कथा मल्लवादीसूरि

[ 14 ]

🌷🌷श्री मल्लवादीसूरि 🌷🌷
====================

वह एक ऐसा सुवर्ण युग था कि जब सौराष्ट्र की नगरी वल्लभी जैन संघ के दबदबे से जगमगाती थी । ऐसी अनुपम नगरी में दुर्लभदेवी की कोख से अजितयश ,यक्ष एवं मल्ल इस प्रकार तीन पुत्रों का जन्म हुआ । दुर्लभ धर्म ऐसे जैन धर्म के संस्कारों का अपने तीनों पुत्रों में सींचन करनेवाली आदर्श माता दुर्लभदेवी ने अपने भाई आचार्यश्री जिनानंदसूरिजी से पुत्रों सहित दीक्षा अंगीकार की ।

उस समय राजा शीलादित्य की सभा में जैन धर्म एवं बौद्ध धर्म के बीच विवाद हुआ । आचार्यश्री जिनानंदसूरिजी ने इस विवाद में भाग लिया । इसमें शर्त ऐसी थी कि विवाद में जो पराजित हो उसे गुजरात छोड़ देना । बौद्ध राजा ने आचार्य जिनानंदसूरि को पराजित घोषित किया । इस समय आचार्यश्री गुजरात त्यागकर वल्लभी आये । आचार्यश्री अत्यन्त व्यथित थे , तब उनकी बहन दुर्लभदेवी ने कहा , " अपने तीन पुत्रों में से एक पुत्र आपको दूँगी और वह आपकी व्यथा तथा चिंता दूर करेगा । " दुर्लभदेवी ने अपने पुत्रों से बात की , तब तीनों पुत्र इस कार्य के लिए उत्सुक थे । तीनों ने आचार्यश्री के पास से दीक्षा लेने के लिए स्पर्धा की । माता ने आनंदाश्रु सहित दीक्षा की संमति दी ।

दुर्लभदेवी के सबसे छोटे पुत्र बालमुनि मल्ल ने निर्धार किया कि धर्मग्रंथों का गहन ज्ञान प्राप्त करुँगा और वादियों की सभा में अवश्य विजय प्राप्त करुँगा । बालमुनि मल्ल सरस्वती की साधना करने के साथ पर्वत पर जाकर घोर तपश्चर्या करने लगें । केवल पारणा के दिन निकट में आये हुए गाँव में से जो कुछ प्राप्त हो वह लाकर निर्वाह कर लेते थे । समय गुजरने के बाद सरस्वतीदेवी प्रसन्न हुई और उन्होंने वरदान दिया ।

परिणामस्वरुप देवी ने किये हुए एक गाथा के विवरण रुप ' द्वादशार नयचक्र ' नामक बेजोड़ ग्रंथ रचा । चक्र के बारह आरों की तरह इस उत्कृष्ट दार्शनिक ग्रंथ में बारह अध्याय हैं । पहले आचार्यश्री सिद्धसेनदिवाकर ने
' सन्मति तर्क ' रचकर न्यायशास्त्र का एक महान ग्रंथ दिया था , उसी प्रकार आचार्यश्री मल्लसूरि ने इस ग्रंथ में संस्कृत भाषा में नय और अनेकान्त दर्शन का गहन एवं मौलिक विवेचन किया ।

छोटे बाल मुनि ने महाराजा शीलादित्य को कहला भेजा कि , " आपकी राजसभा में वाद-विवाद करने के लिए मैं तैयार हूँ । आपका संसारी भानजा मल्लमुनि बौद्धों को पराजय देने के लिए आतुर हुआ है । " राजा शीलादित्य मल्ल का संसारी मामा था और उन्होंने बौद्ध धर्म का स्वीकार करके उसके प्रचारार्थ भगीरथ प्रयत्न किये थे ।

एक छोटा-सा मुनि किस प्रकार प्रौढ़ तथा प्रकांड वादियों को पराजित कर सके ! सबके आश्चर्य के बीच राजा शीलादित्य की राजसभा वादसभा में परिवर्तित हो गई । छ: छ: महिनों तक वाद जारी रहा । आचार्य मल्लसूरि का विजय होते ही उससे प्रभावित राजा ने मुनि मल्ल को ' वादी ' का बिरुद अर्पण किया । फलत: वे ' श्री मल्लवादीसूरि क्षमाश्रमण ' के नाम से सर्वत्र प्रसिद्ध हुए । अपने वाककौशल और साहित्यसाधना द्वारा आचार्य मल्लवादी ने जैन शासन की अनोखी प्रभावना की ।

आचार्य मल्लवादीसूरि ने 'सन्मति तर्क ' टीका तथा चौबीस हजार श्लोकवाले ' पद्मचरित्र ' ( जैन रामायण ) की रचना की । श्री मल्लवादीसूरि वादकुशल थे और इसलिए श्री हेमचंद्राचार्य ने उन्हें ' सर्वोत्कृष्ट तार्किक ' के रुप में पहचाने हैं । इनका ' द्वादशार नयचक्र ' ग्रंथ न्यायविषयक उत्तम ग्रंथ माना जाता है और तत्कालीन तत्वज्ञान की विविध धाराओं की मार्मिक समालोचना करता यह ग्रंथ संस्कृत भाषा में उन्होंने रचा था । आचार्य मल्लवादी के बड़े भाई मुनि अजितयश ने ' प्रमाण ' ग्रंथ की रचना की और दूसरे भाई यक्ष मुनि ने ' अष्टांग निमित्त बोधिनी ' नाम की संहिता का निर्माण किया ।

इस प्रकार एक महान माता के तीन पुत्रों ने जैन शासन की साधुता , साहित्य एवं तत्वगहनता से अनोखी सेवा की ।

🌷🌷🌷🙏🙏🙏🌹🌹🌹

साभार: जिनशासन की कीर्तिगाथा

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

भगवान पार्श्वनाथ प्रश्नोत्तरी

जैन प्रश्नोत्तरी

सतियाँ जी 16