्यामा।
प्रश्न 8 - श्री विमलनाथ भगवान ने कहां जन्म लिया था?
उत्तर - कम्पिला नगर में।
प्रश्न 9 - श्री विमलनाथ भगवान का वंश कौन सा थ?
उत्तर - इक्ष्वाकु वंश।
प्रश्न 10 - श्री विमलनाथ भगवान का गर्भ कल्याण किस तिथि को हुआ था?
उत्तर - ज्येष्ठ कृष्णा दशमी को।
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