कथा अधिष्ठायिका देवी अम्बिका
प्रभु नेमनाथ की अधिष्ठायिका देवी अम्बिका
अम्बिका देवी 💐💐💐
गिरनार पर्वत के पास एक छोटा सा गाँव ।
उसमें एक ब्राह्मण कुटुम्ब...।
देवभट्ट नामक बुजुर्ग की मृत्यु हो गई थी ।
उनकी विधवा पत्नी देविला अपने पुत्र सोमभट्ट के साथ रहती थी ।
सोमभट्ट का विवाह अम्बिका नामक एक जैन कन्या के साथ हुआ था ।
अम्बिका को जन्म सॆ जैन धर्म मिला था ।
जैन संस्कार होने सॆ दान -धर्म उसे बहुत प्रिय थे ।
शादी के बाद सोमभट्ट के सिवा किसी भी पुरुष को राग दृष्टि सॆ ना देखा था ,ऐसी सत्वशील सती स्त्री थी वह ।
श्राद्ध के दिनों पर सोमभट्ट को भारी श्रद्धा थी ।
एक दिन एक महान तपस्वी मुनिराज का आगमन हुआ ।
वे एक माह के उपवास के पश्चात पारणा हेतु भिक्षा लेने पधारे थे ।
उसी दिन सोमभट्ट के पिता का श्राद्ध था ।
अम्बिका ने हर्ष एवं आदरपूर्वक भिक्षा दी ।
मुनिराज "धर्म लाभ " कह कर चल दिए ।
दरवाजे के पास खड़ी एक पड़ोसन ने यह देखा और कर्कश आवाज़ सॆ अम्बिका सॆ कहा , "अरे रे !!यह तूने क्या किया ?? श्राद्ध के दिन प्रथम दान तूने मलिन कपड़े वाले साधु को दिया ? श्राद्ध का अन्न और घर दोनों अपवित्र कर दिये ।"
अम्बिका सुनी अनसुनी कर घर में चली गई लेकिन पड़ोसन क्या अपनी बात छोड़ देती ?
बाहर गई हुई अम्बिका की सास देवीला के लौटने पर यह बात मिर्च मसाला लगाकर पड़ोसन ने कही ।
देवीला का क्रोध भभक उठा ।अम्बिका को उसने खूब जली कटी सुनाई ।
सोमभट्ट बाहर सॆ आया तो उसे भी अम्बिका की घर अस्पृश्य करने की बात कही ।
वह क्रोधित हो गया ।अम्बिका की ओर बढ़कर चिल्ला उठा : "पापिनी ! यह तूने क्या किया ??
अभी कुल देवता की पूजा की नहीँ है ,पितरों को पिंड दिया नहीँ है और तूने मैले -गंदे साधु को दान दिया ही क्यों ?? निकल जा मेरे घर सॆ , चली जा यहाँ सॆ ।"
क्रोध चांडाल है ।जिसको क्रोध चढ़ता है वह चांडाल जैसा क्रूर बन जाता है ।सोमभट्ट ने सती स्त्री पर क्रोध कर के घर सॆ बाहर निकाल दिया ।
अम्बिका के दो पुत्र थे ।एक का नाम सिद्ध और दूसरे का नाम बुद्ध ।
अम्बिका दोनों को लेकर घर के पिछवाडे सॆ निकलकर नगर के बाहर पहुँची ।
अपने दुर्भाग्य पर विचार करते हुए मन में श्री नवकार मंत्र गिनते हुए जंगल के मार्ग पर चल रही थी ।
सिद्ध और बुद्ध दोनों को प्यास लगी ; सिद्ध ने माँ को कहा , "माँ खूब प्यास लगी है ,माँ पानी दे ।"
बुद्ध ने भी माँ का हाथ खींचते हुए पानी की माँग की । अम्बिका चारों ओर देखती है , पर कहीँ भी पानी दिखता नहीँ है ।
वहाँ एक सूखा सरोवर दिखा । अम्बिका ने सोचा "यह सरोवर पानी सॆ भरा होता तो.."
वहाँ एक चमत्कार हुआ । सरोवर पानी सॆ भर गया । किनारे पर खड़े आम्र वृक्ष पर पके हुए आम दिखे । अम्बिका के सतीत्व का प्रभाव था यह । उसकी धर्म दृढ़ता का परिणाम था यह ।
अम्बिका ने दोनों बालकों को पानी पिलाया और पेड़ पर सॆ आम तोड़ कर खिलाये ।
सिद्ध और बुद्ध खुश खुश होकर पेड़ के नीचे खेलने लगे ।
अम्बिका के घर सॆ निकलने के बाद घर पर भी ऐसा ही चमत्कार हुआ ।
सास देवीला बडबडाते हुए रसोई घर में पहुँची ।
उसकी आँखे आश्चर्य सॆ फैल गई । जिन बर्तनों में सॆ अम्बिका ने मुनिराज को दान दिया था , वे बर्तन सोने के हो गए ।
पके हुए चावल के दाने मोती के दाने बन गए थे ।
रसोई के दूसरे बर्तन भी रसोई सॆ भरे पड़े थे ।
देवीला हर्ष सॆ पागल हो गई । उसने बेटे सोमभट्ट को बुलाया और यह सब दिखा कर कहा ,"देख ! अम्बिका तो सती है सती , देख उसका प्रभाव ।"
सोमभट्ट ने सोने के बर्तन देखे ।
चावल का पतीला मोतियों सॆ भरा देख उसका रोष उतर गया ।
वह अम्बिका को ढूँढ़ने निकल पड़ा ।
अम्बिका को ढूँढते2 सोमभट्ट जंगल में आ पहुँचा ।
दूर सॆ दोनों बालकों को खेलते देखा तो उसने आवाज़ दी : अम्बिका !ओ अम्बिका ।
पति की आवाज़ सुन कर अम्बिका कांप उठी । उसे ऐसा लगा कि ज़रूर वह मारने आया है ।
दोनों बालकों को लेकर दौड़ी और पास के एक कुएँ में छलाँग लगा दी ।
तीनॊ के प्राण पंखेरु उड़ गए ।
सोमभट्ट वहाँ पहुँचा लेकिन देर हो चुकी थी ।कुएँ में अपनी पत्नी और दोनों बालकों को देख वह भी कुएँ में कूद पड़ा ।कुछ ही क्षणों में उसकी भी मौत हो गई ।
अम्बिका मर कर देवलोक में देवी हुई हैं ।
अम्बिका को भगवान नेमनाथ पर अथाह प्रीति थी , इस कारण वह देवी बनकर भगवान नेमनाथ की अधिष्ठायिका देवी बनी ।
जो कोई भगवान नेमनाथ की सेवा भक्ति , श्रद्धा सॆ करता है उसकी मनोकामनाएँ देवी अम्बिका पूर्ण करती है ।
सोमभट्ट देव हुए लेकिन उन्हें सिंह का रुप धरकर अम्बिका देवी का वाहन बनना पड़ा हैं ।
जिन आज्ञा विरुद्ध कुछ भी लिखा हो तो मिच्छामि दुक्कडं 🙏🙏🙏
साभार संकलित 🙏🙏🙏🙏))
अम्बिका देवी 💐💐💐
गिरनार पर्वत के पास एक छोटा सा गाँव ।
उसमें एक ब्राह्मण कुटुम्ब...।
देवभट्ट नामक बुजुर्ग की मृत्यु हो गई थी ।
उनकी विधवा पत्नी देविला अपने पुत्र सोमभट्ट के साथ रहती थी ।
सोमभट्ट का विवाह अम्बिका नामक एक जैन कन्या के साथ हुआ था ।
अम्बिका को जन्म सॆ जैन धर्म मिला था ।
जैन संस्कार होने सॆ दान -धर्म उसे बहुत प्रिय थे ।
शादी के बाद सोमभट्ट के सिवा किसी भी पुरुष को राग दृष्टि सॆ ना देखा था ,ऐसी सत्वशील सती स्त्री थी वह ।
श्राद्ध के दिनों पर सोमभट्ट को भारी श्रद्धा थी ।
एक दिन एक महान तपस्वी मुनिराज का आगमन हुआ ।
वे एक माह के उपवास के पश्चात पारणा हेतु भिक्षा लेने पधारे थे ।
उसी दिन सोमभट्ट के पिता का श्राद्ध था ।
अम्बिका ने हर्ष एवं आदरपूर्वक भिक्षा दी ।
मुनिराज "धर्म लाभ " कह कर चल दिए ।
दरवाजे के पास खड़ी एक पड़ोसन ने यह देखा और कर्कश आवाज़ सॆ अम्बिका सॆ कहा , "अरे रे !!यह तूने क्या किया ?? श्राद्ध के दिन प्रथम दान तूने मलिन कपड़े वाले साधु को दिया ? श्राद्ध का अन्न और घर दोनों अपवित्र कर दिये ।"
अम्बिका सुनी अनसुनी कर घर में चली गई लेकिन पड़ोसन क्या अपनी बात छोड़ देती ?
बाहर गई हुई अम्बिका की सास देवीला के लौटने पर यह बात मिर्च मसाला लगाकर पड़ोसन ने कही ।
देवीला का क्रोध भभक उठा ।अम्बिका को उसने खूब जली कटी सुनाई ।
सोमभट्ट बाहर सॆ आया तो उसे भी अम्बिका की घर अस्पृश्य करने की बात कही ।
वह क्रोधित हो गया ।अम्बिका की ओर बढ़कर चिल्ला उठा : "पापिनी ! यह तूने क्या किया ??
अभी कुल देवता की पूजा की नहीँ है ,पितरों को पिंड दिया नहीँ है और तूने मैले -गंदे साधु को दान दिया ही क्यों ?? निकल जा मेरे घर सॆ , चली जा यहाँ सॆ ।"
क्रोध चांडाल है ।जिसको क्रोध चढ़ता है वह चांडाल जैसा क्रूर बन जाता है ।सोमभट्ट ने सती स्त्री पर क्रोध कर के घर सॆ बाहर निकाल दिया ।
अम्बिका के दो पुत्र थे ।एक का नाम सिद्ध और दूसरे का नाम बुद्ध ।
अम्बिका दोनों को लेकर घर के पिछवाडे सॆ निकलकर नगर के बाहर पहुँची ।
अपने दुर्भाग्य पर विचार करते हुए मन में श्री नवकार मंत्र गिनते हुए जंगल के मार्ग पर चल रही थी ।
सिद्ध और बुद्ध दोनों को प्यास लगी ; सिद्ध ने माँ को कहा , "माँ खूब प्यास लगी है ,माँ पानी दे ।"
बुद्ध ने भी माँ का हाथ खींचते हुए पानी की माँग की । अम्बिका चारों ओर देखती है , पर कहीँ भी पानी दिखता नहीँ है ।
वहाँ एक सूखा सरोवर दिखा । अम्बिका ने सोचा "यह सरोवर पानी सॆ भरा होता तो.."
वहाँ एक चमत्कार हुआ । सरोवर पानी सॆ भर गया । किनारे पर खड़े आम्र वृक्ष पर पके हुए आम दिखे । अम्बिका के सतीत्व का प्रभाव था यह । उसकी धर्म दृढ़ता का परिणाम था यह ।
अम्बिका ने दोनों बालकों को पानी पिलाया और पेड़ पर सॆ आम तोड़ कर खिलाये ।
सिद्ध और बुद्ध खुश खुश होकर पेड़ के नीचे खेलने लगे ।
अम्बिका के घर सॆ निकलने के बाद घर पर भी ऐसा ही चमत्कार हुआ ।
सास देवीला बडबडाते हुए रसोई घर में पहुँची ।
उसकी आँखे आश्चर्य सॆ फैल गई । जिन बर्तनों में सॆ अम्बिका ने मुनिराज को दान दिया था , वे बर्तन सोने के हो गए ।
पके हुए चावल के दाने मोती के दाने बन गए थे ।
रसोई के दूसरे बर्तन भी रसोई सॆ भरे पड़े थे ।
देवीला हर्ष सॆ पागल हो गई । उसने बेटे सोमभट्ट को बुलाया और यह सब दिखा कर कहा ,"देख ! अम्बिका तो सती है सती , देख उसका प्रभाव ।"
सोमभट्ट ने सोने के बर्तन देखे ।
चावल का पतीला मोतियों सॆ भरा देख उसका रोष उतर गया ।
वह अम्बिका को ढूँढ़ने निकल पड़ा ।
अम्बिका को ढूँढते2 सोमभट्ट जंगल में आ पहुँचा ।
दूर सॆ दोनों बालकों को खेलते देखा तो उसने आवाज़ दी : अम्बिका !ओ अम्बिका ।
पति की आवाज़ सुन कर अम्बिका कांप उठी । उसे ऐसा लगा कि ज़रूर वह मारने आया है ।
दोनों बालकों को लेकर दौड़ी और पास के एक कुएँ में छलाँग लगा दी ।
तीनॊ के प्राण पंखेरु उड़ गए ।
सोमभट्ट वहाँ पहुँचा लेकिन देर हो चुकी थी ।कुएँ में अपनी पत्नी और दोनों बालकों को देख वह भी कुएँ में कूद पड़ा ।कुछ ही क्षणों में उसकी भी मौत हो गई ।
अम्बिका मर कर देवलोक में देवी हुई हैं ।
अम्बिका को भगवान नेमनाथ पर अथाह प्रीति थी , इस कारण वह देवी बनकर भगवान नेमनाथ की अधिष्ठायिका देवी बनी ।
जो कोई भगवान नेमनाथ की सेवा भक्ति , श्रद्धा सॆ करता है उसकी मनोकामनाएँ देवी अम्बिका पूर्ण करती है ।
सोमभट्ट देव हुए लेकिन उन्हें सिंह का रुप धरकर अम्बिका देवी का वाहन बनना पड़ा हैं ।
जिन आज्ञा विरुद्ध कुछ भी लिखा हो तो मिच्छामि दुक्कडं 🙏🙏🙏
साभार संकलित 🙏🙏🙏🙏))
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