जीर्ण सेठ की प्रश्नोत्तरी
प्रश्न. १. ग्यारहवें चातुर्मास के चातुर्मासिक तप का पारणा वीर प्रभु ने किसके यहाँ किया ?
उत्तर. पुरण सेठ के यहाँ, उनकी दासी के हाथों, काष्ठ पात्र कुलत्थ ( उड़द के बाकुले ) से किया |
प्रश्न. २. वीर प्रभु को देखकर पुरण सेठ ने दासी से क्या कहा ?
उत्तर. इस भिक्षुक को भोजन देकर चलता कर |
प्रश्न. ३.वीर प्रभु ने पारणा किया यह बात जीर्ण सेठ को कैसे पता चली ?
उत्तर. देवदुंदुभी की आवाज़ सुनकर |
प्रश्न. ४. जीर्ण सेठ देवदुंदुभी की आवाज़ सुनकर निराश क्यों हुए ?
उत्तर. देवदुंदुभी की आवाज़ सुनकर जीर्ण सेठ समझ गए कि प्रभु का पारणा ही गया है | इसी कारण उन्हें निराशा हुई कि मैं इस लाभ से वंचित रह गया |
प्रश्न. ५. वीर प्रभु को सुपात्र दान देने की भावना भाते – भाते जीर्ण सेठ ने कौनसे देवलोक का पुण्य उपार्जन किया ?
उत्तर. १२ वें अच्युत देवलोक में महान ऋद्धिशाली देव होने का पुण्य उपार्जन किया |
प्रश्न. ६. यदि जीर्ण सेठ दो घडी देवदुंदुभी की आवाज़ नहीं सुनता तो क्या हो जाता ?
उत्तर. . जीर्ण सेठ केवली बन जाता |
प्रश्न. ७. “ जीर्ण सेठ और पुरण सेठ में से कौन महान था ? “ यह प्रश्न किसने पूछा ?
उत्तर. वैशाली के राजा ने पार्श्वनाथ भगवन परम्परा के केवली भगवन से | उन्होनें जवाब दिया की जीर्ण सेठ महान था |
प्रश्न. ८. जीर्ण सेठ ने दान नहीं दिया फिर भी पुण्यशाली कैसे हुआ ?
उत्तर. जीर्ण सेठ की भावना बहुत उत्तम थी | वह आहारदान की उच्च भावना से १२ वें देवलोक के ऋद्धिशाली देव होने का पुण्य प्राप्त कर चूका है, यदि उसकी भावना बढती ही रहती और देवदुंदुभी नाद का विक्षेप नहीं होता तो उसकी आत्मा केवलज्ञान प्राप्ति तक आगे बढ़ सकती थी |
प्रश्न. ९. पुरण सेठ ने वीर प्रभु को आहारदान दिया, फिर भी वह पुण्यशाली सिद्ध क्यों नहीं हुआ ?
उत्तर. पुरण सेठ के यहाँ प्रभु को आहारदान मिला, वह द्रव्य दान था, भाव दान नहीं, क्योंकि पुरण सेठ ने उपेक्षा की थी |
प्रश्न. १०. वीर प्रभु ने ग्यारहवें चातुर्मास के बाद कहाँ विहार किया ?
उत्तर. सुंसुमार नगर की ओर विहार कर, नगर के बाहर अशोक वन में ठहरे |
उत्तर. पुरण सेठ के यहाँ, उनकी दासी के हाथों, काष्ठ पात्र कुलत्थ ( उड़द के बाकुले ) से किया |
प्रश्न. २. वीर प्रभु को देखकर पुरण सेठ ने दासी से क्या कहा ?
उत्तर. इस भिक्षुक को भोजन देकर चलता कर |
प्रश्न. ३.वीर प्रभु ने पारणा किया यह बात जीर्ण सेठ को कैसे पता चली ?
उत्तर. देवदुंदुभी की आवाज़ सुनकर |
प्रश्न. ४. जीर्ण सेठ देवदुंदुभी की आवाज़ सुनकर निराश क्यों हुए ?
उत्तर. देवदुंदुभी की आवाज़ सुनकर जीर्ण सेठ समझ गए कि प्रभु का पारणा ही गया है | इसी कारण उन्हें निराशा हुई कि मैं इस लाभ से वंचित रह गया |
प्रश्न. ५. वीर प्रभु को सुपात्र दान देने की भावना भाते – भाते जीर्ण सेठ ने कौनसे देवलोक का पुण्य उपार्जन किया ?
उत्तर. १२ वें अच्युत देवलोक में महान ऋद्धिशाली देव होने का पुण्य उपार्जन किया |
प्रश्न. ६. यदि जीर्ण सेठ दो घडी देवदुंदुभी की आवाज़ नहीं सुनता तो क्या हो जाता ?
उत्तर. . जीर्ण सेठ केवली बन जाता |
प्रश्न. ७. “ जीर्ण सेठ और पुरण सेठ में से कौन महान था ? “ यह प्रश्न किसने पूछा ?
उत्तर. वैशाली के राजा ने पार्श्वनाथ भगवन परम्परा के केवली भगवन से | उन्होनें जवाब दिया की जीर्ण सेठ महान था |
प्रश्न. ८. जीर्ण सेठ ने दान नहीं दिया फिर भी पुण्यशाली कैसे हुआ ?
उत्तर. जीर्ण सेठ की भावना बहुत उत्तम थी | वह आहारदान की उच्च भावना से १२ वें देवलोक के ऋद्धिशाली देव होने का पुण्य प्राप्त कर चूका है, यदि उसकी भावना बढती ही रहती और देवदुंदुभी नाद का विक्षेप नहीं होता तो उसकी आत्मा केवलज्ञान प्राप्ति तक आगे बढ़ सकती थी |
प्रश्न. ९. पुरण सेठ ने वीर प्रभु को आहारदान दिया, फिर भी वह पुण्यशाली सिद्ध क्यों नहीं हुआ ?
उत्तर. पुरण सेठ के यहाँ प्रभु को आहारदान मिला, वह द्रव्य दान था, भाव दान नहीं, क्योंकि पुरण सेठ ने उपेक्षा की थी |
प्रश्न. १०. वीर प्रभु ने ग्यारहवें चातुर्मास के बाद कहाँ विहार किया ?
उत्तर. सुंसुमार नगर की ओर विहार कर, नगर के बाहर अशोक वन में ठहरे |
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