ऋषभदेव भगवान की कथा
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*🔴महावीर के उपदेश ग्रुप🔴*
🙏आदीश्र्वर🙏
✈ अलबेलों रे✈
🌹दसवा भव🌹
6⃣ पुडरीकिणी नगरी के राजा वज्रसेन की धारिणी राणी के गर्भ में आदीनाथ प्रभु का जीव पधारे
बाद में वज्रसेन महाविदेह क्षेत्र में तिर्थंकर हुए और प्रभु का जीव वज्रनाभ चक्रवर्ती बने
एक बार परमात्मा वज्रसेन स्वामी नगरी में पधारे तब
वज्रनाभ चक्रवर्ती परिवार के साथ प्रभु को वंदन करने आए
प्रभु की देशना सुन वैराग्य भाव उत्पन्न हुआ
बाद में वज्रनाभ मुनि तप जप स्वाध्याय और उच चारित्र धर्म का पालन करने लगे
बाद में वीस स्थानक तप के बीस पद की उतम आराधना की
बाद में अनशन पूर्वक कालधर्म पाम स्वार्थसिध्ध विमान में देव हुए
बाद मे तिसरेआरे के एक पल्योपम का आठवा भाग का काल बाकी रहा तब एक युगलीक ने जन्म लिया
यह विमल वाहन कुलकर कहलाया
बाद में
चक्षुष्मान कुलकर
यशस्वि कुलकर
अभिचंद कुलकर
प्रसेनजित कुलकर
मरुदेव कुलकर की पत्नी श्रीकांता ने
नाभी और मरुदेवा
युगलिक का जन्म दिया
यह हमारे प्रभु के माता-पिता हुए
🙏नवीन के महेता🙏
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*🔴महावीर के उपदेश ग्रुप🔴*
🙏आदीश्र्वर 🙏
✈ अलबेलों रे✈
🌹 काल 🌹
7️⃣ हमारे भरत क्षेत्र में
अवसर्पिणि काल उत्सर्पिणि काल
दोनों में छे विभाग जिसको हम आरा कहते हैं
सुषमसुषम नाम का पहले आरे चार कोड़ा कोड़ी सांगरोपम अनंता बरस का होता है
पहले आरे में हर जीव को सुख ही सुख होता है
यहां माता की कुक्षी से भाग बहन युगलिक जन्मते है
युवा होते वो पती पत्नी की तरह व्यवहार करते हैं
लोगों का आयुष्य तिन पल्योपम याने अबजो बरस का होता है
लोगों की उंचाई तिन गाउ जीतनी होती है
इनके कषाय सूक्ष्म होने की वजह से मृत्यु के बाद देवलोक में च्यवन होते हैं
उन्हो को मृत्यु सहजता से होता है
युगलीक को कल्पवृक्षों से मन वांछित वस्तु मील जाती है
मधांग वृक्ष मधादि
चित्र रस वृक्ष भोजन
अनागन्य वृक्ष वस्त्र
गेहाकार वृक्ष घर
चित्रांग वृक्ष पुष्प माला
मण्यंग वृक्ष आभुषणों
दीपशिखा वृक्ष आछो प्रकाश
ज्योतिष्क वृक्ष फ्लेश प्रकाश
भृतांग वृक्ष बर्तन
तूर्याग वृक्ष वाजित्र
इस तरह दस जाति के कल्पवृक्षों से लोगों की जरूरत पूरी होती थी
🙏नवीन के महेता🙏
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🙏🏼 1008 श्री ऋषभदेव भगवान का गर्भावतार-
भगवान् के गर्भ में आने के छह महीने पहले इन्द्र की आज्ञा से कुबेर ने माता के आंगन में साढ़े सात करोड़ रत्नों की वर्षा की थी। किसी दिन रात्रि के पिछले प्रहर में रानी मरुदेवी ने ऐरावत हाथी, शुभ्र बैल, हाथियों द्वारा स्वर्ण घंटों से अभिषिक्त लक्ष्मी, पुष्पमाला आदि सोलह स्वप्न देखे। प्रातः पतिदेव से स्वप्न का फल सुनकर अत्यन्त हर्षित हुईं। उस समय अवसर्पिणी काल के सुषमा दुःषमा नामक तृतीय काल में चैरासी लाख पूर्व तीन वर्ष, आठ मास और एक पक्ष शेष रहने पर आषाढ़ कृष्ण द्वितीया के दिन उत्तराषाढ़ नक्षत्र में वज्रनाभि अहमिन्द्र देवायु का अन्त होने पर सर्वार्थसिद्धि विमान से च्युत होकर मरुदेवी के गर्भ में अवतीर्ण हुए। उस समय इन्द्र ने आकर गर्भकल्याणक महोत्सव मनाया। इन्द्र की आज्ञा से श्री, आदि देवियाँ और दिक्कुमारियाँ माता की सेवा करते हुए काव्यगोष्ठी, सैद्धान्तिक चर्चाओं से और गूढ़ प्रश्नों से माता का मन अनुरंजित करने लगीं।
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*🔴महावीर के उपदेश ग्रुप🔴*
🙏आदीश्र्वर🙏
✈ अलबेलों रे✈
🌹च्यवन काल🌹
8⃣ जब तिसरे आरे के 84 लाख पूर्व और 89 पाक्षिक बाकी थे तब एक घटना घटी
/ एक पूर्व के 70560 अबज बरस होते हैं/
तब माता मरूदेवा ने हरेक तिर्थंकर की माता देखते हैं ऐसे
महा मंगलकारी चौद सुपन आकाश में से उतर कर अपने मुख में प्रवेश करते देखा
और तब आदीनाथ प्रभु के जीव ने स्वार्थसिध्ध विमान का आयुष्य पुर्ण कर
भरतक्षेत्र में 18 कोड़ा कोड़ी सागरोपम से चलते
मिथ्यात्व के अंधकार को दूर करने के लिए
प्रभु माता मरुदेवा के गर्भ में पधारे
तब नारकी में भी क्षण के लिए दुःख दुर हुए
बाद में विनय पूर्वक मरुदेवा ने नाभीकुलकर को स्वप्न फल पुछा
तब शरल ह्रदय से नाभीकुलकर बोले आप हमारे सुंदर पुत्र को जन्म देगे और बड़ा होकर कुलकर बनेगा
तब इंद्र सिंहासन कंपायमान होते इंद्र महाराज अवधिज्ञान से अवसर्पिणी काल के प्रथम तिर्थंकर का च्यवन जाण
माता को नमन कर चौदह स्वप्न का फल अर्थ समझा कर बोले
आप महातेजस्वि पुत्र की माता बनोगे और आप का पुत्र
चौदह राजलोग के स्वामी बनेगा देव दानव मानव तिनो लोक में उसकी भक्ति करेंगे
इस तरह स्वप्न फल कह इंद्र स्वस्थाने गया
🙏नवीन के महेता🙏
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*🔴महावीर के उपदेश ग्रुप🔴*
🙏 आदीश्र्वर 🙏
✈ अलबेलों रे✈
🌹प्रभु पधारे🌹
9⃣ नव मास साढ़े आठ दिन पुर्ण होते माता मरुदेवा ने
फाल्गुन विद आठम के मध्यरात्रि ए
एक पुत्र और एक पुत्री याने युगलिक को जन्म दिया
यह हमारे परम तारक प्रभु आदीनाथ
प्रभु जन्म होते क्षण भर नारक के जीवों को शाता मीली
सिंहासन कंपायमान होते अपने आचार अनुसार
अधोलोक की आठ दिक्कुमरी माता को नमन कर सूची कर्म किया
ईशान लोक की दिक्कुमरी ने एक योजन अशुची दुर की
ऊधर्वलोक की आठ दिक्कुमारी ने जल का छिड़काव किया
पूर्व रुचक लोक की आठ दिक्कुमारी ने प्रभु को दर्पण धरा
दक्षिण की आठ दिक्कुमारी कलश लेकर खड़ी रही
पश्र्विम की आठ विजणो लेकर
तो उतर की आठ दिक्कुमारी चामर विझने लगी
विदिशा की चार दिक्कुमारी दीपक लेकर खड़ी रही
रूचक द्रिप की चार दिक्कुमारी ने केल का घर बनाकर प्रभु और माता को मर्दन स्नान करवा कर
अंलकार पहनाकर रक्षा पोटली बांध
56 दिक्कुमरी सर्व स्थाने गई
तब इंद्र महाराज का सिंहासन कंपायमान हुआ
🙏नवीन के महेता🙏
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*🔴महावीर के उपदेश ग्रुप🔴*
🙏आदीश्र्वर🙏
✈ अलबेलों रे✈
🌹प्रभु जन्माभिषेक🌹
1⃣0️⃣ प्रभु आदीनाथ का जन्म होते इंद्र महाराज का सिंहासन कंपायमान हुआ
तब इंद्र ने अवधिज्ञान से प्रभु का जन्म हुआ जाण सिंहासन पर से उठकर प्रभु के जन्म की दिशा में सात आठ डग आगे बढ़
दो हाथ मस्तक पर लगाकर नमुत्थुणं सूत्र बोल प्रभु की स्तवना की
बाद में हरिणीगेमैषी देव को सब देव देवीयां को प्रभु जन्म महोत्सव करने के लिए मेरू शिखरों आने का आमंत्रण देने को कहा
तब इंद्र महाराज की आज्ञा अनुसार हरिणीगेमैषी देव ने एक योजन विस्तार वाली सुघोषा नाम की धंटा बजाकर इंद्र महाराज की आज्ञा सुनाई
यह घंटा की आवाज बत्तीस लाख देवलोक के विमानों में सुनते देवी-देवीया हर्ष पूर्वक प्रभु जन्म महोत्सव में शामिल होने के लिए चल पड़े
तब आकाश देव के विमानों से चमकने लगा
सौधर्म इंद्र की आज्ञा से पालक नाम के देव ने एक लाख योजन विस्तार और पांचसो योजन ऊंचा
कला कृतियों से सुभोषित पालक नाम का विमान बनाया
इस में आठ पटरानियों के साथ इंद्र महाराज और सेनाधिपती सामानिक देव इत्यादि देव बैठकू
प्रभु जन्म महोत्सव मनाने जंबुद्वीप की ओर चल पड़े
सर्व देवों मेरु पर्वत की ओर चल पड़े तब
नंदीश्वर द्रीप नजदीक आते इंद्र महाराज ने अपने विमान को संकोच
जंबुद्वीप के भरत क्षेत्र में माता मरुदेवा के पास आकर प्रणाम कर प्रभु जन्म महोत्सव की रजा मांग
माता को अवस्वापी नी निद्रा देकर माता के पास प्रभु का प्रतिबिंब रख
इंद्र महाराज ने अपने पांच रुप बनाकर
दो चामर रुप से विझने लगे
एक रूप सेवज्र लेकर आगे चलने लगा
और एक रुप सेप्रभु छत्र धारण कर
और एक रूप से सुकुमार प्रभु को गोद में धारण कर मेरु पर्वत की ओर चल पड़े
🙏नवीन के महेता🙏
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*🔴महावीर के उपदेश ग्रुप🔴*
🙏 आदीश्र्वर🙏
⛴ अलबेलों रे⛴
🌹 इंद्र अभिषेक🌹
1⃣1⃣ प्रभु आदीनाथ को गोद में धारण कर सुधर्म इंद्र मेरू पर्वत के शिखर पर पहुंचे तब
तब दुसरे 63 इंद्र महाराज भी मेरू पर्वत के पांडुक वन में पहुंचे और 64 ईद्रो ने प्रभु का अभिषेक किया
64 इंद्र इस तरह के
10 उत्तर दिशा के दस भवनपति के एक एक
10 इस तरह दक्षिण दिशा के भवनपति के
8 उतर दिशा के व्यंतर निकाय के व्यंतर
8 इस तरह दक्षिण दिशा के व्यंतर
8 उतर दिशा के व्यंतर निकाय के वाणव्यंतर देव
8 इस तरह दक्षिण वाणव्यंतर देव
1 ज्योतिष्क लोक के सूर्य के
1 ज्योतिष्क लोक के चंद्र के
8 आठ देवलोक के एक एक
1 नव और दसवें देवलोक के एक
1 अग्यारह और बारह वे देवलोक के एक
इस तरह 64 चोसठ इंद्र महाराज ने मेरु पर्वत के शिखर पर पाडुंक वन प्रभुजी को अभिषेक किया
✈ असंख्य देवों हाजर होते हैं परंतु सब को अभिषेक करने का अधिकार नहीं है
✈ बाकी के देवों अनुमोदना कर पुण्य उपार्जन करते हैं
✈ वीर प्रभु सिवाय कोई प्रभु ने मेरु पर्वत को स्पर्श नहीं किया है
✈ मेरु पर्वत एक सो योजन प्रमाण है
🙏नवीन के महेता🙏
✈ रापर कच्छ✈
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*🔴महावीर के उपदेश ग्रुप🔴*
🙏आदीनाथ🙏
✈ अलबेलों रे✈
🌹कलश प्रमाण🌹
1⃣2️⃣ आठ प्रकार होते हैं
1 सुवर्ण के 8
2 रजत के 8
3 रत्नो के 8
4 सुवर्ण। रजत के 8
5 सुवर्ण रत्नो के 8
6 रजत रत्नो के 8
7 सुवर्ण रत्नो रजत के 8
8 सुगंधित मिट्टी के 8
हरेक कलश की
25 योजन ऊंचाइ
12 योजन पहोडाइ
1योजन नालचा वाले
हरेक कलश 8000 होते हैं इस तरह
8*8000=64000 कलश हुए
और रत्नकरंडक दर्पण पुष्प करंडक चंगेरी धूपधाणा आदि उपकरण
तिर्थो कि मिट्टी
क्षीर समुद्र गंगा के नीर पद्मद्रह के कमल और वैताढय आदि पर्वत से औषधि और सुगंधित चुर्ण लाकर
प्रभुजी को अभिषेक करते हैं
🙏नवीन के महेता🙏
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*🔴महावीर के उपदेश ग्रुप🔴*
🙏आदीश्र्वर🙏
✈ अलबेलों रे✈
🌹 वंश स्थापना🌹
1⃣3⃣ सबेरे माता मरुदेवा ने नाभीकुलकर को कहा की
आज स्वप्न में मैंनेहमारे बालक को देवों से अभिषेक करते देखा
तब नाभिकुलकर खुश होते बोले हम बड़े भाग्यशाली हैं
प्रभु के जंधा पर बेल याने वृषभ का निशान था इस लिए नाम रखा वृषभ और साथ में जन्मि बेटी का नाम रखा सुमंगला
गुजरते वक्त के साथ प्रभु एक साल के हुए तब वंश की स्थापना करने सौधर्म इंद्र पधारे
और रास्ते में से एक गन्ना याने शेलडी का सांठा लेके आया
तब पिता की गोद में खेलते प्रभु ने अवधिज्ञान से इंद्र महाराज को आते देखा
और सुधर्म इंद्र पधारे तब अपना हाथ लंबाकार गन्ना याने इक्षु ग्रहण की
इंद्र प्रभु का भाव देख इक्ष्वाकु वंश की स्थापना कर अपने स्थान गये
बाल क्रिया करते और देवों ने लाये उतर कुरूक्षेत्र के फल और क्षीर समुद्र से लाये जल आरोगते बड़े होने लगे
और तब एक घटना घटी
🙏प्रभु के चार अतिशय इस प्रकार होते हैं
1 प्रभु का शरीर प्रस्वेद मेल रोग रहित सुगंधित होते हैं
2 मांस रक्त गाय दुध समान होते हैं
3 आहार निहार कोई देख नहीं सकते
4 श्र्वासोश्र्वास कमल सरिखा होता है
🙏नवीन के महेता🙏
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*🔴महावीर के उपदेश ग्रुप🔴*
🙏आदीश्र्वर🙏
✈ अलबेलों रे✈
🌹 अलौकिक🌹
1⃣4⃣ गुजरते वक्त के साथ ऋषभदेव युवा होने लगे
पहले युगलिया साथ में जन्म लेते थे और साथ ही मृत्यु पाम थे और इस के मृत शरीर को बड़े पक्षी चांच में उठाकर क्षीरसागर में फेंक देते थे
तब एक धटना धटी एक बाल युगल वृक्ष के नीचे खेल रहे थे तब वृक्ष के उपर से एक फल नर युगल पर गीरा और इनकी मृत्यु हो गई
पहली बार पक्षी न आए और इस का मृत देह वहां पड़ा रहा और बालिका वहां बैठि रही
तब माता पिता ने इस को अपने पास रख नाम रखा सुनंदा
माता पिता के मृत्यु के बाद अकेलि सुनंदा इधर उधर भटकने लगी
सुनंदा युवा होते अमुक युगलिको इस को नाभी कुलकर के पास लाकर इस का वृत्तांत कह उसको सोपीं
तब सुनंदा को स्वीकार कर वह बोले सुनंदाऋषभ की पत्नी हो
बाद में ऋषभ का लग्न सुमंगला और सुनंदा के साथ करने की तैयारी होने लगी
तब इंद्र महाराज अनेक देव देवीया के साथ लग्न महोत्सव करने विनीता नगरी पधारे और बड़ा लग्न महोत्सव किया
बाद में बाहुमुनी और पीठमुनी का जीव सर्वार्थ सिद्ध विमान से सुमंगला की कुक्षी में पधारे
और सुबाहु मुनि और महापीठ मुनि का जीवदेवलोक से सुनंदा की कुक्षी में पधारे
गर्भ काल पुर्ण होते सुमंगला ने भरत और ब्राह्भी और सुनंदा ने बाहुबली और सुंदरी को जन्म दिया
बाद में सुमंगला की कुक्षी से 49, बालक युगलिक जन्मे
इस ऋषभदेव प्रभु 100 पुत्र और
2 पुत्री के पिता बने
🙏 इस तरह पहली बार
किसी युगल अकेले मृत्यु पामे
और पक्षी मृत देह को लेने न आए
प्रभु का लग्न महोत्सव देव देवी-देवताओं ने किया
प्रभु ने प्रथम दो कन्या से विवाह किया
सुमंगला ने प्रथम 49 युगल पुत्रो को जन्म दिया
🙏 नवीन के महेता🙏
🌹 रापर कच्छ🌹
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*🔴महावीर के उपदेश ग्रुप🔴*
🙏आदीश्र्वर🙏
✈ अलबेलों रे✈
🌹राज्याभिषेक🌹
1⃣5⃣ एक युगलिक की अकाल मृत्यु से उतरते काल की शुरूआत हो गई
अब निर्दोष युगलिको में लोभ लालच ने जगह बना ली
यह मेरा यह तेरा के भाव से उन्हो में छोटे बड़े विखवाद होने लगे
तब युगलिको नाभि कुलकर के पास जाकर राजा की मांग की
तब नाभि कुलकर बोले ऋषभ आप का राजा हो और जल का अभिषेक कर राजा धोषित करें
तब हर्षित होकर युगलिको जल लेने के लिए सरयू नदी की ओर चल पड़े
हर्ष पूर्वक कोई नाच रहा है तो अमुक गीत गा रहा है
कोई ढोल तो कोई मृदंग बजा रहा है
इस तरह बहुत देर के बाद सब सरयू किनारे पहुंचे
बाद में वृक्ष के पर्ण में से सपूंट याने कटोरा बनाया
इस में बड़े उमंग और भाव से जल लेकर राज्य सभा में आये
युगलिको जल लेने गए तब एक धटना धटी
सुधर्म देवलोक में इंद्र का सिंहासन कंपायमान हुआ
इंद्र महाराज ने अवधिज्ञान से प्रभु के राज्या भिषेक काल देख
अनेक देव देवीया के साथ वहां पधारे बाद में प्रभु को सुवर्ण रत्नो के सिंहासन पर विराजमान कर
दिव्य आभुषणो अलंकार पहनाकर
उतम जाति के औषधि युक्त जल से अभिषेक कर राज तिलक किया
यहां बहुत देर के बाद युगलिको जल लेकर आये प्रभु का राज्याभिषेक हुआ देख निरास हुए
तब युगलिको ने विवेक से प्रभु के बाहें याने जमणे पांव के अंगूठे पर जल अभिषेक कर राजा ऋषभदेव का जय जयकार किया
युगलिको के विनय को याद कर कर प्रभु को पक्षाल अभिषेक करते वक्त बोलते हैं
🙏जल भरी सपूंट पत्र में
युगलिक नर पूजत
ऋषभ चरण अंगुठडे
दायक भवजल अंत
इस तरह ऋषभदेव प्रथम राजा बने
🙏 नवीन के महेता🙏
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*🔴महावीर के उपदेश ग्रुप🔴*
🙏आदीश्र्वर🙏
✈ अलबेलों रे✈
🌹 अग्नि प्रगटयो🌹
1⃣6⃣ जब युगलिको ने राजा ऋषभ के बाहें पांव के अंगूठे पे जल अभिषेक करते देख
युगलिको के विनय से हर्षित होकर सौधर्म इंद्र ने कुबेर को नगरी बनाने का आदेश दिया
बाद में कुबेर ने बारह योजन लंबी और नव योजन चोहडाइ वाली नगरी बनाइ और नाम रखा विनीता नगरीऐसा अवधिज्ञान से जानकर स्वयं इंद्र अनेक उत्साही देवों के साथ वहाँ आते हैं और उसी स्थल को मध्य में करके एक सुन्दर नगरी निर्माण करने के लिए कुबेर को कहते है।
औऱ कुबेर जी अद्भुत रचना करते है,ये नगरी१२योजन लम्बी एवं ९ योजन चौड़ी थी।इसका परकोटा सोने का बना हुआ था।
परकोटे पर पाँच प्रकार के मणिरत्नों के कंगूरे थे। अल्कापूरी सदृश्य (देवताओं की नगरी जैसी) मानो वह स्वर्ग का ही रूप हो,ऐसी मनभावन लगती थी,दर्शनीय,अभिरूप और प्रतिरूप,प्रासादिय मन को प्रसन्नकरने वाली थी। ऐसी
रचना कर देते हैं। चार गोपुर द्वार, परिखा, उद्यान आदि से सहित 84 बाजार वाली नगरी
वहाँ की जनता वैभव,सुरक्षा,समृद्धि से युक्त्त, आमोद प्रमोद के प्रचुर साधन होने से बड़ी प्रमुदित रहती थी.पारस्परिक प्रेम-सौहाद्र का वातावरण था।एक अहोरात्रि में
इसका निर्माण किया गया
‘अरिभिः योद्धुं न शक्या इति अयोध्या’ शत्रुओं से युद्ध करने में समर्थ न होने से ‘अयोध्या’ इस सार्थक नाम से सम्बोधित की जाती है। पाँच मंदिर इस नगरी के मध्यभाग में इन्द्रपुरी के साथ स्पर्धा करने वाला ऐसा दिव्य राजमहल तैयार किया जाता है। सभी देव मिलकर शुभ दिन, शुभ मुहूर्त, शुभयोग और शुभ लग्न में वहाँ पुण्याहवाचन करते हैं। उसी समय अंतिम कुलकर महाराजा नाभिराय अपनी महारानी मरुदेवी के साथ उस महल में प्रवेश करते हैं। तभी इन्द्र उन दोनों का अभिषेक करके सम्मान करते हुए उनकी पूजा करते हैं। ‘
उतरते काल के दौरान कल्पवृक्ष नष्ट होने लगे और धान्य कंदमूल आपो आप उगने लगे
भुख के मारे लोगों कंदमूल धान्य कचे कचे खाने लगे
इस तरह खाना खाने से लोगों को पेट में तकलीफ होने लगी
इस तकलीफ निवारण के लिए प्रभु ने अन्न को दो नो हाथ में घिसकर खाने की सलाह दी
और एक दिन वृक्ष की दो शाखाएं घिसने से अग्नि प्रकट हुआ
अग्नि कि ज्वाल देख ऋजु युगलिको रत्न समझ कर पकड़ने से दाझ ने लगे तब
सब प्रभु के पास आकर भुत प्रकट होकर दझाने की फरीयाद की
तब प्रभु ने अग्नि में धान्य पका कर खाने को कहा
तब युगलिको धान्य आदि अग्नि में डाल कर वापस मांगने लगे लेकिन वापस न मिलने पर प्रभु के पास फरीयाद करने आए
तब राजा ऋषभ हाथी पर सवार होकर जा रहे थे तब लोगों की फरीयाद सुन
भीनी मिट्टी मंगवा कर हाथी के कुंभस्थल पर मिट्टी रख कर हाथ से मिट्टी का बरतन बनाया और प्रभु ऋषभदेव प्रथम कुंभकार बने
बाद में प्रभु ने कुंभकार वार्धकि याने आवास बनाने वाले चित्रकला वणकर याने वस्त्र बनाने वाले नापित याने नाइ इस तरह पांच शिल्प शिखलाये
और हरेक के 20/20 पेटा विभाग बनाये इस तरह 100 शिल्प शिखलाये
बाद में भरत को पुरूषों की 72 कला ब्राह्मि को अढारह लीपी सुंदरी को गणित और बाहुबली को अमुक कला शिखाया
उग्र कुल भोग राजन्य और क्षत्रिय इस तरह चार कुल की स्थापना की
युगलिक लग्न विछेद कर हमारी संस्कृति की नींब दाली
इस तरह ६३ लाख पूर्व राज कर ऊतम राज धर्म निभाया
तब एक धटना धटी
🙏नवीन के महेता🙏
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*🔴महावीर के उपदेश ग्रुप🔴*
🙏आदीश्र्वर🙏
✈ अलबेलों रे✈
🌹 वरसीदान🌹
1⃣7️⃣ वसंत ऋतु का आगमन हो गया है
आंबा डाले कोयल रानी टहुकार कर रही है फुलों की महक से वातावरण सुगंधित है तब
उधान में बैठे राजा ऋषभ के मन में विचार कर रहे हैं कि
विषय वासना और आत्महित से भरे लोगों को धिक्कार हे की मानव भव पाकर क्रोध मान माया लोभ से लोगों बालिस चेष्टा कर रहे हैं
संसार की असारता की भावना पैदा होते ऋषभदेव के मन में वैराग्य भाव उछलने लगा
तब अवधिज्ञान से प्रभु का दीक्षा काल जाण रिष्ट प्रतर देवलोक से नव प्रकार के लोकांतित देवों प्रभु के पास आकर वंदन कर कहने लगे
हे प्रभु यह अवसर्पिणि काल में आपने सर्व प्रकार की व्यवस्था प्रवतमान की है इस तरह
लोगों को संसार सागर पार करने के लिए धर्म तिर्थ प्रवताओ
तब वैराग्य भाव से राजा ऋषभ उधान में से महल पधारे
और दुसरे दिन से वरसीदान देना शरु किया
तब इंद्र महाराज की आज्ञा से तिर्यगजृंभक देवों सुवर्ण रत्नो रजत आदि लाकर ढग करने लगे
तब राजा ऋषभ देव हररोज एक क्रोड आठ लाख सोनैया का दान करने लगे
प्रभू के अतिशय से योग्य दान पाकर संतुष्ट होने लगे
इस तरह प्रभु ने एक बरस में 388 क्रोड 80 लाख सोनैया का दान दिया
एक बरस दान करने से वो वरसीदान कहलाया
बाद में राजा ऋषभ ने पुत्र भरत का राज्याभिषेक किया
तब इंद्र आदि देवो पृथ्वी पर पधारे और
🙏नवीन के महेता🙏
🌹 रापर कच्छ🌹
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*🔴महावीर के उपदेश ग्रुप🔴*
🙏 आदीश्र्वर🙏
✈ अलबेलों रे✈
🌹सयंम पंथ🌹
1⃣8⃣ भरत को राज्याभिषेक कर विनीता नगरी के राजा धोषित कर
बाहुबली आदी 99 पुत्रो को तक्षशिला आदि देशों के राजा बनाया
भरत महाराज ने दीक्षा की सब तैयारी की तब देवों ने अपने आचार अनुसार तैयारी कर ने लगे
दीक्षा के दिन इंद्र महाराज ने अपनी दैवी पालखी भरत महाराज की पालकी में संक्रात की
बाद में प्रभु इस पालखी में बिराजमान हुए
दीक्षा का वरघोड़ा हर्शोल्लास के साथ विनीता नगरी में चक्कर लगा कर नगरी के बाहर शकटमुख उघान में पालखी रुकी
तब ऋषभ देव अशोक वृक्ष के नीचे आकर वस्त्र आभूषण अलंकार का त्याग कर लोच करने लगे
जब चार मुष्ठि लोच हुआ तब इंद्र महाराज ने प्रभु को विनंती करते बोले प्रभु अब रहने दो तब प्रभु ने इंद्र की विनंती को स्विकार कर प्रभु ने दो हाथ मस्तक पर लगाकर नमो सिध्दाणं पद के साथ सिध्द भगवंतो को नमस्कार कर करेमि भंते सूत्र बोल साधू जीवन स्विकार किया
तब इंद्र महाराज ने अपने आचार अनुसार प्रभु के डाहिने कंधे पर देव दुष्य वस्त्र रखा
तब प्रभु को चोथा मन।पर्यवज्ञान उत्पन्न हुआ प्रभु के साथ अपने राज्य भाग छोड़ कच्छ महाकच्छ आदि 98 पुत्रो सहित 4000 लोगों ने सयंम अंगीकार किया
तब इंद्र महाराज प्रभु की स्तवना कर दीक्षा महोत्सव करने नंदीश्वर द्रीप गये
प्रभु जगत के प्रथम साधू बन शिष्यों के साथ विहार किया
बाद में युगलिको गोचरी वहोराने का ज्ञान न होने की वजह से लोगों प्रभु को हाथी घोड़ा वस्त्र कन्या आदि वहोरने की विनंती करने लगे
प्रभु के साथ रहे साधू भगवंतो भूख तरस से व्याकुल होकर कच्छ महाकच्छ के आगे आकार व्यथा सुनाई
तब वो बोले हमारी दशा भी आप जैसी है बाद में उन्हें गंगा नदी के तट पर तपोवन याने आश्रम बनाकर फल कंदमूल आदि खाने लगे
तब से वनवासी और जटाधारी तापस मत शुरू हुआ
प्रभु ने दीक्षा ली तब कच्छ महाकच्छ के बहार गये पुत्र नमि विनंमी प्रभु के पास राज्य की मांग करने लगे लेकिन काउस्सग ध्यान मेंप्रभू मौन होने की वजह से नमी विनंमी प्रभु की व्यावच्च कर राज्य की मांग करने लगे
एक दिन नागलोक के अधिपति धरणेद्र देव ने नमी विनंमी को देख प्रसन्न होकर प्रभु सेवा के फल स्वरुप गौरी प्रज्ञप्ति आदि 48000 विधा देकर वैताढय पर्वत पर नगर बसाकर राज करने लगे
बाद में नमी ने वैताढय पर्वत की दक्षिण दिशा में50 नगर और विनंमी ने उत्तर दीशा में 60 नगरी वसाकर लोगों को बसाया
🙏नवीन के महेता🙏
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🙏 आदीश्र्वर🙏
✈ अलबेलों रे✈
🌹प्रथम पारणु🌹
1⃣9⃣ दीक्षा के बाद प्रभु ऋषभदेव आर्य अनार्य देशों में विचरते विचरते 13 मास गोचरी न मिली फीर भी प्रसन्नता पूर्वक आगे बढ़ते रहे
एक दिन एक धटना धटी
प्रभु के पुत्र बाहुबली के पुत्र सोमयशा के पुत्र हस्तिनापुर के युवराज श्रेयांस कुमार को रात्रि के छेले प्रहर एक स्वप्न देखा
जिसमें सुवर्ण का मेरु पर्वत काला हो गया है और उन्होंने काले पर्वत को दुध का अभिषेक कर उज्जवल बना दिया है
तब राजा सोमयश ने स्वपन्न में एक राजा को शत्रु ने घेरा तब श्रेयांस कुमार ने राजा को सहाय की
और तब सुबुध्धि शेठ ने स्वप्न में सूर्य के किरण बाहर आ गये और श्रेयांस कुमार ने उसे वापस सूर्य में आरोपण किया और सूर्य तेजस्वी मय हो गया
सबेरे तिनो ने अपने अपने स्वप्न की बात कही
तिनो के स्वप्न में श्रेयांस कुमार होने से कुमार को बड़ा लाभ होगा ऐसा अनुमान किया
तब विचरते विचरते प्रभु ऋषभदेव हस्तिनापुर पधारे और ऋजु लोगों प्रभु को वस्त्र आभूषण देने लगे तब प्रभु ग्रहण किए बिना आगे चल पड़े
तब महल के झरुखे बैठे श्रेयांस कुमार ने यह सब देख नीचे आकर प्रभु को वंदन पूर्वक प्रदक्षिणा देते
मनमे मेने एसा वेश याने साधू को देखा है एसा उहापोह होते जातिस्मरण ज्ञान उत्पन हुआ
और गोचरी वहोराने का भाव हुआ तब जोगनाजुग एक खेडुत इक्ष्वासु याने गंढेरी के रस का कुंभ याने घड़ा भेट दिया
श्रेयांस कुमार ने प्रभु को लाभ देने को कहा तब प्रभु ने दोनों हाथ लंबाया और श्रेयांस कुमार ने में प्रथम दान दिया और प्रभु ने इक्ष्वासु रस से प्रथम पारणा किया
तब देवों ने अहो दानम अहो दानम की उद्धोषणा कर रत्नो की वृष्टि की तब पांच दिव्य प्रकट हुए
और प्रभु ने दीक्षा के अंदाजे 400 दिन बाद पारणा किया और हमारे यहां वरसी तप की शुरूआत हुई
जहां प्रभु ने पारणा किया इस जगह श्रेयांस कुमार ने रत्नमय पीठ बनाई जो बाद में आदित्य पीठ के नाम प्रसिद्ध हुइ
🙏 नवीन के महेता🙏
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🙏 आदीश्वर🙏
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🌹अंतराय कर्म🌹
2️⃣0️⃣श्रेयांस कुमार ने प्रभु को पारणा करा कर बड़ा पुण्य उपार्जन किया
श्रेयांस कुमार ने दिया दान अक्षय बन गया इस लिए प्रभु ने जिस दिन पारणा किया वो वैशाख सुद त्रीज अक्षय तृतीया अखात्रिज के नाम प्रसिद्ध है
जब श्रेयांस कुमार ने लोगों ने पुछने पर कहा कि
पूर्वे मेने वज़सेन तिर्थंकर को मेने देखा
तब ऊन्होके पुत्र वज़नाभ का में सारथी था और प्रभु के उपदेश से हम दोनो ने सयंम अंगीकार किया था यह मुझे प्रभु को देख गोचरी वहोराने का आचार याद आया
इस तरह श्रेयांस कुमार यह अवसर्पिणि के प्रथम दाता याने दानेश्र्वरी हुए
प्रभु को 400 दिन गोचरी याने आहार का अंतराय क्यों हुआ
इस बारे में ज्ञानी भगवंत बताते हैं कि
कोई पूर्व भव में प्रभु का आत्मा थे वो कहां जा रहे थे तब
उन्होंने देखा कि एक खेडुत वृषभ याने बेल को जोड़ अनाज निकालने का काम कर रहा था तब
बेल अपने स्वभाव अनुसार बार बार अनाज खाने का प्रयास कर रहे थे
बेल के व्यवहार से खेडुत परेशान हो रहा था
तब प्रभु के आत्मा वहां से निकले और खेडुत को वणमांगि सलाह दी कि भाइ इस बेल के मुख पर सिंकु याने मुखकोश बांध दें
खेडुत ने तुरंत यह बात का अमल किया तब मुखकोश से बंधे बेल ने 400 निशासा डाला इस तरह बेल को खाने के अंतराय स्वरुप अंतराय कर्म बंध हुआ
और यह अंतराय कर्म की वजह से प्रभु को 400 दिन गोचरी याने आहार में अतराय हुआ
🙏अंतराय कर्म न बांधो कोई
🙏नवीन के महेता🙏
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🙏आदीनाथ🙏
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🌹 केवल ज्ञान🌹
2️⃣1⃣ प्रभु विहार कर बाहुबली राजा के तक्षशिला के उधान में पधारे
सबेरे बाहुबली नगर जन और परिवार के साथ उधान में पधारे
और प्रभु दर्शन की भावना से इधर उधर देखा लेकिन प्रभु न दिखलाने से माली याने उधान रक्षक को पुछने से मालुम हुआ कि प्रभु विहार कर गए
तब अपने भाग्य को कोसते आंखों में अश्रु धारा बहाते बाहुबली ने प्रभु के जमीन पर पड़े चरण को वंदन कर इस की कोई आसतना न करें इसलिए यहां
आठ योजन लंबा चार योजन ऊंचा एक हजार आरा वाले रत्न मय धर्म चक्र की स्थापना की
बाद में अष्टानिका महोत्सव कर धर्म चक्र की पूजा की व्यवस्था की
प्रभु को दीक्षा के 1000 बरस बाद विहार करते अयोध्या नगरी पधारे
अयोध्या नगरी के पुरितमाल के शकटमुख। उधान में पधारे
अठ्ठम तप में फागण सुदि अग्यारस के दिन काउस्सग ध्यान में ऋषभदेव प्रभु ध्यान धारा बढ़ने लगी
गुणस्थानक की क्षेणी में शुक्ल ध्यान की धारा में कर्म भस्म होने लगे
चार कर्म को चुर कर वटवृक्ष के नीचे प्रभु को अलौकिक केवल ज्ञान प्राप्त हुआ
तब इंद्र महाराज ने अवधिज्ञान से देख केवल ज्ञान महोत्सव करने पधारे
इस तरह यह अवसर्पिणि के 18 क्रोडा क्रोडि काल पसार होने के बाद केवल ज्ञान प्रकाश ज्योत जली
और प्रभु यह अवसर्पिणि के प्रथम केवलि बने
🙏नवीन के महेता🙏
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🙏आदीनाथ 🙏
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🌹मरुदेवा केवल🌹
2️⃣2️⃣ हररोज की तरह आज भी भरत महाराज दादी मरूदेवा को प्रणाम करने गए
तब पुत्र विरह में 1000 बरस से आंसु बहाने सेआंखों में पडल आ गये थे ऐसे मरूदेवा पुत्र मोह से बोले
मेरा सुकमाल ऋषभ रात दिन नंगे पांव विचरते कितना दुखी होता होगा
दादी पोते के बीच बात चल रही थी तब यमक नाम के उधान पालक ने आकर कहा महाराज शकटमुख उघान में प्रभु ऋषभदेव को केवल ज्ञान उत्पन्न हुआ है
तब शमक नाम के दूत ने कहा महाराज आपकी युद्ध शाला में चक्र रत्न प्रकट हुआ है
दोनों को उतम सरपाव देकर विदा कर भरत महाराज सोचने लगा कि पहले प्रभु को वंदन करें या चक्र रत्न की पूजा करें और निर्णय कर प्रभु दर्शन की तैयारी कर
मरूदेवा माता को हाथी की अंबाडी में बैठाकरके भरत महाराज प्रभु को वंदन करने चले
दुर से प्रभु का समवसरण देख भरत बोले देखो दादी मां देवो से पूजित आप के पुत्र की रीध्धि सिध्धि देखो
यह सुनते सुनते मरूदेवा की आंखों में अश्रु धारा बहने लगी और आंखों के पडल दुर हो गया
जब प्रभु ने माता की ओर न देखा तब मरूदेवा अपने को कोशते बोलने लगे और अपने राग पर धिक्कार होते
ध्यान की धारा में लीन होते क्षपकक्षेणी पूर्वक कर्म खपाकर गज अंबाडी पर केवल ज्ञान प्राप्त हुआ और आयुष्य पुर्ण होते मोक्ष पधारे
इस तरह यह अवसर्पिणि में ऋषभदेव प्रथम केवली बने और माता मरुदेवा प्रथम मोक्ष गामी बने
🙏 नवीन के महेता🙏
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🙏 आदीश्वर🙏
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🌹पुडरिक मोक्ष🌹
2️⃣3⃣ विश्र्व के जीवो को प्रतिबोध करते प्रभु ऋषभदेव गणधर ऋषभसेन याने पुडरिक स्वामी आदी गणधर और मुनि भगवंत के साथ विहार कर सौराष्ट्र में पधारे
सौराष्ट्र में आठ योजन ऊंचा और पचास योजन विस्तार वाले गिरीराज शत्रुजय पर पधारे
और यहां देवों के रचीत समवसरण में सिंहासन पर विराजमान होकर प्रथम प्रहर देशना दी
बाद में प्रभु आराम करने देवच्छंदा में पधारे बाद में पुंडरीक गणधर ने देशना दी
इस तरह अमुक काल तक प्रभु शत्रुंजय गीरी पर रहे और बाद में विहार करते वक्त पुंडरीक गणधर को कहा तुम यहां रूक जाओ आप के लिए यह उचित है
प्रभु की आज्ञा शिरोधार्य कर पुंडरीक गणधर पांच करोड़ मुनि भगवंत के साथ वहां आराधना करने लगे
गीरीराज के प्रभाव से धर्म साधना के भाव उछलने लगे
बाद में सर्व जीवो की क्षमापना कर अनशन स्विकार किया
ध्यान धारा बढ़ने से शुक्ल ध्यान धारा पूर्वक घातीकर्म चुर होने लगे एक मास के उपवास होते
चैत्र शुक्ल पुर्णिमा के दिन चार अघाति घातीकर्म चुर कर
पुंडरीक गणधर पांच करोड़ मुनि भगवंत के साथ मोक्ष पधारे
देवों ने आकर मोक्ष गमन महोत्सव किया
चक्रवर्ती भरत महाराज को समाचार मिलते शंत्रुजय पधारे और वहां रत्न शिलामय चैत्य निर्माण करवा कर ऋषभदेव और पुंडरीक स्वामी की प्रतिमा प्रतिष्ठित की
तब से शत्रुंजय गीरी पुडरिक गीरि नाम से प्रसिद्ध हुआ
शत्रुंजय गीरी पर चैत्र शुक्ल पुर्णिमा के दिन किये तप जप दान आदि धर्म आराधना का फल शास्त्र के अनुसार पांच करोड़ गुणा मिलता है
🙏नवीन के महेता🙏
RAPAR kutch
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🙏आदीश्र्वर🙏
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🌹प्रभु निर्वाण🌹
2️⃣4⃣ ऋषभदेव प्रभु भव्य जीवो को प्रतिबोध करते तब ऋजु होने की वजह से अनेक जीवों सयंम अंगीकार कर यातो शुद्ध श्रावक जीवन स्विकार करते
इस तरह 83 लाख पूर्व संसार में रहे और 1लाख पूर्व सयंम साधना करते निर्वाण काल नजदीक आते दश हजार मुनि के साथ अष्टापद पर्वत पर पधारे
यहां दश हजार मुनि के साथ प्रभु ने अनशन किया
यह समाचार पर्वत पालकों ने सुनाते भरत महाराज परिवार सह तत्काल अष्टापद गीरी पधारे
वहां पर्यंकासन में बैठे प्रभु को वंदन कर तिन प्रदक्षिणा देते प्रभु की सेवा करने लगे
प्रभु का निर्वाण काल नजदीक आते चोसठ इंद्र आदि देवो भी प्रभु की सेवा करने लगे
इस तरह यह अवसर्पिणि के तिसरे आरे के 89, पाक्षिक बाकी थे तब महा वद तेरस के दिन अभिजित नक्षत्र में चंद्र का योग था तब प्रभु ऋषभदेव निर्वाण पाकर मोक्ष में पधारे
बाकी के 10 हजार मुनि क्षपक श्रेणी पूर्वक धाती कर्म खपाकर केवल ज्ञान प्रकाश हुए और बाकी के अधाति कर्म खपाकर मोक्ष पधारे
🙏 नवीन के महेता🙏
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🙏 भगवान ऋषभदेव का जन्म महोत्सव-
नव महीने व्यतीत होने पर माता मरुदेवी ने चैत्र कृष्ण नवमी के दिन सूर्योदय के समय मति-श्रुत-अवधि इन तीनों ज्ञान से सहित भगवान् को जन्म दिया। सारे विश्व में हर्ष की लहर दौड़ गई। इन्द्रों के आसन कम्पित होने से, कल्पवृक्षों से पुष्पवृष्टि होने से एवं चतुर्निकाय देवों के यहां घंटा ध्वनि, शंखनाद आदि बाजों के बजने से भगवान का जन्म हुआ है ऐसा समझकर सौधर्म इन्द्र ने इन्द्राणी सहित ऐरावत हाथी पर चढ़कर नगर की प्रदक्षिणा करके भगवान को सुमेरु पर्वत पर ले जाकर 1008 कलशों से क्षीरसमुद्र के जल से भगवान का जन्माभिषेक किया। अनन्तर वस्त्राभरणों से अलंकृत करके ‘ऋषभदेव’ यह नाम रखा। इन्द्र अयोध्या में वापस आकर स्तुति, पूजा, तांडव नृत्य आदि करके स्वस्थान को चले गये।
🙏🏼 भगवान ऋषभदेव का विवाहोत्सव-
भगवान् के युवावस्था में प्रवेश करने पर महाराजा नाभिराज ने बड़े ही आदर से भगवान् की स्वीकृति प्राप्त कर इन्द्र की अनुमति से कच्छ, सुकच्छ राजाओं की बहन ‘यशस्वती’, ‘सुनन्दा’ के साथ श्री ऋषभदेव का विवाह सम्पन्न कर दिया।
🙏🏼 भरत चक्रवर्ती आदि का जन्म-
यशस्वती देवी ने चैत्र कृष्ण नवमी के दिन भरत चक्रवर्ती को जन्म दिया तथा क्रमशः निन्यानवे पुत्र एवं ब्राह्मी कन्या को जन्म दिया। दूसरी सुनन्दा महादेवी ने कामदेव भगवान बाहुबली और सुन्दरी नाम की कन्या को जन्म दिया। इस प्रकार एक सौ तीन पुत्र, पुत्रियों सहित भगवान ऋषभदेव, देवों द्वारा लाये गये भोग पदार्थों का अनुभव करते हुए गृहस्थ जीवन व्यतीत कर रहे थे।
🙏🏼 भगवान द्वारा पुत्र-पुत्रियों का विद्याध्ययन-
भगवान ऋषभदेव गर्भ से ही अवधिज्ञानधारी होने से स्वयं गुरु थे। किसी समय भगवान ब्राह्मीसुन्दरी को गोद में लेकर उन्हें आशीर्वाद देकर चित्त में स्थित श्रुतदेवता को सुवर्णपट्ट पर स्थापित कर ‘सिद्धं नमः’ मंगलाचरणपूर्वक दाहिने हाथ से ‘अ, आ’ आदि वर्णमाला लिखकर ब्राह्मी कुमारी को लिपि लिखने का एवं बायें हाथ से सुन्दरी को अनुक्रम के द्वारा इकाई, दहाई आदि अंक विद्या को लिखने का उपदेश दिया था। इसी प्रकार भगवान ने अपने भरत, बाहुबली आदि सभी पुत्रों को सभी विद्याओं का अध्ययन कराया था।
🙏असि-मषि आदि षट्क्रियाओं का उपदेश-
काल प्रभाव से कल्पवृक्षों के शक्तिहीन हो जाने पर एवं बिना बोये धान्य के भी विरल हो जाने पर व्याकुल हुई प्रजा नाभिराज के पास गई। अनन्तर नाभिराज की आज्ञा से प्रजा भगवान ऋषभदेव के पास आकर रक्षा की प्रार्थना करने लगी। प्रजा1 के दीन वचन सुनकर भगवान ऋषभदेव अपने मन में सोचने लगे कि पूर्व-पश्चिम विदेह में जो स्थिति वर्तमान है वही स्थिति आज यहाँ प्रवृत्त करने योग्य है। उसी से यह प्रजा जीवित रह सकती है। वहां जैसे असि, मषि आदि षट्कर्म हैं, क्षत्रिय आदि वर्ण व्यवस्था, ग्राम-नगर आदि की रचना है वैसे ही यहां भी होना चाहिये। अनन्तर भगवान ने इन्द्र का स्मरण किया और स्मरणमात्र से इन्द्र ने आकर अयोध्यापुरी के बीच में जिनमंदिर की रचना करके चारों दिशाओं में जिनमन्दिर बनाये। कौशल, अंग, बंग आदि देश, नगर बनाकर प्रजा को बसाकर प्रभु की आज्ञा से इन्द्र स्वर्ग को चला गया। भगवान ने प्रजा को असि, मषि, कृषि, विद्या, वाणिज्य और शिल्प इन छह कर्मों का उपदेश दिया। उस समय भगवान सरागी थे। क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन तीन वर्णों की स्थापना की और अनेकों पाप रहित आजीविका के उपाय बताये। इसीलिये भगवान युगादिपुरुष, आदिब्रह्मा, विश्वकर्मा, स्रष्टा, कृतयुग विधाता और प्रजापति आदि कहलाये। उस समय इन्द्र ने भगवान का साम्राज्य पद पर अभिषेक कर दिया।
🙏भगवान का वैराग्य और दीक्षा महोत्सव-
किसी समय सभा में नीलांजना के नृत्य को देखते हुए बीच में उसकी आयु के समाप्त होने से भगवान को वैराग्य हो गया। भगवान ने भरत का राज्याभिषेक करते हुए इस पृथ्वी को ‘भारत’ इस नाम से सनाथ किया और बाहुबली को युवराज पद पर स्थापित किया। भगवान महाराज नाभिराज आदि को पूछकर इन्द्र द्वारा लाई गई ‘सुदर्शना’ नामक पालकी पर आरूढ़ होकर ‘सिद्धार्थक’ वन में पहुंचे और वटवृक्ष के नीचे बैठकर ‘ नमः सिद्धेभ्यः 'मन्त्र का उच्चारण कर पंचमुष्टि केशलोंच करके सर्व परिग्रह रहित मुनि हो गये। उस स्थान की इन्द्रों ने पूजा की थी इसीलिये उसका ‘प्रयाग’ यह नाम प्रसिद्ध हो गया अथवा भगवान ने वहां प्रकृष्ट रूप से त्याग किया था इसीलिये भी उसका नाम प्रयाग हो गया था1। उसी समय भगवान ने छह महीने का योग ले लिया। भगवान के साथ आये हुए चार हजार राजाओं ने भी भक्तिवश नग्न मुद्रा धारण कर ली।
🙏पाखंड मत की उत्पत्ति-
भगवान के साथ दीक्षित हुए राजा लोग दो-तीन महीने में ही क्षुधा, तृषा आदि से पीड़ित होकर अपने हाथ से वन के फल आदि ग्रहण करने लगे। इस क्रिया को देख वन देवताओं ने कहा कि मूर्खों! यह दिगम्बर वेष सर्वश्रेष्ठ अरहंत, चक्रवर्ती आदि के द्वारा धारण करने योग्य है। तुम लोग इस वेष में अनर्गल प्रवृत्ति मत करो। यह सुनकर उन लोगों ने भ्रष्ट हुये तपस्वियों के अनेकों रूप बना लिये, वल्कल, चीवर, जटा, दण्ड आदि धारण करके वे पारिव्राजक आदि बन गये। भगवान ऋषभदेव का पौत्र मरीचिकुमार इनमें अग्रणी गुरू परिव्राजक बन गया। ये मरीचि कुमार आगे चलकर अंतिम तीर्थंकर महावीर हुए हैं।
🙏भगवान का आहार ग्रहण-
जगद्गुरु भगवान छह महीने बाद आहार को निकले परन्तु चर्याविधि किसी को मालूम न होने से सात माह नौ दिन और व्यतीत हो गये अतः एक वर्ष उनतालीस दिन बाद भगवान कुरुजांगल देश के हस्तिनापुर नगर में पहुंचे। भगवान को आते देख राजा श्रेयांस को पूर्व भव का स्मरण हो जाने से राजा सोमप्रभ के साथ श्रेयांसकुमार ने विधिवत् पड़गाहन आदि करके नवधाभक्ति से भगवान को इक्षुरस का आहार दिया। वह दिन वैशाख शुक्ला तृतीया का था जो आज भी ‘अक्षय तृतीया’ के नाम से प्रसिद्ध है।
🙏 भगवान को केवलज्ञान की प्राप्ति-
हजार वर्ष तपश्चरण करते हुए भगवान को पूर्वतालपुर के उद्यान में-प्रयाग में वटवृक्ष के नीचे ही फाल्गुन कृष्णा एकादशी के दिन केवलज्ञान प्रकट हो गया। इन्द्र की आज्ञा से कुबेर ने बारह योजन प्रमाण समवसरण की रचना की। समवसरण में बारह सभाओं में क्रम से 1.सप्तऋद्धि समन्वित गणधर देव और मुनिजन 2. कल्पवासी देवियाँ 3. आर्यिकायें और श्राविकायें 4. भवनवासी देवियाँ 5. व्यन्तर देवियाँ 6. ज्योतिष्क देवियाँ 7. भवनवासी देव 8. व्यन्तर देव 9. ज्योतिष्क देव 10. कल्पवासी देव 11. मनुष्य और 12. तिर्यंच बैठकर उपदेश सुनते थे। पुरिमताल नगर के राजा श्री ऋषभदेव भगवान के पुत्र ऋषभसेन प्रथम गणधर हुए। ब्राह्मी भी आर्यिका दीक्षा लेकर आर्यिकाओं में प्रधान गणिनी हो गयीं। भगवान के समवसरण में 84 गणधर, 84000 मुनि, 350000 आर्यिकायें, 300000 श्रावक, 500000 श्राविकायं, असंख्यातों देव देवियाँ और संख्यातों तिर्यंच उपदेश सुनते थे।
🙏ऋषभदेव का निर्वाण-
जब भगवान की आयु चौदह दिन शेष रही तब कैलाश पर्वत ( अष्टापद ) पर जाकर योगों का निरोध कर माघ कृष्ण चतुर्दशी के दिन सूर्योदय के समय भगवान पूर्व दिशा की ओर मुँह करके अनेक मुनियों के साथ सर्वकर्मों का नाशकर एक समय में सिद्धलोक में जाकर विराजमान हो गये। उसी क्षण इन्द्रों ने आकर भगवान का निर्वाण कल्याणक महोत्सव मनाया था, ऐसे ऋषभदेव जिनेन्द्र सदैव हमारी रक्षा करें। भगवान के मोक्ष जाने के बाद तीन वर्ष, आठ माह और एक पक्ष व्यतीत हो जाने पर चतुर्थ काल प्रवेश करता है।
🙏🏼 प्रथम तीर्थंकर का तृतीय काल में ही जन्म लेकर मोक्ष भी चले जाना यह हुंडावसर्पिणी के दोष का प्रभाव है। महापुराण में भगवान ऋषभदेव के ‘दशावतार’ नाम भी प्रसिद्ध हैं। 1. विद्याधर राजा महाबल 2. ललितांग देव 3. राजा वज्रजंघ 4. भोगभूमिज आर्य 5.श्रीधर देव 6. राजा सुविधि 7. अच्युतेन्द्र 8. वज्रनाभि चक्रवर्ती 9. सर्वार्थसिद्धि के अहमिन्द्र 10. भगवान ऋषभदेव। भगवान को ऋषभदेव, वृषभदेव, आदिनाथ, पुरुदेव और आदिब्रह्मा भी कहते हैं।
सामाजिक व्यवस्था और आत्मकल्याण का मार्गदर्शन दोनों ही ज्ञान प्रदानकर प्रभु ने प्राणिमात्र पर अनन्त उपकार किया है। हमें गर्व है, उन्हीं के आदर्शों पर चलकर जैन धर्म आज भी शाश्वत बना हुआ है। हमें गर्व है - लेकिन हम गर्वान्वित तभी महसूस कर सकते है, जब उनके आदर्शों पर चलें, चलने का प्रयत्न करें। शुभम् अस्तु।।
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