मिथ्यात्व गुणस्थान
मिथ्यात्व गुणस्थान किसे कहते हैं ??
Ⓜमिथ्यात्व प्रकृति के उदय से होने वाले तत्त्वार्थ के अश्रद्धान को मिथ्यात्व कहते है ।
कुदेव को देव , कुगुरु को गुरु और अधर्म को धर्म मानना ऐसी मान्यता को मिथ्यात्व कहते हैं ।
जीवादि सात तत्त्वों के विपरीत श्रद्धान को मिथ्यात्व कहते हैं ।
जिस गुणस्थान में उपरोक्त लक्षण घटित हों , उसे मिथ्यात्व गुणस्थान कहते हैं ।
Ⓜमिथ्यात्व प्रकृति के उदय से होने वाले तत्त्वार्थ के अश्रद्धान को मिथ्यात्व कहते है ।
कुदेव को देव , कुगुरु को गुरु और अधर्म को धर्म मानना ऐसी मान्यता को मिथ्यात्व कहते हैं ।
जीवादि सात तत्त्वों के विपरीत श्रद्धान को मिथ्यात्व कहते हैं ।
जिस गुणस्थान में उपरोक्त लक्षण घटित हों , उसे मिथ्यात्व गुणस्थान कहते हैं ।
Ⓜ मिथ्यात्व गुणस्थान की क्या विशेषताएँ हैं ❓
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मिथ्यादृष्टि जीव शरीर और आत्मा को एक मानता है ।
मिथ्यादृष्टि जीव को तत्त्व कुतत्त्व का विवेक नहीं रहता ।
मिथ्यात्व गुणस्थान में भव्य और अभव्य दोनों जीव रहते हैं ।
मिथ्यादृष्टि जीव चारों गति में जन्म ले सकते हैं ।
मिथ्यादृष्टि जीव नवमें ग्रैवेयक तक जन्म ले सकते हैं ।
एकेन्द्रिय से असंज्ञी पंचेन्द्रिय तक के सभी जीव मिथ्यात्व गुणस्थान में होते हैं ।
लोक में ऐसा कोई भी ऐसा प्रदेश नहीं हैं , जहाँ मिथ्यादृष्टि जीव न रहते हों ।
मिथ्यादृष्टि अपने पक्ष की हठ पकड़कर सच्ची बात को जल्दी स्वीकार नहीं करता ।
यह जीव की अधःतम अवस्था है
जैसे ज्वर युक्त मनुष्य को मधुर रस नहीं रुचता वैसे ही घोर मिथ्यादृष्टि जीव को धर्म नहीं रुचता ।
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मिथ्यादृष्टि जीव शरीर और आत्मा को एक मानता है ।
मिथ्यादृष्टि जीव को तत्त्व कुतत्त्व का विवेक नहीं रहता ।
मिथ्यात्व गुणस्थान में भव्य और अभव्य दोनों जीव रहते हैं ।
मिथ्यादृष्टि जीव चारों गति में जन्म ले सकते हैं ।
मिथ्यादृष्टि जीव नवमें ग्रैवेयक तक जन्म ले सकते हैं ।
एकेन्द्रिय से असंज्ञी पंचेन्द्रिय तक के सभी जीव मिथ्यात्व गुणस्थान में होते हैं ।
लोक में ऐसा कोई भी ऐसा प्रदेश नहीं हैं , जहाँ मिथ्यादृष्टि जीव न रहते हों ।
मिथ्यादृष्टि अपने पक्ष की हठ पकड़कर सच्ची बात को जल्दी स्वीकार नहीं करता ।
यह जीव की अधःतम अवस्था है
जैसे ज्वर युक्त मनुष्य को मधुर रस नहीं रुचता वैसे ही घोर मिथ्यादृष्टि जीव को धर्म नहीं रुचता ।
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