कथा वीर जी का शेर भव
शेर बना भगवान
एक दिन जंगल का राजा शेर पेड़ के नीचे बैठा हुआ था । तभी उसने एक हिरण को वहाँ से जाते हुए देखा । हिरण को देखकर शेर को उसका शिकार करने की इच्छा हुई । वह आगे के पैरों पर खड़ा हो गया, इतने में हिरण ने आहट पाकर पीछे मुड़कर देखा । हिरण अपनी जान बचाने के लिए तेजी से भागा । हिरण को भागता देखकर शेर भी हिरण को मारने के लिए उसकी ओर झपटा । शेर ने तेजी से भागकर हिरण पर हमला कर हिरण को पकड़ लिया और अपने बड़े और नुकीले नाखूनों से हिरण का पेट फाड़ दिया । उसी समय आकाश से अमितकीर्ति और अमितप्रभ नाम के दो दिगम्बर मुनिराज वहाँ से विहार कर रहे थे, उन्होंने देखा कि एक भयंकर शेर हिरण को मारकर उसका माँस खा रहा है ।
दोनों मुनिराज नीचे उतरकर शेर के पास आ गये । दोनों मुनिराज की अत्यंत शांत मुद्रा देखकर शेर आश्चर्य से उन्हें देखने लगा और माँस खाना बंद कर दिया । मुनिराज ने शेर का सुन्दर भविष्य जानकर उसे उपदेश दिया । मुनिराज बोले, "हे मृगराज ! तुम ये क्या कर रहे हो ? तुम तो निकट भव्य जीव हो और दस भव के बाद भरत क्षेत्र के अंतिम तीर्थंकर महावीर बनने वाले हो । तुम्हें ये कार्य शोभा नहीं देता ।" मुनिराज का कल्याणकारी उपदेश सुनकर शेर की आँखों से आँसू बहने लगे । मुनिराज की मधुर वाणी सुनकर शेर ने मन में प्रायश्चित किया, "अहो ! आज मेरा परम सौभाग्य है जो ऐसे मुनिराजों के दर्शन और वाणी का लाभ मिला ।" उसने अपने आत्मस्वरूप का विचार किया और शेर को तभी सम्यग्दर्शन हो गया । शेर ने अब माँस खाना बंद कर दिया । भोजन न करने से उसका शरीर कमजोर हो गया । अब वह हिल भी नहीं सकता था । उसे मरा हुआ समझकर कौवे और चील आदि पक्षी उसका माँस खाने लगे । कुछ समय बाद अत्यंत शांतभाव से उस शेर की मृत्यु हो गई ।
वह शेर मरकर सौधर्म स्वर्ग में सिंहकेतु देव हुआ । इसके 9 भव के बाद वह शेर का जीव भरत क्षेत्र का अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर हुआ ।
शिक्षा - एक पशु भी आत्मज्ञान के बल पर भगवान बन सकता है । अतः हमें भी अपना आत्मकल्याण करना चाहिए ।
पुस्तक का नाम - चहकती चेतना ।
एक दिन जंगल का राजा शेर पेड़ के नीचे बैठा हुआ था । तभी उसने एक हिरण को वहाँ से जाते हुए देखा । हिरण को देखकर शेर को उसका शिकार करने की इच्छा हुई । वह आगे के पैरों पर खड़ा हो गया, इतने में हिरण ने आहट पाकर पीछे मुड़कर देखा । हिरण अपनी जान बचाने के लिए तेजी से भागा । हिरण को भागता देखकर शेर भी हिरण को मारने के लिए उसकी ओर झपटा । शेर ने तेजी से भागकर हिरण पर हमला कर हिरण को पकड़ लिया और अपने बड़े और नुकीले नाखूनों से हिरण का पेट फाड़ दिया । उसी समय आकाश से अमितकीर्ति और अमितप्रभ नाम के दो दिगम्बर मुनिराज वहाँ से विहार कर रहे थे, उन्होंने देखा कि एक भयंकर शेर हिरण को मारकर उसका माँस खा रहा है ।
दोनों मुनिराज नीचे उतरकर शेर के पास आ गये । दोनों मुनिराज की अत्यंत शांत मुद्रा देखकर शेर आश्चर्य से उन्हें देखने लगा और माँस खाना बंद कर दिया । मुनिराज ने शेर का सुन्दर भविष्य जानकर उसे उपदेश दिया । मुनिराज बोले, "हे मृगराज ! तुम ये क्या कर रहे हो ? तुम तो निकट भव्य जीव हो और दस भव के बाद भरत क्षेत्र के अंतिम तीर्थंकर महावीर बनने वाले हो । तुम्हें ये कार्य शोभा नहीं देता ।" मुनिराज का कल्याणकारी उपदेश सुनकर शेर की आँखों से आँसू बहने लगे । मुनिराज की मधुर वाणी सुनकर शेर ने मन में प्रायश्चित किया, "अहो ! आज मेरा परम सौभाग्य है जो ऐसे मुनिराजों के दर्शन और वाणी का लाभ मिला ।" उसने अपने आत्मस्वरूप का विचार किया और शेर को तभी सम्यग्दर्शन हो गया । शेर ने अब माँस खाना बंद कर दिया । भोजन न करने से उसका शरीर कमजोर हो गया । अब वह हिल भी नहीं सकता था । उसे मरा हुआ समझकर कौवे और चील आदि पक्षी उसका माँस खाने लगे । कुछ समय बाद अत्यंत शांतभाव से उस शेर की मृत्यु हो गई ।
वह शेर मरकर सौधर्म स्वर्ग में सिंहकेतु देव हुआ । इसके 9 भव के बाद वह शेर का जीव भरत क्षेत्र का अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर हुआ ।
शिक्षा - एक पशु भी आत्मज्ञान के बल पर भगवान बन सकता है । अतः हमें भी अपना आत्मकल्याण करना चाहिए ।
पुस्तक का नाम - चहकती चेतना ।
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