मेरी जिज्ञासाऔऱ सु विचार
▪️ *जिज्ञासा, ओर समाधान..* ▪️
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*मेरी जिज्ञासा*
*आज का सवाल........*
प्रश्र्न १९. *कोइ दर्द से पिड़ित इन्सान का जब मृत्यु होता है तब हम बोलते है की 'जिव मुक्त हो गया' या 'दुख से मुक्त हो गया' तो क्या एसा बोलने में हमें दोष लगता है ❓ क्या हमें जिव के मरण की अनुमोदना का दोष लगता है ❓'मुक्त हो गया' ये बोलना गुण है की दोष है ये समझाओ❓🤔🙏*
🅰 *कोइ पिड़ित व्यक्ति का मृत्यु होता है तब कइ श्रावक एसा बोलते है की 'वो जिव छूट गया यानी मुक्त हो गया' एसा बोलते वक्त वो इन्सान 'दुख से मुक्त हुआ' ये आशय होने के बावजुद भी हमें जिव के मरण की अनुमोदना का दोष लगता है। क्यों की इसमें गर्भित रीत से मरण की इच्छा आ जाती है के दुख से कब छुटे ?? जिन्दगी से छुटे तो...मरण हो तो जिवन से छुटे।*
🔅 *ऐसे गर्भित रीत से मरण की इच्छा आ ही जाती है। आचार्य भगवंत श्री हरिभद्रसूरी म.सा. ने अष्टक प्रकरण में कहा है की,'धर्म के अर्थी मनुष्य को सदा धर्म को सूक्ष्मबुद्धि से समजना चाहिए अन्यथा धर्मबुद्धि से धर्म का नाश होता है।*
🔹 *द्दष्टांत* 🔹
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🔅 *एक भाग्यशाली ने अभिग्रह लिया की, 'इस चातुर्मास में ग्लान साधुओ को औषध की जरुर पड़े वो लाभ मुझे लेना है। अब भाग्ययोगे कोइ भी साधु बिमार नहीं हुए। इसलिए वो भाग्यशाली विलाप करने लगा की मेने कितना श्रेष्ट अभिग्रह लिया पर कोइ साधु बिमार ही नही हुए। अरेरे !!!!! मैं कितना अधन्य हुं !! अफसोस के मेरा इष्ट सिद्ध नही हुआ।*
🔅 *इस विलाप के पीछे आशय तो यही था की मुझे लाभ नही मिला पर शास्त्रकार एसे विलाप को कर्मबंध का कारण कहा है। क्यों की इसमें गर्भित रीत से तो कोइ साधु बिमार हो तो अच्छा एसा भाव छीपा हुआ है। कोइ साधु बिमार पड़े तो ही मेरा अभिग्रह सफल होगा। एसे अभिग्रह सफल नही हुआ उसका शोक यानी के कोइ साधु बिमार नही हुए उसका शोक।*
🔅 *एसे ही कीसी बिमार जिव के लिऐ 'छुट गया' ये शब्द बोलना गुण नही परंतु दोष है। दूसरे तरीके से हम सोचे तो कोइ भी जिव कभी मरने से दुख से मुक्त नही होता। जो मरने के बाद भी उनके कर्म भुगतने बाकी रह गये होंगे तो भवांतर में कीसी भी प्रकार से भुगतने पड़ेंगे इसलिऐ मृत्यु दुख से छुटने का रास्ता नही है पर कर्म से सर्वथा मुक्त बनना ही दुख से सर्वथा छुटने का उपाय है।*
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